5. आप गवाही देते हैं कि प्रभु अंतिम दिनों के न्याय का कार्य करने के लिए लौटा है, लेकिन प्रभु यीशु ने कहा था, "क्योंकि यदि मैं न जाऊँ तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा; परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेजूँगा। वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरुत्तर करेगा" (यूहन्ना 16:7-8)। हम मानते हैं कि प्रभु यीशु के पुनरुत्थान और आरोहण के बाद, पवित्र आत्मा पिन्तेकुस्त के दौरान मनुष्य पर कार्य करने के लिए, पाप की दुनिया को फटकारने के लिए, और धार्मिकता तथा न्याय के लिए, नीचे आया। जब तक हम अपने पापों को स्वीकार करते हैं और प्रभु के प्रति पश्चाताप करते हैं, तब तक हमें पवित्र आत्मा द्वारा तिरस्कृत और अनुशासित किया जाएगा, और यही प्रभु के द्वारा हमारे प्रति किया गया न्याय है। तो आखिर, अंतिम दिनों के न्याय के कार्य जिसकी आप बात कर रहे हैं, और प्रभु यीशु के कार्य के बीच क्या अंतर है?
उत्तर :
पूरी तरह से, प्रभु यीशु के इन वचनों के आधार पर कि "क्योंकि यदि मैं न जाऊँ तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा; परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेजूँगा। वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरुत्तर करेगा" (यूहन्ना 16:7-8), क्या तुम यह दावा करने का साहस करते हो कि पवित्र आत्मा पेंटेकोस्ट के दिन मनुष्य में कार्य करने और अंत के दिनों का न्याय-कार्य करने के लिए उतरा था? क्या परमेश्वर के वचनों में इसका कोई आधार है? क्या प्रभु के वचनों की ऐसी समझ उसकी इच्छा के अनुरूप है? प्रभु यीशु ने स्पष्ट रूप से कहा है, "यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:47-48)। प्रभु यीशु के वचन स्पष्ट हैं : उसके कार्य न्याय-कार्य नहीं थे, और वह अंत के दिनों में लौटने पर ही सत्य व्यक्त करेगा और न्याय-कार्य करेगा। इस प्रकार, यह कहना ठीक है कि पवित्र आत्मा के अनुग्रह के युग के कार्य को परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय-कार्य कहना गलत है। जब हम व्यथा के आँसू बहाते हुए अपने पाप स्वीकारने और पश्चाताप करने के लिए प्रभु के सामने आते हैं, तो यह सिर्फ पवित्र आत्मा का हमें छूना और झिड़कना है। इसका अर्थ है कि पवित्र आत्मा का अनुग्रह के युग का कार्य प्रभावी रहा है। यह परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य से पूरी तरह अलग है। यह समझने के लिए कि न्याय क्या है, आओ हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के दो अंश देखें।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "'न्याय' शब्द का जिक्र होने पर संभवत: तुम उन वचनों के बारे में सोचोगे, जो यहोवा ने प्रत्येक क्षेत्र के लोगों को निर्देश देते हुए कहे थे और जो वचन यीशु ने फरीसियों को फटकार लगाते हुए कहे थे। अपनी समस्त कठोरता के बावजूद, ये वचन परमेश्वर द्वारा मनुष्य का न्याय नहीं थे; बल्कि वे विभिन्न परिस्थितियों, अर्थात् विभिन्न संदर्भों में परमेश्वर द्वारा कहे गए वचन हैं। ये वचन अंत के दिनों के मसीह द्वारा मनुष्यों का न्याय करते हुए कहे जाने वाले शब्दों से भिन्न हैं। अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)।
"न्याय का कार्य परमेश्वर का अपना कार्य है, इसलिए स्वाभाविक रूप से इसे परमेश्वर द्वारा ही किया जाना चाहिए; उसकी जगह इसे मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता। चूँकि न्याय सत्य के माध्यम से मानवजाति को जीतना है, इसलिए परमेश्वर निःसंदेह अभी भी मनुष्यों के बीच इस कार्य को करने के लिए देहधारी छवि के रूप में प्रकट होगा। अर्थात्, अंत के दिनों का मसीह दुनिया भर के लोगों को सिखाने के लिए और उन्हें सभी सच्चाइयों का ज्ञान कराने के लिए सत्य का उपयोग करेगा। यह परमेश्वर के न्याय का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर बहुत अच्छे से यह स्पष्ट करता है कि न्याय क्या है और न्याय-कार्य का क्या प्रभाव है : सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों में न्याय-कार्य मनुष्य को हमेशा-हमेशा के लिए शुद्ध करने और बचाने का कार्य है। यह केवल कुछ ऐसे वचन कहना नहीं है जो मानव-जाति को धिक्कारते और शाप देते हैं, न ही यह व्याख्यान के कई अंशों की अभिव्यक्ति है। इसके बजाय, परमेश्वर पर्याप्त मात्रा में वचन व्यक्त करता है। परमेश्वर सत्य के सभी विभिन्न पहलुओं को व्यक्त करता है जिन्हें मनुष्य को अपनी शुद्धि और उद्धार के लिए समझना और उनमें प्रवेश करना चाहिए, और अपनी छह-हजार-साल की प्रबंधन योजना के सभी रहस्य मानव-जाति के सामने प्रकट करता है। अनुग्रह के युग के दौरान प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त किए गए वचनों की तुलना में परमेश्वर अब सैकड़ों, हजारों गुना अधिक वचन व्यक्त करता है। परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य