13.3. मनुष्य के लिए परमेश्वर की चेतावनियाँ

644. मसीह द्वारा बोले गए सत्य पर भरोसा किए बिना जो लोग जीवन प्राप्त करना चाहते हैं, वे पृथ्वी पर सबसे बेतुके लोग हैं, और जो मसीह द्वारा लाए गए जीवन के मार्ग को स्वीकार नहीं करते हैं, वे कोरी कल्पना में खोए हैं। और इसलिए मैं कहता हूँ कि वे लोग जो अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार नहीं करते हैं सदा के लिए परमेश्वर उनसे घृणा करेगा। मसीह अंत के दिनों के दौरान राज्य में जाने के लिए मनुष्य का प्रवेशद्वार है, और ऐसा कोई नहीं जो उससे कन्नी काटकर जा सके। मसीह के माध्यम के अलावा किसी को भी परमेश्वर द्वारा पूर्ण नहीं बनाया जा सकता। तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, और इसलिए तुम्हें उसके वचनों को स्वीकार करना और उसके मार्ग का पालन करना चाहिए। सत्य को प्राप्त करने में या जीवन का पोषण स्वीकार करने में असमर्थ रहते हुए तुम केवल आशीष प्राप्त करने के बारे में नहीं सोच सकते हो। मसीह अंत के दिनों में आता है ताकि वह उसमें सच्चा विश्वास करने वाले सभी लोगों को जीवन प्रदान कर सके। उसका कार्य पुराने युग को समाप्त करने और नए युग में प्रवेश करने के लिए है, और उसका कार्य वह मार्ग है जिसे उन सभी लोगों को अपनाना चाहिए जो नए युग में प्रवेश करेंगे। यदि तुम उसे पहचानने में असमर्थ हो, और इसकी बजाय उसकी भर्त्सना, निंदा, या यहाँ तक कि उसे उत्पीड़ित करते हो, तो तुम्हें अनंतकाल तक जलाया जाना तय है और तुम परमेश्वर के राज्य में कभी प्रवेश नहीं करोगे। क्योंकि यह मसीह स्वयं पवित्र आत्मा की अभिव्यक्ति है, और परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वह जिसे परमेश्वर ने पृथ्वी पर करने के लिए अपना कार्य सौंपा है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि यदि तुम वह सब स्वीकार नहीं करते हो जो अंत के दिनों के मसीह के द्वारा किया जाता है, तो तुम पवित्र आत्मा की निंदा करते हो। पवित्र आत्मा की निंदा करने वालों को जो प्रतिशोध सहना होगा वह सभी के लिए स्वत: स्पष्ट है। मैं तुम्हें यह भी बताता हूँ कि यदि तुम अंत के दिनों के मसीह का प्रतिरोध करोगे, यदि तुम अंत के दिनों के मसीह को ठुकराओगे, तो तुम्हारी ओर से परिणाम भुगतने वाला कोई अन्य नहीं होगा। इतना ही नहीं, इस दिन के बाद तुम्हें परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने का दूसरा अवसर नहीं मिलेगा; यदि तुम अपने प्रायश्चित का प्रयास भी करते हो, तब भी तुम दोबारा कभी परमेश्वर का चेहरा नहीं देखोगे। क्योंकि तुम जिसका प्रतिरोध करते हो वह मनुष्य नहीं है, तुम जिसे ठुकरा रहे हो वह कोई अदना प्राणी नहीं है, बल्कि मसीह है। क्या तुम जानते हो कि इसके क्या परिणाम होंगे? तुमने कोई छोटी-मोटी गलती नहीं, बल्कि एक जघन्य अपराध किया होगा। और इसलिए मैं सभी को सलाह देता हूँ कि सत्य के सामने अपने जहरीले दाँत मत दिखाओ, या छिछोरी आलोचना मत करो, क्योंकि केवल सत्य ही तुम्हें जीवन दिला सकता है, और सत्य के अलावा कुछ भी तुम्हें पुनः जन्म लेने नहीं दे सकता, और न ही तुम्हें दोबारा परमेश्वर का चेहरा देखने दे सकता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है

645. हमें विश्वास है कि परमेश्वर जो कुछ प्राप्त करना चाहता है, उसके मार्ग में कोई भी देश या शक्ति ठहर नहीं सकती। जो लोग परमेश्वर के कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं, परमेश्वर के वचन का विरोध करते हैं, और परमेश्वर की योजना में विघ्न डालते और उसे बिगाड़ते हैं, अंततः परमेश्वर द्वारा दंडित किए जाएँगे। जो परमेश्वर के कार्य की अवहेलना करता है, उसे नरक भेजा जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य का विरोध करता है, उसे नष्ट कर दिया जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य को अस्वीकार करने के लिए उठता है, उसे इस पृथ्वी से मिटा दिया जाएगा, और उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। मैं सभी राष्ट्रों, सभी देशों, और यहाँ तक कि सभी उद्योगों के लोगों से विनती करता हूँ कि परमेश्वर की वाणी को सुनें, परमेश्वर के कार्य को देखें, और मानवजाति के भाग्य पर ध्यान दें, ताकि परमेश्वर को सर्वाधिक पवित्र, सर्वाधिक सम्माननीय, मानवजाति के बीच आराधना का सर्वोच्च और एकमात्र लक्ष्य बनाएँ, और संपूर्ण मानवजाति को परमेश्वर के आशीष के अधीन जीने की अनुमति दें, ठीक उसी तरह से, जैसे अब्राहम के वंशज यहोवा की प्रतिज्ञाओं के अधीन रहे थे और ठीक उसी तरह से, जैसे आदम और हव्वा, जिन्हें परमेश्वर ने सबसे पहले बनाया था, अदन के बगीचे में रहे थे।

परमेश्वर का कार्य एक ज़बरदस्त लहर के समान उमड़ता है। उसे कोई नहीं रोक सकता, और कोई भी उसके प्रयाण को बाधित नहीं कर सकता। केवल वे लोग ही उसके पदचिह्नों का अनुसरण कर सकते हैं और उसकी प्रतिज्ञा प्राप्त कर सकते हैं, जो उसके वचन सावधानीपूर्वक सुनते हैं, और उसकी खोज करते हैं और उसके लिए प्यासे हैं। जो ऐसा नहीं करते, वे ज़बरदस्त आपदा और उचित दंड के भागी होंगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है

646. परमेश्वर उनकी खोज कर रहा है, जो उसके प्रकट होने की लालसा करते हैं। वह उनकी खोज करता है, जो उसके वचनों को सुनने में सक्षम हैं, जो उसके आदेश को नहीं भूले और अपना तन-मन उसे समर्पित करते हैं। वह उनकी खोज करता है, जो उसके सामने बच्चों के समान आज्ञाकारी हैं, और उसका विरोध नहीं करते। यदि तुम किसी भी ताकत या बल से अबाधित होकर ईश्वर के प्रति समर्पित होते हो, तो परमेश्वर तुम्हारे ऊपर अनुग्रह की दृष्टि डालेगा और तुम्हें अपने आशीष प्रदान करेगा। यदि तुम उच्च पद वाले, सम्मानजनक प्रतिष्ठा वाले, प्रचुर ज्ञान से संपन्न, विपुल संपत्तियों के मालिक हो, और तुम्हें बहुत लोगों का समर्थन प्राप्त है, तो भी ये चीज़ें तुम्हें परमेश्वर के आह्वान और आदेश को स्वीकार करने, और जो कुछ परमेश्वर तुमसे कहता है, उसे करने के लिए उसके सम्मुख आने से नहीं रोकतीं, तो फिर तुम जो कुछ भी करोगे, वह पृथ्वी पर सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगा और मनुष्य का सर्वाधिक धर्मी उपक्रम होगा। यदि तुम अपनी हैसियत और लक्ष्यों की खातिर परमेश्वर के आह्वान को अस्वीकार करोगे, तो जो कुछ भी तुम करोगे, वह परमेश्वर द्वारा श्रापित और यहाँ तक कि तिरस्कृत भी किया जाएगा। शायद तुम कोई अध्यक्ष, कोई वैज्ञानिक, कोई पादरी या कोई एल्डर हो, किंतु इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा पद कितना उच्च है, यदि तुम अपने ज्ञान और अपने उपक्रमों की योग्यता पर भरोसा रखते हो, तो तुम हमेशा असफल रहोगे, और हमेशा परमेश्वर के आशीषों से वंचित रहोगे, क्योंकि परमेश्वर ऐसा कुछ भी स्वीकार नहीं करता जो तुम करते हो, और वह नहीं मानता कि तुम्हारे उपक्रम धर्मी हैं, या यह स्वीकार नहीं करता कि तुम मानवजाति के भले के लिए कार्य कर रहे हो। वह कहेगा कि जो कुछ भी तुम करते हो, वह मानवजाति के ज्ञान और ताकत का इस्तेमाल कर इंसान से परमेश्वर की सुरक्षा छीनने और उसे आशीषों से वंचित करने के लिए किया जाता है। वह कहेगा कि तुम मानवजाति को अंधकार की ओर, मृत्यु की ओर, और एक ऐसे अंतहीन अस्तित्व के आरंभ की ओर ले जा रहे हो, जिसमें मनुष्य ने परमेश्वर और उसके आशीष खो दिए हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है

647. क्या तुम लोग कारण जानना चाहते हो कि फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। इससे भी ज़्यादा, उन्होंने केवल इस पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, फिर भी जीवन-सत्य का अनुसरण नहीं किया। इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि उन्हें जीवन के मार्ग के बारे में कोई ज्ञान नहीं है, और नहीं जानते कि सत्य का मार्ग क्या है? तुम लोग क्या कहते हो, ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर का आशीष कैसे प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं? उन्होंने यीशु का विरोध किया क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा नहीं जानते थे, क्योंकि वे यीशु द्वारा बताए गए सत्य के मार्ग को नहीं जानते थे और इसके अलावा क्योंकि उन्होंने मसीहा को नहीं समझा था। और चूँकि उन्होंने मसीहा को कभी नहीं देखा था और कभी मसीहा के साथ नहीं रहे थे, उन्होंने मसीहा के बस नाम के साथ चिपके रहने की ग़लती की, जबकि हर मुमकिन ढंग से मसीहा के सार का विरोध करते रहे। ये फरीसी सार रूप से हठधर्मी एवं अभिमानी थे और सत्य का पालन नहीं करते थे। परमेश्वर में उनके विश्वास का सिद्धांत था : इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा उपदेश कितना गहरा है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा अधिकार कितना ऊँचा है, जब तक तुम्हें मसीहा नहीं कहा जाता, तुम मसीह नहीं हो। क्या यह सोच हास्यास्पद और बेतुकी नहीं है? मैं तुम लोगों से आगे पूछता हूँ : क्या तुम लोगों के लिए वो ग़लतियां करना बेहद आसान नहीं, जो बिल्कुल आरंभ के फरीसियों ने की थीं, क्योंकि तुम लोगों के पास यीशु की थोड़ी-भी समझ नहीं है? क्या तुम सत्य का मार्ग जानने योग्य हो? क्या तुम सचमुच विश्वास दिला सकते हो कि तुम मसीह का विरोध नहीं करोगे? क्या तुम पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करने योग्य हो? यदि तुम नहीं जानते कि तुम मसीह का विरोध करोगे या नहीं, तो मेरा कहना है कि तुम पहले ही मौत की कगार पर जी रहे हो। जो लोग मसीहा को नहीं जानते थे, वे सभी यीशु का विरोध करने, यीशु को अस्वीकार करने, उसे बदनाम करने में सक्षम थे। जो लोग यीशु को नहीं समझते, वे सब उसे अस्वीकार करने एवं उसे बुरा-भला कहने में सक्षम हैं। इसके अलावा, वे यीशु के लौटने को शैतान द्वारा किए गए धोखे की तरह देखने में सक्षम हैं और अधिकांश लोग देह में लौटे यीशु की निंदा करेंगे। क्या इस सबसे तुम लोगों को डर नहीं लगता? जिसका तुम लोग सामना करते हो, वह पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ निंदा होगी, कलीसियाओं के लिए कहे गए पवित्र आत्मा के वचनों का विनाश होगा और यीशु द्वारा व्यक्त किए गए समस्त वचनों को ठुकराना होगा। यदि तुम लोग इतने संभ्रमित हो, तो यीशु से क्या प्राप्त कर सकते हो? यदि तुम हठपूर्वक अपनी ग़लतियां मानने से इनकार करते हो, तो श्वेत बादल पर यीशु के देह में लौटने पर तुम लोग उसके कार्य को कैसे समझ सकते हो? मैं तुम लोगों को यह बताता हूँ : जो लोग सत्य स्वीकार नहीं करते, फिर भी अंधों की तरह श्वेत बादलों पर यीशु के आगमन का इंतज़ार करते हैं, निश्चित रूप से पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ निंदा करेंगे और ये वे वर्ग हैं, जो नष्ट किए जाएँगे। तुम लोग सिर्फ़ यीशु के अनुग्रह की कामना करते हो और सिर्फ़ स्वर्ग के सुखद क्षेत्र का आनंद लेना चाहते हो, जब यीशु देह में लौटा, तो तुमने यीशु के कहे वचनों का कभी पालन नहीं किया और यीशु द्वारा व्यक्त किए सत्य को कभी ग्रहण नहीं किया। यीशु के एक श्वेत बादल पर लौटने के तथ्य के बदले तुम लोग क्या दोगे? क्या यह वही ईमानदारी है, जिसमें तुम लोग बार-बार पाप करते हो और फिर बार-बार उनकी स्वीकारोक्ति करते हो? श्वेत बादल पर लौटने वाले यीशु को तुम बलिदान में क्या अर्पण करोगे? क्या ये कार्य के वे वर्ष हैं, जिनके ज़रिए तुम स्वयं अपनी बढ़ाई करते हो? लौटकर आए यीशु को तुम लोगों पर विश्वास कराने के लिए तुम लोग किस चीज को थामकर रखोगे? क्या वह तुम लोगों का अभिमानी स्वभाव है, जो किसी भी सत्य का पालन नहीं करता?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा

648. मैं तुम लोगों को बता दूँ कि जो परमेश्वर में संकेतों की वजह से विश्वास करते हैं, वे निश्चित रूप से वह श्रेणी होगी, जो नष्ट की जाएगी। जो देह में लौटे यीशु के वचनों को स्वीकार करने में अक्षम हैं, वे निश्चित ही नरक के वंशज, महादूत के वंशज हैं, उस श्रेणी में हैं, जो अनंत विनाश झेलेगी। बहुत से लोगों को शायद इसकी परवाह न हो कि मैं क्या कहता हूँ, किंतु मैं ऐसे हर तथाकथित संत को, जो यीशु का अनुसरण करते हैं, बताना चाहता हूँ कि जब तुम लोग यीशु को एक श्वेत बादल पर स्वर्ग से उतरते अपनी आँखों से देखोगे, तो यह धार्मिकता के सूर्य का सार्वजनिक प्रकटन होगा। शायद वह तुम्हारे लिए एक बड़ी उत्तेजना का समय होगा, मगर तुम्हें पता होना चाहिए कि जिस समय तुम यीशु को स्वर्ग से उतरते देखोगे, यही वह समय भी होगा जब तुम दंडित किए जाने के लिए नीचे नरक में जाओगे। वह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति का समय होगा, और वह समय होगा, जब परमेश्वर सज्जन को पुरस्कार और दुष्ट को दंड देगा। क्योंकि परमेश्वर का न्याय मनुष्य के देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति होगी। वे जो सत्य को स्वीकार करते हैं और संकेतों की खोज नहीं करते और इस प्रकार शुद्ध कर दिए गए हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट चुके होंगे और सृष्टिकर्ता के आलिंगन में प्रवेश कर चुके होंगे। सिर्फ़ वे जो इस विश्वास में बने रहते हैं कि "ऐसा यीशु जो श्वेत बादल पर सवारी नहीं करता, एक झूठा मसीह है" अनंत दंड के अधीन कर दिए जाएँगे, क्योंकि वे सिर्फ़ उस यीशु में विश्वास करते हैं जो संकेत प्रदर्शित करता है, पर उस यीशु को स्वीकार नहीं करते, जो कड़े न्याय की घोषणा करता है और जीवन और सच्चा मार्ग प्रकट करता है। इसलिए केवल यही हो सकता है कि जब यीशु खुलेआम श्वेत बादल पर वापस लौटे, तो वह उनके साथ निपटे। वे बहुत हठधर्मी, अपने आप में बहुत आश्वस्त, बहुत अभिमानी हैं। ऐसे अधम लोग यीशु द्वारा कैसे पुरस्कृत किए जा सकते हैं? यीशु की वापसी उन लोगों के लिए एक महान उद्धार है, जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, पर उनके लिए जो सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, यह दंडाज्ञा का संकेत है। तुम लोगों को अपना स्वयं का रास्ता चुनना चाहिए, और पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ निंदा नहीं करनी चाहिए और सत्य को अस्वीकार नहीं करना चाहिए। तुम लोगों को अज्ञानी और अभिमानी व्यक्ति नहीं बनना चाहिए, बल्कि ऐसा बनना चाहिए, जो पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन का पालन करता हो और सत्य की खोज के लिए लालायित हो; सिर्फ़ इसी तरीके से तुम लोग लाभान्वित होगे। मैं तुम लोगों को परमेश्वर में विश्वास के रास्ते पर सावधानी से चलने की सलाह देता हूँ। निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दी में न रहो; और परमेश्वर में अपने विश्वास में लापरवाह और विचारहीन न बनो। तुम लोगों को जानना चाहिए कि कम से कम, जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं उन्हें विनम्र और श्रद्धावान होना चाहिए। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी इस पर अपनी नाक-भौं सिकोड़ते हैं, वे मूर्ख और अज्ञानी हैं। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी लापरवाही के साथ निष्कर्षों तक पहुँचते हैं या उसकी निंदा करते हैं, ऐसे लोग अभिमान से घिरे हैं। जो भी यीशु पर विश्वास करता है वह दूसरों को शाप देने या निंदा करने के योग्य नहीं है। तुम सब लोगों को ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो समझदार है और सत्य स्वीकार करता है। शायद, सत्य के मार्ग को सुनकर और जीवन के वचन को पढ़कर, तुम विश्वास करते हो कि इन 10,000 वचनों में से सिर्फ़ एक ही वचन है, जो तुम्हारे दृढ़ विश्वास और बाइबल के अनुसार है, और फिर तुम्हें इन 10,000 वचनों में खोज करते रहना चाहिए। मैं अब भी तुम्हें सुझाव देता हूँ कि विनम्र बनो, अति-आत्मविश्वासी न बनो और अपनी बहुत बढ़ाई न करो। परमेश्वर के लिए अपने हृदय में इतना थोड़ा-सा आदर रखकर तुम बड़े प्रकाश को प्राप्त करोगे। यदि तुम इन वचनों की सावधानी से जाँच करो और इन पर बार-बार मनन करो, तब तुम समझोगे कि वे सत्य हैं या नहीं, वे जीवन हैं या नहीं। शायद, केवल कुछ वाक्य पढ़कर, कुछ लोग इन वचनों की आँखें मूँदकर यह कहते हुए निंदा करेंगे, "यह पवित्र आत्मा की थोड़ी प्रबुद्धता से अधिक कुछ नहीं है," या "यह एक झूठा मसीह है जो लोगों को धोखा देने आया है।" जो लोग ऐसी बातें कहते हैं वे अज्ञानता से अंधे हो गए हैं! तुम परमेश्वर के कार्य और बुद्धि को बहुत कम समझते हो और मैं तुम्हें पुनः शुरू से आरंभ करने की सलाह देता हूँ! तुम लोगों को अंत के दिनों में झूठे मसीहों के प्रकट होने की वजह से आँख बंदकर परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त वचनों का तिरस्कार नहीं करना चाहिए और चूँकि तुम धोखे से डरते हो, इसलिए तुम्हें पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ निंदा नहीं करनी चाहिए। क्या यह बड़ी दयनीय स्थिति नहीं होगी? यदि, बहुत जाँच के बाद, अब भी तुम्हें लगता है कि ये वचन सत्य नहीं हैं, मार्ग नहीं हैं और परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं हैं, तो फिर अंततः तुम दंडित किए जाओगे और आशीष के बिना होगे। यदि तुम ऐसा सत्य, जो इतने सादे और स्पष्ट ढंग से कहा गया है, स्वीकार नहीं कर सकते, तो क्या तुम परमेश्वर के उद्धार के अयोग्य नहीं हो? क्या तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो, जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौटने के लिए पर्याप्त सौभाग्यशाली नहीं है? इस बारे में सोचो! उतावले और अविवेकी न बनो और परमेश्वर में विश्वास को खेल की तरह पेश न आओ। अपनी मंज़िल के लिए, अपनी संभावनाओं के वास्ते, अपने जीवन के लिए सोचो और स्वयं से खेल न करो। क्या तुम इन वचनों को स्वीकार कर सकते हो?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा

