इंसान की भ्रष्टता का खुलासा II
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 336
तुम कहते हो कि तुम देहधारी परमेश्वर को स्वीकार करते हो, और तुम स्वीकार करते हो कि वचन देह में प्रकट हुआ है, फिर भी उसकी पीठ पीछे तुम कुछ चीज़ें करते हो, ऐसी चीज़ें जो उसकी अपेक्षा के ख़िलाफ़ जाती हैं, और तुम्हारे हृदय में उसका कोई भय नहीं है। क्या यह परमेश्वर को स्वीकार करना है? तुम उस चीज़ को स्वीकार करते हो, जो वह कहता है, पर उन बातों का अभ्यास नहीं करते, जिनका कर सकते हो, न ही तुम उसके मार्ग पर चलते हो। क्या यह परमेश्वर को स्वीकार करना है? और हालाँकि तुम उसे स्वीकार करते हो, परंतु तुम्हारी मानसिकता उससे सतर्क रहने की है, उसका सम्मान करने की नहीं। यदि तुमने उसके कार्य को देखा और स्वीकार किया है और तुम जानते हो कि वह परमेश्वर है, और फिर भी तुम निरुत्साह और पूर्णतः अपरिवर्तित रहते हो, तो तुम उस तरह के व्यक्ति हो जिसे अभी जीता नहीं गया है। जिन्हें जीत लिया गया है, उन्हें वह सब करना चाहिए, जो वे कर सकते हैं; और हालाँकि वे उच्चतर सत्यों में प्रवेश करने में सक्षम नहीं हैं, और ये सत्य उनकी पहुँच से परे हो सकते हैं, फिर भी वे ऐसे लोग हैं, जो अपने हृदय में इन्हें प्राप्त करने के इच्छुक हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे जो स्वीकार कर सकते हैं, उसकी सीमाएँ हैं, और जिसका वे अभ्यास करने में सक्षम हैं, उसकी भी सीमाएँ हैं। फिर भी उन्हें कम से कम वह सब करना चाहिए, जो वे कर सकते हैं, और यदि तुम यह हासिल कर सकते हो, तो यह वह प्रभाव है, जो विजय के कार्य के कारण हासिल किया गया है। मान लो, तुम कहते हो, “यह देखते हुए कि वह ऐसे अनेक वचन सामने रख सकता है जिन्हें मनुष्य नहीं रख सकता, यदि वह परमेश्वर नहीं है, तो फिर कौन है?” इस प्रकार की सोच का यह अर्थ नहीं कि तुम परमेश्वर को स्वीकार करते हो। यदि तुम परमेश्वर को स्वीकार करते हो, तो यह तुम्हें अपने वास्तविक कार्यों के द्वारा प्रदर्शित करना चाहिए। यदि तुम किसी कलीसिया की अगुआई करते हो, परंतु धार्मिकता का अभ्यास नहीं करते, और धन और संपदा की लालसा रखते हो, और हमेशा कलीसिया का पैसा हड़प लेते हो, तो क्या यह, यह स्वीकार करना है कि परमेश्वर है? परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और श्रद्धा के योग्य है। तुम भयभीत कैसे नहीं होगे, यदि तुम वास्तव में स्वीकार करते हो कि परमेश्वर है? अगर तुम ऐसे घृणित कार्य करने में सक्षम हो, तो क्या तुम वास्तव में उसे स्वीकार करते हो? क्या वह परमेश्वर ही है, जिसमें तुम विश्वास करते हो? जिसमें तुम विश्वास करते हो, वह एक अज्ञात परमेश्वर है; इसीलिए तुम भयभीत नहीं हो! जो लोग वास्तव में परमेश्वर को स्वीकार करते और उसे जानते हैं, वे सभी उसका भय मानते हैं और ऐसा कुछ भी करने से डरते हैं, जो उसके विरोध में हो या जो उनके विवेक के विरुद्ध जाता हो; वे विशेषतः ऐसा कुछ भी करने से डरते हैं, जिसके बारे में वे जानते हैं कि वह परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध है। केवल इसे ही परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करना माना जा सकता है। तुम्हें क्या करना चाहिए, जब तुम्हारे माता-पिता तुम्हें परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने की कोशिश करते हैं? तुम्हें परमेश्वर से कैसे प्रेम करना चाहिए, जब तुम्हारा अविश्वासी पति तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करता है? और तुम्हें परमेश्वर से कैसे प्रेम करना चाहिए, जब भाई और बहन तुमसे घृणा करते हैं? यदि तुम उसे स्वीकार करते हो, तो इन मामलों में तुम उचित रूप से व्यवहार करोगे और वास्तविकता को जियोगे। यदि तुम ठोस कार्य करने में असफल रहते हो, परंतु मात्र कहते हो कि तुम परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करते हो, तब तुम मात्र एक बकवादी व्यक्ति हो! तुम कहते हो कि तुम उसमें विश्वास करते और उसे स्वीकार करते हो, पर तुम किस तरह से उसे स्वीकार करते हो? तुम किस तरह से उसमें विश्वास करते हो? क्या तुम उसका भय मानते हो? क्या तुम उसका सम्मान करते हो? क्या तुम उसे आंतरिक गहराई से प्रेम करते हो? जब तुम व्यथित होते हो और तुम्हारे पास सहारे के लिए कोई नहीं होता, तो तुम परमेश्वर की मनोहरता का अनुभव करते हो, पर बाद में तुम इसके बारे में सब-कुछ भूल जाते हो। यह परमेश्वर से प्रेम करना नहीं है, और न ही यह उसमें विश्वास करना है! अंततः परमेश्वर मनुष्य से क्या प्राप्त करवाना चाहता है? वे सब स्थितियाँ, जिनका मैंने उल्लेख किया, जैसे कि अपने स्वयं के महत्व से अत्यधिक प्रभावित महसूस करना, यह अनुभव करना कि तुम नई चीज़ों को अतिशीघ्र पकड़ और समझ लेते हो, अन्य लोगों को नियंत्रित करना, दूसरों को नीची निगाह से देखना, लोगों को उनकी दिखावट से आँकना, निष्कपट लोगों को धौंस देना, कलीसिया के धन की लालसा रखना, आदि-आदि—जब ये सभी भ्रष्ट शैतानी स्वभाव तुममें से अंशतः हटा दिए गए हों, केवल तभी तुम पर पाई गई जीत अभिव्यक्त होगी।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (4)
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 337
मैंने इस तरह से तुम लोगों के बीच कार्य किया और बात की है, मैंने बहुत सारी ऊर्जा व्यय की और प्रयास किए हैं, फिर भी तुम लोगों ने कब वह सुना है, जो मैं तुम लोगों से सीधे तौर पर कहता हूँ? तुम लोग कहाँ मुझ सर्वशक्तिमान के सामने झुके हो? तुम लोग मुझसे ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं? क्यों जो तुम लोग कहते और करते हो, वह मेरा क्रोध भड़काता है? तुम्हारे हृदय इतने कठोर क्यों हैं? क्या मैंने कभी भी तुम्हें मार गिराया है? क्यों तुम लोग मुझे दुःखी और चिंतित करने के अलावा और कुछ नहीं करते? क्या तुम लोग अपने ऊपर मेरे, यहोवा के, कोप के दिन के आने की प्रतीक्षा में हो? क्या तुम लोग प्रतीक्षा कर रहे हो कि मैं तुम्हारी अवज्ञा से भड़का क्रोध भेजूँ? क्या मैं जो कुछ करता हूँ, वह तुम लोगों के लिए नहीं है? फिर भी तुम लोगों ने सदैव मुझ यहोवा के साथ ऐसा व्यवहार किया है : मेरे बलिदान को चुराना, मेरे घर की वेदी के चढ़ावों को भेड़ियों की माँद में ले जाकर शावकों और शावकों के शावकों को खिलाना; लोग मुझ सर्वशक्तिमान के वचनों को मलमूत्र के समान गंदा करने के लिए पाखाने में उछालते हुए एक दूसरे से लड़ाई करते हैं, गुस्से से घूरते हुए तलवारों और भालों के साथ एक दूसरे का सामना करते हैं। तुम लोगों की ईमानदारी कहाँ है? तुम लोगों की मानवता पाशविकता बन गई है! तुम लोगों के हृदय बहुत पहले पत्थरों में बदल गए हैं। क्या तुम लोग नहीं जानते हो कि जब मेरे कोप का दिन आएगा, तब मुझ सर्वशक्तिमान के विरुद्ध आज की गई तुम लोगों की दुष्टता का मैं न्याय करूँगा? क्या तुम लोगों को लगता है कि मुझे इस प्रकार से बेवकूफ़ बनाकर, मेरे वचनों को कीचड़ में फेंककर और उन पर ध्यान न देकर—क्या तुम लोगों को लगता है कि मेरी पीठ पीछे ऐसा करके तुम लोग मेरी कुपित नज़रों से बच सकते हो? क्या तुम लोग नहीं जानते कि जब तुम लोगों ने मेरे बलिदानों को चुराया और मेरी चीज़ों के लिए लालायित हुए, तभी तुम लोग मुझ यहोवा की आँखों द्वारा पहले ही देखे जा चुके थे? क्या तुम लोग नहीं जानते कि जब तुम लोगों ने मेरे बलिदान चुराए, तो यह उस वेदी के सामने किया, जिस पर बलिदान चढ़ाए जाते हैं? तुमने कैसे मान लिया कि तुम इतने चालाक हो कि मुझे इस तरह से धोखा दे सकोगे? तुम लोगों की बुरी करतूतें मेरे प्रकोप से कैसे बच सकती हैं? मेरा प्रचंड क्रोध कैसे तुम लोगों के बुरे कामों को नज़रंदाज़ कर सकता है? आज तुम लोग जो बुराई करते हो, वह तुम लोगों के लिए कोई बचने का मार्ग नहीं खोलती, बल्कि तुम्हारे कल के लिए ताड़ना इकट्ठी करती है; यह तुम लोगों के प्रति मुझ सर्वशक्तिमान की ताड़ना को भड़काती है। कैसे तुम लोगों की बुरी करतूतें और बुरे वचन मेरी ताड़ना से बच सकते हैं? कैसे तुम लोगों की प्रार्थनाएँ मेरे कानों तक पहुँच सकती हैं? कैसे मैं तुम लोगों को अधार्मिकता से बचाने का मार्ग खोल सकता हूँ? मैं कैसे अपनी अवहेलना करने में तुम लोगों की बुरी करतूतों को जाने दे सकता हूँ? ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं तुम लोगों की ज़ुबानें काटकर अलग न कर दूँ, जो साँप के समान ज़हरीली हैं? तुम लोग मुझे अपनी धार्मिकता के वास्ते नहीं पुकारते, बल्कि इसके बजाय अपनी अधार्मिकता के परिणामस्वरूप मेरा कोप संचित करते हो। मैं तुम लोगों को कैसे क्षमा कर सकता हूँ? मेरी, सर्वशक्तिमान की नज़रों में, तुम लोगों के वचन और कार्य दोनों ही गंदे हैं। मेरी, सर्वशक्तिमान की नज़रें, तुम लोगों की अधार्मिकता को एक निर्मम ताड़ना के रूप में देखती हैं। कैसे मेरी धार्मिक ताड़ना और न्याय तुम लोगों से दूर जा सकती है? क्योंकि तुम लोग मेरे साथ ऐसा करते हो, मुझे दुःखी और कुपित करते हो, तो मैं कैसे तुम लोगों को अपने हाथों से बचकर जाने दे सकता हूँ और उस दिन से दूर होने दे सकता हूँ जब मैं, यहोवा तुम लोगों को ताड़ना और शाप दूँगा? क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों के सभी बुरे वचन और कथन पहले ही मेरे कानों तक पहुँच चुके हैं? क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों की अधार्मिकता ने पहले ही मेरी धार्मिकता के पवित्र लबादे को गंदा कर दिया है? क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों की अवज्ञा ने पहले से ही मेरे उग्र क्रोध को भड़का दिया है? क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों ने बहुत पहले से ही मुझे अति कुपित कर रखा है और बहुत समय पहले ही मेरे धैर्य को आज़मा चुके हो? क्या तुम नहीं जानते कि तुम लोग मेरी देह के टुकड़े करके उसे पहले ही नष्ट कर चुके हो? मैंने अब तक इतना सहा है कि मैं तुम लोगों के प्रति अब और सहिष्णु नहीं होता और अपना क्रोध प्रकट करता हूँ। क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों की बुरी करतूतें पहले ही मेरी आँखों के सामने आ गई हैं कि मेरी पुकार मेरे पिता के कानों तक पहले ही पहुँच चुकी हैं? वह कैसे तुम लोगों को मेरे साथ ऐसा व्यवहार करने दे सकता है? क्या मैं तुम लोगों में जो भी कार्य करता हूँ, वह तुम लोगों के वास्ते नहीं है? फिर भी तुम लोगों में से कौन मेरे, यहोवा के, कार्य को अधिक प्रेम करने लगा है? क्या मैं अपने पिता की इच्छा के प्रति विश्वासघाती हो सकता हूँ क्योंकि मैं कमज़ोर हूँ और क्योंकि मैंने पीड़ा सही है? क्या तुम लोग मेरे हृदय को नहीं समझते? मैं तुम लोगों से उसी तरह बोलता हूँ जैसे यहोवा बोलता था; क्या मैंने तुम लोगों के लिए बहुत ज्यादा समर्पित नहीं किया है? भले ही मैं अपने पिता के कार्य के वास्ते ये सभी कष्ट सहने को तैयार हूँ, फिर भी तुम लोग उस ताड़ना से कैसे मुक्त हो सकते हो, जिसे मैं अपने कष्टों के परिणामस्वरूप तुम्हें दूँगा? क्या तुम लोगों ने मेरा बहुत आनंद नहीं लिया है? आज, मैं अपने परमपिता द्वारा तुम को प्रदान किया गया हूँ; क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोग मेरे उदार वचनों से कहीं अधिक का आनंद लेते हो? क्या तुम लोग नहीं जानते कि मेरा जीवन तुम लोगों के जीवन और जिन चीजों का तुम आनंद लेते हो उनके बदले दिया गया था? क्या तुम लोग नहीं जानते कि मेरे पिता ने शैतान के साथ युद्ध के लिए मेरे जीवन का उपयोग किया और कि उसने मेरा जीवन तुम लोगों को प्रदान किया है, जिससे तुम लोगों को सौ गुना प्राप्त हो और तुम लोग कितने ही प्रलोभनों से बचने में सक्षम हो? क्या तुम लोग नहीं जानते कि यह केवल मेरे कार्य के माध्यम से ही है कि तुम लोगों को कई प्रलोभनों और कई उग्र ताड़नाओं से छूट दी गई है? क्या तुम लोग नहीं जानते कि यह केवल मेरे ही कारण है कि मेरे पिता ने तुम लोगों को अभी तक आनंद लेने दिया है? आज तुम लोग कैसे इतने कठोर और ज़िद्दी बने रह सकते हो, इतना कि जैसे तुम्हारे हृदयों के ऊपर घट्टे उग आए हों? वह दुष्टता जो तुम आज करते हो, कैसे उस कोप के दिन से बच सकती है, जो पृथ्वी से मेरे जाने के बाद आएगा? कैसे मैं उन कठोर और ज़िद्दी लोगों को यहोवा के क्रोध से बचने दे सकता हूँ?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कोई भी जो देह में है, कोप के दिन से नहीं बच सकता
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 338
