3. पौलुस के शब्दों के आधार पर, जिसने कहा था कि "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है" (2 तीमुथियुस 3:16), धार्मिक दुनिया के पादरियों और एल्डर्स का मानना है कि बाइबल के शब्द परमेश्वर के वचन हैं। फिर भी आप कहते हैं कि बाइबल के सभी शब्द परमेश्वर के वचन नहीं हैं। इससे आपका तात्पर्य क्या है?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

आज लोग यह विश्वास करते हैं कि बाइबल परमेश्वर है और परमेश्वर बाइबल है। इसलिए वे यह भी विश्वास करते हैं कि बाइबल के सारे वचन ही वे वचन हैं, जिन्हें परमेश्वर ने बोला था, और कि वे सब परमेश्वर द्वारा बोले गए वचन थे। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे यह भी मानते हैं कि यद्यपि पुराने और नए नियम की सभी छियासठ पुस्तकें लोगों द्वारा लिखी गई थीं, फिर भी वे सभी परमेश्वर की अभिप्रेरणा द्वारा दी गई थीं, और वे पवित्र आत्मा के कथनों के अभिलेख हैं। यह मनुष्य की गलत समझ है, और यह तथ्यों से पूरी तरह मेल नहीं खाती। वास्तव में, भविष्यवाणियों की पुस्तकों को छोड़कर, पुराने नियम का अधिकांश भाग ऐतिहासिक अभिलेख है। नए नियम के कुछ धर्मपत्र लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों से आए हैं, और कुछ पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से आए हैं; उदाहरण के लिए, पौलुस के धर्मपत्र एक मनुष्य के कार्य से उत्पन्न हुए थे, वे सभी पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता के परिणाम थे, और वे कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे, और वे कलीसियाओं के भाइयों एवं बहनों के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन के वचन थे। वे पवित्र आत्मा द्वारा बोले गए वचन नहीं थे—पौलुस पवित्र आत्मा की ओर से नहीं बोल सकता था, और न ही वह कोई नबी था, और उसने उन दर्शनों को तो बिलकुल नहीं देखा था जिन्हें यूहन्ना ने देखा था। उसके धर्मपत्र इफिसुस, फिलेदिलफिया और गलातिया की कलीसियाओं, और अन्य कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे। और इस प्रकार, नए नियम में पौलुस के धर्मपत्र वे धर्मपत्र हैं, जिन्हें पौलुस ने कलीसियाओं के लिए लिखा था, और वे पवित्र आत्मा की अभिप्रेरणाएँ नहीं हैं, न ही वे पवित्र आत्मा के प्रत्यक्ष कथन हैं। वे महज प्रेरणा, सुविधा और प्रोत्साहन के वचन हैं, जिन्हें उसने अपने कार्य के दौरान कलीसियाओं के लिए लिखा था। इस प्रकार वे पौलुस के उस समय के अधिकांश कार्य के अभिलेख भी हैं। वे प्रभु में विश्वास करने वाले सभी भाई-बहनों के लिए लिखे गए थे, ताकि उस समय कलीसियाओं के भाई-बहन उसकी सलाह मानें और प्रभु यीशु द्वारा बताए गए पश्चात्ताप के मार्ग पर बने रहें। किसी भी तरह से पौलुस ने यह नहीं कहा कि, चाहे वे उस समय की कलीसियाएँ हों या भविष्य की, सभी को उसके द्वारा लिखी गई चीज़ों को खाना और पीना चाहिए, न ही उसने कहा कि उसके सभी वचन परमेश्वर से आए हैं। उस समय की कलीसियाओं की परिस्थितियों के अनुसार, उसने बस भाइयों एवं बहनों से संवाद किया था और उन्हें प्रोत्साहित किया था, और