प्रश्न 3: हम सोचते हैं परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं। बाइबल से अलग परमेश्वर के कोई वचन और कार्य नहीं हैं। इसलिए, परमेश्वर पर हमारा विश्वास बाइबल पर आधारित होना चाहिए। क्या ये गलत है?

उत्तर: धार्मिक समूह में कई विश्वासियों का मानना है कि: "परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं। बाइबल से अलग परमेश्वर के कोई वचन और कार्य नहीं हैं।" क्या ये कहना तथ्यों के अनुरूप है? क्या आपलोग यकीन से कहते हैं कि व्यवस्था के युग में यहोवा द्वारा किया गया हर एक कार्य सम्पूर्ण रूप से बाइबल में दर्ज है? क्या आपलोग वचन दे सकते हैं कि अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु के सभी वचन और कार्य सम्पूर्ण रूप से बाइबल में दर्ज हैं? अगर ये नज़रिया तथ्यों के अनुसार न हो तो नतीजा क्या होगा? क्या यह परमेश्वर को लोगों की नज़र में नीचा नहीं दिखायेगा, उन्हें सीमित और उनकी निंदा नहीं करेगा? क्या यह परमेश्वर के स्वभाव को अपमानित नहीं करता है? हमें पता होना चाहिये कि परमेश्वर ने जब अपने कार्य का हर चरण पूरा कर लिया, तो उसके सालों बाद बाइबल का संकलन उन लोगों ने किया जो परमेश्वर की सेवा करते थे। यकीनी तौर पर उसके कुछ अंश या तो गुम हो गये या हटा दिये गये। ये एक वास्तविकता है। पैगम्बरों के कुछ वचन हैं जो पुराने विधान में दर्ज नहीं हैं, लेकिन उन्हें प्राचीन बाइबल में शामिल किया गया है। नए विधान के, चार सुसमाचारों में प्रभु यीशु के बहुत से वचन दर्ज नहीं हैं। असल में, प्रभु यीशु ने कम से कम तीन साल तक प्रचार और कार्य किया। उन्होंने जो वचन बोले वे बाइबल में दर्ज वचनों से कई गुना अधिक हैं। ये एक तथ्य है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता। जैसे कि बाइबल में कहा गया है: "और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे संसार में भी न समातीं" (यूहन्ना 21:25)। प्रेरितों के कुछ पत्र भी बाइबल में दर्ज नहीं हैं। जब प्रभु यीशु लौटेंगे तो उन्हें और अधिक वचन कहने होंगे, और अधिक कार्य करने होंगे। क्या ये सब चीज़ें बाइबल में दर्ज की जा सकती हैं? बाइबल में केवल प्रभु यीशु की वापसी की भविष्यवाणी दर्ज की गई है। उनकी वापसी के बाद के उनके वचन और कार्य नहीं। इसका मतलब यह है कि, बाइबल में दर्ज किये गए परमेश्वर के वचन सीमित हैं। दरअसल ये वचन परमेश्वर की ज़िन्दगी के समुद्र की एक बूंद मात्र हैं, परमेश्वर के जीवन के खरबों भागों में से, सिर्फ दस-हजारवां भाग। इन तथ्यों को देखते हुए, अभी भी लोग कैसे कह सकते हैं कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं? वे कैसे कह सकते हैं कि बाइबल से परे परमेश्वर का कोई वचन और कार्य नहीं है? ऐसे बयान भी मनमाने हैं! ये बिल्कुल भी तथ्यों के अनुरूप नहीं हैं। कई लोग इस तरह के बयानों से नतीजे निकालते हैं कि परमेश्वर पर मानव की आस्था का आधार बाइबल है। ये निष्कर्ष सही नहीं है। बाइबल के आधार पर मानव का परमेश्वर पर विश्वास सही है, लेकिन एकमात्र बाइबल पर्याप्त नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण चीज़ पवित्र आत्मा के काम के आधार पर परमेश्वर पर विश्वास के पथ पर चलना है। इस तरह से ही परमेश्वर का अनुमोदन पाया जा सकता है। यदि बाइबल ही एकमात्र आधार है और पवित्र आत्मा का कोई