649. अंत के दिनों का मसीह दुनिया भर के लोगों को सिखाने के लिए और उन्हें सभी सच्चाइयों का ज्ञान कराने के लिए सत्य का उपयोग करेगा। यह परमेश्वर के न्याय का कार्य है। कई लोगों में परमेश्वर के दूसरे देहधारण के बारे में बुरी भावना है, क्योंकि लोगों को यह बात मानने में कठिनाई होती है कि परमेश्वर न्याय का कार्य करने के लिए देह धारण करेगा। फिर भी, मुझे तुम्हें यह अवश्य बताना होगा कि प्रायः परमेश्वर का कार्य मनुष्य की अपेक्षाओं से बहुत आगे तक जाता है, और मनुष्य के मन के लिए इसे स्वीकार करना कठिन होता है। क्योंकि लोग पृथ्वी पर मात्र कीड़े-मकौड़े हैं, जबकि परमेश्वर सर्वोच्च है जो ब्रह्मांड में समाया हुआ है; मनुष्य का मन गंदे पानी से भरे हुए एक गड्डे के सदृश है, जो केवल कीड़े-मकोड़ों को ही उत्पन्न करता है, जबकि परमेश्वर के विचारों द्वारा निर्देशित कार्य का प्रत्येक चरण परमेश्वर की बुद्धि का परिणाम है। लोग हमेशा परमेश्वर के साथ संघर्ष करने की कोशिश करते हैं, जिसके बारे में मैं कहता हूँ कि यह स्वत: स्पष्ट है कि अंत में कौन हारेगा। मैं तुम सबको समझा रहा हूँ कि अपने आपको स्वर्ण से अधिक मूल्यवान मत समझो। जब दूसरे लोग परमेश्वर का न्याय स्वीकार कर सकते हैं, तो तुम क्यों नहीं? तुम दूसरों से कितने ऊँचे हो? अगर दूसरे लोग सत्य के आगे सिर झुका सकते हैं, तो तुम भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते? परमेश्वर के कार्य का वेग अबाध है। वह सिर्फ़ तुम्हारे द्वारा दिए गए "सहयोग" के कारण न्याय के कार्य को फिर से नहीं दोहराएगा, और तुम इतने अच्छे अवसर के हाथ से निकल जाने पर पछतावे से भर जाओगे। अगर तुम्हें मेरे वचनों पर विश्वास नहीं है, तो फिर आकाश में स्थित उस महान श्वेत सिंहासन द्वारा खुद पर "न्याय पारित किए जाने" की प्रतीक्षा करो! तुम्हें अवश्य पता होना चाहिए कि सभी इजराइलियों ने यीशु को ठुकराया और अस्वीकार किया था, और फिर भी यीशु द्वारा मानवजाति के छुटकारे का तथ्य फिर भी पूरे ब्रह्मांड और पृथ्वी के के छोरों तक फैल गया। क्या यह परमेश्वर द्वारा बहुत पहले बनाई गई वास्तविकता नहीं है? अगर तुम अभी भी यीशु द्वारा स्वयं को स्वर्ग में ले जाए जाने का इंतज़ार कर रहे हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक निर्जीव काष्ठ के बेकार टुकड़े हो।[क] यीशु तुम जैसे किसी भी झूठे विश्वासी को स्वीकार नहीं करेगा, जो सत्य के प्रति निष्ठाहीन है और केवल आशीष चाहता है। इसके विपरीत, वह तुम्हें हज़ारों वर्षों तक जलने देने के लिए आग की झील में फेंकने में कोई दया नहीं दिखाएगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है

650. परमेश्वर ने इस संसार की सृष्टि की, उसने इस मानवजाति को बनाया, और इतना ही नहीं, वह प्राचीन यूनानी संस्कृति और मानव-सभ्यता का वास्तुकार भी था। केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति को सांत्वना देता है, और केवल परमेश्वर ही रात-दिन इस मानवजाति का ध्यान रखता है। मानव का विकास और प्रगति परमेश्वर की संप्रभुता से जुड़ी है, मानव का इतिहास और भविष्य परमेश्वर की योजनाओं में निहित है। यदि तुम एक सच्चे ईसाई हो, तो तुम निश्चित ही इस बात पर विश्वास करोगे कि किसी भी देश या राष्ट्र का उत्थान या पतन परमेश्वर की योजनाओं के अनुसार होता है। केवल परमेश्वर ही किसी देश या राष्ट्र के भाग्य को जानता है और केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति की दिशा नियंत्रित करता है। यदि मानवजाति अच्छा भाग्य पाना चाहती है, यदि कोई देश अच्छा भाग्य पाना चाहता है, तो मनुष्य को परमेश्वर की आराधना में झुकना होगा, पश्चात्ताप करना होगा और परमेश्वर के सामने अपने पाप स्वीकार करने होंगे, अन्यथा मनुष्य का भाग्य और गंतव्य एक अपरिहार्य विभीषिका बन जाएँगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है

651. अपनी नियति के लिए, तुम लोगों को परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त करना चाहिए। कहने का अर्थ है, चूँकि तुम लोग यह मानते हो कि तुम परमेश्वर के घर के एक सदस्य हो, तो तुम्हें परमेश्वर के मन को शांति प्रदान करनी चाहिए और सभी बातों में उसे संतुष्ट करना चाहिए। दूसरे शब्दों में, तुम लोगों को अपने कार्यों में सिद्धांतवादी और सत्य के अनुरूप होना चाहिए। यदि यह तुम्हारी क्षमता के परे है, तो परमेश्वर तुमसे घृणा करेगा और तुम्हें अस्वीकृत कर देगा, और हर इंसान तुम्हें ठुकरा देगा। अगर एक बार तुम ऐसी दुर्दशा में पड़ गए, तो तुम्हारी गिनती परमेश्वर के घर में नहीं की जा सकती। परमेश्वर द्वारा अनुमोदित नहीं किए जाने का यही अर्थ है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ

652. मेरी माँगें सरल हो सकती हैं, लेकिन मैं जो कह रहा हूँ, वह उतना सरल नहीं है, जितना सरल एक जमा एक बराबर दो होते हैं। अगर तुम लोग इस बारे में केवल कुछ भी बोलोगे, या बेसिर-पैर की बातें करोगे या ऊँची-ऊँची फेंकोगे, तो फिर तुम्हारी योजनाएँ और ख़्वाहिशें धरी की धरी रह जाएँगी। मुझे तुममें से ऐसे लोगों के साथ कोई सहानुभूति नहीं होगी, जो बरसों कष्ट झेलते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन जिनके पास दिखाने के लिए कुछ नहीं होता। इसके विपरीत, जिन्होंने मेरी माँगें पूरी नहीं की हैं, मैं उन्हें पुरस्कृत नहीं, दंडित करता हूँ, उनसे सहानुभूति तो बिलकुल नहीं रखता। तुम लोग सोचते होगे कि बरसों अनुयायी बने रहकर तुमने बहुत मेहनत कर ली है, और कुछ भी हो, केवल सेवा-कर्मी होने के नाते ही तुम्हें परमेश्वर के भवन में एक कटोरी चावल मिल जाना चाहिए। मैं कहूँगा कि तुममें से अधिकतर ऐसा ही सोचते हैं, क्योंकि तुम लोगों ने हमेशा इस सिद्धांत का पालन किया है कि चीज़ों का फ़ायदा कैसे उठाया जाए, न कि अपना फायदा कैसे उठाने दिया जाए। इसलिए अब मैं तुम लोगों से बहुत गंभीरता से कहता हूँ : मुझे इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं है कि तुम्हारी मेहनत कितनी उत्कृष्ट है, तुम्हारी योग्यताएँ कितनी प्रभावशाली हैं, तुम कितनी निकटता से मेरा अनुसरण करते हो, तुम कितने प्रसिद्ध हो, या तुमने अपने रवैये में कितना सुधार किया है; जब तक तुम मेरी अपेक्षाएँ पूरी नहीं करते, तब तक तुम कभी मेरी प्रशंसा प्राप्त नहीं कर पाओगे। अपने विचारों और गणनाओं को जितनी जल्दी हो सके, बट्टे खाते डाल दो, और मेरी अपेक्षाओं को गंभीरता से लेना शुरू कर दो; वरना मैं अपना काम समाप्त करने के लिए सभी को भस्म कर दूँगा और, खराब से खराब यह होगा कि मैं अपने वर्षों के कार्य और पीड़ा को शून्य में बदल दूँ, क्योंकि मैं अपने शत्रुओं और उन लोगों को, जिनमें से दुर्गंध आती है और जो शैतान जैसे दिखते हैं, अपने राज्य में नहीं ला सकता या उन्हें अगले युग में नहीं ले जा सकता।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपराध मनुष्य को नरक में ले जाएँगे

653. अब वह समय है, जब मेरा आत्मा बड़ी चीजें करता है, और वह समय है, जब मैं अन्यजाति देशों के बीच कार्य आरंभ करता हूँ। इससे भी अधिक, यह वह समय है, जब मैं सभी सृजित प्राणियों को वर्गीकृत करता हूँ और उनमें से प्रत्येक को उसकी संबंधित श्रेणी में रख रहा हूँ, ताकि मेरा कार्य अधिक तेजी से और प्रभावशाली ढंग से आगे बढ़ सके। इसलिए, मैं तुम लोगों से जो माँग करता हूँ, वह अभी भी यही है कि तुम लोग मेरे संपूर्ण कार्य के लिए अपने पूरे अस्तित्व को अर्पित करो; और, इसके अतिरिक्त, तुम उस संपूर्ण कार्य को स्पष्ट रूप से जान लो और उसके बारे में निश्चित हो जाओ, जो मैंने तुम लोगों में किया है, और मेरे कार्य में अपनी पूरी ताक़त लगा दो, ताकि यह और अधिक प्रभावी हो सके। इसे तुम लोगों को अवश्य समझ लेना चाहिए। बहुत पीछे तक देखते हुए, या दैहिक सुख की खोज करते हुए, आपस में लड़ना बंद करो, उससे मेरे कार्य और तुम्हारे बेहतरीन भविष्य में विलंब होगा। ऐसा करने से तुम्हें सुरक्षा मिलनी तो दूर, तुम पर बरबादी और आ जाएगी। क्या यह तुम्हारी मूर्खता नहीं होगी? जिस चीज़ का तुम आज लालच के साथ आनंद उठा रहे हो, वही तुम्हारे भविष्य को बरबाद कर रही है, जबकि वह दर्द जिसे तुम आज सह रहे हो, वही तुम्हारी सुरक्षा कर रहा है। तुम्हें इन चीज़ों का स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए, ताकि तुम उन प्रलोभनों से दूर रह सको जिनसे बाहर निकलने में तुम्हें मुश्किल होगी, और ताकि तुम घने कोहरे में डगमगाने और सूर्य को खोज पाने में असमर्थ होने से बच सको। जब घना कोहरा छँटेगा, तुम अपने आपको महान दिन के न्याय के मध्य पाओगे। उस समय तक मेरा दिन मानव-जाति के करीब आ रहा होगा। तुम लोग मेरे न्याय से कैसे बच निकलोगे? तुम सूर्य की झुलसा देने वाली गर्मी को कैसे सह पाओगे? जब मैं मनुष्य को अपनी विपुलता प्रदान करता हूँ, तो वह उसे छाती से नहीं लगाता, बल्कि उसे ऐसी जगह पर फेंक देता है, जहाँ उस पर कोई ध्यान नहीं देता। जब मेरा दिन मनुष्य पर उतरेगा, तो वह मेरी विपुलता को खोज पाने या सत्य के उन कड़वे वचनों का पता लगा पाने में समर्थ नहीं होगा, जो मैंने उसे बहुत पहले बोले थे। वह बिलखेगा और रोएगा, क्योंकि उसने प्रकाश की चमक खो दी है और अंधकार में गिर गया है। आज तुम लोग जो देखते हो, वह मात्र मेरे मुँह की तीखी तलवार है। तुमने मेरे हाथ में छड़ी या उस ज्वाला को नहीं देखा है, जिससे मैं मनुष्य को जलाता हूँ, और इसीलिए तुम लोग अभी भी मेरी उपस्थिति में अभिमानी और असंयमी हो। इसीलिए तुम लोग उस बात पर अपनी इंसानी ज़बान से विवाद करते हुए, जो मैंने तुम लोगों से कही थी, अभी भी मेरे घर में मुझसे लड़ते हो। मनुष्य मुझसे नहीं डरता, और यद्यपि आज भी वह मेरे साथ शत्रुता जारी रख रहा है, उसे बिल्कुल भी कोई भय नहीं है। तुम लोगों के मुँह में अधर्मी जिह्वा और दाँत हैं। तुम लोगों के वचन और कार्य उस साँप के समान हैं, जिसने हव्वा को पाप करने के लिए बहकाया था। तुम एक-दूसरे से आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत की माँग करते हो, और तुम अपने लिए पद, प्रतिष्ठा और लाभ झपटने के लिए मेरी उपस्थिति में संघर्ष करते हो, लेकिन तुम लोग नहीं जानते कि मैं गुप्त रूप से तुम लोगों के वचनों एवं कर्मों को देख रहा हूँ। इससे पहले कि तुम लोग मेरी उपस्थिति में आओ, मैंने तुम लोगों के हृदयों की गहराइयों की थाह ले ली है। मनुष्य हमेशा मेरे हाथ की पकड़ से बच निकलना और मेरी आँखों के अवलोकन से बचना चाहता है, किंतु मैं कभी उसके कथनों या कर्मों से कतराया नहीं हूँ। इसके बजाय, मैं उद्देश्यपूर्वक उन कथनों और कर्मों को अपनी नज़रों में प्रवेश करने देता हूँ, ताकि मैं मनुष्य की अधार्मिकता को ताड़ना दे सकूँ और उनके विद्रोह का न्याय कर सकूँ। इस प्रकार, मनुष्य के गुप्त कथन और कर्म हमेशा मेरे न्याय के आसन के सामने रहते हैं, और मेरे न्याय ने मनुष्य को कभी नहीं छोड़ा है, क्योंकि उसका विद्रोह बहुत ज़्यादा है। मेरा कार्य मनुष्य के उन सभी वचनों और कर्मों को जलाकर शुद्ध करना है, जो मेरे आत्मा की उपस्थिति में कहे और किए गए थे। इस तरह से,[ख] जब मैं पृथ्वी से चला जाऊँगा, तब भी लोग मेरे प्रति वफादारी बनाए रखेंगे, और मेरी सेवा उसी तरह से करेंगे, जैसे मेरे पवित्र सेवक मेरे कार्य में करते हैं, और पृथ्वी पर मेरे कार्य को उस दिन तक जारी रहने देंगे, जब तक कि वह पूरा न हो जाए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सुसमाचार को फैलाने का कार्य मनुष्य को बचाने का कार्य भी है

654. पृथ्वी पर, सब प्रकार की दुष्ट आत्माएँ हमेशा लुकछिपकर किसी विश्राम-स्थल की तलाश में लगी रहती हैं, और निरंतर मानव शवों की खोज करती रहती हैं, ताकि उनका उपभोग किया जा सके। मेरे लोगो! तुम्हें मेरी देखभाल और सुरक्षा के भीतर रहना चाहिए। कभी दुर्व्यसनी न बनो! कभी लापरवाही से व्यवहार न करो! तुम्हें मेरे घर में अपनी निष्ठा अर्पित करनी चाहिए, और केवल निष्ठा से ही तुम शैतान के छल-कपट के विरुद्ध पलटवार कर सकते हो। किन्हीं भी परिस्थितियों में तुम्हें वैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए जैसा तुमने अतीत में किया था, मेरे सामने कुछ करना और मेरी पीठ पीछे कुछ और करना; यदि तुम इस तरह करते हो, तो तुम पहले ही छुटकारे से परे हो। क्या मैं इस तरह के वचन बहुत बार नहीं कह चुका हूँ? बिलकुल इसीलिए क्योंकि मनुष्य की पुरानी प्रकृति सुधार से परे है, मुझे लोगों को बार-बार स्मरण दिलाना पड़ा है। ऊब मत जाना! वह सब जो मैं कहता हूँ तुम लोगों की नियति सुनिश्चित करने के लिए ही है! गंदा और मैला-कुचैला स्थान ही वह स्थान होता है जो शैतान को चाहिए होता है; तुम जितने अधिक दयनीय ढँग से सुधार के अयोग्य होते हो, और जितने अधिक दुर्व्यसनी होते हो, और संयम के आगे समर्पण करने से इनकार करते हो, अशुद्ध आत्माएँ तुम्हारे भीतर घुसपैठ करने के किसी भी अवसर का उतना ही अधिक लाभ उठाएँगी। यदि तुम इस अवस्था तक पहुँच चुके हो, तो तुम लोगों की निष्ठा किसी भी प्रकार की सच्चाई से रहित कोरी बकवास के अलावा और कुछ नहीं होगी, और अशुद्ध आत्माएँ तुम लोगों का संकल्प निगल लेंगी और इसे अवज्ञा और शैतानी षड़यंत्रों में बदल देंगी, ताकि इनका उपयोग मेरे कार्य में विघ्न डालने के लिए किया जा सके। वहाँ से, किसी भी समय मेरे द्वारा तुम पर प्रहार किया जा सकता है। कोई भी इस स्थिति की गंभीरता को नहीं समझता है; लोग सब कुछ सुनकर भी बहरे बने रहते हैं, और ज़रा भी चौकन्ने नहीं रहते हैं। मैं वह स्मरण नहीं करता जो अतीत में किया गया था; क्या तुम सच में अब भी एक बार और सब कुछ "भुलाकर" तुम्हारे प्रति मेरे उदार होने की प्रतीक्षा कर रहे हो?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 10

