2 राज्य गान
(II) आगमन हुआ है परमेश्वर का, राजा है परमेश्वर

1

इस अपूर्व लम्हे में, हर्ष के समय में,

ज़मीं पर और आसमाँ में कर रहे यशगान सब।

है कौन न जो उत्साहित हो? है कौन न जो आनंदित हो?

इस अवसर पर किसके न आँसू छलकें?

ये स्वर्ग नहीं जो पहले था, ये स्वर्ग है राज्य का।

ये धरा नहीं जो पहले थी, ये निर्मलता की धरती है।

घनघोर बारिश पड़ने के बाद, जो मलिन जगत था, पूरा बदल गया,

जो मलिन जगत था, पूरा बदल गया।


2

पर्वत, पानी हैं बदल रहे...

बदल रहा है मानव भी, सारी सृष्टि भी बदल रही...

ओ नीरव पर्वत, उठो और परमेश्वर की ख़ातिर नृत्य करो।

ओ ठहरे जल, बहते जाओ!

ओ सपनों में खोए मानव, उठो लक्ष्य में लग जाओ!

आया है परमेश्वर... राजा है परमेश्वर...

ख़ुद अपनी आँखों से तुम, दर्शन परमेश्वर के कर लो,

ख़ुद अपने कानों से तुम, वाणी परमेश्वर की सुन लो,

और राज्य के जीवन को तुम ख़ुद जी लो।

कितना अद्भुत, है कितना मधुर... जिसको न भुलाया जा सकता...

कितना अद्भुत, है कितना मधुर... जिसको न भुलाया जा सकता...


3

परमेश्वर के दहकते क्रोध में, कसमसाता है बड़ा लाल अजगर।

प्रतापी न्याय में परमेश्वर के, नज़र आता है शैतान का असली चेहरा।

परमेश्वर के कठोर वचनों पर,

होता शर्मिंदा इंसान बहुत, न जाने छिपाए चेहरा किधर।

पहले मानव परमेश्वर का, करता था तिरस्कार और उपहास,

हर समय बहुत इतराता था,

हर पल उल्लंघन करता था वो परमेश्वर की आज्ञा का।

अब देखो आज फिर, कौन है जो न बहाता आँसू?

है कौन जो ख़ुद को न इल्ज़ाम देता?

इस पूरी कायनात में, हर कोई आंसू बहा रहा,

हर कोई ख़ुशी से चहक रहा, सबके लफ़्ज़ों में हँसी भरी,

अनंत हर्षोन्माद है... सबके लफ़्ज़ों में हँसी भरी, अनंत हर्षोन्माद है...


4

हल्की बारिश की टपटप है; भारी हिमपात की धड़कन है...

आसमान में बढ़े जा रहे, बादल कितनी तेज़ी से।

धरती के महासागरों में, लहरें उठती हैं, गिरती हैं।

ग़म और ख़ुशी से मानव भी अभिभूत है।

कुछ हँसते हैं आनंद में, कुछ बहा रहे आँसू अपने,

कुछ चिल्लाते हैं ख़ुशियों से।

हर कोई जैसे भूल गया। क्या ये वसंत की फुहार वाला दिन है?

या ग्रीष्म का खिलता दिन है? या ये पकी फसल का पतझड़ वाला दिन है?

या ये ठिठुरती सर्दी वाला दिन है? ये कोई नहीं बतला सकता...

परमेश्वर की सन्तानें नृत्य खुशी से करती हैं;

परमेश्वर के जन सारे खुश होकर उछल-कूद करते।

अपने कामों में लगे हुए हैं देवदूत, वो कर रहे चरवाही हैं...

मानव धरती पर व्यस्त बहुत ही कामों में,

और धरती पर बढ़ती जीवों की आबादी,

और धरती पर बढ़ती जीवों की आबादी।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, राज्य-गान से रूपांतरित

पिछला: 1 राज्य गान
(I) दुनिया में राज्य का अवतरण हुआ है

अगला: 3 राज्य गान
(III) सभी जन आनंद के लिये जयकार करते हैं

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

610 प्रभु यीशु का अनुकरण करो

1पूरा किया परमेश्वर के आदेश को यीशु ने, हर इंसान के छुटकारे के काम को,क्योंकि उसने परमेश्वर की इच्छा की परवाह की,इसमें न उसका स्वार्थ था, न...

775 तुम्हारी पीड़ा जितनी भी हो ज़्यादा, परमेश्वर को प्रेम करने का करो प्रयास

1समझना चाहिये तुम्हें कितना बहुमूल्य है आज कार्य परमेश्वर का।जानते नहीं ये बात ज़्यादातर लोग, सोचते हैं कि पीड़ा है बेकार:अपने विश्वास के...

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें