1. चीनी संविधान स्पष्ट रूप से धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता देता है। परमेश्वर में विश्वास एक अचल सिद्धांत है, यह विवेक का पालन करता है और कानून के अनुसार है। तो क्यों सीसीपी, चीनी लोगों को विश्वास की स्वतंत्रता से वंचित करते हुए, धार्मिक विश्वास पर हमले करती है, उसका दमन करती है, और इसे निर्मूल करने का प्रयास करती है? यह ईसाइयों को कट्टर अपराधियों के रूप में क्यों मानती है, दमन, उत्पीड़न और यहाँ तक कि उन्हें मौत के घाट उतारने के लिए क्रांतिकारी तरीकों का इस्तेमाल क्यों करती है?
संदर्भ के लिए बाइबल के पद :
"सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है" (1 यूहन्ना 5:19)।
"इस युग के लोग बुरे हैं" (लूका 11:29)।
"तब वह बड़ा अजगर, अर्थात् वही पुराना साँप जो इब्लीस और शैतान कहलाता है और सारे संसार का भरमानेवाला है" (प्रकाशितवाक्य 12:9)।
"यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो कि उसने तुम से पहले मुझ से बैर रखा" (यूहन्ना 15:18)।
"और दण्ड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे। क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए" (यूहन्ना 3:19-20)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :
बड़े लाल अजगर की अभिव्यक्ति मेरे प्रति प्रतिरोध, मेरे वचनों के अर्थों की समझ और बोध की कमी, बार-बार मेरा उत्पीड़न और मेरे प्रबंधन को बाधित करने के लिए षड़यंत्र करने की कोशिश करना है। शैतान इस प्रकार से अभिव्यक्त होता है: सामर्थ्य के लिए मेरे साथ संघर्ष करना, मेरे चुने हुए लोगों पर कब्ज़ा करने की इच्छा करना और मेरे लोगों को धोखा देने के लिए नकारात्मक बातें करना। शैतान (जो लोग मेरे नाम को स्वीकार नहीं करते, जो विश्वास नहीं करते, वे सभी शैतान हैं) की अभिव्यक्तियाँ इस प्रकार हैं: देह के सुखों की अभिलाषा करना, वासनाओं में लिप्त होना, शैतान के बंधन में रहना, कुछ लोगों द्वारा मेरा विरोध करना और कुछ के द्वारा मेरा समर्थन किया जाना (किन्तु यह साबित नहीं करना कि वे मेरे प्रिय पुत्र हैं)। महादूत की अभिव्यक्तियाँ इस प्रकार है: गुस्ताखी से बोलना, धर्मभ्रष्ट होना, लोगों को व्याख्यान देने के लिए प्रायः मेरा स्वर अपनाना, केवल बाहरी तौर पर मेरी नकल करना, जो मैं खाता हूँ वह खाना और जो मैं उपयोग करता हूँ उसका उपयोग करना; संक्षेप में, मेरे साथ बराबरी करने की इच्छा करना, महत्वाकांक्षी होना, किन्तु मेरी काबिलियत का अभाव और मेरा जीवन नहीं होना, और निकम्मा होना। शैतान, दुष्ट और महादूत, सभी बड़े लाल अजगर के विशिष्ट प्रदर्शन हैं, इसलिए जो लोग मेरे द्वारा पूर्वनियत और चयनित नहीं हैं, वे सभी बड़े लाल अजगर की संतान हैं: यह बिल्कुल ऐसा ही है! ये सभी मेरे दुश्मन हैं। (हालाँकि शैतान के व्यवधानों को बाहर रखा गया है। यदि तुम्हारी प्रकृति मेरी खूबी है, तो इसे कोई भी बदल नहीं सकता। क्योंकि तुम अभी भी देह में रहते हो, इसलिए कभी-कभी तुम्हें शैतान के प्रलोभनों का सामना करना पड़ेगा—यह अपरिहार्य है—किन्तु तुम्हें सदा सावधान रहना चाहिए।) इसलिए, मैं अपनी प्रथम संतानों के अतिरिक्त, बड़े लाल अजगर की सभी संतानों को त्याग दूँगा। उनकी प्रकृति कभी नहीं बदल सकती और यह शैतान का गुण है। वे लोग शैतान को अभिव्यक्त करते हैं और महादूत को जीते हैं। यह पूरी तरह सच है। जिस बड़े लाल अजगर की मैं बात करता हूँ वह बड़ा लाल अजगर नहीं है; बल्कि यह मेरी विरोधी दुष्ट आत्मा है, जिसके लिए "बड़ा लाल अजगर" एक समानार्थी है। इसलिए पवित्र आत्मा के अतिरिक्त सभी आत्माएँ दुष्ट आत्माएँ हैं और उन्हें बड़े लाल अजगर की संतान भी कहा जा सकता है। सभी को यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाना चाहिए।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 96
