157 देहधारी मानव पुत्र स्वयं परमेश्वर है

1

जब परमेश्वर की दिव्यता माँस और लहू में साकार हुई थी,

तब उसकी मौजूदगी धुंधली न रह गयी थी।

उसे देख सकता, पास आ सकता इन्सान।

मानव पुत्र के कर्मों, कार्यों और वचनों द्वारा,

परमेश्वर की दिव्यता को जान सकता था इन्सान,

उसकी इच्छा को समझ सकता था इन्सान।


मानवता द्वारा व्यक्त की मानव पुत्र ने

परमेश्वर की इच्छा और दिव्यता।

परमेश्वर की इच्छा, स्वभाव को दर्शाकर,

उसने लोगों पर प्रकट किया, आत्मिक क्षेत्र के परमेश्वर को,

जिसे देखा या छुआ ना जा सकता।

देखा देह, छवि युक्त परमेश्वर को लोगों ने।


2

देहधारी मानव पुत्र ने बनाया परमेश्वर की पहचान,

दर्ज़ा, स्वभाव और अन्य बातों को स्पर्शनीय और मानवीय।

चाहे हो उसकी मानवता या हो दिव्यता उसकी,

हम नकार नहीं सकते, वो दर्शाता है दर्ज़ा और पहचान परमेश्वर की।


इस पूरे समय परमेश्वर ने कार्य किया, बोला देह के माध्यम से।

मानव पुत्र की पहचान के साथ, खड़ा हुआ इन्सान के सामने,

इन्सान के बीच परमेश्वर के कर्मों, वचनों को दिया उसे देखने,

उसकी महानता और दिव्यता को विनम्रता के बीच दिया समझने।


3

मानव पाता है एहसास, परमेश्वर की वास्तविकता, उसके यथार्थ का।

मानव उनका अर्थ समझ जाता है।


मानवता द्वारा व्यक्त की मानव पुत्र ने

परमेश्वर की इच्छा और दिव्यता।

परमेश्वर की इच्छा, स्वभाव को दर्शाकर,

उसने लोगों पर प्रकट किया, आत्मिक क्षेत्र के परमेश्वर को,

जिसे देखा या छुआ ना जा सकता।

देखा देह, छवि युक्त परमेश्वर को लोगों ने।


प्रभु यीशु के कार्य, ढंग, बोलने का नज़रिया,

था नहीं आत्मिक क्षेत्र के परमेश्वर के असल-व्यक्तित्व जैसा,

फिर भी उसने दर्शाया ईश्वर को जिसे देखा ना गया।

इससे इंकार न हो सकता।


—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III से रूपांतरित

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