सत्य का अनुसरण कैसे करें (21)

इस अवधि के दौरान संगति का विषय काफी व्यापक रहा है। तुम लोग कितना याद कर सकते हो? तुम कितना समझने में सक्षम हो? (परमेश्वर के संगति समाप्त कर लेने के बाद, हम इसमें से कुछ थोड़ा याद कर सकते हैं। इसके अन्य हिस्सों के संबंध में, हम वर्तमान में समान परिस्थितियों का अनुभव करने के कारण थोड़ा-सा प्रभाव प्राप्त करने में सक्षम हैं। और दूसरे हिस्सों के संबंध में, ऐसी स्थितियों का कभी अनुभव न करने के कारण, हम ज्यादा याद करने में सक्षम नहीं हैं।) जब तुम परिस्थितियों का सामना करते हो, तो क्या तुम्हें उन चीजों का कोई आभास होता है, जिनके बारे में संगति की गई थी? (थोड़ा-सा होता है। समान परिस्थितियों का सामना करने पर मैं सत्य का यह पहलू, जिसके बारे में परमेश्वर ने संगति की थी, उसके वचनों के एक-दो वाक्य, याद कर सकता हूँ, और बाद में मैं खाने-पीने के लिए परमेश्वर के ये वचन खोजता हूँ, और मुझे महसूस होता है कि मेरे पास कुछ दिशा है।) क्या तुमने सिद्धांत समझ लिए हैं? (इस संबंध में मुझमें काफी कमी है। मैं अभी भी सिद्धांत पूरी तरह नहीं समझ पा रहा; मैं केवल परमेश्वर के वचनों से जुड़ सकता हूँ, और थोड़ी समझ प्राप्त कर सकता हूँ।) क्या तुम जानते हो कि सत्य समझने और सत्य प्राप्त करने की क्षमता होने का मुख्य रूप से क्या अर्थ है? जब किसी में सत्य प्राप्त करने की क्षमता नहीं होती, तो क्या अक्सर यह नहीं कहा जाता कि “यह व्यक्ति सत्य नहीं समझता,” या “इसने सत्य-सिद्धांतों का यह पहलू नहीं समझा है”? क्या तुम लोग अक्सर ऐसा ही कुछ नहीं कहते हो? (बिल्कुल, कहते हैं।) जब यह कहा जाता है कि कोई व्यक्ति सत्य समझता है और उसे ग्रहण करने की क्षमता रखता है, तो इसका क्या तात्पर्य है? क्या इसका तात्पर्य सत्य के संबंध में कोरा सिद्धांत समझना है? (नहीं। मेरा मानना है कि परमेश्वर की संगति सुनने के बाद अगर उस व्यक्ति में सत्य ग्रहण करने की क्षमता आती है, तो वह खुद को सत्य से जोड़कर अपने बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकता है और सत्य का अभ्यास करने के लिए सिद्धांत ढूँढ़ सकता है।) सत्य समझने और उसे ग्रहण करने की क्षमता का तात्पर्य मुख्य रूप से सत्य-सिद्धांतों को समझने में सक्षम होना है। अर्थात्, जब किसी सत्य के बारे में संगति की जाती है, तो उसका विशेष ब्योरा और कथ्य चाहे कुछ भी हो, कितने भी उदाहरण दे दिए जाएँ, या कितने भी मामलों या दशाओं पर चर्चा की जाए—इन सबके भीतर एक सत्य-सिद्धांत निहित होता है। अगर तुम उस सत्य-सिद्धांत को समझ-बूझ सकते हो, तो तुममें सत्य ग्रहण करने की क्षमता है। सत्य ग्रहण करने की क्षमता का क्या तात्पर्य है? इसका तात्पर्य है सत्य-सिद्धांतों को समझ पाना और जब मसले सामने आएँ तो सत्य-सिद्धांतों के आधार पर लोगों और चीजों को देखने और आचरण और कार्य करने में सक्षम होना। इसे ही सत्य ग्रहण करने की क्षमता कहा जाता है। कुछ लोगों के साथ सत्य के बारे में चाहे कैसे भी संगति की जाए, कितने भी उदाहरण दिए जाएँ, कितनी भी दशाओं पर चर्चा की जाए, या कितनी भी विशिष्ट चर्चा क्यों न की जाए, वे फिर भी नहीं जानते कि यहाँ किस सत्य पर चर्चा की जा रही है, और वे सत्य-सिद्धांतों के आधार पर लोगों और चीजों को देखने, और आचरण और कार्य करने में सक्षम नहीं होते। यानी, वे उनसे जुड़ नहीं सकते या इन पर अमल नहीं कर सकते। भले ही वे कुछ शब्दों और सिद्धांतों के बारे में घंटों बात कर सकते हों, उन पर स्पष्ट और तार्किक रूप से चर्चा कर सकते हों, फिर भी, अफसोस की बात है कि वे परमेश्वर के वचनों पर अमल करने में असमर्थ रहते हैं, वे समस्याएँ हल करने या उनसे निपटने के लिए सत्य-सिद्धांतों पर अमल नहीं कर सकते। यह सत्य-सिद्धांतों को समझना या सत्य ग्रहण करने की क्षमता होना नहीं है। वे चाहे जितने सिद्धांत बघारें, सब बेकार है। सत्य-सिद्धांत सत्य से संबंधित हर मामले और हर श्रेणी की चीज के लिए विशिष्ट अभ्यास-मानदंड हैं। चूँकि ये विशिष्ट अभ्यास-मानदंड हैं, इसलिए ये निश्चित रूप से परमेश्वर की इच्छा हैं। ये वो मानक हैं जिनकी अपेक्षा परमेश्वर तुमसे विशिष्ट मामलों में करता है, और ये अभ्यास का वो विशिष्ट मार्ग हैं जिस पर तुम्हें चलना चाहिए। ये ही सत्य-सिद्धांत कहलाते हैं। ये न केवल परमेश्वर की इच्छा हैं, बल्कि ऐसे मानक भी हैं जिनकी परमेश्वर लोगों से अपेक्षा करता है। अगर तुमने सत्य-सिद्धांत समझ लिए हैं, तो तुममें सत्य प्राप्त करने की क्षमता है। अगर तुममें सत्य प्राप्त करने की क्षमता है, तो मसलों से सामना होने पर तुम सत्य-सिद्धांतों के आधार पर अभ्यास करोगे। तुम परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप आगे बढ़ने और परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने में सक्षम होगे। इसके विपरीत अगर तुम सत्य-सिद्धांतों को नहीं समझते—यानी अगर तुममें सत्य ग्रहण करने की क्षमता नहीं है—तो तुम जो भी करोगे, वह सत्य-सिद्धांतों या परमेश्वर के वचनों पर आधारित नहीं होगा। तुम्हारे कार्यों में आधार और मानदंड का अभाव होता है, यानी तुम्हारे पास कोई निश्चित मानक नहीं होते। इसलिए तुम परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी नहीं कर सकते। यह आकलन करने के लिए कि क्या कोई वास्तविक कार्य करने में सक्षम है, यह देखो कि क्या उसमें सत्य प्राप्त करने की क्षमता है। अगर है, तो वह वास्तविक समस्याओं का समाधान कर सकता है। अगर नहीं है, तो चाहे वह कितना भी सिद्धांत झाड़ ले, सब बेकार है। जो शब्दों और सिद्धांतों पर चर्चा करना पसंद करता है लेकिन वास्तविक मुद्दे हल नहीं करता, वह किताबी फरीसी है। तुम परमेश्वर के वचनों के चाहे कितने भी अनगिनत अंश याद कर सको, इसका कोई फायदा नहीं। फरीसी धाराप्रवाह धर्मग्रंथों का पाठ कर सकते थे, फिर वे प्रार्थना करने के लिए गली-नुक्कड़ पर जाते थे; वे हर चीज लोगों को दिखाने के लिए, आत्म-प्रदर्शन के लिए करते थे, वास्तविक समस्याएँ हल करने के लिए नहीं। ऐसे लोग हर प्रकार के आध्यात्मिक, सर्वस्वीकृत और प्रशंसित, गहन और गूढ़ ज्ञान, सिद्धांत, शब्द और नारे जुटाने पर ध्यान केंद्रित कर हर जगह उनका ढिंढोरा पीटते हैं। वे सतही तौर पर कुछ अच्छा व्यवहार दिखाकर लोगों को धोखे में रखते हैं ताकि उनकी प्रशंसा और स्तुति बटोर सकें। लेकिन जब वास्तविक मुद्दों की बात आती है, तो कानून बनाए रखने और कुछ शब्द और सिद्धांत उद्धृत करने के अलावा वे कोई वास्तविक समस्या हल नहीं कर सकते। लोगों की आंतरिक दशाओं या सार के संबंध में, और इन मामलों को कैसे लें और कैसे हल करें, इस बारे में वे कुछ भी समझने या कोई भी सत्य समझने में विफल रहते हैं। वे कुछ शब्दों और सिद्धांतों के बारे में खोखली बातें ही कर सकते हैं। इसे ही किताबी फरीसी कहा जाता है। फरीसियों के सिर्फ शब्दों और सिद्धांतों की ही चर्चा कर सकने और कोई वास्तविक मुद्दे हल न कर सकने का कारण यह है कि वे सत्य नहीं समझते और शुरू से अंत तक मुद्दे का सार नहीं समझ सकते। इसलिए जब मुद्दे हल करने का समय आता है, तो वे झूठ बोलने और हास्यास्पद दृष्टिकोण फैलाने का सहारा लेते हैं। वे किसी व्यक्ति की असलियत जानने या किसी मामले का सार समझने में असमर्थ रहते हैं। नतीजतन, वे किसी भी समस्या का समाधान करने में असमर्थ रहते हैं। उनमें सत्य ग्रहण करने की थोड़ी-सी भी क्षमता नहीं होती। भले ही उन्होंने कितने भी उपदेश सुने हों या सिद्धांत पर कितनी भी चर्चा की हो, वे यह नहीं समझते कि सत्य-सिद्धांत या परमेश्वर की इच्छा क्या है। दीन-हीन और दयनीय होने के बावजूद वे सत्य समझने का दम भरते हैं और अपने आध्यात्मिक व्यक्ति होने पर इतराते हैं। क्या यह दयनीय नहीं है? (है।) यह दयनीय और घृणास्पद है। वे बहुत सारे शब्दों और सिद्धांतों पर चर्चा कर सकते हैं, यहाँ तक कि कुछ नियमों का पालन भी कर सकते हैं, फिर भी वे किसी ठोस मुद्दे का समाधान नहीं कर सकते। वे बस दूसरों के बोलने के तरीके की नकल उतारते हुए कहेंगे, “ओह, यहाँ कुछ हुआ है। देखो, इस मामले का घटनाक्रम कितना जटिल, विचित्र और असामान्य था। ओह, उस व्यक्ति में जमीर और विवेक नहीं है, उसकी मानवता खराब है और उसमें आत्म-जागरूकता नहीं है। जब भी उसके साथ कुछ होता है, वह लापरवाही बरतता है।” तुम उनसे पूछते हो, “इस व्यवहार को देखते हुए, तुम इस व्यक्ति के साथ कैसे पेश आओगे? तुम इसे किन सिद्धांतों के आधार पर सँभालोगे? इसके व्यवहार का सार क्या है? क्या ऐसा व्यक्ति मसीह-विरोधी होता है या मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलता है? क्या वह नकली अगुआ है या बस उसकी मानवता खराब है या उसकी आस्था की नींव उथली है?” लेकिन वे कहते हैं, “यह समझना कठिन है।” वे नहीं जानते कि इसे कैसे हल किया जाए, और जब विभिन्न मसलों से सामना होता है, तो वे सिर्फ सतही घटनाओं और स्थितियों को देखते हैं। जब विशेष रूप से कुछ व्यक्तिगत व्यवहारों, अभिव्यक्तियों, वचनों और कार्यों की बात आती है, तो वे सिर्फ उनका वर्णन या गणना ही कर सकते हैं, या वे कुछ सरल और प्रारंभिक निर्धारण कर सकते हैं, लेकिन वे मुद्दे का सार नहीं समझ सकते। वे नहीं जानते कि ऐसे लोगों के साथ कैसे व्यवहार किया जाए या उन्हें कैसे सँभाला जाए; सत्य के बारे में कैसे संगति की जाए ताकि वे आत्मचिंतन कर खुद को जान सकें और परमेश्वर के वचनों से जुड़ सकें; उनके जीवन-प्रवेश में उनकी मदद कैसे करें, या जब प्रशासन और कर्मियों की बात आती है तो इन लोगों को उचित स्थान पर कैसे रखा जाए। वे सिर्फ इस या उस श्रेणी के लोगों के विभिन्न व्यवहारों और स्थितियों के बारे में बात कर सकते हैं। जब तुम उनसे पूछते हो, “क्या तुमने इन लोगों को सँभाल लिया है?” तो वे उत्तर देते हैं, “अभी नहीं, मैं अभी भी इनका अवलोकन कर रहा हूँ।” यह है परिणाम। क्या यह समस्या-निवारण क्षमता की कमी नहीं दर्शाता? (हाँ।) क्या समस्या-निवारण क्षमता की कमी सत्य प्राप्त करने में असमर्थता का संकेत नहीं देती? (हाँ, देती है।) सत्य प्राप्त करने की क्षमता के बिना क्या ये लोग सत्य-सिद्धांतों को समझने में असमर्थ नहीं हैं? वे सत्य-सिद्धांतों को नहीं समझते, तो ऐसा इसलिए नहीं है कि उन्होंने पर्याप्त उपदेश नहीं सुने हैं; बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उनमें सत्य ग्रहण करने की क्षमता नहीं है—उनमें यह गुण नहीं है। तो फिर वे आम तौर पर इतनी वाक्पटुता से कैसे प्रवचन कर सकते हैं? चूँकि उन्होंने बहुत-कुछ सुना और अनुभव किया है, और उन्होंने ये सभी सिद्धांत कंठस्थ कर लिए हैं, इसलिए स्वाभाविक रूप से वे कुछ शब्दों और सिद्धांतों पर चर्चा करने में सक्षम रहते हैं। विशेष रूप से जिन्होंने कई वर्षों तक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया है : उन्होंने नियमित अभ्यास के माध्यम से खुद को निखारा है, वे विभिन्न शब्दों और सिद्धांतों के बारे में चर्चा और बात कर सकते हैं, और वे विशेष रूप से सहजता से बोलते हैं, मानो भाषण दे रहे हों और निबंध लिख रहे हों। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनका कोई आध्यात्मिक कद है या उनमें वास्तविकता है, न ही इसका मतलब यह है कि वे सत्य-सिद्धांतों को समझते हैं। तुम्हें पहचानने में दक्ष होना चाहिए और ऐसे लोगों से गुमराह नहीं होना चाहिए। जब तुम किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हो, जो सभाओं के दौरान बिना खुद को दोहराए एक-दो दिन तक लगातार बोलने में सक्षम होता है, तो तुम उससे प्रभावित होकर दंग रह जाते हो; क्या यह पहचान की कमी नहीं दर्शाता? क्या इससे यह नहीं दिखता कि तुम सत्य नहीं समझते? (बिल्कुल, दिखता है।) यह दर्शाता है कि तुम सत्य नहीं समझते। अगर तुम सत्य समझते, तो यह जान लेते कि क्या उसके भाषण के किसी हिस्से में अभ्यास के विशिष्ट सिद्धांत हैं या नहीं, जो कुछ निश्चित दशाएँ या समस्याएँ हल कर सकें। मान लो, तुम ध्यान से सुनते हो और पाते हो कि उसमें लोगों की वास्तविक दशाएँ या समस्याएँ हल करने वाला एक भी वाक्य नहीं है, कि वह जो कह रहा है वह सिद्धांतों, विशिष्ट समाधानों और अभ्यास के ठोस मार्गों से रहित सिर्फ नारों, शब्दों, सिद्धांतों का एक पुंज है, और भले ही वह दो-तीन दिनों तक भी बोलता रहे, यह सब खोखला सिद्धांत है। और मान लो, जब तुम उसे सुनते हो तब यह लाभदायक और फलदायी लगता है, लेकिन विचार करने पर तुम सोचते हो, “मैं इस मुद्दे को कैसे हल करूँ? लगता नहीं कि उसने अभी इसका समाधान किया है,” और जब तुम उससे दोबारा पूछते हो, तो वह सिर्फ सिद्धांतों का एक पुंज झाड़ देता है, जिससे तुम अभी भी नहीं जान पाते कि आगे कैसे बढ़ना है। क्या यह मूर्ख बनाना और धोखा देना नहीं है? (है।) तुम अभी भी नहीं जानते कि आगे कैसे बढ़ना है, फिर भी तुम उसकी प्रशंसा और आदर करते हो : यह मूर्ख बनना और धोखा खाना है। क्या तुम लोगों को अक्सर इस तरह चकमा नहीं दिया जाता? (हाँ, दिया जाता है।) तो फिर, अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में क्या तुम लोग अक्सर इस तरह से दूसरों को धोखा नहीं दे रहे? (हाँ, दे रहे हैं।) अब क्या तुम लोगों को इस बात की थोड़ी और समझ है कि सत्य प्राप्त करने की क्षमता का क्या मतलब है और सत्य-सिद्धांत क्या हैं? (मैं उन्हें थोड़ा और समझने लगा हूँ।) सत्य-सिद्धांत क्या हैं? (सत्य-सिद्धांत वास्तव में मसलों का सामना करते समय अभ्यास के कुछ मानदंड हैं; उनमें परमेश्वर की इच्छा के साथ-साथ कुछ मानक और मार्ग शामिल हैं, जिन्हें अभ्यास में लाया जाना चाहिए। अगर कोई सत्य-सिद्धांतों को समझ लेता है, तो उसमें सत्य ग्रहण करने की क्षमता होती है।) सत्य ग्रहण करने की क्षमता व्यक्ति को सत्य-सिद्धांतों को समझने देती है। यह है दोनों के बीच का संबंध। ऐसा नहीं है कि जब तुम सत्य-सिद्धांतों को समझते हो, तब तुम्हारे पास सत्य ग्रहण करने की क्षमता होती है। बल्कि, जब तुममें सत्य ग्रहण करने की क्षमता होती है, तब तुम सत्य-सिद्धांतों को समझ सकते हो। क्या यह ऐसे ही काम नहीं करता? (हाँ, करता है।) तो, क्या तुम लोगों में से ज्यादातर के पास सत्य ग्रहण करने की क्षमता है? क्या तुम लोग उस समस्त विषय-वस्तु में निहित सत्य-सिद्धांतों को समझ सकते हो, जिसके बारे में मैं हर बार संगति करता हूँ? अगर तुम उसे समझ सकते हो, तो तुममें सत्य ग्रहण करने की क्षमता है, और तुममें आध्यात्मिक समझ है। अगर, सुनने के बाद, तुम्हें सिर्फ संगति के दौरान चर्चा किए गए कुछ लोगों या लोगों की श्रेणियों से जुड़ी कुछ चीजें, कुछ विशिष्ट व्यवहार या काम करने के तरीके ही याद आते हैं, लेकिन तुम यह नहीं समझते कि जिन सत्य-सिद्धांतों के बारे में यहाँ संगति की जा रही है वे वास्तव में क्या हैं, और मामलों का सामना करते समय तुम नहीं जानते कि उन्हें उन विशिष्ट तथ्यों से कैसे जोड़ा जाए जिनके बारे में संगति की गई है, या सत्य-सिद्धांतों के आधार पर कैसे कार्य किया जाए, तो तुममें आध्यात्मिक समझ नहीं है। आध्यात्मिक समझ न होने का अर्थ है सत्य प्राप्त करने की क्षमता का अभाव होना। चाहे तुम कितने भी उपदेश सुनो, तुम सत्य-सिद्धांतों को नहीं समझते, और जब मामले उठते हैं तो तुम हतप्रभ महसूस करते हो; तुम सिर्फ सतही स्तर की स्थितियाँ, अभिव्यक्तियाँ आदि देख सकते हो। तुम समस्या का सार नहीं देख सकते, और तुम अभ्यास के मार्ग या समस्याओं के समाधान का उपाय नहीं खोज सकते। यह सत्य-सिद्धांतों की समझ की कमी और सत्य प्राप्त करने में असमर्थता दर्शाता है। ऐसे लोगों में आध्यात्मिक समझ नहीं होती। इन मुद्दों पर विचार करने और गहराई से सोचने में समय लगाओ, और तुम निष्कर्ष पर पहुँच जाओगे। अगर तुम इन मुद्दों पर कभी विचार नहीं करते, अगर तुम्हारा दिमाग भ्रमित रहता है, तो तुम्हें वास्तविक समझ नहीं है।

