अध्याय 19

जैसे-जैसे पवित्र आत्मा का कार्य निरंतर आगे बढ़ रहा है, परमेश्वर एक बार फिर हमें एक नए तरीके की ओर ले गया है, जिसमें पवित्र आत्मा कार्य करता है। परिणामस्वरूप, कुछ लोगों ने मुझे अनिवार्य रूप से गलत समझा और मुझे उलाहने दिए हैं। कुछ लोगों ने मेरा प्रतिरोध और विरोध किया है और मेरी छानबीन की है। हालाँकि, मैं अभी भी करुणाशीलता से तुम लोगों के पश्चाताप करने और सुधरने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। पवित्र आत्मा के कार्य की पद्धति में हुआ परिवर्तन यह है कि स्वयं परमेश्वर स्पष्ट रूप से प्रकट हो गया है। मेरा वचन अपरिवर्तित रहेगा! चूँकि यह तुम हो, जिसे मैं बचा रहा हूँ, मैं तुम्‍हें बीच राह पर बिलकुल भी नहीं छोड़ना चाहता हूँ। यह तो तुम लोग अपने मन में संदेह रखते हो और खाली हाथ पीछे लौट जाना चाहते हो। तुम लोगों में से कुछ ने आगे बढ़ना बंद कर दिया है, जबकि कुछ लोग बस प्रतीक्षा कर रहे हैं और देख रहे हैं। कुछ लोग अभी भी निष्क्रियता से स्थिति का सामना कर रहे हैं, जबकि कुछ बस नकल उतारने में व्यस्त हैं। तुम लोगों ने सचमुच अपने हृदय को कठोर कर लिया है! मैंने तुम लोगों से जो कुछ कहा, तुमने उसे कुछ ऐसा बना दिया, जिस पर तुम्हें घमंड है या जिसके बारे में तुम बढ़-चढ़कर बातें करते हो। इस बारे में और सोचो : यह तुम्हारे पास भेजे गए करुणा और न्याय के वचनों के अलावा और कुछ नहीं है। यह देखकर कि तुम लोग वास्तव में विद्रोही हो, पवित्र आत्मा स्पष्ट रूप से बोलने और विश्लेषण करने का कार्य करता है। तुम लोगों को डरना चाहिए। बिना सोचे-समझे व्यवहार मत करो या कोई भी काम जल्दबाजी में मत करो और ज़्यादा घमंड मत दिखाओ, अहंकार मत करो या हठधर्मी न बनो! तुम्हें मेरे वचनों को अभ्यास में लाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और जहाँ भी तुम जाओ, तुम्हें मेरे वचनों का पालन करना चाहिए, ताकि वे वास्तव में तुम्‍हें भीतर से बदल सकें और तुम मेरा स्वभाव पा सको। केवल ऐसे ही नतीजे प्रामाणिक हैं।