655. बहुत-से लोग ईमानदारी से बोलने और कार्य करने की बजाय नरक में दंडित होना पसंद करेंगे। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि जो बेईमान हैं उनके लिए मेरे भंडार में अन्य उपचार भी है। मैं अच्छी तरह से जानता हूँ तुम्हारे लिए ईमानदार इंसान बनना कितना मुश्किल काम है। चूँकि तुम लोग बहुत चतुर हो, अपने तुच्छ पैमाने से लोगों का मूल्यांकन करने में बहुत अच्छे हो, इससे मेरा कार्य और आसान हो जाता है। और चूंकि तुम में से हरेक अपने भेदों को अपने सीने में भींचकर रखता है, तो मैं तुम लोगों को एक-एक करके आपदा में भेज दूँगा ताकि अग्नि तुम्हें सबक सिखा सके, ताकि उसके बाद तुम मेरे वचनों के प्रति पूरी तरह समर्पित हो जाओ। अंततः, मैं तुम लोगों के मुँह से "परमेश्वर एक निष्ठावान परमेश्वर है" शब्द निकलवा लूँगा, तब तुम लोग अपनी छाती पीटोगे और विलाप करोगे, "कुटिल है इंसान का हृदय!" उस समय तुम्हारी मनोस्थिति क्या होगी? मुझे लगता है कि तुम उतने खुश नहीं होगे जितने अभी हो। तुम लोग इतने "गहन और गूढ़" तो बिल्कुल भी नहीं होगे जितने कि तुम अब हो। कुछ लोग परमेश्वर की उपस्थिति में नियम-निष्ठ और उचित शैली में व्यवहार करते हैं, वे "शिष्ट व्यवहार" के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, फिर भी आत्मा की उपस्थिति में वे अपने जहरीले दाँत और पँजे दिखाने लगते हैं। क्या तुम लोग ऐसे इंसान को ईमानदार लोगों की श्रेणी में रखोगे? यदि तुम पाखंडी और ऐसे व्यक्ति हो जो "व्यक्तिगत संबंधों" में कुशल है, तो मैं कहता हूँ कि तुम निश्चित रूप से ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर को हल्के में लेने का प्रयास करता है। यदि तुम्हारी बातें बहानों और महत्वहीन तर्कों से भरी हैं, तो मैं कहता हूँ कि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य का अभ्यास करने से घृणा करता है। यदि तुम्हारे पास ऐसी बहुत-से गुप्त भेद हैं जिन्हें तुम साझा नहीं करना चाहते, और यदि तुम प्रकाश के मार्ग की खोज करने के लिए दूसरों के सामने अपने राज़ और अपनी कठिनाइयाँ उजागर करने के विरुद्ध हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हें आसानी से उद्धार प्राप्त नहीं होगा और तुम सरलता से अंधकार से बाहर नहीं निकल पाओगे। ... अंत में किसी व्यक्ति की नियति कैसे काम करती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या उसके अंदर एक ईमानदार और भावुक हृदय है, और क्या उसके पास एक शुद्ध आत्मा है। यदि तुम ऐसे इंसान हो जो बहुत बेईमान है, जिसका हृदय दुर्भावना से भरा है, जिसकी आत्मा अशुद्ध है, तो तुम अंत में निश्चित रूप से ऐसी जगह जाओगे जहाँ इंसान को दंड दिया जाता है, जैसाकि तुम्हारी नियति में लिखा है। यदि तुम बहुत ईमानदार होने का दावा करते हो, मगर तुमने कभी सत्य के अनुसार कार्य नहीं किया है या सत्य का एक शब्द भी नहीं बोला है, तो क्या तुम तब भी परमेश्वर से पुरस्कृत किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हो? क्या तुम तब भी परमेश्वर से आशा करते हो कि वह तुम्हें अपनी आँख का तारा समझे? क्या यह सोचने का बेहूदा तरीका नहीं है? तुम हर बात में परमेश्वर को धोखा देते हो; तो परमेश्वर का घर तुम जैसे इंसान को, जिसके हाथ अशुद्ध हैं, जगह कैसे दे सकता है?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ

656. अब, तुम्हारा प्रयास प्रभावी रहा है या नहीं, यह इस बात से मापा जाता है कि इस समय तुम लोगों के अंदर क्या है। तुम लोगों के परिणाम का निर्धारण करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है; कहने का अर्थ है कि तुम लोगों ने जिन चीज़ों का त्याग किया है और जो कुछ काम किए हैं, उनसे तुम लोगों का परिणाम सामने आता है। तुम लोगों के प्रयास से, तुम लोगों की आस्था से, तुम लोगों ने जो कुछ किया है उनसे, तुम लोगों का परिणाम जाना जाएगा। तुम लोगों में, बहुत-से ऐसे हैं जो पहले ही उद्धार से परे हो चुके हैं, क्योंकि आज का दिन लोगों के परिणाम को उजागर करने का दिन है, और मैं अपने काम में उलझा हुआ नहीं रहूँगा; मैं अगले युग में उन लोगों को नहीं ले जाऊँगा जो पूरी तरह से उद्धार से परे हैं। एक समय आएगा, जब मेरा कार्य पूरा हो जाएगा। मैं उन दुर्गंधयुक्त, बेजान लाशों पर कार्य नहीं करूँगा जिन्हें बिल्कुल भी बचाया नहीं जा सकता; अब इंसान के उद्धार के अंतिम दिन हैं, और मैं निरर्थक कार्य नहीं करूँगा। स्वर्ग और धरती का विरोध मत करो—दुनिया का अंत आ रहा है। यह अपरिहार्य है। चीज़ें इस मुकाम तक आ गयी हैं, और उन्हें रोकने के लिए तुम इंसान के तौर पर कुछ नहीं कर सकते; तुम अपनी इच्छानुसार चीज़ों को बदल नहीं सकते। कल, तुमने सत्य का अनुसरण करने के लिए कीमत अदा नहीं की थी और तुम निष्ठावान नहीं थे; आज, समय आ चुका है, तुम उद्धार से परे हो; और आने वाले कल में तुम्हारे उद्धार की कोई गुंजाइश नहीं होगी। हालाँकि मेरा दिल कोमल है और मैं तुम्हें बचाने के लिए सब-कुछ कर रहा हूँ, अगर तुम अपने स्तर पर प्रयास नहीं करते या अपने लिए विचार नहीं करते, तो इसका मुझसे क्या लेना-देना? जो लोग केवल अपने देह-सुख की सोचते हैं और सुख-साधनों का आनंद लेते हैं; जो विश्वास रखते हुए प्रतीत होते हैं लेकिन सचमुच विश्वास नहीं रखते; जो बुरी औषधियों और जादू-टोने में लिप्त रहते हैं; जो व्यभिचारी हैं, जो बिखर चुके हैं, तार-तार हो चुके हैं; जो यहोवा के चढ़ावे और उसकी संपत्ति को चुराते हैं; जिन्हें रिश्वत पसंद है; जो व्यर्थ में स्वर्गारोहित होने के सपने देखते हैं; जो अहंकारी और दंभी हैं, जो केवल व्यक्तिगत शोहरत और धन-दौलत के लिए संघर्ष करते हैं; जो कर्कश शब्दों को फैलाते हैं; जो स्वयं परमेश्वर की निंदा करते हैं; जो स्वयं परमेश्वर की आलोचना और बुराई करने के अलावा कुछ नहीं करते; जो गुटबाज़ी करते हैं और स्वतंत्रता चाहते हैं; जो खुद को परमेश्वर से भी ऊँचा उठाते हैं; वे तुच्छ नौजवान, अधेड़ उम्र के लोग और बुज़ुर्ग स्त्री-पुरुष जो व्यभिचार में फँसे हुए हैं; जो स्त्री-पुरुष निजी शोहरत और धन-दौलत का मज़ा लेते हैं और लोगों के बीच निजी रुतबा तलाशते हैं; जिन लोगों को कोई मलाल नहीं है और जो पाप में फँसे हुए हैं—क्या वे तमाम लोग उद्धार से परे नहीं हैं? व्यभिचार, पाप, बुरी औषधि, जादू-टोना, अश्लील भाषा और असभ्य शब्द सब तुम लोगों में निरंकुशता से फैल रहे हैं; सत्य और जीवन के वचन तुम लोगों के बीच कुचले जाते हैं और तुम लोगों के मध्य पवित्र भाषा मलिन की जाती है। तुम मलिनता और अवज्ञा से भरे हुए अन्यजाति राष्ट्रो! तुम लोगों का अंतिम परिणाम क्या होगा? जिन्हें देह-सुख से प्यार है, जो देह का जादू-टोना करते हैं, और जो व्यभिचार के पाप में फँसे हुए हैं, वे जीते रहने का दुस्साहस कैसे कर सकते हैं! क्या तुम नहीं जानते कि तुम जैसे लोग कीड़े-मकौड़े हैं जो उद्धार से परे हैं? किसी भी चीज़ की माँग करने का हक तुम्हें किसने दिया? आज तक, उन लोगों में ज़रा-सा भी परिवर्तन नहीं आया है जिन्हें सत्य से प्रेम नहीं है, जो केवल देह से प्यार करते हैं—ऐसे लोगों को कैसे बचाया जा सकता है? जो जीवन के मार्ग को प्रेम नहीं करते, जो परमेश्वर को ऊँचा उठाकर उसकी गवाही नहीं देते, जो अपने रुतबे के लिए षडयंत्र रचते हैं, जो अपनी प्रशंसा करते हैं—क्या वे आज भी वैसे ही नहीं हैं? उन्हें बचाने का क्या मूल्य है? तुम्हारा बचाया जाना इस बात पर निर्भर नहीं है कि तुम कितने वरिष्ठ हो या तुम कितने साल से काम कर रहे हो, और इस बात पर तो बिल्कुल भी निर्भर नहीं है कि तुमने कितनी साख बना ली है। बल्कि इस बात पर निर्भर है कि क्या तुम्हारा लक्ष्य फलीभूत हुआ है। तुम्हें यह जानना चाहिए कि जिन्हें बचाया जाता है वे ऐसे "वृक्ष" होते हैं जिन पर फल लगते हैं, ऐसे वृक्ष नहीं जो हरी-भरी पत्तियों और फूलों से तो लदे होते हैं, लेकिन जिन पर फल नहीं आते। अगर तुम बरसों तक भी गलियों की खाक छानते रहे हो, तो उससे क्या फर्क पड़ता है? तुम्हारी गवाही कहाँ है? परमेश्वर के प्रति तुम्हारी श्रद्धा, खुद के लिए तुम्हारे प्रेम और तुम्हारी वासनायुक्त कामनाओं से कहीं कम है—क्या इस तरह का व्यक्ति पतित नहीं है? वे उद्धार के लिए नमूना और आदर्श कैसे हो सकते हैं? तुम्हारी प्रकृति सुधर नहीं सकती, तुम बहुत ही विद्रोही हो, तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता! क्या ऐसे लोगों को हटा नहीं दिया जाएगा? क्या मेरे काम के समाप्त हो जाने का समय तुम्हारा अंत आने का समय नहीं है? मैंने तुम लोगों के बीच बहुत सारा कार्य किया है और बहुत सारे वचन बोले हैं—इनमें से कितने सच में तुम लोगों के कानों में गए हैं? इनमें से कितनों का तुमने कभी पालन किया है? जब मेरा कार्य समाप्त होगा, तो यह वो समय होगा जब तुम मेरा विरोध करना बंद कर दोगे, तुम मेरे खिलाफ खड़ा होना बंद कर दोगे। जब मैं काम करता हूँ, तो तुम लोग लगातार मेरे खिलाफ काम करते रहते हो; तुम लोग कभी मेरे वचनों का अनुपालन नहीं करते। मैं अपना कार्य करता हूँ, और तुम अपना "काम" करते हो, और अपना छोटा-सा राज्य बनाते हो। तुम लोग लोमड़ियों और कुत्तों से कम नहीं हो, सब-कुछ मेरे विरोध में कर रहे हो! तुम लगातार उन्हें अपने आगोश में लाने का प्रयास कर रहे हो जो तुम्हें अपना अविभक्त प्रेम समर्पित करते हैं—तुम लोगों की श्रद्धा कहाँ है? तुम्हारा हर काम कपट से भरा होता है! तुम्हारे अंदर न आज्ञाकारिता है, न श्रद्धा है, तुम्हारा हर काम कपटपूर्ण और ईश-निंदा करने वाला होता है! क्या ऐसे लोगों को बचाया जा सकता है? जो पुरुष यौन-संबंधों में अनैतिक और लम्पट होते हैं, वे हमेशा कामोत्तेजक वेश्याओं को आकर्षित करके उनके साथ मौज-मस्ती करना चाहते हैं। मैं ऐसे काम-वासना में लिप्त अनैतिक राक्षसों को कतई नहीं बचाऊंगा। मैं तुम मलिन राक्षसों से घृणा करता हूँ, तुम्हारा व्यभिचार और तुम्हारी कामोत्तेजना तुम लोगों को नरक में धकेल देगी। तुम लोगों को अपने बारे में क्या कहना है? मलिन राक्षसो और दुष्ट आत्माओ, तुम लोग घिनौने हो! तुम निकृष्ट हो! ऐसे कूड़े-करकट को कैसे बचाया जा सकता है? क्या ऐसे लोगों को जो पाप में फँसे हुए हैं, उन्हें अब भी बचाया जा सकता है? आज, यह सत्य, यह मार्ग और यह जीवन तुम लोगों को आकर्षित नहीं करता; बल्कि, तुम लोग पाप की ओर, धन की ओर, रुतबे की ओर, शोहरत और लाभ की ओर आकर्षित होते हो; देह-सुख की ओर आकर्षित होते हो; सुंदर स्त्री-पुरुषों की ओर आकर्षित होते हो। मेरे राज्य में प्रवेश करने की तुम लोगों की क्या पात्रता है? तुम लोगों की छवि परमेश्वर से भी बड़ी है, तुम लोगों का रुतबा परमेश्वर से भी ऊँचा है, लोगों में तुम्हारी प्रतिष्ठा का तो कहना ही क्या—तुम लोग ऐसे आदर्श बन गए हो जिन्हें लोग पूजते हैं। क्या तुम प्रधान स्वर्गदूत नहीं बन गए हो? जब लोगों के परिणाम उजागर होते हैं, जो वो समय भी है जब उद्धार का कार्य समाप्ति के करीब होने लगेगा, तो तुम लोगों में से बहुत-से ऐसी लाश होंगे जो उद्धार से परे होंगे और जिन्हें हटा दिया जाना होगा। उद्धार-कार्य के दौरान, मैं सभी लोगों के प्रति दयालु और नेक होता हूँ। जब कार्य समाप्त होता है, तो अलग-अलग किस्म के लोगों का परिणाम प्रकट किया जाएगा, और उस समय, मैं दयालु और नेक नहीं रहूँगा, क्योंकि लोगों का परिणाम प्रकट हो चुका होगा, और हर एक को उसकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत कर दिया गया होगा, फिर और अधिक उद्धार-कार्य करने का कोई मतलब नहीं होगा, क्योंकि उद्धार का युग गुज़र चुका होगा, और गुज़र जाने के बाद वह वापस नहीं आएगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (7)

657. मैंने तुम लोगों को कई चेतावनियाँ दी हैं और तुम लोगों को जीतने के इरादे से कई सत्य दिए हैं। अब तक, तुम लोग अतीत की तुलना में काफी अधिक समृद्ध अनुभव करते हो, इस बारे में कई सिद्धांत समझ गए हो कि व्यक्ति को कैसा होना चाहिए, और तुमने उतना सामान्य ज्ञान प्राप्त कर लिया है जो वफ़ादार लोगों में होना चाहिए। अनेक वर्षों के दौरान तुम लोगों ने यही फसल काटी है। मैं तुम्हारी उपलब्धियों से इनकार नहीं करता, लेकिन मुझे यह भी स्पष्ट रूप से कहना है कि मैं इन कई वर्षों में मेरे प्रति की गई तुम्हारी अवज्ञाओं और विद्रोहों से भी इनकार नहीं करता, क्योंकि तुम लोगों के बीच एक भी संत नहीं है। बिना किसी अपवाद के तुम शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए लोग हो; तुम मसीह के शत्रु हो। आज तक तुम लोगों के अपराधों और अवज्ञाओं की संख्या इतनी ज्यादा रही है कि उनकी गिनती नहीं की जा सकती, इसलिए इसे शायद ही अजीब माना जाए कि मैं हमेशा तुम लोगों को तंग करता रहता हूँ। मैं तुम लोगों के साथ इस तरह सह-अस्तित्व की इच्छा नहीं रखता, लेकिन तुम्हारे भविष्य की खातिर, तुम्हारी मंज़िल की खातिर मैं, यहाँ और अभी, तुम्हें एक बार फिर तंग करूंगा। मुझे आशा है, तुम लोग मुझे कहने दोगे, और इतना ही नहीं, मेरे हर कथन पर विश्वास करने में सक्षम होगे और मेरे वचनों का गहरा निहितार्थ समझ पाओगे। मेरे कहे पर संदेह न करो, मेरे वचनों को जैसे चाहो, वैसे लेकर उन्हें दरकिनार करने की बात तो छोड़ ही दो; यह मेरे लिए असहनीय होगा। मेरे वचनों की आलोचना मत करो, उन्हें हलके में तो तुम्हें बिलकुल नहीं लेना चाहिए, न ऐसा कुछ कहना चाहिए कि मैं हमेशा तुम लोगों को फुसलाता हूँ, या उससे भी ज्यादा ख़राब यह कि मैंने तुमसे जो कुछ कहा है, वह ठीक नहीं है। ये चीज़ें भी मेरे लिए असहनीय हैं। चूँकि तुम लोग मुझे और मेरी कही गई बातों को संदेह की नज़र से देखते हो, मेरे वचनों को कभी स्वीकार नहीं करते और मेरी उपेक्षा करते हो, मैं तुम सब लोगों से पूरी गंभीरता से कहता हूँ : मेरी कही बातों को दर्शन-शास्त्र से मत जोड़ो; मेरे वचनों को कपटी लोगों के झूठ से मत जोड़ो। मेरे वचनों की अवहेलना तो तुम्हें बिलकुल भी नहीं करनी चाहिए। भविष्य में शायद कोई तुम्हें वह नहीं बता पाएगा जो मैं बता रहा हूँ, या तुम्हारे साथ इतनी उदारता से नहीं बोलेगा, या तुम लोगों को एक-एक बात इतने धैर्य से समझाने वाला तो बिलकुल नहीं मिलेगा। इन अच्छे दिनों को तुम लोग केवल याद करते रह जाओगे, या ज़ोर-ज़ोर से सुबकोगे, अथवा दर्द से कराहोगे, या फिर अँधेरी रातों में जीवन-यापन कर रहे होगे जहाँ सत्य या जीवन का अंश-मात्र भी नहीं होगा, या नाउम्मीदी में बस इंतज़ार कर रहे होगे, या फिर भयंकर पश्चात्ताप में विवेक ही खो बैठोगे...। वस्तुत: तुममें से कोई इन संभावनाओं से नहीं बच सकता। क्योंकि तुममें से किसी के पास वह आसन नहीं है, जिससे तुम परमेश्वर की सच्ची आराधना कर सको, इसके बजाय तुम लोग व्यभिचार और बुराई की दुनिया में निमग्न हो गए हो, और तुम्हारे विश्वासों में, तुम्हारी आत्मा, रूह और शरीर में ऐसी बहुत-सी चीज़ें घुल-मिल गई हैं, जिनका जीवन और सत्य से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि जो इनके विरोध में हैं। इसलिए मुझे तुम लोगों को लेकर बस यही आशा है कि तुम लोगों को प्रकाश-पथ पर लाया जा सके। मेरी एकमात्र आशा है कि तुम लोग अपना ख़याल रख पाओ, और अपने व्यवहार और अपराधों को उदासीनता से देखते हुए तुम अपनी मंज़िल पर इतना अधिक बल न दो।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपराध मनुष्य को नरक में ले जाएँगे

658. तुम जितने अधिक अपराध करोगे, उतने ही कम अवसर तुम्हें अच्छी मंज़िल पाने के लिए मिलेंगे। इसके विपरीत, तुम जितने कम अपराध करोगे, परमेश्वर की प्रशंसा पाने के तुम्हारे अवसर उतने ही बेहतर हो जाएँगे। यदि तुम्हारे अपराध इतने बढ़ जाएँ कि मैं भी तुम्हें क्षमा न कर सकूँ, तो तुम क्षमा किए जाने के अपने अवसर पूरी तरह से गँवा दोगे। इस तरह, तुम्हारी मंज़िल उच्च नहीं, निम्न होगी। यदि तुम्हें मेरी बातों पर यकीन न हो, तो बेधड़क गलत काम करो और उसके नतीजे देखो। यदि तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसका सत्य का अभ्यास बहुत सच्चा है, तो तुम्हें अपने अपराधों के लिए क्षमा किए जाने का अवसर अवश्य मिलेगा, और तुम कम से कम अवज्ञा करोगे। और यदि तुम ऐसे व्यक्ति हो, जो सत्य पर अमल नहीं करना चाहता, तो परमेश्वर के समक्ष तुम्हारे अपराधों की संख्या निश्चित रूप से बढ़ जाएगी और तुम तब तक बार-बार अवज्ञा करोगे, जब तक कि सीमा पार नहीं कर लोगे, जो तुम्हारी पूरी तबाही का समय होगा। यह तब होगा, जब आशीष पाने का तुम्हारा खूबसूरत सपना चूर-चूर हो चुका हो जाएगा। अपने अपराधों को किसी अपरिपक्व या मूर्ख व्यक्ति की गलतियाँ मात्र मत समझो, यह बहाना मत करो कि तुमने सत्य पर अमल इसलिए नहीं किया, क्योंकि तुम्हारी ख़राब क्षमता ने उसे असंभव बना दिया था। इसके अतिरिक्त, स्वयं द्वारा किए गए अपराधों को किसी अज्ञानी व्यक्ति के कृत्य भी मत समझ लेना। यदि तुम स्वयं को क्षमा करने और अपने साथ उदारता का व्यवहार करने में अच्छे हो, तो मैं कहता हूँ, तुम एक कायर हो, जिसे कभी सत्य हासिल नहीं होगा, न ही तुम्हारे अपराध तुम्हारा पीछा छोड़ेंगे, वे तुम्हें कभी सत्य की अपेक्षाएँ पूरी नहीं करने देंगे और तुम्हें हमेशा के लिए शैतान का वफ़ादार साथी बनाए रखेंगे। तुम्हें फिर भी मेरी यही सलाह है : अपने गुप्त अपराधों का पता लगाने में विफल रहते हुए केवल अपनी मंज़िल पर ध्यान मत दो; अपने अपराधों को गंभीरता से लो, अपनी मंज़िल की चिंता में उनमें से किसी को नज़रअंदाज़ मत करो।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपराध मनुष्य को नरक में ले जाएँगे