हज़ारों सालों से यह भूमि मलिन रही है। यह गंदी और दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए,[1] क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध ज़मीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर ज़बर्दस्त पहरेदारी[2] है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? शैतान मनुष्य के पूरे शरीर को कसकर बांध देता है, उसकी दोनों आंखें बाहर निकालकर उसके होंठ मज़बूती से बंद कर देता है। शैतानों के राजा ने हज़ारों वर्षों तक उपद्रव किया है, और आज भी वह उपद्रव कर रहा है और इस भुतहा शहर पर बारीक नज़र रखे हुए है, मानो यह राक्षसों का एक अभेद्य महल हो; इस बीच रक्षक कुत्ते चमकती हुई आंखों से घूरते हैं, वे इस बात से अत्यंत भयभीत रहते हैं कि कहीं परमेश्वर अचानक उन्हें पकड़कर समाप्त न कर दे, उन्हें सुख-शांति के स्थान से वंचित न कर दे। ऐसे भुतहा शहर के लोग परमेश्वर को कैसे देख सके होंगे? क्या उन्होंने कभी परमेश्वर की प्रियता और मनोहरता का आनंद लिया है? उन्हें मानव-जगत के मामलों की क्या कद्र है? उनमें से कौन परमेश्वर की उत्कट इच्छा को समझ सकता है? फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि देहधारी परमेश्वर पूरी तरह से छिपा रहता है : इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहां राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, ये लंबे समय से परमेश्वर का तिरस्कार करते रहे हैं, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज़ को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! किसने परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कियाहै? किसने परमेश्वर के कार्य के लिए अपना जीवन अर्पित किया है या रक्त बहाया है? पीढ़ी-दर-पीढ़ी, माता-पिता से लेकर बच्चों तक, गुलाम बनाए गए मनुष्य ने परमेश्वर को बड़ी बेरुखी से गुलाम बना लिया है—ऐसा कैसे हो सकता है कि यह रोष न भड़काए? दिल में हज़ारों वर्ष की घृणा भरी हुई है, हज़ारों साल का पाप दिल पर अंकित है—इससे कैसे न घृणा पैदा होगी? परमेश्वर का बदला लो, उसके शत्रु को पूरी तरह से समाप्त कर दो, उसे अब और बेकाबू न दौड़ने दो, और अब उसे मनचाहे तरीके से परेशानी मत बढ़ाने दो! यही समय है : मनुष्य अपनी सभी शक्तियाँ लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए सभी प्रयास किए हैं, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दानव के घृणित चेहरे से नकाब उतार सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अपने दर्द से उबरने और इस दुष्ट प्राचीन शैतान से मुँह मोड़ने दे। परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहां हैं? निष्पक्षता कहां है? आराम कहां है? गर्मजोशी कहां है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखेभरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए? क्यों