कार्य नहीं है, तो क्या मानव बाइबल की सच्चाई को समझ सकेगा? तो क्या इंसान परमेश्वर को समझ पाएगा? यदि लोगों को परमेश्वर के वचन को समझने में गलती हो जाए और पवित्र आत्मा का ज्ञान न हो, तो क्या यह आसानी से लोगों को गुमराह नहीं करेगा? ये सभी वास्तविक समस्याएं हैं। यदि परमेश्वर के विश्वासियों के पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, तो वे कभी भी सत्य को हासिल नहीं कर पाएंगे, और न ही वे परमेश्वर को समझ पाएंगे। यदि परमेश्वर के विश्वासियों के पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, यहां तक कि अगर वो अक्सर बाइबल पढते हैं और उपदेशों को सुनते हैं, तब भी वे सच्चाई को समझ नहीं पायेंगे और वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर पायेंगे। इससे पता चलता है कि जो लोग पवित्र आत्मा के कार्य के बिना परमेश्वर पर विश्वास करते हैं वे कुछ भी हासिल नहीं कर पायेंगे।

कई धार्मिक पादरी और आध्यात्मिक प्राध्यापक बाइबल समझाने के लिए मनुष्‍य के दिमाग का उपयोग करते हैं, और अंत में सब ऐसे बन जाते हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। वे फरीसियों की तरह हैं, जो बाइबल से परिचित थे और उसके कुछ नियमों का पालन भी करते थे, लेकिन परमेश्वर के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं था। वे बाहर से धर्मी दिखते थे लेकिन परमेश्वर के लिए ज़रा भी श्रद्धा नहीं थी। जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने के लिए अवतरित हुए, तो उन्होंने बाइबल का प्रयोग विरोध के लिए किया और यीशु की निंदा की, और परिणामस्वरूप परमेश्वर ने उन्हें श्राप दिया था। यह किस तरह की समस्या है? क्या परमेश्वर पर मानव का विश्वास केवल बाइबल पर आधारित हो सकता है या नहीं? फरीसियों का कड़वा सबक हमें बताता है कि परमेश्वर पर हमारा विश्वास एकमात्र बाइबल के आधार पर होना पर्याप्त नहीं है, और सबसे महत्वपूर्ण आधार पवित्र आत्मा का कार्य है। पवित्र आत्मा के कार्य के बिना, भले ही लोग कितने ही साल परमेश्वर पर विश्वास करें, कोई फायदा नहीं - उन्हें जीवन की प्राप्ति नहीं होगी। ये एक सत्य है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता। ये दर्शाता है कि ये कथन, परमेश्वर पर विश्वास बाइबल पर आधारित होना चाहिए, बाइबल से अलग होना परमेश्वर पर विश्वास करना नहीं है, एक गलत और बेतुका दृष्टिकोण है। बाइबल में परमेश्वर के वचन साफ़ तौर पर कहते हैं: "न तो बल से, और न शक्‍ति से, परन्तु मेरे आत्मा के द्वारा होगा, मुझ सेनाओं के यहोवा का यही वचन है" (जकर्याह 4:6)। भजनों में भी वचन हैं: "यदि घर को यहोवा न बनाए, तो उसके बनानेवालों का परिश्रम व्यर्थ होगा: यदि नगर की रक्षा यहोवा न करे, तो रखवाले का जागना व्यर्थ ही होगा" (भजन संहिता 127:1)। ये दोनों ही अंश बाइबल की श्रेष्ठ पंक्तियाँ हैं। आप कह सकते हैं कि सभी विश्वासियों को धर्म-शास्त्र के इन दो अंशों के बारे में पता है। क्या परमेश्वर पर मानव का विश्वास केवल बाइबल पर आधारित हो सकता है या नहीं? उत्तर स्पष्ट होना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास का मुख्य आधार पवित्र आत्मा का कार्य और परमेश्वर के वास्तविक वचन हैं। यही सत्य और जीवन को पाने का तरीका है। बहुत से लोग बाइबल को समझ नहीं पाते, हमेशा सोचते