659. यद्यपि परमेश्वर के सार का एक हिस्सा प्रेम है, और वह हर एक के प्रति दयावान है, फिर भी लोग उस बात की अनदेखी कर भूल जाते हैं कि उसका सार महिमा भी है। उसके प्रेममय होने का अर्थ यह नहीं है कि लोग खुलकर उसका अपमान कर सकते हैं, ऐसा नहीं है कि उसकी भावनाएँ नहीं भड़केंगी या कोई प्रतिक्रियाएँ नहीं होंगी। उसमें करुणा होने का अर्थ यह नहीं है कि लोगों से व्यवहार करने का उसका कोई सिद्धांत नहीं है। परमेश्वर सजीव है; सचमुच उसका अस्तित्व है। वह न तो कोई कठपुतली है, न ही कोई वस्तु है। चूँकि उसका अस्तित्व है, इसलिए हमें हर समय सावधानीपूर्वक उसके हृदय की आवाज़ सुननी चाहिए, उसकी प्रवृत्ति पर ध्यान देना चाहिए, और उसकी भावनाओं को समझना चाहिए। परमेश्वर को परिभाषित करने के लिए हमें अपनी कल्पनाओं का उपयोग नहीं करना चाहिए, न ही हमें अपने विचार और इच्छाएँ परमेश्वर पर थोपनी चाहिए, जिससे कि परमेश्वर इंसान के साथ इंसानी कल्पनाओं के आधार पर मानवीय व्यवहार करे। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम परमेश्वर को क्रोधित कर रहे हो, तुम उसके कोप को बुलावा देते हो, उसकी महिमा को चुनौती देते हो! एक बार जब तुम लोग इस मसले की गंभीरता को समझ लोगे, मैं तुम लोगों से आग्रह करूँगा कि तुम अपने कार्यकलापों में सावधानी और विवेक का उपयोग करो। अपनी बातचीत में सावधान और विवेकशील रहो। साथ ही, तुम लोग परमेश्वर के प्रति व्यवहार में जितना अधिक सावधान और विवेकशील रहोगे, उतना ही बेहतर होगा! अगर तुम्हें परमेश्वर की प्रवृत्ति समझ में न आ रही हो, तो लापरवाही से बात मत करो, अपने कार्यकलापों में लापरवाह मत बनो, और यूँ ही कोई लेबल न लगा दो। और सबसे महत्वपूर्ण बात, मनमाने ढंग से निष्कर्षों पर मत पहुँचो। बल्कि, तुम्हें प्रतीक्षा और खोज करनी चाहिए; ये कृत्य भी परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने की अभिव्यक्ति है। सबसे बड़ी बात, यदि तुम ऐसा कर सको, और ऐसी प्रवृत्ति अपना सको, तो परमेश्वर तुम्हारी मूर्खता, अज्ञानता, और चीज़ों के पीछे तर्कों की समझ की कमी के लिए तुम्हें दोष नहीं देगा। बल्कि, परमेश्वर को अपमानित करने के तुम्हारे भय मानने, उसके इरादों के प्रति तुम्हारे सम्मान, और परमेश्वर का आज्ञापालन करने की तुम्हारी तत्परता के कारण, परमेश्वर तुम्हें याद रखेगा, तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा और तुम्हें प्रबुद्धता देगा, या तुम्हारी अपरिपक्वता और अज्ञानता को सहन करेगा। इसके विपरीत, यदि उसके प्रति तुम्हारी प्रवृत्ति श्रद्धाविहीन होती है—तुम मनमाने ढंग से परमेश्वर की आलोचना करते हो, मनमाने ढंग से परमेश्वर के विचारों का अनुमान लगाकर उन्हें परिभाषित करते हो—तो परमेश्वर तुम्हें अपराधी ठहराएगा, अनुशासित करेगा, बल्कि दण्ड भी देगा; या वह तुम पर टिप्पणी करेगा। हो सकता है कि इस टिप्पणी में ही तुम्हारा परिणाम शामिल हो। इसलिए, मैं एक बार फिर से इस बात पर जोर देना चाहता हूँ : परमेश्वर से आने वाली हर चीज़ के प्रति तुम्हें सावधान और विवेकशील रहना चाहिए। लापरवाही से मत बोलो, और अपने कार्यकलापों में लापरवाह मत हो। कुछ भी कहने से पहले रुककर सोचो : क्या मेरा ऐसा करना परमेश्वर को क्रोधित करेगा? क्या ऐसा करना परमेश्वर के प्रति श्रद्धा दिखाना है? यहाँ तक कि साधारण मामलों में भी, तुम्हें इन प्रश्नों को समझकर उन पर विचार करना चाहिए। यदि तुम हर चीज़ में, हर समय, इन सिद्धांतों के अनुसार सही मायने में अभ्यास करो, विशेष रूप से इस तरह की प्रवृत्ति तब अपना सको, जब कोई चीज़ तुम्हारी समझ में न आए, तो परमेश्वर तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा, और तुम्हें अनुसरण योग्य मार्ग देगा। लोग चाहे जो दिखावा करें, लेकिन परमेश्वर सबकुछ स्पष्ट रूप में देख लेता है, और वह तुम्हारे दिखावे का सटीक और उपयुक्त मूल्यांकन प्रदान करेगा। जब तुम अंतिम परीक्षण का अनुभव कर लोगे, तो परमेश्वर तुम्हारे समस्त व्यवहार को लेकर उससे तुम्हारा परिणाम निर्धारित करेगा। यह परिणाम निस्सन्देह हर एक को आश्वस्त करेगा। मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूँ कि तुम लोगों का हर कर्म, हर कार्यकलाप, हर विचार तुम्हारे भाग्य को निर्धारित करता है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का स्वभाव और उसका कार्य जो परिणाम हासिल करेगा, उसे कैसे जानें

660. जहाँ तक सवाल यह है कि लोग परमेश्वर की खोज कैसे करते हैं, कैसे परमेश्वर के समीप आते हैं, तो यहाँ लोगों की प्रवृत्ति प्राथमिक महत्व की हो जाती है। अपने सिर के पीछे तैरती खाली हवा समझ कर परमेश्वर की उपेक्षा मत करो; जिस परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास है उसे हमेशा एक जीवित परमेश्वर, एक वास्तविक परमेश्वर मानो। वह तीसरे स्वर्ग में हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठा है। बल्कि, वह लगातार प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में देख रहा है, यह देख रहा है कि तुम क्या करते हो, वह हर छोटे वचन और हर छोटे कर्म को देख रहा है, वो यह देख रहा है कि तुम किस प्रकार व्यवहार करते हो और परमेश्वर के प्रति तुम्हारी प्रवृत्ति क्या है। तुम स्वयं को परमेश्वर को अर्पित करने के लिए तैयार हो या नहीं, तुम्हारा संपूर्ण व्यवहार एवं तुम्हारे अंदर की सोच एवं विचार परमेश्वर के सामने खुले हैं, और परमेश्वर उन्हें देख रहा है। तुम्हारे व्यवहार, तुम्हारे कर्मों, और परमेश्वर के प्रति तुम्हारी प्रवृत्ति के अनुसार ही तुम्हारे बारे में उसकी राय, और तुम्हारे प्रति उसकी प्रवृत्ति लगातार बदल रही है। मैं कुछ लोगों को कुछ सलाह देना चाहूँगा : अपने आपको परमेश्वर के हाथों में छोटे शिशु के समान मत रखो, जैसे कि उसे तुमसे लाड़-प्यार करना चाहिए, जैसे कि वह तुम्हें कभी नहीं छोड़ सकता, और जैसे कि तुम्हारे प्रति उसकी प्रवृत्ति स्थायी हो जो कभी नहीं बदल सकती, और मैं तुम्हें सपने देखना छोड़ने की सलाह देता हूँ! परमेश्वर हर एक व्यक्ति के प्रति अपने व्यवहार में धार्मिक है, और वह मनुष्य को जीतने और उसके उद्धार के कार्य के प्रति अपने दृष्टिकोण में ईमानदार है। यह उसका प्रबंधन है। वह हर एक व्यक्ति से गंभीरतापूर्वक व्यवहार करता है, पालतू जानवर के समान नहीं कि उसके साथ खेले। मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम बहुत लाड़-प्यार या बिगाड़ने वाला प्रेम नहीं है, न ही मनुष्य के प्रति उसकी करुणा और सहिष्णुता आसक्तिपूर्ण या बेपरवाह है। इसके विपरीत, मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम सँजोने, दया करने और जीवन का सम्मान करने के लिए है; उसकी करुणा और सहिष्णुता बताती हैं कि मनुष्य से उसकी अपेक्षाएँ क्या हैं, और यही वे चीज़ें हैं जो मनुष्य के जीने के लिए ज़रूरी हैं। परमेश्वर जीवित है, वास्तव में उसका अस्तित्व है; मनुष्य के प्रति उसकी प्रवृत्ति सैद्धांतिक है, कट्टर नियमों का समूह नहीं है, और यह बदल सकती है। मनुष्य के लिए उसके इरादे, परिस्थितियों और प्रत्येक व्यक्ति की प्रवृत्ति के साथ धीरे-धीरे परिवर्तित एवं रूपांतरित हो रहे हैं। इसलिए तुम्हें पूरी स्पष्टता के साथ जान लेना चाहिए कि परमेश्वर का सार अपरिवर्तनीय है, उसका स्वभाव अलग-अलग समय और संदर्भों के अनुसार प्रकट होता है। शायद तुम्हें यह कोई गंभीर मुद्दा न लगे, और तुम्हारी व्यक्तिगत अवधारणा हो कि परमेश्वर को कैसे कार्य करना चाहिए। परंतु कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि तुम्हारे दृष्टिकोण से बिल्कुल विपरीत नज़रिया सही हो, और अपनी अवधारणाओं से परमेश्वर को आंकने के पहले ही तुमने उसे क्रोधित कर दिया हो। क्योंकि परमेश्वर उस तरह कार्य नहीं करता जैसा तुम सोचते हो, और न ही वह उस मसले को उस नज़र से देखेगा जैसा तुम सोचते हो कि वो देखेगा। इसलिए मैं तुम्हें याद दिलाता हूँ कि तुम आसपास की हर एक चीज़ के प्रति अपने नज़रिए में सावधान एवं विवेकशील रहो, और सीखो कि किस प्रकार सभी चीज़ों में परमेश्वर के मार्ग में चलने के सिद्धांत का अनुसरण करना चाहिए, जो कि परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना है। तुम्हें परमेश्वर की इच्छा और उसकी प्रवृत्ति के मामलों पर एक दृढ़ समझ विकसित करनी चाहिए; तुम्हें ईमानदारी से प्रबुद्ध लोगों को खोजना चाहिए जो इस पर तुम्हारे साथ संवाद करें। अपने विश्वास में परमेश्वर को एक कठपुतली मत समझो—उसे मनमाने ढंग से मत परखो, उसके बारे में मनमाने निष्कर्षों पर मत पहुँचो, परमेश्वर के साथ सम्मान-योग्य व्यवहार करो। एक तरफ जहाँ परमेश्वर तुम्हारा उद्धार कर रहा है, तुम्हारा परिणाम निर्धारित कर रहा है, वहीं वह तुम्हें करुणा, सहिष्णुता, या न्याय और ताड़ना भी प्रदान कर सकता है, लेकिन किसी भी स्थिति में, तुम्हारे प्रति उसकी प्रवृत्ति स्थिर नहीं होती। यह परमेश्वर के प्रति तुम्हारी प्रवृत्ति पर, और परमेश्वर की तुम्हारी समझ पर निर्भर करता है। परमेश्वर के बारे में अपने ज्ञान या समझ के किसी अस्थायी पहलू के ज़रिए परमेश्वर को सदा के लिए परिभाषित मत करो। किसी मृत परमेश्वर में विश्वास मत करो; जीवित परमेश्वर में विश्वास करो।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का स्वभाव और उसका कार्य जो परिणाम हासिल करेगा, उसे कैसे जानें

661. तुम लोग लालायित रहते हो कि परमेश्वर तुम पर प्रसन्न हो, मगर तुम लोग परमेश्वर से दूर हो। यह क्या मामला है? तुम लोग केवल उसके वचनों को स्वीकार करते हो, उसके व्यवहार या काट-छाँट को नहीं, उसके प्रत्येक प्रबंध को स्वीकार करने, उस पर पूर्ण विश्वास रखने में तो तुम बिलकुल भी समर्थ नहीं हो। तो आखिर मामला क्या है? अंतिम विश्लेषण में, तुम लोगों का विश्वास अंडे के खाली खोल के समान है, जो कभी चूज़ा पैदा नहीं कर सकता। क्योंकि तुम लोगों का विश्वास तुम्हारे लिए सत्य लेकर नहीं आया है या उसने तुम्हें जीवन नहीं दिया है, बल्कि इसके बजाय तुम लोगों को पोषण और आशा का एक भ्रामक बोध दिया है। पोषण और आशा का बोध ही परमेश्वर पर तुम लोगों के विश्वास का उद्देश्य है, सत्य और जीवन नहीं। इसलिए मैं कहता हूँ कि परमेश्वर पर तुम लोगों के विश्वास का आधार चापलूसी और बेशर्मी से परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त करने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं रहा है, और उसे किसी भी तरह से सच्चा विश्वास नहीं माना जा सकता। इस प्रकार के विश्वास से कोई चूज़ा कैसे पैदा हो सकता है? दूसरे शब्दों में, इस तरह के विश्वास से क्या हासिल हो सकता है? परमेश्वर में विश्वास का प्रयोजन लक्ष्य पूरे करने में उसका उपयोग करना है। क्या यह तुम्हारे द्वारा परमेश्वर के स्वभाव के अपमान का एक और तथ्य नहीं है? तुम लोग स्वर्ग के परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हो, परंतु पृथ्वी के परमेश्वर के अस्तित्व से इनकार करते हो; लेकिन मैं तुम लोगों के विचार स्वीकार नहीं करता; मैं केवल उन लोगों की सराहना करता हूँ, जो अपने पैरों को ज़मीन पर रखते हैं और पृथ्वी के परमेश्वर की सेवा करते हैं, किंतु उनकी सराहना कभी नहीं करता, जो पृथ्वी के मसीह को स्वीकार नहीं करते। ऐसे लोग स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति कितने भी वफादार क्यों न हों, अंत में वे दुष्टों को दंड देने वाले मेरे हाथ से बचकर नहीं निकल सकते। ये लोग दुष्ट हैं; ये वे बुरे लोग हैं, जो परमेश्वर का विरोध करते हैं और जिन्होंने कभी खुशी से मसीह का आज्ञापालन नहीं किया है। निस्संदेह, उनकी संख्या में वे सब सम्मिलित हैं जो मसीह को नहीं जानते, और इसके अलावा, उसे स्वीकार नहीं करते। क्या तुम समझते हो कि जब तक तुम स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति वफादार हो, तब तक मसीह के प्रति जैसा चाहो वैसा व्यवहार कर सकते हो? गलत! मसीह के प्रति तुम्हारी अज्ञानता स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति अज्ञानता है। तुम स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति चाहे कितने भी वफादार क्यों न हो, यह मात्र खोखली बात और दिखावा है, क्योंकि पृथ्वी का परमेश्वर मनुष्य के लिए न केवल सत्य और अधिक गहरा ज्ञान प्राप्त करने में सहायक है, बल्कि इससे भी अधिक, मनुष्य की भर्त्सना करने और उसके बाद दुष्टों को दंडित करने के लिए तथ्य हासिल करने में सहायक है। क्या तुमने यहाँ लाभदायक और हानिकारक परिणामों को समझ लिया है? क्या तुमने उनका अनुभव किया है? मैं चाहता हूँ कि तुम लोग शीघ्र ही किसी दिन इस सत्य को समझो : परमेश्वर को जानने के लिए तुम्हें न केवल स्वर्ग के परमेश्वर को जानना चाहिए, बल्कि, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण रूप से, पृथ्वी के परमेश्वर को भी जानना चाहिए। अपनी प्राथमिकताओं को गड्डमड्ड मत करो या गौण को मुख्य की जगह मत लेने दो। केवल इसी तरह से तुम परमेश्वर के साथ वास्तव में एक अच्छा संबंध बना सकते हो, परमेश्वर के नज़दीक हो सकते हो, और अपने हृदय को उसके और अधिक निकट ले जा सकते हो। यदि तुम काफी वर्षों से विश्वासी रहे हो और लंबे समय से मुझसे जुड़े हुए हो, किंतु फिर भी मुझसे दूर हो, तो मैं कहता हूँ कि अवश्य ही तुम प्रायः परमेश्वर के स्वभाव का अपमान करते हो, और तुम्हारे अंत का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होगा। यदि मेरे साथ कई वर्षों का संबंध न केवल तुम्हें ऐसा मनुष्य बनाने में असफल रहा है जिसमें मानवता और सत्य हो, बल्कि, इससे भी अधिक, उसने तुम्हारे दुष्ट तौर-तरीकों को तुम्हारी प्रकृति में बद्धमूल कर दिया है, और न केवल तुम्हारा अहंकार पहले से दोगुना हो गया है, बल्कि मेरे बारे में तुम्हारी गलतफहमियाँ भी कई गुना बढ़ गई हैं, यहाँ तक कि तुम मुझे अपना छोटा सह-अपराधी मान लेते हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हारा रोग अब त्वचा में ही नहीं रहा, बल्कि तुम्हारी हड्डियों तक में घुस गया है। तुम्हारे लिए बस यही शेष बचा है कि तुम अपने अंतिम संस्कार की व्यवस्था किए जाने की प्रतीक्षा करो। तब तुम्हें मुझसे प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं है कि मैं तुम्हारा परमेश्वर बनूँ, क्योंकि तुमने मृत्यु के योग्य पाप किया है, एक अक्षम्य पाप किया है। मैं तुम पर दया कर भी दूँ, तो भी स्वर्ग का परमेश्वर तुम्हारा जीवन लेने पर जोर देगा, क्योंकि परमेश्वर के स्वभाव के प्रति तुम्हारा अपराध कोई साधारण समस्या नहीं है, बल्कि बहुत ही गंभीर प्रकृति का है। जब समय आएगा, तो मुझे दोष मत देना कि मैंने तुम्हें पहले नहीं बताया था। मैं फिर से कहता हूँ : जब तुम मसीह—पृथ्वी के परमेश्वर—से एक साधारण मनुष्य के रूप में जुड़ते हो, अर्थात् जब तुम यह मानते हो कि यह परमेश्वर एक व्यक्ति के अलावा कुछ नहीं है, तो तुम नष्ट हो जाओगे। तुम सबके लिए मेरी यही एकमात्र चेतावनी है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें

662. हर व्यक्ति ने अपने जीवन में परमेश्वर में आस्था के दौरान किसी न किसी स्तर पर परमेश्वर का प्रतिरोध किया है, उसे धोखा दिया है। कुछ गलत कामों को अपराध के रूप में दर्ज करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन कुछ अक्षम्य होते हैं; क्योंकि बहुत से कर्म ऐसे होते हैं जिनसे प्रशासनिक आज्ञाओं का उल्लंघन होता है, जो परमेश्वर के स्वभाव के प्रति अपराध होते हैं। भाग्य को लेकर चिंतित बहुत से लोग पूछ सकते हैं कि ये कर्म कौनसे हैं। तुम लोगों को यह पता होना चाहिए कि तुम प्रकृति से ही अहंकारी और अकड़बाज हो, और सत्य के प्रति समर्पित होने के इच्छुक नहीं हो। इसलिए जब तुम लोग आत्म-चिंतन कर लोगे, तो मैं थोड़ा-थोड़ा करके तुम लोगों को बताँऊगा। मैं तुम लोगों से प्रशासनिक आज्ञाओं के विषय की बेहतर समझ हासिल करने और परमेश्वर के स्वभाव को जानने का प्रयास करने का आग्रह करता हूँ। अन्यथा, तुम लोग अपनी जबान बंद नहीं रख पाओगे और बड़ी-बड़ी बातें करोगे, तुम अनजाने में परमेश्वर के स्वभाव का अपमान करके अंधकार में जा गिरोगे और पवित्र आत्मा एवं प्रकाश की उपस्थिति को गँवा दोगे। चूँकि तुम्हारे काम के कोई सिद्धांत नहीं हैं, तुम्हें जो नहीं करना चाहिए वह करते हो, जो नहीं बोलना चाहिए वह बोलते हो, इसलिए तुम्हें यथोचित दंड मिलेगा। तुम्हें पता होना चाहिए कि, हालाँकि कथन और कर्म में तुम्हारे कोई सिद्धांत नहीं हैं, लेकिन परमेश्वर इन दोनों बातों में अत्यंत सिद्धांतवादी है। तुम्हें दंड मिलने का कारण यह है कि तुमने परमेश्वर का अपमान किया है, किसी इंसान का नहीं। यदि जीवन में बार-बार तुम परमेश्वर के स्वभाव के विरुद्ध अपराध करते हो, तो तुम नरक की संतान ही बनोगे। इंसान को ऐसा प्रतीत हो सकता है कि तुमने कुछ ही कर्म तो ऐसे किए हैं जो सत्य के अनुरूप नहीं हैं, और इससे अधिक कुछ नहीं। लेकिन क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर की निगाह में, तुम पहले ही एक ऐसे इंसान हो जिसके लिए अब पाप करने की कोई और छूट नहीं बची है? क्योंकि तुमने एक से अधिक बार परमेश्वर की प्रशासनिक आज्ञाओं का उल्लंघन किया है और फिर तुममें पश्चाताप के कोई लक्षण भी नहीं दिखते, इसलिए तुम्हारे पास नरक में जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है, जहाँ परमेश्वर इंसान को दंड देता है। परमेश्वर का अनुसरण करते समय, कुछ थोड़े-से लोगों ने कुछ ऐसे कर्म कर दिए जिनसे सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ, लेकिन निपटारे और मार्गदर्शन के बाद, उन्होंने धीरे-धीरे अपनी भ्रष्टता का अहसास किया, उसके बाद वास्तविकता के सही मार्ग में प्रवेश किया, और आज वे एक ठोस जमीन पर खड़े हैं। वे ऐसे लोग हैं जो अंत तक बने रहेंगे। मुझे ईमानदार इंसान की तलाश है; यदि तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो और सिद्धांत के अनुसार कार्य करते हो, तो तुम परमेश्वर के विश्वासपात्र हो सकते हो। यदि अपने कामों से तुम परमेश्वर के स्वभाव का अपमान नहीं करते, और तुम परमेश्वर की इच्छा की खोज करते हो और परमेश्वर के प्रति तुम्हारे मन में आदर है, तो तुम्हारी आस्था मापदंड के अनुरूप है। जो कोई भी परमेश्वर का आदर नहीं करता, और उसका हृदय भय से नहीं काँपता, तो इस बात की प्रबल संभावना है कि वह परमेश्वर की प्रशासनिक आज्ञाओं का उल्लंघन करेगा। बहुत-से लोग अपनी तीव्र भावना के बल पर परमेश्वर की सेवा तो करते हैं, लेकिन उन्हें परमेश्वर की प्रशासनिक आज्ञाओं की कोई समझ नहीं होती, उसके वचनों में छिपे अर्थों का तो उन्हें कोई भान तक नहीं होता। इसलिए, नेक इरादों के बावजूद वे प्रायः ऐसे काम कर बैठते हैं जिनसे परमेश्वर के प्रबंधन में बाधा पहुँचती है। गंभीर मामलों में, उन्हें बाहर निकाल दिया जाता है, आगे से परमेश्वर का अनुसरण करने के किसी भी अवसर से वंचित कर दिया जाता है, नरक में फेंक दिया जाता है और परमेश्वर के घर के साथ उनके सभी संबंध समाप्त हो जाते हैं। ये लोग अपने नादान नेक इरादों की शक्ति के आधार पर परमेश्वर के घर में काम करते हैं, और अंत में परमेश्वर के स्वभाव को क्रोधित कर बैठते हैं। लोग अधिकारियों और स्वामियों की सेवा करने के अपने तरीकों को परमेश्वर के घर में ले आते हैं, और व्यर्थ में यह सोचते हुए कि ऐसे तरीकों को यहाँ आसानी से लागू किया जा सकता है, उन्हें उपयोग में लाने की कोशिश करते हैं। उन्हें यह पता नहीं होता कि परमेश्वर का स्वभाव किसी मेमने का नहीं बल्कि एक सिंह का स्वभाव है। इसलिए, जो लोग पहली बार परमेश्वर से जुड़ते हैं, वे उससे संवाद नहीं कर पाते, क्योंकि परमेश्वर का हृदय इंसान की तरह नहीं है। जब तुम बहुत-से सत्य समझ जाते हो, तभी तुम परमेश्वर को निरंतर जान पाते हो। यह ज्ञान शब्दों या धर्म सिद्धांतों से नहीं बनता, बल्कि इसे एक खज़ाने के रूप में उपयोग किया जा सकता है जिससे तुम परमेश्वर के साथ गहरा विश्वास पैदा कर सकते हो और इसे एक प्रमाण के रूप में उपयोग सकते हो कि वह तुमसे प्रसन्न होता है। यदि तुममें ज्ञान की वास्तविकता का अभाव है और तुम सत्य से युक्त नहीं हो, तो मनोवेग में की गई तुम्हारी सेवा से परमेश्वर सिर्फ तुमसे घृणा और ग्लानि ही करेगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ

663. हर एक वाक्य जो मैंने कहा है वह अपने भीतर परमेश्वर के स्वभाव को लिए हुए है। तुम सब यदि मेरे वचनों पर सावधानी से मनन करोगे तो अच्छा होगा, और तुम निश्चय ही उनसे बड़ा लाभ पाओगे। परमेश्वर के सार-तत्व को समझना बड़ा ही कठिन काम है, परन्तु मैं भरोसा करता हूँ कि तुम सभी के पास कम से कम परमेश्वर के स्वभाव का कुछ तो अनुमान है। तब, मैं आशा करता हूँ कि तुम लोगों के पास मुझे दिखाने के लिए तुम्हारे द्वारा की गईं ऐसी ज्यादा चीजें होंगी जो परमेश्वर के स्वभाव को अपमानित नहीं करतीं। तब ही मुझे पुनः आश्वासन मिलेगा। उदाहरण के लिए, परमेश्वर को हर समय अपने दिल में रखो। उसके वचनों के अनुसार कार्य करो। सब बातों में उसके विचारों की खोज करो, और ऐसा कोई भी काम मत करो जिससे परमेश्वर का अनादर और अपमान हो। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर को अपने हृदय के भविष्य के खालीपन को भरने के लिए अपने मन के पीछे के कोने में मत रखो। यदि तुम ऐसा करोगे, तो तुम परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुंचाओगे। यदि मान लिया जाए कि तुमने अपने पूरे जीवन में परमेश्वर के विरूद्ध कभी भी ईशनिन्दा की टिप्पणी या शिकायत नहीं की है और मान लिया जाए कि तुम्हारे सम्पूर्ण जीवन में जो कुछ उसने तुम्हें सौंपा है उसे तुम यथोचित रूप से करने में समर्थ रहे हो, साथ ही उसके सभी वचनों के लिए पूर्णतया समर्पित रहे हो, तो तुम प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन करने से बच गये हो। उदाहरण के लिए, यदि तुम ने कभी ऐसा कहा है, "मैं ऐसा क्यों नहीं सोचता कि वह परमेश्वर है?", "मैं सोचता हूँ कि ये शब्द पवित्र आत्मा के प्रबोधन से बढ़कर और कुछ नहीं हैं", "मैं नहीं सोचता कि जो कुछ परमेश्वर करता है वह सब सही है", "परमेश्वर की मानवीयता मेरी मानवीयता से बढ़कर नहीं है", "परमेश्वर का वचन विश्वास करने योग्य है ही नहीं," या इस तरह की अन्य प्रकार की आलोचनात्मक टीका टिप्पणियाँ की हैं, तो मैं तुम्हें प्रोत्साहित करता हूँ कि तुम अपने पापों को अंगीकार करो और पश्चाताप करो। अन्यथा, तुम्हें पापों की क्षमा के लिए कभी अवसर नहीं मिलेगा, क्योंकि तुमने किसी मनुष्य को नहीं, बल्कि स्वयं परमेश्वर को ठेस पहुँचाई है। तुम मान सकते हो कि तुम मात्र एक मनुष्य की आलोचना कर रहे हो, किन्तु परमेश्वर का आत्मा इस रीति से इसे नहीं देखता है। उसके देह का अनादर उसके अनादर के बराबर है। यदि ऐसा है, तो क्या तुमने परमेश्वर के स्वभाव को ठेस नहीं पहुँचाई है? तुम्हें याद रखना होगा कि जो कुछ भी परमेश्वर के आत्मा के द्वारा किया गया है वह उसके देह में किए गए कार्य का बचाव करने के लिए है और इसलिए किया गया है ताकि इस कार्य को भली भांति किया जा सके। यदि तुम इसे महत्व न दो, तब मैं कहता हूँ कि तुम वो शख्स हो जो परमेश्वर पर विश्वास करने में कभी सफल नहीं हो पायेगा। क्योंकि तुमने परमेश्वर के क्रोध को भड़का दिया है, इस लिए तुम्हें सबक सिखाने के लिए वो उचित दण्ड का इस्तेमाल करेगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के स्वभाव को समझना बहुत महत्वपूर्ण है

664. परमेश्वर के स्वभाव और स्वरूप को समझने के बाद क्या तुम लोगों ने कोई निष्कर्ष निकाला है कि तुम लोगों को परमेश्वर के साथ कैसा बरताव करना चाहिए? अंत में, इस प्रश्न के उत्तर में, मैं तुम लोगों को तीन सलाहें देना चाहूँगा : पहली, परमेश्वर की परीक्षा मत लो। चाहे तुम परमेश्वर के बारे में कितना भी क्यों न समझते हो, चाहे तुम उसके स्वभाव के बारे में कितना भी क्यों न जानते हो, उसकी परीक्षा बिलकुल मत लो। दूसरी, हैसियत के लिए परमेश्वर के साथ संघर्ष मत करो। चाहे परमेश्वर तुम्हें किसी भी प्रकार की हैसियत दे या वह तुम्हें किसी भी प्रकार का कार्य सौंपे, चाहे वह तुम्हें किसी भी प्रकार का कर्तव्य करने के लिए बड़ा करे, और चाहे तुमने परमेश्वर के लिए कितना भी व्यय और बलिदान किया हो, उसके साथ हैसियत के लिए प्रतिस्पर्धा बिलकुल मत करो। तीसरी, परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा मत करो। परमेश्वर तुम्हारे साथ जो कुछ भी करता है, जो भी वह तुम्हारे लिए व्यवस्था करता है, और जो चीज़ें वह तुम पर लाता है, तुम उन्हें समझते या उनके प्रति समर्पित होते हो या नहीं, किंतु परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा बिलकुल मत करो। यदि तुम इन सलाहों पर चल सकते हो, तो तुम काफी सुरक्षित रहोगे, और तुम परमेश्वर को क्रोधित करने की ओर प्रवृत्त नहीं होगे।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III

665. हो सकता है तुम ने अपने समय में अत्यधिक पीड़ा सही हो, परन्तु तुम अभी भी कुछ नहीं समझते; तुम जीवन की प्रत्येक बात के विषय में अज्ञानी हो। यद्यपि तुम्हें ताड़ना दी गई और तुम्हारा न्याय किया गया; फिर भी तुम बिलकुल भी नहीं बदले और तुम ने भीतर तक जीवन ग्रहण ही नहीं किया है। जब तुम्हारे कार्य को जाँचने का समय आएगा, तुम अग्नि जैसे भयंकर परीक्षण और उस से भी बड़े क्लेश का अनुभव करोगे। यह अग्नि तुम्हारे सम्पूर्ण अस्तित्व को राख में बदल देगी। ऐसा व्यक्ति जिसमें जीवन नहीं है, ऐसा व्यक्ति जिसके भीतर एक रत्ती भी शुद्ध स्वर्ण न है, एक ऐसा व्यक्ति जो अभी भी पुराने भ्रष्ट स्वभाव में फंसा हुआ है, और ऐसा व्यक्ति जो विषमता होने का काम भी अच्छे से न कर सके, तो तुम्हें क्यों नहीं हटाया जाएगा? किसी ऐसे व्यक्ति का विजय-कार्य के लिए क्या उपयोग है, जिसका मूल्य एक पाई भी नहीं है और जिसके पास जीवन ही नहीं है? जब वह समय आएगा, तो तुम सब के दिन नूह और सदोम के दिनों से भी अधिक कठिन होंगे! तब तुम्हारी प्रार्थनाएँ भी तुम्हारा कुछ भला नहीं करेंगी। जब उद्धार का कार्य पहले ही समाप्त हो चुका है तो तुम बाद में वापस आकर नए सिरे से पश्चाताप करना कैसे आरम्भ कर सकते हो? एक बार जब उद्धार का सम्पूर्ण कार्य कर लिया जाएगा, तो उद्धार का और कार्य नहीं होगा; तब जो होगा, वह मात्र बुराई को दण्ड देने के कार्य का आरम्भ होगा। तुम विरोध करते हो, तुम विद्रोह करते हो, और तुम वो काम करते हो, जो तुम जानते हो कि बुरे हैं। क्या तुम कठोर दण्ड के लक्ष्य नहीं हो? मैं आज यह तुम्हारे लिए स्पष्ट रूप से बोल रहा हूँ। यदि तुम अनसुना करते हो, तो जब बाद में तुम पर विपत्ति टूटेगी, यदि तुम तब विश्वास और पछतावा करना आरम्भ करोगे, तो क्या इसमें तब बहुत देर नहीं हो चुकी होगी? मैं तुम्हें आज पश्चाताप करने का एक अवसर प्रदान कर रहा हूँ, परन्तु तुम ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हो। तुम और कितनी प्रतीक्षा करना चाहते हो? ताड़ना के दिन तक? मैं आज तुम्हारे पिछले अपराध याद नहीं रखता हूँ; मैं तुम्हें बार-बार क्षमा करता हूँ, मात्र तुम्हारे सकारात्मक पक्ष को देखने के लिए मैं तुम्हारे नकारात्मक पक्ष को अनदेखा करता हूँ, क्योंकि मेरे समस्त वर्तमान वचन और कार्य तुम्हें बचाने के लिए हैं। तुम्हारे प्रति मैं कोई बुरा इरादा नहीं रखता। फिर भी तुम प्रवेश करने से इन्कार करते हो; तुम भले और बुरे में अंतर नहीं कर सकते और नहीं जानते कि दयालुता की प्रशंसा कैसे की जाती है। क्या ऐसे लोग बस दण्ड और धार्मिक प्रतिफल की प्रतीक्षा नहीं कर रहे हैं?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (1)

