प्रश्न 1: मेरा मानना है कि यदि हम प्रभु यीशु के नाम और प्रभु के मार्ग के प्रति निष्ठावान रहेंगे और झूठे मसीहों और पैगम्बरों के छलावों को स्वीकार नहीं करेंगे, यदि हम प्रतीक्षा करते हुए सावधान रहेंगे, तो अपने आगमन पर प्रभु अवश्य हमें प्रकटीकरण देंगे। स्वर्गारोहण के लिए हमें प्रभु की आवाज सुनने की जरूरत नहीं है। प्रभु यीशु ने कहा है, "उस समय यदि कोई तुम से कहे, 'देखो, मसीह यहाँ है!' या 'वहाँ है!' तो विश्वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें" (मत्ती 24:23-24)। क्या आप लोग झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों के छलावों को नहीं मानते? और इसलिए, हम मानते हैं कि वे सब लोग जो प्रभु के आगमन की गवाही देते हैं निश्चित रूप से झूठे हैं। हमें खोजने या परखने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि जब प्रभु आएँगे तो वे स्वयं को हम पर प्रकट करेंगे, और निश्चित रूप से वे हमें छोड़ नहीं देंगे। मेरा विश्वास है कि यह सही परिपालन है। आप सब क्या सोचते हैं?
उत्तर: प्रभु यीशु ने वास्तव में यह भविष्यवाणी की थी कि अंत के दिनों में झूठे मसीहा और झूठे पैगम्बर सामने आएँगे। यह एक सच्चाई है। लेकिन प्रभु यीशु ने कई बार यह भी स्पष्ट रूप से भविष्यवाणी की है कि वे वापस लौटेंगे। पक्के तौर पर, क्या हम इसमें विश्वास करते हैं? प्रभु यीशु की वापसी की भविष्यवाणियों को परखते समय, बहुत से लोग झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों से सावधान होने को प्राथमिकता दे देते हैं। और इस बात पर जरा भी विचार नहीं करते कि जब दूल्हे का आगमन होगा तो उसका स्वागत कैसे करेंगे, और उसकी आवाज कैसे सुनेंगे। यहां समस्या क्या है? क्या यह ऐसी बात नहीं हुई कि दम घुटने के डर से खाना ही न खाया जाए, अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप जैसी बात? सच यह है कि झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों के प्रति हम कितने भी सजग रहें, यदि हम प्रभु की वापसी का स्वागत नहीं करेंगे, और हमें परमेश्वर के सिंहासन के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जा सकेगा, तो हम उन मूर्ख कुंवारियों की तरह होंगे जिन्हें परमेश्वर ने हटा दिया और त्याग दिया है, और प्रभु में हमारा विश्वास -पूरी तरह से विफल हो जाएगा! हम प्रभु की वापसी का स्वागत कर सकेंगे या नहीं, इसकी कुंजी इस बात में छुपी हुई है कि हम परमेश्वर की आवाज सुनने में समर्थ हैं या नहीं। जबतक हम इस तथ्य को पहचानेंगे कि मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन हैं, तबतक हमें परमेश्वर की आवाज को पहचानने में कोई कठिनाई नहीं होगी। यदि हम सत्य को नहीं समझ सकेंगे, और केवल परमेश्वर के संकेतों और चमत्कारों पर ही ध्यान केन्द्रित किए रहेंगे, तो हम निश्चित रूप से झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों द्वारा छले जाएँगे। यदि हम सच्चे मार्ग की खोज और परख नहीं करेंगे, तो हम कभी भी परमेश्वर की आवाज सुनने में समर्थ नहीं होंगे। क्या हम मृत्यु की प्रतीक्षा नहीं करते रहते हैं और अपना विनाश स्वयं नहीं ले आते हैं? हम प्रभु के वचनों में विश्वास करते हैं, परमेश्वर के मेमने परमेश्वर की आवाज सुनते हैं। जो लोग सचमुच विचार और योग्यता से सम्पन्न हैं, और परमेश्वर की आवाज सुन सकते हैं वे झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों द्वारा नहीं छले जाएँगे। क्योंकि झूठे मसीहे और झूठे पैगम्बर सत्य से