90 परमेश्वर का वचन है अधिकार और न्याय
I
ध्यान देते नहीं लोग कई, परमेश्वर के वचनों पर,
मानते हैं उनको बस वचन, सच्चाई नहीं।
अंधे हैं वे; क्या जानते नहीं,
परमेश्वर है स्वयं भरोसेमंद परमेश्वर, परमेश्वर?
उसके वचन और तथ्य घटित होते हैं साथ ही।
स्वयं भरोसेमंद परमेश्वर के बारे में क्या ये सच नहीं?
II
परमेश्वर स्वयं है न्याय और प्रताप,
इसे कोई नहीं बदल सकता।
उसके प्रशासनिक आदेशों का ये एक पहलू है।
लोगों का न्याय करने का है उसका एक तरीका,
लोगों का न्याय करने का है उसका एक तरीका।
जब परमेश्वर ने बनाई सब चीज़ें,
जब नष्ट करेगा वो दुनिया को,
जब वो पहले जन्मे बेटों को पूरा करने का फैसला लेगा,
सब कुछ उसके मुख से निकले एक वचन से सम्पन्न होता है।
क्योंकि उसका वचन स्वयं है न्याय और अधिकार।
क्योंकि उसका वचन स्वयं है न्याय और अधिकार।
III
उसकी नजरों में,
सभी लोग, बातें और चीज़ें सभी
सब हैं उसके न्याय तले और उसके हाथों में।
किसी चीज़ की नहीं हिम्मत कि वो हो निरंकुश और हठी।
सब कुछ होना चाहिए उसके वचनों के आदेश अनुसार।
एक उंगली नहीं हिलाता है,
सब कुछ में वचन का इस्तेमाल करता है।
इसी से स्पष्ट होती है सर्वशक्तिमत्ता उसकी।
एक उंगली नहीं हिलाता है,
सब कुछ में वचन का इस्तेमाल करता है।
इसी से स्पष्ट होती है सर्वशक्तिमत्ता उसकी।
जब परमेश्वर ने बनाई सब चीज़ें,
जब नष्ट करेगा वो दुनिया को,
जब वो पहले जन्मे बेटों को पूरा करने का फैसला लेगा,
सब कुछ उसके मुख से निकले एक वचन से सम्पन्न होता है।
क्योंकि उसका वचन स्वयं है न्याय और अधिकार।
क्योंकि उसका वचन स्वयं है न्याय और अधिकार।
"वचन देह में प्रकट होता है" से