के केंद्र में सत्य की अभिव्यक्ति और मानव-जाति के न्याय के वचनों की अभिव्यक्ति है। उसने मनुष्य की पापी और परमेश्वर का विरोध करने वाली शैतानी प्रकृति और स्वभाव का न्याय किया है और उसे उजागर किया है; उसने शैतान द्वारा मानव-जाति की भ्रष्टता के तथ्य को प्रकट किया है; उसने परमेश्वर के पवित्र, धार्मिक और अपमान न किए जा सकने वाले स्वभाव का प्रदर्शन किया है; और उसने हमें सत्य के विभिन्न पहलुओं जैसेकि परमेश्वर की इच्छा और मानव-जाति से उसकी अपेक्षाएँ, साथ ही किसे बचाया जाएगा और किसे दंडित किया जाएगा, के बारे में बताया है। हमने परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य का अनुभव किया है, हम परमेश्वर की प्रबंधन योजना का उद्देश्य समझते हैं, हम परमेश्वर के प्रति शैतान के उग्र प्रतिरोध का दानवी चेहरा स्पष्ट रूप से देखते हैं, हम शैतान द्वारा हमारे गहरे भ्रष्टाचार का सत्य और सार समझते हैं, और हम अपनी शैतानी प्रकृति को भी जानते हैं, जो परमेश्वर का विरोध और उससे विश्वासघात करती है। हमें परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव, उसकी सर्वशक्तिमत्ता, बुद्धि, और उसके पास जो कुछ है और जो वह है, उसका थोड़ा-सा वास्तविक ज्ञान भी है। हमारे अंदर एक दिल जन्मा है जो परमेश्वर का भय मानता है, और हम जमीन पर दंडवत हो जाते हैं, हमें अपनी शर्म छिपाने के लिए कहीं जगह नहीं मिलती, और हम महसूस करते हैं कि हम परमेश्वर के सामने जीने लायक नहीं हैं, हम खुद से घृणा करते हैं और अपने दिल में खुद का परित्याग कर देते हैं। धीरे-धीरे हम पाप के बंधन से मुक्त हो जाते हैं, एक सच्चे इंसान की तरह जीते हैं, और वास्तव में परमेश्वर का भय मानने वाले और उसकी आज्ञा का पालन करने वाले लोग बन जाते हैं। परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय-कार्य का अनुभव करने से हमें ऐसा ही प्रभाव प्राप्त होता है—और केवल यही कार्य परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय-कार्य है।
आओ, अब हम अनुग्रह के युग पर नजर डालें। हालाँकि प्रभु यीशु ने न्याय के कुछ वचन कहे थे—फरीसियों की निंदा और उन्हें श्राप देने वाले वचन—लेकिन उसने केवल छुटकारे का कार्य किया, जिसके मूल में क्षमा थी, और लोगों से पश्चाताप करने के लिए कहा, और मनुष्य पर दया दिखाई और मनुष्य पर अनुग्रह बरसाया। यह वह काम नहीं था जिसके मूल में मनुष्य के पापों का न्याय और शुद्धिकरण था, और इसलिए प्रभु यीशु ने केवल सीमित मात्रा में वचन व्यक्त किए जो छुटकारे के कार्य पर आधारित थे, हमें यह सिखाया कि कैसे पश्चाताप करें और अपने पाप स्वीकार करें, कैसे विनम्र और धैर्यवान हों, बपतिस्मा कैसे लें, क्रूस को कैसे सहें, और कष्ट कैसे भोगें, इत्यादि। प्रभु में विश्वास करते हुए, हमें केवल प्रभु के वचनों के अनुसार अपने पाप स्वीकार करना था और पश्चाताप करना था, ताकि हमारे पाप क्षमा किए जा सकें और हम व्यवस्था द्वारा अब और दोषी न ठहराएँ जाएँ और हमें मृत्युदंड न मिले; इस प्रकार हम परमेश्वर से प्रार्थना करने और उसके अनुग्रह और आशीष का आनंद लेने के योग्य बन गए। अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्वर के छुटकारे के कार्य द्वारा ऐसा प्रभाव प्राप्त किया गया था, और यह अंत के दिनों के न्याय-कार्य द्वारा प्राप्त किए गए प्रभाव से पूरी तरह से भिन्न था। फिर भी कुछ ऐसे लोग हैं, जो मानते हैं कि पवित्र आत्मा के अनुग्रह के युग के कार्य का अनुभव करना, पवित्र आत्मा द्वारा प्रबुद्ध किया जाना, फटकारा जाना और अनुशासित किया जाना, प्रभु के सामने प्रार्थना और अपने पाप स्वीकार करते हुए चेहरे का व्यथा के आंसुओं से भीग जाना, और कुछ खास अच्छे व्यवहार करना परमेश्वर के न्याय का अनुभव करना और शुद्ध होना है। तो हम तुमसे यह पूछते हैं : क्या तुम अपने पापों की जड़ को पहचानते हो? क्या तुम परमेश्वर का विरोध करने वाली अपनी शैतानी प्रकृति का सार जानते हो? क्या तुम मानव-जाति की घोर भ्रष्टता का सत्य जानते हो? क्या तुमने शैतान का दुष्ट सार देखा है? क्या तुम परमेश्वर के धार्मिक, प्रतापी और अपमान न किए जा सकने वाले स्वभाव को जानते हो? क्या तुम वास्तव में पाप के बंधनों और बेड़ियों से बच गए हो? क्या तुम्हारे शैतानी स्वभाव को साफ कर दिया गया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति बन गए हो जो परमेश्वर का भय मानता है और उसकी आज्ञा का पालन करता है? तुमने इनमें से कुछ भी प्राप्त नहीं किया है, तो तुम यह कैसे कह सकते हो कि तुम परमेश्वर के न्याय का अनुभव करने के बाद शुद्ध हो गए हो? इस प्रकार, जो कार्य प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग में किया वह न्याय-कार्य नहीं था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर राज्य के युग में जो करता है, केवल वही परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय-कार्य है।