विहीन हैं, और परमेश्वर का कार्य कर सकने में वे असमर्थ हैं। हमें इस बात को लेकर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। जो लोग असमंजस में पड़े और विवेकहीन हैं, केवल वे ही झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों द्वारा छले जा सकते हैं। चतुर कुंवारियां झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों द्वारा नहीं छली जाएँगी, क्योंकि उन्हें परमेश्वर की देखभाल और उनका संरक्षण प्राप्त है। परमेश्वर ने जब मनुष्य की रचना की तो चतुर कुंवारियों को मानवीय चेतना से सम्पन्न किया गया और उन्हें परमेश्वर की आवाज सुनने में सक्षम बनाया गया। और इसलिए, परमेश्वर के मेमने उसकी आवाज सुन पाते हैं, परमेश्वर द्वारा ऐसा ही नियत किया गया है। केवल मूर्ख कुंवारियां ही झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों से बचते फिरने की युक्ति में लगी रहती हैं, और प्रभु की वापसी को समझने और परखने की उपेक्षा कर देती हैं। यदि हम प्रभु की वापसी का स्वागत करना चाहते हैं, और झूठे मसीहों तथा झूठे पैगम्बरों से छले जाना नहीं चाहते, तो हमें यह समझना होगा कि झूठे मसीहे लोगों को कैसे बहकाते हैं। वास्तव में, प्रभु यीशु ने हमें झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों की कार्यविधियों के बारे में पहले ही बता दिया है। प्रभु यीशु ने कहा है, "क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे: कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें" (मत्ती 24:24)। प्रभु यीशु के वचन हमें यह दिखाते हैं कि परमेश्वर के चुने हुए जनों को छलावा देने के लिए झूठे मसीहे और पैगम्बर मुख्य रूप से संकेतों और चमत्कारों का सहारा लेते हैं। झूठे मसीहों द्वारा लोगों को ठगने का यह मुख्य प्रत्यक्षीकरण है। इसमें हमें यह जरूर समझ लेना चाहिए कि झूठे मसीहे लोगों को छलने के लिए संकेतों और चमत्कारों का प्रयोग क्यों करते हैं। सबसे बड़ी बात, ऐसा इसलिए है क्योंकि झूठे मसीहे और झूठे पैगम्बर सत्य से बिल्कुल ही वंचित होते हैं। अपनी प्रकृति और अपने सार में, वे अत्यंत ही दुष्ट और बुरी चेतना वाले होते हैं। और इसलिए लोगों को छलने के लिए उन्हें संकेतों और चमत्कारों पर निर्भर होना पड़ता है। यदि झूठे मसीहे और झूठे पैगम्बर सत्य से सम्पन्न होते, तो वे लोगों को छलने के लिए संकेतों और चमत्कारों का प्रयोग नहीं करते। इस तरह से देखने पर, झूठे मसीहे और झूठे पैगम्बर संकेत और चमत्कार इसलिए उत्पन्न करते हैं क्योंकि वे इतना ही कर सकते हैं। यदि हम यही नहीं समझ सकते तो हमें छलना उनके लिए बिल्कुल आसान हो जाएगा। केवल मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन हैं। वह जो सत्य को प्रकट कर सकता हो, और लोगों को मार्ग दिखा सकता हो, और उन्हें जीवन दे सकता हो वह मसीह ही हैं। जो लोग सत्य को अभिव्यक्त करने में असमर्थ हैं वे पक्के तौर पर झूठे मसीह हैं, वे नकली हैं। झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों को पहचानने का यह बुनियादी सिद्धान्त है। वे सब लोग जो सच्चे मार्ग को पाने का प्रयत्न और उसकी परख करते हैं, उन्हें परमेश्वर की आवाज को खोजने और उसका पता लगाने के लिए इस सिद्धान्त का पालन करना चाहिए। और इस तरह वे कोई गलती नहीं करेंगे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर झूठे मसीहों और झूठे पैगम्बरों की कार्यविधियों का पहले ही खुलासा कर चुके हैं। आइए, हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "यदि वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति उभरे, जो चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने, दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और कई चमत्कार दिखाने में समर्थ हो, और यदि वह व्यक्ति दावा करे कि वह यीशु है जो आ गया है, तो यह बुरी आत्माओं द्वारा उत्पन्न नकली व्यक्ति होगा, जो यीशु की नकल उतार रहा होगा। यह याद रखो! परमेश्वर वही कार्य नहीं दोहराता। कार्य का यीशु का चरण पहले ही पूरा हो चुका है, और परमेश्वर कार्य के उस चरण को पुनः कभी हाथ में नहीं लेगा। ... मनुष्य की धारणाओं के अनुसार, परमेश्वर को सदैव चिह्न और चमत्कार दिखाने चाहिए, सदैव बीमारों को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना चाहिए, और सदैव ठीक यीशु के समान होना चाहिए। परंतु इस बार परमेश्वर इसके समान बिल्कुल नहीं है। यदि अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर अब भी चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करे, और अब भी दुष्टात्माओं को निकाले और बीमारों को चंगा करे—यदि वह बिल्कुल यीशु की तरह करे—तो परमेश्वर वही कार्य दोहरा रहा होगा, और यीशु के कार्य का कोई महत्व या मूल्य नहीं रह जाएगा। इसलिए परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य का एक चरण पूरा करता है। ज्यों ही उसके कार्य का प्रत्येक चरण पूरा होता है, बुरी आत्माएँ शीघ्र ही उसकी नकल करने लगती हैं, और जब शैतान परमेश्वर के बिल्कुल पीछे-पीछे चलने लगता है, तब परमेश्वर तरीक़ा बदलकर भिन्न तरीक़ा अपना लेता है। ज्यों ही परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण पूरा किया, बुरी आत्माएँ उसकी नकल कर लेती हैं। तुम लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना)। "परमेश्वर का कार्य कभी भी मनुष्यों की धारणाओं के अनुरूप नहीं होता, क्योंकि उसका कार्य हमेशा नया होता है और कभी भी पुराना नहीं होता, न ही वह कभी पुराने कार्य को दोहराता है, बल्कि पहले कभी नहीं किए गए कार्य के साथ आगे बढ़ता जाता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, वो मनुष्य, जिसने परमेश्वर को अपनी ही धारणाओं में सीमित कर दिया है, किस प्रकार उसके प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है?)।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हमें स्पष्ट रूप से बताते हैं कि परमेश्वर हमेशा नवीन होते हैं, कभी भी पुराने नहीं होते और वे हमेशा एक ही कार्य नहीं करते। यह ठीक वैसा ही है कि जब यीशु अपना कार्य करने आए: वे हमें अनुग्रह के युग में ले आए, और उन्होंने व्यवस्था के युग को समाप्त किया। उन्होंने छुटकारे के कार्य का एक चरण पूरा किया और मनुष्य जाति को पाप से बचा लिया। उनका कार्य प्रभावी हो सके, इसके लिए उन्होंने कुछ संकेत और चमत्कार भी दिखाए। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का आगमन हुआ है, उन्होंने राज्य के युग का आरंभ किया और अनुग्रह के युग को समाप्त किया। लेकिन वे प्रभु यीशु द्वारा किए गए कार्य को दोबारा नहीं करते। इसके बजाय, प्रभु यीशु द्वारा छुटकारे के कार्य के आधार पर, वे परमेश्वर के घर से आरंभ करते हुए न्याय का कार्य संचालित करते हैं। मानवजाति के शुद्धिकरण और उद्धार के लिए वे सभी सत्यों को प्रकट करते हैं ताकि मनुष्य के पाप के मूल और उसके शैतानी स्वभाव का निराकरण किया जा सके, और मनुष्य को पूरी तरह से शैतान के प्रभाव से बचाया जा सके, ताकि