हैं कि बाइबल में अनन्त जीवन है और बस बाइबल पर टिके रह कर सब कुछ हासिल कर लेंगे। यह एक बेहद बेतुका ख़्याल है। प्रभु यीशु ने पहले कहा है: "तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो; क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना 5:39-40)। "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ: बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता" (यूहन्ना 14:6)। विश्वासियों को बहुत अच्छी तरह पता होना चाहिए कि परमेश्वर सृष्टि के स्वामी हैं। परमेश्वर सभी चीज़ों के मालिक हैं, हर चीज़ पर उनका प्रभुत्व है, और वो सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत हैं। परमेश्वर में अनन्त बुद्धि और आश्चर्य है। बाइबल केवल परमेश्वर के कार्य का एक ऐतिहासिक अभिलेख है, परमेश्वर के कार्य के प्रथम दो चरणों का साक्ष्य है। बाइबल बाइबल है, परमेश्वर परमेश्वर हैं। बाइबल और परमेश्वर दो अलग चीज़े हैं और इनकी तुलना नहीं की जा सकती। बाइबल परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती, और इसके अलावा परमेश्वर की जगह मानव की रक्षा नहीं कर सकती। सिर्फ परमेश्वर ही लोगों को बचा सकते हैं! अगर बाइबल मानव को बचा सकती है, तो इस्राएलियों ने तो बाइबल को मज़बूती से थाम रखा है, हजारों सालों से आँखें मूंदकर बाइबल पर भरोसा रखा है और उसकी आराधना की है, तब भी उन्हें मसीहा के आने और उन्हें बचाने की जरूरत क्यों है? अगर बाइबल मानव को बचा सकती है, तो जो फरीसी बाइबल पर टिके हुए थे वे अभी भी प्रभु यीशु की निंदा और विरोध क्यों करते हैं, और परमेश्वर के प्रति दुश्मनी में ईसा-विरोधी बन जाते हैं? यह इस सच को दिखाने के लिए काफी है कि बाइबल इंसान की रक्षा नहीं कर सकती। बाइबल केवल परमेश्वर की एक गवाही है। अगर हम केवल बाइबल से चिपके रहते हैं लेकिन परमेश्वर के कार्यों का पालन नहीं करते, तो हम प्रभु के हाथों मुक्ति नहीं पा सकेंगे। चूंकि हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, हमें परमेश्वर के कार्यों का पालन करना चाहिए और परमेश्वर के वचनों का अनुभव और अभ्यास करना चाहिए, ताकि हम पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त कर सकें, और सत्य और जीवन को पा सकें। इसलिए बाइबल केवल परमेश्वर पर हमारे विश्वास के संदर्भ के रूप में ही काम कर सकती है और एकमात्र आधार नहीं हो सकती। परमेश्वर पर विश्वास परमेश्वर के वास्तविक वचनों और पवित्र आत्मा के कार्य पर आधारित होना चाहिए। यह परमेश्वर पर विश्वास का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है। अगर हम इस व्यवहारिक ज्ञान को नहीं समझ पाते हैं तो हम वास्तव में मूर्ख और अज्ञानी हैं। बाइबल को एक प्रतीक के रूप में मानना या प्रभु की जगह बाइबल का प्रयोग करना साफ़ तौर पर परमेश्वर का विरोध और परमेश्वर की निंदा है। यदि हम आँख मूंदकर बाइबल पर विश्वास और उसकी आराधना करते हैं लेकिन प्रभु का गुणगान और आज्ञा-पालन नहीं कर सकते, तो हम सच्चे विश्वासी कैसे हो सकते हैं? हम कपटी फरीसियों से कैसे अलग हैं? ये दर्शाता है कि यदि हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं लेकिन बाइबल की आंतरिक सच्चाई, और बाइबल और परमेश्वर के संबंधों को नहीं समझते, तो हम बड़ी आसानी से सही रास्ते से भटक जायेंगे और गुमराह हो जायेंगे।