666. तुम लोगों के बीच मेरा कार्य करना इस्राएल में यहोवा के कार्य करने के समान बिलकुल नहीं है, और विशेष रूप से, वैसा नहीं है जैसा यीशु ने यहूदिया में किया था। मैं बड़ी सहिष्णुता के साथ बोलता और कार्य करता हूँ, और मैं क्रोध और न्याय के साथ इन पतितों को जीतता हूँ। यह यहोवा द्वारा इस्राएल में अपने लोगों की अगुआई करने जैसा नहीं है। इस्राएल में उसका कार्य भोजन और जीवन का जल प्रदान करना था, और अपने लोगों का भरण-पोषण करते हुए वह उनके लिए करुणा और प्रेम से परिपूर्ण था। आज का कार्य उन शापग्रस्त लोगों के देश में किया जाता है, जिन्हें चुना नहीं जाता। वहाँ प्रचुर मात्रा में भोजन नहीं है, न ही प्यास बुझाने वाले जीवन के जल का पोषण है, और वहाँ प्रचुर मात्रा में भौतिक वस्तुओं की आपूर्ति तो बिलकुल भी नहीं है; वहाँ केवल प्रचुर मात्रा में न्याय, शाप और ताड़ना की आपूर्ति है। गोबर के ढेर में रहने वाले ये भुनगे मवेशियों और भेड़ों से भरी पहाड़ियाँ, महान संपत्ति, और पूरी भूमि पर सबसे सुंदर बच्चे, जो मैंने इस्राएल को प्रदान किए थे, प्राप्त करने के सर्वथा अयोग्य हैं। समकालीन इस्राएल वेदी पर मवेशी और भेड़ें तथा सोने और चाँदी की वस्तुएँ चढ़ाता है, जिनसे मैं उसके लोगों का पोषण करता हूँ, जो व्यवस्था के तहत यहोवा द्वारा आवश्यक दसवें हिस्से को पार कर जाता है, और इसलिए मैंने उन्हें और भी अधिक दिया है—व्यवस्था के तहत जो इस्राएल द्वारा प्राप्त किया जाना था, उससे एक सौ गुना से भी अधिक। मैं जिससे इस्राएल का पोषण करता हूँ, वह उस सबसे बढ़कर है जो अब्राहम ने प्राप्त किया था, और उस सबसे बढ़कर है जो इसहाक ने प्राप्त किया था। मैं इस्राएल के परिवार को फलदायक और बहुगुणित बना दूँगा, और मैं इस्राएल के अपने लोगों को पूरी दुनिया में फैलाऊँगा। मैं जिन्हें आशीष देता हूँ और जिनकी देखभाल करता हूँ, वे अभी भी इस्राएल के चुने हुए लोग हैं, अर्थात्, ऐसे लोग जो मुझे सब-कुछ समर्पित करते हैं, जिन्होंने मुझसे सब-कुछ प्राप्त किया है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे मुझे ध्यान में रखते हैं और मेरी पवित्र वेदी पर अपने नवजात बछड़ों और मेमनों का बलिदान करते हैं और उनके पास जो कुछ भी है, उसे मेरे सामने अर्पित करते हैं, यहाँ तक कि मेरे लौटने की प्रत्याशा में अपने नवजात प्रथम पुत्रों को भी अर्पित कर देते हैं। और तुम लोगों बारे में क्या है? तुम मेरे क्रोध को भड़काते हो, मुझसे माँग करते हो, और उन लोगों की भेंटों की चोरी कर लेते हो, जो मुझे चीजें चढ़ाते हैं, और तुम नहीं जानते कि तुम लोग मेरा अपमान कर रहे हो; इस प्रकार तुम सब लोग अँधेरे में विलाप और दंड प्राप्त करते हो। तुम लोगों ने मेरा गुस्सा कई बार भड़काया है, और मैंने अपनी जलती हुई अग्नियों की इस हद तक वर्षा की है कि बहुत-से लोगों का दुःखद अंत हो गया है, और खुशहाल घर उजाड़ कब्रें बन गए हैं। इन भुनगों के लिए मेरे पास बस अनंत क्रोध है, और इन्हें आशीष देने का मेरा कोई इरादा नहीं है। यह तो केवल अपने कार्य की खातिर मैंने एक अपवाद के रूप में तुम लोगों का उत्थान किया है और बहुत अपमान सहा है और तुम लोगों के बीच कार्य किया है। यदि यह मेरे पिता की इच्छा के लिए नहीं होता, तो मैं गोबर के ढेर में चारों ओर घूमते हुए भुनगों के साथ एक ही घर में कैसे रह सकता था? मुझे तुम लोगों के सभी कार्यों और शब्दों से अत्यंत घृणा महसूस होती है, लेकिन फिर भी, चूँकि मुझे तुम लोगों की गंदगी और विद्रोहशीलता में कुछ "रुचि" है, इसलिए यह मेरे वचनों का एक बड़ा संकलन बन गया है। अन्यथा मैं तुम लोगों के बीच इतने लंबे समय तक बिलकुल न रहता। इसलिए, तुम लोगों को यह जान लेना चाहिए कि तुम लोगों के प्रति मेरा रवैया सिर्फ सहानुभूति और तरस का है; मुझे तुम लोगों से लेश मात्र भी प्रेम नहीं है। मुझमें तुम लोगों के लिए मात्र सहिष्णुता है, क्योंकि मैं यह केवल अपने कार्य के वास्ते करता हूँ। और तुम लोगों ने मेरे कर्मों को केवल इसलिए देखा है, क्योंकि मैंने गंदगी और विद्रोहशीलता को "कच्चे माल" के रूप में चुना है; अन्यथा मैं अपने कर्मों को इन भुनगों के सामने बिलकुल भी प्रकट न करता। मैं सिर्फ अनिच्छा से तुम लोगों में कार्य करता हूँ; उस तत्परता और इच्छा के साथ बिलकुल नहीं, जिससे मैंने इस्राएल में अपना कार्य किया था। मैं अपने आप को तुम लोगों के बीच बोलने के लिए मज़बूर करते हुए अपने क्रोध को सहन कर रहा हूँ। यदि यह मेरे बृहत्तर कार्य के लिए नहीं होता, तो मैं इस तरह के भुनगों के सतत दृश्य को कैसे सहन कर सकता था? यदि यह मेरे नाम के वास्ते नहीं होता, तो मैंने बहुत पहले ही उच्चतम ऊँचाइयों पर आरोहण कर लिया होता और इन भुनगों को इनके गोबर के ढेर के साथ ही पूरी तरह से भस्म कर दिया होता! यदि यह मेरी महिमा के वास्ते नहीं होता, तो मैं कैसे अपनी आँखों के सामने इन दुष्ट राक्षसों को अपने सिर मसखरों की तरह हिलाते हुए खुलेआम अपना विरोध करने दे सकता था? यदि यह थोड़ी-सी भी बाधा के बिना अपना कार्य निर्विघ्न रूप से करवाने के लिए नहीं होता, तो मैं कैसे इन भुनगे-जैसे लोगों को बेहूदगी से मुझे दुर्वचन कहने दे सकता था? यदि इस्राएल के किसी गाँव में एक सौ लोग इस तरह से मेरा विरोध करने के लिए उठ खड़े होते, तो भले ही उन्होंने मेरे लिए भेंटें दी होतीं, मैं फिर भी उन्हें अन्य शहरों के लोगों को कभी भी दोबारा विद्रोह करने से रोकने के लिए जमीन की दरारों में डालकर मिटा देता। मैं एक सर्वभक्षी अग्नि हूँ और मैं अपमान बरदाश्त नहीं करता। क्योंकि सभी मानव मेरे द्वारा बनाए गए थे, इसलिए मैं जो कुछ कहता और करता हूँ, उन्हें उसका पालन करना चाहिए और वे विद्रोह नहीं कर सकते। लोगों को मेरे कार्य में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, और वे इस बात का विश्लेषण करने के योग्य तो बिलकुल नहीं हैं कि मेरे कार्य और मेरे वचनों में क्या सही या ग़लत है। मैं सृष्टि का प्रभु हूँ, और सृजित प्राणियों को मेरे प्रति श्रद्धापूर्ण हृदय के साथ वह सब-कुछ प्राप्त करना चाहिए, जिसकी मुझे आवश्यकता है; उन्हें मेरे साथ बहस नहीं करनी चाहिए, और विशेष रूप से उन्हें मेरा विरोध नहीं करना चाहिए। मैं अपने अधिकार के साथ अपने लोगों पर शासन करता हूँ, और वे सभी लोग जो मेरी सृष्टि का हिस्सा हैं, उन्हें मेरे अधिकार के प्रति समर्पण करना चाहिए। यद्यपि आज तुम लोग मेरे सामने दबंग और धृष्ट हो, यद्यपि तुम उन वचनों की अवज्ञा करते हो जिनसे मैं तुम लोगों को शिक्षा देता हूँ, और कोई डर नहीं मानते, फिर भी मैं तुम लोगों की विद्रोहशीलता का केवल सहिष्णुता से सामना करता हूँ; मैं अपना आपा नहीं खोऊँगा और अपने कार्य को इसलिए प्रभावित नहीं करूँगा, क्योंकि छोटे, तुच्छ भुनगों ने गोबर के ढेर में गंदगी मचा दी है। मैं अपने पिता की इच्छा के वास्ते हर उस चीज़ के अविरत अस्तित्व को सहता हूँ जिससे मैं घृणा करता हूँ, और उन सभी चीज़ों को बरदाश्त करता हूँ, जिनसे मैं नफ़रत करता हूँ, और मैं अपने कथन पूरे होने तक, अपने अंतिम क्षण तक ऐसा करूँगा। चिंता मत करो! मैं किसी अनाम भुनगे के स्तर तक नहीं गिर सकता, और मैं अपने कौशल की मात्रा की तुम्हारे साथ तुलना नहीं करूँगा। मैं तुमसे घृणा करता हूँ, किंतु मैं सहने में सक्षम हूँ। तुम मेरी अवज्ञा करते हो, किंतु तुम उस दिन से नहीं बच सकते, जब मैं तुम्हारी ताड़ना करूँगा, जिसका मेरे पिता ने मुझसे वादा किया है। क्या एक सृजित भुनगा सृष्टि के प्रभु से तुलना कर सकता है? शरद ऋतु में झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौट जाते हैं; तुम अपने "पिता" के घर लौट जाओगे, और मैं अपने पिता के पास लौट जाऊँगा। मेरे साथ मेरे पिता का कोमल स्नेह होगा, और तुम अपने पिता के द्वारा कुचले जाओगे। मेरे पास मेरे पिता की महिमा होगी, और तुम्हारे पास तुम्हारे पिता की शर्मिंदगी होगी। मैं उस ताड़ना का उपयोग करूँगा, जिसे मैंने तुम्हारा साथ देने के लिए लंबे समय से रोककर रखा है, और तुम अपनी दुर्गंधयुक्त देह से, जो हज़ारों साल से भ्रष्ट हो चुकी है, मेरी ताड़ना को भुगतोगे। मैंने सहिष्णुता के साथ तुममें वचनों के अपने कार्य का समापन कर लिया होगा, और तुम मेरे वचनों से विपदा भोगने की भूमिका निभाना शुरू करोगे। मैं इस्राएल में बहुत आनंदित होऊँगा और कार्य करूँगा; तुम रोओगे और अपने दाँत पीसोगे और कीचड़ में जीते और मरते रहोगे। मैं अपना मूल स्वरूप पुनः प्राप्त कर लूँगा और तुम्हारे साथ अब और गंदगी में नहीं रहूँगा, जबकि तुम अपनी मूल कुरूपता को पुनः प्राप्त कर लोगे और गोबर के ढेर के इर्द-गिर्द बिल बनाते रहोगे। जब मेरा कार्य और वचन पूरे हो जाएँगे, तो वह मेरे लिए खुशी का दिन होगा। जब तुम्हारा प्रतिरोध और विद्रोहशीलता पूरे हो जाएँगे, तो वह तुम्हारे लिए रोने का दिन होगा। मैं तुमसे सहानुभूति नहीं रखूँगा, और तुम मुझे पुनः कभी नहीं देखोगे। मैं तुम्हारे साथ और अधिक संवाद में संलग्न नहीं होऊँगा, और तुम्हारा मुझसे कभी सामना नहीं होगा। मैं तुम्हारी विद्रोहशीलता से नफ़रत करूँगा, और तुम्हें मेरी मनोरमता याद आएगी। मैं तुम पर प्रहार करूँगा, और तुम मेरे लिए विलाप करोगे। मैं ख़ुशी से तुमसे विदाई लूँगा, और तुम्हे मेरे प्रति अपने कर्ज़ के बारे में पता चलेगा। मैं तुम्हें फिर कभी नहीं देखूँगा, लेकिन तुम हमेशा मुझे देखने की आशा करोगे। मैं तुमसे नफ़रत करूँगा क्योंकि तुम वर्तमान में मेरा विरोध करते हो, और तुम्हें मेरी याद आएगी क्योंकि मैं वर्तमान में तुम्हें ताड़ना देता हूँ। मैं तुम्हारे साथ रहने का इच्छुक नहीं होऊँगा, लेकिन तुम इसके लिए बुरी तरह लालायित रहोगे और अनंत काल तक रोओगे, क्योंकि तुम्हें उस सबके लिए पछतावा होगा, जो तुमने मेरे साथ किया है। तुम्हें अपनी विद्रोहशीलता और अपने प्रतिरोध के लिए ग्लानि होगी, यहाँ तक कि तुम पछतावे में औंधे मुँह ज़मीन पर लेट जाओगे, और मेरे सामने गिर जाओगे और पुनः मेरी अवज्ञा नहीं करने की कसम खाओगे। हालाँकि, अपने हृदय में तुम केवल मुझे प्यार करोगे, मगर तुम कभी भी मेरी आवाज नहीं सुन पाओगे। मैं तुम्हें तुमसे ही शर्मिंदा करवाऊँगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, तो तुम्हें अपनी की हुई सभी बुराइयों पर पछतावा होगा

667. अब मैं तुम्हारी अनुरक्त देह को देख रहा हूँ जो मुझे विचलित कर देगी, और मेरे पास तुम्हारे लिए केवल एक छोटी-सी चेतावनी है, हालाँकि मैं ताड़ना से तुम्हारी "सेवा" नहीं करूँगा। तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम मेरे कार्य में क्या भूमिका निभाते हो, और तब मैं संतुष्ट रहूँगा। इससे परे के मामलों में, यदि तुम मेरा विरोध करते हो या मेरे पैसे खर्च करते हो, या मुझ यहोवा के लिए चढ़ाई गई भेंटें खा जाते हो, या तुम भुनगे एक-दूसरे को काटते हो, या तुम कुत्ते-जैसे प्राणी आपस में संघर्ष या एक-दूसरे का अतिक्रमण करते हो—तो मेरी इनमें से किसी में भी दिलचस्पी नहीं है। तुम लोगों को केवल इतना ही जानने की आवश्यकता है कि तुम लोग किस प्रकार की चीजें हो, और मैं संतुष्ट हो जाऊँगा। इस सबके अलावा, यदि तुम लोग एक-दूसरे पर हथियार तानना चाहते हो या शब्दों से एक-दूसरे के साथ लड़ना चाहते हो, तो ठीक है; ऐसी चीजों में हस्तक्षेप करने की मेरी कोई इच्छा नहीं है, और मैं मनुष्य के मामलों में बिलकुल भी शामिल नहीं होता। ऐसा नहीं है कि मैं तुम लोगों के बीच के संघर्षों की परवाह नहीं करता; बल्कि ऐसा है कि मैं तुम लोगों में से एक नहीं हूँ, और इसलिए मैं उन मामलों में भाग नहीं लेता, जो तुम लोगों के बीच होते हैं। मैं स्वयं एक सृजित प्राणी नहीं हूँ और दुनिया का नहीं हूँ, इसलिए मैं लोगों के हलचल भरे जीवन से और उनके बीच गंदे, अनुचित संबंधों से घृणा करता हूँ। मैं विशेष रूप से कोलाहलपूर्ण भीड़ से घृणा करता हूँ। हालाँकि, मुझे प्रत्येक सृजित प्राणी के हृदय की अशुद्धियों की गहरी जानकारी है, और तुम लोगों को सृजित करने से पहले से ही मैं मानव-हृदय में गहराई से विद्यमान अधार्मिकता को जानता था, और मुझे मानव-हृदय के सभी धोखों और कुटिलता की जानकारी थी। इसलिए, भले ही जब लोग अधार्मिक कार्य करते हैं, तब उसका बिलकुल भी कोई निशान दिखाई न देता हो, किंतु मुझे तब भी पता चल जाता है कि तुम लोगों के हृदयों में समाई अधार्मिकता उन सभी चीजों की प्रचुरता को पार कर जाती है, जो मैंने बनाई हैं। तुम लोगों में से हर एक अधिकता के शिखर तक उठ चुका है; तुम लोग बहुतायत के पितरों के रूप में आरोहण कर चुके हो। तुम लोग अत्यंत स्वेच्छाचारी हो, और आराम के स्थान की तलाश करते हुए और अपने से छोटे भुनगों को निगलने का प्रयास करते हुए उन सभी भुनगों के बीच पगलाकर दौड़ते हो। अपने हृदयों में तुम लोग द्वेषपूर्ण और कुटिल हो, और समुद्र-तल में डूबे हुए भूतों को भी पीछे छोड़ चुके हो। तुम गोबर की तली में रहते हो और ऊपर से नीचे तक भुनगों को तब तक परेशान करते हो, जब तक कि वे बिलकुल अशांत न हो जाएँ, और थोड़ी देर एक-दूसरे से लड़ने-झगड़ने के बाद शांत होते हो। तुम लोगों को अपनी जगह का पता नहीं है, फिर भी तुम लोग गोबर में एक-दूसरे के साथ लड़ाई करते हो। इस तरह की लड़ाई से तुम क्या हासिल कर सकते हो? यदि तुम लोगों के हृदय में वास्तव में मेरे लिए आदर होता, तो तुम लोग मेरी पीठ पीछे एक-दूसरे के साथ कैसे लड़ सकते थे? तुम्हारी हैसियत कितनी भी ऊँची क्यों न हो, क्या तुम फिर भी गोबर में एक बदबूदार छोटा-सा कीड़ा ही नहीं हो? क्या तुम पंख उगाकर आकाश में उड़ने वाला कबूतर बन पाओगे? बदबूदार छोटे कीड़ो, तुम लोग मुझ यहोवा की वेदी के चढ़ावे चुराते हो; ऐसा करके क्या तुम लोग अपनी बरबाद, असफल प्रतिष्ठा बचा सकते हो और इस्राएल के चुने हुए लोग बन सकते हो? तुम लोग बेशर्म कमीने हो! वेदी पर वे भेंटें लोगों द्वारा अपनी उन उदार भावनाओं की अभिव्यक्ति के रूप में मुझे चढ़ाई गई थीं, जिनसे वे मेरा आदर करते हैं। वे मेरे नियंत्रण और मेरे उपयोग के लिए होती हैं, तो लोगों द्वारा मुझे दिए गए छोटे जंगली कबूतर संभवतः तुम मुझसे कैसे लूट सकते हो? क्या तुम एक यहूदा बनने से नहीं डरते? क्या तुम इस बात से नहीं डरते कि तेरी भूमि रक्त का मैदान बन सकती है? बेशर्म चीज़! क्या तुम्हें लगता है कि लोगों द्वारा चढ़ाए गए जंगली कबूतर तुम भुनगों का पेट भरने के लिए हैं? मैंने तुम्हें जो दिया है, वह वही है जिससे मैं संतुष्ट हूँ और तुम्हें देने का इच्छुक हूँ; मैंने तुम्हें जो नहीं दिया है, वह मेरी इच्छा पर है। तुम बस मेरे चढ़ावे चुरा नहीं सकते। वह एक, जो कार्य करता है, वह मैं, यहोवा—सृष्टि का प्रभु—हूँ, और लोग मेरी वजह से भेंटें चढ़ाते हैं। क्या तुम्हे लगता है कि तुम जो दौड़-भाग करते हो, यह उसकी भरपाई है? तुम सच में बेशर्म हो! तुम किसके लिए दौड़-भाग करते हो? क्या यह तुम्हारे अपने लिए नहीं है? तुम मेरी भेंटें क्यों चुराते हो? तुम मेरे बटुए में से पैसे क्यों चुराते हो? क्या तुम यहूदा इस्करियोती के बेटे नहीं हो? मुझ यहोवा को चढ़ाई गई भेंटें याजकों द्वारा उपभोग किए जाने के लिए हैं। क्या तुम याजक हो? तुम मेरी भेंटें दंभ के साथ खाने की हिम्मत करते हो, यहाँ तक कि उन्हें मेज पर छोड़ देते हो; तुम किसी लायक नहीं हो! नालायक कमीने! मुझ यहोवा की आग तुम्हें भस्म कर देगी!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, तो तुम्हें अपनी की हुई सभी बुराइयों पर पछतावा होगा