अतीत के बारे में सोचो : कब तुम लोगों के प्रति मेरी दृष्टि क्रोधित, और मेरी आवाज़ कठोर हुई है? मैंने कब तुम लोगों में मीनमेख निकाली है? मैंने कब तुम लोगों को बेवजह प्रताड़ित किया है? मैंने कब तुम लोगों को तुम्हारे मुँह पर डाँटा है? क्या यह मेरे कार्य के वास्ते नहीं है कि मैं तुम लोगों को हर प्रलोभन से बचाने के लिए अपने परमपिता को पुकारता हूँ? तुम लोग मेरे साथ इस प्रकार का व्यवहार क्यों करते हो? क्या मैंने कभी भी अपने अधिकार का उपयोग तुम लोगों की देह को मार गिराने के लिए किया है? तुम लोग मुझे इस प्रकार का प्रतिफल क्यों दे रहे हो? मेरे प्रति कभी हाँ और कभी ना करने के बाद, तुम लोग न हाँ में हो और न ही ना में, और फिर तुम मुझे मनाने और मुझसे बातें छिपाने का प्रयास करते हो और तुम लोगों के मुँह अधार्मिकता के थूक से भरे हुए हैं? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम लोगों की ज़ुबानें मेरे आत्मा को धोखा दे सकती हैं? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम लोगों की ज़ुबानें मेरे कोप से बच सकती हैं? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम लोगों की ज़ुबानें मुझ यहोवा के कार्यों की, जैसी चाहे वैसी आलोचना कर सकती हैं? क्या मैं ऐसा परमेश्वर हूँ, जिसके बारे में मनुष्य आलोचना कर सकता है? क्या मैं छोटे से भुनगे को इस प्रकार अपनी ईशनिंदा करने दे सकता हूँ? मैं ऐसे अवज्ञाकारिता के पुत्रों को कैसे अपने अनंत आशीषों के बीच रख सकता हूँ? तुम लोगों के वचनों और कार्यों ने तुम लोगों को काफी समय तक उजागर और निंदित किया है। जब मैंने स्वर्ग का विस्तार किया और सभी चीज़ों का सृजन किया, तो मैंने किसी भी प्राणी को उसके मन मुताबिक़ भाग लेने की अनुमति नहीं दी, किसी भी चीज़ को उसके हिसाब से मेरे कार्य और मेरे प्रबंधन में गड़बड़ करने की अनुमति तो बिल्कुल नहीं दी। मैंने किसी भी मनुष्य या वस्तु को सहन नहीं किया; मैं कैसे उन लोगों को छोड़ सकता हूँ, जो मेरे प्रति निर्दयी और क्रूर और अमानवीय हैं? मैं कैसे उन लोगों को क्षमा कर सकता हूँ, जो मेरे वचनों के ख़िलाफ़ विद्रोह करते हैं? मैं कैसे उन्हें छोड़ सकता हूँ, जो मेरी अवज्ञा करते हैं? क्या मनुष्य की नियति मुझ सर्वशक्तिमान के हाथों में नहीं है? मैं कैसे तुम्हारी अधार्मिकता और अवज्ञा को पवित्र मान सकता हूँ? तुम्हारे पाप मेरी पवित्रता को कैसे मैला कर सकते हैं? मैं अधर्मी की अशुद्धता से दूषित नहीं होता, न ही मैं अधर्मियों के चढ़ावों का आनंद लेता हूँ। यदि तुम मुझ यहोवा के प्रति वफादार होते, तो क्या तुम मेरी वेदी से बलिदानों को अपने लिए ले सकते थे? क्या तुम मेरे पवित्र नाम की ईशनिंदा के लिए अपनी विषैली ज़ुबान का उपयोग कर सकते थे? क्या तुम इस प्रकार मेरे वचनों के विरुद्ध विद्रोह कर सकते थे? क्या तुम मेरी महिमा और पवित्र नाम को, एक दुष्ट, शैतान की सेवा के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग कर सकते थे? मेरा जीवन पवित्र लोगों के आनंद के लिए प्रदान किया जाता है। मैं तुम्हें कैसे अपने जीवन के साथ तुम्हारी इच्छानुसार खेलने और तुम लोगों के बीच के संघर्ष में इसे एक उपकरण के रूप में उपयोग करने की इजाज़त दे सकता हूँ? तुम लोग अच्छाई के मार्ग में इतने निर्दयी और इतने अभावग्रस्त कैसे हो सकते हो, जैसे तुम मेरे प्रति हो? क्या तुम लोग नहीं जानते कि मैंने पहले ही तुम लोगों की बुरी करतूतों को जीवन के इन वचनों में लिख दिया है? जब मैं मिस्र को ताड़ना देता हूँ, तब तुम लोग कोप के दिन से कैसे बच सकते हो? कैसे तुम लोगों को इस तरह बार-बार अपना विरोध और अनादर करने की अनुमति दे सकता हूँ? मैं तुम लोगों को सीधे तौर पर कहता हूँ कि जब वह दिन आएगा, तो तुम लोगों की ताड़ना मिस्र की ताड़ना की अपेक्षा अधिक असहनीय होगी! तुम लोग कैसे मेरे कोप के दिन से बच सकते हो? मैं तुम लोगों से सत्य कहता हूँ : मेरी सहनशीलता तुम लोगों की बुरी करतूतों के लिए तैयार की गई थी और उस दिन तुम लोगों की ताड़ना के लिए मौजूद है। एक बार जब मेरी सहनशीलता चुक गई, तो क्या तुम लोग वह नहीं होगे जो कुपित न्याय भुगतेंगे? क्या सभी चीज़ें मुझ सर्वशक्तिमान के हाथों में नहीं हैं? मैं कैसे इस प्रकार स्वर्ग के नीचे तुम लोगों को अपनी अवज्ञा की अनुमति दे सकता हूँ? तुम लोगों का जीवन अत्यंत कठोर होगा क्योंकि तुम मसीहा से मिल चुके हो, जिसके बारे में कहा गया था कि वह आएगा, फिर भी जो कभी नहीं आया। क्या तुम लोग उसके शत्रु नहीं हो? यीशु तुम लोगों का मित्र रहा है, फिर भी तुम लोग मसीहा के शत्रु हो। क्या तुम लोग नहीं जानते कि यद्यपि तुम लोग यीशु के मित्र हो, पर तुम लोगों की बुरी करतूतों ने उन लोगों के पात्रों को भर दिया है, जो घृणा योग्य हैं? यद्यपि तुम लोग यहोवा के बहुत करीबी हो, पर क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों के बुरे वचन यहोवा के कानों तक पहुँच गए हैं और उन्होंने उसके क्रोध को भड़का दिया है? वह तुम्हारा करीबी कैसे हो सकता है, और वह कैसे तुम्हारे उन पात्रों को नहीं जला सकता, जो बुरी करतूतों से भरे हुए हैं? कैसे वह तुम्हारा शत्रु नहीं हो सकता?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कोई भी जो देह में है, कोप के दिन से नहीं बच सकता
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 339
अब मैं तुम्हारी अनुरक्त देह को देख रहा हूँ जो मुझे विचलित कर देगी, और मेरे पास तुम्हारे लिए केवल एक छोटी-सी चेतावनी है, हालाँकि मैं ताड़ना से तुम्हारी “सेवा” नहीं करूँगा। तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम मेरे कार्य में क्या भूमिका निभाते हो, और तब मैं संतुष्ट रहूँगा। इससे परे के मामलों में, यदि तुम मेरा विरोध करते हो या मेरे पैसे खर्च करते हो, या मुझ यहोवा के लिए चढ़ाई गई भेंटें खा जाते हो, या तुम भुनगे एक-दूसरे को काटते हो, या तुम कुत्ते-जैसे प्राणी आपस में संघर्ष या एक-दूसरे का अतिक्रमण करते हो—तो मेरी इनमें से किसी में भी दिलचस्पी नहीं है। तुम लोगों को केवल इतना ही जानने की आवश्यकता है कि तुम लोग किस प्रकार की चीजें हो, और मैं संतुष्ट हो जाऊँगा। इस सबके अलावा, यदि तुम लोग एक-दूसरे पर हथियार तानना चाहते हो या शब्दों से एक-दूसरे के साथ लड़ना चाहते हो, तो ठीक है; ऐसी चीजों में हस्तक्षेप करने की मेरी कोई इच्छा नहीं है, और मैं मनुष्य के मामलों में बिलकुल भी शामिल नहीं होता। ऐसा नहीं है कि मैं तुम लोगों के बीच के संघर्षों की परवाह नहीं करता; बल्कि ऐसा है कि मैं तुम लोगों में से एक नहीं हूँ, और इसलिए मैं उन मामलों में भाग नहीं लेता, जो तुम लोगों के बीच होते हैं। मैं स्वयं एक सृजित प्राणी नहीं हूँ और दुनिया का नहीं हूँ, इसलिए मैं लोगों के हलचल भरे जीवन से और उनके बीच गंदे, अनुचित संबंधों से घृणा करता हूँ। मैं विशेष रूप से कोलाहलपूर्ण भीड़ से घृणा करता हूँ। हालाँकि, मुझे प्रत्येक सृजित प्राणी के हृदय की अशुद्धियों की गहरी जानकारी है, और तुम लोगों को सृजित करने से पहले से ही मैं मानव-हृदय में गहराई से विद्यमान अधार्मिकता को जानता था, और मुझे मानव-हृदय के सभी धोखों और कुटिलता की जानकारी थी। इसलिए, भले ही जब लोग अधार्मिक कार्य करते हैं, तब उसका बिलकुल भी कोई निशान दिखाई न देता हो, किंतु मुझे तब भी पता चल जाता है कि तुम लोगों के हृदयों में समाई अधार्मिकता उन सभी चीजों की प्रचुरता को पार कर जाती है, जो मैंने बनाई हैं। तुम लोगों में से हर एक अधिकता के शिखर तक उठ चुका है; तुम लोग बहुतायत के पितरों के रूप में आरोहण कर चुके हो। तुम लोग अत्यंत स्वेच्छाचारी हो, और आराम के स्थान की तलाश करते हुए और अपने से छोटे भुनगों को निगलने का प्रयास करते हुए उन सभी भुनगों के बीच पगलाकर दौड़ते हो। अपने हृदयों में तुम लोग द्वेषपूर्ण और कुटिल हो, और समुद्र-तल में डूबे हुए भूतों को भी पीछे छोड़ चुके हो। तुम गोबर की तली में रहते हो और ऊपर से नीचे तक भुनगों को तब तक परेशान करते हो, जब तक कि वे बिलकुल अशांत न हो जाएँ, और थोड़ी देर एक-दूसरे से लड़ने-झगड़ने के बाद शांत होते हो। तुम लोगों को अपनी जगह का पता नहीं है, फिर भी तुम लोग गोबर में एक-दूसरे के साथ लड़ाई करते हो। इस तरह की लड़ाई से तुम क्या हासिल कर सकते हो? यदि तुम लोगों के हृदय में वास्तव में मेरे लिए आदर होता, तो तुम लोग मेरी पीठ पीछे एक-दूसरे के साथ कैसे लड़ सकते थे? तुम्हारी हैसियत कितनी भी ऊँची क्यों न हो, क्या तुम फिर भी गोबर में एक बदबूदार छोटा-सा कीड़ा ही नहीं हो? क्या तुम पंख उगाकर आकाश में उड़ने वाला कबूतर बन पाओगे? बदबूदार छोटे कीड़ो, तुम लोग मुझ यहोवा की वेदी के चढ़ावे चुराते हो; ऐसा करके क्या तुम लोग अपनी बरबाद, असफल प्रतिष्ठा बचा सकते हो और इस्राएल के चुने हुए लोग बन सकते हो? तुम लोग बेशर्म कमीने हो! वेदी पर वे भेंटें लोगों द्वारा अपनी उन उदार भावनाओं की अभिव्यक्ति के रूप में मुझे चढ़ाई गई थीं, जिनसे वे मेरा आदर करते हैं। वे मेरे नियंत्रण और मेरे उपयोग के लिए होती हैं, तो लोगों द्वारा मुझे दिए गए छोटे जंगली कबूतर संभवतः तुम मुझसे कैसे लूट सकते हो? क्या तुम एक यहूदा बनने से नहीं डरते? क्या तुम इस बात से नहीं डरते कि तेरी भूमि रक्त का मैदान बन सकती है? बेशर्म चीज़! क्या तुम्हें लगता है कि लोगों द्वारा चढ़ाए गए जंगली कबूतर तुम भुनगों का पेट भरने के लिए हैं? मैंने तुम्हें जो दिया है, वह वही है जिससे मैं संतुष्ट हूँ और तुम्हें देने का इच्छुक हूँ; मैंने तुम्हें जो नहीं दिया है, वह मेरी इच्छा पर है। तुम बस मेरे चढ़ावे चुरा नहीं सकते। वह एक, जो कार्य करता है, वह मैं, यहोवा—सृष्टि का प्रभु—हूँ, और लोग मेरी वजह से भेंटें चढ़ाते हैं। क्या तुम्हे लगता है कि तुम जो दौड़-भाग करते हो, यह उसकी भरपाई है? तुम सच में बेशर्म हो! तुम किसके लिए दौड़-भाग करते हो? क्या यह तुम्हारे अपने लिए नहीं है? तुम मेरी भेंटें क्यों चुराते हो? तुम मेरे बटुए में से पैसे क्यों चुराते हो? क्या तुम यहूदा इस्करियोती के बेटे नहीं हो? मुझ यहोवा को चढ़ाई गई भेंटें याजकों द्वारा उपभोग किए जाने के लिए हैं। क्या तुम याजक हो? तुम मेरी भेंटें दंभ के साथ खाने की हिम्मत करते हो, यहाँ तक कि उन्हें मेज पर छोड़ देते हो; तुम किसी लायक नहीं हो! नालायक कमीने! मुझ यहोवा की आग तुम्हें भस्म कर देगी!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, तो तुम्हें अपनी की हुई सभी बुराइयों पर पछतावा होगा
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 340
तुम लोगों का विश्वास बहुत सुंदर है; तुम्हारा कहना है कि तुम अपना सारा जीवन-काल मेरे कार्य के लिए खपाने को तैयार हो, और तुम इसके लिए अपने प्राणों का बलिदान करने को तैयार हो, लेकिन तुम्हारे स्वभाव में अधिक बदलाव नहीं आया है। तुम लोग बस हेकड़ी से बोलते हो, बावजूद इस तथ्य के कि तुम्हारा वास्तविक व्यवहार बहुत घिनौना है। यह ऐसा है जैसे कि लोगों की जीभ और होंठ तो स्वर्ग में हों, लेकिन उनके पैर बहुत नीचे पृथ्वी पर हों, परिणामस्वरूप उनके वचन और कर्म तथा उनकी प्रतिष्ठा अभी भी चिथड़ा-चिथड़ा और विध्वस्त हैं। तुम लोगों की प्रतिष्ठा नष्ट हो गई है, तुम्हारा ढंग खराब है, तुम्हारे बोलने का तरीका निम्न कोटि का है, तुम्हारा जीवन घृणित है; यहाँ तक कि तुम्हारी सारी मनुष्यता डूबकर नीच अधमता में पहुँच गई है। तुम दूसरों के प्रति संकीर्ण सोच रखते हो और छोटी-छोटी बात पर बखेड़ा करते हो। तुम अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत को लेकर इस हद तक झगड़ते हो कि नरक और आग की झील में उतरने तक को तैयार रहते हो। तुम लोगों के वर्तमान वचन और कर्म मेरे लिए यह तय करने के लिए काफी हैं कि तुम लोग पापी हो। मेरे कार्य के प्रति तुम लोगों का रवैया मेरे लिए यह तय करने के लिए काफी है कि तुम लोग अधर्मी हो, और तुम लोगों के समस्त स्वभाव यह इंगित करने के लिए पर्याप्त हैं कि तुम लोग घृणित आत्माएँ हो, जो गंदगी से भरी हैं। तुम लोगों की अभिव्यक्तियाँ और जो कुछ भी तुम प्रकट करते हो, वह यह कहने के लिए पर्याप्त हैं कि तुम वे लोग हो, जिन्होंने अशुद्ध आत्माओं का पेट भरकर रक्त पी लिया है। जब राज्य में प्रवेश करने का जिक्र होता है, तो तुम लोग अपनी भावनाएँ जाहिर नहीं करते। क्या तुम लोग मानते हो कि तुम्हारा मौजूदा ढंग तुम्हें मेरे स्वर्ग के राज्य के द्वार में प्रवेश कराने के लिए पर्याप्त है? क्या तुम लोग मानते हो कि तुम मेरे कार्य और वचनों की पवित्र भूमि में प्रवेश पा सकते हो, इससे पहले कि मैं तुम लोगों के वचनों और कर्मों का परीक्षण करूँ? कौन है, जो मेरी आँखों में धूल झोंक सकता है? तुम लोगों का घृणित, नीच व्यवहार और बातचीत मेरी दृष्टि से कैसे छिपे रह सकते हैं? तुम लोगों के जीवन मेरे द्वारा उन अशुद्ध आत्माओं का रक्त और मांस पीने और खाने वालों के जीवन के रूप में तय किए गए हैं, क्योंकि तुम लोग रोज़ाना मेरे सामने उनका अनुकरण करते हो। मेरे सामने तुम्हारा व्यवहार विशेष रूप से ख़राब रहा है, तो मैं तुम्हें घृणित कैसे न समझता? तुम्हारे शब्दों में अशुद्ध आत्माओं की अपवित्रताएँ है : तुम फुसलाते हो, भेद छिपाते हो चापलूसी करते हो, ठीक उन लोगों की तरह जो टोने-टोटकों में संलग्न रहते हैं और उनकी तरह भी जो विश्वासघाती हैं और अधर्मियों का खून पीते हैं। मनुष्य के समस्त भाव बेहद अधार्मिक हैं, तो फिर सभी लोगों को पवित्र भूमि में कैसे रखा जा सकता है, जहाँ धर्मी रहते हैं? क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारा यह घिनौना व्यवहार तुम्हें उन अधर्मी लोगों की तुलना में पवित्र होने की पहचान दिला सकता है? तुम्हारी साँप जैसी जीभ अंततः तुम्हारी इस देह का नाश कर देगी, जो तबाही बरपाती है और घृणा ढोती है, और तुम्हारे वे हाथ भी, जो अशुद्ध आत्माओं के रक्त से सने हैं, अंततः तुम्हारी आत्मा को नरक में खींच लेंगे। तो फिर तुम मैल से सने अपने हाथों को साफ़ करने का यह मौका क्यों नहीं लपकते? और तुम अधर्मी शब्द बोलने वाली अपनी इस जीभ को काटकर फेंकने के लिए इस अवसर का लाभ क्यों नहीं उठाते? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम अपने हाथों, जीभ और होंठों के लिए नरक की आग में जलने के लिए तैयार हो? मैं अपनी दोनों आँखों से हरेक व्यक्ति के दिल पर नज़र रखता हूँ, क्योंकि मानव-जाति के निर्माण से बहुत पहले मैंने उनके दिलों को अपने हाथों में पकड़ा था। मैंने बहुत पहले लोगों के दिलों के भीतर झाँककर देख लिया था, इसलिए उनके विचार मेरी दृष्टि से कैसे बच सकते थे? मेरे आत्मा द्वारा जलाए जाने से बचने में उन्हें ज्यादा देर कैसे नहीं हो सकती थी?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम सभी कितने नीच चरित्र के हो!