उन्हें उनके विश्वास में प्रेरित किया था, और उसने बस लोगों में प्रचार किया था या उन्हें स्मरण दिलाया था और उन्हें प्रोत्साहित किया था। उसके वचन उसके स्वयं के दायित्व पर आधारित थे, और उसने इन वचनों के जरिये लोगों को सहारा दिया था। उसने उस समय की कलीसियाओं के प्रेरित का कार्य किया था, वह एक कार्यकर्ता था जिसे प्रभु यीशु द्वारा इस्तेमाल किया गया था, और इस प्रकार कलीसियाओं की ज़िम्मेदारी लेने और कलीसियाओं का कार्य करने के लिए उसे भाइयों एवं बहनों की स्थितियों के बारे में जानना था—और इसी कारण उसने प्रभु में विश्वास करने वाले सभी भाइयों एवं बहनों के लिए धर्मपत्र लिखे थे। यह सही है कि जो कुछ भी उसने कहा, वह लोगों के लिए शिक्षाप्रद और सकारात्मक था, किंतु वह पवित्र आत्मा के कथनों का प्रतिनिधित्व नहीं करता था, और वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता था। यह एक बेहद गलत समझ और एक ज़बरदस्त ईश-निंदा है कि लोग एक मनुष्य के अनुभवों के अभिलेखों और धर्मपत्रों को पवित्र आत्मा द्वारा कलीसियाओं को बोले गए वचनों के रूप में लें! यह पौलुस द्वारा कलीसियाओं के लिए लिखे गए धर्मपत्रों के संबंध में विशेष रूप से सत्य है, क्योंकि उसके धर्मपत्र उस समय प्रत्येक कलीसिया की परिस्थितियों और उनकी स्थिति के आधार पर भाइयों एवं बहनों के लिए लिखे गए थे, और वे प्रभु में विश्वास करने वाले भाइयों एवं बहनों को प्रेरित करने के लिए थे, ताकि वे प्रभु यीशु का अनुग्रह प्राप्त कर सकें। उसके धर्मपत्र उस समय के भाइयों एवं बहनों को जाग्रत करने के लिए थे। ऐसा कहा जा सकता है कि यह उसका स्वयं का दायित्व था, और यह वह दायित्व भी था, जो उसे पवित्र आत्मा द्वारा दिया गया था; आखिरकार, वह एक प्रेरित था जिसने उस समय की कलीसियाओं की अगुआई की थी, जिसने कलीसियाओं के लिए धर्मपत्र लिखे थे और उन्हें प्रोत्साहित किया था—यह उसकी जिम्मेदारी थी। उसकी पहचान मात्र काम करने वाले एक प्रेरित की थी, और वह मात्र एक प्रेरित था जिसे परमेश्वर द्वारा भेजा गया था; वह नबी नहीं था, और न ही भविष्यवक्ता था। उसके लिए उसका कार्य और भाइयों एवं बहनों का जीवन अत्यधिक महत्वपूर्ण था। इस प्रकार, वह पवित्र आत्मा की ओर से नहीं बोल सकता था। उसके वचन पवित्र आत्मा के वचन नहीं थे, और उन्हें परमेश्वर के वचन तो बिलकुल भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पौलुस परमेश्वर के एक प्राणी से बढ़कर कुछ नहीं था, और वह परमेश्वर का देहधारण तो निश्चित रूप से नहीं था। उसकी पहचान यीशु के समान नहीं थी। यीशु के वचन पवित्र आत्मा के वचन थे, वे परमेश्वर के वचन थे, क्योंकि उसकी पहचान मसीह—परमेश्वर के पुत्र की थी। पौलुस उसके बराबर कैसे हो सकता है? यदि लोग पौलुस जैसों के धर्मपत्रों या शब्दों को पवित्र आत्मा के कथनों के रूप में देखते हैं, और उनकी परमेश्वर के रूप में आराधना करते हैं, तो सिर्फ यह कहा जा सकता है कि वे बहुत ही अधिक अविवेकी हैं। और अधिक कड़े शब्दों में कहा जाए तो, क्या यह स्पष्ट रूप से ईश-निंदा नहीं है? कोई मनुष्य परमेश्वर की ओर से कैसे बात कर सकता है? और