194 क्या ईश्वर का देहधारण कोई साधारण बात है?
Ⅰ
इंसान के लिए ईश्वर आत्मा था,
वो जिसे न देख, न छू सकता था।
ईश्वर पृथ्वी पर अपने कार्य के तीन चरणों,
अर्थात् सृजन, छुटकारे और विनाश के कारण,
इंसानों के बीच अलग-अलग समय पर आता है।
ईश्वर पहली बार छुटकारे के युग में आया;
वो बेशक यहूदी परिवार में आया।
ईश्वर ने छुटकारे के काम में पाप-बलि के तौर पर
अपने देहधारण के इस्तेमाल के लिये ख़ुद काम किया।
तो पहले यहूदियों ने देखा ईश्वर को अनुग्रह के युग में।
तब ईश्वर ने देह में काम किया पहली बार।
तो पहले यहूदियों ने देखा ईश्वर को अनुग्रह के युग में।
तब ईश्वर ने देह में काम किया पहली बार।
Ⅱ
राज्य-युग में जीतना,
पूर्ण बनाना ईश्वर का काम।
एक बार फिर वो चरवाही करता देह में।
अदृश्य आत्मा नहीं वो,
काम के आख़िरी दो चरणों में,
बल्कि वो रूप देहधारी आत्मा का है।
इस तरह इंसान की नज़र में फिर इंसान बनता ईश्वर
ईश्वर का कोई रूप, हाव-भाव नहीं उसमें।
इंसान ने ईश्वर के स्त्री-पुरुष दोनों रूप देखे हैं,
जो इंसान को बेहद चौंकाने,
उलझाने वाले हैं।
ईश्वर का अद्भुत कार्य बार-बार
चिर-आस्थाओं को खंडित कर,
इंसान को चकित करे।
ईश्वर का अद्भुत कार्य बार-बार
चिर-आस्थाओं को खंडित करे।
ईश्वर महज़ पवित्र आत्मा,
सात गुना या सर्व-समावेशी आत्मा नहीं,
वो एक आम इंसान भी है।
वो स्त्री-पुरुष भी है,
दोनों देहधारण इंसान से जन्म लेते हैं,
फिर भी वे एक नहीं हैं।
एक का जन्म पवित्र आत्मा से हुआ,
दूजे का इंसान से, हालाँकि आया वो आत्मा से।
दोनों देहधारी परमपिता ईश्वर का कार्य करते,
मगर एक ने छुटकारे का कार्य किया,
दूजा विजय-कार्य करे।
दोनों परमपिता ईश्वर का निरूपण करें,
पर एक प्रेम और करुणा सहित छुटकारा दिलाता है,
दूजा रोष और न्याय सहित धार्मिक है।
एक छुटकारे के कार्य का सेनापति है;
दूजा जीतने वाला धार्मिक ईश्वर है।
दोनों देहधारी परमपिता ईश्वर का कार्य करते,
दोनों परमपिता परमेश्वर का कार्य करते।
'वचन देह में प्रकट होता है' से रूपांतरित