980 परमेश्वर की अपेक्षाओं से तुम कितने कम हो?
1 तुम लोग कुछ भी मानो, मैं जो कहता और करता हूँ उसका आशय तुम लोगों को यह महसूस करवाना नहीं है, मानो तुम लोगों के उत्साह को मारा जा रहा है। बल्कि, यह परमेश्वर के इरादों के बारे में तुम लोग की समझ को बेहतर करने के लिए है और परमेश्वर क्या सोच रहा है, वो क्या करना चाहता है, वो किस प्रकार के व्यक्ति को पसंद करता है, किससे घृणा करता है, किसे तुच्छ समझता है, वो किस प्रकार के व्यक्ति को पाना चाहता है, और किस प्रकार के व्यक्ति को ठुकराता है, इस पर तुम लोगों की समझ को बेहतर करने के लिए है। यह तुम लोगों के मन को स्पष्टता देने, तुम्हें स्पष्ट रूप से यह जानने में सहायता करने के आशय से है कि तुम लोगों में से हर एक व्यक्ति के कार्य और विचार उस मानक से कितनी दूर भटक गए हैं जिसकी अपेक्षा परमेश्वर करता है।
2 क्योंकि मैं जानता हूँ तुम लोगों ने लंबे समय तक विश्वास किया है, और बहुत उपदेश सुने हैं, लेकिन तुम लोगों में इन्हीं चीज़ों का अभाव है। हालाँकि, तुम लोगों ने अपनी पुस्तिका में हर सत्य लिख लिया है, तुम लोगों ने उसे भी कंठस्त और अपने हृदय में दर्ज कर लिया है जिसे तुम लोग महत्वपूर्ण मानते हो, हालाँकि तुम लोग अभ्यास करते समय परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए इसका उपयोग करने, अपनी आवश्यकता में इसका उपयोग करने, या आने वाले मुश्किल समय को काटने की खातिर इसका उपयोग करने की योजना बनाते हो, या फिर केवल इन चीज़ों को जीवन में अपने साथ रहने देना चाहते हो।
3 यदि तुम केवल अभ्यास कर रहे हो, फिर चाहे जैसे भी करो, केवल अभ्यास कर रहे हो, तो यह महत्वपूर्ण नहीं है। तब सबसे अधिक महत्वपूर्ण क्या है? महत्वपूर्ण यह है कि जब तुम अभ्यास कर रहे होते हो, तब तुम्हें अंतर्मन में पूरे यकीन से पता होना चाहिए कि तुम्हारा हर एक कार्य, हर एक कर्म परमेश्वर की इच्छानुसार है या नहीं, तुम्हारा हर कार्यकलाप, तुम्हारी हर सोच और जो परिणाम एवं लक्ष्य तुम हासिल करना चाहते हो, वे वास्तव में परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट करते हैं या नहीं, परमेश्वर की माँगों को पूरा करते हैं या नहीं, और परमेश्वर उन्हें स्वीकृति देता है या नहीं। ये सारी बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर का स्वभाव और उसका कार्य जो परिणाम हासिल करेगा, उसे कैसे जानें' से रूपांतरित