लोग उसके धर्मपत्रों के अभिलेखों और उसके द्वारा बोले गए वचनों के सामने इस तरह कैसे झुक सकते हैं, मानो वे कोई पवित्र पुस्तक या स्वर्गिक पुस्तक हों। क्या परमेश्वर के वचन किसी मनुष्य के द्वारा बस यों ही बोले जा सकते हैं? कोई मनुष्य परमेश्वर की ओर से कैसे बोल सकता है? तो, तुम क्या कहते हो—क्या वे धर्मपत्र, जिन्हें उसने कलीसियाओं के लिए लिखा था, उसके स्वयं के विचारों से दूषित नहीं हो सकते? वे मानवीय विचारों द्वारा दूषित कैसे नहीं हो सकते? उसने अपने व्यक्तिगत अनुभवों और अपने ज्ञान के आधार पर कलीसियाओं के लिए धर्मपत्र लिखे थे। उदाहरण के लिए, पौलुस ने गलातियाई कलीसियाओं को एक धर्मपत्र लिखा, जिसमें एक निश्चित राय थी, और पतरस ने दूसरा धर्मपत्र लिखा, जिसमें दूसरा विचार था। उनमें से कौन-सा पवित्र आत्मा से आया था? कोई निश्चित तौर पर नहीं कह सकता। इस प्रकार, सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि उन दोनों ने कलीसियाओं के लिए दायित्व वहन किया था, फिर भी उनके पत्र उनके आध्यात्मिक कद का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे भाइयों एवं बहनों के लिए उनके पोषण एवं समर्थन का, और कलीसियाओं के प्रति उनके दायित्व का प्रतिनिधित्व करते हैं, और वे केवल मनुष्य के कार्य का प्रतिनिधित्व करते हैं; वे पूरी तरह से पवित्र आत्मा के नहीं थे। यदि तुम कहते हो कि उसके धर्मपत्र पवित्र आत्मा के वचन हैं, तो तुम बेतुके हो, और तुम ईश-निंदा कर रहे हो! पौलुस के धर्मपत्र और नए नियम के अन्य धर्मपत्र बहुत हाल की आध्यात्मिक हस्तियों के संस्मरणों के बराबर हैं : वे वाचमैन नी की पुस्तकों या लॉरेंस आदि के अनुभवों के समतुल्य हैं। सीधी-सी बात है कि हाल ही की आध्यात्मिक हस्तियों की पुस्तकों को नए नियम में संकलित नहीं किया गया है, फिर भी इन लोगों का सार एकसमान था : वे पवित्र आत्मा द्वारा एक निश्चित अवधि के दौरान इस्तेमाल किए गए लोग थे, और वे सीधे परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते थे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (3)

पुराने विधान के व्यवस्था के युग के दौरान यहोवा द्वारा बड़ी संख्या में खड़े किए गए नबियों ने उसके लिए भविष्यवाणी की, उन्होंने विभिन्न कबीलों एवं राष्ट्रों को निर्देश दिए, और यहोवा द्वारा किए जाने वाले कार्य की भविष्यवाणी की। इन सभी खड़े किए गए लोगों को यहोवा द्वारा भविष्यवाणी की आत्मा दी गई थी: वे यहोवा से उसके दर्शन प्राप्त करने और उसकी आवाज़ सुनने में सक्षम थे, और इस प्रकार वे उसके द्वारा प्रेरित थे और उन्होंने भविष्यवाणियाँ लिखीं। उन्होंने जो कार्य किया, वह यहोवा की आवाज़ की अभिव्यक्ति था, यहोवा की भविष्यवाणी की अभिव्यक्ति था, और उस समय यहोवा का कार्य केवल पवित्रात्मा का उपयोग करके लोगों का मार्गदर्शन करना था; वह देहधारी नहीं हुआ, और लोगों ने उसका चेहरा नहीं देखा। इस प्रकार, उसने अपना कार्य करने के लिए बहुत-से नबियों को खड़ा किया और उन्हें आकाशवाणियाँ दीं, जिन्हें उन्होंने इस्राएल के प्रत्येक कबीले और कुटुंब को सौंप दिया। उनका कार्य भविष्यवाणी