240 परमेश्वर के प्रेम से मैं उद्धार प्राप्त करता हूँ
Ⅰ
बरसों रखी आस्था मैंने प्रभु में,
जीता रहा सिद्धांतों पर मैं,
जीता रहा धारणाओं और कल्पनाओं में।
बरसों रखी आस्था मैंने प्रभु में,
पर प्रभु के वचनों का अभ्यास
और अनुभव करना न आया मुझे,
न ही उसका आज्ञापालन करना आया मुझे।
Ⅱ
सोचता था जानता हूँ सत्य मैं,
चाहता था सदा ईश्वर की दुआएँ।
ख़ुद को खपाते वक्त उससे सौदा करता था मैं,
धूर्त और कमीना था मैं।
सच को न चाहा कभी मैंने,
अंधेरे असर को दूर करने की हिम्मत न थी।
उजागर हुआ था बदसूरत ये चेहरा मेरा,
ये चेहरा मेरा।
देहधारी परमेश्वर के
महान सत्य के कारण,
बचा हूँ अपनी भ्रष्टता से मैं।
परमेश्वर का प्यार करता है मेरा उद्धार।
परमेश्वर का प्यार करता है मेरा उद्धार।
Ⅲ
सर्वशक्तिमान परमेश्वर दिखाए राह
मुझे हर कदम पर।
उसके न्याय और ताड़ना से
आज का बदलाव पाया मैंने।
ईश्वर के वचन जगाते मेरे दिल को,
अपनी शैतानी प्रकृति से है अब नफ़रत मुझे।
सत्य के अभ्यास का संकल्प लेता हूँ,
मैं देह से मुँह मोड़ने को तैयार हूँ।
Ⅳ
अंत के दिनों में ईश्वर बचाता हमें,
अंत के दिनों में वो बचाता हमें।
आपदा से बचकर देखेंगे हम
परमेश्वर की महिमा का दिन;
पाएँगे हम प्रतिज्ञा ईश्वर की,
लेंगे उसके राज्य की दुआओं का आनंद हम।
हम तक आ रहा है ईश्वर का प्यार,
पा रहे हैं हम, ईश्वर का प्यार।
आज अनुभव किया मैंने
ईश्वर के धार्मिक स्वभाव का।
आज अनुभव किया मैंने
ईश्वर के प्यार का,
पाया मैंने उसका महान उद्धार।
आज अनुभव किया मैंने
ईश्वर के प्यार का,
पाया उसका शुद्धिकरण।
मेरे जैसे भ्रष्ट इंसान को,
मेरे जैसे भ्रष्ट इंसान को,
मेरे जैसे भ्रष्ट इंसान को,
उन्नत किया, कैसे न धन्यवाद दूँ उसको?
देहधारी परमेश्वर के,
महान सत्य के कारण,
बचा हूँ अपनी भ्रष्टता से मैं।
परमेश्वर का प्यार करता है मेरा उद्धार।
परमेश्वर का प्यार करता है मेरा उद्धार।
धन्यवाद दो, स्तुति करो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की,
क्योंकि उसी का प्यार निर्मल है।
कैसे न धन्यवाद दूँ ईश्वर को उसके प्यार के लिये?
कैसे न धन्यवाद दूँ ईश्वर को उसके प्यार के लिये?