1014 राज्य की सुंदरता
1
ईश्वर चले सबसे ऊपर, रखे सब जगह नज़र।
नहीं कोई इंसान, कोई चीज़ पहले जैसी।
लेटकर पूरी कायनात पर ईश्वर, करे आराम अपने सिंहासन पर।
आज के ईश-कार्य का है यही अंतिम परिणाम।
ईश्वर के चुने जन पुन: पाते अपना मूल स्वरूप, दर्द से मुक्त हुए स्वर्गदूत,
जैसा कहे ईश्वर, उनकी सूरत लगे इंसान के दिल में पवित्र जन जैसी।
चूँकि स्वर्गदूत करें धरती पर सेवा ईश्वर की,
और दुनिया में फैले महिमा उसकी, स्वर्ग को धरती पर लाया जाता,
धरती को स्वर्ग तक उठाया जाता।
इंसान कड़ी बनकर जोड़े उन्हें।
अब अलग नहीं स्वर्ग और धरती; जुड़े हैं दोनों एक-दूजे से।
ईश्वर और इंसान में तालमेल रहेगा सदा।
ईश्वर और इंसान में तालमेल रहेगा सदा, न होंगे कभी जुदा।
यही है राज्य की सुंदरता। यही है राज्य की सुंदरता।
2
ईश्वर और इंसान ही हैं पूरी दुनिया में।
धूल और गंदगी से मुक्त, है सब-कुछ नया-सा।
जैसे हरी घास पर लेटा नन्हा मेमना, उठाता हो आनंद ईश्वर-अनुग्रह का।
हरियाली लाती ज़िंदगी की साँसें,
क्योंकि इंसान के संग धरती पर ईश्वर रहता सदा।
है इंसान के साथ दुनिया में डेरा उसका। ईश्वर फिर से सिय्योन में रहता।
ये दिन होगा ईश्वर के आराम का सभी इसके गुण गायेंगे, इसे मनाएँगे।
धरती पर उसके काम का अंत होगा, जब तख़्त पर वो आराम करेगा।
इसी पल उसके रहस्य ज़ाहिर होते हैं।
अब अलग नहीं स्वर्ग और धरती; जुड़े हैं दोनों एक-दूजे से।
ईश्वर और इंसान में तालमेल रहेगा सदा।
ईश्वर और इंसान में तालमेल रहेगा सदा, न होंगे कभी जुदा।
यही है राज्य की सुंदरता। यही है राज्य की सुंदरता।
ईश्वर चले सबके ऊपर, रखे सब जगह नज़र।
नहीं कोई इंसान, कोई चीज़ पहले जैसी।
फैलकर पूरी कायनात पर ईश्वर, करे आराम अपने सिंहासन पर।
आज के ईश-कार्य का है यही अंतिम परिणाम।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 16 से रूपांतरित