नहीं परमेश्वर को उस धरती पर स्वतंत्रता से घूमने दिया जाए, जिसे उसने बनाया? क्यों परमेश्वर को इस हद तक खदेड़ा जाए कि उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह भी न रहे? मनुष्यों की गर्मजोशी कहां है? लोगों की स्वागत की भावना कहां है? परमेश्वर में ऐसी तड़प क्यों पैदा की जाए? परमेवर को बार-बार पुकारने पर मजबूर क्यों किया जाए? परमेश्वर को अपने प्रिय पुत्र के लिए चिंता करने पर मजबूर क्यों किया जाए? इस अंधकारपूर्ण समाज में इसके घटिया रक्षक कुत्ते परमेश्वर को उसकी बनायी दुनिया में स्वतंत्रता से आने-जाने क्यों नहीं देते?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8)
प्राचीन संस्कृति के ज्ञान ने मनुष्य को चुपके से परमेश्वर की उपस्थिति से चुरा लिया है और मनुष्य को शैतानों के राजा और उसकी संतानों को सौंप दिया है। चार पुस्तकों और पाँच क्लासिक्स[क] ने मनुष्य की सोच और धारणाओं को विद्रोह के एक अलग युग में पहुँचा दिया है, जिससे वह उन पुस्तकों और क्लासिक्स के संकलनकर्ताओं की पहले से भी ज्यादा खुशामदी करने लगा है, और परिणामस्वरूप परमेश्वर के बारे में उसकी धारणाएँ और ज्यादा ख़राब हो गई हैं। शैतानों के राजा ने बिना मनुष्य के जाने ही उसके दृदय से निर्दयतापूर्वक परमेश्वर को बाहर निकाल दिया और फिर विजयी उल्लास के साथ खुद उस पर कब्ज़ा जमा लिया। तब से मनुष्य एक कुरूप और दुष्ट आत्मा तथा शैतानों के राजा के चेहरे के अधीन हो गया। उसके सीने में परमेश्वर के प्रति घृणा भर गई, और शैतानों के राजा की द्रोहपूर्ण दुर्भावना दिन-ब-दिन तब तक मनुष्य के भीतर फैलती गई, जब तक कि वह पूरी तरह से बरबाद नहीं हो गया। उसके पास ज़रा-भी स्वतंत्रता नहीं रह गयी और उसके पास शैतानों के राजा के चंगुल से छूटने का कोई उपाय नहीं था। उसके पास वहीं के वहीं उसकी उपस्थिति में बंदी बनने, आत्मसमर्पण करने और उसकी अधीनता में घुटने टेक देने के सिवा कोई चारा नहीं था। बहुत पहले जब मनुष्य का हृदय और आत्मा अभी शैशवावस्था में ही थे, शैतानों के राजा ने उनमें नास्तिकता के फोड़े का बीज बो दिया था, और उसे इस तरह की भ्रांतियाँ सिखा दीं, जैसे कि "विज्ञान और प्रौद्योगिकी को पढ़ो; चार आधुनिकीकरणों को समझो; और दुनिया में परमेश्वर जैसी कोई चीज़ नहीं है।" यही नहीं, वह हर अवसर पर चिल्लाता है, "आओ, हम एक सुंदर मातृभूमि का निर्माण करने के लिए अपने कठोर श्रम पर भरोसा करें," और बचपन से ही हर व्यक्ति को अपने देश की सेवा करने के लिए तैयार रहने के लिए कहता है। बेख़बर मनुष्य, इसके सामने लाया गया, और इसने बेझिझक सारा श्रेय (अर्थात् समस्त मनुष्यों को अपने हाथों में रखने का परमेश्वर का श्रेय) हथिया लिया। कभी भी इसे शर्म का बोध नहीं हुआ। इतना ही नहीं, इसने निर्लज्जतापूर्वक परमेश्वर के लोगों को पकड़ लिया और उन्हें अपने घर में खींच लिया, जहाँ वह मेज पर एक चूहे की तरह उछलकर चढ़ गया और मनुष्यों से परमेश्वर के रूप में अपनी आराधना करवाई। कैसा आततायी है! वह चीख-चीखकर ऐसी शर्मनाक और घिनौनी बातें कहता है : "दुनिया में परमेश्वर जैसी कोई चीज़ नहीं है। हवा प्राकृतिक नियमों के कारण होने वाले रूपांतरणों से चलती है; बारिश तब होती है, जब पानी भाप बनकर ठंडे तापमानों से मिलता है और बूँदों के रूप में संघनित