288 परमेश्वर करता है आज हम से प्रेम
तुम पृथ्वी पर देहधारण करते हो।
कोई नहीं जानता कितने समय से तुम छुपे रहे हो।
अपना काम करने के लिए,
मुश्किलों और दर्द का पूरी तरह स्वाद चखते हुए,
तम अपनी राह बना लेते हो।
आज तुम हमसे बिछड़ रहे हो।
दुख और दर्द के अलावा होता नहीं कुछ और महसूस।
हमारा साथ है कम समय का।
कोई नहीं जानता कब मिलेंगे हम फिर।
आज की ओर हमारी रहनुमाई करते हुए
हर मौसम में हमारे साथ तुम रहे हो।
कभी भी एक कदम पीछे नहीं लिया तुमने।
ओह ...
अगर तुम्हारी दया नहीं होती,
किसे मालूम कि मैं कहाँ होता/होती?
मेरे उद्धार के लिए धन्यवाद, परमेश्वर।
हमेशा याद रहेगा मुझे यह!
हर दिन तुमने सही पीड़ा,
तहेदिल से किया तुमने काम हमारे लिए, हमारे लिए।
ओह, तुमने गले लगाया तो जो प्रेम महसूस किया मैंने!
जब मैं कमज़ोर था/थी, तुम ले गए मुझे उठाकर।
जब मुझे चोट लगी, तुमने दिया मुझे दिलासा।
जब मेरा दिल डूबता था, तुम करते थे मुझे प्रोत्साहित।
हर कदम मुझे आज की ओर लेकर आया है।
हर पल मैं नहीं भूल सकता/सकती हूँ।
तुम्हारे प्रेम का वर्णन करना है कितना कठिन।
क्रोध, प्रेम और दया के साथ,
तुम्हारा वैभव हुआ है प्रकट।
तुमने मेरे पापी होने का न्याय किया,
मेरी अज्ञानता को माफ़ किया।
तुम्हारी सहिष्णुता से ही
मैं जी पाया/पाई तुम्हारे सामने।
अगर तुम्हारी दया नहीं होती,
किसे मालूम कि मैं कहाँ होता/होती?
मेरे उद्धार के लिए धन्यवाद, परमेश्वर।
हमेशा याद रहेगा मुझे यह! (ओह ओह ओह ...)
तुम जो सौंपते हो मुझ,
मैं दिल से ले लेता/लेती हूँ।
तुम जिसकी आशा करते हो,
उसे करने में मैं हो सकता/सकती नहीं विफल।
मैं स्वीकार करने के लिए तैयार हूं
जो आएगा मेरे सामने,
पूरी करूंगा/करूंगी तुम्हारी हर मांग मैं।
मैं फिर कभी कमज़ोर नहीं बनूंगा/बनूंगी।
अगर मैं गिर जाऊँ,
तो फिर अपने पैरों पर खड़ा/खड़ी हो जाऊंगा/जाऊंगी मैं।
मैं सच्चे प्रेम के साथ तुम्हें चुकाऊंगा/चुकाऊंगी, तुम्हारे लिए एक मज़बूत गवाही बनूंगा/बनूंगी!
अगर तुम्हारी दया नहीं होती,
किसे मालूम कि मैं कहाँ होता/होती?
मेरे उद्धार के लिए धन्यवाद, परमेश्वर।
हमेशा याद रहेगा मुझे यह!
ओह ...
अगर तुम्हारी दया नहीं होती,
किसे मालूम कि मैं कहाँ होता/होती?
मेरे उद्धार के लिए धन्यवाद, परमेश्वर।
हमेशा याद रहेगा मुझे यह! (ओह ओह ओह ...)