322 परमेश्वर इंसान से क्या पाता है?
ईश्वर प्रेम, करुणा और अपनी योजना की वजह से इंसान को बचाए।
चूँकि गिर गया इंसान, ख़ुद ही बात करनी होगी ईश्वर को।
1
महान अनुग्रह है इंसान के लिये उद्धार पाना।
ईश-वाणी न हो, तो बर्बाद हो जाए इंसान।
ईश्वर को घृणा है इंसानी नस्ल से,
फिर भी वो तैयार है इंसान के उद्धार की कीमत चुकाने को।
इंसान ईश्वर से प्रेम का ढोंग करे, उससे जबरन अनुग्रह ले, विद्रोह करे,
(इंसान) ईश्वर को आहत करे, भयंकर दुख भी दे।
स्वार्थी इंसान और निस्स्वार्थ ईश्वर में यही बड़ा अंतर है!
हर ईश-वचन से इंसान सत्य पाए, उसमें बदलाव आए, वो जीवन की दिशा पाए।
बदले में इंसान ईश्वर को ज़रा-सी प्रशंसा दे, तुच्छ शब्दों से आभार जताए।
क्या ईश्वर इंसान से ऐसा प्रतिफल चाहे?
2
इंसान ईश्वर को शायद अपने जैसा ही समझे।
ईश्वर को बड़ा दुख हो जब वो आकर काम करे, और इंसान उसे नकारे।
इंसान को बचाने के लिए ईश्वर अपमान सहे।
वो इंसान को बचाने के लिए सब-कुछ करे, चाहे कि वो उसे स्वीकारे।
इसके लिए ईश्वर ने चुकाई जो कीमत, उसे समझ सकें ज़मीर वाले।
इंसान ने ईश-वचन, कार्य और उसका उद्धार पाया है।
मगर कभी किसी ने पूछा नहीं:
ईश्वर ने इंसान से क्या पाया? ईश्वर ने इंसान से क्या पाया?
हर ईश-वचन से इंसान सत्य पाए, उसमें बदलाव आए, वो जीवन की दिशा पाए।
बदले में इंसान ईश्वर को ज़रा-सी प्रशंसा दे, तुच्छ शब्दों से आभार जताए।
क्या ईश्वर इंसान से ऐसा प्रतिफल चाहे?
हर ईश-वचन से इंसान सत्य पाए, उसमें बदलाव आए, वो जीवन की दिशा पाए।
बदले में इंसान ईश्वर को ज़रा-सी प्रशंसा दे, तुच्छ शब्दों से आभार जताए।
क्या ईश्वर इंसान से ऐसा प्रतिफल चाहे?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' की परिचय से रूपांतरित