चलिये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के कुछ और अंश पढ़ते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "यह परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक अभिलेख और उसके कार्य के पिछले दो चरणों की गवाही से बढ़कर और कुछ नहीं है, और इससे तुम्हें परमेश्वर के कार्य के लक्ष्यों की कोई समझ हासिल नहीं होती। बाइबल पढ़ने वाला हर व्यक्ति जानता है कि यह व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के दो चरणों को लिखित रूप में प्रस्तुत करता है। पुराने नियम सृष्टि के समय से लेकर व्यवस्था के युग के अंत तक इस्राएल के इतिहास और यहोवा के कार्य को लिपिबद्ध करता है। पृथ्वी पर यीशु के कार्य को, जो चार सुसमाचारों में है, और पौलुस के कार्य नए नियम में दर्ज किए गए हैं; क्या ये ऐतिहासिक अभिलेख नहीं हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (4))

"यदि तुम व्यवस्था के युग के कार्य को देखना चाहते हो, और यह देखना चाहते हो कि इस्राएली किस प्रकार यहोवा के मार्ग का अनुसरण करते थे, तो तुम्हें पुराना विधान पढ़ना चाहिए; यदि तुम अनुग्रह के युग के कार्य को समझना चाहते हो, तो तुम्हें नया विधान पढ़ना चाहिए। पर तुम अंतिम दिनों के कार्य को किस प्रकार देखते हो? तुम्हें आज के परमेश्वर की अगुआई स्वीकार करनी चाहिए, और आज के कार्य में प्रवेश करना चाहिए, क्योंकि यह नया कार्य है, और किसी ने पूर्व में इसे बाइबल में दर्ज नहीं किया है। आज परमेश्वर देहधारी हो चुका है और उसने चीन में अन्य चयनित लोगों को छाँट लिया है। परमेश्वर इन लोगों में कार्य करता है, वह पृथ्वी पर अपना काम जारी रख रहा है, और अनुग्रह के युग के कार्य से आगे जारी रख रहा है। आज का कार्य वह मार्ग है जिस पर मनुष्य कभी नहीं चला, और ऐसा तरीका है जिसे किसी ने कभी नहीं देखा। यह वह कार्य है, जिसे पहले कभी नहीं किया गया—यह पृथ्वी पर परमेश्वर का नवीनतम कार्य है। इस प्रकार, जो कार्य पहले कभी नहीं किया गया, वह इतिहास नहीं है, क्योंकि अभी तो अभी है, और वह अभी अतीत नहीं बना है।" "बाइबल के समय से प्रभु में लोगों का विश्वास, बाइबल में विश्वास रहा है। यह कहने के बजाय कि लोग प्रभु में विश्वास करते हैं, यह कहना बेहतर है कि वे बाइबल में विश्वास करते हैं; यह कहने के बजाय कि उन्होंने बाइबल पढ़नी आरंभ कर दी है, यह कहना बेहतर है कि उन्होंने बाइबल पर विश्वास करना आरंभ कर दिया है; और यह कहने के बजाय कि वे प्रभु के सामने लौट आए हैं, यह कहना बेहतर होगा कि वे बाइबल के सामने लौट आए हैं। इस तरह से, लोग बाइबल की आराधना ऐसे करते हैं मानो वह परमेश्वर हो, मानो वह उनका जीवन-रक्त हो और उसे खोना अपने जीवन को खोने के समान हो। लोग बाइबल को परमेश्वर जितना ही ऊँचा समझते हैं, और यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उसे परमेश्वर से भी ऊँचा समझते हैं। यदि लोगों के पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, यदि वे परमेश्वर को महसूस नहीं कर सकते, तो वे जीते रह सकते हैं—परंतु जैसे ही वे बाइबल को खो देते हैं, या बाइबल के प्रसिद्ध अध्याय और उक्तियाँ खो देते हैं, तो यह ऐसा होता है, मानो उन्होंने अपना जीवन खो दिया हो।" "आख़िरकार, कौन बड़ा है : परमेश्वर या बाइबल? परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुसार क्यों होना चहिए? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर को बाइबल से आगे निकलने का कोई अधिकार न हो? क्या परमेश्वर बाइबल से दूर नहीं जा सकता और अन्य काम नहीं कर सकता? यीशु और उनके शिष्यों ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया? यदि उसे सब्त के प्रकाश में और पुराने विधान की आज्ञाओं के अनुसार अभ्यास करना था, तो आने के बाद यीशु ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया, बल्कि इसके बजाय क्यों उसने पाँव धोए, सिर ढका, रोटी तोड़ी और दाखरस पीया? क्या यह सब पुराने विधान की आज्ञाओं में अनुपस्थित नहीं है? यदि यीशु पुराने विधान का सम्मान करता, तो उसने इन सिद्धांतों को क्यों तोड़ा? तुम्हें पता होना चाहिए कि पहले कौन आया, परमेश्वर या बाइबल! सब्त का प्रभु होते हुए, क्या वह बाइबल का भी प्रभु नहीं हो सकता?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))

"बाइबल हज़ारों साल से इंसानी इतिहास का हिस्सा रही है। इतना ही नहीं, लोग इसे परमेश्वर की तरह मानते हैं। यहाँ तक कि अंत के दिनों में इसने परमेश्वर की जगह ले ली है, जिससे परमेश्वर अप्रसन्न है। इसलिए, जब समय मिला, परमेश्वर ने बाइबल की अंदरूनी कहानी और उसकी उत्पत्ति को स्पष्ट करना ज़रूरी समझा। अगर वह ऐसा न करता, तो बाइबल लोगों के दिलों में परमेश्वर का स्थान बनाए रखती, और लोग परमेश्वर के कर्मों को मापने और उनका खंडन करने के लिए बाइबल के वचनों का इस्तेमाल करते रहते। बाइबल के सार, उसकी संरचना और उसकी कमियों की व्याख्या करके परमेश्वर किसी भी तरह से न तो बाइबल के अस्तित्व को नकार रहा था, न ही वह उसकी निंदा कर रहा था; बल्कि वह तो एक उपयुक्त और उचित विवरण मुहैया करा रहा था, जिससे बाइबल की मौलिक छवि बहाल हो सके। उसने बाइबल से संबंधित लोगों की गलतफहमियों को दूर किया और उनके सामने बाइबल की सही दृष्टि प्रस्तुत की, ताकि वे अब बाइबल की आराधना करके और भ्रमित न हों; जिसका तात्पर्य है कि, ताकि वे बाइबल में अपने अंधविश्वास को परमेश्वर में विश्वास और परमेश्वर की आराधना मानने की गलती न करें, और उसकी सच्ची पृष्ठभूमि और कमियों का सामना करने मात्र से भयभीत न हों। ... अगर लोग बाइबल के फंदे से नहीं निकल सके, तो वे कभी भी परमेश्वर के सामने नहीं आ पाएँगे। अगर वे परमेश्वर के सामने आना चाहते हैं, तो उन्हें अपने दिल से हर वो चीज़ साफ करनी होगी, जो परमेश्वर की जगह ले सकती हो; तभी वे परमेश्वर के लिए संतोषजनक होंगे। हालाँकि यहाँ परमेश्वर केवल बाइबल का उल्लेख करता है, लेकिन यह बात मत भूलो कि बाइबल के अलावा भी ऐसी बहुत-सी गलत चीज़ें हैं जिन्हें लोग दिल से पूजते हैं; बस उन्हीं चीज़ों को लोग नहीं पूजते जो सचमुच परमेश्वर से आती हैं। परमेश्वर बाइबल का इस्तेमाल केवल लोगों को यह याद दिलाने के लिए एक उदाहरण के रूप में करता है कि वे कोई गलत रास्ता न अपनाएँ और परमेश्वर में विश्वास रखते हुए और उसके वचनों को स्वीकारते हुए फिर से चरम सीमाओं पर जाकर उलझन का शिकार न हो जाएँ" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कलीसियाओं में जाकर बोले गए मसीह के वचन, परिचय)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन से साफ़ तौर पर उजागर हो गया है कि बाइबल परमेश्वर का