4. नियम के युग में यशायाह, यहेजकेल और दानिय्येल जैसे भविष्यवक्ताओं द्वारा बताए गए परमेश्वर के शब्दों, और देहधारी परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए परमेश्वर के वचनों में, क्या अंतर है?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

अनुग्रह के युग में यीशु ने भी कई वचन बोले और बहुत कार्य किया। वह यशायाह से कैसे अलग था? वह दानिय्येल से कैसे अलग था? क्या वह कोई नबी था? ऐसा क्यों कहा जाता है कि वह मसीह है? उनके मध्य क्या भिन्नताएँ हैं? वे सभी मनुष्य थे, जिन्होंने वचन बोले थे, और उनके वचन मनुष्य को लगभग एक-से प्रतीत होते थे। उन सभी ने वचन बोले और कार्य किए। पुराने विधान के नबियों ने भविष्यवाणियाँ कीं, और उसी तरह से, यीशु भी वैसा ही कर सकता था। ऐसा क्यों है? यहाँ भेद कार्य की प्रकृति के आधार पर है। इस मामले को समझने के लिए तुम्हें देह की प्रकृति पर विचार नहीं करना चाहिए, न ही तुम्हें उनके वचनों की गहराई या सतहीपन पर विचार करना चाहिए। तुम्हें हमेशा सबसे पहले उनके कार्य और उसके द्वारा मनुष्य में प्राप्त किए जाने वाले परिणामों पर विचार करना चाहिए। उस समय नबियों द्वारा की गई भविष्यवाणियों ने मनुष्य के जीवन की आपूर्ति नहीं की, यशायाह और दानिय्येल जैसे लोगों द्वारा प्राप्त की गई प्रेरणाएँ मात्र भविष्यवाणियाँ थीं, जीवन का मार्ग नहीं। यदि यहोवा की ओर से प्रत्यक्ष प्रकाशन नहीं होता, तो कोई भी इस कार्य को नहीं कर सकता था, जो नश्वर लोगों के लिए संभव नहीं है। यीशु ने भी कई वचन बोले, परंतु वे वचन जीवन का मार्ग थे, जिनमें से मनुष्य अभ्यास का मार्ग प्राप्त कर सकता था। दूसरे शब्दों में, एक तो वह मनुष्य के जीवन की आपूर्ति कर सकता था, क्योंकि यीशु जीवन है; दूसरे, वह मनुष्यों के विचलनों को उलट सकता था; तीसरे, युग को आगे बढ़ाने के लिए उसका कार्य यहोवा के कार्य का अनुवर्ती हो सकता था; चौथे, वह मनुष्य के भीतर की आवश्यकताएँ जान सकता था और समझ सकता था कि मनुष्य में किस चीज का अभाव है; पाँचवें, वह नए युग का सूत्रपात कर सकता था और पुराने युग का समापन कर सकता था। यही कारण है कि उसे परमेश्वर और मसीह कहा जाता है; वह न केवल यशायाह से भिन्न है, अपितु अन्य सभी नबियों से भी भिन्न है। नबियों के कार्य के लिए तुलना के रूप में यशायाह को लें। पहले तो वह मनुष्य के जीवन की आपूर्ति नहीं कर सकता था; दूसरे, वह नए युग का सूत्रपात नहीं कर सकता था। वह यहोवा की अगुआई के अधीन कार्य कर रहा था, न कि नए युग का सूत्रपात करने के लिए। तीसरे, उसके द्वारा बोले गए शब्द उससे परे थे। वह सीधे परमेश्वर के आत्मा से प्रकाशन प्राप्त कर रहा था, और दूसरे लोग उन्हें सुनकर भी नहीं समझे होंगे। ये कुछ चीज़ें अकेले ही यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि उसके वचन भविष्यवाणियों से अधिक और यहोवा के बदले किए गए कार्य के एक पहलू से ज़्यादा कुछ नहीं थे। वह पूरी तरह से यहोवा का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता था। वह यहोवा का सेवक था, यहोवा के काम में एक उपकरण। वह केवल व्यवस्था के युग के भीतर और यहोवा के कार्य-क्षेत्र के भीतर ही कार्य कर रहा था; उसने व्यवस्था के युग से आगे कार्य नहीं किया। इसके विपरीत, यीशु का कार्य भिन्न था। उसने यहोवा के कार्य-क्षेत्र को पार कर लिया; उसने देहधारी परमेश्वर के रूप में कार्य किया और संपूर्ण मानवजाति के छुटकारे के लिए सलीब पर चढ़ गया। दूसरे शब्दों में, उसने यहोवा द्वारा किए गए कार्य के बाहर नया कार्य किया। यह नए युग का सूत्रपात करना था। इसके अतिरिक्त, वह उस बारे में बोलने में सक्षम था, जिसे मनुष्य प्राप्त नहीं कर सकता था। उसका कार्य परमेश्वर के प्रबंधन के भीतर का कार्य था, जो संपूर्ण मानवजाति को समाविष्ट करता था। उसने मात्र कुछ ही मनुष्यों में कार्य नहीं किया, न ही उसका कार्य कुछ सीमित संख्या के लोगों की अगुआई करना था। जहाँ तक इस बात का संबंध है कि कैसे परमेश्वर मनुष्य के रूप में देहधारी हुआ, कैसे उस समय पवित्रात्मा ने प्रकाशन दिए, और कैसे पवित्रात्मा कार्य करने के लिए एक मनुष्य पर उतरा, तो ये ऐसी बातें हैं, जिन्हें मनुष्य देख या छू नहीं सकता। इन सत्यों का इस बात का साक्ष्य होना सर्वथा असंभव है कि वह देहधारी परमेश्वर है। इस प्रकार, अंतर केवल परमेश्वर के वचनों और कार्य में ही किया जा सकता है, जो मनुष्य के लिए दृष्टिगोचर हैं। केवल यही वास्तविक है। इसका कारण यह है कि पवित्रात्मा के मामले तुम्हारे लिए दृष्टिगोचर नहीं हैं और केवल स्वयं परमेश्वर को ही स्पष्ट रूप से ज्ञात हैं, यहाँ तक कि देहधारी परमेश्वर का देह भी सारी चीज़ें नहीं जानता; तुम केवल उसके द्वारा किए गए कार्य से ही सत्यापन कर सकते हो कि वह परमेश्वर है या नहीं? उसके कार्यों से यह देखा जा सकता है कि एक तो वह एक नए युग की शुरुआत करने में सक्षम है; दूसरे, वह मनुष्य के जीवन की आपूर्ति करने और मनुष्य को अनुसरण का मार्ग दिखाने में सक्षम है। यह इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि वह स्वयं परमेश्वर है। कम से कम, जो कार्य वह करता है, वह पूरी तरह से परमेश्वर के आत्मा का प्रतिनिधित्व कर सकता है, और ऐसे कार्य से यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर का आत्मा उसके भीतर है। चूँकि देहधारी परमेश्वर द्वारा किया गया कार्य मुख्य रूप से नए युग का सूत्रपात करना, नए कार्य की अगुआई करना और नया राज्य खोलना था, इसलिए ये कुछ स्थितियाँ अकेले ही यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि वह स्वयं परमेश्वर है। इस प्रकार यह उसे यशायाह, दानिय्येल और अन्य महान नबियों से भिन्नता प्रदान करता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर

नबियों के पूर्वकथन परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से निर्देशित किए गए थे : यशायाह, दानिय्येल, एज्रा, यिर्मयाह और यहेजकेल जैसों की भविष्यवाणियाँ पवित्र आत्मा के सीधे निर्देशन से आई थीं; ये लोग द्रष्टा थे, उन्होंने भविष्यवाणी के आत्मा को प्राप्त किया था, और वे सभी पुराने नियम के नबी थे। व्यवस्था के युग के दौरान यहोवा की अभिप्रेरणाओं को प्राप्त करने वाले लोगों ने अनेक भविष्यवाणियाँ की थीं, जिन्हें सीधे यहोवा के द्वारा निर्देशित किया गया था। और यहोवा ने उनमें कार्य क्यों किया था? क्योंकि इस्राएल के लोग परमेश्वर के चुने हुए लोग थे, और नबियों का कार्य उनके बीच में किया जाना था; इसी कारण से नबी ऐसे प्रकाशन प्राप्त करने में समर्थ थे। वास्तव में, वे स्वयं भी परमेश्वर से प्राप्त प्रकाशनों को समझ नहीं पाए थे। पवित्र आत्मा ने उनके मुँह के जरिये वे वचन कहे थे, ताकि भविष्य के लोग उन चीज़ों को समझ पाएँ, और देख सकें कि वे वास्तव में परमेश्वर के आत्मा, अर्थात् पवित्र आत्मा के कार्य थे, और मनुष्य की ओर से नहीं आए थे, और उन्हें पवित्र आत्मा के कार्य की पुष्टि प्रदान की जा सके। अनुग्रह के युग के दौरान, यीशु ने उनके बदले स्वयं यह सब कार्य किया, इसलिए लोगों ने आगे भविष्यवाणी नहीं की। तो क्या यीशु एक नबी था? निस्संदेह यीशु एक नबी था, लेकिन वह प्रेरितों का काम करने में भी सक्षम था—वह भविष्यवाणी करने और पूरे देश के लोगों के बीच प्रचार करने और सिखाने दोनों का काम कर सकता था। फिर भी उसने जो कार्य किया और जिस पहचान का उसने प्रतिनिधित्व किया, वे एकसमान नहीं थे। वह सारी मानवजाति को छुड़ाने, मनुष्य को उसके पापों से छुड़ाने के लिए आया था; वह एक नबी और प्रेरित था, किंतु इस सबसे बढ़कर वह मसीह था। एक नबी भविष्यवाणी कर सकता है, परंतु यह नहीं कहा जा सकता कि वह मसीह है। उस समय यीशु ने अनेक भविष्यवाणियाँ कीं और इसलिए यह कहा जा सकता है कि वह एक नबी था, किंतु यह नहीं कहा जा सकता कि वह नबी था और इसलिए वह मसीह नहीं था। ऐसा इसलिए है, क्योंकि कार्य का एक चरण पूरा करने में उसने स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व किया, और उसकी पहचान यशायाह की पहचान से अलग थी : वह छुटकारे का कार्य पूरा करने आया था, और उसने मनुष्य के जीवन के लिए पोषण भी प्रदान किया, और परमेश्वर का आत्मा सीधे उसके ऊपर आया था। जो कार्य उसने किया था, उसमें परमेश्वर के आत्मा की कोई अभिप्रेरणा या यहोवा का कोई निर्देश नहीं था। इसके बजाय, आत्मा ने सीधे तौर पर काम किया—जो यह साबित करने के लिए काफी है कि यीशु नबी के समान नहीं था। जो कार्य उसने किया, वह छुटकारे का कार्य था, भविष्यवाणी करना दूसरे स्थान पर आता था। वह एक नबी और प्रेरित था, पर उससे भी बढ़कर वह एक उद्धारक था। जबकि भविष्यवक्ता केवल भविष्यवाणी कर सकते थे, और कोई अन्य काम करने में वे परमेश्वर के आत्मा का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ थे। चूँकि यीशु ने ऐसा बहुत-सा काम किया, जो मनुष्य द्वारा कभी नहीं किया गया था, और उसने मनुष्य को छुटकारा दिलाने का काम किया, अत: वह यशायाह जैसों से भिन्न था।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (3)