करना था, और उनमें से कुछ ने अन्य लोगों को दिखाने के लिए उन्हें यहोवा के निर्देश लिखकर दिए। यहोवा ने इन लोगों को भविष्यवाणी करने, भविष्य के कार्य या उस कार्य के बारे में पूर्वकथन कहने के लिए खड़ा किया था जो उस युग के दौरान अभी किया जाना था, ताकि लोग यहोवा की चमत्कारिकता एवं बुद्धि को देख सकें। भविष्यवाणी की ये पुस्तकें बाइबल की अन्य पुस्तकों से काफी अलग थीं; वे उन लोगों द्वारा बोले या लिखे गए वचन थे, जिन्हें भविष्यवाणी की आत्मा दी गई थी—उनके द्वारा, जिन्होंने यहोवा के दर्शनों या आवाज़ को प्राप्त किया था। भविष्यवाणी की पुस्तकों के अलावा, पुराने विधान में हर चीज़ उन अभिलेखों से बनी है, जिन्हें लोगों द्वारा तब तैयार किया गया था, जब यहोवा ने अपना काम समाप्त कर लिया था। ये पुस्तकें यहोवा द्वारा खड़े किए गए नबियों द्वारा की गई भविष्यवाणियों का स्थान नहीं ले सकतीं, बिलकुल वैसे ही जैसे उत्पत्ति और निर्गमन की तुलना यशायाह की पुस्तक और दानिय्येल की पुस्तक से नहीं की जा सकती। भविष्यवाणियाँ कार्य पूरा होने से पहले की गई थीं; जबकि अन्य पुस्तकें कार्य पूरा होने के बाद लिखी गई थीं, जिसे करने में वे लोग समर्थ थे। उस समय के नबी यहोवा द्वारा प्रेरित थे और उन्होंने कुछ भविष्यवाणियाँ कीं, उन्होंने कई वचन बोले, और अनुग्रह के युग की चीजों, और साथ ही अंत के दिनों में संसार के विनाश—वह कार्य, जिसे करने की यहोवा की योजना थी—के बारे में भविष्यवाणी की। बाकी सभी पुस्तकों में यहोवा के द्वारा इस्राएल में किए गए कार्य को दर्ज किया गया है। ... इस तरह, बाइबल के पुराने विधान में जो कुछ भी दर्ज है, वह केवल उस समय इस्राएल में किया गया परमेश्वर का कार्य है। नबियों द्वारा, यशायाह, दानिय्येल, यिर्मयाह और यहेज़केल द्वारा बोले गए वचन ... उनके वचन पृथ्वी पर उसके अन्य कार्य के बारे में पूर्वकथन करते हैं, वे यहोवा स्वयं परमेश्वर के कार्य का पूर्वकथन करते हैं। यह सब-कुछ परमेश्वर से आया, यह पवित्र आत्मा का कार्य था, और नबियों की इन पुस्तकों के अलावा, बाकी हर चीज़ उस समय यहोवा के कार्य के बारे में लोगों के अनुभवों का अभिलेख है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1)

बाइबल में हर चीज़ परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से बोले गए वचनों का अभिलेख नहीं है। बाइबल बस परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरण दर्ज करती है, जिनमें से एक भाग नबियों की भविष्यवाणियों का अभिलेख है, और दूसरा भाग युगों-युगों में परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए गए लोगों द्वारा लिखे गए अनुभवों और ज्ञान का अभिलेख है। मनुष्य के अनुभव उसके मतों और ज्ञान से दूषित होते हैं, और यह एक अपरिहार्य चीज़ है। बाइबल की कई पुस्तकों में मनुष्य की धारणाएँ, पूर्वाग्रह और बेतुकी समझ शामिल हैं। बेशक, अधिकतर वचन पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी का परिणाम हैं और वे सही समझ हैं—फिर भी अभी यह नहीं कहा जा सकता कि वे पूरी तरह से सत्य की सटीक अभिव्यक्ति हैं। कुछ चीज़ों पर उनके विचार व्यक्तिगत अनुभव से प्राप्त ज्ञान या पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से बढ़कर कुछ नहीं हैं। नबियों के पूर्वकथन परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से निर्देशित किए गए थे : यशायाह, दानिय्येल, एज्रा, यिर्मयाह और यहेजकेल जैसों की भविष्यवाणियाँ पवित्र आत्मा के सीधे निर्देशन से आई थीं; ये लोग द्रष्टा थे, उन्होंने भविष्यवाणी के आत्मा को प्राप्त किया था, और वे सभी पुराने नियम के नबी थे। व्यवस्था के युग के दौरान यहोवा की अभिप्रेरणाओं को प्राप्त करने वाले लोगों ने अनेक भविष्यवाणियाँ की थीं, जिन्हें सीधे यहोवा के द्वारा निर्देशित किया गया था।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (3)

संदर्भ के लिए धर्मोपदेश और संगति के उद्धरण :

बाइबल की रचना कैसे हुई और वह कब अस्तित्व में आई? व्यवस्था के युग के दौरान, यहूदी केवल पुराने नियम को ही पवित्रशास्त्र के रूप में संदर्भित करते थे। बाद में, प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य किया, और उसके तीन सौ से अधिक वर्षों के बाद कुछ कलीसिया-अगुआओं ने एक परिषद का आयोजन किया और प्रभु यीशु के शिष्यों और प्रेरितों द्वारा लिखी गई सभी पत्रियों को एकत्र करने का निर्णय लिया। अंतत:, बहुत विचार-विमर्श के बाद, उन्होंने उनमें से 27 को नए नियम के धर्मविधान के रूप में चुना, जिसे उन्होंने पुराने नियम के साथ मिलाकर बाइबल की संपूर्ण विषयवस्तु तैयार की। ये नए और पुराने नियम की उत्पत्ति के तथ्य हैं, और यह बाइबल की आंतरिक कहानी है। बहुत-से लोग मानते हैं कि बाइबल परमेश्वर से आई; विशेषकर तीमुथियुस के नाम पौलुस के दूसरे पत्र में यह कहा गया है, "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है।" वास्तव में, जब पौलुस ने ये शब्द कहे थे, तब तक नए नियम को पुस्तक का रूप नहीं दिया गया था; इस संदर्भ में, जिस पवित्रशास्त्र का उल्लेख पौलुस कर रहा था, वह पुराना नियम था, नया नियम नहीं। यह तथ्य है। लेकिन अंत के दिनों के लोग मानते हैं कि जिस पवित्रशास्त्र की पौलुस ने बात की थी, वह पूरी बाइबल—नया और पुराना नियम—है। यह तथ्यों के विपरीत है। यह एक गलत व्याख्या है, एक भ्रांति है। इसके अलावा, क्या यह दावा करना उचित है कि सारा पुराना नियम परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा गया था? व्यवस्था के युग का कार्य परमेश्वर द्वारा मूसा का उपयोग करके किया गया था। पुराने नियम की पहली पाँच पुस्तकें भी मूसा द्वारा लिखी गई थीं। यह कहना उचित है कि परमेश्वर के व्यवस्था के युग के कार्य को उससे बेहतर किसी ने नहीं समझा था। तो क्या अपनी पाँच पुस्तकों में मूसा ने कहा था कि उसके द्वारा लिखे गए सभी शब्द परमेश्वर की प्रेरणा से दिए गए थे? पहले तो, उसने यह नहीं कहा। दूसरे, व्यवस्था के युग में परमेश्वर द्वारा उपयोग किए गए नबियों—जैसे कि यशायाह, यिर्मयाह, यहेजकेल, दानिय्येल आदि—में से भी किसी ने यह नहीं कहा। केवल पौलुस ने ही कहा कि पवित्रशास्त्र परमेश्वर से प्रेरित है। यदि केवल पौलुस ने ही ऐसा कहा, तो ऐसे शब्द शायद ही मान्य कहे जा सकते हैं। इसलिए हमें इन शब्दों को आधार नहीं बनाना चाहिए।