आओ, उस विषयवस्तु पर संगति करते रहें जिसके बारे में हम इस दौरान लगातार संगति करते रहे हैं। पिछली सभा में हमने व्यक्तिगत लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं का त्याग करने के चौथे भाग पर चर्चा की थी—“करियर” वाले भाग की विशिष्ट विषयवस्तु पर। “करियर” में शामिल विशिष्ट विषयवस्तु, लोगों को करियर के बारे में क्या सही समझ होनी चाहिए, या करियर के संबंध में परमेश्वर लोगों से अभ्यास के जिन विशिष्ट मार्गों और मानदंडों की अपेक्षा करता है, उनके संबंध में हमने चार बिंदु तय किए हैं। वे चार बिंदु क्या हैं? (1. दान-पुण्य में संलग्न न होना; 2. भोजन और वस्त्र से संतुष्ट रहना; 3. विभिन्न सामाजिक शक्तियों से दूर रहना; 4. राजनीति से दूर रहना।) हमने इन चार बिंदुओं में से दो पर चर्चा की है। पहला बिंदु है दान-पुण्य में संलग्न न होना, और दूसरा बिंदु है भोजन और वस्त्र से संतुष्ट रहना। क्या इन चार बिंदुओं में से प्रत्येक का विशिष्ट शब्दांकन करियर त्यागने के अभ्यास के ठोस सिद्धांतों का निर्माण नहीं करता? (हाँ, करता है।) अभ्यास के ये चार विशिष्ट सिद्धांत उन मानकों का निर्माण करते हैं, जिनकी अपेक्षा परमेश्वर करियर त्यागने के संबंध में मानवजाति से करता है। निस्संदेह, परमेश्वर मानवजाति से जिन मानकों की अपेक्षा करता है, वे करियर त्यागने के सत्य-सिद्धांत हैं, और जब लोग इन मामलों का सामना करते हैं तो ये अभ्यास के विशिष्ट मार्ग होते हैं; अर्थात्, इस दायरे के भीतर तुम्हें जो करना चाहिए, उसे करके तुम परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करते हो, लेकिन अगर तुम इस दायरे से परे जाते हो, तो तुम सिद्धांतों के खिलाफ, सत्य के खिलाफ और परमेश्वर की अपेक्षाओं के खिलाफ जाते हो। करियर के विषय के संबंध में हमने अभ्यास के दो सिद्धांतों के बारे में संगति की है : पहला है दान-पुण्य में संलग्न न होना, और दूसरा है भोजन और वस्त्र से संतुष्ट रहना। दान-पुण्य में संलग्न न होने के पहले बिंदु के संबंध में हमने कुछ खास उदाहरण देकर कुछ विशेष स्थितियों पर चर्चा की है। इस विषय में मुख्य रूप से कौन-से मुद्दे शामिल हैं? मुद्दे की बात यह है कि लोगों को पेशा चुनते समय या करियर के संबंध में क्या करना चाहिए। कम से कम, पहला बिंदु यह है कि दान-पुण्य से संबंधित मामलों में संलग्न न हों; सिर्फ अपने जीवन या आजीविका से संबंधित करियर में शामिल होना ही पर्याप्त है। अगर तुम किसी धर्मार्थ संगठन में कार्यरत हो और सिर्फ नौकरी के काम करते हो तो यह दान-पुण्य में संलग्न होने के समान नहीं है—यह एक विशेष स्थिति है। तुम यहाँ नौकरी कर वेतन पा सकते हो, लेकिन तुम सिर्फ एक कामगार होते हो, वेतनभोगी कर्मचारी से अधिक कुछ नहीं। रही यह बात कि धर्मार्थ संगठन किसमें संलग्न है, प्रतिष्ठान में, सामाजिक कल्याण में, अनाथ बच्चों या जानवरों को गोद लेने में, आपदाग्रस्त या आर्थिक रूप से नष्ट क्षेत्रों में लोगों की सहायता करने में, शरणार्थियों को प्रवेश देने में, इत्यादि, तो इन मुख्य प्रयासों का तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। तुम प्राथमिक जिम्मेदार व्यक्ति नहीं हो, और तुम्हें इस धर्मार्थ कार्य में अपने समय और ऊर्जा का योगदान नहीं करना है। यह बिल्कुल अलग मामला है। तुम दान-पुण्य नहीं कर रहे हो; तुम एक धर्मार्थ संगठन में काम कर रहे हो। क्या ये प्रकृति से भिन्न नहीं हैं? (हाँ।) इनकी प्रकृति भिन्न है, और इस विशेष स्थिति ने सिद्धांत का उल्लंघन नहीं किया है। इसके अलावा, दान-पुण्य चाहे छोटे पैमाने पर हो या बड़े पैमाने पर, यह चाहे जिस भी क्षेत्र में किया जाता हो, इसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। यह कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे करने की परमेश्वर तुमसे अपेक्षा करता है। इसे न करके तुम सत्य का उल्लंघन नहीं करते, और अगर तुम इसे करते भी हो, तो भी परमेश्वर इसका स्मरण नहीं करता। चूँकि तुम्हारा लक्ष्य सत्य और उद्धार खोजना है, इसलिए तुम्हें अपनी ऊर्जा और समय उन मामलों में नहीं लगाना चाहिए, जिनका उद्धार, सत्य के अनुसरण या परमेश्वर के प्रति समर्पित होने से कोई संबंध नहीं है, क्योंकि दान-पुण्य करने का कोई मूल्य या अर्थ नहीं है। इसे करने का कोई मूल्य या अर्थ क्यों नहीं है? चाहे तुम जिसे भी बचाओ या जिसकी भी मदद करो, इससे कुछ नहीं बदल सकता। यह किसी की नियति नहीं बदल सकता या उसकी नियति से जुड़ी समस्याएँ हल नहीं कर सकता, और तुम्हारा समय-समय पर लोगों की मदद करना वास्तव में उन्हें बचाना नहीं है। नतीजतन, अंत में, ऐसे प्रयास निरर्थक और किसी मूल्य या अर्थ से रहित रहते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग भेड़िये पालते हैं : वे एक-दो से शुरू करते हैं और अंततः सैकड़ों-हजारों पाल लेते हैं। वे इसे अपने करियर के रूप में लेते हैं, इसमें अपनी सारी बचत लगा देते हैं, अपने पूरे परिवार को शामिल कर लेते हैं, और बाद के वर्षों में अपनी सारी ऊर्जा समर्पित कर देते हैं। उनकी पूरी ऊर्जा और जिंदगी इसी एक चीज के इर्द-गिर्द घूमती है, और भेड़ियों को सफलतापूर्वक बचाने और संरक्षित करने के बावजूद, अंतिम परिणाम यह रहता है कि वे इस मामले में काफी समय और वर्ष बरबाद कर चुके होते हैं। उनके पास सत्य का अनुसरण करने और अपने कर्तव्य निभाने के लिए अतिरिक्त समय और ऊर्जा नहीं रहती। इसलिए, कर्तव्य निभाने और उद्धार प्राप्त करने की तुलना में कोई भी उपक्रम, भले ही उसे कई लोगों द्वारा मान्यता प्राप्त हो और समाज द्वारा उसकी प्रशंसा की जाती हो, उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना लोगों द्वारा उद्धार और सत्य का अनुसरण करना और अपने कर्तव्य निभाना है। वह इनका अनुसरण करने जितना सार्थक या मूल्यवान नहीं है। एक महत्वपूर्ण बात और है : अगर तुम्हें परमेश्वर ने चुना है, और तुम उसके चुने हुए लोगों में से एक हो, तो परमेश्वर तुम्हें कभी दान-पुण्य में ऐसा करियर बनाने का काम नहीं सौंपेगा जिसे संसार या समाज की मान्यता प्राप्त हो सकती है। परमेश्वर कभी ऐसे काम तुम्हें नहीं सौंपेगा। अगर तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से एक हो, तो तुम्हारे लिए परमेश्वर की सबसे बड़ी आशा क्या है? वह है तुम्हारा एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाना, सत्य का अनुसरण करने और परमेश्वर के सामने लौटने में सक्षम होना, और उद्धार प्राप्त करने और बने रहने में सक्षम होना। यही परमेश्वर की इच्छा सबसे अधिक पूरी करता है, यही उसकी इच्छा सबसे अच्छे तरीके से पूरी करता है, न कि वे कार्य करना, जिन्हें इस संसार या समाज में लोग महत्वपूर्ण, सार्थक या चमकदार मानते हैं। अगर तुम परमेश्वर के चुने हुए व्यक्ति हो, तो वह तुम्हें जो कर्तव्य निभाने को सौंपता है उसका संबंध सिर्फ और सिर्फ परमेश्वर के कार्य और कलीसिया के कार्य से है। कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के प्रबंधन से हटकर कुछ भी तुम्हारी चिंता का विषय नहीं है। चाहे तुम कुछ भी करो, भले ही तुम उसे अच्छा समझो और करने के लिए तैयार रहो, उसका कोई मूल्य नहीं है, वह स्मरण करने लायक नहीं है, और परमेश्वर उसे स्मरण नहीं करता। चाहे वह कालजयी विरासत बन जाए, सदैव याद रखी जाए, या समकालीन लोगों की प्रशंसा प्राप्त करे, यह सब महत्वहीन है। चाहे कितने भी लोग उसे स्वीकारें, इसका मतलब यह नहीं कि तुम जो करते हो, परमेश्वर उसे सराहता या स्मरण करता है। इसका मतलब यह नहीं कि तुम जो करते हो, वह सार्थक या मूल्यवान है। इस दुनिया और इस समाज की राय और मूल्यांकन तुम्हारे बारे में परमेश्वर का मूल्यांकन नहीं दर्शाते। इसलिए, जब करियर की बात आती है, तो तुम्हें अपना सीमित समय और कीमती ऊर्जा व्यर्थ के प्रयासों में बरबाद नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय, अपनी ऊर्जा और अपना समय परमेश्वर से मिले कर्तव्य, और सत्य और उद्धार की खोज के मामलों पर केंद्रित करो। यही वास्तव में मूल्य और अर्थ रखता है। इस तरह जीने से तुम्हारा जीवन मूल्यवान और सार्थक बन जाएगा। कुछ लोग हजारों कुत्ते पालते हैं, और उनका हर दिन उनके द्वारा पाले गए कुत्तों की देखभाल और उनके लिए जीने पर केंद्रित होता है। उनके पास खाने और सोने के लिए मुश्किल से ही समय होता है, अपने कपड़े धोने या लोगों से बात करने का समय तो बिल्कुल नहीं होता। जो काम वे हाथ में लेते हैं, वे उनकी क्षमताओं के दायरे से परे होते हैं। वे थकाऊ, दयनीय जीवन जीते हैं। क्या यह मूर्खता नहीं है? (है।) तुम उद्धारकर्ता नहीं हो, न बनने का प्रयास करो। दुनिया को बचाने, दुनिया को बदलने, या वर्तमान स्थिति या इस दुनिया में रद्दोबदल करने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करने का कोई भी विचार मूर्खतापूर्ण है। बेशक, ऐसे प्रयास और भी ज्यादा मूर्खतापूर्ण हैं, और अंतिम परिणाम तुम्हें सिर्फ एक भयानक अवस्था में डाल देंगे, तुम्हें थका देंगे, तुम्हें असीम दुख देंगे, और तुम्हें हक्का-बक्का कर देंगे। लोगों में उतनी ऊर्जा नहीं है, न ही उनकी क्षमता और योग्यताएँ इतनी हैं कि कुछ भी बदल सकें। तुम्हारे पास जो थोड़ी-सी ऊर्जा और समय है, उसे एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने के लिए अर्पित और खर्च करना चाहिए। बेशक, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे उद्धार प्राप्त करने और परमेश्वर के प्रति समर्पण प्राप्त करने के लिए सत्य का अनुसरण करने में खर्च और समर्पित करना चाहिए। इन चीजों के अलावा कोई भी अन्य प्रयास निरर्थक है। करियर एक ऐसी चीज है, जिसे व्यक्ति के भौतिक जीवन के एक हिस्से के रूप में अपनाया जाना चाहिए। यह सार्थक होने का मानदंड पूरा नहीं करता; यह सिर्फ भौतिक जीवन और अस्तित्व के लिए आवश्यक है। जीने और अस्तित्व बचाए रखने के लिए तुम्हें किसी व्यवसाय में जुटना होगा; वह व्यवसाय महज एक नौकरी है जो तुम्हें अपना भरण-पोषण करने देता है। वह व्यवसाय समाज के निचले स्तर पर हो या ऊपरी स्तर पर, वह सिर्फ आजीविका का एक तरीका है; उसके श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण होने का सवाल ही नहीं उठता। इसके अलावा, चाहे वह कितना भी महत्वपूर्ण हो, मानवजाति से परमेश्वर की यह अपेक्षा है : अगर तुम सत्य का अनुसरण करना और उद्धार के मार्ग पर चलना चाहते हो, तो आजीविका बनाए रखने के लिए व्यवसाय चुनने का मानक भोजन और वस्त्र से संतुष्ट रहना है। अपने भोजन, वस्त्र, आश्रय और परिवहन के लिए इधर-उधर भागने और व्यस्त रहने में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा और समय बर्बाद मत करो—बुनियादी जरूरतें पूरी होना पर्याप्त है। जब तुम्हारा पेट भरा हो और तन नरम और ढका हो; जब तुम जीवित रहने के लिए ये बुनियादी स्थितियाँ प्राप्त कर लेते हो, तो तुम्हें एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभना चाहिए, अपनी बहुमूल्य ऊर्जा और समय अपने कर्तव्य को और उसे अर्पित करना चाहिए, जो परमेश्वर ने तुम्हें सौंपा है, और अपना हृदय समर्पित करना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि अपना कर्तव्य निभाते समय तुम्हें सत्य के लिए भी प्रयास करना चाहिए, सत्य का अनुसरण करना चाहिए और सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलना चाहिए—बस दिशाहीन मत जीते रहो। यही सिद्धांत है। परमेश्वर तुमसे यह नहीं चाहता कि तुम अपनी सारी ताकत सिर्फ जीवन बचाने और जीते रहने में लगा दो। वह तुमसे भव्य जीवन जीने और उसके माध्यम से उसे महिमामंडित करने की अपेक्षा नहीं करता, न ही वह तुमसे इस दुनिया में कोई महान कर्म करने, कोई चमत्कार करने, मानवजाति के लिए कोई योगदान करने, किसी भी संख्या में लोगों को सहायता प्रदान करने या किसी भी संख्या में लोगों की रोजगार संबंधी समस्याओं का समाधान करने की अपेक्षा करता है। तुम्हारे लिए एक शानदार करियर बनाना, दुनिया भर में प्रसिद्ध होना और फिर इन चीजों का इस्तेमाल करके परमेश्वर के नाम की महिमा करना, और दुनिया में यह ढिंढोरा पीटना अनावश्यक है, “मैं एक ईसाई हूँ, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करता हूँ।” परमेश्वर सिर्फ यह आशा करता है कि तुम इस संसार में एक साधारण जन और एक सामान्य व्यक्ति बन सको। तुम्हें कोई चमत्कार करने की जरूरत नहीं है; तुम्हें विभिन्न व्यवसायों या क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करने, या एक प्रसिद्ध व्यक्ति या एक महान हस्ती बनने की जरूरत नहीं है। तुम्हें ऐसा व्यक्ति बनने की जरूरत नहीं है जो लोगों की प्रशंसा या सम्मान बटोरे, न ही तुम्हें विभिन्न क्षेत्रों में कोई सफलता या सराहना पाने की जरूरत है। परमेश्वर को महिमामंडित करने के लिए तुम्हें विभिन्न व्यवसायों में कोई योगदान देने की निश्चित रूप से कोई जरूरत नहीं है। तुमसे परमेश्वर की अपेक्षा सिर्फ यह है कि तुम अपना जीवन अच्छी तरह से जिओ, बुनियादी जरूरतें पूरी करो, भूखे न रहो, सर्दियों में गर्म और गर्मियों में उपयुक्त कपड़े पहनो। अगर तुम्हारा जीवन सामान्य है और तुममें जीवित रहने की क्षमता है, तो यह पर्याप्त है—परमेश्वर की तुमसे यही अपेक्षा है। तुममें चाहे जो भी गुण, प्रतिभा या विशेष क्षमताएँ हों, परमेश्वर नहीं चाहता कि तुम उनका उपयोग सांसारिक सफलता प्राप्त करने के लिए करो। इसके बजाय, वह चाहता है कि तुममें जो भी प्रतिभा या गुण हैं, उन्हें तुम अपना कर्तव्य निभाने में, जो वह तुम्हें सौंपता है उसमें और सत्य खोजने में और अंततः उद्धार प्राप्त करने में लगाओ। यह सबसे महत्वपूर्ण चीज है, और परमेश्वर इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहता। अगर तुम अच्छी तरह से जीते हो, तो परमेश्वर यह नहीं कहेगा कि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो उसकी महिमा बढ़ाता है। अगर तुम्हारा जीवन साधारण है और तुम समाज के निचले वर्ग में हो, तो यह परमेश्वर का अपमान नहीं है। अगर तुम्हारा परिवार अपेक्षाकृत गरीब है, लेकिन तुम भोजन और वस्त्र से संतुष्ट रहने का परमेश्वर का मानक पूरा करते हो, तो यह भी उसका अपमान नहीं है। अपना जीवन जीते और अस्तित्व बचाए रखते हुए तुम्हारी खोज का लक्ष्य भोजन और वस्त्र से संतुष्ट रहना, बुनियादी जरूरतें पूरी कर सामान्य रूप से रहना, अपना दैनिक भोजन जुटाने में सक्षम होना और अपने दैनिक खर्च पूरे करना है—यह पर्याप्त है। जब तुम संतुष्ट होते हो, तो परमेश्वर भी संतुष्ट होता है—परमेश्वर लोगों से यही चाहता है। वह तुमसे कोई अमीर, प्रसिद्ध या ऊँचा व्यक्ति बनने के लिए नहीं कहता, न ही वह तुम्हें भिखारी बनने देता है। भिखारी कोई काम नहीं करते; पूरे दिन वे भोजन माँगते हैं, दयनीय दिखते हैं, लोगों की जूठन खाते हैं, फटे-पुराने और पैबंद लगे कपड़े पहनते हैं, यहाँ तक कि टाट-पट्टी भी ओढ़ते हैं—उनके जीवन की गुणवत्ता विशेष रूप से निम्न है। परमेश्वर यह अपेक्षा नहीं करता कि तुम भिखारी की तरह जिओ। भौतिक जीवन से संबंधित मामलों में, परमेश्वर तुमसे यह अपेक्षा नहीं करता कि तुम उसे महिमामंडित करो, न ही वह कुछ स्थितियों को अपने प्रति अनादर के रूप में परिभाषित करता है। परमेश्वर किसी व्यक्ति का न्याय इस आधार पर नहीं करता कि वह संघर्ष कर रहा है या समृद्धि में जी रहा है। इसके बजाय, वह तुम्हारा मूल्यांकन इस आधार पर करता है कि तुम कैसे अभ्यास करते हो और क्या तुम सत्य और उन सिद्धांतों की खोज के संबंध में परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करते हो, जो परमेश्वर तुमसे चाहता है। क्या तुमने करियर से संबंधित अभ्यास के ये दो सिद्धांत समझे-बूझे हैं? पहला सिद्धांत दान-पुण्य में संलग्न न होना है, और दूसरा सिद्धांत भोजन और वस्त्र से संतुष्ट रहना है। इन दोनों सिद्धांतों को समझना आसान है।

कलीसिया में कुछ व्यक्ति ऐसे हैं, जो अभी भी दृढ़ता से मानते हैं कि दान-पुण्य करना अच्छी चीज है। वे सोचते हैं, “जहाँ भी जरूरत हो, हमें मदद के लिए हाथ बढ़ाना चाहिए। जहाँ तक मेरी व्यक्तिगत बात है, मैंने कपड़े और कुछ पैसे दान किए हैं, यहाँ तक कि मैं आपदाग्रस्त क्षेत्रों में भी जाता हूँ और स्वेच्छा से सेवा प्रदान करता हूँ।” तुम लोग इस मामले का मूल्यांकन कैसे करते हो? क्या इसे रोका जाना चाहिए या इसमें हस्तक्षेप किया जाना चाहिए? (इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।) ऐसे लोग भी हैं, जो कहते हैं, “जब मैं किसी को भीख माँगते देखता हूँ, खासकर भूखे बच्चों को, तो मुझे उन पर दया आती है।” वे ऐसे लोगों को तुरंत अपने घर ले आते हैं, उनके लिए कुछ अच्छा भोजन बनाते हैं, और फिर वे उन्हें कुछ कपड़े और अच्छी चीजें देकर विदा कर देते हैं, यहाँ तक कि कभी-कभी उनसे मिलने भी जाते हैं। वे दयालुता के ये कार्य करने और इस तरह से आचरण करने के इच्छुक रहते हैं, और मानते हैं कि आचरण करने का यह तरीका न्याय कायम रखता है, और ऐसा करने से परमेश्वर उन्हें याद करेगा और वे दुनिया के सबसे प्यारे लोग बन जाएँगे। ऐसे लोगों के संबंध में, क्या कलीसिया उन्हें रोकती है या हस्तक्षेप करती है? (वह हस्तक्षेप नहीं करती।) हम वे उपदेश साझा करते हैं जो उनके साथ साझा किए जाने चाहिए, और उन्हें परमेश्वर की इच्छा और सत्य-सिद्धांत समझाते हैं। अगर, सब-कुछ समझने और जानने के बाद भी, वे चीजें अपने तरीके से करने, अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने पर जोर देते हैं, तो हम हस्तक्षेप नहीं करते। हर व्यक्ति को अपने शब्दों और कार्यों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, और लोग अंतिम परिणाम और इस बात के लिए स्वयं जवाबदेह हैं कि परमेश्वर उन्हें कैसे चिह्नित करता है। दूसरों को यह जिम्मेदारी उठाने की जरूरत नहीं है, उन्हें सहारा देने की जरूरत नहीं है। अगर हमारा सामना ऐसे लोगों से होता है जो सब-कुछ समझते हैं लेकिन फिर भी दान-पुण्य करने पर जोर देते हैं, तो हम उनके विचारों और दृष्टिकोणों को सही नहीं करेंगे, न ही हम हस्तक्षेप करेंगे, और हम निश्चित रूप से उनकी निंदा नहीं करेंगे। अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी सांसारिक चीजों, धन-दौलत, सरकारी पदों या करियर का अनुसरण करते हैं। क्या हम इसमें हस्तक्षेप करते हैं? (हम हस्तक्षेप नहीं करते।) उनके साथ प्रासंगिक सत्यों के बारे में संगति करो ताकि वे समझ जाएँ, और तुम्हारे संगति समाप्त करने के बाद वे खुद चयन कर सकें। यह उन पर निर्भर है कि उन्हें कौन-सा मार्ग अपनाना है। वे क्या चुनते हैं, क्या करना चाहते हैं और उसे कैसे करते हैं—हम इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते। हमारी जिम्मेदारी उनके साथ परमेश्वर की इच्छा और सत्य-सिद्धांतों के बारे में संगति करना है। अगर वे समझते-बूझते हैं, तो तुम उनसे पूछ सकते हो, “तो तुम्हारा अगला आध्यात्मिक कदम क्या होना चाहिए? तुम सुसमाचार फैलाना कब शुरू करोगे?” तो वे कहते हैं, “थोड़ा रुको, मुझे सामान की एक खेप लानी है, मेरे पास कुछ व्यवसाय और एक परियोजना है जिसे मुझे सँभालने की जरूरत है, ऐसी चीज जिसके पूरा होने पर मैं बहुत सारा पैसा कमा सकता हूँ। सुसमाचार फैलाने के बारे में बाद में सोचते हैं।” और तुम कहते हो, “मुझे कब तक प्रतीक्षा करनी चाहिए?” तो वे जवाब देते हैं, “शायद दो-तीन साल।” खैर, तो अलविदा। अब तुम्हें ऐसे लोगों की फिक्र करने की जरूरत नहीं। इसे इसी तरह हल किया जा सकता है, क्या यह आसान नहीं है? (यह आसान है।) इसे ही सच्चे मार्ग को जानना और फिर भी जानबूझकर पाप करना कहा जाता है। ऐसे लोगों को पापबलि नहीं मिलेगी। परमेश्वर ऐसे लोगों को रोकता या उनके मामले में हस्तक्षेप नहीं करता; उस क्षण में भी, वह किसी भी तरह से उनका मूल्यांकन नहीं करता। वह उन्हें स्वतंत्र रूप से चयन करने देता है। तुम लोगों को भी इस सिद्धांत को सीखने की जरूरत है। वे चाहे कितना भी समझ सकें, संक्षेप में, हमारी जिम्मेदारी उन्हें परमेश्वर की इच्छा स्पष्ट रूप से बताना है। उसके बाद वे क्या चुनते हैं, उनका अगला कदम क्या होना चाहिए, यह उनका अपना मामला और अपनी स्वतंत्रता है। किसी को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, और उन पर दबाव डालने के लिए उन्हें नफा-नुकसान समझाने की जरूरत नहीं है। क्या यह उचित दृष्टिकोण है? (यह उचित है।) अगर यह उचित है, तो ऐसा ही करना चाहिए। सिद्धांतों के खिलाफ मत जाओ और उन पर उनकी इच्छा के विरुद्ध दबाव मत डालो। अपना करियर त्यागने के ये पहले दो सिद्धांत हैं; इन दोनों को समझना अपेक्षाकृत आसान है और ये सहज बोधगम्य हैं।