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 341
तुम्हारे होंठ कबूतरों से अधिक दयालु हैं, लेकिन तुम्हारा दिल पुराने साँप से ज्यादा भयानक है। तुम्हारे होंठ लेबनानी महिलाओं जितने सुंदर हैं, लेकिन तुम्हारा दिल उनकी तरह दयालु नहीं है, और कनानी लोगों की सुंदरता से तुलना तो वह निश्चित रूप से नहीं कर सकता। तुम्हारा दिल बहुत धोखेबाज़ है! जिन चीज़ों से मुझे घृणा है, वे केवल अधर्मी के होंठ और उनके दिल हैं, और लोगों से मेरी अपेक्षाएँ, संतों से मेरी अपेक्षा से जरा भी अधिक नहीं हैं; बात बस इतनी है कि मुझे अधर्मियों के बुरे कर्मों से घृणा महसूस होती है, और मुझे उम्मीद है कि वे अपनी मलिनता दूर कर पाएँगे और अपनी मौजूदा दुर्दशा से बच सकेंगे, ताकि वे उन अधर्मी लोगों से अलग खड़े हो सकें और उन लोगों के साथ रह सकें और पवित्र हो सकें, जो धर्मी हैं। तुम लोग उन्हीं परिस्थितियों में हो जिनमें मैं हूँ, लेकिन तुम लोग मैल से ढके हो; तुम्हारे पास उन मनुष्यों की मूल समानता का छोटे से छोटा अंश भी नहीं है, जिन्हें शुरुआत में बनाया गया था। इतना ही नहीं, चूँकि तुम लोग रोज़ाना उन अशुद्ध आत्माओं की नकल करते हो, और वही करते हो जो वे करती हैं और वही कहते हो जो वे कहती हैं, इसलिए तुम लोगों के समस्त अंग—यहाँ तक कि तुम लोगों की जीभ और होंठ भी—उनके गंदे पानी से इस क़दर भीगे हुए हैं कि तुम लोग पूरी तरह से दाग़ों से ढँके हुए हो, और तुम्हारा एक भी अंग ऐसा नहीं है जिसका उपयोग मेरे कार्य के लिए किया जा सके। यह बहुत हृदय-विदारक है! तुम लोग घोड़ों और मवेशियों की ऐसी दुनिया में रहते हो, और फिर भी तुम लोगों को वास्तव में परेशानी नहीं होती; तुम लोग आनंद से भरे हुए हो और आज़ादी तथा आसानी से जीते हो। तुम लोग उस गंदे पानी में तैर रहे हो, फिर भी तुम्हें वास्तव में इस बात का एहसास नहीं है कि तुम इस तरह की दुर्दशा में गिर चुके हो। हर दिन तुम अशुद्ध आत्माओं के साहचर्य में रहते हो और “मल-मूत्र” के साथ व्यवहार करते हो। तुम्हारा जीवन बहुत भद्दा है, फिर भी तुम इस बात से अवगत नहीं हो कि तुम बिलकुल भी मनुष्यों की दुनिया में नहीं रहते और तुम अपने नियंत्रण में नहीं हो। क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारा जीवन बहुत पहले ही अशुद्ध आत्माओं द्वारा रौंद दिया गया था, या कि तुम्हारा चरित्र बहुत पहले ही गंदे पानी से मैला कर दिया गया था? क्या तुम्हें लगता है कि तुम एक सांसारिक स्वर्ग में रह रहे हो, और तुम खुशियों के बीच में हो? क्या तुम नहीं जानते कि तुमने अपना जीवन अशुद्ध आत्माओं के साथ बिताया है, और तुम हर उस चीज़ के साथ सह-अस्तित्व में रहे हो जो उन्होंने तुम्हारे लिए तैयार की है? तुम्हारे जीने के ढंग का कोई अर्थ कैसे हो सकता है? तुम्हारे जीवन का कोई मूल्य कैसे हो सकता है? तुम अपने माता-पिता के लिए, अशुद्ध आत्माओं के माता-पिता के लिए, दौड़-भाग करते रहे हो, फिर भी तुम्हें वास्तव में इस बात का अंदाज़ा नहीं है कि तुम्हें फँसाने वाले वे अशुद्ध आत्माओं के माता-पिता हैं, जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया और पाल-पोसकर बड़ा किया। इसके अलावा, तुम नहीं जानते कि तुम्हारी सारी गंदगी वास्तव में उन्होंने ही तुम्हें दी है; तुम बस यही जानते हो कि वे तुम्हें “आनंद” दे सकते हैं, वे तुम्हें ताड़ना नहीं देते, न ही वे तुम्हारी आलोचना करते हैं, और विशेष रूप से वे तुम्हें शाप नहीं देते। वे कभी तुम पर गुस्से से भड़के नहीं, बल्कि तुम्हारे साथ स्नेह और दया का व्यवहार करते हैं। उनके शब्द तुम्हारे दिल को पोषण देते हैं और तुम्हें लुभाते हैं, ताकि तुम गुमराह हो जाओ, और बिना एहसास किए, तुम फँसालिए जाते हो और उनकी सेवा करने के इच्छुक हो जाते हो, उनके निकास और नौकर बन जाते हो। तुम्हें कोई शिकायत नहीं होती है, बल्कि तुम उनके लिए कुत्तों और घोड़ों की तरह कार्य करने के लिए तैयार रहते हो; वे तुम्हें धोखा देते हैं। यही कारण है कि मेरे कार्य के प्रति तुम्हारी कोई प्रतिक्रिया नहीं है। कोई आश्चर्य नहीं कि तुम हमेशा मेरे हाथों से चुपके से निकल जाना चाहते हो, और कोई आश्चर्य नहीं कि तुम हमेशा मीठे शब्दों का प्रयोग करके छल से मेरी सहायता चाहते हो। इससे पता चलता है कि तुम्हारे पास पहले से एक दूसरी योजना थी, एक दूसरी व्यवस्था थी। तुम मेरे कुछ कार्यों को सर्वशक्तिमान के कार्य के रूप में देख सकते हो, पर तुम्हें मेरे न्याय और ताड़ना की जरा-सी भी जानकारी नहीं है। तुम्हें कोई अंदाज़ा नहीं है कि मेरी ताड़ना कब शुरू हुई; तुम केवल मुझे धोखा देना जानते हो—लेकिन तुम यह नहीं जानते कि मैं मनुष्य का कोई उल्लंघन बरदाश्त नहीं करूँगा। चूँकि तुम पहले ही मेरी सेवा करने का संकल्प ले चुके हो, इसलिए मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा। मैं ईर्ष्यालु परमेश्वर हूँ, और मैं वह परमेश्वर हूँ, जो मनुष्य के प्रति ईर्ष्या रखता है। चूँकि तुमने पहले ही अपने शब्दों को वेदी पर रख दिया है, इसलिए मैं यह बरदाश्त नहीं करूँगा कि तुम मेरी ही आँखों के सामने से भाग जाओ, न ही मैं यह बरदाश्त करूँगा कि तुम दो स्वामियों की सेवा करो। क्या तुम्हें लगता है कि मेरी वेदी पर और मेरी आँखों के सामने अपने शब्दों को रखने के बाद तुम किसी दूसरे से प्रेम कर सकते हो? मैं लोगों को इस तरह से मुझे मूर्ख कैसे बनाने दे सकता हूँ? क्या तुम्हें लगता था कि तुम अपनी जीभ से यूँ ही मेरे लिए प्रतिज्ञा और शपथ ले सकते हो? तुम मेरे सिंहासन की शपथ कैसे ले सकते हो, मेरा सिंहासन, मैं जो सबसे ऊँचा हूँ? क्या तुम्हें लगा कि तुम्हारी शपथ पहले ही खत्म हो चुकी है? मैं तुम लोगों को बता दूँ : तुम्हारी देह भले ही खत्म हो जाए, पर तुम्हारी शपथ खत्म नहीं हो सकती। अंत में, मैं तुम लोगों की शपथ के आधार पर तुम्हें दंड दूंगा। हालाँकि तुम लोगों को लगता है कि अपने शब्द मेरे सामने रखकर मेरा सामना कर लोगे, और तुम लोगों के दिल अशुद्ध और बुरी आत्माओं की सेवा कर सकते हैं। मेरा क्रोध उन कुत्ते और सुअर जैसे लोगों को कैसे सहन कर सकता है, जो मुझे धोखा देते हैं? मुझे अपने प्रशासनिक आदेश कार्यान्वित करने होंगे, और अशुद्ध आत्माओं के हाथों से उन सभी पाखंडी, “पवित्र” लोगों को वापस खींचना होगा जिनका मुझमें विश्वास है, ताकि वे एक अनुशासित प्रकार से मेरे लिए “सेवारत” हो सकें, मेरे बैल बन सकें, मेरे घोड़े बन सकें, मेरे संहार की दया पर रह सकें। मैं तुमसे तुम्हारा पिछला संकल्प फिर से उठवाऊँगा और एक बार फिर से अपनी सेवा करवाऊँगा। मैं ऐसे किसी भी सृजित प्राणी को बरदाश्त नहीं करूँगा, जो मुझे धोखा दे। तुम्हें क्या लगा कि तुम बस बेहूदगी से अनुरोध कर सकते हो और मेरे सामने झूठ बोल सकते हो? क्या तुम्हें लगा कि मैंने तुम्हारे वचन और कर्म सुने या देखे नहीं? तुम्हारे वचन और कर्म मेरी दृष्टि में कैसे नहीं आ सकते? मैं लोगों को इस तरह अपने को धोखा कैसे देने दे सकता हूँ?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम सभी कितने नीच चरित्र के हो!
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 342
मैं तुम लोगों के बीच में रहा हूँ, कई वसंत और पतझड़ तुम्हारे साथ जुड़ा रहा हूँ; मैं लंबे समय तक तुम लोगों के बीच जीया हूँ, और तुम लोगों के साथ जीया हूँ। तुम लोगों का कितना घृणित व्यवहार मेरी आँखों के सामने से फिसला है? तुम्हारे वे हृदयस्पर्शी शब्द लगातार मेरे कानों में गूँजते हैं; तुम लोगों की हज़ारों-करोड़ों आकांक्षाएँ मेरी वेदी पर रखी गई हैं—इतनी ज्यादा कि उन्हें गिना भी नहीं जा सकता। लेकिन तुम लोगों का जो समर्पण है और जितना तुम अपने आपको खपाते हो, वह रंचमात्र भी नहीं है। मेरी वेदी पर तुम लोग ईमानदारी की एक नन्ही बूँद भी नहीं रखते। मुझ पर तुम लोगों के विश्वास के फल कहाँ हैं? तुम लोगों ने मुझसे अनंत अनुग्रह प्राप्त किया है और तुमने स्वर्ग के अनंत रहस्य देखे हैं; यहाँ तक कि मैंने तुम लोगों को स्वर्ग की लपटें भी दिखाई हैं, लेकिन तुम लोगों को जला देने को मेरा दिल नहीं माना। फिर भी, बदले में तुम लोगों ने मुझे कितना दिया है? तुम लोग मुझे कितना देने के लिए तैयार हो? जो भोजन मैंने तुम्हारे हाथ में दिया है, पलटकर उसी को तुम मुझे पेश कर देते हो, बल्कि यह कहते हो कि वह तुम्हें अपनी कड़ी मेहनत के पसीने के बदले मिला है और तुम अपना सर्वस्व मुझे अर्पित कर रहे हो। तुम यह कैसे नहीं जानते कि मेरे लिए तुम्हारा “योगदान” बस वे सभी चीज़ें हैं, जो मेरी ही वेदी से चुराई गई हैं? इतना ही नहीं, अब तुम वे चीज़ें मुझे चढ़ा रहे हो, क्या तुम मुझे धोखा नहीं दे रहे? तुम यह कैसे नहीं जान पाते कि आज जिन भेंटों का आनंद मैं उठा रहा हूँ, वे मेरी वेदी पर चढ़ाई गई सभी भेंटें हैं, न कि जो तुमने अपनी कड़ी मेहनत से कमाई हैं और फिर मुझे प्रदान की हैं। तुम लोग वास्तव में मुझे इस तरह धोखा देने की हिम्मत करते हो, इसलिए मैं तुम लोगों को कैसे माफ़ कर सकता हूँ? तुम लोग मुझसे इसे और सहने की अपेक्षा कैसे कर सकते हो? मैंने तुम लोगों को सब-कुछ दे दिया है। मैंने तुम लोगों के लिए सब-कुछ खोलकर रख दिया है, तुम्हारी ज़रूरतें पूरी की हैं, और तुम लोगों की आँखें खोली हैं, फिर भी तुम लोग अपनी अंतरात्मा की अनदेखी कर इस तरह मुझे धोखा देते हो। मैंने निःस्वार्थ भाव से अपना सब-कुछ तुम लोगों पर न्योछावर कर दिया है, ताकि तुम लोग अगर पीड़ित भी होते हो, तो भी तुम लोगों को मुझसे वह सब मिल जाए, जो मैं स्वर्ग से लाया हूँ। इसके बावजूद तुम लोगों में बिलकुल भी समर्पण नहीं है, और अगर तुमने कोई छोटा-मोटा योगदान किया भी हो, तो बाद में तुम मुझसे उसका “हिसाब बराबर” करने की कोशिश करते हो। क्या तुम्हारा योगदान शून्य नहीं माना जाएगा? तुमने मुझे मात्र रेत का एक कण दिया है, जबकि माँगा एक टन सोना है। क्या तुम सर्वथा विवेकहीन नहीं बन रहे हो? मैं तुम लोगों के बीच काम करता हूँ। बदले में जो कुछ मुझे मिलना चाहिए, उसके दस प्रतिशत का भी कोई नामोनिशान नहीं है, अतिरिक्त बलिदानों की तो बात ही छोड़ दो। इसके अलावा, धर्मपरायण लोगों द्वारा दिए जाने वाले उस दस प्रतिशत को भी दुष्टों द्वारा छीन लिया जाता है। क्या तुम लोग मुझसे तितर-बितर नहीं हो गए हो? क्या तुम सब मेरे विरोधी नहीं हो? क्या तुम सब मेरी वेदी को नष्ट नहीं कर रहे हो? ऐसे लोगों को मेरी आँखें एक खज़ाने के रूप में कैसे देख सकती हैं? क्या वे सुअर और कुत्ते नहीं हैं, जिनसे मैं घृणा करता हूँ? मैं तुम लोगों के दुष्कर्मों को खज़ाना कैसे कह सकता हूँ? मेरा कार्य वास्तव में किसके लिए किया जाता है? क्या इसका प्रयोजन केवल मेरे द्वारा तुम लोगों को मार गिराकर अपना अधिकार प्रकट करना हो सकता है? क्या तुम लोगों के जीवन मेरे एक ही वचन पर नहीं टिके हैं? ऐसा क्यों है कि मैं तुम लोगों को निर्देश देने के लिए केवल वचनों का प्रयोग कर रहा हूँ, और मैंने जितनी जल्दी हो सके, तुम लोगों को मार गिराने के लिए अपने वचनों को तथ्यों में नहीं बदला है? क्या मेरे वचनों और कार्य का उद्देश्य केवल मानवजाति को समाप्त करना ही है? क्या मैं ऐसा परमेश्वर हूँ, जो अंधाधुंध निर्दोषों को मार डालता है? इस समय तुम लोगों में से कितने मानव-जीवन का सही मार्ग खोजने के लिए अपने पूर्ण अस्तित्व के साथ मेरे सामने आ रहे हैं? मेरे सामने केवल तुम लोगों के शरीर हैं, तुम्हारे दिल अभी भी स्वतंत्र और मुझसे बहुत, बहुत दूर हैं। चूँकि तुम लोग नहीं जानते कि मेरा कार्य वास्तव में क्या है, इसलिए तुम लोगों में से कई ऐसे हैं, जो मुझे छोड़ जाना और मुझसे दूरी बनाना चाहते हैं, और इसके बजाय ऐसे स्वर्ग में रहने की आशा करते हैं, जहाँ कोई ताड़ना या न्याय नहीं है। क्या लोग अपने दिलों में इसी की कामना नहीं करते? मैं निश्चित रूप से तुम्हें बाध्य करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ। तुम जो भी मार्ग अपनाते हो, वह तुम्हारी अपनी पसंद है। आज का मार्ग न्याय और शाप से युक्त है, लेकिन तुम सबको पता होना चाहिए कि जो कुछ भी मैंने तुम लोगों को दिया है—चाहे वह न्याय हो या ताड़ना—वे सर्वोत्तम उपहार हैं जो मैं तुम लोगों को दे सकता हूँ, और वे सब वे चीज़ें हैं जिनकी तुम लोगों को तत्काल आवश्यकता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम सभी कितने नीच चरित्र के हो!
