869 मनुष्य को बचाने को परमेश्वर बड़े कष्ट सहता है
Ⅰ
अरसों पहले इस जगत में आया ईश्वर,
और दर्द सहे इंसानों के ही जैसे।
फिर सालों तक रहा इन्हीं इंसानों के संग,
पर उसकी मौजूदगी न जान पाया कोई।
खामोशी से सहे हैं दर्द इस दुनिया के,
निभाते हुए जो काम उसका था।
मर्ज़ी ईश-पिता की और इंसानियत के लिए,
सहा है दर्द जो इंसान ने देखा नहीं,
बिन कुछ कहे की सेवा विनम्रता से,
मर्ज़ी ईश-पिता की और इंसानियत के लिए।
Ⅱ
परमेश्वर के काम की ज़रूरत है
कि वो करे, कहे खुद ही,
क्योंकि इंसान उसे मदद कर सकता ही नहीं,
परमेश्वर ने सहे बहुत दर्द अपने कामों के लिए।
इंसान उसकी जगह ले सकता नहीं।
मर्ज़ी ईश-पिता की और इंसानियत के लिए,
सहा है दर्द जो इंसान ने देखा नहीं,
बिन कुछ कहे की सेवा विनम्रता से,
मर्ज़ी ईश-पिता की और इंसानियत के लिए।
Ⅲ
अनुग्रह के युग से बड़े जोखिम उठा के
आया परमेश्वर वहाँ जहाँ लाल अजगर रहे,
बेचारे इंसानों को बचाने में
अपनी परवाह और सोच लगाए हुए।
मर्ज़ी ईश-पिता की और इंसानियत के लिए,
सहा है दर्द जो इंसान ने देखा नहीं,
बिन कुछ कहे की सेवा विनम्रता से,
मर्ज़ी ईश-पिता की और इंसानियत के लिए।
मर्ज़ी ईश-पिता की और इंसानियत के लिए,
सहा है दर्द जो इंसान ने देखा नहीं,
बिन कुछ कहे की सेवा विनम्रता से,
मर्ज़ी ईश-पिता की और इंसानियत के लिए।
"वचन देह में प्रकट होता है" से रूपांतरित