करियर त्यागने के विषय के संबंध में तीसरा सिद्धांत क्या है, जिसका अभ्यास करने की परमेश्वर लोगों से अपेक्षा करता है? वह है विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहना। इसे समझना थोड़ा कठिन है, है न? (हाँ।) भले ही इसे समझना थोड़ा कठिन हो, लेकिन यह भी एक सिद्धांत ही है। यह ऐसा सिद्धांत है, जिसका लोगों को इस समाज में जीवित रहने के लिए ईमानदारी से पालन करना चाहिए। यह एक रवैया, नजरिया और जीवित रहने का तरीका भी है, जो इस समाज में जीवित रहने के लिए लोगों में होना चाहिए, बल्कि यह कहना सटीक रहेगा कि यह समाज में जीवित रहने के लिए एक प्रकार की बुद्धिमत्ता है। विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहना सतही तौर पर एक ऐसा मुद्दा प्रतीत हो सकता है जो हर व्यक्ति से जुड़ा हुआ न हो, लेकिन वास्तव में, ये विभिन्न सामाजिक ताकतें सभी लोगों के आसपास छिपी हुई हैं। वे अमूर्त ताकतें हैं, अमूर्त तत्त्व हैं, जो हरेक के आसपास मौजूद हैं। जब तुम कोई व्यवसाय चुनते हो, चाहे वह व्यवसाय किसी भी सामाजिक वर्ग का हो, वह संबंधित व्यवसाय की महत्वपूर्ण ताकत से घिरा होता है। चाहे तुम किसी उच्चस्तरीय व्यवसाय में संलग्न हो या निम्नस्तरीय व्यवसाय में, उस व्यवसाय के भीतर लोगों के संबंधित समूह होते हैं। अगर, समाज के भीतर, इन समूहों के पास कुछ वर्षों का अनुभव, कुछ योग्यताएँ या कुछ सामाजिक आधार होते हैं, तो वे निस्संदेह एक अमूर्त ताकत बन जाते हैं। उदाहरण के लिए, अध्यापन को शायद उच्च स्तर का व्यवसाय न माना जाए, लेकिन यह निम्न स्तर का पेशा भी नहीं है। यह खेती या विभिन्न प्रकार के शारीरिक श्रम जैसे व्यवसायों से कुछ हद तक उच्च है, लेकिन समाज में वास्तव में उच्चस्तरीय व्यवसायों से कुछ हद तक निम्न है। इस व्यवसाय में, तुम्हारे द्वारा किए जाने वाले सरल कार्य के अलावा, इस उद्यम में अन्य अनेक लोगों की बाढ़ आई हुई है। इसलिए, इस उद्यम में लोगों को उनकी वरिष्ठता और अनुभव की गहराई के आधार पर अलग किया जाता है। इस पेशे के ऊपरी स्तर ऐसा वर्ग बनाते हैं, जो कर्मियों, प्रवृत्तियों, नीतियों, विनियमों और नियमों जैसी चीजें नियंत्रित करता है; वह पेशे के भीतर एक तदनुरूपी ताकत बनाता है। उदाहरण के लिए, अध्यापन के पेशे में अगुआ, उच्चाधिकारी कौन है जो पेशे का नेतृत्व कर इसे नियंत्रित करता है, और जो तुम्हारी आजीविका और वेतन तय करता है? कुछ देशों में यह शिक्षक-संघ हो सकता है; चीन में यह शिक्षा ब्यूरो और शिक्षा मंत्रालय है। ये संस्थाएँ समाज में अध्यापन के पेशे से संबंधित ताकतों के क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसी प्रकार, किसानों के मामले में, उनका अगला उच्चाधिकारी कौन है? वह एक टीम-अगुआ, ग्राम-प्रधान या बस्ती का मुखिया हो सकता है, और अब तो कृषि प्रबंधन समितियाँ भी शुरू की जा रही हैं। क्या यह इस पेशे के अनुरूप ताकतों का क्षेत्र नहीं है? (बिल्कुल, है।) कहा जा सकता है कि ताकतों के ये विभिन्न क्षेत्र तुम्हारे विचारों, तुम्हारी कथनी-करनी, यहाँ तक कि तुम्हारी आस्था और तुम्हारे जीवन में अपनाए जाने वाले मार्ग को प्रभावित और नियंत्रित करते हैं। ये सिर्फ तुम्हारी आजीविका को नियंत्रित नहीं करते; ये तुमसे संबंधित हर चीज को नियंत्रित करते हैं। खासकर बड़े लाल अजगर के देश में अविश्वासी हमेशा वैचारिक सेमिनार करते हैं, अपने विचार बताते हैं, और जाँच करते हैं कि उनके विचारों में कोई समस्या तो नहीं, उनमें कोई पार्टी-विरोधी, राज्य-विरोधी या मानव-विरोधी तत्त्व तो शामिल नहीं। चाहे तुम जिस भी पेशे में हो, वह ज्यादा पारंपरिक व्यवसाय हो या ज्यादा आधुनिक, तुम्हारे आसपास पेशेवर क्षेत्र में विभिन्न तदनुरूपी ताकतें मौजूद होंगी। कुछ ताकतें तुम्हारे अगले उच्चाधिकारी हैं, जो तुम्हारे वेतन और जीवन-यापन के खर्च जारी करने के लिए सीधे जिम्मेदार हैं। अन्य ताकतें अमूर्त हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम कार्यस्थल पर एक गौण कर्मचारी हो; तुम्हारे पेशेवर क्षेत्र में विभिन्न ताकतें काम करेंगी। कुछ लोग प्रबंधक के साथ घनिष्ठता बढ़ाते हैं और हमेशा उसकी परिक्रमा करते रहते हैं—यह एक प्रकार की ताकत है। फिर एक ऐसी ताकत का समूह है जो सीईओ के करीब रहता है और खुद को सीईओ के मामले सँभालने के लिए समर्पित करता है। एक दूसरा समूह विपणन विभाग के निदेशक का करीबी हो सकता है। ये सब विभिन्न ताकतें मौजूद हैं। इन ताकतों का उद्देश्य क्या है? ये ताकतें अस्तित्व में कैसे आती हैं? हर व्यक्ति जो चाहता है वह ले रहा है, साथ ही अपने उद्देश्य प्राप्त करने और अस्तित्व कायम रखने के लिए सत्ता में बैठे लोगों की तरफदारी और चापलूसी कर रहा है, जिससे विभिन्न ताकतें निर्मित होती हैं। कुछ ताकतें एक नजरिये की वकालत करती हैं, तो दूसरी ताकतें अलग नजरिये की वकालत करती हैं। कुछ ताकतों में नियमों के अनुसार काम करने और कार्यस्थल के मानदंडों का पालन करने की प्रवृत्ति होती है, जबकि दूसरी ताकतें कानून और पेशेवर नैतिकता दोनों की उपेक्षा करते हुए ज्यादा घृणित तरीके से कार्य कर सकती हैं। ऐसे परिवेश में रहते हुए, जहाँ ये विभिन्न ताकतें आपस में मिलती हैं, तुम्हें कैसे चुनना चाहिए? तुम्हें कैसे जीवित रहना चाहिए? क्या तुम्हें पार्टी-संगठन के या किसी प्रबंधक या सीईओ के करीब जाना चाहिए? क्या तुम्हें किसी निदेशक या अनुभाग-प्रमुख के साथ घनिष्ठता बढ़ानी चाहिए, या तुम्हें किसी ब्यूरो-प्रमुख या फैक्टरी-निदेशक के साथ तालमेल बिठाना चाहिए? (इनमें से किसी से नहीं।) लेकिन जीवित रहने के लिए लोग अक्सर अपनी गरिमा, अपने आचरण के सिद्धांत और खासकर अपने आचरण की सीमाएँ त्याग देते हैं। इन ताकतों के जटिल परिदृश्य में लोग अनजाने ही पक्ष लेने, जमाने के साथ चलने और विभिन्न ताकतों के अनुरूप होने का विकल्प चुनेंगे। वे ऐसी ताकत ढूँढ़ते हैं जो उन्हें स्वीकार कर उनकी रक्षा करे, या वे ऐसी ताकत ढूँढ़ते हैं जिसे स्वीकार करना उनके लिए आसान हो, जिसे वे नियंत्रित कर सकें, और वे उसके करीब जाते हैं या उसमें समाहित तक हो जाते हैं। क्या यह मानवीय प्रवृत्ति नहीं है? (है।) क्या यह एक तरह का जीवित रहने का कौशल या तरीका नहीं है? (हाँ, है।) चाहे यह इस समाज और विभिन्न समूहों के अनुकूल होने के लिए लोगों की जन्मजात प्रवृत्ति हो या कौशल, क्या यह अभ्यास का वह सिद्धांत है जो आचरण करने के लिए व्यक्ति में होना चाहिए? (नहीं।) कुछ लोग कह सकते हैं, “भले ही तुम अभी कह रहे हो कि यह वह सिद्धांत नहीं है, लेकिन जब तुम वास्तव में खुद को उस स्थिति में पाओगे, तो वास्तविक जीवन में ऐसी किसी ताकत का पक्ष और उसकी शरण लेने का फैसला करोगे, जो तुम्हें लाभ पहुँचाए और तुम्हें जीवित रहने दे। और मन ही मन तुम्हें यहाँ तक लग सकता है कि लोगों को जीने के लिए इन ताकतों पर भरोसा करना चाहिए, कि वे स्वतंत्र रूप से नहीं जी सकते, क्योंकि स्वतंत्र रूप से जीने से वे धौंस के शिकार हो सकते हैं। तुम हमेशा स्वतंत्र और अलग-थलग नहीं रह सकते; तुम्हें विभिन्न ताकतों के आगे झुकना और उनके करीब रहना सीखना चाहिए। तुम्हें चौकस रहना चाहिए, लोगों की चापलूसी करनी चाहिए और अवसर की माँग के अनुसार प्रदर्शन करना चाहिए। तुम्हें जमाने के साथ चलना चाहिए, चापलूसी में माहिर होना चाहिए, रुझान परखने चाहिए और तुममें तीव्र अंतर्ज्ञान होना चाहिए। तुम्हें अपने अगुआओं की पसंद-नापसंद, उनके मिजाज और व्यक्तित्व, उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, वे किस तरह की चीजें सुनना पसंद करते हैं, उनकी उम्र, उनके जन्मदिन, उनके सूट, जूते और लैदर-बैग के पसंदीदा ब्रांड, उनके पसंदीदा रेस्तरां, कार-ब्रांड, कंप्यूटर और फोन ब्रांड, वे अपने कंप्यूटर पर किस तरह के सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करना पसंद करते हैं, वे अपने खाली समय में किस तरह के मनोरंजन का आनंद लेते हैं, वे किसके साथ जुड़ना पसंद करते हैं और वे किन विषयों पर चर्चा करते हैं, आदि के बारे में पता लगाकर उनसे परिचित होना चाहिए।” खुद को बचाने की खातिर तुम अनजाने ही और स्वाभाविक रूप से उनके करीब जाओगे, उनके साथ जुड़ोगे, अत्यधिक नमनशील होगे और अपने अगुआओं और सहकर्मियों को संतुष्ट करने के लिए और खुद को महान कौशल के साथ प्रबंधित करने और अपने कार्यस्थल पर हर चीज नियंत्रित करने के लिए वे चीजें करोगे जिन्हें तुम करना नहीं चाहते और वे चीजें कहोगे जिन्हें तुम कहना नहीं चाहते, और यह सुनिश्चित करोगे कि तुम्हारा जीवन और अस्तित्व सुरक्षित रहे। चाहे तुम्हारे कार्यकलाप नैतिकता और आत्म-आचरण की सीमाओं का उल्लंघन करते हों, या चाहे इसका मतलब अपनी गरिमा तक त्यागना हो, तुम परवाह नहीं करते। लेकिन ठीक यही उदासीनता तुम्हारे पतन की शुरुआत की निशानी है, और यह इस बात का संकेत है कि तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता। इसलिए, सतही तौर पर कोई उन लोगों को धिक्कार नहीं सकता, जिनके पास अपने जीवन और अस्तित्व की खातिर विभिन्न सामाजिक ताकतों के करीब जाने के अलावा कोई चारा नहीं है। हालाँकि, लोग जिन व्यवहारों को प्रदर्शित करते हैं, जिन विकल्पों को चुनते हैं और चलने के लिए जिन मार्गों का चुनाव करते हैं, वे उनकी मानवता और चरित्र विकृत कर देते हैं। साथ ही, जब लोग विभिन्न ताकतों के करीब आते हैं या उनसे जुड़ते होते हैं, तब वे अपना जीवन बेहतर और अपने अस्तित्व की स्थितियाँ और ज्यादा अनुकूल बनाने हेतु इन ताकतों को खुश और संतुष्ट करने के लिए लगातार विभिन्न योजनाएँ और रणनीतियाँ लागू करना सीखते हैं। जितना ज्यादा वे ऐसा करते हैं, उन्हें यह वर्तमान अवस्था और ये रिश्ते बनाए रखने के लिए उतनी ही ज्यादा ऊर्जा और समय की जरूरत होती है। इसलिए, तुम्हारे सीमित समय और दिनों के भीतर तुम्हारे कहे हर शब्द, तुम्हारे किए हर कार्य और तुम्हारे जिए हर दिन में सिर्फ अर्थ की कमी ही नहीं होती; वे सड़े हुए होते हैं। इसका क्या मतलब है कि वे सड़े हुए होते हैं? इसका मतलब यह है कि हर दिन तुम्हें और ज्यादा भ्रष्ट बनाता है, इस हद तक कि तुम न तो इंसान के समान रहते हो, न ही भूत के। इस पृष्ठभूमि में, परमेश्वर के सामने आने के लिए तुम्हारा हृदय शांत नहीं होता, और निश्चित रूप से, तुम्हारे पास अपना कर्तव्य निभाने के लिए पर्याप्त समय भी नहीं रहता। तुम संभवतः अपना कर्तव्य निभाने में पूरा तन-मन नहीं लगा सकते, और साथ ही, तुम संभवतः सत्य का अनुसरण करने में भी अपना पूरा तन-मन नहीं लगा सकते। इसलिए तुम्हारे उद्धार की सँभावनाएँ सूनी हैं, तुम्हारी आशाएँ धुँधली हैं। चूँकि तुमने विभिन्न सामाजिक ताकतों में निवेश किया है, उनके करीब जाना चुना है और उनके साथ जुड़कर उन्हें स्वीकारने का विकल्प चुना है, इसलिए इस विकल्प के परिणाम ये हैं कि तुम्हें यह वर्तमान अवस्था बनाए रखने के लिए अपना पूरा तन-मन समर्पित करते हुए अपने दिन बिताने होंगे। तुम तन-मन से थका हुआ महसूस करते हो, मानो तुम हर दिन कोल्हू में पिस रहे हो, और फिर भी तुम्हें अपने चुने हुए विकल्प के कारण दिन-ब-दिन ऐसा ही करना पड़ता है। विभिन्न ताकतों के इस जटिल परिवेश में, जब तुम उनके साथ जुड़ जाते हो, उनके द्वारा कहा गया हर शब्द, उसमें मौजूद रुझान, साथ ही आने वाले मामले, हर व्यक्ति के व्यवहार और उनके अंतरतम विचार, और खासकर तुम्हारे अगले वरिष्ठ, इन ताकतों का उच्चतम स्तर, जो कुछ सोच रहे हैं—ये सभी वे चीजें हैं, जिनका तुम्हें मूल्यांकन करना चाहिए और जिनके बारे में समयोचित तरीके से जानकारी इकट्ठी करनी चाहिए। तुम इसमें ढिलाई बरतने या इसे नजरअंदाज करने का जोखिम नहीं उठा सकते। वे क्या सोच रहे हैं, पर्दे के पीछे क्या कार्रवाई कर रहे हैं, उनकी क्या योजनाएँ और इरादे हैं, यहाँ तक कि वे हर व्यक्ति के लिए क्या योजना बना रहे हैं और क्या गणना कर रहे हैं, वे उनके लिए क्या निर्णय ले रहे हैं और उनके प्रति उनके क्या रवैये हैं—अगर तुम इन चीजों को पूरी तरह से जानना चाहते हो, तो तुम्हें अपने दिल में उस परिस्थिति की गहरी समझ होनी चाहिए। अगर तुम उन्हें गहराई से समझना चाहते हो, तो तुम्हें इन चीजों का अध्ययन कर इनमें महारत हासिल करने के लिए अपनी सारी ऊर्जा समर्पित करनी चाहिए। तुम्हें उनके साथ भोजन करना चाहिए, बातचीत करनी चाहिए, उन्हें फोन पर कॉल करना चाहिए, काम पर उनके साथ ज्यादा बातचीत करनी चाहिए, यहाँ तक कि छुट्टियों के दौरान उनके करीब आना चाहिए और उनकी गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए। नतीजतन, चाहे तुम्हारे दिन कैसे भी हों, चाहे वे खुशी से भरे हों या दर्द से, भले ही तुम्हारा मन अपना कर्तव्य पूरा करने और सत्य का अनुसरण करने का हो, लेकिन क्या तुम अपने पूरे तन-मन से अपना कर्तव्य निभाने के लिए खुद को पर्याप्त शांत करने का समय निकाल पाओगे? (नहीं निकाल पाएँगे।) ऐसी स्थिति में, तुम्हारे लिए परमेश्वर में विश्वास और अपनाकर्तव्य-पालन खाली समय में पूरा किए जाने वाले एक तरह के शौक से ज्यादा कुछ नहीं होगा। परमेश्वर में आस्था के लिए तुम्हारी अपेक्षाएँ और इच्छा चाहे जो भी हो, वर्तमान स्थिति में परमेश्वर में विश्वास करना और अपना कर्तव्य निभाना संभवतः तुम्हारी इच्छाओं की सूची में आखिरी चीजें ही हैं। जहाँ तक सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने की बात है, तो शायद तुम उनके बारे में सोचने की हिम्मत न करो या उनके बारे में सोच भी न सको—क्या यह सही नहीं है? (हाँ, है।) इसलिए, चाहे तुम किसी भी कार्य-परिवेश में हो, अगर तुम विभिन्न ताकतों के करीब आना या उनके साथ जुड़ना चाहते हो, या अगर तुम पहले ही उनके करीब आ चुके और उनके साथ जुड़ चुके हो, तो चाहे तुम्हारे कारण या बहाने कुछ भी हों, तुममें से किसी के लिए भी अंतिम परिणाम सिर्फ यह हो सकता है कि तुम्हारे उद्धार की आशा हवा में उड़ जाती है। इसका सबसे सीधा नुकसान यह है कि तुम्हें परमेश्वर के वचन पढ़ने या अपना कर्तव्य निभाने के लिए मुश्किल से ही समय मिलेगा। निस्संदेह, तुम्हारे लिए परमेश्वर के समक्ष हृदय शांत रखना या परमेश्वर से ईमानदारी से प्रार्थना करना असंभव है—तुम यह न्यूनतम स्थिति प्राप्त करने में भी असमर्थ रहोगे। चूँकि तुम जिस परिवेश में खुद को पाते हो, वह लोगों और घटनाओं के कारण अत्यधिक जटिल है, इसलिए अगर तुम विभिन्न ताकतों में समाहित हो जाते हो, तो यह दलदल में पैर रखने के समान है—अगर उसमें घुस गए तो बाहर निकलना आसान नहीं होता। इसका क्या मतलब है कि उसमें से बाहर निकलना आसान नहीं होता? इसका मतलब यह है कि अगर तुम विभिन्न ताकतों के क्षेत्र में कदम रखते हो, तो तुम इन ताकतों से उलझे विभिन्न मामलों और उनसे उत्पन्न होने वाले तमाम तरह के विवादों से बचने में खुद को असमर्थ पाओगे। तुम खुद को लगातार विभिन्न लोगों और घटनाओं में उलझा हुआ पाओगे और कोशिश करने पर भी तुम उनसे बच नहीं पाओगे, क्योंकि तुम पहले ही उन्हीं में से एक बन चुके हो। इसलिए, इन ताकतों के क्षेत्र में होने वाली हर घटना तुमसे जुड़ी होती है और वह तुम्हें खुद में शामिल कर लेगी, जब तक कि कोई खास स्थिति पैदा न हो जाए; अर्थात्, तुम यहाँ लाभ और हानि के साथ-साथ विवादों के प्रति उदासीन रहते हो, और हर चीज एक दर्शक के परिदृश्य से देखते हो। उस स्थिति में, तुम्हारा इन विभिन्न विवादों या किसी संभावित दुर्भाग्य से दूर रहना संभव है। लेकिन जैसे ही तुम इन ताकतों के साथ जुड़ते हो, जैसे ही तुम उनके करीब जाते हो, जैसे ही तुम पूरे दिल से उनके बीच होने वाली हर घटना में भाग लेते हो, वैसे ही तुम निस्संदेह फँस जाओगे। तुम दर्शक नहीं बने रह पाओगे; तुम सिर्फ भागीदार ही हो सकते हो। और एक भागीदार के रूप में तुम इन ताकतों के क्षेत्र का शिकार हो जाओगे।

कुछ लोग कहते हैं, “चाहे तुम जिस भी व्यवसाय-क्षेत्र में या जिस भी समूह में हो, दूसरों से धौंस मिलना कोई बड़ी बात नहीं—महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम खुद को बचाए रख सकते हो या नहीं। अगर तुम खुद को संगठनों या विभिन्न ताकतों के साथ नहीं जोड़ते, तो समाज या विभिन्न समूहों में अपना कोई सहारा न होने के कारण तुम सफल नहीं हो पाओगे।” क्या सचमुच ऐसा ही है? (ऐसा नहीं है।) विभिन्न सामाजिक समूहों में लोगों के विभिन्न ताकतों के साथ घनिष्ठता बढ़ाने के पीछे का उद्देश्य “बड़े पेड़ के नीचे छाया ढूँढ़ना” है, ऐसी ताकतें ढूँढ़ना है जो उनका समर्थन कर सकें। यह लोगों की सबसे बुनियादी माँग है। इसके अलावा लोग पदोन्नति पाने, लाभ या सत्ता पाने का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए इन ताकतों का लाभ उठाना चाहते हैं। अगर अपने पेशेवर क्षेत्र में तुम सिर्फ अपना जीवन-यापन कर रहे हो और सिर्फ भोजन और वस्त्र से संतुष्ट हो, तो तुम्हें किसी ताकत के करीब जाने की जरूरत नहीं। अगर तुम उसके करीब जाते ही हो, तो इसका मतलब है कि यह सिर्फ जीविका कमाने और भोजन और वस्त्र की बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए नहीं है—तुम्हारे निश्चित ही दूसरे इरादे हैं, तुम प्रसिद्धि पाना चाहते हो या लाभ। क्या कोई है जो कहता है, “जीविका कमाने के अलावा, मैं खुद को साबित भी करना चाहता हूँ”? क्या यह जरूरी है? (यह जरूरी नहीं है।) अगर तुम अपना धन कमा लेते हो, दिन में तीन वक्त का भोजन जुटाने में सक्षम रहते हो, तुम्हारे पास पहनने के लिए कपड़े हैं, तो यह पर्याप्त है—शान के लिए खटने का क्या मतलब है? तुम किसके लिए खट रहे हो? अपने देश, अपने पूर्वजों, अपने माता-पिता के लिए या अपने लिए? मुझे बताओ, क्या शान के लिए खटना ज्यादा महत्वपूर्ण है या भोजन और वस्त्र से संतुष्ट रहना? (भोजन और वस्त्र से संतुष्ट रहना ज्यादा महत्वपूर्ण है।) शान के लिए खटना उतावलेपन से भरा स्वभाव है; तुम जो कुछ भी करते हो, इसी शान के लिए करते हो। यह एक अमूर्त, खोखली अवधारणा है। सबसे व्यावहारिक चीज पैसा कमाना है, ताकि तुम आजीविका बनाए रख सको। तुम्हें इसके बारे में इस तरह सोचना चाहिए : “कैसी स्थिति है, कौन किसका पक्ष लेता है या कौन किस स्तर के अगुआ या अधिकारी के करीब जाता है, इनमें से कुछ महत्त्व नहीं रखता। कौन पदोन्नत या पदावनत होता है, वेतनवृद्धि पाता है, या उच्च श्रेणी का अधिकारी बनने के लिए कौन-से साधन अपनाता है, यह सब अप्रासंगिक है। मैं बस जीविकोपार्जन के लिए काम कर रहा हूँ। तुम लोगों में से कौन किसके लिए प्रयास कर रहा है, इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। हर हाल में, मैं रोजाना आठ घंटे काम करता हूँ, मुझे उतना वेतन मिल जाता है जितने का मैं पात्र हूँ, और मैं इस बात से संतुष्ट हूँ कि मैं अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकता हूँ। इसका बस इतना ही महत्व है; यही छोटी-सी चीज मैं चाहता हूँ।” जो तुम्हारी नौकरी के लिए जरूरी है, वह करो और उसे अच्छी तरह से करो, और अपना वेतन और कोई बोनस साफ जमीर के साथ प्राप्त करो—इतना काफी है। क्या खुद को बचाए रखने और अपने व्यवसाय के प्रति यह रवैया सही है? (बिल्कुल।) यह कैसे सही है? (क्योंकि वह एक ऐसे रवैये के साथ जीवन जीता है जो परमेश्वर की अपेक्षा के अनुरूप है। पहले, इसका मतलब है अपना काम अनमने ढंग से न करना और अपना पेशेवर काम अच्छी तरह से कर पाना। दूसरे, इसका मतलब है किन्हीं ताकतों का आश्रय न खोजना या उनकी चापलूसी न करना; सामान्य जीवन की जरूरतें पूरी होना पर्याप्त है। यह परमेश्वर के वचनों के अनुरूप है।) बेशक यह परमेश्वर के वचनों के अनुरूप है। क्या परमेश्वर तुम्हारी रक्षा करने के लिए तुमसे इसकी अपेक्षा करता है? (हाँ।) तुम्हारी किस चीज से रक्षा करने के लिए? (शैतान द्वारा नुकसान पहुँचाने से। वरना, अगर हम ऐसे विवादों में फँस जाते हैं, तो जीवन बहुत दर्दनाक हो जाता है, और इसके अलावा परमेश्वर में विश्वास करने और अपने कर्तव्य पूरे करने के लिए हमारे पास ज्यादा समय नहीं बचेगा।) यह एक पहलू रहा। दूसरा पहलू मुख्य रूप से क्या है? जब तुम विभिन्न ताकतों से जुड़ जाते हो, तो अंतिम परिणाम यह होता है कि तुम खुद नष्ट हो जाओगे। इससे कुछ भी हासिल नहीं होता! पहले, तुम अपनी सुरक्षा करने में सक्षम नहीं रहोगे। दूसरे, तुम न्याय कायम नहीं रखोगे और उसे बढ़ावा नहीं दोगे। तीसरे, तुम विभिन्न ताकतों के साथ साँठ-गाँठ करके अपने पाप बढ़ाओगे। इसलिए, इन ताकतों के करीब जाने से कोई फायदा नहीं। विभिन्न ताकतों के साथ घनिष्ठता बढ़ाकर तुम्हें वेतनवृद्धि या पदोन्नति भले ही मिल जाए, लेकिन तुम्हें उनके साथ कितने झूठ बोलने पड़ेंगे? परदे के पीछे कितने बुरे काम करने पड़ेंगे? बंद दरवाजों के पीछे कितने लोगों को सजा देनी पड़ेगी? इस समाज में तमाम तरह के लोगों और उद्योगों को इन ताकतों की जरूरत क्यों पड़ती है? इसलिए कि इस समाज में निष्पक्षता और न्याय का अभाव है। लोग कार्रवाई करने के लिए विभिन्न ताकतों पर भरोसा करके ही अपनी रक्षा कर सकते हैं, और बोलने और कार्य करने के लिए उन पर भरोसा करके ही अपनी जगह सुरक्षित कर सकते हैं। क्या यह उचित है? (नहीं।) यह उचित नहीं है; सब-कुछ इन ताकतों पर टिका है। जिसके पास ज्यादा ताकत है, उसी की चलती है, जिसके पास ताकत नहीं है या कम ताकत है, उसकी कुछ नहीं चलती। यहाँ तक कि कानूनों का निर्माण भी इसी तरह से होता है : अगर तुम्हारे पास पर्याप्त ताकत है, तो तुम्हारे मनमुताबिक कानून बनाकर लागू किए जा सकते हैं। अगर तुम्हारे पास ज्यादा ताकत नहीं है, तो तुम्हारे द्वारा प्रस्तावित कोई भी नियम-कानून आगे नहीं बढ़ते और राष्ट्रीय विधायिका में नहीं पहुँच पाते। यह लोगों के किसी भी समूह के लिए सच है : अगर तुम्हारे पास काफी ताकत है, तो तुम अपने हितों के लिए लड़कर उन्हें अधिकतम कर सकते हो; अगर तुम्हारे पास ताकत नहीं है, तो तुम्हारे हित तुमसे छीने या जब्त किए जा सकते हैं। विभिन्न ताकतों के गठन के पीछे का उद्देश्य उन्हीं ताकतों का उपयोग करके स्थितियाँ नियंत्रित करना, यहाँ तक कि जनमत, कानून और इंसानी नैतिकता का भी उल्लंघन करना है। वे कानून, नैतिकता और मानवता से परे जा सकते हैं—वे हर चीज से परे जा सकते हैं। व्यक्ति की ताकत जितनी ज्यादा होगी, उसका प्रभाव उतना ही ज्यादा होगा, और उसे मनचाहे कार्य करने के, अपनी बात मनवाने के उतने ही ज्यादा अवसर मिलेंगे। क्या यह उचित है? (नहीं।) यह उचित नहीं है। सत्ता और ताकत उनकी पहचान दर्शाते हैं और यह बताते हैं कि उनके हिस्से कितने लाभ आ सकते हैं। अगर तुम किसी सामाजिक समूह में हो और सिर्फ अपनी आजीविका बनाए रखना और भोजन और वस्त्र प्राप्त करना चाहते हो, और तुम्हारा अनुसरण हैसियत या प्रतिष्ठा के लिए, या अपनी इच्छाएँ पूरी करने के लिए नहीं है, तो विभिन्न ताकतों के करीब जाना तुम्हारे लिए बिल्कुल अनावश्यक प्रतीत होगा। अगर तुम अपना सारा समय अपने कर्तव्य पूरे करने में लगाना चाहते हो, अगर तुम सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलना और अंततः उद्धार प्राप्त करना चाहते हो, लेकिन तुम विभिन्न ताकतों के साथ घनिष्ठता भी बढ़ाना चाहते हो, तो ये दो चीजें परस्पर विरोधी हैं। ये एक-दूसरे की पूरक नहीं हो सकतीं, क्योंकि ये बिल्कुल विपरीत हैं, ये उतने ही बेमेल हैं जितने बेमेल पानी और तेल हैं। विभिन्न ताकतों के निकट जाना परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास या सत्य के तुम्हारे अनुसरण में कोई सहायक प्रभाव नहीं डालेगा। यह तुम्हें शैतान का घृणित चेहरा ज्यादा स्पष्ट रूप से पहचानने में मदद नहीं करेगा, न ही यह तुम्हें दुनिया द्वारा नकारे बिना और सरकार द्वारा सताए बिना परमेश्वर पर ज्यादा बोलने या विश्वास करने देगा। कुछ लोग छोटे-से गाँव में रहते हैं, लेकिन अपने मन में बड़े-बड़े मनसूबे पालते हैं। वे सोचते हैं, “मैं देहात में पैदा हुआ था। मैं एक किसान हूँ। मेरे साथ बुरा सलूक होता है, फिर भी मैं कुछ अनाज और सब्जियाँ उगाकर, और कुछ मुर्गियाँ, मवेशी और भेड़ पालकर काम चला सकता हूँ। अगर मैं परमेश्वर में विश्वास और सत्य का अनुसरण करता हूँ, तो ये स्थितियाँ काफी अच्छी हैं; मेरे पास खुद को बचाए रहने के लिए आवश्यक स्थितियाँ हैं। लेकिन मुझे हमेशा ऐसा क्यों लगता है कि इस समाज में और इन लोगों के बीच रहने और जीने में कुछ कमी है?” क्या कमी है? उसके पास कोई शक्तिशाली सहारा नहीं है। देखो, घर चुनने वाले लोगों की स्थिति कैसी होती है : वे हमेशा ऐसा घर पसंद करते हैं, जिसके पीछे एक बड़ा पहाड़ हो। वे उस पहाड़ को अपना सहारा मानते हैं और इससे उन्हें वहाँ रहना सुरक्षित लगता है। अगर घर के पीछे गिरती चट्टान होती, तो उन्हें वहाँ रहना सुरक्षित न लगता, मानो वे किसी भी क्षण चट्टान से लुढ़क जाएँगे। इसी तरह गाँव में रहते हुए, अगर व्यक्ति किसी ऐसे के साथ संबंध नहीं रखता जिसके पास प्रतिष्ठा और हैसियत है, और उसका दिल जीतने के लिए समय-समय पर उससे मिलने नहीं जाता, तो वह उस गाँव में रहते हुए हमेशा कुछ हद तक अलग-थलग महसूस करेगा और उसे लगातार धौंस दिए जाने और गुजारा न कर पाने का खतरा रहेगा। यही कारण है कि वह हमेशा ग्राम-प्रधान से घनिष्ठता बढ़ाना चाहता है। क्या यह एक अच्छा विचार है? (नहीं।) खासकर जब परमेश्वर में विश्वास करने की बात आती है, तो कुछ देशों में जहाँ उन्हें सरकारी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, कुछ लोग कहते हैं, “अगर हम ग्राम-प्रधान को सुसमाचार सुनाते हैं और वह विश्वास नहीं करता, लेकिन उसकी माँ, दादी, पत्नी या बेटी विश्वास करती हैं, तो क्या यह प्रधान के करीब जाना नहीं होगा? अगर हमारी कलीसिया का कोई भाई या बहन गाँव में प्रमुख स्थान रखती है या ग्राम-प्रधान की रिश्तेदार है, तो क्या वहाँ कलीसिया की मजबूत पकड़ नहीं होगी? क्या उसकी हैसियत नहीं होगी? क्या परमेश्वर में विश्वास करने वाले हमारे भाई-बहन बिना किसी समस्या के गाँव में खाना नहीं खा सकेंगे और खेती नहीं कर सकेंगे? इतना ही नहीं, जब बड़ा लाल अजगर या यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट जाँच करने आएगा, तो कोई हमारा समर्थन करने वाला रहेगा। यह बहुत अच्छी बात होगी!” तुम हमेशा किसी संगठन या ताकतों के किसी समूह के करीब रहना चाहते हो, ताकि तुम यकीनन खुद को किसी खतरनाक परिस्थिति में न पाओ और सुरक्षित रूप से और उत्पीड़न से मुक्त होकर परमेश्वर में विश्वास कर पाओ—यह कितनी बड़ी बात है! साथ ही, प्रभावशाली लोगों के साथ घुलना-मिलना तुम्हें किसी प्रभावशाली व्यक्ति जैसा महसूस कराता है, है न? यह एक अद्भुत विचार है, लेकिन क्या ग्राम-प्रधान चाहता भी है कि तुम उसके करीब आओ? क्या ग्राम-प्रधान ऐसा व्यक्ति है, जिसका तुम लाभ उठा सकते हो? क्या ग्राम-प्रधान तुम्हें अपना शोषण करने देगा? तुम एक साधारण व्यक्ति हो, और संगठन या ग्राम-प्रधान के करीब जाना चाहते हो और सोचते हो कि सिर्फ सुसमाचार सुनाना काम कर जाएगा? क्या ग्राम-प्रधान के करीब जाने के लिए तुम्हें कुछ अच्छे उपहार देने या कुछ महत्वपूर्ण कार्य संपन्न करने की जरूरत नहीं है? तुम लोगों का क्या अनुभव है? क्या ग्राम-प्रधान के करीब जाना आसान है? उसके पालतू कुत्ते के करीब जाना तक मुश्किल होगा! और ग्राम-प्रधान को सीधे उपहार देने से काम नहीं चलेगा; तुम्हें अपेक्षाकृत आसान लक्ष्यों से शुरुआत करते हुए उसकी पत्नी, माँ, चाची या दादी के करीब जाना होगा। ग्राम-प्रधान की दादी के करीब क्यों जाना होगा? ग्राम-प्रधान का उसके साथ घनिष्ठ संबंध होता है, इसलिए तुम उससे शुरुआत करते हो, और परिवार की बुजुर्ग उसकी दादी के माध्यम से, जो तुम्हारे लिए अच्छी बातें कह सकती है, तुम धीरे-धीरे ग्राम-प्रधान के करीब पहुँच जाते हो। इसे ही “अप्रत्यक्ष पहुँच” कहा जाता है, है न? अगर तुम सीधे ग्राम-प्रधान को उपहार देते हो, तो वह पूछ सकता है, “तुम कौन हो?” और तुम जवाब दोगे, “मैं गाँव के पूर्वी हिस्से में रहने वाले ली परिवार से फलाँ-फलाँ हूँ।” “कौन-सा ली परिवार? मैं उसे क्यों नहीं जानता?” अगर वह तुम्हें पहचानता तक नहीं, तो क्या उसके करीब जाना आसान होगा? (नहीं, आसान नहीं होगा।) और अगर तुम उसे कोई उपहार देते हो, तो किस तरह का उपहार उसका ध्यान आकर्षित करेगा? सोने की छड़ें, सोने की सिल्लियाँ—क्या तुम्हारे पास इनमें से कुछ है? समुद्री खीरे—क्या वह उन्हें चाहता भी है? वह देखेगा कि तुम्हारे समुद्री खीरे आयातित हैं या देसी; उसके पास खुद ये चीजें प्रचुर मात्रा में हैं। तुम फिजूलखर्ची न करते हुए इसे खरीदने के लिए अपने दिन किफायत से बिताते हो, खुद इसे खाने—यहाँ तक कि छूने तक की—हिम्मत नहीं करते। तुम इसे उसे देते हो और वह इस पर नजर तक नहीं डालता। तुम उसे एक बेल्ट देते हो, और वह कहता है, “यह देसी है, है न?” तुम कहते हो, “यह गाय की चमड़ी से बनी है।” और वह कहता है, “आजकल गाय की चमड़ी की बेल्ट कौन पहनता है? कोई नहीं पहनता। लोग यूरोपीय ब्रांड के लोगो वाली या हीरे-जड़ी जेनुइन लैदर बेल्ट पहनते हैं। क्या तुम्हारे पास वो हैं?” तुम कहते हो, “वह कैसी दिखती है? मैंने उसे कभी नहीं देखा।” वह कहता है, “अगर तुमने उसे कभी नहीं देखा, तो यहाँ आने की जहमत मत उठाना। क्या तुम यह बेल्ट किसी भिखारी को देने की कोशिश कर रहे हो?” क्या तुम ऐसे व्यक्ति की कृपा प्राप्त कर सकते हो? तुम सोचते हो कि तुम्हारे पास एक चतुर योजना है, कि तुमने सब समझ-बूझ लिया है, लेकिन वह तुम्हारे उपहारों को बस तुच्छ समझता है। वह तुम्हारे उपहारों को तुच्छ समझता है, फिर भी तुम उसके साथ घनिष्ठता बढ़ाने पर जोर देते हो। क्या यह उचित है? अगर वह तुम्हारे उपहारों को श्रेष्ठ भी समझता हो, तो भी क्या उसके साथ घनिष्ठता बढ़ाना उचित है? (यह उचित नहीं है।) सिर्फ इसलिए कि कुछ खाने को मिल जाए, सिर्फ इसलिए कि गाँव में कोई शक्तिशाली समर्थक हो, तुम ऐसी अपमानजनक चीजें करने को तैयार होगे। क्या तुम लोगों को यह शर्मनाक नहीं लगता? (हाँ, लगता है।) प्रधान की दादी के पीछे भागना, उसकी पत्नी और उसकी भाभी के पीछे भागना, हर तरह के हथकंडे अपनाना, उपहार देना और करीब आने की कोशिश करना। दूसरे लोग तुमसे कहते हैं, “तुम्हारा ये उपहार देना बेकार है; प्रधान की नजर तो तुम्हीं पर है।” क्या तुम तब भी करीब जाने की कोशिश करोगे? तुम्हारा कोई भी तोहफा उपयुक्त नहीं होगा। प्रधान यह सोचकर उन पर दोबारा नजर तक नहीं डालेगा कि वे सब तो उसके स्तर से नीचे के हैं। सबसे बुरी बात यह है कि तुम्हें खुद को सौदेबाजी में झोंकना होगा। क्या तुम अब भी उसके करीब जाने की कोशिश करोगे? (नहीं।) क्या तुम अब भी इस तरह का समर्थक तलाशोगे? ग्राम-प्रधान का चरित्र कैसा है? क्या वह ऐसा व्यक्ति है, जो तुम्हें यूँ ही अपने करीब आने देता है? (नहीं।) अगर तुम उसके साथ रिश्ता कायम कर भी लेते हो और उसके करीब चले भी जाते हो, तो भी क्या? क्या वह तुम्हारे भाग्य को नियंत्रित कर सकता है या तुम्हें उद्धार प्राप्त करने में मदद कर सकता है? या जब वास्तविक उत्पीड़न और स्थितियों का सामना करने का समय आता है, जब परमेश्वर इन स्थितियों को होने देता है और आयोजित करता है, तो क्या तुम इनका सामना करने से बच सकते हो? क्या इसमें अंतिम निर्णय ग्राम-प्रधान का होता है? (नहीं।) परमेश्वर द्वारा आयोजित चीजों की भव्य योजना में ऐसी कोई ताकत नहीं है जिसका निर्णय अंतिम हो, ग्राम-प्रधान की तो बात ही छोड़ दो—इस संबंध में कोई ताकत उल्लेख करने लायक भी नहीं है। इसलिए, इस दुनिया में रहते हुए, चाहे तुम किसी गाँव में हो या किसी जिले, शहर या किसी देश में, यहाँ तक ​​कि किसी देश के भीतर किसी उद्योग में भी लगे हो, उनमें मौजूद तमाम विभिन्न ताकतें तुम्हारे भाग्य पर संप्रभुता नहीं रख सकतीं, न ही वे तुम्हारे भाग्य को बदल सकती हैं। कोई भी एक ताकत तुम्हारे भाग्य की स्वामिनी नहीं है, तुम्हारे भाग्य की संप्रभुता की स्वामिनी होना तो दूर की बात है, न ही वह तुम्हारे भाग्य का निर्माण करती है। इसके विपरीत, अगर तुम समाज में मौजूद विभिन्न ताकतों से जुड़ते हो, तभी तुम पर विपत्ति आती है और तुम्हारा दुर्भाग्य शुरू हो जाता है। तुम उनके जितने करीब जाते हो, उतने ही ज्यादा खतरे में पड़ते हो; तुम उनके साथ जितने ज्यादा जुड़ते हो, इससे बाहर निकलना उतना ही कठिन हो जाता है। न सिर्फ ये विभिन्न ताकतें तुम्हें कोई लाभ नहीं पहुँचातीं, बल्कि जैसे ही तुम उनके साथ जुड़ते हो, वे बार-बार तुम्हें तबाह करती और रौंदती हैं, तुम्हें अपनी शांति खोने पर मजबूर करते हुए तुम्हारी आत्मा और मन को विकृत करती हैं, ताकि तुम फिर इस दुनिया में निष्पक्षता और न्याय के अस्तित्व पर विश्वास न करो। वे सत्य और उद्धार का अनुसरण करने की तुम्हारी सबसे खूबसूरत इच्छा नष्ट कर देंगी। इसलिए, इस समाज में जीवित रहने के लिए, चाहे तुम्हारा सामाजिक वर्ग, परिवेश या समूह कोई भी हो, या तुम खुद को किसी भी उद्योग में पाओ, कोई ऐसी ताकत तलाशना जिस पर तुम भरोसा कर सको, जो तुम्हारी सुरक्षा की छतरी के रूप में कार्य कर सके, एक गलत और अतिवादी विचार और दृष्टिकोण है। अगर तुम सिर्फ जीवित रहने का प्रयास कर रहे हो, तो तुम्हें इन ताकतों से बहुत दूर रहना चाहिए। भले ही ये ताकतें तुम्हारे वैध मानवाधिकारों की रक्षा ही कर रही हों, यह तुम्हारे उनके साथ जुड़ने का कोई कारण या बहाना नहीं है। समाज में इन विभिन्न ताकतों के अस्तित्व की अवस्था चाहे जैसी हो, उनके उन्नति के जो भी लक्ष्य हों, या उनके कार्यों की जो भी दिशा हो, संक्षेप में, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो परमेश्वर में विश्वास करता है, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो सत्य का अनुसरण करता है, तुम्हें उनमें से एक नहीं बनना चाहिए, न ही तुम्हें इन विभिन्न ताकतों के भीतर उनका समर्थक बनना चाहिए। इसके बजाय, तुम्हें उनसे दूर रहना चाहिए, उनसे बचकर रहना चाहिए, उनसे जुड़े विभिन्न विवादों से बचना चाहिए, उनके द्वारा निर्धारित विभिन्न खेल-नियमों से बचना चाहिए, और उन हानिकारक चीजों और हानिकारक शब्दों से भी बचना चाहिए, जिनकी वे व्यक्ति से अपने पेशे के या इन ताकतों के दायरे में करने और कहने की अपेक्षा करते हैं। तुम्हें उनमें से एक नहीं बनना चाहिए, और निश्चित रूप से तुम्हें उनके जुर्म के साझेदारों में से एक नहीं बनना चाहिए। विभिन्न उद्योगों और व्यवसायों में, जहाँ विभिन्न ताकतें मौजूद हैं, तुमसे परमेश्वर की यही अपेक्षा है : उनसे दूर रहना और उनसे बचकर रहना, उनका बलि का बकरा न बनना, उनके शोषण की वस्तु न बनना, और उनका अनुचर या प्रवक्ता न बनना।

