418 प्रार्थना के मायने
1
प्रार्थनाएँ वह मार्ग होती हैं जो जोड़ें मानव को परमेश्वर से,
जिससे वह पुकारे पवित्र आत्मा को और प्राप्त करे स्पर्श परमेश्वर का।
जितनी करोगे प्रार्थना, उतना ही स्पर्श पाओगे,
प्रबुद्ध होगे और मन में शक्ति आएगी।
ऐसे ही लोगों को मिल सकती है पूर्णता शीघ्र ही, शीघ्र ही, शीघ्र ही, शीघ्र ही।
2
तो जो ना करे प्रार्थना वह है जैसे मृत बिना आत्मा के।
ना मिले स्पर्श परमेश्वर का, ना कर सके अनुपालन परमेश्वर के कार्यों के।
जो नहीं करोगे प्रार्थना तो छूट जाएगा सामान्य आत्मिक जीवन,
नहीं पाओगे परमेश्वर का साथ; वो तुमको अपनाएगा नहीं,
वो तुमको अपनाएगा नहीं।
जितनी करोगे प्रार्थना, उतना ही स्पर्श पाओगे,
प्रबुद्ध होगे और मन में शक्ति आएगी।
ऐसे ही लोगों को मिल सकती है पूर्णता शीघ्र ही,
ऐसे ही लोगों को मिल सकती है पूर्णता शीघ्र ही,
शीघ्र ही, शीघ्र ही, शीघ्र ही, शीघ्र ही।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रार्थना के अभ्यास के बारे में से रूपांतरित