118 स्वर्गिक राज्य की प्रजा
I
कहते प्रभु के वचन "प्रायश्चित करो, करीब है स्वर्ग का राज्य।"
हैं यहाँ परमेश्वर अंत के दिनों में, है हमारे मध्य उनका राज्य।
प्रकट हुआ है धरती पर स्वर्ग का राज्य, मसीह का राज्य।
II
देती हैं ध्यान परमेश्वर की वाणी पर, आती हैं बुद्धिमान कुँवारियाँ सामने उनके।
पढ़ते हम वचन परमेश्वर के, स्वीकारते हैं सत्य को,
शामिल होते हैं भोज में मेमने के।
न्याय, उनके वचनों का प्रकाशन दिखाते हैं मेरी प्रकृति को।
कपटी हूँ, अमानुष हूँ, उनके सामने आने के नाकाबिल हूँ मैं, नाकाबिल हूँ मैं।
III
मसीह का न्याय दूर करता है भ्रष्टता मेरी।
ख़ोलती दिल अपना मैं ईश्वर के सामने, है नहीं अवरोध कोई।
करूँ प्रेम ईश्वर से मैं, निभाऊँ फ़र्ज़ अपना, स्वीकारूँ जाँच उनकी।
है आस्था मेरी कि मैं सत्य पाऊँ, और इंसान की तरह जिऊँ।
ईमानदार इंसान जो करते हैं ईश्वर से प्रेम सच में,
वही लोग हैं स्वर्गिक राज्य के।
स्वर्ग है मसीह का राज्य, वो घर है ईमानदार इंसानों का।
सदा प्रेम करूँगी परमेश्वर को मैं, सदा प्रेम करूँगी परमेश्वर को मैं!
IV
आशीषें पाने का षड्यंत्र रचना दुष्टता, निर्लज्जता है।
खरा है, सच्चा है, दिल से असली है जो, वही ईमानदार है।
देंगे वो सर्वस्व, परमेश्वर के प्रेम के प्रतिदान की ख़ातिर, लुटा देंगे वो ख़ुद को।
जीते हैं सत्य को, करते हैं सच्चा प्रायश्चित ईमानदार इंसान, ईमानदार इंसान।
जीते हैं परमेश्वर की इच्छा पूरी करने को वो,
करते नहीं कोई शिकायत, कोई मलाल वो।
सीखते हैं भय मानना परमेश्वर का,
दूर रहना बुराई से और जीना उनके सामने वो।
यातना और परीक्षणों को सहकर,
गौरवगान करने परमेश्वर का, देते हैं ज़ोरदार गवाही वो।
ईमानदार इंसान जो करते हैं ईश्वर से प्रेम सच में,
वही लोग हैं स्वर्गिक राज्य के।
स्वर्ग है मसीह का राज्य, वो घर है ईमानदार इंसानों का।
सदा प्रेम करूँगी परमेश्वर को मैं, सदा प्रेम करूँगी परमेश्वर को मैं!