बेशक, इस समाज में लोगों को विभिन्न उद्योगों और व्यवसायों में अपने से ठीक ऊपर वाले निरीक्षकों और नागरिक संगठनों के अलावा कुछ अवैध सामाजिक समूहों से भी बचना चाहिए—इन लोगों के साथ न जुड़ो या उनके साथ किसी भी तरह से संबद्ध न हो। उदाहरण के लिए, वे लोग, जो सूदखोरी करते हैं। कुछ लोगों के पास अपने व्यवसाय के लिए पूँजी नहीं होती और वे सामान्य कर्ज नहीं जुटा पाते, लेकिन उनके पास पूँजी का प्रवाह बनाने का एक तरीका होता है सूद पर कर्ज लेना। सूद पर कर्ज न सिर्फ ऊँची ब्याज-दरों पर मिलता है, बल्कि उसमें भारी जोखिम भी होते हैं। बहुत सारा पैसा कमाने और अपने व्यवसाय को दिवालिया होने से बचाने के लिए कुछ लोग अंततः इस कदम का सहारा लेते हैं : सूद पर कर्ज लेना। क्या सूदखोरी करने वाले लोग समाज में कानून का पालन करने वाले व्यक्ति होते हैं? (नहीं, वे कानून का पालन करने वाले व्यक्ति नहीं होते।) वे अवैध सामाजिक संगठन होते हैं और उनसे हर समय बचना चाहिए। तुम्हारा अस्तित्व या तुम्हारी वर्तमान स्थिति तुम्हें चाहे जिस स्थिति में ले जाए, तुम्हें कभी इस मार्ग पर विचार नहीं करना चाहिए, बल्कि इससे दूर रहकर बचना चाहिए। तुम्हारे जीवन और आजीविका में चाहे जो भी समस्याएँ आएँ, उनके बारे में सोचना भी मत और न ही यह मार्ग अपनाने पर विचार करना। क्या लोगों का यह समूह पार्टी-संगठन के समान नहीं है? इस तथाकथित कानून-पालक समाज और अंडरवर्ल्ड के बीच कुछ समानताएँ हैं। यह मत सोचो कि वे तुम्हारी आजीविका के लिए कोई रास्ता निकाल सकते हैं या महत्वपूर्ण मोड़ दे सकते हैं; यह खयाली पुलाव है। अगर तुम यह कदम उठाने का निर्णय लेते हो, अगर तुम इस मार्ग पर चलते हो, तो तुम्हारा आगे का जीवन और भी बदतर होगा। बेशक, एक दूसरी तरह का तथाकथित सामाजिक संगठन भी है जिसका नाम हम नहीं लेना चाहते, जिसके करीब तुम्हें कभी नहीं जाना चाहिए, खासकर जब तुम कुछ खास और कँटीली समस्याओं का सामना करो, जब तुम खास परिवेशों का सामना करो, या जब तुम खुद को खास तौर से खतरनाक परिस्थितियों में पाओ। अपनी सुरक्षा करने, खतरे से बाहर निकलने और कठिनाइयों से बचने के लिए अतिवादी साधनों का उपयोग करने के बारे में मत सोचो। ऐसी स्थितियों में, उन जैसे लोगों के साथ जुड़ने या उनके साथ किसी भी तरह का मेलजोल रखने से बेहतर है कि तुम उनके जाल में फँस जाओ। तुम ऐसा क्यों करोगे? क्या इसे ही ईमान कहा जाता है? क्या ईसाइयों में इसी तरह का ईमान होना चाहिए? (यह उस तरह का ईमान नहीं है जो ईसाइयों में होना चाहिए।) तो फिर यह क्या है? (बस यही कि उनके करीब जाना ठीक नहीं है।) यह ठीक क्यों नहीं है? (उनके करीब जाने से आगे का जीवन बदतर होगा और भविष्य में बड़ा खतरा होगा।) क्या यह सिर्फ भविष्य के खतरे से बचने के लिए है? तो फिर तुम पहले अपने तात्कालिक खतरे से बाहर क्यों नहीं निकल भागते? तुम इन ताकतों के करीब क्यों नहीं पहुँच पाते? बाइबल में, जब प्रभु यीशु की परीक्षा हुई तो उसने शैतान को कैसे जवाब दिया? (प्रभु यीशु ने कहा, “हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है : ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर’” (मत्ती 4:10)।) वह परमेश्वर ही है जिसे प्रणाम करना चाहिए और सिर्फ वही एक है जिसकी लोगों को उपासना करनी चाहिए। साथ ही एक परमेश्वर ही है, जिसके लिए लोगों को जीना चाहिए। अगर परमेश्वर तुम्हारा जीवन छीन लेने की अनुमति देता है, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? (समर्पित होना चाहिए।) तुम्हें परमेश्वर के प्रति समर्पित होकर उसकी स्तुति करनी चाहिए। परमेश्वर का नाम ऊँचा करना चाहिए, और लोगों को अपनी जान की परवाह किए बिना परमेश्वर के प्रति समर्पित होना चाहिए। हालाँकि, अगर परमेश्वर चाहता है कि तुम जीवित रहो, तो तुम्हारा जीवन कौन छीन सकता है? उसे कोई नहीं छीन सकता। इसलिए, चाहे तुम किसी भी परिस्थिति या खतरे का सामना करो, यहाँ तक कि मौत से सामना होने पर भी, अगर कोई ताकत है जो तुम्हें मौत से बचा सकती है, तो यह ताकत उचित नहीं है बल्कि शैतान की है। तुम्हें क्या कहना चाहिए? “चले जाओ शैतान! मैं तुम्हारे साथ कोई संबंध रखने के बजाय मर जाना पसंद करूँगा!” क्या यह सिद्धांत का मामला नहीं है? (है।) “मैं तुम्हारी ताकतों के बलबूते जिऊँ यह हो नहीं सकता, न मैं इसलिए मर जाऊँगा कि परमेश्वर ने मुझे त्याग दिया है। सब-कुछ परमेश्वर के हाथ में है। जीवित रहने के लिए मैं संभवतः किसी भी ताकत पर भरोसा कर समझौता नहीं कर सकता।” यही वह सिद्धांत है, जिसे लोगों को कायम रखना चाहिए। अगर तुम खुद को दुविधा में पाते हो, और कोई कहता है कि समाज में एक ताकत है जो तुम्हें बचा सकती है; अगर वह ताकत तुम्हें बचाने में सफल हो सकती है, लेकिन वह तुम्हारा, ईसाइयों का, कलीसिया का और परमेश्वर के घर का अपमान कराएगी; अगर वह परमेश्वर के घर को बदनाम करेगी, तो तुम कैसे प्रतिक्रिया दोगे? क्या तुम स्वीकार करोगे या इनकार करोगे? (इनकार करूँगा।) तुम्हें इनकार करना चाहिए। सिद्धांततः हम जीवित रहने के लिए किसी भी ताकत पर निर्भर नहीं हैं। इसलिए, हम चाहे जिस किसी परिस्थिति या खतरनाक स्थिति का सामना करें, परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने के अलावा सबसे बुनियादी चीज यह है कि हमें खतरनाक स्थितियों से बचने के लिए विभिन्न अतिवादी साधनों का उपयोग करने के विचार पर ध्यान भी नहीं देना चाहिए। अगर लोग जिम्मेदारियाँ पूरी कर लेते हैं और आवश्यक प्रयास कर लेते हैं, तो बाकी सब-कुछ परमेश्वर के आयोजन पर छोड़ देना चाहिए। अगर कोई कहे कि एक अवैध सामाजिक संगठन तुम्हें बचाने में सक्षम है, तो क्या तुम सहमत होओगे? (मैं सहमत नहीं होऊँगा।) तुम सहमत क्यों नहीं होओगे? क्या तुम जीना नहीं चाहते? क्या तुम अपनी दुर्दशा से फौरन बचना नहीं चाहते? जब तुम अपनी दुर्दशा से बचने और जीवित रहने की कोशिश करते हो, तब भी तुम्हारे पास आत्म-आचरण के लिए सिद्धांत होने चाहिए। तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। तुम्हें अपने दिल में स्पष्ट होना चाहिए और अपने सिद्धांत नहीं छोड़ने चाहिए।

जहाँ तक विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने की बात है, लोगों को अपने जीवन में जिन विभिन्न ताकतों का सामना करना पड़ता है उनके अलावा भी कई ऐसी ताकतें हैं जो समाज में अक्सर दिखाई देती हैं : व्यक्ति को उनसे भी दूर रहना चाहिए। चाहे जीवन हो या कार्यस्थल, उनके साथ किसी तरह का संबंध रखने या बातचीत करने से बचो। अपना जीवन और कार्य सँभालो, और साथ ही इन ताकतों के विकराल रूप से डरो मत। अपने दिल से उन्हें अस्वीकार कर उनसे दूर रहते हुए उनके साथ अपना रिश्ता समझदारी से सँभालो और दूरी बनाए रखो। तुम्हें यही करना चाहिए। अपने दिल में स्पष्ट रहो कि तुम यह काम सिर्फ अपने अगले वक्त के भोजन, अपनी आजीविका के लिए कर रहे हो। तुम्हारा उद्देश्य सरल है, भोजन और वस्त्र प्राप्त करना, न कि किसी विशेष परिणाम के लिए उनसे लड़ना। भले ही वे तुमसे कुछ बातें कहें या कठोरता से बोलें; भले ही तुम ऐसे देश में हो जहाँ धार्मिक विश्वासों के लिए उत्पीड़न किया जाता हो, जहाँ ईसाई धर्म का उत्पीड़न किया जाता हो, और कुछ लोग तुम्हारे विश्वास का मजाक उड़ाते हों, व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हों या उसके बारे में अफवाहें फैलाते हों, तुम सिर्फ सहन ही कर सकते हो। खुद को सुरक्षित रखो, परमेश्वर के समक्ष शांत रहो, उससे बार-बार प्रार्थना करो, उसकी उपस्थिति में नियमित रूप से आओ और इन ताकतों की बाहरी दुष्टता या उग्रता से त्रस्त मत हो। अपने दिल की गहराई से उन्हें पहचानने का अभ्यास करने के अलावा तुम्हें उनसे दूर भी रहना चाहिए। सोच-समझकर बोलो, सावधानी से कदम बढ़ाओ, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व कायम रखो और उनके साथ अपने व्यवहार में बुद्धि का उपयोग करो। क्या ये अभ्यास के वे सिद्धांत नहीं हैं, जिनका तुम्हें पालन करना चाहिए? (हाँ, हैं।) बेशक, चाहे तुम उनसे दूर रहना चाहो, उन्हें ठुकराना चाहो या अपने दिल में उनका तिरस्कार तक करना चाहो, तुम्हें यह समझदारी बरतनी चाहिए कि तुम बाहर से कैसे दिखते हो। तुम्हें उन्हें इसका एहसास नहीं होने देना चाहिए या इसे देखने नहीं देना चाहिए। अपने दिल में स्पष्ट रहो कि तुम सिर्फ आजीविका कमाने के लिए काम कर रहे हो, और उनके बीच रहना अंतिम उपाय है। पहले तो उनसे दूर रहने की कोशिश करो। जब वे सामूहिक रूप से किसी गैरकानूनी व्यवहार में भाग ले रहे हों, तो तुम्हें उनसे दूर रहना चाहिए और उनसे बचना चाहिए, और उनके अपराधों में कोई हिस्सा नहीं लेना चाहिए। साथ ही, अपनी सुरक्षा करो और खुद को साझे हमले या फँसाए जाने की अजीब स्थिति में मत पड़ने दो। क्या ऐसा करना आसान है? कुछ लोग जो युवा और अनुभवहीन हैं, उन्हें पहली बार इस जटिल सामाजिक परिवेश में पड़ने पर कठिनाई हो सकती है। या शायद कुछ व्यक्तियों में गुणों या अनुकूलनशीलता की कमी होती है और वे आपसी संबंधों को सँभालने में बहुत कुशल नहीं होते, जिससे इसमें कुछ कठिनाई होती है। लेकिन हर हाल में एक बात स्पष्ट है : तुम्हारे लिए हाथ में लिया हुआ काम पूरा करने के लिए अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं का उपयोग करना पर्याप्त है। किसी को ठेस मत पहुँचाओ; किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति बहुत ज्यादा कठोर मत बनो जिसके पास आस्था, नैतिक सीमाओं, जमीर और विवेक का अभाव है। किसी एक शब्द या घटना के कारण उन्हें उच्च सिद्धांतों का उपदेश न दो या परमेश्वर में आस्था, आचरण कैसे करें, या जमीर और मानव-प्रकृति जैसे मामलों के बारे में बात मत करो। यह आवश्यक नहीं है; अपनी अच्छी सलाह उन लोगों के लिए बचाकर रखो जो इसे समझते हैं। जो लोग जानवरों से भी गये-गुजरे हैं, उनके साथ इंसानी वाणी का प्रयोग तक न करो, सत्य से जुड़ी चीजों के बारे में बात करना तो दूर की बात है। यह एक मूर्खतापूर्ण तरीका है। अगर वे एक शक्तिशाली ताकत हैं, तो जिस तरह से तुम उनसे संपर्क करते हो, खुद को दूर रखते हुए और अपने दिल में उन्हें अस्वीकारते हुए, बाहरी तौर पर तुम्हें उनके प्रति एक दोस्ताना और सामंजस्यपूर्ण व्यवहार बनाए रखना चाहिए। भोजन और वस्त्र के साथ अपनी आजीविका कायम रखने का परिणाम प्राप्त करने का प्रयास करो—यही पर्याप्त है। ऐसे जटिल जीवन-परिवेश में जहाँ विभिन्न ताकतें आपस में जुड़ी हुई हैं, परमेश्वर नहीं चाहता कि तुम यह साबित करने के लिए किसी चीज में भाग लो कि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर का अनुसरण करता है, जो सत्य का अनुसरण करता है, या जो अच्छा और ईमानदार व्यक्ति है। इसके बजाय, वह चाहता है कि तुम कबूतरों की तरह भोले और साँपों की तरह बुद्धिमान बनो, हर पल परमेश्वर के सामने आओ, उसके सामने खुद को शांत करके प्रार्थना करो, अपनी रक्षा परमेश्वर को करने दो, और अपनी सुरक्षा का लक्ष्य पूरा करो। तुम्हें कौन-सा विशिष्ट परिणाम प्राप्त करना चाहिए? वह दुष्ट लोगों द्वारा ठगे जाने से बचना होना चाहिए, विभिन्न ताकतों द्वारा फँसने से बचना होना चाहिए, और उनका पंचिंग बैग, उनका बलि का बकरा या उनके मजाक का पात्र न बनना होना चाहिए। जब उन्हें पता चलेगा कि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, तो वे तुम पर हँसेंगे और कहेंगे, “देखो, वह एक धार्मिक विश्वासी है,” या “उस धार्मिक व्यक्ति को देखो, उसका परमेश्वर ऐसा या वैसा है; वह फिर से अपने परमेश्वर से प्रार्थना कर रहा है, और वह कहता है कि वह जो पैसा कमाता है, वह उसे परमेश्वर देता है।” इसलिए उनके साथ आस्था संबंधी चर्चा न करो। उन्हें हावी न होने दो। तुम्हें उनके साथ मेलजोल बढ़ाने, उनके साथ रिश्ता कायम रखने, उनसे यह कहलवाने कि तुम कितने अच्छे हो, तुम कितने अच्छे इंसान हो, या उनकी स्वीकृति हासिल करने में अपनी ऊर्जा लगाने की जरूरत नहीं है। तुम्हें इन चीजों की जरूरत नहीं है। दफ्तर का कामकाज सैद्धांतिक तरीके से निपटाओ; तुम एक साधारण कर्मचारी हो, उद्योग के बस एक दूसरे सदस्य। परमेश्वर तुमसे यह अपेक्षा नहीं करता कि तुम उसके वचन उन लोगों के बीच फैलाओ, उनके साथ उसके सत्य के बारे में संगति करो। वह तुमसे उनसे दूर रहने, अपनी रक्षा करने, उनके दलदल में या किसी प्रलोभन में न फँसने और खासकर विभिन्न विवादों, उनकी खुद पैदा की हुई अराजकता, उनके षड्यंत्रों और फंदों या जटिल परिस्थितियों में न उलझने के लिए कहता है। तुम्हें इस पेशे में हर समय अपने उद्देश्य से अवगत रहना चाहिए : इसका संबंध तरक्की करने, शीर्ष पर पहुँचने, साधन-संपन्न व्यक्ति बनने या समाज के सामने अपना मूल्य प्रदर्शित करने से नहीं है। न इसका संबंध अपने अगुआओं या वरिष्ठों को प्रभावित करने के लिए कुछ करने-धरने से है। तुम्हारा उद्देश्य अपनी रोजी-रोटी कमाना, अपनी आजीविका जुटाना, इस दुनिया और समाज में जीवित रहने में सक्षम होना, और फिर अपना कर्तव्य निभाने, सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के लिए समय निकालना और स्थितियाँ तैयार करना है। इसलिए, किसी भी कार्यस्थल में तुम्हें उन्नति, आगे की शिक्षा, विदेश में पढ़ाई, अपने वरिष्ठों की उच्च राय, या उच्च स्तर के अगुआओं का ध्यान आकर्षित करने के अवसर पाने के लिए प्रयास करने की जरूरत नहीं है। तुम्हें इनमें से किसी की कोई जरूरत नहीं है। अगर तुम जीवित रहने, अपनी आजीविका कायम रखने की कोशिश कर रहे हो, तो ये चीजें अपने जीवन से त्यागी जा सकती हैं। तुम्हें सिर्फ अपने पेशे के दायरे में खुद को सुरक्षित रखने की जरूरत है—यही काफी है। परमेश्वर तुमसे ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं कहता। तुम्हें जिस सिद्धांत का पालन करना चाहिए, वह यह है कि विभिन्न ताकतों से दूर रहो, कोल्हू में पिसने या अपेक्षाकृत उस सरल परिवेश में चौपट होने से बचो, जहाँ तुम अपनी आजीविका बनाए रख सकते हो। यह एक मूर्खतापूर्ण क्रियाविधि है। तुम सबसे सरल कार्य-विधियों के माध्यम से अपनी आजीविका बनाए रखने में स्पष्ट रूप से सक्षम हो, फिर भी तुम अक्सर विवादों में शामिल होने, अपने पेशे और आजीविका से असंबंधित मामलों में कदम रखने या भाग लेने के लिए तैयार रहते हो, जिसके परिणामस्वरूप तुम विभिन्न जटिल मानवीय मामलों, विभिन्न सामाजिक ताकतों की जटिल उलझनों और संघर्षों में फँस जाते हो। इसलिए तुम अपनी परिस्थितियों की व्यवस्था करने के लिए परमेश्वर को दोष नहीं दे सकते; इसके लिए सिर्फ तुम्हीं दोषी हो, तुम्हारा पतन तुम्हारी अपनी वजह से है। तुम अक्सर कहते हो कि तुम काम में बहुत व्यस्त रहते हो और थक जाते हो, और सभा में आकर अपना कर्तव्य निभाने के लिए तुम्हें समय नहीं मिलता। कारण चाहे जो भी हों, अगर तुम खुद को ऐसी परिस्थितियों में पाते हो, तो तुम जल्दी ही परमेश्वर के घर से बाहर निकाल दिए जाओगे। तुम्हारे उद्धार की आशा मिट जाएगी। यही वह मार्ग था जिसे तुमने खुद अपनाया, वही मार्ग जो तुमने चुना था, और यही वह परिणाम है जो तुम्हें अंततः प्राप्त होगा। अगर तुम अपने परिवेश में परमेश्वर द्वारा संगति किए गए सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करते हो, खुद को अच्छी तरह सुरक्षित रखते हो और शांत हृदय से परमेश्वर के सामने आ सकते हो, तो काम में संतुलन बनाए रखकर अपना कर्तव्य निभाते हुए भी तुम्हें उद्धार पाने का मौका मिलेगा। लेकिन इसके लिए पूर्व-शर्त यह है कि तुम्हें समाज की विभिन्न ताकतों से दूर रहना होगा, अपना दिल शांत रखना होगा और साथ ही, अपनी क्षमताओं और सीमित साधनों के दायरे में अपना कर्तव्य निभाने और सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलने में सक्षम होना होगा। इस तरह, चाहे तुम्हारा पारिवारिक माहौल कितना भी चुनौतीपूर्ण क्यों न हो, या तुम्हारे व्यक्तिगत साधन कितने भी सीमित क्यों न हों, परमेश्वर के संरक्षण, आशीषों और मार्गदर्शन के तहत तुम अंततः सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर कदम-दर-कदम आगे बढ़ोगे। तब तुम्हारे उद्धार की आशा और ज्यादा मजबूत हो जाएगी। शायद अपने व्यक्तिगत अनुसरणों, प्रयासों और कीमत चुकाने के कारण तुम अंततः उद्धार पा लोगे। लेकिन कुछ लोग बीच राह में हार मान सकते हैं। उन्हें लगता है कि यह जीवन बहुत नीरस है, कि वे दुनिया से अलग-थलग हो गए हैं, कि उनका जीवन एकाकी और अकेला है, और उन्हें लगता है कि अगर वे विभिन्न विवादों में न उलझें तो उनके पास करने के लिए कुछ नहीं है, और वे अपना मूल्य खोजने या अपना मूल्य और भविष्य देखने में असमर्थ हैं। इसलिए, वे परमेश्वर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों को त्याग देते हैं, अकेले या चुप रहने के बजाय समाज की विभिन्न ताकतों के साथ घुलने-मिलने का विकल्प चुनते हैं। वे हर छोटी-मोटी बात पर हुज्जत करते हैं, संघर्षों और उलझनों में कूद जाते हैं, और उनके साथ लड़ते-झगड़ते हैं। वे विभिन्न विवादों में पड़ जाते हैं और महसूस करते हैं कि उनका जीवन पूर्ण, मूल्यवान और खुशहाल हो गया है—वे अब अकेले नहीं हैं। वह क्या है, जो ऐसे लोगों ने चुना है? उन्होंने अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करने और सत्य का अनुसरण न करने का मार्ग चुना है। यह अंत है : जब मार्ग में यह बिंदु आ जाता है, तो उद्धार की कोई आशा नहीं रह जाती। क्या ऐसा ही नहीं है? बहुत-से लोगों को ये शब्द सुनकर अच्छा लगता है और उन्हें इन पर अमल करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण नहीं लगता। लेकिन कुछ समय तक इनका अभ्यास करने के बाद वे सोचते हैं, “क्या इस तरह जीना बहुत थकाऊ नहीं है? लोग अक्सर मुझे स्वच्छंद समझते हैं, मेरा कोई दोस्त नहीं, कोई साथी नहीं; यह बहुत एकाकी है, बहुत अलग-थलग है, और मेरा दैनिक जीवन नीरस लगता है। मुझे लगता है कि यह वास्तव में एक अच्छा या खुशहाल जीवन नहीं है।” फिर वे दोबारा अपने पिछले जीवन में लौट आते हैं, और ऐसे लोगों को बाहर निकाल दिया जाता है। उनकी उद्धार की आशा खत्म हो जाती है। वे अकेलापन नहीं सह सकते, न ही वे लोगों के इस समूह के बीच परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार जीने के कारण हँसी उड़ाए जाने और अलग-थलग किए जाने की कठिनाई सह सकते हैं। इसके बजाय, वे एक-दूसरे के खिलाफ लड़ने वाली विभिन्न ताकतों के बीच रहने का आनंद लेते हैं, और वे विभिन्न ताकतों में शामिल हो जाते हैं, उनमें फँस जाते हैं, उनसे झगड़ते हैं और उनके खिलाफ संघर्ष करते हैं। कहा जा सकता है कि ऐसे लोग परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से नहीं होते। इन उपदेशों को सुनने के बाद अगर उन्हें अच्छा महसूस होता भी हो, तो भी वे विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर होने के बजाय उनसे जुड़ने का विकल्प चुनते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये यकीनन वे लोग नहीं हैं, जिनके लिए उद्धार अभीष्ट है। लेकिन, अगर तुम समाज में विभिन्न ताकतों से दूरी बनाने का रास्ता चुनकर अपनी आजीविका बनाए रखने की स्थिति के तहत तुम एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाते हो, तो कम से कम, इस विकल्प के आधार पर तुम्हारे उद्धार की आशा है। तुम्हारे पास बुनियादी पूर्वापेक्षाएँ हैं; नतीजतन, उद्धार की यह आशा रहती है।