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 343
मैंने पृथ्वी पर बहुत अधिक कार्य किया है और मैं बहुत वर्षों तक मानव-जाति के बीच चला हूँ, फिर भी लोगों को मेरी छवि और स्वभाव का शायद ही ज्ञान है और कुछ ही लोग उस कार्य के बारे में पूरी तरह से बता सकते हैं जो मैं करता हूँ। लोगों में बहुत सी चीज़ों की कमी है, उनमें इस समझ की कमी हमेशा रहती है कि मैं क्या करता हूँ, और उनके दिल हमेशा सतर्क रहते हैं, मानो वे बहुत डरते हों कि मैं उन्हें किसी दूसरी स्थिति में डाल दूँगा और फिर उन पर कोई ध्यान नहीं दूँगा। इस प्रकार, मेरे प्रति लोगों का रवैया हमेशा अत्यंत सतर्कता के साथ बहुत उदासीन रहता है। इसका कारण यह है कि मैं जो कार्य करता हूँ, लोग उसे समझे बिना वर्तमान तक आए हैं, और विशेषकर, वे उन वचनों से चकित हैं, जो मैं उनसे कहता हूँ। वे मेरे वचनों को यह जाने बिना अपने हाथों में रखते हैं कि उन्हें इन पर अटल विश्वास करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध करना चाहिए या अनिर्णय का विकल्प चुनते हुए उन्हें भूल जाना चाहिए। वे नहीं जानते कि उन्हें इन शब्दों को अभ्यास में लाना चाहिए या इंतजार करना और देखना चाहिए; उन्हें सब-कुछ छोड़कर बहादुरी से अनुसरण करना चाहिए, या पहले की तरह दुनिया के साथ मित्रता जारी रखनी चाहिए। लोगों की आंतरिक दुनिया बहुत जटिल है और वे बहुत धूर्त हैं। चूँकि लोग मेरे वचनों को स्पष्ट या पूर्ण रूप से देख नहीं पाते, इसलिए उनमें से बहुतों को अभ्यास करने में कष्ट होता है और अपना दिल मेरे सामने रखने में कठिनाई होती है। मैं तुम लोगों की कठिनाइयों को गहराई से समझता हूँ। देह में रहते हुए कई कमजोरियाँ अपरिहार्य होती हैं और कई वस्तुगत कारक तुम्हारे लिए कठिनाइयाँ पैदा करते हैं। तुम लोग अपने परिवार का पालन-पोषण करते हो, अपने दिन कड़ी मेहनत करते हुए बिताते हो, और तुम्हारे साल-दर-साल तुम्हारा समय कष्ट में बीतता है। देह में रहने में कई कठिनाइयाँ हैं—मैं इससे इनकार नहीं करता, और तुम लोगों से मेरी अपेक्षाएँ निश्चित रूप से तुम्हारी कठिनाइयों के अनुसार हैं। मेरे कार्य की सभी अपेक्षाएँ तुम्हारे वास्तविक आध्यात्मिक कद पर आधारित हैं। शायद अतीत में लोगों द्वारा अपने कार्य में तुम लोगों से की गई अपेक्षाएँ अत्यधिकता के तत्त्वों से युक्त थीं, लेकिन तुम लोगों को यह जान लेना चाहिए कि मैंने कभी भी अपने कहने और करने में तुम लोगों से अत्यधिक अपेक्षाएँ नहीं की। मेरी समस्त अपेक्षाएँ लोगों की प्रकृति, देह और उनकी जरूरतों पर आधारित हैं। तुम लोगों को पता होना चाहिए और मैं तुम लोगों को बहुत स्पष्ट रूप से बता सकता हूँ कि मैं लोगों के सोचने के कुछ तर्कसंगत तरीकों का विरोध नहीं करता, और न मैं मनुष्य की अंतर्निहित प्रकृति का विरोध करता हूँ। ऐसा केवल इसलिए है, क्योंकि लोग नहीं समझते कि मेरे द्वारा उनके लिए निर्धारित मानक वास्तव में क्या हैं, न वे मेरे वचनों का मूल अर्थ ही समझते हैं; लोग अभी तक मेरे वचनों के बारे में संदेह से ग्रस्त हैं, यहाँ तक कि आधे से भी कम लोग मेरे वचनों पर विश्वास करते हैं। शेष लोग अविश्वासी हैं, और ज्यादातर ऐसे हैं जो मुझे “कहानियाँ कहते” सुनना पसंद करते हैं। इतना ही नहीं, कई लोग ऐसे भी हैं जो इसे तमाशा समझकर इसका मज़ा लेते हैं। मैं तुम लोगों को सावधान करता हूँ : मेरे बहुत-से वचन उन लोगों के लिए प्रकट कर दिए गए हैं जो मुझ पर विश्वास करते हैं, और जो लोग राज्य के सुंदर दृश्य का आनंद तो लेते हैं लेकिन उसके दरवाज़ों के बाहर बंद हैं, वे मेरे द्वारा पहले ही बाहर निकाल गए हैं। क्या तुम लोग बस मेरे द्वारा तिरस्कृत और अस्वीकृत मोठ घास नहीं हो? तुम लोग कैसे मुझे जाते देख सकते हो और फिर खुशी से मेरी वापसी का स्वागत कर सकते हो? मैं तुम लोगों से कहता हूँ, नीनवे के लोगों ने यहोवा के क्रोध भरे शब्दों को सुनने के बाद तुरंत टाट के वस्त्र और राख में पश्चात्ताप किया था। चूँकि उन्होंने उसके वचनों पर विश्वास किया, इसलिए वे भय और खौफ़ से भर गए और इसलिए उन्होंने तुरंत टाट और राख में पश्चात्ताप किया। जहाँ तक आज के लोगों का संबंध है, हालाँकि तुम लोग भी मेरे वचनों पर विश्वास करते हो, बल्कि इससे भी बढ़कर यह मानते हो कि आज एक बार फिर यहोवा तुम लोगों के बीच आ गया है; लेकिन तुम लोगों का रवैया सरासर श्रद्धाहीन है, मानो तुम लोग बस उस यीशु को देख रहे हो, जो हजारों साल पहले यहूदिया में पैदा हुआ था और अब तुम्हारे बीच उतर आया है। मैं गहराई से उस धोखेबाजी को समझता हूँ, जो तुम लोगों के दिल में मौजूद है; तुममें से अधिकतर लोग केवल जिज्ञासावश मेरा अनुसरण करते हैं और अपने खालीपन के कारण मेरी खोज में आए हैं। जब तुम लोगों की तीसरी इच्छा—एक शांतिपूर्ण और सुखी जीवन जीने की इच्छा—टूट जाती है, तो तुम लोगों की जिज्ञासा भी गायब हो जाती है। तुम लोगों में से प्रत्येक के दिल के भीतर मौजूद धोखाधड़ी तुम्हारे शब्दों और कर्मों के माध्यम से उजागर होती है। स्पष्ट कहूँ तो, तुम लोग मेरे बारे में केवल उत्सुक हो, मुझसे भयभीत नहीं हो; तुम लोग अपनी जीभ पर काबू नहीं रखते और अपने व्यवहार को तो और भी कम नियंत्रित करते हो। तो तुम लोगों का विश्वास आखिर कैसा है? क्या यह वास्तविक है? तुम लोग सिर्फ अपनी चिंताएँ दूर करने और अपनी ऊब मिटाने के लिए, अपने जीवन में मौजूद खालीपन को भरने के लिए मेरे वचनों का उपयोग करते हो। तुम लोगों में से किसने मेरे वचनों को अभ्यास में ढाला है? वास्तविक विश्वास किसे है? तुम लोग चिल्लाते रहते हो कि परमेश्वर ऐसा परमेश्वर है, जो लोगों के दिलों में गहराई से देखता है, परंतु जिस परमेश्वर के बारे में तुम अपने दिलों में चिल्लाते रहते हो, उसकी मेरे साथ क्या अनुरूपता है? जब तुम लोग इस तरह से चिल्ला रहे हो, तो फिर वैसे कार्य क्यों करते हो? क्या इसलिए कि यही वह प्रेम है जो तुम लोग मुझे प्रतिफल में चुकाना चाहते हो? तुम्हारे होंठों पर समर्पण की थोड़ी भी बात नहीं है, लेकिन तुम लोगों के बलिदान और अच्छे कर्म कहाँ हैं? अगर तुम्हारे शब्द मेरे कानों तक न पहुँचते, तो मैं तुम लोगों से इतनी नफरत कैसे कर पाता? यदि तुम लोग वास्तव में मुझ पर विश्वास करते, तो तुम इस तरह के संकट में कैसे पड़ सकते थे? तुम लोगों के चेहरों पर ऐसे उदासी छा रही है, मानो तुम अधोलोक में खड़े परीक्षण दे रहे हो। तुम लोगों के पास जीवन-शक्ति का एक कण भी नहीं है, और तुम अपने अंदर की आवाज़ के बारे में क्षीणता से बात करते हो; यहाँ तक कि तुम शिकायत और धिक्कार से भी भरे हुए हो। मैं जो करता हूँ, उसमें तुम लोगों ने बहुत पहले ही अपना विश्वास खो दिया था, यहाँ तक कि तुम्हारा मूल विश्वास भी गायब हो गया है, इसलिए तुम अंत तक संभवतः कैसे अनुसरण कर सकते हो? ऐसी स्थिति में तुम लोगों को कैसे बचाया जा सकता है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, युवा और वृद्ध लोगों के लिए वचन
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 344
यद्यपि मेरा कार्य तुम लोगों के लिए बहुत सहायक है, किंतु मेरे वचन तुम लोगों पर हमेशा खो जाते हैं और बेकार हो जाते हैं। मेरे द्वारा पूर्ण बनाए जाने के लिए किसी को ढूँढ़ पाना मुश्किल है, और आज मैं तुम लोगों को लेकर आशा लगभग खो ही चुका हूँ। मैंने तुम्हारे बीच कई सालों तक खोज की है, लेकिन किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ पाना मुश्किल है, जो मेरा विश्वासपात्र बन सकता हो। मुझे लगता है कि मुझमें तुम लोगों के अंदर कार्य जारी रखने का भरोसा नहीं है, और न कोई प्रेम है जिससे मैं तुमसे प्रेम करना जारी रखूँ। इसका कारण यह है कि मैं बहुत पहले ही तुम लोगों की उन तुच्छ, दयनीय उपलब्धियों से निराश हो गया था; ऐसा लगता है जैसे मैंने कभी तुम लोगों के बीच बात नहीं की और कभी तुम लोगों में कार्य नहीं किया। तुम्हारी उपलब्धियाँ कितनी घृणास्पद हैं। तुम लोग अपने लिए हमेशा बरबादी और शर्मिंदगी लाते हो और तुम्हारा लगभग कोई मूल्य नहीं है। मैं शायद ही तुम लोगों में इंसान से समानता खोज पाऊँ, न ही मैं तुम्हारे अंदर इंसान होने का चिह्न भाँप सकता हूँ। तुम्हारी ताज़ी सुगंध कहाँ है? वह कीमत कहाँ है, जो तुम लोगों ने कई वर्षों में चुकाई है और उसके परिणाम कहाँ हैं? क्या तुम लोगों को कभी कोई परिणाम नहीं मिला? मेरे कार्य में अब एक नई शुरुआत है, एक नया प्रारंभ। मैं भव्य योजनाएँ पूरी करने जा रहा हूँ तथा मैं और भी बड़ा कार्य संपन्न करना चाहता हूँ, फिर भी तुम लोग पहले की तरह कीचड़ में लोट रहे हो, अतीत के गंदे पानी में रहते हुए और व्यावहारिक रूप से तुम अपनी मूल दुर्दशा से खुद को मुक्त करने में असफल रहे हो। इसलिए तुम लोगों ने अभी तक मेरे वचनों से कुछ हासिल नहीं किया है। तुम लोगों ने अब तक खुद को कीचड़ और गंदे पानी के अपने मूल स्थान से नहीं छुड़ाया है, और तुम लोग केवल मेरे वचनों को जानते हो, लेकिन तुमने वास्तव में मेरे वचनों की मुक्ति के दायरे में प्रवेश नहीं किया है, इसलिए मेरे वचन कभी भी तुम लोगों के लिए प्रकट नहीं किए गए हैं; वे भविष्यवाणी की एक किताब की तरह हैं, जो हजारों वर्षों से मुहरबंद रही है। मैं तुम लोगों के जीवन में प्रकट होता हूँ, लेकिन तुम लोग इससे हमेशा अनजान रहते हो। यहाँ तक कि तुम लोग मुझे पहचानते भी नहीं। मेरे द्वारा कहे गए वचनों में से लगभग आधे वचन तुम लोगों का न्याय करते हैं, और वे उससे आधा प्रभाव ही हासिल कर पाते हैं, जितना कि उन्हें करना चाहिए, जो तुम्हारे भीतर गहरा भय पैदा करना है। शेष आधे वचन तुम लोगों को जीवन के बारे में सिखाने के लिए और स्वयं को संचालित कैसे करें, इस बारे में बताने के लिए हैं। लेकिन जहाँ तक तुम्हारा संबंध है, ऐसा लगता है, जैसे ये वचन तुम लोगों के लिए मौजूद ही नहीं हैं, या जैसे कि तुम लोग बच्चों की बातें सुन रहे थे, ऐसी बातें जिन्हें सुनकर तुम हमेशा दबे-ढके ढंग से मुसकरा देते हो, लेकिन उन पर कार्रवाई कुछ नहीं करते। तुम लोग इन चीज़ों के बारे में कभी चिंतित नहीं रहे हो; तुम लोगों ने हमेशा मेरे कार्यों को मुख्यतः जिज्ञासा के नाम पर ही देखा है, जिसका परिणाम यह हुआ है कि अब तुम लोग अँधेरों में घिर गए हो और प्रकाश को देख नहीं सकते, और इसलिए तुम लोग अँधेरे में दयनीय ढंग से रोते हो। मैं जो चाहता हूँ, वह तुम लोगों की आज्ञाकारिता है, तुम्हारी बेशर्त आज्ञाकारिता, और इससे भी बढ़कर, मेरी अपेक्षा है कि तुम लोग मेरी कही हर चीज़ के बारे में पूरी तरह से निश्चित रहो। तुम लोगों को उपेक्षा का रवैया नहीं अपनाना चाहिए और खास तौर से मेरी कही चीज़ों के बारे में चयनात्मक व्यवहार नहीं करना चाहिए, न ही मेरे वचनों और कार्य के प्रति उदासीन रहना चाहिए, जिसके कि तुम आदी हो। मेरा कार्य तुम लोगों के बीच किया जाता है और मैंने तुम लोगों के लिए बहुत सारे वचन प्रदान किए हैं, लेकिन यदि तुम लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार करोगे, तो जो कुछ तुमने न तो हासिल किया और न ही जिसे अभ्यास में लाए हो, उसे मैं केवल गैर-यहूदी परिवारों को दे सकता हूँ। समस्त सृजित प्राणियों में से कौन है, जिसे मैंने अपने हाथों में नहीं रखा हुआ है? तुम लोगों में से अधिकांश “पके बुढ़ापे” की उम्र के हो और तुम लोगों के पास इस तरह के कार्य को स्वीकार करने की ऊर्जा नहीं है, जो मेरे पास है। तुम लोग मुश्किल से गुज़ारा करने वाले हानहाओ पक्षी[क] की तरह हो और तुम ने कभी भी मेरे वचनों को गंभीरता से नहीं लिया है। युवा लोग अत्यंत व्यर्थ और अति-आसक्त हैं और मेरे कार्य पर और भी कम ध्यान देते हैं। वे मेरे भोज के व्यंजनों का आनंद लेने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते; वे उस छोटे-से पक्षी की तरह हैं, जो अपने पिंजरे से बाहर निकलकर बहुत दूर जाने के लिए उड़ गया है। इस तरह के युवा और वृद्ध लोग मेरे लिए कैसे उपयोगी हो सकते हैं?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, युवा और वृद्ध लोगों के लिए वचन
फुटनोट :
क. हानहाओ पक्षी की कहानी ईसप की चींटी और टिड्डी की नीति-कथा से काफ़ी मिलती-जुलती है। जब मौसम गर्म होता है, तब हानहाओ पक्षी अपने पड़ोसी नीलकंठ द्वारा बार-बार चेताए जाने के बावजूद घोंसला बनाने के बजाय सोना पसंद करता है। जब सर्दी आती है, तो हानहाओ ठिठुरकर मर जाता है।
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 345
यद्यपि तुम युवा लोग जवान शेरों के समान हो, पर तुम्हारे दिलों में शायद ही सच्चा मार्ग है। तुम्हारा यौवन तुम लोगों को मेरे अधिक कार्य का हकदार नहीं बनाता; उलटे तुम हमेशा अपने प्रति मेरी घृणा को भड़काते हो। यद्यपि तुम लोग युवा हो, लेकिन तुम लोगों में या तो जीवन-शक्ति या फिर महत्वाकांक्षा की कमी है, और तुम लोग अपने भविष्य के बारे में हमेशा अप्रतिबद्ध रहते हो; ऐसा लगता है, मानो तुम लोग उदासीन और चिंताग्रस्त हो। यह कहा जा सकता है कि युवा लोगों में जो जीवन-शक्ति, आदर्श और उद्देश्य पाए जाने चाहिए, वे तुम लोगों में बिलकुल नहीं मिल सकते; इस तरह के तुम युवा लोग उद्देश्यहीन हो और सही और गलत, अच्छे और बुरे, सुंदरता और कुरूपता के बीच भेद करने की कोई योग्यता नहीं रखते। तुम लोगों में कोई भी ऐसे तत्त्व खोज पाना असंभव है, जो ताज़ा हों। तुम लोग लगभग पूरी तरह से पुराने ढंग के हो, और इस तरह के तुम युवा लोगों ने भीड़ का अनुसरण करना, तर्कहीन होना भी सीख लिया है। तुम लोग स्पष्ट रूप से सही को गलत से अलग नहीं कर सकते, सच और झूठ में भेद नहीं कर सकते, उत्कृष्टता के लिए कभी प्रयास नहीं कर सकते, न ही तुम लोग यह बता सकते हो कि सही क्या है और गलत क्या है, सत्य क्या है और ढोंग क्या है। तुम लोगों में धर्म की सड़ांध बूढ़े लोगों से भी अधिक भारी और गंभीर है। तुम लोग अभिमानी और अविवेकी भी हो, तुम प्रतिस्पर्धी हो, और तुम लोगों में आक्रामकता का शौक बहुत मजबूत है—इस तरह के युवा व्यक्ति के पास सत्य कैसे हो सकता है? इस तरह का युवा व्यक्ति, जिसका कोई रुख ही न हो, गवाही कैसे दे सकता है? जिस व्यक्ति में सही और गलत के बीच अंतर करने की क्षमता न हो, उसे युवा कैसे कहा जा सकता है? जिस व्यक्ति में एक युवा व्यक्ति की जीवन-शक्ति, जोश, ताज़गी, शांति और स्थिरता नहीं है, उसे मेरा अनुयायी कैसे कहा जा सकता है? जिस व्यक्ति में कोई सच्चाई, कोई न्याय की भावना न हो, बल्कि जिसे खेलना और लड़ना पसंद हो, वह मेरा गवाह बनने के योग्य कैसे हो सकता है? युवा लोगों की आँखें दूसरों के लिए धोखे और पूर्वाग्रह से भरी हुई नहीं होनी चाहिए, और उन्हें विनाशकारी, घृणित कृत्य नहीं करने चाहिए। उन्हें आदर्शों, आकांक्षाओं और खुद को बेहतर बनाने की उत्साहपूर्ण इच्छा से रहित नहीं होना चाहिए; उन्हें अपनी संभावनाओं को लेकर निराश नहीं होना चाहिए और न ही उन्हें जीवन में आशा और भविष्य में भरोसा खोना चाहिए, उनमें उस सत्य के मार्ग पर बने रहने की दृढ़ता होनी चाहिए, जिसे उन्होंने अब चुना है—ताकि वे मेरे लिए अपना पूरा जीवन खपाने की अपनी इच्छा साकार कर सकें। उन्हें सत्य से रहित नहीं होना चाहिए, न ही उन्हें ढोंग और अधर्म को छिपाना चाहिए—उन्हें उचित रुख पर दृढ़ रहना चाहिए। उन्हें सिर्फ यूँ ही धारा के साथ बह नहीं जाना चाहिए, बल्कि उनमें न्याय और सत्य के लिए बलिदान और संघर्ष करने की हिम्मत होनी चाहिए। युवा लोगों में अँधेरे की शक्तियों के दमन के सामने समर्पण न करने और अपने अस्तित्व के महत्व को रूपांतरित करने का साहस होना चाहिए। युवा लोगों को प्रतिकूल परिस्थितियों के सामने नतमस्तक नहीं हो जाना चाहिए, बल्कि अपने भाइयों और बहनों के लिए माफ़ी की भावना के साथ खुला और स्पष्ट होना चाहिए। बेशक, मेरी ये अपेक्षाएँ सभी से हैं, और सभी को मेरी यह सलाह है। लेकिन इससे भी बढ़कर, ये सभी युवा लोगों के लिए मेरे सुखदायक वचन हैं। तुम लोगों को मेरे वचनों के अनुसार आचरण करना चाहिए। विशेष रूप से, युवा लोगों को मुद्दों में विवेक का उपयोग करने और न्याय और सत्य की तलाश करने के संकल्प से रहित नहीं होना चाहिए। तुम लोगों को सभी सुंदर और अच्छी चीज़ों का अनुसरण करना चाहिए, और तुम्हें सभी सकारात्मक चीजों की वास्तविकता प्राप्त करनी चाहिए। तुम्हें अपने जीवन के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए और उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। लोग पृथ्वी पर आते हैं और मेरे सामने आ पाना दुर्लभ है, और सत्य को खोजने और प्राप्त करने का अवसर पाना भी दुर्लभ है। तुम लोग इस खूबसूरत समय को इस जीवन में अनुसरण करने का सही मार्ग मानकर महत्त्व क्यों नहीं दोगे? और तुम लोग हमेशा सत्य और न्याय के प्रति इतने तिरस्कारपूर्ण क्यों बने रहते हो? तुम लोग क्यों हमेशा उस अधार्मिकता और गंदगी के लिए स्वयं को रौंदते और बरबाद करते रहते हो, जो लोगों के साथ खिलवाड़ करती है? और तुम लोग क्यों उन बूढ़े लोगों की तरह वैसे काम करते हो जो अधर्मी करते हैं? तुम लोग पुरानी चीज़ों के पुराने तरीकों का अनुकरण क्यों करते हो? तुम लोगों का जीवन न्याय, सत्य और पवित्रता से भरा होना चाहिए; उसे इतनी कम उम्र में इतना भ्रष्ट नहीं होना चाहिए, जो तुम्हें नरक में गिराने की ओर अग्रसर करे। क्या तुम लोगों को नहीं लगता कि यह एक भयानक दुर्भाग्य होगा? क्या तुम लोगों को नहीं लगता कि यह बहुत अन्यायपूर्ण होगा?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, युवा और वृद्ध लोगों के लिए वचन
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 346
यदि इतने सारे कार्य, और इतने सारे वचनों का तुम पर कोई असर नहीं हुआ है, तो जब परमेश्वर के कार्य को फैलाने का समय आएगा, तब तुम अपने कर्तव्य को निभाने में असमर्थ रहोगे और तुम्हें शर्मिंदा और अपमानित होना पड़ेगा। उस समय, तुम ऐसा महसूस करोगे कि तुम परमेश्वर के कितने ऋणी हो, कि परमेश्वर के विषय में तुम्हारा ज्ञान कितना सतही है। यदि तुम आज परमेश्वर के ज्ञान का अनुसरण नहीं करते हो, जबकि वह कार्य कर रहा है, तो बाद में बहुत देर हो जाएगी। अंत में, तुम्हारे पास कहने के लिए कोई ज्ञान नहीं होगा—तुम खोखले रह जाओगे, और तुम्हारे पास कुछ भी न होगा। परमेश्वर को हिसाब देने के लिए तुम किसका उपयोग करोगे? क्या तुममें इतना दम-खम है कि परमेश्वर की तरफ देख पाओ? तुम्हें इसी वक्त अपने लक्ष्य के लिए कठिन परिश्रम करना चाहिए, ताकि तुम अंततः पतरस की तरह जान पाओ कि परमेश्वर की ताड़ना और उसका न्याय मनुष्य के लिए कितना लाभकारी है, और बिना उसकी ताड़ना और न्याय के मनुष्य को बचाया नहीं जा सकता, वह इस अपवित्र भूमि और दलदल में गहराई तक धंसता ही चला जाएगा। शैतान द्वारा भ्रष्ट लोग एक-दूसरे के विरूद्ध साजिश करते रहे हैं और एक-दूसरे की राह में काँटे बिछाते रहे हैं, उनके मन से परमेश्वर का भय खत्म हो गया है। वे बहुत अवज्ञाकारी बन गए हैं, उन्होंने ढेरों धारणाएँ पाल रखी हैं, और वे शैतान के लोग बन गए हैं। परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के बगैर, मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध नहीं किया जा सकता और उसे बचाया नहीं जा सकता। जो कुछ देहधारी परमेश्वर के कार्य के द्वारा प्रकट किया गया है, बिल्कुल वही आत्मा के द्वारा प्रकट किया गया है, और परमेश्वर का कार्य भी आत्मा द्वारा किए गए कार्य के अनुसार ही किया जाता है। आज, यदि तुम्हारे पास इस कार्य का कोई ज्ञान नहीं है, तो तुम बहुत ही मूर्ख हो, तुमने बहुत कुछ खो दिया है! यदि तुमने परमेश्वर का उद्धार नहीं पाया है, तो तुम्हारा विश्वास धार्मिक विश्वास है, और तुम एक ऐसे ईसाई है जो धर्म का ईसाई है। चूँकि तुम एक मृत धर्म सिद्धांत को कसकर थामे हुए हो, तुमने पवित्र आत्मा के नए कार्य को खो दिया है; अन्य लोग, जो परमेश्वर को प्रेम करते हैं, सत्य और जीवन पाने में सक्षम हैं, जबकि तुम्हारा विश्वास परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने में असमर्थ है। इसकी बजाय, तुम बुरे काम करने वाले बन गए हो, तुम एक ऐसे व्यक्ति बन गए हो जो घातक और घृणित कार्य करता है; तुम शैतान की हँसी के पात्र और उसके कैदी बन गए हो। मनुष्य को परमेश्वर पर केवल विश्वास ही नहीं करना है, बल्कि उसे परमेश्वर से प्रेम करना है, उसका अनुसरण और उसकी आराधना करनी है। यदि आज तुम अनुसरण नहीं करोगे, तो वह दिन आएगा जब तुम कहोगे, “मैंने पहले सही तरीके से परमेश्वर का अनुसरण क्यों नहीं किया, उसे सही ढंग से संतुष्ट क्यों नहीं किया, मैं अपने जीवन-स्वभाव में परिवर्तन क्यों नहीं लाया? उस समय परमेश्वर के प्रति समर्पित होने, और परमेश्वर के वचन का ज्ञान पाने का प्रयास न करने के कारण आज मैं कितना पछता रहा हूँ। उस समय परमेश्वर ने कितना कुछ कहा था; मैंने अनुसरण क्यों नहीं किया? मैं कितना मूर्ख था!” तुम कुछ हद तक अपने-आपसे नफरत करोगे। आज, तुम मेरी बातों पर विश्वास नहीं करते, और उन पर ध्यान नहीं देते; जब इस कार्य को फैलाने का दिन आएगा, और तुम उसकी संपूर्णता को देखोगे, तब तुम्हें अफसोस होगा, और उस समय तुम भौंचक्के रह जाओगे। आशीषें हैं, फिर भी तुम्हें उनका आनंद लेना नहीं आता, सत्य है, फिर भी तुम्हें उसका अनुसरण करना नहीं आता। क्या तुम अपने-आप पर अवमानना का दोष नहीं लाते? आज, यद्यपि परमेश्वर के कार्य का अगला कदम अभी शुरू होना बाकी है, फिर भी तुमसे जो कुछ अपेक्षित है और तुम्हें जिन्हें जीने के लिए कहा जाता है, उनमें कुछ भी असाधारण नहीं है। इतना सारा कार्य है, इतने सारे सत्य हैं; क्या वे इस योग्य नहीं हैं कि तुम उन्हें जानो? क्या परमेश्वर की ताड़ना और न्याय तुम्हारी आत्मा को जागृत करने में असमर्थ हैं? क्या परमेश्वर की ताड़ना और न्याय तुममें खुद के प्रति नफरत पैदा करने में असमर्थ हैं? क्या तुम शैतान के प्रभाव में जी कर, और शांति, आनंद और थोड़े-बहुत दैहिक सुख के साथ जीवन बिताकर संतुष्ट हो? क्या तुम सभी लोगों में सबसे अधिक निम्न नहीं हो? उनसे ज्यादा मूर्ख और कोई नहीं है जिन्होंने उद्धार को देखा तो है लेकिन उसे प्राप्त करने का प्रयास नहीं करते; वे ऐसे लोग हैं जो पूरी तरह से देह-सुख में लिप्त होकर शैतान का आनंद लेते हैं। तुम्हें लगता है कि परमेश्वर में अपनी आस्था के लिए तुम्हें चुनौतियों और क्लेशों या कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। तुम हमेशा निरर्थक चीजों के पीछे भागते हो, और तुम जीवन के विकास को कोई अहमियत नहीं देते, बल्कि तुम अपने फिजूल के विचारों को सत्य से ज्यादा महत्व देते हो। तुम कितने निकम्मे हो! तुम सूअर की तरह जीते हो—तुममें और सूअर और कुत्ते में क्या अंतर है? जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, बल्कि शरीर से प्यार करते हैं, क्या वे सब पूरे जानवर नहीं हैं? क्या वे मरे हुए लोग जिनमें आत्मा नहीं है, चलती-फिरती लाशें नहीं हैं? तुम लोगों के बीच कितने सारे वचन कहे गए हैं? क्या तुम लोगों के बीच केवल थोड़ा-सा ही कार्य किया गया है? मैंने तुम लोगों के बीच कितनी आपूर्ति की है? तो फिर तुमने इसे प्राप्त क्यों नहीं किया? तुम्हें किस बात की शिकायत है? क्या यह बात नहीं है कि तुमने इसलिए कुछ भी प्राप्त नहीं किया है क्योंकि तुम देह से बहुत अधिक प्रेम करते हो? क्योंकि तुम्हारे विचार बहुत ज्यादा निरर्थक हैं? क्योंकि तुम बहुत ज्यादा मूर्ख हो? यदि तुम इन आशीषों को प्राप्त करने में असमर्थ हो, तो क्या तुम परमेश्वर को दोष दोगे कि उसने तुम्हें नहीं बचाया? तुम परमेश्वर में विश्वास करने के बाद शांति प्राप्त करना चाहते हो—ताकि अपनी संतान को बीमारी से दूर रख सको, अपने पति के लिए एक अच्छी नौकरी पा सको, अपने बेटे के लिए एक अच्छी पत्नी और अपनी बेटी के लिए एक अच्छा पति पा सको, अपने बैल और घोड़े से जमीन की अच्छी जुताई कर पाने की क्षमता और अपनी फसलों के लिए साल भर अच्छा मौसम पा सको। तुम यही सब पाने की कामना करते हो। तुम्हारा लक्ष्य केवल सुखी जीवन बिताना है, तुम्हारे परिवार में कोई दुर्घटना न हो, आँधी-तूफान तुम्हारे पास से होकर गुजर जाएँ, धूल-मिट्टी तुम्हारे चेहरे को छू भी न पाए, तुम्हारे परिवार की फसलें बाढ़ में न बह जाएं, तुम किसी भी विपत्ति से प्रभावित न हो सको, तुम परमेश्वर के आलिंगन में रहो, एक आरामदायक घरौंदे में रहो। तुम जैसा डरपोक इंसान, जो हमेशा दैहिक सुख के पीछे भागता है—क्या तुम्हारे अंदर एक दिल है, क्या तुम्हारे अंदर एक आत्मा है? क्या तुम एक पशु नहीं हो? मैं बदले में बिना कुछ मांगे तुम्हें एक सत्य मार्ग देता हूँ, फिर भी तुम उसका अनुसरण नहीं करते। क्या तुम उनमें से एक हो जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं? मैं तुम्हें एक सच्चा मानवीय जीवन देता हूँ, फिर भी तुम अनुसरण नहीं करते। क्या तुम कुत्ते और सूअर से भिन्न नहीं हो? सूअर मनुष्य के जीवन की कामना नहीं करते, वे शुद्ध होने का प्रयास नहीं करते, और वे नहीं समझते कि जीवन क्या है। प्रतिदिन, उनका काम बस पेट भर खाना और सोना है। मैंने तुम्हें सच्चा मार्ग दिया है, फिर भी तुमने उसे प्राप्त नहीं किया है : तुम्हारे हाथ खाली हैं। क्या तुम इस जीवन में एक सूअर का जीवन जीते रहना चाहते हो? ऐसे लोगों के जिंदा रहने का क्या अर्थ है? तुम्हारा जीवन घृणित और ग्लानिपूर्ण है, तुम गंदगी और व्यभिचार में जीते हो और किसी लक्ष्य को पाने का प्रयास नहीं करते हो; क्या तुम्हारा जीवन अत्यंत निकृष्ट नहीं है? क्या तुम परमेश्वर की ओर देखने का साहस कर सकते हो? यदि तुम इसी तरह अनुभव करते रहे, तो क्या केवल शून्य ही तुम्हारे हाथ नहीं लगेगा? तुम्हें एक सच्चा मार्ग दे दिया गया है, किंतु अंततः तुम उसे प्राप्त कर पाओगे या नहीं, यह तुम्हारी व्यक्तिगत खोज पर निर्भर करता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 347