होकर पृथ्वी पर गिरता है; भूकंप भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण पृथ्वी की सतह का हिलना है; सूखा सूरज की सतह पर नाभिक विक्षोभ के कारण हवा के शुष्क हो जाने से पड़ता है। ये प्राकृतिक घटनाएँ हैं। इस सबमें परमेश्वर का किया कौन-सा काम है?" ऐसे लोग भी हैं, जो कुछ ऐसे बयान भी देते हैं, जिन्हें स्वर नहीं दिया जाना चाहिए, जैसे कि : "मनुष्य प्राचीन काल में वानरों से विकसित हुआ था, और आज की दुनिया लगभग एक युग पहले शुरू हुए आदिम समाजों के अनुक्रमण से विकसित हुई है। किसी देश का उत्थान या पतन पूरी तरह से उसके लोगों के हाथों में है।" पृष्ठभूमि में, शैतान लोगों को उसे दीवार पर लटकाकर या मेज पर रखकर श्रद्धांजलि अर्पित करने और भेंट चढ़ाने के लिए बाध्य करता है। जब वह चिल्लाता है कि "कोई परमेश्वर नहीं है," उसी समय वह खुद को परमेश्वर के रूप में स्थापित भी करता है और परमेश्वर के स्थान पर खड़ा होकर तथा शैतानों के राजा की भूमिका ग्रहण कर अशिष्टता के साथ परमेश्वर को धरती की सीमाओं से बाहर धकेल देता है। कितनी बेहूदा बात है! यह आदमी को उससे गहरी घृणा करने के लिए बाध्य कर देता है। ऐसा लगता है कि परमेश्वर और वह कट्टर दुश्मन हैं, और दोनों सह-अस्तित्व में नहीं रह सकते। वह व्यवस्था की पहुँच से बाहर आज़ाद घूमता है[3] और परमेश्वर को दूर भगाने की योजना बनाता है। ऐसा है यह शैतानों का राजा! इसके अस्तित्व को कैसे बरदाश्त किया जा सकता है? यह तब तक चैन से नहीं बैठेगा, जब तक परमेश्वर के काम को ख़राब नहीं कर देता और उसे पूरा खंडहर[4] नहीं बना देता, मानो वह अंत तक परमेश्वर का विरोध करना चाहता हो, जब तक कि या तो मछली न मर जाए या जाल न टूट जाए। वह जानबूझकर खुद को परमेश्वर के ख़िलाफ़ खड़ा कर लेता है और उसके करीब आता जाता है। इसका घिनौना चेहरा बहुत पहले से पूरी तरह से बेनक़ाब हो गया है, जो अब आहत और क्षत-विक्षत[5] है और एक खेदजनक स्थिति में है, फिर भी वह परमेश्वर से नफ़रत करने से बाज़ नहीं आएगा, मानो परमेश्वर को एक कौर में निगलकर ही वह अपने दिल में बसी घृणा से मुक्ति पा सकेगा। परमेश्वर के इस शत्रु को हम कैसे बरदाश्त कर सकते हैं! केवल इसके उन्मूलन और पूर्ण विनाश से ही हमारे जीवन की इच्छा फलित होगी। इसे उच्छृंखल रूप से कैसे दौड़ते फिरने दिया जा सकता है? यह मनुष्य को इस हद तक भ्रष्ट कर चुका है कि मनुष्य स्वर्ग सूर्य को नहीं जानता, और वह अचेत और भावनाशून्य हो गया है। मनुष्य ने सामान्य मानवीय विवेक खो दिया है। शैतान को नष्ट और भस्म करने के लिए क्यों नहीं हम अपनी पूरी हस्ती का बलिदान कर दें, ताकि भविष्य की सारी चिंताएँ दूर कर सकें और परमेश्वर के कार्य को जल्दी से अभूतपूर्व भव्यता तक पहुँचने दें? बदमाशों का यह गिरोह मनुष्यों की दुनिया में आ गया है और यहाँ उथल-पुथल मचा दी है। वे सभी मनुष्यों को एक खड़ी चट्टान की कगार पर ले आए हैं और गुप्त रूप से उन्हें वहाँ से धकेलकर टुकड़े-टुकड़े करने की योजना बना रहे हैं, ताकि फिर वे उनके शवों को निगल सकें। वे व्यर्थ ही परमेश्वर की योजना को खंडित करने और उसके साथ जुआ खेलकर पासे की एक ही चाल में सब-कुछ दाँव पर लगाने[6] की आशा करते हैं। यह किसी भी तरह से आसान नहीं है! अंतत: शैतानों के राजा के लिए सलीब तैयार कर दिया गया है, जो सबसे घृणित अपराधों का दोषी है। परमेश्वर सलीब का नहीं है। वह पहले ही शैतान के लिए उसे किनारे रख चुका है। परमेश्वर अब से बहुत पहले ही विजयी होकर उभर चुका है और अब मानवजाति के पापों पर दुख महसूस नहीं करता, लेकिन वह समस्त मानवजाति के लिए उद्धार लाएगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (7)
