434 परमेश्वर की मनोरमता को महसूस करने के लिए अपने दिल को उसकी ओर मोड़ दो
1 यदि तुम परमेश्वर की संतुष्टि के अनुसार सत्य को व्यवहार में ला सकते हो, तो तुम्हारा हृदय परमेश्वर की ओर मुड़ जाएगा। जितनी अधिक तुम परमेश्वर से प्रार्थना और बातचीत करोगे, उतना ही अधिक तुम यह जान पाओगे कि उसके बारे में सबसे प्रेमयोग्य क्या है। अगर, अपने हृदय की गहराई में, तुम वास्तव में परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए तैयार हो, तो वह अपना बोझ तुम पर रख देगा, और फिर तुम उसकी चरम मनोरमता की एक गहनतर अनुभूति हासिल करोगे। यह तुम्हें पूरे दिल से परमेश्वर से प्रेम करने में सक्षम बनाएगा, और तुम गहराई से महसूस करोगे कि वह बहुत प्यारा है। एक बार जब तुम नेकी से परमेश्वर से प्रेम करने में सक्षम हो जाते हो, तो तुम उसकी मनोरमता को—साथ ही मानवीय प्रेम की उसकी योग्यता को—अधिकाधिक महसूस करोगे और तब तुम स्वेच्छा से उसके प्रति समर्पित होने और उसकी पूजा करने में सक्षम होगे।
2 उस पल में, तुम अपने दिल की गहराई से परमेश्वर के लिए प्रशंसा को जन्म दे पाओगे; तुम उसकी स्तुति गाना चाहोगे और उस पर आभारपूर्ण सराहना लुटाना चाहोगे। जब तुम अपने अंतरतम अस्तित्व से उसकी प्रशंसा करोगे, तो कोई भी तुम्हें रोक नहीं पाएगा। जब तुम महसूस करोगे कि परमेश्वर कितना प्यारा है, तो उसके प्रति तुम्हारी कृतज्ञता और प्रशंसा और अधिक बढ़ेगी, और तब तुम्हारे पास उसके बारे में कम अवधारणाएँ और गलत विचार होंगे; शैतान के पास तब तुम पर काम करने के अवसर आने बंद हो जाएँगे। एक बार जब तुम इस मक़ाम पर पहुँच जाते हो, तो तुम शैतान के मौत के प्रभाव से पूरी तरह से दूर हो चुके होगे, और तुम्हारा दिल पूरी तरह से रिहा और आज़ाद हो जाएगा।
— परमेश्वर की संगति से उद्धृत