मनुष्य परमेश्वर को प्राप्त हो सके। और झूठे मसीहे? वे सब दुष्ट चेतनाएं हैं जो मसीह की नकल उतारते हैं। वे नए युग की ओर ले जाने और पुराने युग को समाप्त करने का कार्य कर सकने में असमर्थ हैं। कुछ साधारण संकेतों और चमत्कारों को पैदा करके वे केवल प्रभु यीशु की नकल कर सकते हैं, ताकि वे मूर्खों और नासमझों को धोखा दे सकें। लेकिन मृतक को जीवित करके यीशु ने जो कार्य किया, उसकी नकल करने में वे सक्षम नहीं हैं, और न ही वे रोटी के पाँच टुकड़ों से पाँच हजार लोगों का पेट भरने, या वायु और समुद्र को फटकारने में सक्षम हैं। यह उनकी क्षमता से बिल्कुल बाहर है। सारांश रूप में, झूठे मसीहा दुष्ट होते हैं, वे बुरी चेतना हैं, और सत्य से पूरी तरह वंचित हैं। और इसलिए, लोगों को छलने के लिए उन्हें संकेतों और चमत्कारों पर निर्भर होना पड़ता है। या फिर वे परमेश्वर के वचनों के लहजे तथा कभी परमेश्वर द्वारा कहे गए सामान्य वचनों की नकल करके लोगों को छलते और सलाह देते हैं। आइए, हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों पर दृष्टि डालें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "देहधारी हुए परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह जो लोगों को सत्य दे सकता है परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि वह परमेश्वर का सार धारण करता है, और अपने कार्य में परमेश्वर का स्वभाव और बुद्धि धारण करता है, जो मनुष्य के लिए अप्राप्य हैं। वे जो अपने आप को मसीह कहते हैं, परंतु परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते हैं, धोखेबाज हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है जिसे धारण करके परमेश्वर मनुष्य के बीच रहकर अपना कार्य करता और पूरा करता है। यह देह किसी भी आम मनुष्य द्वारा उसके बदले धारण नहीं की जा सकती है, बल्कि यह वह देह है जो पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य पर्याप्त रूप से संभाल सकती है और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकती है, और परमेश्वर का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सकती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकती है। जो मसीह का भेस धारण करते हैं, उनका देर-सवेर पतन हो जाएगा, क्योंकि वे भले ही मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें मसीह के सार का लेशमात्र भी नहीं है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि मसीह की प्रामाणिकता मनुष्य द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती, बल्कि स्वयं परमेश्वर द्वारा ही इसका उत्तर दिया और निर्णय लिया जा सकता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से, हम यह साफ तौर पर देख सकते हैं कि मसीह देहधारी हुए परमेश्वर हैं, वे देह में साकार हुई परमेश्वर की आत्मा हैं। अर्थात्, परमेश्वर जो कुछ भी धारण करते हैं, जिसमें परमेश्वर के पास जो है और परमेश्वर जो है, परमेश्वर का स्वभाव, और परमेश्वर का विवेक शामिल है, सभी उनके देह में साकार होते हैं। मसीह में दिव्यता का सार है, और वे सत्य के अवतार हैं। वे हमेशा सभी स्थानों पर मनुष्य को सत्य प्रदान करने, सत्य को व्यक्त करने, और इसे मनुष्य तक पहुँचाने में समर्थ हैं। केवल मसीह ही मानवजाति को छुटकारा दिलाने और बचाने का कार्य कर सकते हैं। और कोई इसकी नकल नहीं कर सकता है, और न ही इससे इनकार कर सकता है। जबकि अधिकतर झूठे मसीह, इस बीच, शैतानी आत्माओं के काबू