कलीसिया में एक ऐसा व्यक्ति हुआ करता था, जिसका किसी तरह एक ऐसे श्वेत व्यक्ति से परिचय हो गया जिसके पिता सांसद थे। हकीकत में सांसद होना कोई बड़ा पद नहीं है, लेकिन इस व्यक्ति को लगा कि एक विदेशी सांसद के बेटे के साथ बोलचाल का रिश्ता होना बहुत सम्मान की बात है। उसे लगा कि वह एक हैसियतदार इंसान है। बाद में उसने इस सांसद-पुत्र को आसपास घुमाया और जो भी मिला, उससे उसका परिचय कराते हुए कहा, “यह सांसद का बेटा है।” मैंने पूछा, “सांसद का बेटा? इसके पिता किस स्तर के सांसद हैं? वे तुम्हारे लिए क्या कर सकते हैं?” उसने उत्तर दिया, “इसके पिता सांसद हैं!” मैंने कहा, “क्या इसके पिता के सांसद होने का तुमसे कोई लेना-देना है? तुम तो सांसद हो नहीं, तो दिखावा करने से क्या फायदा?” वह व्यक्ति खुद से बहुत खुश था। सिर्फ इसलिए कि उसने सांसद के बेटे के साथ संबंध स्थापित कर लिया था, वह जहाँ भी जाता था, अहंकारपूर्ण व्यवहार करता था और रास्ते में मिलने वाले परिचित चेहरों को देखकर भी अनदेखा कर देता था। लोग पूछते, “तुम हमें नमस्कार क्यों नहीं करते?” तो वह जवाब देता, “मैं सांसद के बेटे के साथ टहल रहा हूँ!” क्या तुम विश्वास कर सकते हो कि वह कितना अहंकारी था? यह अविश्वासी था या नहीं? (था।) परमेश्वर के घर में ऐसे लोगों का अंतिम परिणाम क्या होता है? (उन्हें बाहर निकाल दिया जाएगा।) इस व्यक्ति को कलीसिया से बाहर निकाला जाना चाहिए, क्योंकि वह एक गैर-विश्वासी और अवसरवादी है। जिस किसी के पास भी पद और ताकत प्रतीत होते हैं, वह उसी व्यक्ति से जुड़ जाता है, और अगर वह देखता है कि परमेश्वर के घर में ताकत है, तो वह उससे जुड़ जाता है। नतीजतन, कुछ समय तक परमेश्वर के घर में रहने के बाद, उसे एहसास होता है कि यहाँ पैसा कमाने का कोई उपाय नहीं है, इसलिए वह खाना पहुँचाने वाला काम ढूँढ़ता है। लेकिन यह काम उसे पर्याप्त सम्मानजनक नहीं लगता और बाद में वह यह सोचकर सांसद के बेटे की चापलूसी करता है कि अब उसकी हैसियत है और उसे खाना पहुँचाने की जरूरत नहीं है। मुझे बताओ, क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? क्या कलीसिया में लोगों का एक हिस्सा ऐसा ही नहीं है? (हाँ, है।) कुछ लोग सिर्फ इसलिए घमंड में रहते हैं कि वे किसी पद या ताकत वाले व्यक्ति को जानते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी अपनी अहमियत है और वे बाकियों से अलग हैं। कुछ लोगों के पास कोई छोटा आधिकारिक पद और उससे जुड़ी थोड़ी ताकत होती है, फिर भी वे मानते हैं कि वे कलीसिया में दूसरों से अलग हैं और उन्हीं की चलनी चाहिए। क्या ये लोग गैर-विश्वासी नहीं हैं? (बिल्कुल, हैं।) फिर ऐसे लोग भी हैं, जिनका वास्तविक प्रभाव नहीं होता है, लेकिन वे हर समय डींग हाँकते हुए कहते हैं, “मैं राष्ट्रपति को जानता हूँ!” या, “मैं राष्ट्रपति के सचिव के चचेरे भाई के मित्र को जानता हूँ!” देखो, वे ऐसे जटिल संबंध बनाते हैं और फिर भी ऐसी बातें कहने का दुस्साहस रखते हैं। उनकी चमड़ी इतनी मोटी क्यों है? उनकी कहानी इतनी जटिल होती है कि कोई नहीं जानता कि वे वास्तव में किसके बारे में बात कर रहे हैं, और दूसरों को सुनने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती, क्योंकि वे इन चीजों की परवाह नहीं करते। सिर्फ ये व्यक्ति ही ऐसे मामलों को सबसे महत्वपूर्ण, सबसे अर्थपूर्ण और सबसे प्रभावशाली मानते हैं। कुछ लोग अक्सर कहते हैं कि वे मंत्रियों, निदेशकों या उच्च अधिकारियों से परिचित हैं। कुछ लोग तो यहाँ तक दावा कर देते हैं, “मैं कानून का पालन करने वाले समाज और अंडरवर्ल्ड दोनों पक्षों के लोगों को जानता हूँ; मैं दोनों रास्तों पर इतनी आसानी से चलता हूँ मानो समतल जमीन पर चल रहा हूँ।” दूसरे लोग कह सकते हैं, “मैं प्रांत-प्रमुख की भाभी को जानता हूँ।” और ऐसे लोग भी हैं जो दावा करते हैं, “मैं महापौर की माँ की कलीसियाई सहेली को जानता हूँ।” वे इन्हें डींग हाँकने के अवसर की तरह इस्तेमाल करते हैं। इन लोगों को जानने का क्या फायदा? क्या ये तुम्हें कुछ हासिल करने में मदद कर सकते हैं? अगर तुम महापौर, निदेशक, प्रांतीय गवर्नर, या गवर्नर के माता-पिता भी हो, तो भी क्या कलीसिया में तुम्हारी हैसियत का कोई उपयोग है? (नहीं है।) क्या महापौर, गवर्नर इत्यादि मानवजाति का हिस्सा नहीं हैं? क्या वे परमेश्वर से भी महान बन सकते हैं? ये अविश्वासी ऐसी ताकतों को महत्व देते हैं, क्या यह तथ्य घृणित नहीं है? (यह घृणित है।) कुछ लोग पुलिस-प्रमुख तक को जानने का दावा करते हैं, और अन्य कहते हैं, “मैं एक सामुदायिक पुलिस अधिकारी और स्थानीय थाने में थानेदार हुआ करता था,” जबकि दूसरे कहते हैं, “मैं एक मोहल्ला कार्यालय निदेशक हुआ करता था और लाल बाजूबंद पहनता था।” जब तुम लोग उन्हें इन तथाकथित ताकतों के बारे में बात करते सुनते हो, तो तुम्हें कैसा लगता है? कुछ गैर-विश्वासी, जो सत्य का अनुसरण नहीं करते और सिर्फ नाम के विश्वासी हैं, इतने मूर्ख हैं कि वे नहीं जानते कि वे लोग जो कह रहे हैं, वह सच है या नहीं, इसलिए वे इसे तथ्यात्मक मानकर उनका खूब सम्मान करते हैं। लेकिन जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं, वे ये बातें सुनकर अपने दिल में क्या सोचते हैं? उनके बारे में वे क्या मूल्यांकन करते हैं? पहली ही नजर में वे बता सकते हैं कि वे गैर-विश्वासी हैं, कि वे जिनके बारे में बात करते हैं, वे विभिन्न सांसारिक ताकतें और मामले हैं और वे परमेश्वर के घर में इन चीजों का दिखावा करने के लिए आए हैं। इस तथ्य के बारे में बात तक न करो कि वे किसी अधिकारी या सेलिब्रिटी के दूर के रिश्तेदारों को जानते हैं; अगर वे खुद भी अधिकारी या सेलिब्रिटी हों, तो भी परमेश्वर के घर में उनका कोई मूल्य नहीं है, इन पद-पदवियों का कोई मूल्य नहीं है, तो वे किस बात का दिखावा कर रहे हैं? क्या उनके पास सत्य है? क्या वे सिद्धांतों के अनुरूप अपना कर्तव्य निभा रहे हैं? वे कुछ नहीं हैं, फिर भी उनमें दिखावा करने की धृष्टता है! क्या यह शर्मनाक नहीं है? क्या यह घृणास्पद नहीं है? (है।) यह कितना घृणास्पद है? कानून के दोनों पक्षों में संपर्क होना ऐसी चीज है, जिसके बारे में वे डींग तक हाँक सकते हैं—क्या इसके बारे में डींग हाँकने वाले मूढ़ हैं? क्या वे मूर्ख नहीं हैं? (हाँ, हैं।) वे खुद को मुसीबत में डालने से भी नहीं डरते। कानून के दोनों पक्षों से जुड़ना : क्या ऐसा व्यक्ति ठग नहीं है? परमेश्वर के घर में ठगों और चालाक लोगों को महत्व नहीं दिया जाता; वे गैर-विश्वासियों से संबंधित हैं और उन्हें निष्कासित कर देना चाहिए! फिर भी वे इसे डींग हाँकने के अवसर की तरह इस्तेमाल करते हैं। क्या यह मूढ़ता नहीं है? क्या यह कोई गर्व करने लायक चीज है? वे इस पर घमंड तक करते हैं! कुछ लोग अपनी कलाइयों पर सोने की बड़ी चेन पहनते हैं और नशे की हालत में उसे दिखाकर लोगों से कहते हैं, “मेरे पूर्वज कब्र-चोर थे, और उनका यह कौशल मेरे खानदान में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है। मेरी कलाई की यह चेन देखो, यह मुझे फलाँ तारीख को देर रात एक भव्य मकबरे में मिली थी और मैं इसे ले आया। कैसी रही? प्रभावशाली, हुँह?” कुछ लोग यह सुनकर उनकी शिकायत कर देते हैं, और वे बिना यह जाने ही कि उन्होंने कौन-सा कानून तोड़ा है, गिरफ्तार कर लिए जाते हैं। लोग उनसे पूछते हैं, “क्या तुम्हारी कलाई पर बँधी यह सोने की चेन इसी युग की है? यह तो एक कलाकृति है!” वे मूर्खतापूर्वक खुद को दोषी ठहराते हैं। उन चीजों के बारे में आँख मूँदकर शेखी न बघारो, जो कभी घटित ही नहीं हुईं; खबरदार, कहीं पुलिस को आकर्षित न कर बैठो और परेशानी में न पड़ जाओ। चीजों के बारे में शेखी बघारकर मुसीबत में पड़ना आसान है; आग से खेलोगे तो जल जाओगे, और खुद को नष्ट कर बैठोगे—यह तुम्हारा अपना किया-धरा है। तुम यह तक नहीं जानते कि क्या कहना है, तुम इसका सिर-पैर कुछ नहीं समझ सकते—क्या यह मूढ़ता नहीं है? (हाँ, है।) अगर तुम एक बार में बीस पावरोटी खा लेने का दावा करते हो, तो यह ठीक है; यह सिद्धांत तोड़ने की बात नहीं है। ज्यादा से ज्यादा, लोग तुम्हें मूर्ख समझेंगे और गंभीरता से नहीं लेंगे, लेकिन यह कानून के खिलाफ नहीं है। विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने का सिद्धांत अनिवार्य रूप से समाज के हर कोने में और जिस भी समूह में तुम खुद को पाते हो उसमें, बुद्धि रखना जरूरी होने से संबंध रखता है। यह वैसा ही है, जैसा परमेश्वर ने अनुग्रह के युग के दौरान कहा था, “साँपों के समान बुद्धिमान और कबूतरों के समान भोले बनो” (मत्ती 10:16)। खुद को अच्छी तरह से सुरक्षित रखो; अगर तुम अपनी आजीविका बनाए रख सकते हो, तो उतना काफी है। समाज में खुद को स्थापित करने, उसका हिस्सा बनने, उसकी मान्यता और स्वीकार्यता हासिल करने के लिए सामाजिक ताकतों का लाभ उठाने का प्रयास न करो या उसका भ्रम न पालो। ये बेवकूफी भरे खयाल और पतनशील विचार हैं। मनुष्यों के परिप्रेक्ष्य सही किए जाने चाहिए। चाहे वे खुद को किसी भी सामाजिक परिवेश या समुदाय में पाएँ, अगर वे परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करते हैं तो इससे समाज या मानवजाति उन्हें अस्वीकार कर देगी। लेकिन जब तक परमेश्वर तुम्हें साँस देता रहता है, तुम जीवित रहने के मार्ग से वंचित नहीं रहोगे। तुममें ऐसा आत्मविश्वास होना चाहिए। लोगों का जीवन अपनी सुरक्षा, आजीविका, भविष्य या उनकी हर चीज सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न ताकतों पर निर्भर नहीं है। वह परमेश्वर के एक वचन, उसके आदेश, मार्गदर्शन और सुरक्षा पर निर्भर करता है—यह आत्मविश्वास तुम्हारे लिए बहुत जरूरी है। इसलिए, समाज में जीवित रहने के लिए, तुम्हारे जीवित रहने का मूल साधन अपनी आजीविका बनाए रखने के लिए पेशा चुनना होना चाहिए, न कि किसी तरह की ताकत पर निर्भर होना। अपना भरण-पोषण करने के लिए किसी पेशे पर निर्भर होना : यह सिद्धांत यह है कि लोग, परमेश्वर के मार्गदर्शन और आदेश के तहत, परमेश्वर द्वारा उन्हें दी गई हर चीज का आनंद लेते हैं, जिसमें भौतिक संपत्ति और धन भी शामिल है—अपनी व्यक्तिगत आजीविका पूरी करने के लिए विभिन्न सामाजिक ताकतों से भिक्षा या वितरण पर निर्भर नहीं होते। जीवित रहते हुए हर दिन जिन भौतिक चीजों और धन पर तुम निर्भर रहते हो, बहुत हद तक उस साँस की तरह जो तुम लेते हो, वह सब परमेश्वर से आता है, उसने दिया है, और तुम्हें जो परमेश्वर ने दिया है, उसे कोई छीन नहीं सकता। भौतिक चीजें, तुम्हारे शरीर से बाहर की कोई भी चीज, जैसे तुम्हारी साँस, तुम्हें कोई और भीख में नहीं देता, और निश्चित रूप से, कोई उन्हें छीन नहीं सकता। अगर उन्हें तुम्हें परमेश्वर ने दिया है, तो कोई उन्हें छीन नहीं सकता। यह तथ्य हम अय्यूब के अनुभवों में देख सकते हैं, और तुम्हें यह आत्मविश्वास होना चाहिए। इस सच्चे आत्मविश्वास के साथ तुममें विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने का सिद्धांत कायम रखने का मूलभूत आधार और प्रेरणा होगी। फिर, इस आधार पर, तुम्हारा शरीर और मन परमेश्वर के सामने शांत हो सकते हैं, तुम उसके सामने आ सकते हो और अपना तन, मन और आत्मा अर्पित कर सकते हो, अपना कर्तव्य निभा सकते हो, सत्य का अनुसरण कर सकते हो और उद्धार का सुंदर परिणाम प्राप्त कर सकते हो। तुम्हें यह ज्ञान होना चाहिए और ये सत्य समझने चाहिए। इसलिए, भले ही यह वाक्यांश “विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहो” आसान लगे, मामलों का सामना करते समय तुम्हें अपने निर्णय विभिन्न सिद्धांतों और वास्तविक स्थितियों के आधार पर तौलने चाहिए। संक्षेप में, अंतिम लक्ष्य सिर्फ उनसे दूर रहना और अलग होना नहीं है, बल्कि परमेश्वर के सामने शांत रहने, उसे अपना तन-मन अर्पित करने, और परमेश्वर के सामने आने, सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलने और अंततः उद्धार की आशा और अपनी इच्छाएँ पूरी करने के लिए विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने के अभ्यास के तरीके और मार्ग का उपयोग करना है। नतीजतन, इस अंतिम उद्धार को प्राप्त करने के लिए तुम्हें विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। यह एक आवश्यक मार्ग है, उद्धार प्राप्त करने के महत्वपूर्ण मार्गों में से एक है। क्या ऐसा नहीं है? (ऐसा ही है।) विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने के सिद्धांत के बारे में स्पष्ट रूप से संगति कर ली गई है। क्या इस सिद्धांत के बारे में कुछ ऐसा है, जो तुम लोगों के लिए अस्पष्ट रह गया हो? जब कुछ विशेष परिस्थितियों की बात आती है, तो क्या तुम जानते हो कि उनसे कैसे निपटना है? अगर किसी खास ताकत से जुड़ना महज एक औपचारिकता है या किसी खास पेशे की जरूरत है, तो क्या यह विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने के सिद्धांत के खिलाफ है? अगर यह तुम्हारे पेशे में सिर्फ एक जरूरत या औपचारिकता है, तो यह स्वीकार्य है। हम जिन ताकतों की बात करते हैं, उनका इससे, सतही संगठनों या समूहों से कोई संबंध नहीं है; यहाँ हम ताकतों की चर्चा कर रहे हैं। “ताकतों” से क्या तात्पर्य है? इसका तात्पर्य अधिकारियों, समूहों की ताकत, और उस ताकत से है जिससे ये चीजें संचालित होती हैं या समाज में उन्मत्त व्यवहार करती हैं, क्या ऐसा नहीं है? (हाँ, है।) अगर तुमने अभ्यास के इस सिद्धांत को समझ लिया हो, तो आओ, अगले सिद्धांत के बारे में संगति करें।

चौथा सिद्धांत है राजनीति से दूर रहना। राजनीति एक संवेदनशील विषय है। तीस साल पहले कलीसिया के भीतर भी कुछ अमुक-अमुक नेताओं, नीतियों या वर्तमान राजनीतिक मामलों पर चर्चा करने पर कई लोगों की आलोचना झेलनी पड़ती थी। कई लोग राजनीति की चर्चा आते ही उठकर चले जाने का बहाना ढूँढ़ लेते थे और ऐसे विषयों पर चर्चा करने का साहस न करते हुए कहते थे, “राजनीति की चर्चा करने का मतलब है कि तुम पार्टी और राष्ट्र के खिलाफ हो; तुम एक क्रांतिविरोधी हो और तुम्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। अगर साथी भाई-बहनों का खयाल न होता, तो मैं तुम्हारी शिकायत कर देता।” उस समय लोग राजनीति को लेकर विशेष रूप से संवेदनशील होते थे। क्या अब भी ऐसा ही है? अगर कलीसिया के भीतर राजनीति पर चर्चा की जाती है या उसे उजागर किया जाता है, अगर बड़े लाल अजगर और शैतान को प्रकट किया जाता है, या राजनीतिक लगने वाले विषय उठाए जाते हैं, तो क्या ज्यादातर लोगों का अभी भी यही रवैया रहता है? क्या कुछ बदलाव नहीं आया? (हाँ, आया है।) पिछली सभाओं में जब हम ऐसी चीजों के बारे में बात करते थे कि कौन-सा राक्षस परमेश्वर का विरोध या ईसाइयों पर अत्याचार कर रहा था, तो कुछ लोग खाँसने लगते थे, मानो उनके गले में कुछ फँस गया हो, और वे अपना गला साफ करने के लिए बाहर चले जाते थे। थोड़ी देर बाद, वे थोड़ा सुनकर मन ही मन सोचते, “ओह, क्रांतिविरोधी बातचीत बंद हो गई,” और वापस आ जाते। लेकिन वापस आकर जब वे देखते कि तुम अभी भी उसी पर चर्चा कर रहे हो, तो वे फिर से खाँसकर चले जाते। मुझे आश्चर्य होता, वे खाँसते क्यों रहते हैं? हम शैतान को पहचानने के तरीके की चर्चा कर उसके सार और वीभत्स चेहरे को उजागर कर रहे थे। क्या यह कोई राजनीतिक चर्चा है? (नहीं।) कुछ मूर्ख, तथाकथित आध्यात्मिक लोगों ने, जिनमें आध्यात्मिक समझ की कमी है, इन विषयों का कड़ा विरोध किया। वे सत्य और वास्तविक राजनीतिक भागीदारी के बीच अंतर नहीं कर सके या यह नहीं समझ सके कि कम्युनिस्ट पार्टी का “क्रांतिविरोधियों” से क्या मतलब है। वे अज्ञानी थे, कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा उनका दिमाग खराब कर दिया गया था, और वे डरते थे कि उन्हें भी क्रांतिविरोधी माना जा सकता है। उन्होंने बड़े लाल अजगर को उजागर करने के विषय पर चर्चा करने या उसका उल्लेख करने का साहस नहीं किया। क्या बड़े लाल अजगर को उजागर करना राजनीति में भाग लेना है? क्या बड़े लाल अजगर को त्यागना क्रांतिविरोधी है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) अभी तुम लोग यह कहने का साहस कर रहे हो कि ऐसा नहीं है, लेकिन क्या तुम लोग मुख्य भूमि चीन में भी यही बात कहने का साहस करोगे? क्या परमेश्वर का अनुसरण करने वाले लोग राजनीतिक अपराधी हैं, जो पार्टी और राज्य के विरुद्ध कार्य करते हैं? (नहीं।) तुम क्यों कहते हो “नहीं”? राजनीतिक अपराधी कौन होता है? क्या तुमने राजनीति में भाग लिया है? (हमने नहीं लिया।) अगर तुमने राजनीति में भाग नहीं लिया है, तो तुम राजनीतिक अपराधी कैसे बन गए? (यह ठप्पा बड़ा लाल अजगर लगाता है।) अगर तुम चोरी में हिस्सा लेते हो, तो तुम चोर हो। अगर तुम हत्या में हिस्सा लेते हो, तो तुम हत्यारे हो। अगर तुम डकैती में हिस्सा लेते हो, तो तुम डाकू हो। ये आरोप किस आधार पर लगाए जाते हैं? ये आरोप तब लगाए जाते हैं, जब तुम इन आपराधिक गतिविधियों में शामिल होते हो और तुम उस आपराधिक व्यवहार के दोषी बन जाते हो। लेकिन अगर तुमने उसमें हिस्सा नहीं लिया है, तो उस अपराध और आरोप का तुमसे कोई लेना-देना नहीं। अगर तुम शैतान या पार्टी का अनुसरण नहीं करते, अगर तुम कम्युनिस्ट पार्टी का विरोध करते हो, बड़े लाल अजगर का विरोध करते हो, और बड़े लाल अजगर से नफरत करते हो, और अगर तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, तो क्या तुम राजनीति में भाग ले रहे हो? (नहीं।) तो अगर वे तुम्हें क्रांतिविरोधी या राजनीतिक अपराधी होने का दोषी ठहराते हैं, तो क्या यह आरोप मान्य होगा? (नहीं, यह मान्य नहीं होगा।) यह मान्य नहीं होगा; यह बेतुका है। यह उस किसान की तरह है, जिसके पास कोई पेशा नहीं है, जो बस थोड़ी-सी जमीन पर खेती करता है, फसलें काटता है और उन्हें बेचने के लिए बाजार जाता है। तभी लाल आस्तीन-बैज वाला कोई व्यक्ति उसे देखकर कहता है, “अरे, क्या तुम्हारे पास वर्क-परमिट है? क्या तुम्हारे पास स्वास्थ्य-प्रमाणपत्र है?” किसान कहता है, “मुझे वर्क-परमिट कहाँ से मिलेगा? मेरा कोई पेशा नहीं है, मैं नौकरीपेशा नहीं हूँ, मुझे वर्क-परमिट की जरूरत क्यों होगी?” किसान के पास कोई पद या पेशा नहीं है, फिर भी उससे कुछ बेचने के लिए उसका वर्क-परमिट माँगा जाता है—क्या यह बेतुका नहीं है? जब तुम परमेश्वर में विश्वास कर उसका अनुसरण करते हो, तो बड़ा लाल अजगर तुम पर राजनीति में भाग लेने का आरोप लगाता है। तुमने राष्ट्रीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद तैयार करने में मदद की? तुमने किस राजनीतिक आंदोलन की योजना बनाने में मदद की? तुम किस स्तर के सरकारी अधिकारी हो? क्या तुमने सरकार के किसी भी स्तर पर आंतरिक असंतोष में भाग लिया था? तुमने किन राष्ट्रीय कांग्रेस-बैठकों या राज्य-सम्मेलनों में भाग लिया? (किसी में नहीं।) तुम्हारी पहुँच सूचनाओं तक नहीं है, राजनीति में भाग लेना तो दूर की बात है, फिर भी अंत में तुम्हें एक राजनीतिक अपराधी के रूप में दोषी ठहरा दिया गया है—क्या यह मनगढ़ंत आरोप नहीं है? मुझे बताओ, क्या यह देश बेतुका नहीं है? (बिल्कुल, है।) कुछ लोग अभी भी मूर्ख हैं। वे सोचते हैं, “अरे नहीं, एक राजनीतिक अपराधी या क्रांतिविरोधी के रूप में दोषी ठहराया जाना परमेश्वर के विश्वासियों के लिए बहुत बड़ा अपमान है!” क्या यह मूर्खतापूर्ण बात नहीं है? कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें परमेश्वर में विश्वास करने पर प्रति-क्रांतिकारी या राजनीतिक अपराधी के रूप में दोषी ठहराया गया और 15-20 साल की जेल की सजा सुनाई गई, अपनी रिहाई पर उन्हें लगता है कि यह एक अपमानजनक मामला है। उन्हें लगता है कि वे सहपाठियों, दोस्तों और परिवार सहित किसी को भी अपना मुँह नहीं दिखा सकते। खासकर जब लोग उँगलियाँ उठा रहे होते हैं और उनकी पीठ-पीछे कानाफूसी कर रहे होते हैं, तो उन्हें लगता है कि उन्होंने कुछ शर्मनाक किया है। क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? (बिल्कुल है।) यह युग तुम्हें अस्वीकार करता है, और बड़ा लाल अजगर तुम्हें सताता है—क्या वे धार्मिक हैं? अगर सारी मानवता तुम पर अत्याचार करने के लिए उठ खड़ी होती है, तो क्या इसका मतलब यह है कि सत्य अब सत्य नहीं रहा? सत्य हमेशा सत्य ही रहता है, चाहे जितने भी लोग उसके विरोध में खड़े हो जाएँ। सत्य का सार अपरिवर्तित रहता है, जैसे कि शैतान का दुष्ट सार अपरिवर्तित रहता है। सत्य को चाहे कोई न पहचाने या स्वीकारे, फिर भी वह सत्य है, और यह तथ्य कभी नहीं बदलेगा। अगर पूरी मानवजाति परमेश्वर के खिलाफ उठ खड़ी हो और उसके वचन स्वीकारने से मना कर दे, तो यह दर्शाएगा कि मानवजाति अभी भी दुष्ट है। शैतान की बुराई की ताकत सिर्फ इसलिए धार्मिकता नहीं बन सकती, क्योंकि उसके पीछे कई लोग या बड़ी ताकतें हैं। दस हजार बार दोहराया गया झूठ सच हो जाता है; यह शैतान की भ्रांति है, शैतान का तर्क है, सत्य नहीं। अगर विश्वासियों को पूरी दुनिया नकार दे और बड़ा लाल अजगर सताए और बदनाम करे तो क्या उन्हें शर्मिंदा होना चाहिए? (नहीं।) उन्हें शर्मिंदा नहीं होना चाहिए। जब तुम धार्मिकता की खातिर उत्पीड़न सहते हो, तो यह साबित होता है कि यह दुनिया वास्तव में दुष्ट है, और यह परमेश्वर के इन वचनों की पुष्टि करता है : सारा संसार उस दुष्ट के वश में है। जब तुम्हें धार्मिकता की खातिर सताया जाता है, तो चाहे तुम्हारा मार्ग कितना भी उचित हो और तुम्हारे कार्य कितने भी अच्छे क्यों न हों, कोई भी खड़ा होकर तुम्हारी सराहना नहीं करेगा। इसके बजाय, इस दुनिया में लोग जो भी गंदे काम करते हैं, अगर वे उन्हें आकर्षक ढंग से प्रस्तुत कर प्रचारित करते हैं, तो जनता के सामने पेश किए जाने पर वे सकारात्मक चीजें बन जाती हैं। वे लोग दुष्ट हैं; उनके सारे कृत्य गंदी चालें हैं।

