202 परमेश्वर का प्रेम मेरी आत्मा को जगाता है

1

शैतान ने मेरी आत्मा को किया है दूषित।

अहंकार और आत्म-महत्व मेरी प्रकृति बन गए हैं।

शैतान ने मेरे विचारों को बना दिया है ज़हरीला।

परमेश्वर से प्यार करने की करती हूं लालसा मैं,

लेकिन कर नहीं पाती हूँ मैं।

परमेश्वर के वचनों के न्याय से जानती हूं ख़ुद को मैं।

देखती हूं अपने दूषित स्वभाव को मैं,

कोई भी अंश नहीं है अच्छा मेरा।

कोई विवेक, कोई समझ, कोई व्यक्तित्व, कोई गरिमा नहीं बची।

उद्धार के बिना, मैं मरे हुए शख़्स की तरह जीवित रहूंगी।

काम करने, हमें बचाने के लिए परमेश्वर करता है सामना बड़े ख़तरों का,

अपने वचनों का उपयोग करता है न्याय, ताड़ना, परीक्षण,

शुद्धिकरण करने के लिए हमारा,

हमारी दूषित आत्माओं को नया बनाने के लिए,

फिर हमारे जीवन का होगा कोई मूल्य।

वह सब सहूंगा मैं, जो सहना होगा।

अपनी अंतिम भक्ति पेश करूंगा मैं।

एक ईमानदार व्यक्ति बनूंगा मैं।

कोई मांग नहीं करूंगा मैं।


2

आशीषित हूँ मैं,

ऊँचा उठाता है परमेश्वर मुझे ताकि फ़र्ज़ अपना निभा सकूँ मैं।

और फिर भी मेरा रवैया उसके लिए है पूरी तरह से लापरवाह।

उसके वचनों के प्रकाशन से मैं देखता हूं अपनी शैतानी प्रकृति।

करता हूं मैं नफ़रत अपने गहरे दूषण से और भी ज़्यादा।

मुझ में कोई विवेक या समझ नहीं है,

मैंने दिया नहीं कभी परमेश्वर के दिल को दिलासा।

फिर भी परमेश्वर बार-बार दया करता है मुझ पर,

मुझे बचाने के लिए करता है वह सब कुछ।


3

परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण से गुज़रने के बाद,

आख़िर हो जाऊंगा शुद्ध मैं।

देखा है मैंने कि परमेश्वर का उद्धार कितना महान

और कितना असली है!

परमेश्वर के महान धैर्य की वजह से,

उसका प्यार चुका सकता हूं मैं।

लेकिन होश में आया बहुत देर से मैं।

मेरा कर्ज़ है बहुत बड़ा।

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