304 मैं केवल सत्य पाना चाहती हूँ और अब पतित नहीं होऊँगी
मैंने दुनिया के अंधेरे और बुराई को स्पष्ट रूप से देखा है,
और मैं अब इसके रुझानों का निरुद्देश्य अनुसरण करने के लिए तैयार नहीं हूँ।
अपने दिल में यह जान लेने के बावजूद कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लोगों को बचा सकता है,
मैं सत्य को स्वीकार करने और उसका अनुसरण करने में असमर्थ क्यों हूँ?
मैं अपने गलत तरीकों से चिपकी रहकर अलग क्यों रहती हूँ?
क्या मैं सचमुच इतनी नीचे गिर गयी हूँ?
क्या मैं मूर्खता और अज्ञानता से नष्ट हो जाऊँगी?
मैंने आपदाओं को घटित होते देखा और अपने सपने से चौंक कर जाग गयी।
मैं इतनी नकारात्मक और गिरी हुई नहीं रहना चाहती।
मैं जोश के साथ उठूँगी;आज अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊँगी,
कायर नहीं, बल्कि योद्धा बनूँगी।
मैं केवल सत्य हासिल करके मसीह के लिए लड़ना चाहती हूँ।
मैं परमेश्वर के लिए गवाही देने,उसका आज्ञापालन और आजीवन उसका अनुसरण करने के लिए तैयार हूँ।