आओ, राजनीति से दूर रहने के इस मामले पर संगति जारी रखें। राजनीति क्या है? इससे पहले कि तुम यह समझ सको कि राजनीति से कैसे दूर रहा जाए, तुम्हें यह जानना होगा कि राजनीति क्या है। क्या है राजनीति? इसमें सबसे बुनियादी स्तर पर पद सँभालने और एक अधिकारी के रूप में करियर बनाने की इच्छा शामिल होती है। यह राजनीति का एक क्षेत्र है। राजनीति का अर्थ है पद सँभालना और एक अधिकारी के रूप में करियर बनाना। उच्च श्रेणी के अधिकारियों से लेकर निम्न श्रेणी के अधिकारियों तक, सरकारी कार्यालयों में छोटे विभाग-प्रमुखों और अनुभाग-प्रमुखों से लेकर पार्टी शाखा-सचिवों और पार्टी समिति-सचिवों, निदेशकों, ब्यूरो-प्रमुखों, मंत्रियों और विभिन्न स्तरों के प्रमुखों तक—ये सभी राजनीति की श्रेणी में आते हैं। राजनीति से क्या तात्पर्य है? इसे बताने का सबसे सीधा तरीका यह है कि यह ताकत और अधिकार है, यह समाज में एक तरह के अधिकार का प्रतीक है। यह राजनीति का एक पहलू है। राजनीति के अंतर्गत और क्या आता है? (परमेश्वर, क्या राजनीति राज्य की राजनीतिक ताकत हथियाने, स्थापित करने या मजबूत करने के संघर्ष से भी संबंधित नहीं है?) कार्मिक संघर्ष और सत्ता-संघर्ष सभी राजनीति से संबंधित हैं। इसमें और क्या आता है? इन संघर्षों में इस्तेमाल की जाने वाली योजनाएँ, रणनीतियाँ और तरीके, साथ ही राजनीति और सत्ता से संबंधित विभिन्न चुनाव, अभियान और प्रचार के प्रयास—ये सभी राजनीति के अंतर्गत आते हैं। यह राजनीति की सबसे सीधी समझ है, जो हम प्राप्त कर सकते हैं। संगठन और पार्टी के करीब आना, और प्रगति के लिए प्रयास करना—क्या साधारण लोगों के लिए यही राजनीति नहीं है? वे इसे “छोटा व्यक्ति जो बड़ी तसवीर देख सकता है” कहते हैं। देखो, हालाँकि उनका पद निम्न है, लेकिन परिदृश्य व्यापक है। इसलिए वे तरक्की के लिए प्रयास करते हुए संगठन और पार्टी के करीब जाते हैं। वे कम्युनिस्ट यूथ लीग में शामिल होकर शुरुआत करते हैं, फिर कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो जाते हैं। धीरे-धीरे, वे पार्टी के करीब आते हैं, पार्टी के निर्देश सुनते हैं, उसकी मार्गदर्शक नीतियों और दिशा का अनुसरण करते हैं। वे पार्टी द्वारा सूचित दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करते हैं, उन्हें लागू करते हैं और पार्टी-सदस्य के गुणों को पूरी तरह से आत्मसात कर लेते हैं। वे पार्टी के लिए बोलते और कार्य करते हैं, पार्टी के हितों, उसके शासन, उसकी हैसियत और लोगों के मन में उसकी छवि की रक्षा करते हैं। वे पार्टी के लिए हर चीज की रक्षा करते हैं। क्या यह सब राजनीति का हिस्सा नहीं है? (हाँ, है।) तुम संगठन की रक्षा करते हो, वह संगठन पार्टी है। चाहे वह कोई भी राजनीतिक पार्टी या उस पार्टी द्वारा गठित कोई भी संगठन हो, जैसे ही तुम उसमें भाग लेना शुरू करते हो, वैसे ही तुम राजनीति में भाग ले रहे होते हो। क्या तुम लोगों में से किसी ने भाग लिया है? (नहीं।) तब तुम निश्चिंत हो सकते हो; तुम राजनीतिक अपराधी नहीं हो, न ही तुम में खुद को राजनीतिक अपराधी कहने की योग्यता है। राजनीतिक अपराधी कहलाने के लिए कम से कम विदेश जाकर एक मानवाधिकार संगठन या समूह स्थापित करना होगा, विभिन्न मानवाधिकार गतिविधियों में शामिल होना होगा, वर्तमान सरकार की नीतियों और शासन का और साथ ही सरकार के विभिन्न कार्यों का विरोध करना होगा। इसके अतिरिक्त, उन्हें विनियमों, प्रणालियों, नियमों और एक संविधान के साथ-साथ विभिन्न खंडों की स्थापना करने की भी जरूरत होगी, जिनका संगठन के सदस्यों को पालन करना होगा। वह संगठित और अनुशासित होना चाहिए, जिसमें अगुआ और कामकाजी सदस्य ऊपर से नीचे तक एक पूर्ण और व्यवस्थित संगठनात्मक संरचना गठित करें। तभी उसे एक राजनीतिक समूह कहा जा सकता है और उस राजनीतिक समूह के भीतर संचालित गतिविधियों को ही राजनीति में भाग लेना माना जा सकता है। क्या तुम लोगों में से किसी ने इसमें भाग लिया है? अगर नहीं, तो क्या तुम्हारा इसमें भाग लेने का कोई इरादा है, या क्या तुम्हारी किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल होने और कम से कम विधायक या सलाहकार जैसा पद सँभालने की योजना है? क्या कोई है जो इस विवरण पर खरा उतरता हो? अगर तुम्हारी ऐसी योजनाएँ हैं, तो इसका मतलब है कि तुम पहले ही राजनीति में शामिल हो; भले ही तुमने अभी तक भाग न लिया हो, तुम्हारा ऐसा करने का इरादा पहले से है। लेकिन अगर तुम्हारा ऐसा कोई इरादा नहीं है, तो यह काफी अच्छी बात है। क्या एक नागरिक के रूप में चुनाव-मतदान में भाग लेना राजनीति में शामिल होना माना जाता है? अगर किसी देश की व्यवस्था स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर आधारित है, और नागरिकों को वोट देने का अधिकार है, तो क्या अमुक उम्मीदवार को वोट देना राजनीति में शामिल होना माना जाता है? (नहीं माना जाता।) नहीं माना जाता, यह उस देश की नीति और व्यवस्था है, जहाँ लोगों को वोट देने का अधिकार है। इसे राजनीति में भाग लेना नहीं माना जाता। तुम किसी निश्चित व्यक्ति का चयन करके सिर्फ अपनी व्यक्तिगत पसंद व्यक्त करते हो, उसके राजनीतिक सत्ता-संघर्ष में शामिल नहीं होते। किसी राजनीतिक गतिविधि का तुमसे कोई संबंध नहीं होता। तुम बस उस देश के नागरिक के रूप में अमुक व्यक्ति को वोट देते हो। यह कार्य तुम्हारे नागरिक-अधिकारों का सीधा प्रयोग है और यह राजनीतिक गतिविधि या व्यवहार का कोई रूप नहीं है।

राजनीति क्या है, इसके संदर्भ में, इस विषय पर कमोबेश संगति कर ली गई है, इसलिए यह बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि राजनीति से दूर कैसे रहा जाए। तुम राजनीति से दूर कैसे रहते हो? पहले, आओ इस बारे में बात करें कि राजनीति से दूर कैसे रहा जाए, और फिर हम चर्चा करेंगे कि तुम्हें ऐसा क्यों करना चाहिए। हमने अभी चर्चा की है कि राजनीति क्या है। क्या है राजनीति? सबसे बढ़कर, यह सत्ता-संघर्ष में भाग लेना है—यह राजनीति में भाग लेने के बराबर है। हम सभी साधारण लोग हैं, इसलिए चलो, राष्ट्रपतियों, पार्टी-अध्यक्षों या उच्चस्तरीय राष्ट्रीय राजनीतिक समूहों में पदों पर बैठे लोगों के बारे में बात नहीं करते। इसके बजाय, किसी ऐसी चीज के बारे में बात करते हैं जिससे साधारण लोग जुड़ सकें, जैसे किसी सरकारी एजेंसी में पार्टी शाखा सचिव। क्या पार्टी शाखा सचिव एक राजनीतिक व्यक्ति होता है? किसी सरकारी एजेंसी के भीतर पार्टी का पद सँभालने से व्यक्ति एक प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति बन जाता है। तो, तुम राजनीति से दूर कैसे रहते हो? दूर रहने का क्या मतलब है? (इन राजनीतिक हस्तियों से न जुड़ना।) उनसे न जुड़ना? लेकिन वास्तव में तुम अपने कार्यस्थल पर उनसे बच नहीं सकते। अगर तुम उनसे बचते हो, तो वे आकर यह कहते हुए तुम्हारी गलतियाँ निकाल सकते हैं, “तुम मुझसे बात क्यों नहीं कर रहे हो? तुम मुझसे छिप क्यों रहे हो? क्या तुम मुझे, पार्टी शाखा सचिव को, पसंद नहीं करते? अगर मेरे बारे में तुम्हारी कोई विपरीत राय है, तो क्या इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हारी विचार-प्रक्रिया में कोई समस्या है? चलो, बात करते हैं।” वे तुम्हारे साथ “चाय” पीना चाहेंगे। क्या वह चाय आनंददायक होगी? क्या तुम जाने का साहस करोगे? उदाहरण के लिए, पार्टी शाखा सचिव तुम्हारे पास आकर पूछता है, “अरे, शियाओ झांग, तुम यहाँ कितने समय से काम कर रहे हो?” और तुम कहते हो, “कई साल से, लगभग पाँच साल से।” फिर वह उत्तर देता है, “तुम भले आदमी लगते हो। क्या तुम पार्टी में शामिल हो चुके हो?” तुम कैसे जवाब दोगे? राजनीति से दूर रहने के लिए उचित उत्तर क्या है? (बस कहो, “मैं फिलहाल पार्टी सदस्य बनने के मानदंड पूरे नहीं करता।”) यह बुद्धिमानी है। क्या यह कथन सत्य है? (नहीं।) यह वास्तव में उसे टालने का एक तरीका मात्र है। तुम सोचते हो, “ओ धूर्त लोमड़ी, ओ बूढ़े शैतान, मैं पार्टी में शामिल होऊँ या नहीं, तुम्हें इससे क्या मतलब? तुम चाहते हो कि मैं पार्टी में शामिल होऊँ। महत्व क्या है पार्टी का?” तुम यही सोच रहे होते हो, लेकिन तुम उस शैतान से यह नहीं कह सकते। इसके बजाय, तुम्हें अपना बाहरी बरताव विनम्र रखना होगा। तुम कहते हो, “ओह, पुराने पार्टी-सदस्यो, आप उन संघर्षों को नहीं समझते जिनका सामना हम युवा करते हैं। हमारा सीमित अनुभव है और अभी तक हमारे काम में परिणाम देखने को नहीं मिले हैं, इसलिए हम पार्टी में शामिल होने योग्य नहीं हैं। पार्टी पवित्र है; हम समुचित आधार के बिना शामिल नहीं हो सकते। मैं पार्टी में शामिल होने के विचार पर गौर कर रहा हूँ...।” बस चंद शब्दों में उसे जवाब दे दो। क्या तुम दिल से पार्टी में शामिल होना चाहते हो? (नहीं।) अगर वे तुम्हें बेहतर शर्तों की पेशकश भी करें, और शामिल होने के बाद तुम्हें तरक्की या आधिकारिक पद भी मिल जाए, तो भी तुम रुचि नहीं लोगे, है न? पद प्राप्त करने और अधिकारी के रूप में करियर बनाने की बुनियादी शर्तें ये हैं कि तुम्हें पहले संगठन में शामिल होना होगा, पार्टी में शामिल होना होगा या पार्टी के करीब जाना होगा। पद या तरक्की पाने से पहले तुम्हें पार्टी के करीब जाना होगा। राजनीति से दूर रहने के लिए पहला कदम है राजनीतिक पार्टियों से दूर रहना। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “क्या इसका मतलब सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी से दूर रहना है?” नहीं, इसका मतलब हर तरह की पार्टियों से दूर रहना है। कोई पार्टी क्या दर्शाती है? वह राजनीतिक ताकत दर्शाती है। वह समूह, जो पार्टी के राजनीतिक घोषणापत्र, कार्यक्रम और लक्ष्यों को अपना लक्ष्य मानता है, पार्टी कहलाता है। किसी पार्टी का उद्देश्य और कार्यक्रम चाहे कुछ भी हो, उसका एकमात्र लक्ष्य एक ताकत खड़ी करना और अपनी ताकत और बल का उपयोग राजनीतिक क्षेत्र और भूदृश्य में और ज्यादा ताकत और सत्ता के लिए जूझना है। किसी राजनीतिक पार्टी के अस्तित्व का यही उद्देश्य होता है। किसी भी पार्टी के अस्तित्व का उद्देश्य लोगों की भलाई करना नहीं, बल्कि ताकत और सत्ता पाना होता है। दूसरे शब्दों में, वह सत्ता कायम रखने और अपनी ताकत बनाने के लिए होता है। क्या यही मामला नहीं है? (हाँ, यही है।) इसलिए, राजनीति से दूर रहने का पहला कदम औपचारिक रूप से किसी भी राजनीतिक दल में शामिल न होना है। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “अगर मैं फलाँ पार्टी का सदस्य हूँ तो क्या होगा?” यह थोड़ा कठिन है। अगर तुम पार्टी छोड़ने के इच्छुक हो, तो यह सबसे अच्छा होगा, और तुम औपचारिक रूप से उनसे नाता तोड़ लो। अगर तुम पार्टी छोड़ने के इच्छुक नहीं हो या पार्टी छोड़ना परेशानी की बात हो तो तुम्हें खुद विचार करना चाहिए कि क्या करना है। हर हाल में, चाहे औपचारिक रूप से या आत्मा से, तुम्हें राजनीति से जुड़े पहले प्रमुख मुद्दे से दूर रहना चाहिए, यानी पार्टियों से दूर रहना है। अगर तुम पार्टियों से दूरी बना लेते हो, तो तुम एक स्वतंत्र व्यक्ति बन जाते हो। तुम किसी राजनीतिक ताकत के बहाव में नहीं आओगे, न ही तुम किसी राजनीतिक ताकत के लिए काम करोगे। राजनीति से दूर रहने के लिए किसी पार्टी में शामिल न होना सबसे बुनियादी विशिष्ट मार्ग है, जिसका अभ्यास किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, जब किसी राजनीतिक ताकत की बात आती है, जैसे कि पार्टी शाखा सचिव, निदेशक, या किसी सरकारी कार्यालय का कार्मिक अधिकारी, तो उससे निपटने का सिद्धांत यह है कि दूरी बनाए रखो। उदाहरण के लिए, अगर पार्टी शाखा सचिव तुमसे कहता है, “शियाओ झांग, क्या तुम्हारे पास थोड़ा समय है? चलो, काम के बाद साथ में खाना खाते हैं। कल से सप्ताहांत शुरू हो रहा है, चलो साथ में बास्केटबॉल खेलते हैं,” तो तुम कह सकते हो, “ओह, संयोग से मेरा बच्चा बीमार है। उसे कल बुखार हो गया था। काम की वजह से मुझे उसे डॉक्टर के पास ले जाने का समय नहीं मिला। कल मुझे उसे अस्पताल ले जाना है।” किसी दूसरे अवसर पर सचिव कहता है, “शियाओ झांग, हमें मिलकर बैठे काफी समय हो गया है। चलो, दिल खोलकर बात की जाए, तुम क्या कहते हो?” उसका उद्देश्य क्या है? वह तुम्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में तैयार करना चाहता है। अगर तुम्हें अभी तक इसका पता नहीं चला है, तो तुम्हें इस पर विचार करने की जरूरत है कि वह वास्तव में क्या चाहता है। अगर तुम्हें इसका पता चल गया है, तो तुम्हें जल्दी करनी चाहिए और यह कहते हुए उससे बचना चाहिए, “ओह, कल मेरी माँ ने कहा था कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है और वे चाहती थीं कि मैं उन्हें अस्पताल ले जाऊँ। क्या यह एक दुर्भाग्यपूर्ण संयोग नहीं है?” बार-बार तुम उसे दूर धकेलते हो, जिसे देखकर सचिव सोचेगा, “हर बार जब मैं इसे आमंत्रित करता हूँ, तो कोई न कोई चीज सामने आ जाती है, हर बार जब मैं इसके करीब आता हूँ, तो कुछ हो जाता है; यह एहसानों की कद्र करना नहीं जानता, मैं किसी और को ढूँढ़ लूँगा!” वह जिसे चाहे उसे ढूँढ़ सकता है, लेकिन इसके बावजूद तुम उसके करीब नहीं जाओगे। आम तौर पर, तुम उसके साथ काफी दोस्ताना व्यवहार करते हो, लेकिन जब वह तुम्हें तैयार करना या बढ़ावा देना चाहता है, तो तुम उससे बचने के लिए बहाने ढूँढ़ते हो, और तुम अपना उत्साह खो देते हो ताकि वह समझ न सके कि तुम क्या सोच रहे हो। असल में, अपने दिल में तुम एकदम स्पष्ट रूप से जानते हो, “मैं तुम्हारे करीब नहीं आऊँगा, शैतान! मेरे दिल में परमेश्वर है और परमेश्वर मुझसे राजनीति से दूर रहने को कहता है। तुम एक राजनीतिक व्यक्ति हो और मैं तुमसे दूर ही रहूँगा। तुम मुझे एक आधिकारिक पद पर पदोन्नत करना चाहते हो और मेरी प्रतिभा का उपयोग अपनी मदद के लिए करना चाहते हो, लेकिन मैं तुम्हें एक मौका तक नहीं दूँगा! भले ही मैं इस सरकारी कार्यालय में झाड़ू लगाऊँ और कूड़ा-कचरा हटाऊँ, मैं अधिकारी नहीं बनूँगा! मैं अपना भरण-पोषण करने के लायक पैसा कमा लेता हूँ, मैं तुम लोगों की सेवा नहीं करूँगा!” लेकिन वास्तव में, तुम्हें इसके बजाय यह कहना होगा, “तुम अगुआ लोगों के दिलों में राष्ट्र बसता है, तुम अनगिनत मामले सँभालते हो और लोगों की सेवा करते हो, आम लोगों की देखभाल करते हो! हम साधारण लोग कम जागरूक हैं और सिर्फ अपने पेट की परवाह करते हैं; हम उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं, और हम वह नहीं कर सकते जो तुम अगुआ लोग करते हो।” तुम उसके सामने हमेशा नादान होने का बहाना करते हो, ताकि वह पता न लगा सके कि तुम क्या सोच रहे हो। अगर तुममें प्रतिभा हो भी, तो भी तुम उसे प्रदर्शित नहीं करते। सिर्फ महत्वपूर्ण क्षणों में ही तुम उसे थोड़ा-सा प्रदर्शित करते हो, और वह समझता है कि तुम वास्तव में प्रतिभाशाली हो। तुम आम तौर पर कुछ छोटी-मोटी गलतियाँ कर देते हो, जिससे उसे लगता है कि तुम उतने सक्षम नहीं हो, लेकिन फिर भी वह कार्यस्थल पर तुम्हारे बिना काम नहीं चला सकता। इसी को बुद्धिमत्ता कहते हैं। तुम उस दुष्ट शैतान के साथ खिलवाड़ करते हो, सेवा करने के लिए उसका उपयोग करते हो और उससे पैसा कमाते हो, लेकिन उसके करीब नहीं जाते, और अपने दिल में उससे घृणा करते हो, क्या यह सही नहीं है? करीब न जाने का यही मतलब है। क्या तुम यह कर सकते हो? (हाँ।) दोपहर के समय अगुआ अपनी छोटी सिडैन कार चलाता है और खाना खाने के लिए इधर-उधर किसी प्रसिद्ध रेस्तराँ की तलाश करता है। वह तुम्हें बुलाता है, “शियाओ झांग, चलो बाहर चलकर कुछ खाते हैं; तुम आज क्या खाना चाहोगे?” तुम कहते हो, “मैंने कई दिनों से तले हुए बीन-सॉस नूडल्स नहीं खाए हैं, और मैंने लंबे समय से भाप में पके बन नहीं खाए हैं; मैं यही खाना चाहता हूँ। मैं लंच के लिए घर जा रहा हूँ, क्या तुम्हें इनमें से कुछ चाहिए?” तुम उसे इस तरह उत्तर देते हो, जिसे सुनकर वह कहता है, “क्या खाना चाहते हो? यह तो सूअर का खाना है, लोग इसे नहीं खाते!” वह उनमें से कोई चीज नहीं खाना चाहता, जिनका तुम जिक्र करते हो, और वह मन ही मन सोचता है, “यह बंदा बिल्कुल वैसा ही है, जैसा लोग कहते हैं—जन्मजात मूर्ख का इलाज नहीं किया जा सकता। आजकल भाप में पके बन और तले हुए बीन-सॉस नूडल्स कौन खाता है? अधिकारी इससे कहीं बेहतर खाना खाते हैं!” ये अधिकारी रेस्तराँ जाते हैं और जनता का पैसा खर्च करते हैं, वे अधिकारी होने की महिमा और वैभव का आनंद लेते हैं, और सिर्फ ठाठदार खाना खाते हैं : एक बार के भोजन की कीमत एक हजार युआन से ज्यादा होती है। वे बंदर का दिमाग और साही की खाल खाते हैं। ये राक्षस और शैतान कुछ भी खा लेते हैं, ऐसा कुछ नहीं है जिसे वे खा-पी न सकते हों। तुम अपने दिल में क्या सोच रहे हो? “मैं तुम्हारे पापों में भागीदार बनूँगा, मैं तुमसे दूर ही रहूँगा, तुम लोग शैतानों के बच्चे हो, इंसानों का माँस और रक्त खाने-पीने वाले कमबख्तो! मैं तुम्हारी खर्चीली जीवनशैली का मजा लेने के बजाय घर जाकर तले हुए बीन-सॉस नूडल्स और भाप में पके बन खाना पसंद करूँगा। अगर मुझे मोटा अनाज भी खाना पड़े, तो भी मैं तुम्हारे आसपास तक नहीं फटकूँगा; तुम्हारी दुष्टता में नहीं फँसूँगा, न ही तुम्हारे पापों में भागीदार बनूँगा। इंसानों का माँस और रक्त खाना-पीना शैतानों का काम है, इंसानों का नहीं। अंतिम परिणाम क्या होगा? तुम निश्चित रूप से नरक में जाओगे और सजा भुगतोगे! मैं रियायतें देता और समझौते करता हूँ और तुम्हारी सत्ता के तहत जीविकोपार्जन करता हूँ, लेकिन मेरा लक्ष्य अपनी आजीविका बनाए रखना, परमेश्वर का अनुसरण करना और अपना कर्तव्य निभाना है। मैं पदोन्नति पाने या राजनीति में शामिल होने की कोशिश नहीं कर रहा; मैं तुमसे अपने दिल की गहराइयों से नफरत करता हूँ!” इसलिए, अगुआ तुम्हें भव्य भोजन का आनंद लेने के लिए चाहे जैसे भी मनाए, तुम नहीं जाते। सप्ताहांत में, अगर वह तुम्हें कराओके गाने, सुंदर महिलाओं से घिरे रहने और बढ़िया शराब पीने के लिए आमंत्रित करता है; अगर वह तुम्हें किसी चायघर में विश्राम या मनोरंजन के लिए, या ड्रैग-शो देखने के लिए आमंत्रित करता है, तो तुम जाओगे या नहीं? अगर तुम संगठन या पार्टी के करीब जाना चाहते हो, तो तुम्हें इन जगहों पर जाना होगा। लेकिन इस क्षण तुम कहते हो, “मैं परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करता हूँ, मैं राजनीति से दूर रहता हूँ, मैं इनमें से किसी में भी भाग नहीं लूँगा, मैं उनके पापों में हिस्सा नहीं लूँगा।” अगले दिन, जब वे एक-साथ इकट्ठे होते हैं, तो वे इस बारे में बात करते हैं कि फलाँ युवती कितनी सुंदर है, कैसे वह महफिल की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी है, कितनी प्रतिभाशाली गायिका है, फ्रांस में एक खास जमाने की शराब कितनी स्वादिष्ट है, मनोरंजन के लिए कहाँ जाना चाहिए, गर्म झरनों का आनंद कहाँ लेना चाहिए...। वे इन चीजों के बारे में बात करते हैं—क्या तुम उनसे ईर्ष्या करते हो? क्या तुम्हें जलन हो रही है? तुम्हें हेडफोन लगाकर अपने कान बंद करने होंगे; इन शैतानों की बकवास मत सुनो, उनसे दूर रहो, अपना हृदय शांत रखो, पापियों के पापों में हिस्सा मत लो, उनके गंदे जीवन से दूर रहो, और उनकी दुष्टता में मत फँसो। तुम्हारा उद्देश्य राजनीति से दूर रहना है। जो लोग तरक्की चाहते हैं, जो संगठन के करीब जाना चाहते हैं और पदोन्नत होना चाहते हैं : इस तरह जीने का उनका उद्देश्य वास्तव में राजनीति में भाग लेना है, सीधे राजनीति में घुसना है, जिसका उद्देश्य राजनीतिक हलकों में एक स्थान प्राप्त करना और ऐसा जीवन जीना है, जो न तो इंसान के लायक है, न ही राक्षस के लायक। लेकिन तुम उनके बिल्कुल विपरीत हो। तुम्हें ऐसे गंदे जीवन से दूर रहना चाहिए। ऐसे जीवन से दूर रहने का उद्देश्य किसी भी राजनीतिक सँभावना की न तो इच्छा करना है और न ही उसकी परवाह करना है। तुम्हारा भविष्य सत्य का अनुसरण करना और उद्धार प्राप्त करना है। इसलिए, तुम्हें दिल से स्पष्ट होना चाहिए कि तुम अभी जो कुछ भी कर रहे हो, वह सार्थक और मूल्यवान है; यह सत्य के अनुसरण के लिए है, उद्धार प्राप्त करने के लिए है। यह कोई निरर्थक बलिदान नहीं है, न ही तुम किसी असामान्य ढंग से व्यवहार कर रहे हो। इससे भी बढ़कर, तुम अकेले नहीं हो। तो, इन पापमय जिंदगियों से दूर रहने का अंतिम उद्देश्य वास्तव में इन लोगों से अलग होना है, जिसे वे राजनीति कहते हैं उससे दूर रहना है। राजनीति से दूर रहने का यह दूसरा सिद्धांत है—करीब मत जाओ।

