689 काट-छाँट और निपटान का अनुभव करना सबसे सार्थक है
1 कुछ लोग काट-छाँट किए जाने और निपटे जाने के बाद निष्क्रिय हो जाते हैं; वे अपना कर्तव्य निभाने में ऊर्जा गँवा देते हैं, और अंत में अपनी वफ़ादारी को गँवा देते हैं। ऐसा क्यों होता है? यह आंशिक तौर पर लोगों का उनके कृत्यों के सार के प्रति जागरूकता की कमी के कारण होता है, और इसके कारण काट-छाँट किए जाने और निपटे जाने के प्रति ग्रहणशीलता का अभाव हो जाता है। यह उनकी अहंकारी और दंभी प्रकृति द्वारा, और सत्य को प्रेम न करने की उनकी प्रकृति द्वारा निर्धारित होता है। यह आंशिक तौर पर इसलिए भी होता है कि वे काट-छाँट किए जाने और निपटे जाने के महत्व को नहीं समझते, और यह विश्वास करते हैं कि यह उनके परिणाम का निर्धारण करता है। परिणामस्वरूप, लोग विश्वास करते हैं कि यदि वे अपने परिवारों को त्यागते हैं, अपने आप को परमेश्वर के लिए व्यय करते हैं, और उसके प्रति कुछ वफ़ादारी रखते हैं, तो उनके साथ निपटा नहीं जाना चाहिए या उनकी काट-छाँट नहीं की जानी चाहिए; और यदि उनके साथ निपटा जाता है, तो यह परमेश्वर का प्रेम और उसकी धार्मिकता नहीं है।
2 वे काट-छाँट किया जाना या निपटे जाना स्वीकार क्यों नहीं करते हैं? आसान शब्दों में कहें तो,यह सब इसलिए है क्योंकि लोग अत्यधिक अहंकारी, दंभी, और आत्म-तुष्ट हैं, और वे सत्य से प्रेम नहीं करते हैं; ऐसा इसलिए है क्योंकि वे बहुत अधिक कपटी हैं—वे कठिनाई सहना नहीं चाहते हैं बल्कि आसान तरीके से आशीषों को प्राप्त करना चाहते हैं। लोग परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर ने कोई धार्मिक चीज़ नहीं की है; बात मात्र इतनी ही है कि लोग कभी भी विश्वास नहीं करते हैं कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह धार्मिक है। मानव की दृष्टि में, यदि परमेश्वर का कार्य मनुष्य की इच्छा के अनुसार नहीं है या यदि यह उन्हें जिसकी अपेक्षा थी, उसके अनुसार नहीं है, तो परमेश्वर अवश्य धार्मिक नहीं हो सकता। लोग कभी भी यह महसूस नहीं करते हैं कि उनके कृत्य सत्य के अनुरूप नहीं हैं, और वे परमेश्वर का विरोध करते हैं। यदि परमेश्वर कभी भी लोगों के अपराधों के कारण उन पर कार्य न करे या उनमें सुधार न करे और कभी भी उनकी गलतियों के लिए उलाहना न दे, परन्तु हमेशा शान्त रहे, उन्हें कभी भी उकसाए नहीं, कभी भी उन्हें नाराज़ न करे और कभी भी उनके दागों को प्रकट न करे, बल्कि उन्हें खाने-पीने और उसके साथ अच्छा समय बिताने दे, तो लोग कभी भी यह शिकायत नहीं करेंगे कि परमेश्वर धर्मी नहीं है। वे पाखंडपूर्ण ढंग से कहेंगे कि वह कभी भी धर्मी रहा ही नहीं।
3 मानव की दृष्टि में, यदि परमेश्वर का कार्य मनुष्य की इच्छा के अनुसार नहीं है या यदि यह उन्हें जिसकी अपेक्षा थी, उसके अनुसार नहीं है, तो परमेश्वर अवश्य धार्मिक नहीं हो सकता। लोग कभी भी यह महसूस नहीं करते हैं कि उनके कृत्य सत्य के अनुरूप नहीं हैं, और वे परमेश्वर का विरोध करते हैं। इसलिए, लोग अभी भी विश्वास नहीं करते कि परमेश्वर परिवर्तन के अनुसार उनका प्रदर्शन चाहता है। यदि लोग ऐसा करते रहेंगे तो परमेश्वर कैसे उन्हें आराम देने का आश्वासन दे सकता है? यदि परमेश्वर लोगों के प्रति थोड़ा सा ही उलाहना भरा होता, तो वे कभी भी विश्वास नहीं कर सकते थे कि वह उनके परिवर्तन के अनुसार प्रदर्शन देखता है। वे विश्वास करना बंद कर देंगे कि वह धर्मी है और परिवर्तित होने की उनकी इच्छा भी समाप्त हो जाएगी। यदि लोग इसी प्रकार की परिस्थितियों में जीते रहेंगे, तो वे स्वयं के ही विचारों से धोखा खाएंगे।
— "मसीह की बातचीतों के अभिलेख" में "परमेश्वर द्वारा लोगों के प्रदर्शन के अनुसार उनके परिणाम के निर्धारण का अर्थ" से रूपांतरित