156 मसीह बताता है कि आत्मा क्या है

1

मानव का सार जानता है देहधारी परमेश्वर,

प्रकट करता है वो सब जो लोग करते हैं,

मानव के भ्रष्ट स्वभाव, विद्रोही आचरण को,

और भी बेहतर प्रकट करता है।

वो नहीं रहता सांसारिक लोगों के साथ,

पर जानता है उनकी प्रकृति और भ्रष्टाचार।

ये उसका स्वरूप है।

हालांकि वो दुनिया के साथ व्यवहार नहीं करता,

फिर भी वो जानता है दुनिया से जुड़ने का हर एक नियम।

क्योंकि वो समझता है मानवजाति को, उसकी प्रकृति को पूर्ण रूप से।


2

आत्मा के वर्तमान और अतीत के कार्य के बारे में वो जानता है,

जो मानव की आँखें नहीं देख सकतीं,

जो मानव के कान नहीं सुन सकते हैं।

ये दर्शाता है चमत्कार जो मानव नहीं समझ सकता,

और बुद्धि जो फ़लसफ़ा नहीं है।

ये उसका स्वरूप है, मानव से छुपा और प्रकाशित भी।

उसकी अभिव्यक्ति किसी असाधारण मानव सी नहीं,

बल्कि अंतर्निहित अस्तित्व और आत्मा का गुण है।


3

वो दुनिया की यात्रा नहीं करता,

फिर भी इसके बारे में वो सब जानता है।

वो मिलता उनसे ज्ञान, अंतर्दृष्टि नहीं जिनमें,

फिर भी उसके वचन महान लोगों से ऊपर हैं।

वो नासमझ और सुन्न लोगों के बीच रहता है,

जो नहीं जानते मानव की परम्पराओं को या कैसे जीते हैं।

पर वो कह सकता है उन्हें सच्चा मानवीय जीवन जीने के लिए,

प्रकट करते हुए, वे कितने नीच, कितने अधम हैं!

ये उसका स्वरूप है, ख़ून और देह के लोगों से भी ऊँचा।

मानव का ख़ुलासा और न्याय करना उसके अनुभव से नहीं है।

जान कर, नफ़रत कर मानव की अवज्ञा से,

उनके अधर्म का वो प्रकाशन करता है।

उसका किया कार्य प्रकाशित करता है

उसका स्वभाव और अस्तित्व मानव के समक्ष।

मसीह को छोड़ कोई देह ऐसा कार्य नहीं कर सकता।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का कार्य से रूपांतरित

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