में रहते हैं। वे अत्यधिक अभिमानी और हास्यास्पद होते हैं। सार रूप में, वे शैतानी आत्माएँ और दानव हैं। इस प्रकार, इस बात की परवाह किए बिना कि वे क्या संकेत या चमत्कार करके दिखाते हैं, या वे किस प्रकार से बाइबल की गलत व्याख्या करते हैं, या गहरे ज्ञान और सिद्धांत की बातें करते हैं, वे लोगों को धोखा देने, उन्हें नुकसान पहुँचाने, और उन्हें बर्बाद करने के अलावा और कुछ नहीं करते हैं। वे ऐसा कुछ भी नहीं करते हैं जो लोगों के लिए शिक्षाप्रद हो। वे बस इतना ही करते हैं कि लोगों के हृदयों में और अधिक अंधकार भर देते हैं, वे उनके चलने के लिए कोई रास्ता नहीं छोड़ते हैं, ताकि अंततः शैतान उन्हें निगल जाए। यह देखा जा सकता है कि सभी झूठे मसीह और झूठे पैगंबर देहधारी शैतान हैं, वे बुरे दानव हैं जो परमेश्वर के कार्य को बाधित करने और परमेश्वर को परेशान करने आए हैं। और इसलिए, इस बात की परवाह किए बिना कि वे कितने लोगों को धोखा देते हैं, हानि पहुँचाते हैं या बर्बाद करते हैं, उनका शीघ्र ही पतन होगा, और वे स्वयं को नष्ट कर लेंगे, क्योंकि उनमें ज़रा सा भी सत्य नहीं है। यदि हम वास्तव में इस बारे में सत्य को समझ जाते हैं कि सच्चे मसीह और झूठे मसीह के बीच अंतर कैसे करें, तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि झूठे मसीहों के हाथों धोखा खाने के डर से हम परमेश्वर की आवाज़ को सुनने या उनके प्रकटन का स्वागत करने से इनकार कर दें।
क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन झूठे मसीहों और झूठे पैगंबरों के सार का खुलासा कर देते हैं केवल इसी कारण से, हमारे पास कुछ विवेक है। सार रूप में, झूठे मसीह और झूठे पैगंबर दुष्ट आत्माएँ हैं, जिनमें ज़रा सा भी सत्य नहीं है। वे लोगों को धोखा देने के लिए बस कुछ साधारण से संकेत दिखा सकते हैं और चमत्कार कर सकते हैं। यदि हम इस सत्य को समझ लें, तो हम झूठे मसीहों और झूठे पैगंबरों से अब और धोखा नहीं खाएँगे। कि आप लोगों ने यह भी उल्लेख किया कि परमेश्वर अपने आगमन पर मनुष्य को निश्चित रूप से प्रेरित करेंगे। वास्तव में, कई लोग इसमें विश्वास करते हैं: जब तक वे प्रभु के नाम और मार्ग के प्रति निष्ठावान रहते हैं, जब प्रभु आएँगे, तो उन्हें प्रकटन दिया जाएगा और उन्हें परमेश्वर की आवाज़ को सुनने की आवश्यकता के बिना ही सीधे स्वर्ग का राज्य में ले जाया जाएगा। यह स्पष्ट रूप से प्रभु यीशु के वचनों के विरुद्ध है। प्रभु यीशु ने कहा, "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)। "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:7)। प्रभु यीशु ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब प्रभु आएँगे, तो वे निश्चित रूप से वचन बोलेंगे और परमेश्वर की आवाज़ व्यक्त करेंगे। परमेश्वर की आवाज़ को सुनने, खोजने और उसे स्वीकार करने वाले सभी लोग, इस प्रकार प्रभु की वापसी का स्वागत करेंगे और परमेश्वर के सिंहासन के समक्ष ले जाए जाएँगे। यदि हम लोगों को प्रभु के आगमन की गवाही देते हुए सुनें, मगर उसकी खोज या जाँच नहीं करें, तो क्या इससे काम चलेगा? प्रभु के प्रकटन की प्रतीक्षा मात्र करना कैसे व्यावहारिक हो सकता है? क्या प्रभु इस प्रकार कार्य कर सकते थे? क्या प्रभु ने हमारे लिए यह कहा कि हम उनके प्रकटन की प्रतीक्षा करें? नहीं, उन्होंने ऐसा नहीं कहा! इसलिए, इस प्रकार के दृष्टिकोण केवल भ्रम और धोखा हैं। केवल हास्यास्पद मूर्ख ही ऐसी बातें कह सकते हैं। यदि हम इस कथन के अनुसार प्रभु के