राजनेताओं के करीब न जाना न्यूनतम चीज है जो की जानी चाहिए, और इसके अलावा इसमें भाग भी नहीं लेना है। उदाहरण के लिए, अगर अनुभाग प्रमुख, निदेशक या ब्यूरो प्रमुख के रूप में पदोन्नत होने का अवसर है, तो सभी खुद को दिखाने, अपना प्रदर्शन सुधारने, नेताओं को उपहार देने, व्यक्तिगत प्रभाव का इस्तेमाल कर फायदा उठाने, मार्ग तलाशने और अगुआओं और वरिष्ठों को अपनी प्रतिभाएँ, योग्यताएँ और मूल्य दिखाने, यहाँ तक कि अपने मूल्य से भी लाभ उठाने का हर संभव प्रयास करने के लिए उत्सुक रहते हैं। बल्कि वे चापलूस बनना पसंद करेंगे, अगुआओं और वरिष्ठों की जीहुजूरी करना पसंद करेंगे और जो कुछ भी वे उनसे करने को कहेंगे, वही करेंगे, चाहे वे ऐसा करना न चाहते हों। राजनीतिक संघर्षों में भाग लेने के लिए कुछ लोग धन देते हैं, कुछ अपने शरीर तक पेश कर देते हैं। इन संघर्षों में कुछ लोग अगुआओं के साथ नेटवर्क बनाते हैं, दूसरे लोग अगुआओं को ढेर सारा पैसा और उपहार देते हैं, और कुछ लोग उन्हें अपना शरीर पेश कर देते हैं, जिसका अंतिम लक्ष्य इन अगुआओं द्वारा पदोन्नति या मार्गदर्शन प्राप्त करना और राजनीति का मार्ग अपनाना होता है। परमेश्वर के एक विश्वासी के रूप में, अगर तुम जानते हो कि इन अभ्यासों में राजनीति में भाग लेना शामिल है, तो तुम्हें दूर रहना चाहिए। पहले, अपनी राजनीतिक संभावनाओं या आधिकारिक पद की खातिर उपहार न दो, न ही नेटवर्क बनाओ। साथ ही, अगुआओं के सामने बढ़-चढ़कर अपनी खूबियाँ प्रकट न करो, और उनका ध्यान खींचने की होड़ में कोई अतिवादी कदम तो बिल्कुल भी मत उठाओ। दूसरों को तुम्हारे बिना प्रतिस्पर्धा करने दो। हर बार जब बॉस तुम्हें नामांकित करे, तो कहो, “मैं इसमें भाग नहीं लूँगा, मैं योग्य नहीं हूँ।” तुम्हें सिर्फ यह कहना है कि तुम योग्य नहीं हो और दूसरों को आगे बढ़ने दो; ऐसे बहुत सारे लोग होंगे, जो प्रतिस्पर्धा के लिए आगे आ जाएँगे। जब बॉस कहे, “शियाओ झांग, इस बार तुम्हारी बारी है,” तो कहो, “मैं अभी भी योग्य नहीं हूँ, बॉस, कृपया मुझे क्षमा करें। मैं सक्षम नहीं हूँ। पहले शियाओ ली को जाने दें, और अगर शियाओ ली सक्षम नहीं है, तो शियाओ वांग को जाने दें। उन्हें ऐसा करने दें।” बॉस कहेगा, “क्या तुम मूर्ख हो? अगर उन्होंने इसे स्वीकार लिया, तो तुम्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा : तुम्हें घर नहीं मिलेगा, न ही कोई बोनस या वेतनवृद्धियाँ मिलेंगी।” तब तुम कहो, “अगर मुझे कुछ नहीं मिला, तो न सही। मेरे पास खाने के लिए पर्याप्त है और खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा है, इसलिए निश्चिंत रहें, श्रीमान। अगर आप अभी भी आश्वस्त नहीं हैं, तो वर्ष के अंत में मुझे थोड़ा और बोनस दे दीजिएगा।” उनके संघर्ष में भाग न लो। जो प्रतिस्पर्धा करना चाहता है, उसे करने दो। पदोन्नति के लिए तुम किसी साधन का सहारा नहीं लेते, कोई ऊर्जा नहीं लगाते या कोई कीमत नहीं चुकाते। पदोन्नति के लिए तुम एक पैसा भी खर्च नहीं करते, एक शब्द भी नहीं कहते, कुछ अतिरिक्त नहीं करते या विशेष प्रयास नहीं करते। अगर तुम्हारे पास अनुकूल स्थितियाँ, संबंध और लोगों का उपयुक्त आधार भी हो, तो भी तुम भाग नहीं लेते। इसे कहते हैं सचमुच त्यागना, सचमुच दूर रहना। सांसारिक लोग तुम्हें निरंतर दया की दृष्टि से देखकर कहते रहते हैं, “तुम मूर्ख हो, भोले हो!” लेकिन तुम कहते हो, “मेरे बारे में जो चाहो कहो; मैं फिर भी भाग नहीं लूँगा।” लोग पूछते हैं, “तुम भाग क्यों नहीं लोगे?” तुम कहते हो, “मैं खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा कमाता हूँ। मैं योग्य नहीं हूँ। तुम सब मुझसे बेहतर हो, इसलिए तुम जाओ।” क्या तुम भाग लेने से बच सकते हो? (हाँ।) बेशक, अगर तुम्हारे पास उप अनुभाग प्रमुख या उप निदेशक के पद पर पदोन्नत होने का अवसर है, तो तुम उसे ठुकरा सकते हो, लेकिन अगर तुम्हें ब्यूरो प्रमुख या प्रांतीय गवर्नर के पद की पेशकश की जाए, तो क्या तुम ऐसा कर सकते हो? यह शायद आसान न हो : पद जितना ऊँचा होता है, उतना ही ज्यादा आकर्षक होता है, और उसका अधिकार जितना ज्यादा होता है, प्रलोभन उतना ही ज्यादा होता है, क्योंकि जब तुम्हारे पास ज्यादा अधिकार होता है, तब तुम्हारे साथ बेहतर सलूक होता है, तुम्हारे शब्द ज्यादा प्रभावशाली हो जाते हैं, और तुम्हारा भौतिक आनंद बढ़ जाता है। देखो, महापौर, राज्यपाल और राष्ट्रपति सबके पास अपने आधिकारिक आवास हैं। उनके घर और बाहर का तमाम खर्च राज्य वहन करता है। इसलिए, जितना ज्यादा तुम उच्च वर्गों के साथ बातचीत करते हो, उनके प्रति तुम्हारा प्रलोभन उतना ही ज्यादा होता जाता है, और उनके साथ बातचीत करने के जितने ज्यादा अवसर तुम्हारे पास होते हैं, उन अवसरों को छोड़ना उतना ही ज्यादा कठिन हो जाता है। प्रलोभन से बचने के लिए तुम उच्च वर्ग के दायरों में कदम न रखते हुए जमीनी स्तर पर काम करते हो। तुम इन दायरों में कदम तक नहीं रखते। इसे कहते हैं दूर रहना। तुम जो कुछ भी कहते या करते हो, उसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं; इन सबका वास्ता इन चीजों से दूर रहने से है। हर खास प्रतियोगिता में जो कोई सफलतापूर्वक उच्च-स्तरीय अधिकारी चुना जाता है, जो कोई भी बड़ी सत्ता पाकर आता है, तुम उससे ईर्ष्या नहीं करते, तुम आहत नहीं होते, और तुम्हें इसका पछतावा नहीं होता, क्योंकि परमेश्वर द्वारा आयोजित एक अन्य परीक्षण या परिस्थिति में तुमने राजनीति से दूर रहने के सिद्धांत का अभ्यास किया है, जिसकी परमेश्वर अपेक्षा करता है। तुमने परमेश्वर की अपेक्षा पूरी की है, और शैतान के सामने तुम विजयी हो; परमेश्वर के सामने तुम एक विजेता हो, और परमेश्वर तुम्हारा अनुमोदन करता है। कुछ लोग कहते हैं, “अगर परमेश्वर मेरा अनुमोदन करता है, तो क्या वह मेरा वेतन कुछ बढ़ा देगा?” नहीं, परमेश्वर द्वारा विजेता के रूप में तुम्हारे अनुमोदन और मान्यता का मतलब है कि तुम उद्धार के एक कदम करीब हो, और परमेश्वर तुम्हें ज्यादा से ज्यादा अनुग्रह से देखता है—यह एक बड़ा सम्मान है। क्या राजनीतिक मामलों में भाग लेने से बचना आसान है? जिसे भी प्रतिस्पर्धा में आनंद मिलता है, उसे प्रतिस्पर्धा करने दो। जो भी ऐसे मामलों की तरफदारी पसंद करता है, उसे ऐसा करने दो। जो भी इनमें व्यस्त रहना पसंद करता है, उसे व्यस्त रहने दो। हर हाल में, तुम इन चीजों की परवाह नहीं करते, न ही इन्हें लेकर परेशान होते हो, क्योंकि तुम उन्नति नहीं चाहते और तुम्हारा लक्ष्य अधिकारी के रूप में करियर बनाना नहीं है। राजनीति से दूर रहने का यह तीसरा सिद्धांत है—भाग न लेना।

राजनीति से दूर रहने का चौथा सिद्धांत है किसी का पक्ष न लेना। “पक्ष लेना” राजनीतिक लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक तरह की विशिष्ट शब्दावली है, और राजनीतिक दुनिया में पक्ष लेना एक सामान्य घटना है। जब तुम राजनीति में भाग लेते हो, तो तुम्हें अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होती है कि तुम अ पार्टी के साथ खड़े हो या ब पार्टी के साथ। जैसे ही तुम राजनीति में शामिल होते हो, तुम्हें पक्ष लेना होता है। अगर तुम शामिल नहीं होते, तो तुम्हें पक्ष लेने की जरूरत नहीं होती, या तुम कह सकते हो कि तुम पक्ष नहीं लेते। अगर तुम तटस्थ रहते हो और उनके विवादों या दोनों पक्ष क्यों लड़ रहे हैं इस पर ध्यान नहीं देते, तो तुम पक्ष नहीं लेते। तुम अ पार्टी का समर्थन करते हो या ब पार्टी का, तुम्हारी ओर से कोई नतीजा या जवाब नहीं आता। तुम कहते हो, “मैं किसी के भी पक्ष में नहीं खड़ा हूँ, मैं अलग रहता हूँ। मेरे अ और ब दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं, लेकिन मैं उनमें से किसी के भी करीब नहीं जाता। मैं उनकी किसी भी लड़ाई में भाग नहीं लेता।” ये लोग हैरान होते हैं : तुम आखिर अ पार्टी में हो या ब पार्टी में? वे हमेशा तुम्हारा दिल जीतने की कोशिश करते हैं, लेकिन कोई जीत नहीं पाता। अंतिम परिणाम यह होता है कि वे समझ जाते हैं कि तुम किसी भी पार्टी का पक्ष नहीं लेते। अंत में, तुम्हारा अगला वरिष्ठ कहता है, “धूर्त आदमी, ऐसे महत्वपूर्ण क्षण में तुमने मेरा समर्थन क्यों नहीं किया?” तुम कहते हो, “बॉस, मैं इस तरह के सम्मान की आकांक्षा करने की हिम्मत नहीं करता, मुझमें उतनी बौद्धिक गहराई नहीं है, न ही मैं अपने काम में बहुत सक्षम हूँ; मुझे आपको निराश करने का डर है। बॉस, कृपया मुझे क्षमा करें, मैं महज एक मामूली आदमी हूँ जो नीचे पड़ी दमड़ी उठाने के लिए भी झुक जाता है; मैं एक साधारण व्यक्ति हूँ, किसी का पक्ष लेने का साहस नहीं करता। कृपया मेरे साथ नरमी बरतें और मुझे छोड़ दें, अगली बार मैं निश्चित रूप से आपका समर्थन करूँगा।” हकीकत में, तुम उसे टाल रहे हो। तुमने उसे नाराज नहीं किया है और वह इस बारे में कुछ नहीं कर सकता। वे जैसे चाहें वैसे लड़ और बहस कर सकते हैं, इसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं, तुम एक बाहरी व्यक्ति हो। मैं यह क्यों कहता हूँ कि तुम एक बाहरी व्यक्ति हो? तुम आधिकारिक करियर, अफसरशाही, ऊँचाई तक पहुँचने, अपने पूर्वजों को गौरवान्वित करने या राजनीति में कदम रखने का अनुसरण नहीं कर रहे। तुम राजनीतिक संभावनाओं के पीछे नहीं दौड़ रहे; तुम्हारा लक्ष्य आधिकारिक करियर और इन राजनीतिक हस्तियों से दूर रहना है। इसलिए, तुम जानबूझकर किसी का पक्ष न लेना, अ या ब पार्टी को न चुनने का फैसला करते हो, और कौन किसका पक्ष लेता है इसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं। जब भी कोई तुम्हें मनाने की कोशिश करता है, तुम इसे हँसी में उड़ाकर मूर्ख होने का अभिनय करते हुए कहते हो, “मैं नहीं जानता कि कौन सही है, तुम सभी लोग मेरे अच्छे दोस्त हो, जो भी जीते मुझे खुशी होगी।” वे कहते हैं, “तुम सचमुच बहुत चालाक आदमी हो!” और तुम कहते हो, “मैं चालाक नहीं, मैं बस बेवकूफ हूँ; तुम सभी लोग विशेषज्ञ हो!” तुम उनसे भ्रमित होने का दिखावा करते हो। क्या किसी का पक्ष न लेना ठीक है? भोले मत बनो, उन लोगों का सहयोग मत करो जो तुम्हारा फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। राजनीति चाहे जिस स्तर की हो, इसमें पानी हमेशा गँदला ही रहता है—तुम तल नहीं देख सकते। वह साफ झरने की तरह नहीं होती, जहाँ तुम तल देख सकते हो; वह गँदला पानी है, दलदल है। अगर कोई नेता तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करता है, तो तुम उसके करीब आ जाते हो और उसका पक्ष ले लेते हो, लेकिन तुम नहीं जानते कि इससे तुम्हारा भला होगा या बुरा। तुम नहीं जान सकते कि उसका भविष्य क्या होगा, वह जंजीरों से जकड़ा जाएगा या ऊँचाई पर पहुँचेगा। वे सभी लोग दलदल के मगरमच्छ हैं, बड़े भी हैं और छोटे भी। एक मामूली व्यक्ति के रूप में तुम नहीं बता पाओगे कि उनके द्वारा कहा गया हर शब्द सच्चा है या झूठा, वे किसके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं और किसके साथ नहीं, और उनके दैनिक कार्यों का उद्देश्य क्या है—तुम बता ही नहीं सकते। इसलिए, अगर तुम खुद को सुरक्षित रखना चाहते हो, तो सबसे सीधा और उच्चतम सिद्धांत किसी का पक्ष न लेना है। अगर वे तुम्हारे प्रति अच्छे हैं, तो उनके साथ हँस-बोल लो; अगर वे तुम्हारे प्रति अच्छे नहीं हैं, तो भी उनके साथ हँस-बोल लो, लेकिन उनका पक्ष मत लो। जब कोई बात सामने आए, तो बस हँसकर भ्रमित होने का नाटक करो; जब वे तुमसे कुछ पूछें, तो कहो कि तुम नहीं जानते, यह तुम्हें स्पष्ट नहीं है, या तुमने इसे पहले नहीं देखा है। क्या तुम इस तरह जवाब दे सकते हो? (हाँ, अब मैं दे सकता हूँ।) क्या कलीसिया में ये सिद्धांत लागू करना उचित है? (यह उचित नहीं है।) ये तरकीबें सिर्फ उन स्थानों के लिए उपयुक्त हैं जहाँ शैतान रहते हैं, इन्हें भाई-बहनों के बीच इस्तेमाल नहीं करना है। यही बुद्धिमत्ता है। जिन स्थानों पर शैतान रहते हैं, वहाँ तुम्हें साँपों के समान बुद्धिमान होना होगा; तुम मूर्ख नहीं हो सकते, तुम्हें बुद्धिमान होना चाहिए। चाहे जो भी तुम्हें उनकी ओर खींचें, जाकर उनके पक्ष में खड़े मत होओ। चाहे जो भी तुम्हारे साथ टकराव पैदा करे या तुम्हें नापसंद करे, उसका विरोध न करो या उसके खिलाफ खड़े न होओ। उसे विश्वास दिलाओ कि तुम उसके खिलाफ नहीं हो। ये चीजें बुद्धि का निर्माण करती हैं। किसी भी राजनीतिक ताकत से प्रतिस्पर्धा न करो, उनमें से किसी के भी करीब न जाओ, और उनमें से किसी के साथ साँठ-गाँठ न करो या सद्भावना न दिखाओ। यह बुद्धिमत्ता है, यह किसी का पक्ष न लेना है। क्या ऐसा ही नहीं है? (हाँ, है।) क्या तुम जान गए कि यह कैसे करना है? (बिल्कुल।) महत्वपूर्ण अवसरों पर तुम्हें गूँगे-बहरे होने, पागल और मूर्ख होने का नाटक करना होगा, और खुद को निपट मूर्ख समझने देना होगा। अगर वे तुमसे कुछ करने के लिए कहें, तो कर दो, बिना सवाल किए उनकी सलाह मान लो और उन्हें देख लेने दो कि तुम कितने आज्ञाकारी हो। किस हद तक आज्ञाकारी? एक चापलूस जैसा, हमेशा सुनने वाला, बारी आने से पहले कभी बात न करने वाला, बॉस की खबर के बारे में कभी पूछताछ न करने वाला या फलाँ के बारे में जानकारी न लेने वाला—बिल्कुल आज्ञाकारी बने रहना। लेकिन तुम्हें कभी उनके सामने अपने सच्चे विचार जाहिर नहीं करने चाहिए; अगर तुम अपने सच्चे विचार और इरादे जाहिर कर दोगे, तो वे तुम्हें दंडित करेंगे और तुम्हें सबक सिखाएँगे। अगर तुम उनके पक्ष में नहीं हो, तो भी उन्हें इसकी हवा मत लगने दो—अगर तुम उन्हें नकारते भी हो, तो भी उन्हें इसका पता मत चलने दो। तुम्हें ऐसा क्यों करना चाहिए? क्योंकि उनकी नजर में या तो तुम उनके मित्र हो या शत्रु। अगर तुम उनकी नजर में शत्रु बन जाते हो, तो वे तुम्हें ही दंडित करना चाहेंगे : वे तुम्हें अपनी आँख की किरकिरी, अपने जी का जंजाल मानेंगे और उन्हें तुम्हें दंडित करना होगा। इसलिए, तुम्हें बुद्धि का प्रयोग कर मूर्ख होने का दिखावा करना चाहिए। अपनी योग्यताएँ मत दिखाओ; अगर तुम किसी भी चीज के प्रति अपने विचार, दृष्टिकोण, स्थितियाँ या रवैये व्यक्त करते हो, तो तुम मूर्ख हो। समझे? (समझ गए।) शैतानों और राक्षसों के सामने, खासकर जब तुम राजनीतिक दुनिया में किसी समूह के करीब आते हो, तो तुम्हें अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी, खुद को सुरक्षित रखना होगा, खुद को चतुर नहीं समझना होगा या चतुराई नहीं दिखानी होगी, अपना प्रदर्शन नहीं करना होगा, अपनी योग्यता साबित करने की कोशिश नहीं करनी होगी—तुम्हें चुपचाप रहना होगा। अगर तुम ऐसे जटिल परिवेश में अपना अस्तित्व सुनिश्चित करना चाहते हो, और परमेश्वर में विश्वास भी करना चाहते हो, अपना कर्तव्य निभाना चाहते हो, सत्य का अनुसरण करना चाहते हो और उद्धार प्राप्त करना चाहते हो, तो पहली चीज जो तुम्हें करनी चाहिए, वह है अपनी रक्षा करना। अपनी रक्षा करने का एक तरीका यह है कि किसी राजनीतिक ताकत को न उकसाओ और उनके हमलों या सजा का लक्ष्य न बनो—इसी तरह तुम थोड़े सुरक्षित रह सकते हो। अगर तुम हमेशा उनकी बात सुनने, उनका आज्ञापालन करने या उनके करीब आने से इनकार कर देते हो, तो वे तुम्हें नापसंद करेंगे और तुम्हें दंडित करना चाहेंगे। दूसरी ओर, अगर वे देखते हैं कि तुममें प्रतिभा और काम करने की क्षमता है, और अगर वे समझते हैं कि तुम उनके लिए लाभदायक हो, और अगर तुम उनकी जिमेदारी सँभाल लेते हो, उनके रहस्य उजागर नहीं करते या उनकी भावी प्रतिष्ठा को नुकसान नहीं पहुँचाते, तो वे तुम्हारे सलाहकार बनना चाहेंगे। क्या उनका तुम्हें सलाह देना अच्छी बात है? (नहीं।) अगर उनकी नजर तुम पर है और वे तुम्हें सलाह देना चाहते हैं, तो मुझे बताओ, क्या यह किसी दुष्ट आत्मा के वश में होने के समान नहीं है? (हाँ, है।) अगर उनकी नजर तुम पर है, तो तुम मुसीबत में हो। इसलिए, इससे पहले कि वे तुम्हें अपनी नजरों में लाएँ, तुम उन्हें खुद को पसंद नहीं करने दे सकते; तुम्हें मूर्ख होने का दिखावा करना होगा, मानो तुम कुछ भी बहुत अच्छा नहीं कर सकते। ज्यादातर चीजें कामचलाऊ ढंग से करो। हालाँकि वे इससे असंतुष्ट हो सकते हैं, लेकिन वे तुममें कोई दोष नहीं निकाल पाएँगे या तुमसे छुटकारा पाने के कारण नहीं ढूँढ़ पाएँगे। यह पर्याप्त है, और यह वांछित परिणाम दिलाता है। अगर तुम चीजें बहुत अच्छी तरह से करते हो, अगर सब-कुछ सुचारु ढंग से किया जाता है और वे तुमसे विशेष रूप से संतुष्ट होते हैं और तुम्हारे बारे में बहुत अच्छा सोचते हैं, तो यह अच्छा नहीं है। एक ओर, वे तुम्हें अपने राजनीतिक उड़ान-पथ के लिए खतरा समझेंगे, और दूसरी ओर, वे तुम्हें सलाह देना चाहेंगे, जिनमें से कोई भी चीज तुम्हारे लिए अच्छी नहीं है। इसलिए, इस समाज में खुद को स्थापित करने के लिए, विभिन्न ताकतों से बचने और दूर रहने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है विभिन्न ताकतों या अपने से ठीक उपर वाले वरिष्ठ से संबंधित रिश्ते और मामले सक्षमता से सँभालना। उदाहरण के लिए, अगर तुम बहुत ज्यादा दिखावा करते हो, अगर तुम खुद को बहुत ज्यादा साबित करना चाहते हो, या अगर तुम बुद्धिहीनता से कार्य करते हो, तो तुम एक दुविधा में फँस सकते हो, जहाँ तुम कुछ भी अपने से दूर करने में असमर्थ होते हो या तुम्हें वह करना होता है जो तुम नहीं करना चाहते। इस बारे में क्या किया जा सकता है? इसलिए, इस मामले को हल करना मुश्किल है। तुम्हें बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, उसके सामने शांत रहो, परमेश्वर को तुम्हारा मार्गदर्शन करने दो, तुम्हें बुद्धि देने दो, बोलने के लिए शब्द देने दो, तुम्हें जो करना चाहिए उसमें तुम्हारा मार्गदर्शन करने दो, और तुम्हें यह जानने में मदद करने दो कि स्थिति से कैसे निपटें, ताकि तुम अपनी रक्षा कर सको और ऐसे जटिल चक्रों में परमेश्वर द्वारा सुरक्षित रहो। जब तुम्हें परमेश्वर की सुरक्षा प्राप्त हो जाती है और तुम अपनी रक्षा करने में सक्षम हो जाते हो, सिर्फ तभी तुम्हारे पास परमेश्वर के समक्ष स्थिर रहने, परमेश्वर के वचन खाने-पीने, उन पर विचार करने और सत्य का अनुसरण करने की बुनियादी स्थितियाँ हो सकती हैं। क्या तुम ये बातें समझते हो? (हाँ, मैं समझता हूँ।) यह किसी का पक्ष न लेने का सिद्धांत है।