ऊपर से नीचे तक और शुरू से अंत तक शैतान परमेश्वर के कार्य को बाधित करता रहा है और उसके विरोध में काम करता रहा है। "प्राचीन सांस्कृतिक विरासत", मूल्यवान "प्राचीन संस्कृति के ज्ञान", "ताओवाद और कन्फ्यूशीवाद की शिक्षाओं" और "कन्फ्यूशियन क्लासिक्स और सामंती संस्कारों" की इस सारी चर्चा ने मनुष्य को नरक में पहुँचा दिया है। उन्नत आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ-साथ अत्यधिक विकसित उद्योग, कृषि और व्यवसाय कहीं नज़र नहीं आते। इसके बजाय, यह सिर्फ़ प्राचीन काल के "वानरों" द्वारा प्रचारित सामंती संस्कारों पर जोर देता है, ताकि परमेश्वर के कार्य को जानबूझकर बाधित कर सके, उसका विरोध कर सके और उसे नष्ट कर सके। न केवल इसने आज तक मनुष्य को सताना जारी रखा है, बल्कि वह उसे पूरे का पूरा निगल[7] भी जाना चाहता है। सामंतवाद की नैतिक और आचार-विचार विषयक शिक्षाओं के प्रसारण और प्राचीन संस्कृति के ज्ञान की विरासत ने लंबे समय से मनुष्य को संक्रमित किया है और उन्हें छोटे-बड़े शैतानों में बदल दिया है। कुछ ही लोग हैं, जो ख़ुशी से परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, और कुछ ही लोग हैं, जो उसके आगमन का उल्लासपूर्वक स्वागत करते हैं। समस्त मानवजाति का चेहरा हत्या के इरादे से भर गया है, और हर जगह हत्यारी साँस हवा में व्याप्त है। वे परमेश्वर को इस भूमि से निष्कासित करना चाहते हैं; हाथों में चाकू और तलवारें लिए वे परमेश्वर का "विनाश" करने के लिए खुद को युद्ध के विन्यास में व्यवस्थित करते हैं। शैतान की इस सारी भूमि पर, जहाँ मनुष्य को लगातार सिखाया जाता है कि कहीं कोई परमेश्वर नहीं है, मूर्तियाँ फैली हुई हैं, और ऊपर हवा जलते हुए कागज और धूप की वमनकारी गंध से तर है, इतनी घनी कि दम घुटता है। यह उस कीचड़ की बदबू की तरह है, जो जहरीले सर्प के कुलबुलाते समय ऊपर उठती है, जिससे व्यक्ति उलटी किए बिना नहीं रह सकता। इसके अलावा, वहाँ अस्पष्ट रूप से दुष्ट दानवों के मंत्रोच्चार की ध्वनि सुनी जा सकती है, जो दूर नरक से आती हुई प्रतीत होती है, जिसे सुनकर आदमी काँपे बिना नहीं रह सकता। इस देश में हर जगह इंद्रधनुष के सभी रंगों वाली मूर्तियाँ रखी हैं, जिन्होंने इस देश को कामुक आनंद की दुनिया में बदल दिया है, और शैतानों का राजा दुष्टतापूर्वक हँसता रहता है, मानो उसका नीचतापूर्ण षड्यंत्र सफल हो गया हो। इस बीच, मनुष्य पूरी तरह से बेखबर रहता है, और उसे यह भी पता नहीं कि शैतान ने उसे पहले ही इस हद तक भ्रष्ट कर दिया है कि वह बेसुध हो गया है और उसने हार में अपना सिर लटका दिया है। शैतान चाहता है कि एक ही झपट्टे में परमेश्वर से संबंधित सब-कुछ साफ़ कर दे, और एक बार फिर उसे अपवित्र कर उसका हनन कर दे; वह उसके कार्य को टुकड़े-टुकड़े करने और उसे बाधित करने का इरादा रखता है। वह कैसे परमेश्वर को समान दर्जा दे सकता है? कैसे वह पृथ्वी पर मनुष्यों के बीच अपने काम में परमेश्वर का "हस्तक्षेप" बरदाश्त कर सकता है? कैसे वह परमेश्वर