प्रकटन की प्रतीक्षा करें, तो हम बस मृत्यु की प्रतीक्षा करने और अपना स्वयं का पतन करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते हैं। आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों पर नज़र डालें। "ऐसे लोग तो और भी हैं जो यह मानते हैं कि परमेश्वर का नया कार्य जो भी हो, उसे भविष्यवाणियों द्वारा सही साबित किया जाना ही चाहिए और कार्य के प्रत्येक चरण में, जो भी 'सच्चे' मन से उसका अनुसरण करते हैं, उन्हें प्रकटन भी अवश्य दिखाया जाना चाहिए; अन्यथा वह कार्य परमेश्वर का कार्य नहीं हो सकता। परमेश्वर को जानना मनुष्य के लिए पहले ही आसान कार्य नहीं है। मनुष्य के बेतुके हृदय और उसके आत्म-महत्व एवं दंभी विद्रोही स्वभाव को देखते हुए, परमेश्वर के नए कार्य को ग्रहण करना मनुष्य के लिए और भी अधिक कठिन है। मनुष्य न तो परमेश्वर के कार्य पर ध्यान से जाँच करता है और न ही इसे विनम्रता से स्वीकार करता है; बल्कि मनुष्य परमेश्वर से प्रकाशन और मार्गदर्शन का इंतजार करते हुए, तिरस्कार का रवैया अपनाता है। क्या यह ऐसे मनुष्य का व्यवहार नहीं है जो परमेश्वर का विरोधी और उससे विद्रोह करने वाला है? इस प्रकार के मनुष्य कैसे परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त कर सकते हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, वो मनुष्य, जिसने परमेश्वर को अपनी ही धारणाओं में सीमित कर दिया है, किस प्रकार उसके प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है?)। जब बात प्रभु के आगमन की हो, तो यदि हम आँखें बंद करके अपनी खुद की धारणाओं और कल्पनाओं से चिपके रहें, यदि हम सत्य की खोज न करें, या परमेश्वर की आवाज़ सुनने पर ध्यान न दें, और परमेश्वर के प्रकटन की प्रतीक्षा मात्र करते रहें, तो हम परमेश्वर की वापसी का स्वागत कभी नहीं कर पाएंगे। हमें यह जानना चाहिए कि अनुग्रह के युग में, जिन लोगों ने प्रभु यीशु का अनुसरण किया उन सब में से, एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जिसने अनुसरण इसलिए किया हो क्योंकि उसे पहले प्रकटन दिया गया था। उन सभी ने लोगों की प्रभु यीशु के लिए गवाही सुनी थी, या प्रभु यीशु के कथन और उपदेश सुने थे और उनकी आवाज़ पहचान ली थी, और इसलिए उन्होंने प्रभु का अनुसरण किया था। और हालांकि पतरस को परमेश्वर से प्रकटन मिला था, और उन्होंने पहचाना था कि प्रभु यीशु मसीह हैं, परमेश्वर के पुत्र हैं, किंतु ऐसा उनके द्वारा प्रभु यीशु का कुछ समय तक अनुसरण करने के बाद हुआ था। प्रभु यीशु के वचनों और कार्य से, उन्हें प्रभु यीशु का थोड़ा ज्ञान हो गया था, और केवल तभी पवित्र आत्मा ने उन्हें ज्ञान प्रदान किया था। यह तथ्य है। अंत के दिनों में, देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर, परमेश्वर के घर से आरंभ करते हुए न्याय का कार्य करते हैं। उन्होंने लाखों वचन व्यक्त किए हैं और अनगिनत अनुयायी प्राप्त किए हैं, और उनमें से एक को भी अनुसरण से पहले परमेश्वर का प्रकटन प्राप्त नहीं हुआ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने वाले सभी लोगों को पवित्र आत्मा द्वारा तब ज्ञान दिया गया जब वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों और कार्यों की खोज और जाँच में लगे हुए थे। उन्हें महसूस हुआ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पूरी तरह सत्य हैं, उन्होंने परमेश्वर की आवाज़ पहचानी, और केवल तभी उन्होंने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया और वे परमेश्वस के सिंहासन के समक्ष ले जाए गए। यह प्रकाशित वाक्य की पुस्तक की भविष्यवाणी को पूरा करता है: "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ: यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। मगर धार्मिक समुदाय में ऐसे लोग हैं जो अपनी धारणाओं और कल्पनाओं को छोड़ने को तैयार नहीं हैं। वे परमेश्वर के प्रकटन की प्रतीक्षा मात्र करते हैं, और परमेश्वर की आवाज़ सुनने से इनकार कर देते हैं। विशेष रूप से, पादरी और एल्डर्स सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का सामना होने पर न केवल खोज और जाँच नहीं करते, बल्कि वे अफवाहें भी गढ़ते हैं, और पागलपन में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा भी करते हैं। वे विश्वासियों को धोखा तक देते हैं, और उन्हें सच्चे मार्ग की जाँच करने से भी रोकते हैं। ऐसे लोगों को परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य द्वारा खऱ-पतवार और ईसा-विरोधी के रूप में प्रकट किया गया है। और ये ही वे लोग हैं जिनका परमेश्वर के कार्य द्वारा पर्दाफ़ाश किया जाता है और जिन्हें समाप्त कर दिया जाता है। वास्तव में, जिन दो अवसरों में परमेश्वर ने पृथ्वी पर कार्य करने के लिए देहधारण किया, उन्होंने इस बारे में पहले से किसी को नहीं बताया। चूँकि परमेश्वर सृष्टिकर्ता हैं, और अपने कार्य के लिए उनके पास स्वयं की योजना है। वे लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार कार्य नहीं करते, और न ही वे लोगों की सलाह माँगते हैं। पहले से तो किसी को भी बहुत ही कम बताते हैं। इस प्रकार कार्य करते हुए परमेश्वर सभी के साथ निष्पक्ष रहते हैं। यह पूर्णरूपेण उनके निष्पक्ष एवं धर्मी स्वभाव को दर्शाता है, और, इसके अलावा, उनके कार्य में परमेश्वर के विवेक को दर्शाता है। परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज़ सुनेंगी। यह प्रकट करने के लिए कि कौन सत्य से प्रेम करते हैं, कौन सत्य से घबराते हैं, कौन धूर्त, मूर्ख, अच्छे और दुष्ट हैं, परमेश्वर व्यावहारिक वचनों और कार्यों का उपयोग करते हैं। ठीक जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था, "धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं: क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है" (मत्ती 5:3)। "धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं: क्योंकि वे तृप्त किए जाएँगे" (मत्ती 5:6)। "धन्य हैं वे, जिन के मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे" (मत्ती 5:8)। परमेश्वर के विश्वासियों के रूप में हमें विनम्र होना चाहिए, हमें धार्मिकता के लिए भूखा और प्यासा होना चाहिए, और हृदय से शुद्ध होना चाहिए, जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा है। हमें चतुर कुँवारी की तरह, परमेश्वर की आवाज़ सुनने पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्यों की खोज और जाँच-पड़ताल करनी चाहिए। और केवल इस तरीके से ही हम मेमने के विवाह भोज में जा सकते हैं। यदि हम बस आँखें बंद करके झूठे मसीहों से बचने की कोशिश करें और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की खोज और जाँच न करें, यदि हम तब भी प्रभु के प्रकटन की प्रतीक्षा करते रहें, तो इसका अर्थ है कि हम अंधे, हम मूर्ख कुंवारियां बन चुके हैं और हम स्वयं के द्वारा समाप्त कर दिए जाएँगे।
"प्रतीक्षारत" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश