134 काश मैं सदा तुम्हारे साथ रह पाऊँ
1
तुम जल्द ही सिय्योन लौट जाओगे, मेरा दिल बहुत उदास है।
मेरे दिल में बहुत कुछ है जो मैं तुमसे कहना चाहती हूँ मगर जानती नहीं कहां से शुरू करूँ।
कितने ही कर्ज़ है जो चुकाने हैं, मैं अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने में असमर्थ था और मैं खेद से भरा हूँ।
किसे ख़बर थी कि वक्त यूँ गुज़र जाएगा? पछतावे के आँसू हैं कि थमने का नाम नहीं लेते।
तुम्हारे अनुग्रह का मैंने बहुत आनंद लिया है, मेरा दिल दुखी है क्योंकि मैंने उसका प्रतिदान नहीं दिया है।
हे परमेश्वर, तुम जा रहे हो— मैं तुम्हें स्वेच्छा से कैसे जाने दे सकती हूँ?
2
अतीत की घटनाओं को कौन भुला सकता है? पुरानी भावनाओं के लगाव को कौन त्याग सकता है?
इतने बरसों तक अक्सर तुम हमारे साथ रहे हो, तुम्हारे वचन हर वक्त हमारा सिंचन और पोषण करते हैं।
हम अहंकार, कठोरता और विद्रोह प्रकट करते हैं, तुम हमारी काट-छाँट करते हो, निपटारा करते हो, हमें ताड़ना देते हो, हमें अनुशासित करते हो।
कितनी ही बार तुमने हमारा न्याय किया है, हमें कठोर ताड़ना दी है, और इस तरह हमारी भ्रष्टता शुद्ध होती है।
तूने हमारी खातिर अपने दिल का बहुत सारा खून दिया है। केवल इस प्रकार से ही हम अब बदल सकते हैं जैसे हम हैं।
मैं सत्य का अनुसरण करूंगा और अपना कर्तव्य अच्छे से करूंगा। मैं खुद को तेरे प्रति पूरी तरह से समर्पित करूंगा ताकि मैं कम से कम एक बार तुझे संतुष्ट कर सकूँ।
3
गालों पर ख़ामोश आँसू बह रहे हैं क्योंकि मैं अच्छी तरह से जानती हूँ मैं तुम्हें रुकने के लिए राज़ी नहीं कर सकती।
मेरे दिल में जो पछतावे हैं वो कभी हल नहीं हुए, मेरा दिल दर्द और पश्चाताप से भर हुआ है।
हालाँकि जो वक्त हमने साथ में गुज़ारा है वह कम है, मगर तुम्हारा चेहरा और वाणी मेरे दिल पर अंकित हो गए हैं।
मैं तुम्हारी वाणी के बारे में सोच रही हूँ, तुम्हारे प्रेम के लिए तरस रही हूँ, इंसान के लिए तुम्हारा प्रेम गहरा और मज़बूत है।
ख़ूबसूरत अतीत एक याद बन गया है, मेरा दिल कैस इसे छोडना चाहेगा?
तुम्हारी ईमानदारी की शिक्षाओं को मैं कैसे भूल सकती हूँ? मैं सिर्फ़ अपने दिल में तुम्हारे लिए अपनी तड़प को दफ़्न कर सकती हूँ।
न जाने फिर तुमसे कब मुलाकात होगी, काश मैं सदा तुम्हारे साथ रह पाऊँ।