राजनीति से दूर रहने का एक और सिद्धांत है, अपनी स्थिति न बताना। चाहे इसमें राजनीतिक दृष्टिकोण, रवैये या रुझान, या अगुआओं के इरादे और उद्देश्य, उनकी अभिव्यक्तियाँ, उनके विचार शामिल हों, या चाहे वे सही हों या गलत, तुम्हें अपनी स्थिति नहीं बतानी चाहिए। जब बॉस तुमसे पूछता है, “मैंने अभी जो कहा, क्या तुम उससे सहमत हो? तुम्हारा क्या रुख है?” तो तुम कहते हो, “क्या कहा? मेरे कान ठीक से काम नहीं कर रहे, मैंने आपकी बात नहीं सुनी।” यह सुनकर बॉस नाराज हो जाता है और तुमसे बात करना बंद कर देता है। तुम अपने दिल में सोचते हो, “बहुत बढ़िया, मैं वैसे भी कुछ नहीं कहना चाहता था!” तुम्हें गूँगे-बहरे होने का नाटक करना चाहिए, और हमेशा अपनी स्थिति नहीं बतानी चाहिए, या यह दिखाते हुए कि तुम कितने होशियार हो, यह नहीं कहना चाहिए, “बॉस, मेरे कुछ मत हैं, मेरे कुछ विचार हैं।” अगर तुम हमेशा हाथ उठाकर अपना रुख जाहिर करते हो, तो यह बिल्कुल मूर्खतापूर्ण है। बॉस के बारे में कोई राय होने पर तुम्हें नहीं बोलना चाहिए, और अमुक सहकर्मी के बारे में कोई राय होने पर या अपने बॉस को कुछ गलत करते देख चुप रहना चाहिए। अब, अगर अगुआ तुमसे इन चीजों के बारे में पूछे तो तुम क्या कहोगे? “आपने इसके साथ बहुत अच्छा काम किया है, आप हम छोटे श्रमिकों से दूसरे स्तर पर हैं। आप सचमुच विचारशील हैं!” तुम्हें उसकी प्रशंसा करनी चाहिए, उससे ऐसे चापलूसी भरे स्वर में बात करनी चाहिए कि वह प्रसन्न महसूस करने लगे, और जब तुम देखो कि तुम्हारा मकसद सध गया है, तो उसकी प्रशंसा करना बंद कर दो, क्योंकि तुम लगभग उकता चुके हो। तुम्हारा बॉस ऊपर से चाहे जो भी नीतियाँ, दृष्टिकोण, कार्य लागू करने के लिए बोल रहा हो, या किसी भी चीज के प्रति उसका रवैया चाहे जो हो, तुम मूर्खतापूर्ण व्यवहार कर कुछ अस्पष्ट वाक्य कह देते हो। तुम्हारी बात सुनकर बॉस कहेगा, “यह व्यक्ति हमेशा भ्रमित रहता है, इसलिए इसका इस मामले में भी भ्रमित होना सामान्य है।” ठीक है, तुम झूठे बहाने बनाकर स्थिति से निपटने में कामयाब हो गए हो। बॉस चाहे कुछ भी कहे, तुम्हें कभी अपनी स्थिति नहीं बतानी चाहिए। अगर तुम बॉस के साथ भोजन कर रहे हो और वह चाहता है कि तुम किसी चीज पर अपनी स्थिति बताओ, तो तुम कहो, “ओह, देखो मैंने कितना चावल खा लिया; मेरी रक्त-शर्करा बढ़ गई है और सिर थोड़ा चकरा रहा है, इसलिए आपने अभी जो कहा, वह मुझे स्पष्ट रूप से सुनाई नहीं दिया। बॉस, क्या हम इस पर अगली बार फिर से चर्चा कर सकते हैं?” बस, उसके साथ अस्पष्ट रहो। अगर बॉस अपने, पार्टी-समिति या राष्ट्रीय नीतियों के बारे में तुम्हारे विचार जानने के लिए किसी को भेजे, तो क्या तुम्हें कोई विचार व्यक्त करना चाहिए? (नहीं।) तुम्हारा सार्वजनिक रवैया यह होना चाहिए कि तुम्हारा कोई विचार नहीं है, लेकिन तुम्हारे सच्चे रवैये के बारे में क्या? अगर तुम्हारे अपने विचार हों भी, तो भी उन्हें बताना मत : इसे भूत को धोखा देना कहा जाता है। एक लाक्षणिक कहावत है, “किसी की कब्र पर प्लास्टिक के फूल रखना—भूत को धोखा देना,” क्या यह सही नहीं है? सही-गलत के प्रमुख मुद्दों का सामना करते समय, भले ही तुम्हारे अपने रवैये और दृष्टिकोण हों, तुम्हें उन्हें व्यक्त नहीं करना चाहिए। क्यों? इन चीजों का संबंध परमेश्वर में आस्था से नहीं है, इनका सत्य से संबंध नहीं है, ये सब शैतानों की दुनिया के मामले हैं, और इनका हम विश्वासियों से कोई लेना-देना नहीं है। यह मायने नहीं रखता कि हमारे रवैये क्या हैं, मायने यह रखता है कि इन चीजों का हमसे कोई लेना-देना नहीं है; भले ही हमारा कोई रवैया हो, वास्तव में यह उनके सार की समझ और पहचान है; हमारा रवैया और हमारे अभ्यास का सिद्धांत उनसे दूर रहना, उन्हें और उनके प्रभाव और नियंत्रण को नकारना है। जहाँ तक दूसरे लोगों के रवैयों की बात है, तो उनसे हमारा कोई वास्ता नहीं है; यह शैतानों की दुनिया का मामला है और इसका परमेश्वर के विश्वासियों से कोई लेना-देना नहीं है। इन चीजों का संबंध सत्य के अनुसरण से नहीं है, न ही इनका संबंध उद्धार से है, तुम्हारे प्रति परमेश्वर के किसी रवैये से संबंध होने की बात तो छोड़ ही दो; इसलिए, तुम्हें कोई रवैया अपनाने की जरूरत नहीं, न ही तुम्हें कोई रवैया व्यक्त करने की जरूरत है। तुम इसे बस हँसी में उड़ाकर कह सकते हो, “बॉस, मेरी विचार-प्रक्रिया उथली और दिमाग ढीला है; मैंने इतने लंबे समय तक राजनीति का अध्ययन किया है, लेकिन मैंने अपने विचारों में कभी किसी राजनीतिक क्रांति का अनुभव नहीं किया है, इसलिए मामूली आदमी होने के नाते मैं अभी भी ऊपर से आने वाली नीतियाँ या आपका अर्थ नहीं बूझ पाता। मैं आपसे माफी माँगता हूँ।” यह पर्याप्त उत्तर है। क्या यह भूत को धोखा देना है? (हाँ।) या तुम यह भी कह सकते हो, “बॉस की आँखें चमकदार हैं और लोगों की आँखें साफ हैं, लेकिन मैं ही अकेला हूँ जिसकी आँखों में उलझन है : मैं कुछ भी देखने या समझने में असमर्थ हूँ! मैं पार्टी का सदस्य नहीं हूँ, इसलिए मुझमें पार्टी की भावना नहीं है। ये बातें मेरी समझ में नहीं आतीं। हमसे बात करें बॉस, आपके लिए हम ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। आप जो भी कहेंगे, हम सुनेंगे और उस पर अमल करेंगे। यह मेरे लिए काफी है।” क्या यह आसान नहीं है? क्या इससे अपनी स्थिति न बताने का सिद्धांत सधता है? (हाँ, सधता है।) यह अनमनापन और अपनी स्थिति न बताना तुम्हें सुरक्षित रहने देता है। क्या बॉस जानता है कि इससे तुम्हारा क्या मतलब है? वह नहीं जानता। उसे लगता है कि तुम बस मूर्ख हो, और सोचता है, “यह व्यक्ति उन्नति नहीं चाहता। ऐसी अनुकूल परिस्थितियों में ज्यादातर लोग पहले ही उच्च पद पर, शायद महापौर के पद पर भी, पदोन्नत कर दिए गए होते। यह व्यक्ति प्रांतीय गवर्नर हो सकता है, लेकिन यह आगे बढ़ना ही नहीं चाहता, बेवकूफी करता रहता है, और संगठन के करीब नहीं जाता—यह निपट मूर्ख है!” तुम अपने दिल में क्या सोचोगे? “तुम्हारी नजर में मैं मूर्ख हूँ। लेकिन परमेश्वर की नजर में मैं एक भोला-भाला कबूतर हूँ। मैं तुमसे ज्यादा मूल्यवान हूँ। अरे शैतान, तुम एक आधिकारिक पद पर हो और थोड़ा राजनीति में भाग लेते हो, और तुम्हें लगता है कि यह तुम्हें श्रेष्ठ बनाता है। मेरी नजर में तुम एक टिड्डी से बेहतर नहीं हो!” क्या तुम यह कह सकते हो? (नहीं, हम नहीं कह सकते।) तुम यह नहीं कह सकते। सावधान रहो, क्योंकि दीवारों के भी कान होते हैं; तुम घर पर अपने कुत्ते से बात कर सकते हो और इसे वहीं छोड़ सकते हो। इस दुनिया में बहुत कम लोग हैं, जिन पर तुम भरोसा कर सकते हो या जिनसे गुप्त बातें कर सकते हो; इसलिए, सिद्धांत के प्रमुख मुद्दों का सामना करते समय, चाहे राजनीतिक हलकों में हो या किसी सामाजिक समूह में, तुम्हें अपनी स्थिति न बताना सीखना चाहिए, खासकर जब इसमें राजनीति, सत्ता या पक्ष लेना शामिल हो। तुम्हें निश्चित रूप से अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं करनी चाहिए। अगर तुम ऐसा करते हो, तो यह खुद को भुनने के लिए आग पर रखने जैसा है। भुनने के लिए आग पर रखा जाना कैसा लगता है? अगर तुम जानना चाहते हो, तो बस राय व्यक्त करो और देखो। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ, है।) क्या अपनी स्थिति न बताना संभव है? यह इस पर निर्भर करता है कि तुम अपने दिल में किसका अनुसरण करते हो। अगर तुम वास्तव में आधिकारिक करियर का अनुसरण कर रहे हो, अगर तुम अधिकारी बनना चाहते हो, तो न सिर्फ तुम्हें कोई रुख अपनाना होगा, बल्कि तुम अपनी स्थिति स्पष्ट रूप से व्यक्त भी करोगे, और इसे अपने बॉस के सामने करोगे, साथ ही ऊपर की ओर चढ़ोगे—अगर ऐसा है, तो तुम एक बहुत बुरे व्यक्ति का उदाहरण बनकर रह जाओगे। तुम राजनीति से दूर नहीं रह रहे; तुम उसमें भाग ले रहे हो। अगर तुम राजनीति में भाग लेते हो तो लो और दफा हो जाओ। परमेश्वर के घर में मत रहो। तुम एक गैर-विश्वासी हो, तुम दुनिया के हो, शैतान के हो, परमेश्वर के घर के नहीं हो—तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से नहीं हो। भले ही तुम परमेश्वर के घर में रह रहे हो, लेकिन तुम उसमें चोरी-छिपे घुस आए थे, तुम खाने के लिए एक निवाला चाहते थे, आशीष पाना चाहते थे—ऐसे किसी व्यक्ति का यहाँ स्वागत नहीं है। लेकिन, दूसरी ओर, अगर तुम्हारे पास उत्कृष्ट व्यक्तिगत योग्यताएँ हैं और तुम अधिकारी बनने और करियर शुरू करने के कई अवसर पाने की स्थिति में हो, फिर भी तुम करीब जाने, भाग लेने, पक्ष लेने और कोई रुख अपनाने से बच सकते हो, तो तुम राजनीति से दूर रहने में सक्षम हो। क्या तुम्हें ये सिद्धांत याद हैं? क्या ये साध्य हैं? (हाँ, हैं।) देखो, राजनीतिक हलकों में जो भी लोग हमेशा खुद को प्रदर्शित करना चाहते हैं, अलग दिखना चाहते हैं, साथ ही वे भी, जो अपने दृष्टिकोण और रवैये व्यक्त करना चाहते हैं, विशेष रूप से खुद को अभिव्यक्त करने की तीव्र इच्छा रखते हैं—उन सभी का एक ही लक्ष्य होता है : वे किसी आधिकारिक पद पर आसीन होना चाहते हैं। अच्छे ढंग से कहें तो, वे राजनीति में भाग लेना चाहते हैं; लेकिन वास्तव में, वे बस पद पर आसीन होना चाहते हैं, अधिकार पाना चाहते हैं, और अपने पद के जरिये एक अच्छे जीवन का आनंद लेना चाहते हैं। वे अपने पद का उपयोग विभिन्न व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने और अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए करना चाहते हैं। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ, है।) कुछ लोगों में खुद बहुत अच्छे गुण नहीं होते; वे दोषपूर्ण होते हैं। फिर भी वे अधिकारी बनना और राजनीति में भाग लेना चाहते हैं। नतीजतन, वे अपने प्रयासों पर भरोसा कर किसी भी कीमत पर ऊपर चढ़ जाते हैं; वे अपने वरिष्ठों की चापलूसी करते हैं, और सरकारी अधिकारियों के निजी गुर्गों के रूप में कार्य करते हैं। अंततः, वे राजनीति में भाग लेने का अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं और आधिकारिक करियर बनाने का अपना सपना साकार कर लेते हैं।

राजनीति से दूर रहने के संबंध में हमने पाँच सिद्धांतों के बारे में संगति की है। पहला सिद्धांत है किसी पार्टी में शामिल न होना। देखो, किसी भी देश के तमाम शासक किसी राजनीतिक दल से संबंध रखते हैं, अधिनायकवादी देशों के नेताओं का तो कहना ही क्या, वे भी किसी राजनीतिक दल से संबंध रखते हैं। इसलिए राजनीति से दूर रहने का पहला सिद्धांत है किसी पार्टी में शामिल न होना। क्या मैं यही नहीं कह रहा था? (हाँ।) तो, दूसरा सिद्धांत क्या है? (उनके करीब न जाना।) उनके या राजनीतिक हलकों के करीब मत जाओ। तीसरा सिद्धांत क्या है? (भाग न लेना।) बिल्कुल सही कहा, उनकी किसी भी गतिविधि, आंदोलन या वैचारिक चर्चा में भाग न लेना, यानी उनके साथ भाग न लेना। चौथा सिद्धांत क्या है? (पक्ष न लेना।) पक्ष मत लो, उन्हें बहस करने दो कि कौन सही है और कौन गलत; संक्षेप में, तुम किसी का पक्ष न लो। पाँचवाँ सिद्धांत क्या है? (अपनी स्थिति न बताना।) अपनी स्थिति न बताना। कोई कहता है, “अगर तुम अपनी स्थिति नहीं बताते, तो क्या तुम सिर्फ एक क्लेश बनकर नहीं रह जाते?” तुम कहते हो, “मेरी कोई राय नहीं है, मैं बस एक साधारण व्यक्ति हूँ, मेरी शिक्षा ज्यादा नहीं है, मेरी विचार-प्रक्रिया उतनी भव्य नहीं है—मेरी कैसी राय हो सकती है? मैं सिर्फ एक औसत नागरिक हूँ, मुझे अकेला छोड़ दो।” तुम्हारी कभी किसी भी समय कोई राय नहीं होती। जब तुमसे कोई रुख अपनाने के लिए कहा जाता है, तो तुम खर्राटे लेने, सोए होने का नाटक करते हो, और जब लोग देखते हैं कि तुम्हें तरक्की में कोई दिलचस्पी नहीं है, तो वे तुमसे अपनी राय बताने के लिए नहीं कहेंगे, जो पूरी तरह से कारगर रहता है, है न? ये कुल कितने सिद्धांत हैं? (पाँच।) अगर तुम इन पाँच सिद्धांतों का पालन करते हो, तो तुम राजनीति से दूर रह सकते हो और किसी भी राजनीतिक ताकत से प्रभावित, आक्रांत या बाधित नहीं होगे। चाहे शीर्ष राजनीतिक हलकों से निपट रहे हो या निम्न राजनीतिक हलकों से, अगर तुम ये पाँच सिद्धांत व्यवहार में लाते हो, तो तुम राजनीति से दूर रह सकोगे। यह वह विषय है, जो व्यक्ति के पेशेवर करियर पर लागू होता है। बेशक, अगर तुम्हारा कोई पेशा न भी हो, तो भी ये सिद्धांत ऐसे के ऐसे ही, अपरिवर्तित रहेंगे। अगर तुम बेरोजगार भी हो, तो भी तुम्हें राजनीति से दूर रहने के लिए इन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए—सिद्धांत बदलते नहीं। तो तुम्हें राजनीति से दूर क्यों रहना चाहिए? राजनीति क्या है? वह एक संघर्ष है, सत्ता का खेल है। राजनीति साजिश और रणनीति दोनों है। और क्या है राजनीति? राजनीति विभिन्न ताकतों द्वारा छेड़े गए आंदोलन या गतिविधियाँ भी हैं। देखो, तुम लोग समझा भी नहीं सकते कि राजनीति क्या है, फिर भी बड़ा लाल अजगर कलीसिया के लोगों पर राजनीति में शामिल होने का आरोप लगाता है। क्या यह बेतुका नहीं है? क्या जब वे चाहें तब गलती ढूँढ़ना आसान नहीं है? (हाँ, है।) यह स्पष्ट रूप से झूठा आरोप है। कुछ मूर्ख और मंदबुद्धि लोग बड़े लाल अजगर की बकवास सुनने के बाद उसके दबाव में आ जाते हैं और उसके या शैतान के बारे में विवेक लागू करने का साहस नहीं करते। जब भी बड़े लाल अजगर या शैतान को पहचानने का विषय आता है, वे एक कोने में छिप जाते हैं और मुँह खोलने की हिम्मत नहीं करते; वे बस अपना गला साफ करते हैं या भ्रमित होने का नाटक करते हैं। वे किसलिए दिखावा करते हैं? उन्हें दिखावा करने की जरूरत नहीं : वे समझते तक नहीं कि राजनीति क्या है, तो वे राजनीति में भाग कैसे ले सकते हैं? क्या उनके जैसा मूर्ख राजनीति में भाग ले सकता है? इसलिए, ज्यादातर साधारण लोगों के लिए, राजनीति से दूर रहना वास्तव में संभव है। हमने अभी सैद्धांतिक रूप से एक बिंदु पर जोर दिया है, जो कोई मूर्खतापूर्ण बात न करना, अनजाने ही राजनीति में शामिल होने, बिना जाने ही राजनीति से प्रभावित हो जाने और अंततः यह समझे बिना कि क्या हुआ, बलि का बकरा या बलि का पात्र बनने से बचना है। इसलिए, हम इन सिद्धांतों के बारे में संगति क्यों करते हैं, इसका कारण एक ओर तो यह है कि तुम लोगों को यह पता चले कि तुम्हारी बुद्धि राजनीति का वास्तविक सार समझने के लिए पर्याप्त नहीं है। दूसरी ओर, अगर तुम इन सिद्धांतों का अभ्यास करते हो, तो तुम अपनी बेहतर सुरक्षा कर पाओगे और किसी भी स्थिति में या उन स्थितियों में अपना फायदा उठाने देने से बच पाओगे, जिनमें तुम अनजान या नादान होते हो। इन सिद्धांतों का पालन भर करके तुम किसी भी समूह में अपनी काफी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हो। इसलिए, ये सिद्धांत न सिर्फ तुम्हारी सुरक्षा का ताबीज हैं, बल्कि वे सिद्धांत भी हैं जिनका राजनीति के क्षेत्र में पालन करने की सलाह परमेश्वर तुम्हें देता है। इन सिद्धांतों का पालन करके तुम सत्य से मिलने वाले लाभों का आनंद ले सकते हो, और यह भी कहा जा सकता है कि परमेश्वर द्वारा तुम्हारी सुरक्षा की जाती है। अगर तुम्हें लगता है कि परमेश्वर की सुरक्षा अस्पष्ट और खोखली है, और तुम उसे देख या महसूस नहीं कर सकते, तो तुम इन पाँच सिद्धांतों का अभ्यास करना चुन सकते हो। इस तरह, तुम वास्तव में परमेश्वर की सुरक्षा का अनुभव कर सकते हो, जो कि ज्यादा वास्तविक किस्म की सुरक्षा है। यह न सिर्फ अपनी सुरक्षा के लिए परमेश्वर के वचनों का उपयोग करना है, बल्कि परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करके और उन सत्य-सिद्धांतों का पालन करके भी अपनी रक्षा करना है, जो परमेश्वर ने तुम्हारे सामने प्रकट किए हैं। हर हाल में, अंतिम लक्ष्य हासिल हो जाता है, और तुम राजनीति से दूर रहकर लोगों के बुरे समूहों से सुरक्षित रहने, विभिन्न प्रलोभनों और संकटों से बचने में सक्षम रहते हो, और इस तरह स्थिरता, शांति और सुरक्षा की अवस्था में परमेश्वर के सामने अपना तन-मन शांत कर सकते हो, ताकि तुम सत्य का अनुसरण कर सको। लेकिन अगर तुम मूर्ख हो और नहीं जानते कि परमेश्वर द्वारा सिखाए गए सिद्धांतों का पालन कैसे करें, और अलग दिखने और बेतरतीब ढंग से खुद को प्रदर्शित करने की कोशिश करते हो, अक्सर बिना बुद्धि के कार्य करते हो और राजनीति और समूहों से उपजे विभिन्न विवादों और संघर्षों में उलझ जाते हो; अगर तुम अक्सर विभिन्न जालों और प्रलोभनों में फँस जाते हो, और तुम्हारा दैनिक जीवन इन चीजों से प्रभावित और परेशान होता है, और तुम अपना सारा समय विवादों और अशांति से जुड़े इन संघर्षों को सँभालने और हल करने में बिताते हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम्हारा हृदय कभी परमेश्वर के सामने नहीं आएगा, और तुम वास्तव में उसके सामने कभी शांत नहीं होगे। अगर तुम इसे थोड़ा-सा भी हासिल नहीं कर सकते, तो परमेश्वर के वचनों को समझने, सत्य को जानने या समझने, सत्य का अभ्यास करने और बचाए जाने के लिए सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलने की तुम्हारी कोई उम्मीद नहीं। अगर तुम इन चीजों में फँस गए हो, तो यह शैतान द्वारा फँसाए जाने के बराबर है। अगर तुम्हारे पास इन मामलों को सँभालने के लिए सिद्धांत नहीं हैं, तो ये चीजें तुम्हारे परम अंत को निगल जाएँगी। तुम्हारा दैनिक जीवन, तुम्हारा हृदय और तुम्हारा जीवन इन विवादों और संघर्षों में उलझ जाएगा। तुम सिर्फ यह सोचोगे कि इन चीजों से कैसे छुटकारा पाया जाए, उन लोगों से कैसे लड़ा-झगड़ा जाए, और अपनी बेगुनाही साबित कर न्याय की माँग कैसे की जाए। नतीजतन, जितना ज्यादा तुम इन मामलों में फँसते हो, उतना ही ज्यादा तुम जल्दी से अपनी बेगुनाही साबित करना, न्याय की माँग करना और स्पष्टीकरण प्राप्त करना चाहते हो, और तुम्हारा दिल उतना ही ज्यादा अराजक और जटिल हो जाएगा। तुम्हारा बाहरी परिवेश जितना ज्यादा जटिल होगा, तुम्हारा आंतरिक अस्तित्व उतना ही ज्यादा जटिल हो जाएगा, और तुम्हारा बाहरी परिवेश जितना ज्यादा अराजक होगा, तुम्हारा आंतरिक अस्तित्व उतना ही ज्यादा अराजक हो जाएगा। इस तरह, तुम पूरी तरह से खत्म हो जाओगे, तुम शैतान द्वारा नियंत्रित कर बंदी बना लिए जाओगे। अगर तुम अभी भी सत्य का अनुसरण करना और बचाए जाना चाहते हो, तो यह असंभव होगा! तुम उद्धार से परे, पूरी तरह से बेकार होगे। तब तक, तुम कहोगे, “मुझे इस सब पर पछतावा है। शैतान का राजनीतिक दायरा दलदल के सिवाय कुछ नहीं! अगर मुझे पता होता तो मैं परमेश्वर की बातें सुनता।” मैंने तुम्हें बहुत पहले ही बता दिया था, लेकिन तुमने मुझ पर विश्वास नहीं किया। तुमने उनसे स्पष्टीकरण प्राप्त करने, उनके मुँह से उचित शब्द, प्रशंसा और मान्यता का शब्द प्राप्त करने पर जोर दिया। तुमने परमेश्वर द्वारा बताए गए सिद्धांतों और मानदंडों का पालन करने से इनकार कर दिया, इसलिए तुम मरने तक उनके साथ घसीटे जाने लायक हो। अंत में, शैतान नष्ट हो जाएगा, और तुम भी उसके साथ नष्ट हो जाओगे, उसका अंतिम संस्कार बन जाओगे। तुम इसी लायक हो! तुमसे शैतान का अनुसरण किसने कराया? तुम्हें शैतान से स्पष्टीकरण माँगने के लिए किसने प्रेरित किया? तुम्हें इतना मूर्ख किसने बनाया? परमेश्वर ने तुम्हें बुद्धि दी, लेकिन तुमने उसका इस्तेमाल नहीं किया। उसने तुम्हें सिद्धांत दिए, लेकिन तुमने उनका पालन नहीं किया। तुमने अपनी राह पर चलने, अपने दिमाग, प्रतिभाओं और गुणों से उन लोगों के खिलाफ लड़ने पर जोर दिया। क्या तुम शैतान को हरा सकते हो? इसके अलावा, शैतान के खिलाफ लड़ना वह काम नहीं है, जो परमेश्वर ने तुम्हें सौंपा है। परमेश्वर ने तुम्हें अपने मार्ग पर चलने का काम सौंपा है, न कि शैतान से लड़ने का। तुम्हारे लिए उसके खिलाफ लड़ना कोई मायने नहीं रखता। परमेश्वर इसका स्मरण नहीं करता। अगर तुम उसे हरा भी दो, तो भी तुम्हें उद्धार प्राप्त नहीं होगा। अब समझे? इसलिए, उद्योग और राजनीति के दायरे में, तुम्हें ये सिद्धांत याद रखने चाहिए, जिनका लोगों को पालन करना चाहिए। शायद तुम लोगों में से जो लोग वर्तमान में पूर्णकालिक रूप से अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, उन्हें ये वचन अवास्तविक और अपेक्षाकृत अपरिचित लगें। लेकिन कम से कम, ये तुम्हें यह जानने देते हैं कि राजनीति क्या है, तुम्हें राजनीति को कैसे लेना चाहिए, उन लोगों को कैसे देखना चाहिए जो राजनीतिक दायरे में रहते हैं या राजनीतिक संभावनाओं के पीछे दौड़ते हैं, और अगर वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं तो उनकी समस्याएँ हल करने में उनकी मदद कैसे करें। ये वे सबसे बुनियादी चीजें हैं, जो तुम्हें जाननी चाहिए। अगर तुम ये सिद्धांत पूरी तरह से समझ और स्वीकार लेते हो, तो तुम उनकी मदद करने में सक्षम होगे, और जब तुम्हारा सामना ऐसे लोगों से होगा, तो तुम संबंधित सिद्धांतों का उपयोग करके उनकी समस्याएँ सँभालने और हल करने में सक्षम होगे। खैर, आओ राजनीति से दूर रहने के विषय पर अपनी संगति यहीं समाप्त करते हैं। अलविदा!

18 जून, 2023

पिछला: सत्य का अनुसरण कैसे करें (20)

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