इसके अतिरिक्त, कलीसियाओं में भाई-बहनों ने पतरस, पौलुस और अन्य लोगों द्वारा लिखी गई पत्रियों के बारे में क्या सोचा, जब उन्हें कलीसियाओं में भेजा गया था? उन्होंने कहा होगा, "यह भाई पतरस की चिट्ठी है," "यह भाई पौलुस की चिट्ठी है," "यह मत्ती की चिट्ठी है।" ... क्या किसी ने इन प्रेरितों के पत्रों को उस समय परमेश्वर के वचन के रूप में माना होगा? बिलकुल नहीं, क्योंकि पतरस, मत्ती और अन्य लोगों ने कभी नहीं कहा कि वे परमेश्वर हैं या कि वे देहधारी हैं; उन्होंने कहा कि वे प्रभु यीशु में विश्वास करते हैं और प्रभु यीशु के शिष्य हैं, इसलिए कलीसिया के भाई-बहन उन्हें भाई और उनके पत्रों और शब्दों को भाइयों की संगति और गवाही मानते थे। यह पूरी तरह से सटीक और ऐतिहासिक तथ्यों के अनुरूप है। लेकिन आज सभी संप्रदायों के लोग इन प्रेरितों के शब्दों को परमेश्वर से प्रेरित मानते हैं। वे उन्हें परमेश्वर के वचन मानते हैं और उन्हें परमेश्वर के वचनों के समकक्ष रखते हैं। क्या यह ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत नहीं है? उन्हें नहीं लगता कि मनुष्यों के इन शब्दों को परमेश्वर के वचन मानने में कुछ भी गलत है। जब लोग उनकी गलती बताते हैं, तो वे अपने बचाव में बाइबल में दिए गए पौलुस के शब्द दिखाते हैं—लेकिन क्या पौलुस के शब्दों का कोई आधार है? प्रेरितों के पत्रों में, पतरस ने कहा कि पौलुस के पत्रों में पवित्र आत्मा के प्रकाशन और कार्य शामिल हैं। लेकिन पतरस ने कभी नहीं कहा कि पौलुस के शब्द पवित्र आत्मा से प्रेरित हैं, और उन्हें परमेश्वर के वचनों के रूप में माना जाना चाहिए, न ही पौलुस ने यह कहने का साहस किया कि उसके वचन परमेश्वर द्वारा प्रेरित हैं। न तो पौलुस ने और न ही पतरस ने गवाही दी कि उनके शब्द परमेश्वर के वचन हैं, तो फिर अंत के दिनों के विश्वासी उनके शब्दों को परमेश्वर के वचन कैसे मान सकते हैं? वे क्या गलती कर रहे हैं? क्या इन प्रतिपादकों की व्याख्या सही है? वे नहीं जानते कि यह कितनी हास्यास्पद त्रुटि है, वे इसे नहीं देख सकते, जिससे पता चलता है कि वे सत्य से रहित हैं। लेकिन लोग फिर भी आँख मूँदकर आराधना और विश्वास करते हैं; वे जो कहते हैं, वही लोग मानते हैं। इसमें, क्या लोगों में विवेक की अविश्वसनीय रूप से कमी नहीं है? धर्म के लोग बाइबल में अंधविश्वास रखते हैं, वे बाइबल की आराधना करते हैं, वे उसे परमेश्वर से भी ऊँचा मानते हैं, वे मानते हैं कि बाइबल परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करती है, और वे सब-कुछ का आधार बाइबल को बनाते हैं। क्या उनका बाइबल की इस हद तक आराधना करना और उसमें इस हद तक अंधविश्वास रखना हास्यास्पद नहीं है? और बाइबल में उनका अंधविश्वास क्या रूप लेता है? वे उसे ऐतिहासिक तथ्य के नजरिए से देखने में असमर्थ हैं, और वे सत्य का अनुसरण नहीं करते और पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी की तलाश नहीं करते। इसके बजाय, वे आँख मूँदकर प्रसिद्ध व्यक्तियों की आराधना करते हैं, और उनमें