कलीसिया का निर्माण हो सके, इसके लिए तुम में एक विशेष आध्यात्मिक कद होना चाहिए और तुम्‍हें पूरे हृदय से निरंतर कोशिश करनी चाहिए। साथ ही साथ, एक बदला हुआ व्यक्ति बनने के लिए, तुम्हें पवित्र आत्मा के ताप और शुद्धिकरण को स्वीकार करना होगा। केवल ऐसी स्थितियों में ही कलीसिया निर्मित हो सकता है। पवित्र आत्मा के कार्य ने अब तुम लोगों को कलीसिया के निर्माण का प्रारंभ करने के लिए मार्ग दिखाया है। यदि तुम वैसे ही बौखलाए व शिथिल ढंग से व्यवहार करना जारी रखोगे, जैसा कि तुमने पहले किया था, तो तुम किसी भी तरह की उम्मीद छोड़ दो। तुम्‍हें स्वयं को सभी सच्चाइयों से लैस करना होना होगा और तुम्हारे पास आध्यात्मिक विवेक अवश्य होना चाहिए और तुम्हें मेरी बुद्धिमत्‍ता के अनुसार उचित मार्ग पर चलना चाहिए। कलीसिया को निर्मित करने के लिए केवल सतही तौर पर नकल करने के बजाय, तुम्हारा जीवन के आत्मा के भीतर होना ज़रूरी है। तुम्‍हारे जीवन में विकास की प्रक्रिया वही प्रक्रिया है, जिसमें तुम निर्मित हुए हो। हालाँकि, यह ध्यान रखो कि जो लोग उपहारों पर निर्भर होते हैं या जिनमें आध्यात्मिक समझ नहीं होती है या जिनमें वास्तविकता नहीं है वे कभी भी निर्मित नहीं हो सकते हैं, न ही वे निर्मित हो सकते हैं जो हमेशा मेरे करीब होने और मेरे साथ संवाद बनाए रखने में असमर्थ होते हैं। जो लोग अवधारणाओं से घिरे रहते हैं या सिद्धांतों के अनुसार जीते हैं, उन्हें निर्मित नहीं किया जा सकता और न ही उन्हें जो अपनी भावनाओं से निर्देशित होते हैं। चाहे परमेश्वर तुम्‍हारे साथ कैसा भी व्यवहार करे, तुम्‍हें उसके समक्ष पूरी तरह से समर्पण करना चाहिए। अन्यथा, तुम्‍हारा निर्माण नहीं किया जा सकता। जो लोग अपनी अभिमान, आत्मतुष्टता, गौरव और तुष्टि में डूबे रहते हैं और जो दूसरों को नीचा दिखाना या दिखावा करना पसंद करते हैं, उन्हें निर्मित नहीं किया जा सकता है। जो लोग दूसरों के साथ तालमेल बिठाकर सेवा नहीं कर सकते, उनका निर्माण नहीं किया जा सकता। यही बात उन लोगों के लिए भी सही है, जिनके पास कोई आध्यात्मिक विवेक नहीं है और जो कोई भी उनकी अगुआई कर रहा था, उसका आँखें बंद कर अनुसरण करते हैं। इसी तरह, जो लोग मेरे इरादों को समझने में नाकामयाब रहते हैं और जो पुरानी स्थितियों में जीवन जीते हैं, उनका भी निर्माण नहीं किया जा सकता। न ही ऐसे लोगों को जो नई रोशनी को उठाने में बहुत धीमे हैं और जिनके पास आधार के रूप में कोई दूरदर्शिता नहीं है, उन्हें निर्मित नहीं किया जा सकता है।

बिना देरी किए कलीसिया का निर्माण किया जाना चाहिए; यह मेरे लिए अति आवश्यक विषय है। तुम्हें सकारात्मक पक्ष पर ध्यान केंद्रित करके शुरू करना चाहिए और अपनी सारी शक्ति के साथ खुद को प्रस्तुत करके, निर्माण की धारा में स्‍वयं को शामिल करना चाहिए। अन्यथा, तुम्हें अस्वीकार कर दिया जाएगा। जो कुछ भी छोड़ देने के योग्‍य है, तुम्‍हें उसका पूरी तरह से त्याग कर देना चाहिए और जो खाने और पीने योग्‍य है उसे ही खाना और पीना चाहिए। तुम्‍हें मेरे वचन की वास्तविकता में जीना चाहिए और तुम्‍हें सतही और महत्वहीन मामलों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। अपने आप से यह पूछो : तुमने मेरे वचन में से कितना ग्रहण किया है? तुम उनमें कितना जीते हो? तुम्‍हें एक स्पष्ट सोच रखनी चाहिए और जल्दबाजी में कुछ भी करने से बचना चाहिए; अन्यथा, इस तरह का व्यवहार जीवन में विकास करने में तुम्हारी मदद नहीं करेगा, वरन वास्तव में तुम्हारे विकास को बाधित करेगा। तुम्‍हें सत्य को समझना चाहिए, जानना चाहिए कि इसे कैसे अभ्यास में लाना चाहिए और मेरे वचन को सही मायने में अपना जीवन बनने देना चाहिए। यही इस बात का मूल बिंदु है!