तुम लोगों की देह, तुम लोगों की असाधारण इच्छाएँ, तुम लोगों का लोभ और तुम लोगों की वासना तुम लोगों में गहराई तक जमी हुई हैं। ये चीजें तुम लोगों के हृदयों को निरंतर इतना नियंत्रित कर रही हैं कि तुम लोगों में अपने उन सामंती और पतित विचारों के जुए को अपने ऊपर से उतार फेंकने की शक्ति नहीं है। तुम लोग न तो अपनी वर्तमान स्थिति को बदलने के लिए लालायित हो, न ही अंधकार के प्रभाव से बच निकलने के लिए। तुम बस इन चीजों से बँधे हुए हो। भले ही तुम लोग जानते हो कि यह जीवन इतना दर्दनाक है और मनुष्यों की यह दुनिया इतनी अंधकारमय, फिर भी तुम लोगों में से किसी एक में भी अपना जीवन बदलने का साहस नहीं है। तुम केवल इस जीवन की वास्तविकताओं से पलायन करने, आत्मा की इंद्रियातीतता हासिल करने और एक शांत, सुखद, स्वर्ग जैसे परिवेश में जीने की अभिलाषा करते हो। तुम लोग अपने वर्तमान जीवन को बदलने के लिए कठिनाइयाँ सहने को तैयार नहीं हो; न ही तुम इस न्याय और ताड़ना के अंदर उस जीवन की खोज करने की इच्छा रखते हो, जिसमें तुम लोगों को प्रवेश करना चाहिए। इसके विपरीत, तुम देह से परे उस सुंदर संसार के बारे में अवास्तविक स्वप्न देखते हो। जिस जीवन की तुम लोग अभिलाषा करते हो, वह एक ऐसा जीवन है जिसे तुम बिना कोई पीड़ा सहे अनायास ही प्राप्त कर सकते हो। यह पूरी तरह से अवास्तविक है! क्योंकि तुम लोग जिसकी आशा करते हो, वह देह में एक सार्थक जीवनकाल जीने के लिए जीवनकाल के दौरान सत्य प्राप्त करने के लिए, अर्थात्, सत्य के लिए जीने और इंसाफ़ के लिए अडिग रहने के लिए नहीं है। यह वह नहीं है, जिसे तुम लोग उज्ज्वल, चकाचौंध करने वाला जीवन मानोगे। तुम लोगों को लगता है कि यह एक मोहक या सार्थक जीवन नहीं होगा। तुम्हारी नज़र में, ऐसा जीवन जीना अन्याय जैसा लगता होगा। भले ही तुम लोग आज इस ताड़ना को स्वीकार करते हो, फिर भी तुम लोग जिसकी खोज कर रहे हो, वह सत्य को प्राप्त करना या वर्तमान में सत्य को जीना नहीं है, बल्कि इसके बजाय बाद में देह से परे एक सुखी जीवन में प्रवेश करने में समर्थ होना है। तुम लोग सत्य की तलाश नहीं कर रहे हो, न ही तुम सत्य के पक्ष में खड़े हो, और तुम निश्चित रूप से सत्य के लिए अस्तित्व में नहीं हो। तुम लोग आज प्रवेश की खोज नहीं कर रहे हो, बल्कि इसके बजाय तुम्हारे विचारों पर भविष्य का और इस बात का कब्ज़ा है कि एक दिन क्या हो सकता है : तुम नीले आसमान पर टकटकी लगाए हो, कड़वे आँसू बहा रहे हो, और किसी दिन स्वर्ग में ले जाए जाने की अपेक्षा कर रहे हो। क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों के सोचने का तरीका पहले से ही वास्तविकता से परे है? तुम लोग सोचते रहते हो कि अनंत दया और करुणा करने वाला उद्धारकर्ता एक दिन निसंदेह इस संसार में कठिनाई और पीड़ा सहने वाले तुम्हें अपने साथ ले जाने के लिए आएगा, और कि वह तुम्हारी शिकायतें दूर करेगा और तुम्हारी ओर से बदला लेगा, जिसे कि सताया और उत्पीड़ित किया गया है। क्या तुम पाप से भरे हुए नहीं हो? क्या तुम अकेले हो, जिसने इस संसार में दुःख झेला है? तुम स्वयं ही शैतान के अधिकार-क्षेत्र में गिरे हो और तुमने दुःख झेला है, क्या परमेश्वर को अभी भी सचमुच तुम्हारी शिकायतें दूर करने की आवश्यकता है? जो लोग परमेश्वर की इच्छाएँ पूरी करने में असमर्थ हैं—क्या वे परमेश्वर के शत्रु नहीं हैं? जो लोग देहधारी परमेश्वर में विश्वास नहीं करते—क्या वे मसीह-विरोधी नहीं हैं? तुम्हारे अच्छे कर्म क्या मायने रखते हैं? क्या वे परमेश्वर की आराधना करने वाले किसी हृदय का स्थान ले सकते हैं? तुम सिर्फ़ कुछ अच्छे कार्य करके परमेश्वर के आशीष प्राप्त नहीं कर सकते, और परमेश्वर केवल इसलिए तुम्हारी शिकायतें दूर नहीं करेगा और तुम्हारे साथ किए गए अन्याय का बदला नहीं लेगा कि तुम्हें उत्पीड़ित किया गया और सताया गया है। जो लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं और फिर भी परमेश्वर को नहीं जानते, परंतु जो अच्छे कर्म करते हैं—क्या वे सब भी ताड़ित नहीं किए जाते? तुम सिर्फ़ परमेश्वर पर विश्वास करते हो, सिर्फ़ यह चाहते हो कि परमेश्वर तुम्हारे विरुद्ध हुए अन्याय का समाधान करे और उसका बदला ले, और तुम चाहते हो कि परमेश्वर तुम्हें तुम्हारा दिन प्रदान करे, वह दिन, जब तुम अंततः अपना सिर ऊँचा कर सको। लेकिन तुम सत्य पर ध्यान देने से इनकार करते हो और न ही तुम सत्य को जीने की प्यास रखते हो। तुम इस कठिन, खोखले जीवन से बच निकलने में सक्षम तो बिलकुल भी नहीं हो। इसके बजाय, देह में अपना जीवन बिताते हुए और अपना पापमय जीवन जीते हुए तुम अपेक्षापूर्वक परमेश्वर की ओर देखते हो कि वह तुम्हारी शिकायतें दूर करे और तुम्हारे अस्तित्व के कोहरे को हटा दे। परंतु क्या यह संभव है? यदि तुम्हारे पास सत्य हो, तो तुम परमेश्वर का अनुसरण कर सकते हो। यदि तुम जीवन जीते हो, तो तुम परमेश्वर के वचन की अभिव्यक्ति हो सकते हो। यदि तुम्हारे पास जीवन हो, तो तुम परमेश्वर के आशीषों का आनंद ले सकते हो। जिन लोगों के पास सत्य होता है, वे परमेश्वर के आशीष का आनंद ले सकते हैं। परमेश्वर उन लोगों के कष्टों का निवारण सुनिश्चित करता है, जो उसे संपूर्ण हृदय से प्रेम करते हैं और जो कठिनाइयाँ और दुःख सहते हैं, उनके नहीं जो केवल अपने आप से प्रेम करते हैं और जो शैतान के धोखों का शिकार हो चुके हैं। उन लोगों में अच्छाई कैसे हो सकती है, जो सत्य से प्रेम नहीं करते? उन लोगों में धार्मिकता कैसे हो सकती है, जो केवल देह से प्रेम करते हैं? क्या धार्मिकता और अच्छाई दोनों सत्य के संदर्भ में नहीं बोली जातीं? क्या वे उन लोगों के लिए आरक्षित नहीं हैं, जो परमेश्वर से संपूर्ण हृदय से प्रेम करते हैं? जो लोग सत्य से प्रेम नहीं करते और जो केवल सड़ी हुई लाशें हैं—क्या वे सभी लोग बुराई को आश्रय नहीं देते? जो लोग सत्य को जीने में असमर्थ हैं—क्या वे सब सत्य के शत्रु नहीं हैं? और तुम्हारा क्या हाल है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल पूर्ण बनाया गया मनुष्य ही सार्थक जीवन जी सकता है
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 348
मनुष्य का प्रबंधन करना हमेशा मेरा कर्तव्य रहा है। इसके अतिरिक्त, मनुष्य पर विजय मैंने तब नियत की थी, जब मैंने संसार की रचना की थी। शायद लोग न जानते हों कि अंत के दिनों में मैं मनुष्य को पूरी तरह से जीत लूँगा, या कि मानवजाति के बीच से विद्रोही लोगों को जीत लेना शैतान को मेरे द्वारा हराए जाने का प्रमाण है। परंतु जब मेरा शत्रु मेरे साथ युद्ध में शामिल हुआ, तो मैंने उसे पहले से ही बता दिया कि मैं उन लोगों को जीत लूँगा, जिन्हें शैतान ने बंदी और अपनी संतान बना लिया था और अपने घर की निगरानी करने वाले वफादार सेवकों में तब्दील कर दिया था। जीतने का मूल अर्थ है परास्त करना, अपमानित करना; इस्राएलियों की भाषा में इसका अर्थ है बुरी तरह से हराना, नष्ट करना, और मेरे विरुद्ध फिर से विद्रोह करने में अक्षम कर देना। परंतु आज, जब तुम्हारे बीच इसका उपयोग किया जाता है, तो इसका अर्थ होता है जीतना। तुम लोगों को पता होना चाहिए कि मेरा इरादा हमेशा से मानवजाति के उन दुष्टों को पूरी तरह से हराना और नष्ट करना है, ताकि वे फिर मेरे विरुद्ध विद्रोह न कर सकें, मेरे कार्य में अवरोध उत्पन्न करने या उसे अस्त-व्यस्त करने की तो हिम्मत भी न कर सकें। इस प्रकार, जहाँ तक मनुष्य का सवाल है, इस शब्द का अर्थ जीतना हो गया है। शब्द के चाहे कुछ भी संकेतार्थ हों, मेरा कार्य मनुष्यों को हराना है। क्योंकि, यद्यपि यह बात सच है कि मानवजाति मेरे प्रबंधन में एक सहायक है, परंतु सटीक रूप से कहूँ तो, मनुष्य मेरे शत्रुओं के अलावा कुछ नहीं हैं। मनुष्य वे दुष्ट हैं, जो मेरा विरोध और मेरी अवज्ञा करते हैं। मनुष्य मेरे द्वारा शापित उस दुष्ट की संतान के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं। मनुष्य उस प्रधान दूत के वंशजों के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं, जिसने मेरे साथ विश्वासघात किया था। मनुष्य उस शैतान की विरासत के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं, जो बहुत पहले ही मेरे द्वारा ठुकरा दिया गया था और जो हमेशा से मेरा कट्टर शत्रु रहा है। चूँकि सारी मानवजाति के ऊपर का आसमान, स्पष्टता की जरा-सी झलक के बिना, मलिन और अंधकारमय है, और मानव-संसार स्याह अँधेरे में इस तरह डूबा हुआ है कि उसमें रहने वाला व्यक्ति अपने चेहरे के सामने लाकर अपने हाथ को या अपना सिर उठाकर सूरज को भी नहीं देख सकता। उसके पैरों के नीचे की कीचड़दार और गड्ढों से भरी सड़क घुमावदार और टेढ़ी-मेढ़ी है; पूरी जमीन पर लाशें बिखरी हुई हैं। अँधेरे कोने मृतकों के अवशेषों से भरे पड़े हैं, जबकि ठंडे और छायादार कोनों में दुष्टात्माओं की भीड़ ने अपना निवास बना लिया है। मनुष्यों के संसार में हर जगह दुष्टात्माएँ जत्थों में आती-जाती हैं। सभी तरह के जंगली जानवरों की गंदगी से ढकी हुई संतानें घमासान युद्ध में उलझी हुई हैं, जिनकी आवाज दिल में दहशत पैदा करती है। ऐसे समय में, इस तरह के संसार में, ऐसे “सांसारिक स्वर्गलोक” में व्यक्ति जीवन के आनंद की खोज करने कहाँ जा सकता है? अपने जीवन की मंजिल खोजने के लिए कोई कहाँ जा सकता है? लंबे समय से शैतान के पैरों के नीचे रौंदी हुई मानवजाति पहले से शैतान की छवि लिए एक अभिनेत्री रही है—इससे भी अधिक, मानवजाति शैतान का मूर्त रूप है, और वह उस साक्ष्य के रूप में काम करती है, जो जोर से और स्पष्ट रूप से शैतान की गवाही देता है। ऐसी मानवजाति, ऐसे अधम लोगों का झुंड, इस भ्रष्ट मानव-परिवार की ऐसी संतान परमेश्वर की गवाही कैसे दे सकती है? मेरी महिमा कहाँ से आती है? व्यक्ति मेरी गवाही के बारे में बोलना कहाँ से शुरू कर सकता है? क्योंकि उस शत्रु ने, जो मानवजाति को भ्रष्ट करके मेरे विरोध में खड़ा है, पहले ही उस मानवजाति को—जिसे मैंने बहुत पहले बनाया था और जो मेरी महिमा और मेरे जीवन से भरी थी—दबोचकर दूषित कर दिया है। उसने मेरी महिमा छीन ली है और मनुष्य में जो चीज भर दी है, वह शैतान की कुरूपता की भारी मिलावट वाला जहर और अच्छे और बुरे के ज्ञान के वृक्ष के फल का रस है। आरंभ में मैंने मानवजाति का सृजन किया; अर्थात् मैंने मानवजाति के पूर्वज, आदम का सृजन किया। वह उत्साह से भरपूर, जीवन की क्षमता से भरपूर, रूप और छवि से संपन्न था, और इससे भी बढ़कर, मेरी महिमा के साहचर्य में था। वह महिमामय दिन था, जब मैंने मनुष्य का सृजन किया। इसके बाद आदम के शरीर से हव्वा उत्पन्न हुई, वह भी मनुष्य की पूर्वज थी, और इस प्रकार जिन लोगों का मैंने सृजन किया था, वे मेरे श्वास से भरे थे और मेरी महिमा से भरपूर थे। आदम मूल रूप से मेरे हाथ से पैदा हुआ था और वह मेरी छवि का प्रतिरूप था। इसलिए “आदम” का मूल अर्थ था मेरे द्वारा सृजित किया गया प्राणी, जो मेरी जीवन-ऊर्जा से भरा हुआ, मेरी महिमा से भरा हुआ, रूप और छवि से युक्त, आत्मा और श्वास से युक्त है। आत्मा से संपन्न वह एकमात्र सृजित प्राणी था, जो मेरा प्रतिनिधित्व करने, मेरी छवि धारण करने और मेरा श्वास प्राप्त करने में सक्षम था। आरंभ में, हव्वा दूसरी ऐसी इंसान थी जो श्वास से संपन्न थी, जिसके सृजन का मैंने आदेश दिया था, इसलिए “हव्वा” का मूल अर्थ था, ऐसा सृजित प्राणी, जो मेरी महिमा जारी रखेगा, जो मेरी प्राण-शक्ति से भरा हुआ, और इससे भी बढ़कर, मेरी महिमा से संपन्न है। हव्वा आदम से आई, इसलिए उसने भी मेरा रूप धारण किया, क्योंकि वह मेरी छवि में सृजित की जाने वाली दूसरी इंसान थी। “हव्वा” का मूल अर्थ था आत्मा, देह और हड्डियों से युक्त जीवित प्राणी, मेरी दूसरी गवाही और साथ ही मानवजाति के बीच मेरी दूसरी छवि। मानवजाति के ये पूर्वज मनुष्य का शुद्ध और बहुमूल्य खजाना थे, और पहले से ही आत्मा से संपन्न जीवित प्राणी थे। किंतु उस दुष्ट ने मानवजाति के पूर्वजों की संतान को कुचल दिया और उन्हें बंदी बना लिया, उसने मानव-संसार को पूर्णतः अंधकार में डुबो दिया, और हालात ऐसे बना दिए कि उनकी संतान मेरे अस्तित्व में विश्वास नहीं करती। इससे भी अधिक घिनौनी बात यह है कि लोगों को भ्रष्ट करते हुए और उन्हें कुचलते हुए वह दुष्ट मेरी महिमा, मेरी गवाही, वह प्राणशक्ति जो मैंने उन्हें प्रदान की थी, वह श्वास और जीवन जो मैंने उनमें फूँका था, मानव-संसार में मेरी समस्त महिमा, और हृदय का समस्त रक्त जो मैंने मानवजाति पर खर्च किया था, वह सब भी क्रूरतापूर्वक छीन रहा है। मानवजाति अब प्रकाश में नहीं है, लोगों ने वह सब खो दिया है जो मैंने उन्हें प्रदान किया था, और उन्होंने उस महिमा को भी अस्वीकार कर दिया है जो मैंने उन्हें प्रदान की थी। वे कैसे स्वीकार कर सकते हैं कि मैं सभी सृजित प्राणियों का प्रभु हूँ? वे स्वर्ग में मेरे अस्तित्व में कैसे विश्वास करते रह सकते हैं? कैसे वे पृथ्वी पर मेरी महिमा की अभिव्यक्तियों की खोज कर सकते हैं? ये पोते-पोतियाँ परमेश्वर को वो परमेश्वर कैसे मान सकते हैं, जिसका उनके पूर्वज ऐसे प्रभु के रूप में आदर करते थे जिसने उनका सृजन किया था? इन बेचारे पोते-पोतियों ने वह महिमा, छवि, और वह गवाही जो मैंने आदम और हव्वा को प्रदान की थी, और वह जीवन जो मैंने मानवजाति को प्रदान किया था और जिस पर वे अपने अस्तित्व के लिए निर्भर हैं, उदारता से उस दुष्ट को “भेंट कर दिया”; और वे उस दुष्ट की उपस्थिति से बिलकुल बेखबर हैं और मेरी सारी महिमा उसे दे देते हैं। क्या यह “नीच” शब्द का स्रोत नहीं है? ऐसी मानवजाति, ऐसे दुष्ट राक्षस, ऐसी चलती-फिरती लाशें, ऐसी शैतान की आकृतियाँ, मेरे ऐसे शत्रु मेरी महिमा से कैसे संपन्न हो सकते हैं? मैं अपनी महिमा वापस ले लूँगा, मनुष्यों के बीच मौजूद अपनी गवाही और वह सब वापस ले लूँगा, जो कभी मेरा था और जिसे मैंने बहुत पहले मानवजाति को दे दिया था—मैं मानवजाति को पूरी तरह से जीत लूँगा। किंतु तुम्हें पता होना चाहिए कि जिन मनुष्यों का मैंने सृजन किया था, वे पवित्र मनुष्य थे जो मेरी छवि और मेरी महिमा धारण करते थे। वे शैतान के नहीं थे, न ही वे उससे कुचले जाने के भागी थे, बल्कि शैतान के लेशमात्र जहर से भी मुक्त, शुद्ध रूप से मेरी ही अभिव्यक्ति थे। इसलिए, मैं मानवजाति को सूचित करता हूँ कि मैं सिर्फ उसे चाहता हूँ जो मेरे हाथों से सृजित है, वे पवित्र जन जिनसे मैं प्रेम करता हूँ और जो किसी अन्य चीज से संबंधित नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, मैं उनमें आनंद लूँगा और उन्हें अपनी महिमा मानूँगा। हालाँकि, जिसे मैं चाहता हूँ, वह शैतान द्वारा भ्रष्ट की गई वो मानवजाति नहीं है, जो आज शैतान से संबंधित है और जो अब मेरा मूल सृजन नहीं है। चूँकि मैं अपनी वह महिमा वापस लेना चाहता हूँ जो मानव-संसार में विद्यमान है, इसलिए मैं शैतान को पराजित करने में अपनी महिमा के प्रमाण के रूप में, मानवजाति के शेष उत्तरजीवियों को पूर्ण रूप से जीत लूँगा। मैं सिर्फ अपनी गवाही को अपनी आनंद की वस्तु, अपना निश्चित रूप मानता हूँ। यही मेरी इच्छा है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक वास्तविक व्यक्ति होने का क्या अर्थ है
