813 यीशु के बारे में पतरस का ज्ञान
1 पतरस ने कुछ वर्षों तक यीशु का अनुगमन किया और उसने यीशु में अनेक बातों को देखा जो लोगों के पास नहीं थीं। उसके जीवन में यीशु के प्रत्येक कार्य ने उसके लिए एक उदाहरण के रूप में कार्य किया, और विशेषत: यीशु के उपदेश उसके हृदय में बस गये थे। वह यीशु के प्रति अत्यधिक विचारशील और समर्पित था, और उसने यीशु के बारे में कभी शिकायत नहीं की थी। इसीलिए जहाँ कहीं यीशु गया वह यीशु का विश्वासयोग्य सहयोगी बन गया। पतरस ने यीशु की शिक्षाओं, उसके नम्र शब्दों, वह क्या खाता था, क्या पहनता था, उसकी दिनचर्या और उसकी यात्राओं पर ध्यान दिया। उसने प्रत्येक रीति से यीशु के उदाहरणों का अनुगमन किया। वह पाखण्डी नहीं था, परन्तु उसने अपनी सभी पुरानी बातें उतारकर फ़ेंक दी थी और कथनी और करनी में यीशु के उदाहरण का अनुगमन किया था।
2 तभी उसे अनुभव हुआ कि आकाशमण्डल और पृथ्वी और सभी वस्तुएँ सर्वशक्तिमान के हाथों में थीं, और इसी कारण उसकी अपनी कोई पसन्द नहीं थी, परन्तु अपने उदाहरण के रूप में प्रत्येक कार्य उसने वैसे ही किया जैसे यीशु करता था। वह उसके जीवन से देख सका कि, जो यीशु ने किया, उसमें वह पाखण्डी नहीं था, और न ही उसने अपने विषय में डींगें मारी थीं, परन्तु इसके स्थान पर, उसने प्रेम के साथ लोगों को प्रभावित किया था। विभिन्न परिस्थितियों में पतरस देख सका कि यीशु क्या था। इसीलिए यीशु में प्रत्येक बात वह बात बन गयी जिसे बाद में पतरस ने अपने लिए आदर्श बनाया। अपने अनुभवों में, उसने यीशु की मनोरमता को और अधिक अनुभव किया।
3 उसने ऐसा कुछ कहा: "मैंने सर्वशक्तिमान की खोज की और आकाशमण्डल और पृथ्वी और सभी बातों की अद्भुतता को देखा, और इसीलिए मुझ में सर्वशक्तिमान के लिए एक गहन मनोरमता का भाव था। परन्तु मेरे हृदय में वास्तविक प्रेम कदापि नहीं था और मैंने अपनी आँखों से सर्वशक्तिमान की मनोरमता को कभी नहीं देखा था। आज सर्वशक्तिमान की दृष्टि में मुझे उसके द्वारा कृपापूर्वक देखा गया है, और मैंने अन्ततः परमेश्वर की मनोरमता को अनुभव किया है, और अन्ततः जान लिया है कि परमेश्वर के द्वारा सभी वस्तुओं को बना देना ही वह कारण नहीं होगा, जिससे मानवजाति उससे प्रेम करेगी। मेरी दिनचर्या में मैंने उसकी असीमित मनोरमता को पा लिया; आज यह केवल इस स्थिति तक सीमित कैसे हो सकती थी?"
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "पतरस के जीवन पर" से रूपांतरित