साक्ष्य मात्र है, परमेश्वर द्वारा प्रथम दो चरणों में किये गये कार्यों का अभिलेख है। बाइबल की कीमत और एहमियत परमेश्वर द्वारा किये गये प्रथम दो चरणों के कार्य उनके वचनों के रूप में अभिलिखित हैं। इसे पूरी मानवजाति बाइबल में परमेश्वर के वचनों के रूप में देख सकती है, कि परमेश्वर ने किस प्रकार सभी चीज़ों की रचना की, उसने कैसे मानवजाति को रचा, उसने कैसे मानवजाति का मार्गदर्शन किया, और कैसे मानवजाति का उद्धार किया, किस प्रकार वह परमेश्वर को समझने में लोगों की मदद कर रहा है। बाइबल में दिये गये अभिलेखों के कारण ही बहुत से लोग परमेश्वर से जुड़े हैं। उन्होंने सिर्फ यही स्वीकार नहीं किया कि परमेश्वर ने सभी चीजों की रचना की है, बल्कि उनमें परमेश्वर के वचनों और परमेश्वर के पदचिन्हों को खोजने की भूख भी है। ये सभी लाभ और उपदेश बाइबल ने मानवजाति को दिए हैं, और बाइबल की महत्ता भी बताई है। लेकिन परमेश्वर का कार्य हमेशा प्रगतिशील रहा है। केवल प्रथम दो चरणों के कार्य पूर्ण करने से मानवजाति को बचाने का उद्देश्य पूरा नहीं होता। परमेश्वर की प्रबंधन योजना तीन चरणों में कार्य करना है। अगर हम महज़ बाइबल से चिपके रहते हैं लेकिन अगर परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों में किये गये कार्यों को नकार देते हैं जो कि बाइबल से परे हैं, तो यह एक बहुत बड़ी हानि होगी! परमेश्वर का मानवजाति की शुद्धि, रक्षा और परिपूर्णता का कार्य उसके द्वारा अंत के दिनों में किये गये न्याय के कार्य पर ही आधारित है। "इसीलिए अंत के दिनों में परमेश्वर ने जो सत्य कहा है" हमारे शुद्धिकरण, मुक्ति और स्वर्ग के साम्राज्य में प्रवेश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। प्रभु यीशु ने यह भविष्यवाणी क्यों की, कि जब वे वापिस आएंगे, तो वो सभी जो उन्हें स्वीकार करते हैं उनके साथ रात्रि-भोजन में शामिल होंगे? प्रभु ने कहा: "धन्य वे हैं, जो मेम्ने के विवाह के भोज में बुलाए गए हैं" (प्रकाशितवाक्य 19:9)। "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर, उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। हम सभी को ये बात साफ़ है कि इस विवाह-भोज का मतलब है कि परमेश्वर सच में इंसान को अपना लेंगे और उसे पूर्ण बना देंगे, उसे अपने साथ एक मन का बना लेंगे और फिर वो उनसे कभी जुदा नहीं होगा। इसीलिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अंत के दिनों में मानव की शुद्धि और बचाव के सत्य को दर्शाया। वो सभी जो परमेश्वर की आवाज़ को सुनकर उनको स्वीकार करते हैं और उनका अनुसरण करते हैं, वे सभी बुद्धिमान कुंवारियां हैं। मेमने की शादी की दावत में शामिल होने के लिए सिंहासन के सामने उन सभी का स्वर्गारोहण होता है, और वे परमेश्वर के सिंहासन से बहते जीवन के अमृत का आनन्द पाते हैं। परमेश्वर के द्वारा अंत के दिनों में किये गये न्याय और शुद्धिकरण को पाकर, वे परिवर्तन प्राप्त करने के लिए पापों से छुटकारा पायेंगे, और परमेश्वर द्वारा विजयी बनाए जाएंगे। ये बहुत ख़ुशकिस्मत लोग हैं, और ये ही लोग अनन्त जीवन को प्राप्त करेंगे और स्वर्ग के साम्राज्य में प्रवेश करेंगे। अगर लोग केवल बाइबल के आधार पर परमेश्वर में अपना विश्वास रखते हैं और बाइबल के पत्रों और धार्मिक नियमों में फंसे रहते हैं, परमेश्वर के