972 परमेश्वर निरंतर मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शन करता है
Ⅰ
चाहे दे आशीष या व्यवस्था
या नियम जीवन के,
सबसे ईश्वर इंसान की अगुआई करे
सामान्य जीवन जीने में।
इंसान से अपने नियम और
व्यवस्था का पालन करवाने में,
ईश्वर चाहे, इंसान शैतान को ना पूजे,
न उससे आहत हो।
ये किया गया था शुरुआत में।
उसके इरादे खुद के लिए नहीं,
इंसान के लिए हैं।
जो भी वो करे,
उन्हें भटकने से रोकने के लिए करे।
ईश्वर ने इंसान बनाया,
उसे जीने की राह दिखाये,
अपने वचन, सत्य और जीवन से
हमेशा इंसान की देख-रेख करे,
सहारा दे,
हाँ, ईश्वर ने इंसान बनाया,
उसे जीवन की राह दिखाये।
Ⅱ
जब तुम सत्य को न समझो,
ईश्वर तुम पर ज्योति चमकाए
जो चीज़ सत्य से मेल न खाये,
तुम्हें दिखाये,
क्या तुम करो, ये बताए।
जब ईश्वर तुम्हें सहारा दे,
तुम अनुभव करते उसका प्रेम,
उसकी मनोरमता,
सहारे का अनुभव करते।
जब ईश्वर विद्रोह का न्याय करे,
तो अपने वचनों से तुम्हें फटकारे।
वो तुम्हें लोगों और
चीजों से अनुशासित करे।
नरमी से कार्य करे वो,
नपे-तुले, संगत ढंग से।
चीजों को असहनीय न बनाए।
ईश्वर ने इंसान बनाया,
उसे जीने की राह दिखाये,
अपने वचन, सत्य और जीवन से
हमेशा इंसान की देख-रेख करे,
सहारा दे,
हाँ, ईश्वर ने इंसान बनाया,
उसे जीवन की राह दिखाये।
और आसान नहीं ये समझाना,
कैसे वो इंसान को मूल्य देता और सँजोता।
इसे ईश्वर का अभ्यास सामने लाए,
इंसान की डींग नहीं।
ईश्वर जो कुछ इंसान को दे,
उस पर जैसे कार्य करे,
वो उसकी पवित्रता से आए।
Ⅲ
ईश्वर इंसान से जो भी कहे,
हिम्मत दे, याद कराये, सलाह दे,
सब ईश्वर की पवित्रता के सार से आए।
ईश्वर ने इंसान बनाया,
उसे जीने की राह दिखाये,
अपने वचन, सत्य और जीवन से
हमेशा इंसान की देख-रेख करे,
सहारा दे,
हाँ, ईश्वर ने इंसान बनाया,
उसे जीवन की राह दिखाये।
— 'वचन देह में प्रकट होता है' से रूपांतरित