कार्य के इस अंतिम चरण में परिणाम वचन के माध्यम से प्राप्त किए जाते है। वचन के माध्यम से मनुष्य अनेक रहस्यों और पिछली पीढ़ियों के दौरान किए गए परमेश्वर के कार्य को समझ जाता है; वचन के माध्यम से मनुष्य को पवित्र आत्मा द्वारा प्रबुद्ध किया जाता है; वचन के माध्यम से मनुष्य पिछली पीढ़ियों के द्वारा कभी न सुलझाए गए रहस्यों को, और साथ ही अतीत के समयों के नबियों और प्रेरितों के कार्य को, और उनके कार्य करने के सिद्धांतों को समझ जाता है; वचन के माध्यम से मनुष्य स्वयं परमेश्वर के स्वभाव को और साथ ही मनुष्य की विद्रोहशीलता और विरोध को भी समझ जाता है, और वह अपने सार को जान जाता है। कार्य के इन चरणों और बोले गए सभी वचनों के माध्यम से मनुष्य पवित्रात्मा के कार्य को, देहधारी परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले कार्य को, और इससे भी बढ़कर, उसके संपूर्ण स्वभाव को जान जाता है। छह हज़ार वर्षों से अधिक की परमेश्वर की प्रबंधन-योजना का तुम्हारा ज्ञान भी वचन के माध्यम से ही प्राप्त किया गया था। क्या तुम्हारी पुरानी धारणाओं का ज्ञान और उन्हें अलग रखने में तुम्हारी सफलता भी वचन के माध्यम से प्राप्त नहीं की गई? पिछले चरण में यीशु ने चिह्न और चमत्कार दिखाए थे, किंतु इस चरण में कोई चिह्न और चमत्कार नहीं है। क्या तुम्हारी यह समझ भी, कि परमेश्वर चिह्न और चमत्कार क्यों नहीं दिखाता, वचन के माध्यम से ही प्राप्त नहीं की गई? इसलिए, इस चरण में बोले गए वचन पिछली पीढ़ियों के प्रेरितों और नबियों द्वारा किए गए कार्यों से बढ़कर हैं। यहाँ तक कि नबियों द्वारा की गई भविष्यवाणियाँ भी ऐसे परिणाम प्राप्त नहीं कर सकती थीं। नबियों ने केवल भविष्यवाणियाँ की थीं, उन्होंने यह कहा था कि भविष्य में क्या होगा, किंतु उस कार्य के बारे में नहीं कहा था, जिसे परमेश्वर उस समय करना चाहता था। न ही उन्होंने मनुष्यों के जीवन में उनका मार्गदर्शन करने के लिए या उन्हें सत्य प्रदान करने के लिए या उन पर रहस्य प्रकट करने के लिए बोला था, और उन्हें जीवन प्रदान करने के लिए तो बिलकुल भी नहीं बोला था। इस चरण में बोले गए वचनों में भविष्यवाणी और सत्य है, किंतु वे मुख्य रूप से मनुष्य को जीवन प्रदान करने का काम करते हैं। वर्तमान समय में वचन नबियों की भविष्यवाणियों से भिन्न हैं। कार्य का यह चरण मनुष्य के जीवन के लिए है, मनुष्य के जीवन-स्वभाव को परिवर्तित करने के लिए है, न कि भविष्यवाणियाँ करने के लिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4)