पहले दो चरणों के कार्य से चिपके रहकर एक ही स्थान पर कदमताल करते हैं, तो उन्हें परमेश्वर के कार्य के पहले कदम से ही त्याग दिया जाना और निकाल देना दिया जाना आसान हो जाएगा, और वे अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा शुद्ध किये जाने, बचाए जाने और पूर्ण किये जाने का मौका खो देंगे। यह उन्हें पूरी तरह परमेश्वर के उद्धार के कार्य से अलग करता है। उनके सभी प्रयास शून्य हो जायेंगे और वे परमेश्वर द्वारा हटा दिए जायेंगे। परमेश्वर की नज़रों में, ये सब वे लोग हैं जिन्होंने उन्हें धोखा दिया है। वे सभी अविश्वासी हैं जो दुष्टों के साथ जुड़े हैं। अंत में, वे सभी पुराने फरीसियों की तरह ही हैं, जो परमेश्वर द्वारा दण्डित और शापित हुए क्योंकि वे हठपूर्वक पुराने नियमों पर अड़े हुए थे, और प्रभु यीशु का विरोध और निंदा करते थे। जैसे कि प्रभु यीशु ने कहा: "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की? और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला? और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए? तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, 'मैं ने तुम को कभी नहीं जाना: हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ'" (मत्ती 7:21-23)। जाहिर है, ये उन लोगों का परिणाम होगा जो बाइबल की बातों पर अड़े रहते हैं और परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करने से मना करते हैं।

चलिये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पर एक और नज़र डालें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "अंत के दिनों का मसीह जीवन लेकर आता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लेकर आता है। यह सत्य वह मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यह एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते हो, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के फाटक में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। वे लोग जो नियमों से, शब्दों से नियंत्रित होते हैं, और इतिहास की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, न तो कभी जीवन प्राप्त कर पाएँगे और न ही जीवन का शाश्वत मार्ग प्राप्त कर पाएँगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास, सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के जल की बजाय, बस मैला पानी ही है जिससे वे हजारों सालों से चिपके हुए हैं। वे जिन्हें जीवन के जल की आपूर्ति नहीं की गई है, हमेशा के लिए मुर्दे, शैतान के खिलौने, और नरक की संतानें बने रहेंगे। फिर वे परमेश्वर को कैसे देख सकते हैं? यदि तुम केवल अतीत को पकड़े रखने की कोशिश करते हो, केवल जड़वत खड़े रहकर चीजों को जस का तस रखने की कोशिश करते हो, और यथास्थिति को बदलने और इतिहास को ख़ारिज़ करने की कोशिश नहीं करते हो, तो क्या तुम हमेशा परमेश्वर के विरुद्ध नहीं होगे? परमेश्वर के कार्य के चरण उमड़ती लहरों और गरजते तूफानों की तरह विशाल और शक्तिशाली हैं—फिर भी तुम निठल्ले बैठकर तबाही का इंतजार करते हो, अपनी नादानी से चिपके रहते हो और कुछ भी नहीं करते हो। इस तरह, तुम्हें मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कैसे माना जा सकता है? तुम जिस परमेश्वर को थामे हो