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 349
आज मानवजाति जहाँ है, वहाँ तक पहुँचने में उसे इतिहास के हजारों साल लग गए हैं, फिर भी, जिस मानवजाति की सृष्टि मैंने आरंभ में की थी, वह बहुत पहले ही अधोगति में डूब गई है। मनुष्य अब वह मनुष्य नहीं है, जिसकी मैं कामना करता हूँ, और इसलिए मेरी नजरों में, लोग अब मनुष्य कहलाने योग्य नहीं हैं। बल्कि वे मानवजाति के मैल हैं जिन्हें शैतान ने बंदी बना लिया है, वे चलती-फिरती सड़ी हुई लाशें हैं जिनमें शैतान बसा हुआ है और जिनसे शैतान स्वयं को आवृत करता है। लोगों को मेरे अस्तित्व में कोई विश्वास नहीं है, न ही वे मेरे आने का स्वागत करते हैं। मानवजाति बस मेरे अनुरोध अस्थायी रूप से स्वीकार करते हुए, केवल अनिच्छा से उत्तर देती है, और जीवन के सुख-दुःख ईमानदारी से मेरे साथ साझा नहीं करती। चूँकि लोग मुझे अबोधगम्य समझते हैं, इसलिए वे मुझे ईर्ष्याभरी मुसकराहट देते हैं, उनका रवैया किसी सत्ताधारी का अनुग्रह प्राप्त करने का होता है, क्योंकि लोगों को मेरे कार्य का कोई ज्ञान नहीं है, मेरी वर्तमान इच्छा तो वे बिलकुल भी नहीं जानते। मैं तुम लोगों से सच कहूँगा : जब वह दिन आएगा, तो मेरी आराधना करने वाले हर वह व्यक्ति का दुःख तुम लोगों के दुःख की अपेक्षा सहने में ज्यादा आसान होगा। मुझमें तुम्हारी आस्था की मात्रा, वास्तव में, अय्यूब की आस्था से अधिक नहीं है—यहाँ तक कि यहूदी फरीसियों की आस्था भी तुम लोगों से बढ़कर है—और इसलिए, यदि आग का दिन उतरा, तो तुम लोगों का दुःख उन फरीसियों के दुःख से अधिक गंभीर होगा जिन्हें यीशु ने फटकार लगाई थी, उन 250 अगुआओं के दुःख से अधिक गंभीर होगा जिन्होंने मूसा का विरोध किया था, और अपने विनाश की झुलसाने वाली लपटों के तले मौजूद सदोम के दुःख से भी अधिक गंभीर होगा। जब मूसा ने चट्टान पर प्रहार किया, और यहोवा द्वारा प्रदान किया गया पानी उसमें से बहने लगा, तो यह उसकी आस्था के कारण ही था। जब दाऊद ने—आनंद से भरे अपने हृदय के साथ—मुझ यहोवा की स्तुति में वीणा बजाई, तो यह उसकी आस्था के कारण ही था। जब अय्यूब ने पहाड़ों में भरे अपने पशु और संपदा के अनगिनत ढेर खो दिए, और उसका शरीर पीड़ादायक फोड़ों से भर गया, तो यह उसकी आस्था के कारण ही था। जब वह मुझ यहोवा की वाणी सुन सका, और मेरी महिमा देख सका, तो यह उसकी आस्था के कारण ही था। पतरस उसकी आस्था के कारण ही यीशु मसीह का अनुसरण कर सका था। वह जो मेरे वास्ते सलीब पर चढ़ाया जा सका और महिमामयी गवाही दे सका, तो यह भी उसकी आस्था के कारण ही था। जब यूहन्ना ने मनुष्य के पुत्र की महिमामयी छवि देखी, तो यह उसकी आस्था के कारण ही था। जब उसने अंत के दिनों का दर्शन देखा, तो यह सब और भी ज्यादा उसकी आस्था के कारण था। इतने सारे तथाकथित अन्यजाति-राष्ट्रों ने जो मेरा प्रकाशन प्राप्त कर लिया है, और वे जान गए हैं कि मैं मनुष्यों के बीच अपना कार्य करने के लिए देह में लौट आया हूँ, तो यह भी उनकी आस्था के कारण ही है। वे सब जो मेरे कठोर वचनों द्वारा मार खाते हैं और फिर भी उनसे सांत्वना पाते हैं और बचाए जाते हैं—क्या उन्होंने ऐसा अपनी आस्था के कारण ही नहीं किया है? जो लोग मुझमें विश्वास करते हुए भी कठिनाइयों का सामना करते हैं, क्या वे भी संसार द्वारा अस्वीकृत नहीं किए गए हैं? जो लोग मेरे वचन से बाहर जी रहे हैं और परीक्षण के कष्टों से भाग रहे हैं, क्या वे सभी संसार में उद्देश्यहीन नहीं भटक रहे हैं? वे पतझड़ के पत्तों के सदृश इधर-उधर फड़फड़ा रहे हैं, जिनके पास आराम के लिए कोई जगह नहीं है, मेरी सांत्वना के वचन तो बिलकुल भी नहीं हैं। यद्यपि मेरी ताड़ना और शोधन उनका पीछा नहीं करते, फिर भी क्या वे ऐसे भिखारी नहीं हैं, जो स्वर्ग के राज्य के बाहर सड़कों पर, एक जगह से दूसरी जगह उद्देश्यहीन भटक रहे हैं? क्या संसार सच में तुम्हारे आराम करने की जगह है? क्या तुम वास्तव में, मेरी ताड़ना से बचकर संसार से संतुष्टि की कमजोर-सी मुसकराहट प्राप्त कर सकते हो? क्या तुम वास्तव में अपने क्षणभंगुर आनंद का उपयोग अपने हृदय के खालीपन को ढकने के लिए कर सकते हो, उस खालीपन को, जिसे छिपाया नहीं जा सकता? तुम अपने परिवार में हर किसी को मूर्ख बना सकते हो, लेकिन मुझे कभी मूर्ख नहीं बना सकते। चूँकि तुम लोगों की आस्था बहुत कम है, इसलिए तुम आज तक जीवन की कोई भी खुशी पाने में असमर्थ हो। मैं तुमसे आग्रह करता हूँ : बेहतर है, अपना पूरा जीवन साधारण ढंग से और देह के लिए अल्प मूल्य का कार्य करते हुए, और उन सभी दुःखों को सहन करते हुए बिताने के बजाय, जिन्हें मनुष्य शायद ही सहन कर सके, अपना आधा जीवन ईमानदारी से मेरे वास्ते बिताओ। अपने आप को इतना अधिक सँजोने और मेरी ताड़ना से भागने से कौन-सा उद्देश्य पूरा होता है? केवल अनंतकाल की शर्मिंदगी, अनंतकाल की ताड़ना का फल भुगतने के लिए मेरी क्षणिक ताड़ना से अपने आप को छिपाने से कौन-सा उद्देश्य पूरा होता है? मैं वस्तुतः अपनी इच्छा के प्रति किसी को नहीं झुकाता। यदि कोई सच में मेरी सभी योजनाओं के प्रति समर्पण करने का इच्छुक है, तो मैं उसके साथ खराब बरताव नहीं करूँगा। परंतु मैं अपेक्षा करता हूँ कि सभी लोग मुझमें विश्वास करें, वैसे ही जैसे अय्यूब ने मुझ यहोवा में विश्वास किया था। यदि तुम लोगों की आस्था थोमा से बढ़कर होगी, तो तुम लोगों की आस्था मेरी प्रशंसा प्राप्त करेगी, अपनी निष्ठा में तुम लोग मेरा परम सुख पाओगे, और तुम लोग अपने दिनों में मेरी महिमा निश्चित रूप से प्राप्त करोगे। लेकिन, जो लोग संसार और शैतान पर विश्वास करते हैं, उन्होंने अपने हृदय ठीक वैसे ही कठोर बना लिए हैं, जैसे कि सदोम शहर के लोगों ने बना लिए थे, जिनकी आँखों में हवा से उड़े हुए रेत के कण और मुँह में शैतान से मिली भेंट भरी हुई थी, जिनके अस्पष्ट मन बहुत पहले ही उस दुष्ट द्वारा कब्जे में कर लिए गए हैं जिसने संसार को हड़प लिया है। उनके विचार लगभग पूरी तरह से प्राचीन काल के शैतान के वश में आ गए हैं। इसलिए मानवजाति की आस्था हवा के झोंके के साथ उड़ गई है, और वे लोग मेरे कार्य पर ध्यान देने में भी असमर्थ हैं। वे केवल इतना ही कर सकते हैं कि मेरे कार्य के साथ यंत्रवत् ढंग से पेश आएँ या उसका एक मोटे तौर पर विश्लेषण करें, क्योंकि वे लंबे समय से शैतान के जहर से ग्रस्त हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक वास्तविक व्यक्ति होने का क्या अर्थ है
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 350
मैं मानवजाति को जीत लूँगा, क्योंकि लोग मेरे द्वारा बनाए गए थे, और इसके अलावा, उन्होंने मेरी सृष्टि की सभी भरपूर वस्तुओं का आनंद लिया है। किंतु लोगों ने मुझे अस्वीकार भी किया है; मैं उनके हृदय से अनुपस्थित हूँ, और वे मुझे अपने अस्तित्व पर एक बोझ के रूप में देखते हैं, इस हद तक कि वास्तव में मुझे देखने के बाद भी अस्वीकार कर देते हैं और मुझे हराने के हर संभव तरीके पर विचार करते हुए अपने दिमाग खँगालते हैं। लोग मुझे अपने साथ गंभीरता से व्यवहार करने या अपने से सख्त अपेक्षाएँ नहीं करने देते, न ही वे मुझे अपनी अधार्मिकता का न्याय करने या उसके लिए ताड़ना देने देते हैं। इसमें रुचि लेना तो दूर, वे इसे कष्टप्रद पाते हैं। इसलिए मेरा कार्य उस मानवजाति को पकड़ना और परास्त करना है, जो मुझमें खाती, पीती और मौज-मस्ती करती है, किंतु मुझे जानती नहीं। मैं मानवजाति को निरस्त्र कर दूँगा, और फिर अपने स्वर्गदूतों को लेकर, अपनी महिमा को लेकर, अपने निवास-स्थान में लौट जाऊँगा। क्योंकि लोगों के क्रियाकलापों ने मेरा हृदय बहुत पहले ही तोड़ दिया है और मेरा कार्य टुकड़े-टुकड़े कर दिया है। मैं खुशी-खुशी जाने से पहले अपनी वह महिमा वापिस लेना चाहता हूँ, जिसे शैतान ने छीन लिया है, और मानवजाति को उनका जीवन जीते रहने देना, “शांति और संतुष्टि में रहने और कार्य करते रहने” देना, “अपने खेतों में खेती करते रहने” देना चाहता हूँ, और मैं उनके जीवन में अब और हस्तक्षेप नहीं करूँगा। किंतु अब मेरा इरादा अपनी महिमा उस दुष्ट के हाथ से पूरी तरह से वापस ले लेने का है, वह संपूर्ण महिमा वापस लेने का है, जिसे मैंने संसार के सृजन के समय मनुष्य में गढ़ा था। मैं दोबारा कभी इसे पृथ्वी पर मानवजाति को प्रदान नहीं करूँगा। क्योंकि लोग न केवल मेरी महिमा बनाए रखने में असफल रहे हैं, बल्कि उन्होंने उसे शैतान की छवि से बदल लिया है। लोग मेरे आने को सँजोते नहीं, न ही वे मेरी महिमा के दिन को महत्व देते हैं। वे मेरी ताड़ना पाकर खुश नहीं हैं, मेरी महिमा मुझे लौटाने के इच्छुक तो बिलकुल भी नहीं हैं, न ही वे उस दुष्ट का जहर निकाल फेंकने के इच्छुक हैं। इंसान उसी पुराने तरीके से मुझे धोखा देता रहता है, लोग अभी भी उसी पुराने तरीके से उज्ज्वल मुसकराहट और खुशनुमा चेहरे बनाए रहते हैं। वे अंधकार की उस गहराई से अनजान हैं, जो मानवजाति पर उस समय उतरेगा, जब मेरी महिमा उन्हें छोड़ देगी। विशेष रूप से, वे इस बात से अनजान हैं कि जब समस्त मानवजाति के सामने मेरा दिन आएगा, तब वह उनके लिए नूह के समय के लोगों से भी अधिक कठिन होगा, क्योंकि वे नहीं जानते हैं कि जब इस्राएल से मेरी महिमा चली गई थी, तो वह कितना अंधकारमय हो गया था, क्योंकि भोर होते ही मनुष्य भूल जाता है कि घोर अँधेरी रात गुजारना कितना मुश्किल था। जब सूर्य वापस छिप जाएगा और अँधेरा मनुष्य पर उतरेगा, तो वह फिर से विलाप करेगा और अंधेरे में अपने दाँत पीसेगा। क्या तुम लोग भूल गए हो, जब मेरी महिमा इस्राएल से चली गई, तो इस्राएलियों के लिए दुःख के वे दिन सहना कितना मुश्किल हो गया था? अब वह समय है, जब तुम लोग मेरी महिमा देखते हो, और यह वह समय भी है, जब तुम लोग मेरी महिमा का दिन साझा करते हो। जब मेरी महिमा गंदी धरती को छोड़ देगी, तब मनुष्य अँधेरे में विलाप करेगा। अब महिमा का वह दिन है जब मैं अपना कार्य करता हूँ, और यह वह दिन भी है जब मैं मानवजाति को दुःख से मुक्त करता हूँ, क्योंकि मैं उसके साथ यातना और क्लेश के पल साझा नहीं करूँगा। मैं सिर्फ मानवजाति को पूरी तरह से जीतना और मानवजाति के उन दुष्टों को पूरी तरह से हराना चाहता हूँ।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक वास्तविक व्यक्ति होने का क्या अर्थ है
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 351
मैंने अपने अनुयायी बनाने के लिए पृथ्वी पर बहुत लोगों की तलाश की है। इन सभी अनुयायियों में वे लोग हैं जो याजकों की तरह सेवा करते हैं, जो अगुआई करते हैं, जो परमेश्वर के पुत्र हैं, जो परमेश्वर के लोग हैं, और जो सेवा करते हैं। वे मेरे प्रति जो निष्ठा दिखाते हैं, उसके अनुसार मैं उन्हें श्रेणियों में वर्गीकृत करता हूँ। जब सभी मनुष्यों को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत कर दिया जाएगा, अर्थात्, जब हर प्रकार के मनुष्य की प्रकृति स्पष्ट कर दी जाएगी, तब मैं उनमें से प्रत्येक को उसकी उचित श्रेणी में गिनूँगा और हर प्रकार को उसके उपयुक्त स्थान पर रखूँगा, ताकि मैं मानवजाति के उद्धार का अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकूँ। समूहों में, मैं उन्हें अपने घर बुलाता हूँ जिन्हें मैं बचाना चाहता हूँ, और फिर उनसे अपने अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करवाता हूँ। साथ ही, मैं उन्हें उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत करता हूँ, फिर उनके कर्मों के आधार पर उन्हें पुरस्कृत या दंडित करता हूँ। ऐसे हैं वे कदम, जो मेरे कार्य में शामिल हैं।