को उसके घिनौने चेहरे को उजागर करने दे सकता है? शैतान कैसे परमेश्वर को अपने काम को अव्यवस्थित करने की अनुमति दे सकता है? क्रोध के साथ भभकता यह शैतान कैसे परमेश्वर को पृथ्वी पर अपने शाही दरबार पर नियंत्रण करने दे सकता है? कैसे वह स्वेच्छा से परमेश्वर के श्रेष्ठतर सामर्थ्य के आगे झुक सकता है? इसके कुत्सित चेहरे की असलियत उजागर की जा चुकी है, इसलिए किसी को पता नहीं है कि वह हँसे या रोए, और यह बताना वास्तव में कठिन है। क्या यही इसका सार नहीं है? अपनी कुरूप आत्मा के बावजूद वह यह मानता है कि वह अविश्वसनीय रूप से सुंदर है। यह सहअपराधियों का गिरोह![8] वे भोग में लिप्त होने के लिए मनुष्यों के देश में उतरते हैं और हंगामा करते हैं, और चीज़ों में इतनी हलचल पैदा कर देते हैं कि दुनिया एक चंचल और अस्थिर जगह बन जाती है और मनुष्य का दिल घबराहट और बेचैनी से भर जाता है, और उन्होंने मनुष्य के साथ इतना खिलवाड़ किया है कि उसका रूप उस क्षेत्र के एक अमानवीय जानवर जैसा अत्यंत कुरूप हो गया है, जिससे मूल पवित्र मनुष्य का आखिरी निशान भी खो गया है। इतना ही नहीं, वे धरती पर संप्रभु सत्ता ग्रहण करना चाहते हैं। वे परमेश्वर के कार्य को इतना बाधित करते हैं कि वह मुश्किल से बहुत धीरे आगे बढ़ पाता है, और वे मनुष्य को इतना कसकर बंद कर देते हैं, जैसे कि तांबे और इस्पात की दीवारें हों। इतने सारे गंभीर पाप करने और इतनी आपदाओं का कारण बनने के बाद भी क्या वे ताड़ना के अलावा किसी अन्य चीज़ की उम्मीद कर रहे हैं? राक्षस और बुरी आत्माएँ काफी समय से पृथ्वी पर अंधाधुंध विचरण कर रही हैं, और उन्होंने परमेश्वर की इच्छा और कष्टसाध्य प्रयास दोनों को इतना कसकर बंद कर दिया है कि वे अभेद्य बन गए हैं। सचमुच, यह एक घातक पाप है! ऐसा कैसे हो सकता है कि परमेश्वर चिंतित महसूस न करे? परमेश्वर कैसे क्रोधित महसूस न करे? उन्होंने परमेश्वर के कार्य में गंभीर बाधा पहुँचाई है और उसका घोर विरोध किया है : कितने विद्रोही हैं वे!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (7)
फुटनोट :
1. "निराधार आरोप लगाते हुए" उन तरीकों को संदर्भित करता है, जिनके द्वारा शैतान लोगों को नुकसान पहुँचाता है।
2. "ज़बर्दस्त पहरेदारी" दर्शाता है कि वे तरीके, जिनके द्वारा शैतान लोगों को यातना पहुँचाता है, बहुत ही शातिर होते हैं, और लोगों को इतना नियंत्रित करते हैं कि उन्हें हिलने-डुलने की भी जगह नहीं मिलती।
3. "व्यवस्था की पहुँच से बाहर आज़ाद घूमता है" इंगित करता है कि शैतान उन्मत्त होकर आपे से बाहर हो जाता है।
4. "पूरा खंडहर" बताता है कि कैसे उस शैतान का हिंसक व्यवहार देखने में असहनीय है।
5. "आहत और क्षत-विक्षत" शैतानों के राजा के बदसूरत चेहरे के बारे में बताता है।
6. "पासे की एक ही चाल में सब-कुछ दाँव पर लगाने" का अर्थ है अंत में जीतने की उम्मीद में अपना सारा धन एक ही दाँव पर लगा देना। यह शैतान की भयावह और कुटिल योजनाओं के लिए एक रूपक है। इस अभिव्यक्ति का प्रयोग उपहास में किया जाता है।
7. "निगल" जाना शैतानों के राजा के शातिर व्यवहार के बारे में बताता है, जो लोगों को पूरी तरह से मोह लेता है।
8. "सहअपराधियों का गिरोह" का वही अर्थ है, जो "गुंडों के गिरोह" का है।
क. चार पुस्तकें और पाँच क्लासिक्स चीन में कन्फ्यूशीवाद की प्रामाणिक किताबें हैं।