668. मैंने इस तरह से तुम लोगों के बीच कार्य किया और बात की है, मैंने बहुत सारी ऊर्जा व्यय की और प्रयास किए हैं, फिर भी तुम लोगों ने कब वह सुना है, जो मैं तुम लोगों से सीधे तौर पर कहता हूँ? तुम लोग कहाँ मुझ सर्वशक्तिमान के सामने झुके हो? तुम लोग मुझसे ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं? क्यों जो तुम लोग कहते और करते हो, वह मेरा क्रोध भड़काता है? तुम्हारे हृदय इतने कठोर क्यों हैं? क्या मैंने कभी भी तुम्हें मार गिराया है? क्यों तुम लोग मुझे दुःखी और चिंतित करने के अलावा और कुछ नहीं करते? क्या तुम लोग अपने ऊपर मेरे, यहोवा के, कोप के दिन के आने की प्रतीक्षा में हो? क्या तुम लोग प्रतीक्षा कर रहे हो कि मैं तुम्हारी अवज्ञा से भड़का क्रोध भेजूँ? क्या मैं जो कुछ करता हूँ, वह तुम लोगों के लिए नहीं है? फिर भी तुम लोगों ने सदैव मुझ यहोवा के साथ ऐसा व्यवहार किया है : मेरे बलिदान को चुराना, मेरे घर की वेदी के चढ़ावों को भेड़ियों की माँद में ले जाकर शावकों और शावकों के शावकों को खिलाना; लोग मुझ सर्वशक्तिमान के वचनों को मलमूत्र के समान गंदा करने के लिए पाखाने में उछालते हुए एक दूसरे से लड़ाई करते हैं, गुस्से से घूरते हुए तलवारों और भालों के साथ एक दूसरे का सामना करते हैं। तुम लोगों की ईमानदारी कहाँ है? तुम लोगों की मानवता पाशविकता बन गई है! तुम लोगों के हृदय बहुत पहले पत्थरों में बदल गए हैं। क्या तुम लोग नहीं जानते हो कि जब मेरे कोप का दिन आएगा, तब मुझ सर्वशक्तिमान के विरुद्ध आज की गई तुम लोगों की दुष्टता का मैं न्याय करूँगा? क्या तुम लोगों को लगता है कि मुझे इस प्रकार से बेवकूफ़ बनाकर, मेरे वचनों को कीचड़ में फेंककर और उन पर ध्यान न देकर—क्या तुम लोगों को लगता है कि मेरी पीठ पीछे ऐसा करके तुम लोग मेरी कुपित नज़रों से बच सकते हो? क्या तुम लोग नहीं जानते कि जब तुम लोगों ने मेरे बलिदानों को चुराया और मेरी चीज़ों के लिए लालायित हुए, तभी तुम लोग मुझ यहोवा की आँखों द्वारा पहले ही देखे जा चुके थे? क्या तुम लोग नहीं जानते कि जब तुम लोगों ने मेरे बलिदान चुराए, तो यह उस वेदी के सामने किया, जिस पर बलिदान चढ़ाए जाते हैं? तुमने कैसे मान लिया कि तुम इतने चालाक हो कि मुझे इस तरह से धोखा दे सकोगे? तुम लोगों की बुरी करतूतें मेरे प्रकोप से कैसे बच सकती हैं? मेरा प्रचंड क्रोध कैसे तुम लोगों के बुरे कामों को नज़रंदाज़ कर सकता है? आज तुम लोग जो बुराई करते हो, वह तुम लोगों के लिए कोई बचने का मार्ग नहीं खोलती, बल्कि तुम्हारे कल के लिए ताड़ना इकट्ठी करती है; यह तुम लोगों के प्रति मुझ सर्वशक्तिमान की ताड़ना को भड़काती है। कैसे तुम लोगों की बुरी करतूतें और बुरे वचन मेरी ताड़ना से बच सकते हैं? कैसे तुम लोगों की प्रार्थनाएँ मेरे कानों तक पहुँच सकती हैं? कैसे मैं तुम लोगों को अधार्मिकता से बचाने का मार्ग खोल सकता हूँ? मैं कैसे अपनी अवहेलना करने में तुम लोगों की बुरी करतूतों को जाने दे सकता हूँ? ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं तुम लोगों की ज़ुबानें काटकर अलग न कर दूँ, जो साँप के समान ज़हरीली हैं? तुम लोग मुझे अपनी धार्मिकता के वास्ते नहीं पुकारते, बल्कि इसके बजाय अपनी अधार्मिकता के परिणामस्वरूप मेरा कोप संचित करते हो। मैं तुम लोगों को कैसे क्षमा कर सकता हूँ? मेरी, सर्वशक्तिमान की नज़रों में, तुम लोगों के वचन और कार्य दोनों ही गंदे हैं। मेरी, सर्वशक्तिमान की नज़रें, तुम लोगों की अधार्मिकता को एक निर्मम ताड़ना के रूप में देखती हैं। कैसे मेरी धार्मिक ताड़ना और न्याय तुम लोगों से दूर जा सकती है? क्योंकि तुम लोग मेरे साथ ऐसा करते हो, मुझे दुःखी और कुपित करते हो, तो मैं कैसे तुम लोगों को अपने हाथों से बचकर जाने दे सकता हूँ और उस दिन से दूर होने दे सकता हूँ जब मैं, यहोवा तुम लोगों को ताड़ना और शाप दूँगा? क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों के सभी बुरे वचन और कथन पहले ही मेरे कानों तक पहुँच चुके हैं? क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों की अधार्मिकता ने पहले ही मेरी धार्मिकता के पवित्र लबादे को गंदा कर दिया है? क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों की अवज्ञा ने पहले से ही मेरे उग्र क्रोध को भड़का दिया है? क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों ने बहुत पहले से ही मुझे अति कुपित कर रखा है और बहुत समय पहले ही मेरे धैर्य को आज़मा चुके हो? क्या तुम नहीं जानते कि तुम लोग मेरी देह के टुकड़े करके उसे पहले ही नष्ट कर चुके हो? मैंने अब तक इतना सहा है कि मैं तुम लोगों के प्रति अब और सहिष्णु नहीं होता और अपना क्रोध प्रकट करता हूँ। क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों की बुरी करतूतें पहले ही मेरी आँखों के सामने आ गई हैं कि मेरी पुकार मेरे पिता के कानों तक पहले ही पहुँच चुकी हैं? वह कैसे तुम लोगों को मेरे साथ ऐसा व्यवहार करने दे सकता है? क्या मैं तुम लोगों में जो भी कार्य करता हूँ, वह तुम लोगों के वास्ते नहीं है? फिर भी तुम लोगों में से कौन मेरे, यहोवा के, कार्य को अधिक प्रेम करने लगा है? क्या मैं अपने पिता की इच्छा के प्रति विश्वासघाती हो सकता हूँ क्योंकि मैं कमज़ोर हूँ और क्योंकि मैंने पीड़ा सही है? क्या तुम लोग मेरे हृदय को नहीं समझते? मैं तुम लोगों से उसी तरह बोलता हूँ जैसे यहोवा बोलता था; क्या मैंने तुम लोगों के लिए काफ़ी कुछ नहीं त्यागा है? भले ही मैं अपने पिता के कार्य के वास्ते ये सभी कष्ट सहने को तैयार हूँ, फिर भी तुम लोग उस ताड़ना से कैसे मुक्त हो सकते हो, जिसे मैं अपने कष्टों के परिणामस्वरूप तुम्हें दूँगा? क्या तुम लोगों ने मेरा बहुत आनंद नहीं लिया है? आज, मैं अपने परमपिता द्वारा तुम को प्रदान किया गया हूँ; क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोग मेरे उदार वचनों से कहीं अधिक का आनंद लेते हो? क्या तुम लोग नहीं जानते कि मेरा जीवन तुम लोगों के जीवन और जिन चीजों का तुम आनंद लेते हो उनके बदले दिया गया था? क्या तुम लोग नहीं जानते कि मेरे पिता ने शैतान के साथ युद्ध के लिए मेरे जीवन का उपयोग किया और कि उसने मेरा जीवन तुम लोगों को प्रदान किया है, जिससे तुम लोगों को सौ गुना प्राप्त हो और तुम लोग कितने ही प्रलोभनों से बचने में सक्षम हो? क्या तुम लोग नहीं जानते कि यह केवल मेरे कार्य के माध्यम से ही है कि तुम लोगों को कई प्रलोभनों और कई उग्र ताड़नाओं से छूट दी गई है? क्या तुम लोग नहीं जानते कि यह केवल मेरे ही कारण है कि मेरे पिता ने तुम लोगों को अभी तक आनंद लेने दिया है? आज तुम लोग कैसे इतने कठोर और ज़िद्दी बने रह सकते हो, इतना कि जैसे तुम्हारे हृदयों के ऊपर घट्टे उग आए हों? वह दुष्टता जो तुम आज करते हो, कैसे उस कोप के दिन से बच सकती है, जो पृथ्वी से मेरे जाने के बाद आएगा? कैसे मैं उन कठोर और ज़िद्दी लोगों को यहोवा के क्रोध से बचने दे सकता हूँ?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कोई भी जो देह में है, कोप के दिन से नहीं बच सकता

669. अतीत के बारे में सोचो : कब तुम लोगों के प्रति मेरी दृष्टि क्रोधित, और मेरी आवाज़ कठोर हुई है? मैंने कब तुम लोगों में मीनमेख निकाली है? मैंने कब तुम लोगों को बेवजह प्रताड़ित किया है? मैंने कब तुम लोगों को तुम्हारे मुँह पर डाँटा है? क्या यह मेरे कार्य के वास्ते नहीं है कि मैं तुम लोगों को हर प्रलोभन से बचाने के लिए अपने परमपिता को पुकारता हूँ? तुम लोग मेरे साथ इस प्रकार का व्यवहार क्यों करते हो? क्या मैंने कभी भी अपने अधिकार का उपयोग तुम लोगों की देह को मार गिराने के लिए किया है? तुम लोग मुझे इस प्रकार का प्रतिफल क्यों दे रहे हो? मेरे प्रति कभी हाँ और कभी ना करने के बाद, तुम लोग न हाँ में हो और न ही ना में, और फिर तुम मुझे मनाने और मुझसे बातें छिपाने का प्रयास करते हो और तुम लोगों के मुँह अधार्मिकता के थूक से भरे हुए हैं? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम लोगों की ज़ुबानें मेरे आत्मा को धोखा दे सकती हैं? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम लोगों की ज़ुबानें मेरे कोप से बच सकती हैं? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम लोगों की ज़ुबानें मुझ यहोवा के कार्यों की, जैसी चाहे वैसी आलोचना कर सकती हैं? क्या मैं ऐसा परमेश्वर हूँ, जिसके बारे में मनुष्य आलोचना कर सकता है? क्या मैं छोटे से भुनगे को इस प्रकार अपनी ईशनिंदा करने दे सकता हूँ? मैं ऐसे अवज्ञाकारिता के पुत्रों को कैसे अपने अनंत आशीषों के बीच रख सकता हूँ? तुम लोगों के वचनों और कार्यों ने तुम लोगों को काफी समय तक उजागर और निंदित किया है। जब मैंने स्वर्ग का विस्तार किया और सभी चीज़ों का सृजन किया, तो मैंने किसी भी प्राणी को उसके मन मुताबिक़ भाग लेने की अनुमति नहीं दी, किसी भी चीज़ को उसके हिसाब से मेरे कार्य और मेरे प्रबंधन में गड़बड़ करने की अनुमति तो बिल्कुल नहीं दी। मैंने किसी भी मनुष्य या वस्तु को सहन नहीं किया; मैं कैसे उन लोगों को छोड़ सकता हूँ, जो मेरे प्रति निर्दयी और क्रूर और अमानवीय हैं? मैं कैसे उन लोगों को क्षमा कर सकता हूँ, जो मेरे वचनों के ख़िलाफ़ विद्रोह करते हैं? मैं कैसे उन्हें छोड़ सकता हूँ, जो मेरी अवज्ञा करते हैं? क्या मनुष्य की नियति मुझ सर्वशक्तिमान के हाथों में नहीं है? मैं कैसे तुम्हारी अधार्मिकता और अवज्ञा को पवित्र मान सकता हूँ? तुम्हारे पाप मेरी पवित्रता को कैसे मैला कर सकते हैं? मैं अधर्मी की अशुद्धता से दूषित नहीं होता, न ही मैं अधर्मियों के चढ़ावों का आनंद लेता हूँ। यदि तुम मुझ यहोवा के प्रति वफादार होते, तो क्या तुम मेरी वेदी से बलिदानों को अपने लिए ले सकते थे? क्या तुम मेरे पवित्र नाम की ईशनिंदा के लिए अपनी विषैली ज़ुबान का उपयोग कर सकते थे? क्या तुम इस प्रकार मेरे वचनों के विरुद्ध विद्रोह कर सकते थे? क्या तुम मेरी महिमा और पवित्र नाम को, एक दुष्ट, शैतान की सेवा के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग कर सकते थे? मेरा जीवन पवित्र लोगों के आनंद के लिए प्रदान किया जाता है। मैं तुम्हें कैसे अपने जीवन के साथ तुम्हारी इच्छानुसार खेलने और तुम लोगों के बीच के संघर्ष में इसे एक उपकरण के रूप में उपयोग करने की इजाज़त दे सकता हूँ? तुम लोग अच्छाई के मार्ग में इतने निर्दयी और इतने अभावग्रस्त कैसे हो सकते हो, जैसे तुम मेरे प्रति हो? क्या तुम लोग नहीं जानते कि मैंने पहले ही तुम लोगों की बुरी करतूतों को जीवन के इन वचनों में लिख दिया है? जब मैं मिस्र को ताड़ना देता हूँ, तब तुम लोग कोप के दिन से कैसे बच सकते हो? कैसे तुम लोगों को इस तरह बार-बार अपना विरोध और अनादर करने की अनुमति दे सकता हूँ? मैं तुम लोगों को सीधे तौर पर कहता हूँ कि जब वह दिन आएगा, तो तुम लोगों की ताड़ना मिस्र की ताड़ना की अपेक्षा अधिक असहनीय होगी! तुम लोग कैसे मेरे कोप के दिन से बच सकते हो? मैं तुम लोगों से सत्य कहता हूँ: मेरी सहनशीलता तुम लोगों की बुरी करतूतों के लिए तैयार की गई थी और उस दिन तुम लोगों की ताड़ना के लिए मौजूद है। एक बार जब मेरी सहनशीलता चुक गई, तो क्या तुम लोग वह नहीं होगे जो कुपित न्याय भुगतेंगे? क्या सभी चीज़ें मुझ सर्वशक्तिमान के हाथों में नहीं हैं? मैं कैसे इस प्रकार स्वर्ग के नीचे तुम लोगों को अपनी अवज्ञा की अनुमति दे सकता हूँ? तुम लोगों का जीवन अत्यंत कठोर होगा क्योंकि तुम मसीहा से मिल चुके हो, जिसके बारे में कहा गया था कि वह आएगा, फिर भी जो कभी नहीं आया। क्या तुम लोग उसके शत्रु नहीं हो? यीशु तुम लोगों का मित्र रहा है, फिर भी तुम लोग मसीहा के शत्रु हो। क्या तुम लोग नहीं जानते कि यद्यपि तुम लोग यीशु के मित्र हो, पर तुम लोगों की बुरी करतूतों ने उन लोगों के पात्रों को भर दिया है, जो घृणा योग्य हैं? यद्यपि तुम लोग यहोवा के बहुत करीबी हो, पर क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों के बुरे वचन यहोवा के कानों तक पहुँच गए हैं और उन्होंने उसके क्रोध को भड़का दिया है? वह तुम्हारा करीबी कैसे हो सकता है, और वह कैसे तुम्हारे उन पात्रों को नहीं जला सकता, जो बुरी करतूतों से भरे हुए हैं? कैसे वह तुम्हारा शत्रु नहीं हो सकता?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कोई भी जो देह में है, कोप के दिन से नहीं बच सकता

670. तुम सभी शानदार कुर्सियों पर बैठते हो और युवा पीढ़ी के अपनी किस्म के लोगों को अपने पास बैठाकर भाषण देते हो। तुम लोग नहीं जानते कि तुम्हारे इन "वंशजों" की साँस बहुत पहले ही उखड़ चुकी है और वे मेरा कार्य खो चुके हैं। मेरी महिमा पूरब की भूमि से लेकर पश्चिम की भूमि तक चमकती है, लेकिन जब वह पृथ्वी के छोर तक फैलकर, उठने और चमकने लगेगी, तो मैं उसे पूरब से हटाकर पश्चिम में ले आऊँगा, ताकि तब से अँधेरे के लोग, जिन्होंने पूरब में मुझे त्याग दिया है, प्रकाश से वंचित हो जाएँ। जब ऐसा होगा, तब तुम लोग परछाई की घाटी में रहोगे। भले ही आज के लोग पहले से सौ गुना बेहतर हों, फिर भी वे मेरी अपेक्षाएँ पूरी नहीं कर सकते, और वे अभी भी मेरी महिमा के गवाह नहीं हैं। यह जो तुम लोग पहले से सौ गुना बेहतर हो पाए हो, यह पूरी तरह से मेरे कार्य का परिणाम है; यह पृथ्वी पर मेरे कार्य का फल है। लेकिन मुझे फिर भी तुम लोगों के वचनों और कर्मों के साथ-साथ तुम्हारे चरित्र से घृणा महसूस होती है, और जिस तरह से तुम मेरे सामने कार्य करते हो, उसके प्रति मुझे अत्यधिक आक्रोश महसूस होता है, क्योंकि तुम्हें मेरे बारे में कोई समझ नहीं है। तो फिर तुम मेरी महिमा को कैसे जी सकते हो, और मेरे भविष्य के कार्य के प्रति पूरी तरह से कैसे निष्ठावान रह सकते हो? तुम लोगों का विश्वास बहुत सुंदर है; तुम्हारा कहना है कि तुम अपना सारा जीवन-काल मेरे कार्य के लिए खपाने को तैयार हो, और तुम इसके लिए अपने प्राणों का बलिदान करने को तैयार हो, लेकिन तुम्हारे स्वभाव में अधिक बदलाव नहीं आया है। तुम लोग बस हेकड़ी से बोलते हो, बावजूद इस तथ्य के कि तुम्हारा वास्तविक व्यवहार बहुत घिनौना है। यह ऐसा है जैसे कि लोगों की जीभ और होंठ तो स्वर्ग में हों, लेकिन उनके पैर बहुत नीचे पृथ्वी पर हों, परिणामस्वरूप उनके वचन और कर्म तथा उनकी प्रतिष्ठा अभी भी चिथड़ा-चिथड़ा और विध्वस्त हैं। तुम लोगों की प्रतिष्ठा नष्ट हो गई है, तुम्हारा ढंग खराब है, तुम्हारे बोलने का तरीका निम्न कोटि का है, तुम्हारा जीवन घृणित है; यहाँ तक कि तुम्हारी सारी मनुष्यता डूबकर नीच अधमता में पहुँच गई है। तुम दूसरों के प्रति संकीर्ण सोच रखते हो और छोटी-छोटी बात पर बखेड़ा करते हो। तुम अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत को लेकर इस हद तक झगड़ते हो कि नरक और आग की झील में उतरने तक को तैयार रहते हो। तुम लोगों के वर्तमान वचन और कर्म मेरे लिए यह तय करने के लिए काफी हैं कि तुम लोग पापी हो। मेरे कार्य के प्रति तुम लोगों का रवैया मेरे लिए यह तय करने के लिए काफी है कि तुम लोग अधर्मी हो, और तुम लोगों के समस्त स्वभाव यह इंगित करने के लिए पर्याप्त हैं कि तुम लोग घृणित आत्माएँ हो, जो गंदगी से भरी हैं। तुम लोगों की अभिव्यक्तियाँ और जो कुछ भी तुम प्रकट करते हो, वह यह कहने के लिए पर्याप्त हैं कि तुम वे लोग हो, जिन्होंने अशुद्ध आत्माओं का पेट भरकर रक्त पी लिया है। जब राज्य में प्रवेश करने का जिक्र होता है, तो तुम लोग अपनी भावनाएँ जाहिर नहीं करते। क्या तुम लोग मानते हो कि तुम्हारा मौजूदा ढंग तुम्हें मेरे स्वर्ग के राज्य के द्वार में प्रवेश कराने के लिए पर्याप्त है? क्या तुम लोग मानते हो कि तुम मेरे कार्य और वचनों की पवित्र भूमि में प्रवेश पा सकते हो, इससे पहले कि मैं तुम लोगों के वचनों और कर्मों का परीक्षण करूँ? कौन है, जो मेरी आँखों में धूल झोंक सकता है? तुम लोगों का घृणित, नीच व्यवहार और बातचीत मेरी दृष्टि से कैसे छिपे रह सकते हैं? तुम लोगों के जीवन मेरे द्वारा उन अशुद्ध आत्माओं का रक्त और मांस पीने और खाने वालों के जीवन के रूप में तय किए गए हैं, क्योंकि तुम लोग रोज़ाना मेरे सामने उनका अनुकरण करते हो। मेरे सामने तुम्हारा व्यवहार विशेष रूप से ख़राब रहा है, तो मैं तुम्हें घृणित कैसे न समझता? तुम्हारे शब्दों में अशुद्ध आत्माओं की अपवित्रताएँ है : तुम फुसलाते हो, भेद छिपाते हो चापलूसी करते हो, ठीक उन लोगों की तरह जो टोने-टोटकों में संलग्न रहते हैं और उनकी तरह भी जो विश्वासघाती हैं और अधर्मियों का खून पीते हैं। मनुष्य के समस्त भाव बेहद अधार्मिक हैं, तो फिर सभी लोगों को पवित्र भूमि में कैसे रखा जा सकता है, जहाँ धर्मी रहते हैं? क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारा यह घिनौना व्यवहार तुम्हें उन अधर्मी लोगों की तुलना में पवित्र होने की पहचान दिला सकता है? तुम्हारी साँप जैसी जीभ अंततः तुम्हारी इस देह का नाश कर देगी, जो तबाही बरपाती है और घृणा ढोती है, और तुम्हारे वे हाथ भी, जो अशुद्ध आत्माओं के रक्त से सने हैं, अंततः तुम्हारी आत्मा को नरक में खींच लेंगे। तो फिर तुम मैल से सने अपने हाथों को साफ़ करने का यह मौका क्यों नहीं लपकते? और तुम अधर्मी शब्द बोलने वाली अपनी इस जीभ को काटकर फेंकने के लिए इस अवसर का लाभ क्यों नहीं उठाते? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम अपने हाथों, जीभ और होंठों के लिए नरक की आग में जलने के लिए तैयार हो? मैं अपनी दोनों आँखों से हरेक व्यक्ति के दिल पर नज़र रखता हूँ, क्योंकि मानव-जाति के निर्माण से बहुत पहले मैंने उनके दिलों को अपने हाथों में पकड़ा था। मैंने बहुत पहले लोगों के दिलों के भीतर झाँककर देख लिया था, इसलिए उनके विचार मेरी दृष्टि से कैसे बच सकते थे? मेरे आत्मा द्वारा जलाए जाने से बचने में उन्हें ज्यादा देर कैसे नहीं हो सकती थी?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम सभी कितने नीच चरित्र के हो!

