940 परमेश्वर का धर्मी स्वभाव सच्चा और सुस्पष्ट है
1 परमेश्वर का स्वभाव सच्चा एवं सुस्पष्ट है। वह अपने विचारों और रवैयों को चीज़ों के विकास अनुसार बदलता है। नीनवे के निवासियों के प्रति उसके रवैये का रूपान्तरण मनुष्यों को बताता है कि उसके पास अपने स्वयं के विचार और युक्तियां हैं; वह रोबोट या मिट्टी का कोई पुतला नहीं है, परन्तु स्वयं जीवित परमेश्वर है। वह नीनवे के लोगों से क्रोधित हो सकता था, ठीक उसी तरह जैसे वह उनके रवैये के अनुसार उनके अतीत को क्षमा कर सकता था; वह नीनवे के लोगों के ऊपर दुर्भाग्य लाने का निर्णय ले सकता था, और वह उनके पश्चाताप के कारण अपना निर्णय बदल सकता था।
2 असलियत में, परमेश्वर के विचार चीज़ों और वातावरण में परिवर्तन के अनुसार निरन्तर रूपान्तरित हो रहे हैं; जब तक ये विचार रूपान्तरित हो रहे हैं, परमेश्वर के अस्तित्व के विभिन्न पहलू प्रकट होंगे। रूपान्तरण की इस प्रक्रिया के दौरान, उस घड़ी जब परमेश्वर अपना मन बदलता है, तब वह मानवजाति पर अपने जीवन के अस्तित्व की सच्चाई को प्रकट करता है, और वह यह प्रकट करता है कि उसका धर्मी स्वभाव सच्चा और सुस्पष्ट है। इससे बढ़कर, परमेश्वर मानवजाति के प्रति अपने क्रोध, अपनी दया, करुणा और सहनशीलता के अस्तित्व के सत्य को प्रमाणित करने के लिए अपने सच्चे प्रकटीकरणों का उपयोग करता है।
3 उसके सार को चीज़ों के विकास के अनुसार किसी भी समय पर और किसी भी स्थान में प्रकट किया जाएगा। वह एक सिंह का क्रोध भी धारण करता है और माता की ममता एवं सहनशीलता भी। किसी मनुष्य को उसके धर्मी स्वभाव पर प्रश्न करने, उसका उल्लंघन करने, उसे बदलने या तोड़ने मरोड़ने की अनुमति नहीं है। समस्त मुद्दों और सभी चीज़ों के मध्य, परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को, अर्थात्, परमेश्वर का क्रोध एवं उसकी करुणा को, किसी भी समय पर और किसी भी स्थान में प्रकट किया जा सकता है। परमेश्वर प्रकृति के हर एक कोने एवं छिद्र में इन पहलुओं को स्पष्ट रूप से प्रकट करता है और हर पल स्पष्ट रूप से उन्हें अंजाम देता है।
4 परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को समय या अन्तराल के द्वारा सीमित नहीं है, या दूसरे शब्दों में, समय या अन्तराल की सीमाओं के द्वारा तय तरीके से परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को यांत्रिक रूप से प्रकट या प्रकाशित नहीं किया जाता है। उसके बजाए, परमेश्वर का धर्मी स्वभाव किसी भी समय और स्थान में स्वतन्त्र रूप से प्रकट और प्रकाशित होता है। जब तुम परमेश्वर को अपना मन बदलते और अपने क्रोध को थामते और नीनवे के लोगों का नाश करने से पीछे हटते हुए देखते हो, तो क्या तुम कह सकते हो कि परमेश्वर केवल दयालु और प्रेमी है? क्या तुम कह सकते हो कि परमेश्वर का क्रोध खोखले वचनों से बना है? जब परमेश्वर प्रचण्ड क्रोध प्रकट करता है और अपनी दया को वापस ले लेता है, तो क्या तुम कह सकते हो कि वह मनुष्यों के प्रति किसी सच्चे प्रेम का एहसास नहीं करता है?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II" से रूपांतरित