चूँकि कलीसिया की इमारत का निर्माण अब एक महत्वपूर्ण क्षण पर पहुँच गया है, शैतान योजना बना रहा है और इसे ध्वस्त करने की पूरी कोशिश कर रहा है। तुम्हें असावधान नहीं रहना चाहिए, बल्कि सतर्कता से आगे बढ़ना चाहिए और आध्यात्मिक विवेकशीलता का पालन करना चाहिए। ऐसे विवेक के बिना, तुम्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। यह कोई महत्वहीन बात नहीं है; तुम्हें इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण मामले के रूप में देखना चाहिए। शैतान भी झूठे रूप लेने और जालसाजी करने में सक्षम है, पर इन चीज़ों की असली गुणवत्ता भिन्न है। लोग इतने मूर्ख और लापरवाह हैं और इस भिन्नता को देख नहीं पाते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि वे हमेशा एक स्पष्ट सोच और स्थिरता कायम रखने में असमर्थ हैं। तुम लोगों के हृदय कहीं नहीं मिलते। एक दृष्टिकोण से सेवा गौरव की बात है, जबकि दूसरी ओर यह एक नुकसान भी हो सकती है। यह तुम्हारे लिए या तो आशीष बन सकती है या दुर्भाग्य। मेरी उपस्थिति में मौन रहो और मेरे वचन के अनुसार जियो और आध्यात्मिक रूप से तुम वास्तव में सतर्क रह पाओगे और विवेकशील बने रहोगे। जब शैतान आएगा, तुम तुरंत उससे स्वयं की रक्षा कर पाओगे और उसके आने का पूर्वाभास भी हो जाएगा; तुम अपनी आत्‍मा के अंदर एक सच्ची बेचैनी महसूस करोगे। शैतान का वर्तमान काम प्रचलित रुझानों के बदलाव के अनुसार बदलता रहता है। जब लोग व्याकुल होकर व्यवहार करते हैं और सतर्क नहीं होते हैं, तो वे बंधन में ही रहेंगे। तुम्हें हर समय सतर्क रहना होगा और अपनी आँखें खुली रखनी होंगी। अपने स्वयं के लाभ और हानि पर विवाद न करो या अपने स्वयं के लाभ के ही बारे में केवल मत सोचो; बल्कि मेरी इच्छा पूरी करने की कोशिश करो।

वस्तुएँ बेशक एकसमान दिख सकती हैं लेकिन उनकी गुणवत्ता में भिन्नता हो सकती है। इस कारण, तुम्‍हें व्यक्तियों और साथ ही साथ आत्माओं को भी पहचानना होगा। तुम्‍हें विवेक को प्रयोग में लाना चाहिए और आध्यात्मिक रूप से स्पष्टता बनाए रखनी चाहिए। जब शैतान का विष प्रकट होगा, तो तुम्हें इस योग्य होना चाहिए कि उसे फ़ौरन पहचान लो; वह परमेश्वर के न्याय की रोशनी से बच नहीं सकता है। तुम्हें अपनी आत्‍मा में पवित्र आत्मा की वाणी को गौर से सुनने पर अधिक ध्यान देना चाहिए; दूसरों का बिना सोचे-समझे अनुकरण न करो या असत्‍य को सत्‍य मान लेने की भूल न करो। जो भी अगुआई करे, उसका यूँ ही अनुसरण न करने लगो, वरना तुम्‍हें भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इससे तुम्हें कैसा लगता है? क्या तुम लोगों ने परिणामों को महसूस किया है? तुम्‍हें बिना सोचे-समझे सेवा में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए या उसमें अपनी राय नहीं देनी चाहिए, अन्यथा मैं तुम्‍हें गिरा दूँगा। इससे भी बदतर, यदि तुम समर्पण करने से इनकार करते हो और अपनी ही बात कहते हो, जो चाहते हो वही करते जाते हो, तो मैं तुमको अलग कर दूँगा! कलीसिया को और अधिक लोगों को बटोरने की ज़रूरत नहीं है; इसे केवल ऐसे लोग चाहिए जो ईमानदारी से परमेश्वर से प्रेम करते हैं और वास्तव में मेरे वचन के अनुसार जीते हैं। तुम्‍हें अपनी वास्तविक स्थिति के बारे में अवगत होना चाहिए। अगर गरीब लोग स्वयं को अमीर समझें तो क्या यह खुद को धोखा देना नहीं है? कलीसिया का निर्माण करने के लिए, तुम्‍हें आत्मा का अनुपालन करना चाहिए; बिना सोचे-समझे आगे न बढ़ो। बल्कि अपने स्थान पर ही रहो और अपने स्वयं के कार्य को पूरा करो। तुम्‍हें अपनी भूमिकाओं से बाहर कदम नहीं रखना चाहिए; जो भी कार्य तुम कर सकते हो, उन्हें पूरा करने के लिए, पूरी ताक़त लगा दो और तब मेरे हृदय को संतुष्टि मिलेगी। ऐसा नहीं है कि तुम सभी एक ही कार्य करोगे। बल्कि, तुममें से प्रत्येक को अपनी भूमिका निभानी चाहिए और कलीसिया में अन्य लोगों के साथ तालमेल बिठाते हुए अपनी सेवाएं समर्पित करनी चाहिए। तुम लोगों की सेवा इधर या उधर भटकनी नहीं चाहिए।

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