से कोई भी जो कुछ भी कहता है, उस पर भरोसा करते हैं, उसे स्वीकार करते हैं और उसे कठोरता से लागू करते हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि मनुष्यों के शब्द कभी गलत न हों? क्या ऐसा हो सकता है कि पौलुस ने जो कुछ कहा, वह सही ही हो? पौलुस एक मनुष्य था—और एक मनुष्य के रूप में वह दूषित कैसे नहीं हो सकता था? इसलिए, लोगों का प्रेरितों के पत्रों को परमेश्वर के वचनों के बराबर रखना एक गंभीर भूल है। बाइबल में परमेश्वर के वचन परमेश्वर के वचन हैं, और मनुष्यों के शब्द मनुष्यों के शब्द हैं। उन दोनों को समान नहीं माना जा सकता। तो बाइबल में परमेश्वर के वचन कौन-से हैं? यहोवा परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से बोले गए सभी वचन, जिन्हें यहोवा परमेश्वर ने नबियों को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया था, और प्रभु यीशु द्वारा व्यक्तिगत रूप से बोले गए वचन—केवल ये ही परमेश्वर के वचन हैं। और तुम्हें क्या लगता है, बाइबल में नबियों द्वारा बोले गए सभी वचनों में क्या खास बात है? उन सबने कहा, "यहोवा यों कहता है" और "यहोवा ने यों कहा।" उन्होंने यह नहीं कहा, "मैं, दानिय्येल (या यशायाह) तुमसे यह कहता हूँ।" इससे लोगों को यह स्पष्ट हो जाता है कि नबी परमेश्वर के मूल वचनों को आगे बढ़ा रहे थे। इसलिए, नबियों द्वारा आगे बढ़ाए गए परमेश्वर के मूल वचन ही परमेश्वर के वचन हैं, यहोवा परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से बोले गए वचन ही परमेश्वर के वचन हैं, और प्रभु यीशु द्वारा व्यक्तिगत रूप से बोले गए वचन ही परमेश्वर के वचन हैं। बाइबल में इनके अलावा कुछ भी परमेश्वर के वचन नहीं है; प्रेरितों द्वारा बोले गए शब्द और परमेश्वर के सेवकों द्वारा दर्ज की गई घटनाएँ केवल मनुष्यों की गवाहियाँ हैं।

—ऊपर से संगति

पिछला: 2. आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है, कि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं, और यह कि परमेश्वर के घर से शुरू होने वाले न्याय के कार्य को करने के लिए वह सत्य को व्यक्त कर रहा है। फिर भी पादरियों और एल्डर्स का कहना है कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में दर्ज हैं, और यह कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो बाइबल की सच्चाईयों में शामिल न किया गया हो। वे कहते हैं कि बाइबल के बाहर परमेश्वर का कोई भी वचन और कार्य नहीं हो सकता, और बाइबल के बाहर जो कुछ है, वह विधर्म है। हमें इस मुद्दे के साथ कैसे पेश आना चाहिए चाहिए?

अगला: 4. मैं बीस साल से अधिक समय से बाइबल का अध्ययन करता रहा हूँ। मैंने जाना है कि हालाँकि बाइबल अलग-अलग समय में 40 से अधिक अलग-अलग लेखकों द्वारा लिखी गई थी, इसमें एक भी भूल नहीं है। इससे साबित होता है कि परमेश्वर बाइबल का वास्तविक लेखक है, और यह कि समस्त पवित्र शास्त्र पवित्र आत्मा से आता है।

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1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

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