उसे उस परमेश्वर के रूप में सही कैसे ठहरा सकते हो जो हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता? और तुम्हारी पीली पड़ चुकी किताबों के शब्द तुम्हें नए युग में कैसे ले जा सकते हैं? वे परमेश्वर के कार्य के चरणों को ढूँढ़ने में तुम्हारी अगुआई कैसे कर सकते हैं? और वे तुम्हें ऊपर स्वर्ग में कैसे ले जा सकते हैं? तुम अपने हाथों में जो थामे हो वे शब्द हैं, जो तुम्हें केवल अस्थायी सांत्वना दे सकते हैं, जीवन देने में सक्षम सत्य नहीं दे सकते। तुम जो शास्त्र पढ़ते हो वे केवल तुम्हारी जिह्वा को समृद्ध कर सकते हैं और ये दर्शनशास्त्र के वचन नहीं हैं जो मानव जीवन को जानने में तुम्हारी मदद कर सकते हैं, तुम्हें पूर्णता की ओर ले जाने की बात तो दूर रही। क्या यह विसंगति तुम्हारे लिए गहन चिंतन का कारण नहीं है? क्या यह तुम्हें अपने भीतर समाहित रहस्यों का बोध नहीं करवाती है? क्या तुम परमेश्वर से अकेले में मिलने के लिए अपने आप को स्वर्ग को सौंप देने में समर्थ हो? परमेश्वर के आए बिना, क्या तुम परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनंद मनाने के लिए अपने आप को स्वर्ग में ले जा सकते हो? क्या तुम अभी भी स्वप्न देख रहे हो? तो मेरा सुझाव यह है कि तुम स्वप्न देखना बंद कर दो और उसकी ओर देखो जो अभी कार्य कर रहा है—उसकी ओर देखो जो अब अंत के दिनों में मनुष्य को बचाने का कार्य कर रहा है। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम कभी भी सत्य प्राप्त नहीं करोगे, और न ही कभी जीवन प्राप्त करोगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)

"बेड़ियों को तोड़ो और भागो" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 2: पौलुस ने तीमुथियुस 2 में साफ़तौर पर कहा था कि "पूरी बाइबल परमेश्वर से प्रेरित है" और बाइबल के सारे वचन परमेश्वर के वचन हैं। हम पौलुस के वचनों के अनुसार चल रहे हैं। यह गलत कैसे हो सकता है?

अगला: प्रश्न 4: मैंने सुना कि आप लोगों ने इस बात का प्रमाण दिया है कि देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लाखों वचन कहे हैं और परमेश्वर के घर से शुरू करते हुए अपना न्याय का कार्य पूरा किया है। लेकिन यह साफ़ तौर पर बाइबल से आगे निकल जाता है। इसका कारण यह है कि पादरी और नेतागण अक्सर हमसे कहा करते थे कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं। परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य बाइबल से बाहर नहीं है। प्रभु यीशु का उद्धार कार्य पहले ही पूरा हो चुका है। अंत में दिनों में प्रभु की वापसी विश्वासियों को सीधे स्वर्ग के राज्य में ले जाने के लिए होगी। इस प्रकार, हमेशा से हमारा यह मानना रहा है प्रभु में विश्वास बाइबल के आधार पर होना चाहिए। जब तक हम बाइबल की बातों पर कायम रहते हैं, हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने और शाश्‍वत जीवन पाने में सफल होंगे। बाइबल से दूर जाना प्रभु के रास्ते को छोड़ देना है। यह उनका विरोध करना और उनको धोखा देना है। सभी धार्मिक पादरी और एल्डर्स ऐसा ही सोचते हैं। इसमें गलत क्या हो सकता है?

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1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

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