766 ईश्वर से प्रेम करने वालों का आदर्श-वाक्य
आज भी लोग नहीं जानते, ईश्वर अंत के दिनों में क्या है करता,
क्यों वो इंसान के साथ खड़ा होके देह में इतनी शर्मिंदगी सहे;
दुख के बावजूद साथ बना रहे।
1
इंसान न जाने ईश्वर के लक्ष्य, उसकी योजना के उद्देश्य।
वो जो प्रवेश मांगे, इंसान उसके प्रति उदासीन रहे।
ये देहधारी परमेश्वर के काम के लिए एक बड़ी चुनौती है।
इंसान बने बाधा, न समझे अच्छे से।
सभी भाई-बहन अपनी शक्ति में जो भी है करें,
अपना पूरा अस्तित्व ईश्वर के स्वर्गिक इरादों पर अर्पित करें।
तुम पवित्र सेवक बनो, ईश्वर के भेजे वादों का आनंद लो,
जिससे ईश्वर का हृदय शांति से आराम कर सके।
2
इस तरह ईश्वर इंसान पर किए जा रहे अपने काम,
अपने इरादों के बारे में बताएगा, जिससे तुम वफादार सेवक बनो।
अय्यूब की तरह तुम मर भले जाओ, पर ईश्वर को नहीं नकारोगे।
ईश्वर का विश्वासपात्र बनने को पतरस की तरह अपना सब-कुछ दोगे।
सभी भाई-बहन अपनी शक्ति में जो भी है करें,
अपना पूरा अस्तित्व ईश्वर के स्वर्गिक इरादों पर अर्पित करें।
तुम पवित्र सेवक बनो, ईश्वर के भेजे वादों का आनंद लो,
जिससे ईश्वर का हृदय शांति से आराम कर सके।
"परमपिता परमेश्वर की इच्छा पूरी करना" ही
ईश्वर को चाहने वालों का आदर्श-वाक्य हो।
ये इंसान के प्रवेश का मार्गदर्शक हो, उसके कार्यों को दिशा दिखाए।
इंसान का यही संकल्प होना चाहिए।
3
धरती पर ईश-कार्य पूरा करने में ईश्वर का सहयोग करना, इंसान का फ़र्ज़ है।
जिस दिन ईश-कार्य पूरा हो जाएगा, इंसान उसे विदाई देगा; वो स्वर्ग लौट जाएगा।
क्या इंसान को ये फ़र्ज़ निभाना नहीं चाहिए?
सभी भाई-बहन अपनी शक्ति में जो भी है करें,
अपना पूरा अस्तित्व ईश्वर के स्वर्गिक इरादों पर अर्पित करें।
तुम पवित्र सेवक बनो, ईश्वर के भेजे वादों का आनंद लो,
जिससे ईश्वर का हृदय शांति से आराम कर सके।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (6) से रूपांतरित