पिछला: 3. आप इस बात की गवाही देते हैं कि वचन देह में प्रकट होता है को व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर द्वारा प्रतिपादित किया गया था, फिर भी ऐसे लोग हैं जो मानते हैं कि ये वचन किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा बोले गए थे जिसे पवित्र आत्मा द्वारा प्रबुद्ध किया गया था। तो आखिर, देहधारी परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचनों और पवित्र आत्मा द्वारा प्रबुद्ध किसी व्यक्ति द्वारा कहे गए शब्दों के बीच क्या अंतर होता है?

अगला: 1. वर्तमान में दुनिया भर के विभिन्न धार्मिक समुदायों में झूठे मसीहों द्वारा धोखा देने की कई घटनाएँ होती हैं। इस धोखे को इसकी वास्तविकता में देख पाने में असमर्थ, कई लोगों ने इन झूठे मसीहों का अनुसरण किया है, जिससे प्रभु यीशु की यह भविष्यवाणी पूरी होती है: "उस समय यदि कोई तुम से कहे, 'देखो, मसीह यहाँ है!' या 'वहाँ है!' तो विश्‍वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्‍ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें" (मत्ती 24:23-24)। इसलिए हम मानते हैं कि जिस किसी को भी प्रभु के आगमन के रूप में गवाही दी जाती है, वह निर्विवाद रूप से एक झूठा मसीह है, और उनकी तलाश करने और उनकी जाँच करने की कोई आवश्यकता नहीं है। क्या यह मानने में हम भूल कर रहे हैं?

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1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

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