671. मैं तुम लोगों के बीच में रहा हूँ, कई वसंत और पतझड़ तुम्हारे साथ जुड़ा रहा हूँ; मैं लंबे समय तक तुम लोगों के बीच जीया हूँ, और तुम लोगों के साथ जीया हूँ। तुम लोगों का कितना घृणित व्यवहार मेरी आँखों के सामने से फिसला है? तुम्हारे वे हृदयस्पर्शी शब्द लगातार मेरे कानों में गूँजते हैं; तुम लोगों की हज़ारों-करोड़ों आकांक्षाएँ मेरी वेदी पर रखी गई हैं—इतनी ज्यादा कि उन्हें गिना भी नहीं जा सकता। लेकिन तुम लोगों का जो समर्पण है और जितना तुम अपने आपको खपाते हो, वह रंचमात्र भी नहीं है। मेरी वेदी पर तुम लोग ईमानदारी की एक नन्ही बूँद भी नहीं रखते। मुझ पर तुम लोगों के विश्वास के फल कहाँ हैं? तुम लोगों ने मुझसे अनंत अनुग्रह प्राप्त किया है और तुमने स्वर्ग के अनंत रहस्य देखे हैं; यहाँ तक कि मैंने तुम लोगों को स्वर्ग की लपटें भी दिखाई हैं, लेकिन तुम लोगों को जला देने को मेरा दिल नहीं माना। फिर भी, बदले में तुम लोगों ने मुझे कितना दिया है? तुम लोग मुझे कितना देने के लिए तैयार हो? जो भोजन मैंने तुम्हारे हाथ में दिया है, पलटकर उसी को तुम मुझे पेश कर देते हो, बल्कि यह कहते हो कि वह तुम्हें अपनी कड़ी मेहनत के पसीने के बदले मिला है और तुम अपना सर्वस्व मुझे अर्पित कर रहे हो। तुम यह कैसे नहीं जानते कि मेरे लिए तुम्हारा "योगदान" बस वे सभी चीज़ें हैं, जो मेरी ही वेदी से चुराई गई हैं? इतना ही नहीं, अब तुम वे चीज़ें मुझे चढ़ा रहे हो, क्या तुम मुझे धोखा नहीं दे रहे? तुम यह कैसे नहीं जान पाते कि आज जिन भेंटों का आनंद मैं उठा रहा हूँ, वे मेरी वेदी पर चढ़ाई गई सभी भेंटें हैं, न कि जो तुमने अपनी कड़ी मेहनत से कमाई हैं और फिर मुझे प्रदान की हैं। तुम लोग वास्तव में मुझे इस तरह धोखा देने की हिम्मत करते हो, इसलिए मैं तुम लोगों को कैसे माफ़ कर सकता हूँ? तुम लोग मुझसे इसे और सहने की अपेक्षा कैसे कर सकते हो? मैंने तुम लोगों को सब-कुछ दे दिया है। मैंने तुम लोगों के लिए सब-कुछ खोलकर रख दिया है, तुम्हारी ज़रूरतें पूरी की हैं, और तुम लोगों की आँखें खोली हैं, फिर भी तुम लोग अपनी अंतरात्मा की अनदेखी कर इस तरह मुझे धोखा देते हो। मैंने नि:स्वार्थ भाव से अपना सब-कुछ तुम लोगों पर न्योछावर कर दिया है, ताकि तुम लोग अगर पीड़ित भी होते हो, तो भी तुम लोगों को मुझसे वह सब मिल जाए, जो मैं स्वर्ग से लाया हूँ। इसके बावजूद तुम लोगों में बिलकुल भी समर्पण नहीं है, और अगर तुमने कोई छोटा-मोटा योगदान किया भी हो, तो बाद में तुम मुझसे उसका "हिसाब बराबर" करने की कोशिश करते हो। क्या तुम्हारा योगदान शून्य नहीं माना जाएगा? तुमने मुझे मात्र रेत का एक कण दिया है, जबकि माँगा एक टन सोना है। क्या तुम सर्वथा विवेकहीन नहीं बन रहे हो? मैं तुम लोगों के बीच काम करता हूँ। बदले में जो कुछ मुझे मिलना चाहिए, उसके दस प्रतिशत का भी कोई नामोनिशान नहीं है, अतिरिक्त बलिदानों की तो बात ही छोड़ दो। इसके अलावा, धर्मपरायण लोगों द्वारा दिए जाने वाले उस दस प्रतिशत को भी दुष्टों द्वारा छीन लिया जाता है। क्या तुम लोग मुझसे तितर-बितर नहीं हो गए हो? क्या तुम सब मेरे विरोधी नहीं हो? क्या तुम सब मेरी वेदी को नष्ट नहीं कर रहे हो? ऐसे लोगों को मेरी आँखें एक खज़ाने के रूप में कैसे देख सकती हैं? क्या वे सुअर और कुत्ते नहीं हैं, जिनसे मैं घृणा करता हूँ? मैं तुम लोगों के दुष्कर्मों को खज़ाना कैसे कह सकता हूँ? मेरा कार्य वास्तव में किसके लिए किया जाता है? क्या इसका प्रयोजन केवल मेरे द्वारा तुम लोगों को मार गिराकर अपना अधिकार प्रकट करना हो सकता है? क्या तुम लोगों के जीवन मेरे एक ही वचन पर नहीं टिके हैं? ऐसा क्यों है कि मैं तुम लोगों को निर्देश देने के लिए केवल वचनों का प्रयोग कर रहा हूँ, और मैंने जितनी जल्दी हो सके, तुम लोगों को मार गिराने के लिए अपने वचनों को तथ्यों में नहीं बदला है? क्या मेरे वचनों और कार्य का उद्देश्य केवल मानवजाति को समाप्त करना ही है? क्या मैं ऐसा परमेश्वर हूँ, जो अंधाधुंध निर्दोषों को मार डालता है? इस समय तुम लोगों में से कितने मानव-जीवन का सही मार्ग खोजने के लिए अपने पूर्ण अस्तित्व के साथ मेरे सामने आ रहे हैं? मेरे सामने केवल तुम लोगों के शरीर हैं, तुम्हारे दिल अभी भी स्वतंत्र और मुझसे बहुत, बहुत दूर हैं। चूँकि तुम लोग नहीं जानते कि मेरा कार्य वास्तव में क्या है, इसलिए तुम लोगों में से कई ऐसे हैं, जो मुझे छोड़ जाना और मुझसे दूरी बनाना चाहते हैं, और इसके बजाय ऐसे स्वर्ग में रहने की आशा करते हैं, जहाँ कोई ताड़ना या न्याय नहीं है। क्या लोग अपने दिलों में इसी की कामना नहीं करते? मैं निश्चित रूप से तुम्हें बाध्य करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ। तुम जो भी मार्ग अपनाते हो, वह तुम्हारी अपनी पसंद है। आज का मार्ग न्याय और शाप से युक्त है, लेकिन तुम सबको पता होना चाहिए कि जो कुछ भी मैंने तुम लोगों को दिया है—चाहे वह न्याय हो या ताड़ना—वे सर्वोत्तम उपहार हैं जो मैं तुम लोगों को दे सकता हूँ, और वे सब वे चीज़ें हैं जिनकी तुम लोगों को तत्काल आवश्यकता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम सभी कितने नीच चरित्र के हो!

672. शैतान द्वारा भ्रष्ट की गई सभी आत्माएँ, शैतान के अधिकार क्षेत्र के नियंत्रण में हैं। केवल वे लोग जो मसीह में विश्वास करते हैं, शैतान के शिविर से बचा कर, अलग कर दिए गए हैं, और आज के राज्य में लाए गए हैं। अब ये लोग शैतान के प्रभाव में नहीं रहे हैं। फिर भी, मनुष्य की प्रकृति अभी भी मनुष्य के शरीर में जड़ जमाए हुए है। कहने का अर्थ है कि भले ही तुम लोगों की आत्माएँ बचा ली गई हैं, तुम लोगों की प्रकृति अभी भी पहले जैसी ही है और इस बात की अभी भी सौ प्रतिशत संभावना है कि तुम लोग मेरे साथ विश्वासघात करोगे। यही कारण है कि मेरा कार्य इतने लंबे समय तक चलता है, क्योंकि तुम्हारी प्रकृति दु:साध्य है। अब तुम अपने कर्तव्यों को पूरा करते हुए इतने अधिक कष्ट उठा रहे हो जितने तुम उठा सकते हो, फिर भी तुम लोगों में से प्रत्येक मुझे धोखा देने और शैतान के अधिकार क्षेत्र, उसके शिविर में लौटने, और अपने पुराने जीवन में वापस जाने में सक्षम है—यह एक अखंडनीय तथ्य है। उस समय, तुम लोगों के पास लेशमात्र भी मानवता या मनुष्य से समानता दिखाने के लिए नहीं होगी, जैसी तुम अब दिखा रहे हो। गंभीर मामलों में, तुम लोगों को नष्ट कर दिया जाएगा और इससे भी बढ़कर तुम लोगों को, फिर कभी भी देहधारण नहीं करने के लिए, बल्कि गंभीर रूप से दंडित करने के लिए अनंतकाल के लिए अभिशप्त कर दिया जाएगा। यह तुम लोगों के सामने रख दी गई समस्या है। मैं तुम लोगों को इस तरह से याद दिला रहा हूँ ताकि एक तो, मेरा कार्य व्यर्थ नहीं जाएगा, और दूसरे, ताकि तुम सभी लोग प्रकाश के दिनों में रह सको। वास्तव में, मेरा कार्य व्यर्थ होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या नहीं है। महत्वपूर्ण है तुम लोगों का एक खुशहाल जीवन और एक अद्भुत भविष्य पाने में सक्षम होना। मेरा कार्य लोगों की आत्माओं को बचाने का कार्य है। यदि तुम्हारी आत्मा शैतान के हाथों में पड़ जाती है, तो तुम्हारा शरीर शांति में नहीं रहेगा। यदि मैं तुम्हारे शरीर की रक्षा कर रहा हूँ, तो तुम्हारी आत्मा भी निश्चित रूप से मेरी देखभाल के अधीन होगी। यदि मैं तुमसे सच में घृणा करूँ, तो तुम्हारा शरीर और आत्मा तुरंत शैतान के हाथों में पड़ जाएँगे। क्या तुम कल्पना कर सकते हो कि तब तुम्हारी स्थिति किस तरह की होगी? यदि किसी दिन मेरे वचनों का तुम पर कोई असर न हुआ, तो मैं तुम सभी लोगों को तब तक के लिए घोर यातना देने के लिए शैतान को सौंप दूँगा जब तक कि मेरा गुस्सा पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता, अथवा मैं कभी न सुधर सकने योग्य तुम मानवों को व्यक्तिगत रूप से दंडित करूँगा, क्योंकि मेरे साथ विश्वासघात करने वाले तुम लोगों के हृदय कभी नहीं बदलेंगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (2)

673. मैं केवल यह उम्मीद करता हूँ कि मेरे कार्य के अंतिम चरण में तुम लोग अपनेसर्वोत्कृष्ट निष्पादन में सक्षमहोंगे, और कि तुम स्वयंको पूरे मन से समर्पित करोगे, अधूरे मन से नहीं। बेशक, मैं यह उम्मीद भी करता हूँ कि तुम लोगों को सर्वोत्तम गंतव्य प्राप्त हो सके। फिर भी, मेरे पास अभी भी मेरी अपनी आवश्यकता है, और वह यह कि तुम लोग मुझे अपनी आत्मा और अंतिम भक्ति समर्पित करने में सर्वोत्तम निर्णय करो। अगर किसी की भक्ति एकनिष्ठ नहीं है, तो वह व्यक्ति निश्चित रूप से शैतान की सँजोई हुई संपत्ति है, और मैं आगे उसे इस्तेमाल करने के लिए नहीं रखूँगा, बल्कि उसे उसके माता-पिता द्वारा देखे-भाले जाने के लिए घर भेज दूँगा। मेरा कार्य तुम लोगों के लिए एक बड़ी मदद है; मैं तुम लोगों से केवल एक ईमानदार और ऊपर उठने का आकांक्षी हृदय पाने की उम्मीद करता हूँ, लेकिन मेरे हाथ अभी तक खाली हैं। इस बारे में सोचो : अगर मैं किसी दिन इतना दुखी हुआकि उसे शब्दों में बयान न कर सकूँ, तो फिर तुम लोगों के प्रति मेरा रवैया क्या होगा? क्या मैं तब भी तुम्हारे प्रति वैसा ही सौम्य रहूँगा, जैसा अब हूँ? क्या मेरा हृदय तब भी उतना ही शांत होगा, जितना अब है? क्या तुम लोग उस व्यक्ति की भावनाएँ समझते हो, जिसने कड़ी मेहनत से खेत जोता हो और उसे फसल की कटाई में अन्न का एक दाना भी नसीब न हुआ हो? क्या तुम लोग यह समझते हो कि आदमी को बड़ा आघात लगने पर उसके दिल को कितनी भारी चोट पहुँचती है? क्या तुम लोग उस व्यक्ति की कड़वाहटका अंदाज़ालगा सकते हो, जो कभी आशा से भरा हो, पर जिसे ख़राब शर्तों पर विदा होना पड़ा हो? क्या तुम लोगों ने उस व्यक्ति का क्रोध निकलते देखा है, जिसे उत्तेजित किया गया हो? क्या तुम लोग उस व्यक्ति की बदला लेने की आतुरता जान सकते हो, जिसके साथ शत्रुता और धोखे का व्यवहार किया गया हो? अगर तुम इन लोगों की मानसिकता समझ सकते हो, तो मैं सोचता हूँ, तुम्हारे लिए यह कल्पना करना कठिन नहीं होना चाहिए कि अपने प्रतिशोध के समय परमेश्वर का रवैया क्या होगा! अंत में, मुझे उम्मीद है कि तुम सब अपने गंतव्य के लिए गंभीर प्रयास करोगे; हालाँकि, अच्छा होगा कि तुम अपने प्रयासों में कपटपूर्ण साधन न अपनाओ, अन्यथा मैं अपने दिल में तुमसे निराश बना रहूँगा। और यह निराशा कहाँ ले जाती है? क्या तुम लोग स्वयं को ही बेवकूफ नहीं बना रहे हो? जो लोग अपने गंतव्य के विषय में सोचते हैं, पर फिर भी उसे बरबाद कर देते हैं, वे बचाए जाने के बहुत कम योग्य होते हैं। यहाँ तक कि अगर वहउत्तेजित और क्रोधित भी हो जाए, तो ऐसे व्यक्ति पर कौन दया करेगा? संक्षेप में, मैं अभी भी तुम लोगों के लिए ऐसे गंतव्य की कामना करता हूँ, जो उपयुक्त और अच्छा दोनों हो, और उससे भी बढ़कर, मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम लोगों में से कोई भी विपत्ति में नहीं फँसेगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, गंतव्य के बारे में

674. मेरा अंतिम कार्य न केवल मनुष्यों को दण्ड देने के लिए है बल्कि मनुष्य की मंज़िल की व्यवस्था करने के लिए भी है। इससे भी अधिक, यह इसलिए है कि सभी लोग मेरे कर्मों और कार्यों को अभिस्वीकार करें। मैं चाहता हूँ कि हर एक मनुष्य देखे कि जो कुछ मैंने किया है, वह सही है, और जो कुछ मैंने किया है वह मेरे स्वभाव की अभिव्यक्ति है। यह मनुष्य का कार्य नहीं है, और उसकी प्रकृति तो बिल्कुल भी नहीं है, जिसने मानवजाति की रचना की है, यह तो मैं हूँ जो सृष्टि में हर जीव का पोषण करता है। मेरे अस्तित्व के बिना, मानवजाति केवल नष्ट होगी और विपत्तियों के दंड को भोगेगी। कोई भी मानव सुन्दर सूर्य और चंद्रमा या हरे-भरे संसार को फिर कभी नहीं देखेगा; मानवजाति केवल शीत रात्रि और मृत्यु की छाया की निर्मम घाटी को देखेगी। मैं ही मनुष्यजाति का एकमात्र उद्धार हूँ। मैं ही मनुष्यजाति की एकमात्र आशा हूँ और, इससे भी बढ़कर, मैं ही वह हूँ जिस पर संपूर्ण मानवजाति का अस्तित्व निर्भर करता है। मेरे बिना, मानवजाति तुरंत रुक जाएगी। मेरे बिना मानवजाति तबाही झेलेगी और सभी प्रकार के भूतों द्वारा कुचली जाएगी, इसके बावजूद कोई भी मुझ पर ध्यान नहीं देता है। मैंने वह काम किया है जो किसी दूसरे के द्वारा नहीं किया जा सकता है, मेरी एकमात्र आशा है कि मनुष्य कुछ अच्छे कर्मों के साथ मेरा कर्ज़ा चुका सके। यद्यपि कुछ ही लोग मेरा कर्ज़ा चुका पाये हैं, तब भी मैं मनुष्यों के संसार में अपनी यात्रा पूर्ण करूँगा और विकास के अपने कार्य के अगले चरण को आरंभ करूंगा, क्योंकि इन अनेक वर्षों में मनुष्यों के बीच मेरे आने और जाने की सारी भागदौड़ फलदायक रही है, और मैं अति प्रसन्न हूँ। मैं जिस चीज़ की परवाह करता हूँ वह मनुष्यों की संख्या नहीं, बल्कि उनके अच्छे कर्म हैं। किसी भी स्थिति में, मुझे आशा है कि तुम लोग अपनी मंज़िल के लिए पर्याप्त संख्या में अच्छे कर्म तैयार करोगे। तब मुझे संतुष्टि होगी; अन्यथा तुम लोगों में से कोई भी उस आपदा से नहीं बचेगा जो तुम लोगों पर पड़ेगी। आपदा मेरे द्वारा उत्पन्न की जाती है और निश्चित रूप से मेरे द्वारा ही आयोजित की जाती है। यदि तुम लोग मेरी नज़रों में अच्छे इंसान के रूप में नहीं दिखाई दे सकते हो, तो तुम लोग आपदा भुगतने से नहीं बच सकते। गहरी पीड़ा के बीच में, तुम लोगों के कार्य और कर्म पूरी तरह से उचित नहीं माने गए थे, क्योंकि तुम लोगों का विश्वास और प्रेम खोखला था, और तुम लोगों ने स्वयं को केवल डरपोक या कठोर दिखाया। इस सन्दर्भ में, मैं केवल भले या बुरे का ही न्याय करूँगा। मेरी चिंता तुम लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति के कार्य करने और अपने आप को व्यक्त करने के तरीके को लेकर बनी रहती है, जिसके आधार पर मैं तुम लोगों का अंत निर्धारित करूँगा। हालाँकि, मुझे यह स्पष्ट अवश्य कर देना चाहिए कि मैं उन लोगों पर अब और दया नहीं करूँगा जिन्होंने गहरी पीड़ा के दिनों में मेरे प्रति रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई है, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी ही दूर तक है। इसके अतिरिक्त, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं है जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, ऐसे लोगों के साथ जुड़ना तो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। चाहे व्यक्ति जो भी हो, मेरा स्वभाव यही है। मुझे तुम लोगों को अवश्य बता देना चाहिए कि जो कोई भी मेरा दिल तोड़ता है, उसे दूसरी बार मुझसे क्षमा प्राप्त नहीं होगी, और जो कोई भी मेरे प्रति निष्ठावान रहा है वह सदैव मेरे हृदय में बना रहेगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो

फुटनोट :

क. निर्जीव काष्ठ का टुकड़ा : एक चीनी मुहावरा, जिसका अर्थ है—"सहायता से परे"।

ख. मूल पाठ में, "इस तरह से" यह वाक्यांश नहीं है।

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