आज मैं पृथ्वी पर रहता हूँ, और मनुष्यों के बीच रहता हूँ। लोग मेरे कार्य का अनुभव करते हैं और मेरे कथनों को देखते हैं, और इसके साथ ही मैं अपने प्रत्येक अनुयायी को सभी सत्य प्रदान करता हूँ, ताकि वह मुझसे जीवन प्राप्त कर सके और इस प्रकार ऐसा मार्ग प्राप्त कर सके, जिस पर वह चल सके। क्योंकि मैं परमेश्वर हूँ, जीवनदाता हूँ। मेरे कार्य के कई वर्षों के दौरान मनुष्य ने बहुत-कुछ प्राप्त किया है और बहुत-कुछ त्यागा है, फिर भी मैं कहता हूँ कि वे मुझ पर वास्तव में विश्वास नहीं करते। क्योंकि लोग केवल मुख से यह मानते हैं कि मैं परमेश्वर हूँ, जबकि मेरे द्वारा बोले गए सत्यों से वे असहमत होते हैं, और इतना ही नहीं, वे उन सत्यों का अभ्यास भी नहीं करते, जिसके लिए मैं उनसे कहता हूँ। कहने का अर्थ है कि लोग केवल परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, सत्य के अस्तित्व को नहीं; लोग केवल परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, जीवन के अस्तित्व को नहीं; लोग केवल परमेश्वर के नाम को स्वीकार करते हैं, उसके सार को नहीं। मैं उनके उत्साह के कारण उनसे घृणा करता हूँ, क्योंकि वे केवल मुझे धोखा देने के लिए कानों को अच्छे लगने वाले शब्द बोलते हैं; उनमें से कोई भी सच्चे हृदय से मेरी आराधना नहीं करता। तुम लोगों के शब्दों में सर्प का प्रलोभन है; इसके अलावा, वे बेहद अहंकारी हैं, प्रधान दूत की यह पक्की उद्घोषणा है। इतना ही नहीं, तुम्हारे कर्म शर्मनाक हद तक तार-तार हो चुके हैं; तुम लोगों की असीमित इच्छाएँ और लोभी मंशाएँ सुनकर ठेस लगती है। तुम सब लोग मेरे घर में कीड़े बन गए हो, घृणा के साथ त्याज्य वस्तुएँ बन गए हो। क्योंकि तुम लोगों में से कोई भी सत्य से प्रेम नहीं करता; इसके बजाय तुम आशीष पाना चाहते हो, स्वर्गारोहण करना चाहते हो, पृथ्वी पर अपने सामर्थ्य का उपयोग करते मसीह के भव्य दर्शन करना चाहते हो। लेकिन क्या तुम लोगों ने कभी सोचा है कि तुम लोगों जैसा कोई व्यक्ति, कोई इतनी गहराई तक भ्रष्ट व्यक्ति, जो नहीं जानता कि परमेश्वर क्या है, परमेश्वर का अनुसरण करने योग्य कैसे हो सकता है? तुम स्वर्गारोहण कैसे कर सकते हो? तुम ऐसे भव्य दृश्य देखने के योग्य कैसे हो सकते हो, जिनका वैभव अभूतपूर्व है। तुम्हारे मुँह छल और गंदगी, विश्वासघात और अहंकार के शब्दों से भरे हैं। तुमने मुझसे कभी ईमानदारी के शब्द नहीं कहे, मेरे वचनों का अनुभव करने पर कोई पवित्र बातें, समर्पण के कोई शब्द नहीं कहे। आखिर तुम लोगों का यह कैसा विश्वास है? तुम लोगों के हृदय में इच्छा और धन के सिवाय कुछ नहीं है; और तुम लोगों के मष्तिष्क में भौतिक वस्तुओं के सिवाय कुछ नहीं है। हर दिन तुम हिसाब लगाते हो कि मुझसे कुछ कैसे प्राप्त किया जाए। हर दिन तुम गणना करते हो कि तुमने मुझसे कितनी संपत्ति और कितनी भौतिक वस्तुएँ प्राप्त की हैं। हर दिन तुम लोग खुद पर और अधिक आशीष बरसने की प्रतीक्षा करते हो, ताकि तुम लोग और अधिक मात्रा में, और ऊँचे स्तर की उन चीजों का आनंद ले सको, जिनका आनंद लिया जा सकता है। तुम लोगों के विचारों में हर क्षण मैं या मुझसे आने वाला सत्य नहीं, बल्कि तुम लोगों के पति या पत्नी, बेटे, बेटियाँ, और तुम लोगों के खाने-पीने की चीजें रहती हैं। तुम लोग यही सोचते हो कि तुम और ज्यादा तथा और ऊँचा आनंद कैसे पा सकते हो। लेकिन अपने पेट फटने की हद तक खाकर भी क्या तुम लोग महज लाश ही नहीं हो? यहाँ तक कि जब तुम लोग खुद को बाहर से इतने सुंदर परिधानों से सजा लेते हो, तब भी क्या तुम लोग एक चलती-फिरती निर्जीव लाश नहीं हो? तुम लोग पेट की खातिर तब तक कठिन परिश्रम करते हो, जब तक कि तुम लोगों के बाल सफेद नहीं हो जाते, लेकिन मेरे कार्य के लिए तुममें से कोई बाल-बराबर भी त्याग नहीं करता। तुम लोग अपनी देह और अपने बेटे-बेटियों के लिए लगातार सक्रिय रहते हो, अपने तन को थकाते रहते हो और अपने मस्तिष्क को कष्ट देते रहते हो—लेकिन मेरी इच्छा के लिए तुममें से कोई एक भी चिंता या परवाह नहीं दिखाता। वह क्या है, जो तुम अब भी मुझसे प्राप्त करने की आशा रखते हो?
जब मैं काम करता हूँ, तो कभी जल्दबाजी नहीं करता। लोग चाहे जैसे भी मेरा अनुसरण करें, मैं अपना कार्य प्रत्येक कदम के अनुसार, अपनी योजना के अनुसार करता हूँ। इसलिए, तुम लोगों के सारे विद्रोह के बावजूद मैं अभी भी बिना रुके कार्य करता हूँ, और मैं अभी भी वे वचन कहता हूँ, जो मुझे कहने चाहिए। मैं उन्हें अपने घर में बुलाता हूँ जिन्हें मैंने पूर्व-नियत किया है, ताकि वे मेरे वचनों के श्रोता हो सकें। जो मेरे वचनों के प्रति समर्पित हैं और मेरे वचनों के लिए तरसते हैं, उन सभी को मैं अपने सिंहासन के सामने लाता हूँ; जो मेरे वचनों से मुँह मोड़ते हैं, जो मेरी आज्ञा का पालन नहीं करते और जो खुलेआम मेरी अवहेलना करते हैं, उन्हें मैं अंतिम दंड की प्रतीक्षा करने के लिए एक ओर कर देता हूँ। सभी लोग भ्रष्टता के बीच और उस दुष्ट के अधीन रहते हैं, इसलिए मेरा अनुसरण करने वालों में से बहुत कम लोग सत्य के लिए लालायित रहते हैं। कहने का अर्थ है कि अधिकतर लोग वास्तव में मेरी आराधना नहीं करते; वे सत्य के साथ मेरी आराधना नहीं करते, बल्कि कपटपूर्ण उपायों से भ्रष्टता और विद्रोह द्वारा मेरा विश्वास पाने की कोशिश करते हैं। इसीलिए मैं कहता हूँ : बुलाए बहुत जाते हैं, पर चुने कुछ ही जाते हैं। बुलाए जाने वाले बेहद भ्रष्ट हैं और सभी एक ही युग में रहते हैं—लेकिन चुने जाने वाले उनका एक हिस्सा हैं, वे वो हैं जो सत्य पर विश्वास करते हैं और उसे स्वीकारते हैं, और जो सत्य का अभ्यास करते हैं। लेकिन ये लोग पूर्ण का एक बहुत छोटा हिस्सा हैं, और उनमें से मैं और अधिक महिमा प्राप्त करूँगा। इन वचनों की कसौटी पर, क्या तुम लोग जानते हो कि तुम लोग चुने हुए लोगों में से हो या नहीं? तुम लोगों का अंत कैसा होगा?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बुलाए बहुत जाते हैं, पर चुने कुछ ही जाते हैं
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 352
जैसा कि मैंने कहा, मेरा अनुसरण करने वाले बहुत हैं, लेकिन मुझे वास्तव में प्रेम करने वाले बहुत कम हैं। शायद कुछ लोग कह सकते हैं, “यदि मैं तुमसे प्रेम न करता, तो क्या मैंने इतनी बड़ी कीमत चुकाई होती? यदि मैं तुमसे प्रेम न करता, तो क्या मैंने इस बिंदु तक तुम्हारा अनुसरण किया होता?” निश्चित रूप से तुम्हारे पास कई कारण हैं, और तुम्हारा प्रेम निश्चित रूप से बहुत बड़ा है, लेकिन मेरे लिए तुम लोगों के प्रेम का सार क्या है? “प्रेम”, जैसा कि कहा जाता है, एक ऐसा भाव है जो शुद्ध और निष्कलंक है, जहाँ तुम प्रेम करने, महसूस करने और विचारशील होने के लिए अपने हृदय का उपयोग करते हो। प्रेम में कोई शर्त, कोई बाधा और कोई दूरी नहीं होती। प्रेम में कोई संदेह, कोई कपट और कोई चालाकी नहीं होती। प्रेम में कोई व्यापार नहीं होता और उसमें कुछ भी अशुद्ध नहीं होता। यदि तुम प्रेम करते हो, तो तुम धोखा नहीं दोगे, शिकायत, विश्वासघात, विद्रोह नहीं करोगे, कुछ छीनने, पाने या ज्यादा माँगने की कोशिश नहीं करोगे। यदि तुम प्रेम करते हो, तो खुशी-खुशी खुद को समर्पित करोगे, खुशी-खुशी कष्ट सहोगे, मेरे अनुरूप हो जाओगे, मेरे लिए अपना सर्वस्व त्याग दोगे, तुम अपना परिवार, अपना भविष्य, अपनी जवानी और अपना विवाह छोड़ दोगे। वरना तुम लोगों का प्रेम, प्रेम बिलकुल नहीं होगा, बल्कि कपट और विश्वासघात होगा! तुम्हारा प्रेम किस प्रकार का है? क्या वह सच्चा प्रेम है? या वह झूठा प्रेम है? तुमने कितना त्याग किया है? तुमने कितना अर्पित किया है? मुझे तुमसे कितना प्रेम प्राप्त हुआ है? क्या तुम जानते हो? तुम लोगों का हृदय बुराई, विश्वासघात और कपट से भरा हुआ है—और ऐसा होने से, तुम लोगों का प्रेम कितना अशुद्ध है? तुम लोग सोचते हो कि तुमने पहले ही मेरे लिए पर्याप्त त्याग कर दिया है; तुम लोग सोचते हो कि मेरे लिए तुम लोगों का प्रेम पहले से ही पर्याप्त है। लेकिन फिर तुम लोगों के वचन और कार्य हमेशा विद्रोही और कपटपूर्ण क्यों होते हैं? तुम लोग मेरा अनुसरण करते हो, लेकिन तुम मेरे वचन को स्वीकार नहीं करते। क्या इसे प्रेम माना जाता है? तुम लोग मेरा अनुसरण करते हो, लेकिन फिर मुझे एक तरफ कर देते हो। क्या इसे प्रेम माना जाता है? तुम लोग मेरा अनुसरण करते हो, लेकिन मुझ पर संदेह रखते हो? क्या इसे प्रेम माना जाता है? तुम लोग मेरा अनुसरण करते हो, लेकिन तुम मेरे अस्तित्व को स्वीकार नहीं कर पाते। क्या इसे प्रेम माना जाता है? तुम लोग मेरा अनुसरण करते हो, मुझे वह नहीं मानते जो मैं हूँ, और हर मोड़ पर मेरे लिए चीजें मुश्किल कर देते हो। क्या इसे प्रेम माना जाता है? तुम लोग मेरा अनुसरण करते हो, लेकिन मुझे मूर्ख बनाने और हर मामले में धोखा देने का प्रयास करते हो। क्या इसे प्रेम माना जाता है? तुम लोग मेरी सेवा करते हो, लेकिन मेरा भय नहीं मानते। क्या इसे प्रेम माना जाता है? तुम लोग हर तरह से और हर चीज में मेरा विरोध करते हो। क्या यह सब प्रेम माना जाता है? तुम लोगों ने बहुत-कुछ समर्पित किया है, यह सच है, लेकिन तुम लोगों ने उसका अभ्यास कभी नहीं किया, जो मैं तुमसे चाहता हूँ। क्या इसे प्रेम माना जा सकता है? ध्यानपूर्वक किया गया आकलन दर्शाता है कि तुम लोगों के भीतर मेरे लिए प्रेम का जरा-सा भी संकेत नहीं है। इतने वर्षों के कार्य और मेरे द्वारा आपूर्ति किए गए बहुत सारे वचनों के बाद, तुम लोगों ने वास्तव में कितना प्राप्त किया है? क्या यह पीछे मुड़कर देखने लायक नहीं है? मैं तुम लोगों को चेतावनी देता हूँ : मैं अपने पास उन्हें नहीं बुलाता, जो कभी भ्रष्ट नहीं हुए; बल्कि मैं उन्हें चुनता हूँ जो मुझसे वास्तव में प्रेम करते हैं। इसलिए, तुम लोगों को अपने शब्दों और कर्मों में सजग रहना चाहिए, और अपने इरादे और विचार जाँचने चाहिए, ताकि वे सीमा पार न करें। अंत के दिनों में, मेरे सम्मुख अपना प्रेम अर्पित करने का अधिकतम प्रयास करो, वरना कहीं ऐसा न हो कि मेरा कोप तुम लोगों से कभी न हटे!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बुलाए बहुत जाते हैं, पर चुने कुछ ही जाते हैं
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 353
प्रतिदिन प्रत्येक व्यक्ति के कर्म और विचार उस एक की आँखों के द्वारा देखे जाते हैं, और साथ ही, वे अपने कल की तैयारी कर रहे होते हैं। यही वह मार्ग है, जिस पर सभी प्राणियों को चलना चाहिए; यही वह मार्ग है, जिसे मैंने सभी के लिए पूर्वनिर्धारित कर दिया है, और कोई इससे बच या छूट नहीं सकता। मैंने अनगिनत वचन कहे हैं और साथ ही मैंने अनगिनत कार्य किए हैं। प्रतिदिन मैं प्रत्येक मनुष्य को स्वाभाविक रूप से वह सब करते हुए देखता हूँ, जो उसे अपने अंतर्निहित स्वभाव और अपनी प्रकृति के विकास के अनुसार करना है। अनजाने में अनेक लोगों ने पहले ही “सही मार्ग” पर चलना आरंभ कर दिया है, जिसे मैंने विभिन्न प्रकार के लोगों के लिए निर्धारित किया है। इन विभिन्न प्रकार के लोगों को मैंने लंबे समय से विभिन्न वातावरणों में रखा है और अपने-अपने स्थान पर प्रत्येक ने अपनी अंतर्निहित विशेषताओं को व्यक्त किया है। उन्हें कोई बाँध नहीं सकता और कोई उन्हें बहका नहीं सकता। वे पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं और वे जो अभिव्यक्त करते हैं, वह स्वभाविक रूप से अभिव्यक्त होता है। केवल एक चीज़ उन्हें नियंत्रण में रखती है : मेरे वचन। इस तरह कुछ लोग मेरे वचन अनमने भाव से पढ़ते हैं, कभी उनका अभ्यास नहीं करते, केवल मृत्यु से बचने के लिए ऐसा करते हैं; जबकि कुछ लोगों के लिए मेरे वचनों के मार्गदर्शन और आपूर्ति के बिना दिन गुज़ारना कठिन होता है, और इसलिए वे स्वभाविक तौर पर मेरे वचनों को हर समय थामे रहते हैं। जैसे-जैसे समय बीतता है, वे मनुष्य के जीवन के रहस्य, मानव-जाति के गंतव्य और मनुष्य होने के महत्त्व की खोज करते जाते हैं। मानव-जाति मेरे वचनों की उपस्थिति में इससे अलग कुछ नहीं है और मैं बस चीज़ों को उनके अपने हिसाब से होने देता हूँ। मैं ऐसा कुछ नहीं करता, जो लोगों को मेरे वचनों को अपने अस्तित्व का आधार बनाने के लिए बाध्य करे। तो जिन लोगों में कभी विवेक नहीं रहा और जिनके अस्तित्व का कभी कोई मूल्य नहीं रहा, वे बेधड़क मेरे वचनों को दरकिनार कर देते हैं और चुपचाप चीज़ों को घटित होते देखने के बाद जो चाहते हैं, करते हैं। वे सत्य से और उस सबसे जो मुझसे आता है, घृणा करने लगते हैं। इतना ही नहीं, वे मेरे घर में रहने से भी घृणा करते हैं। अपने गंतव्य की खातिर, और सजा से बचने के लिए ये लोग कुछ समय के लिए मेरे घर में रहते हैं, भले ही सेवा प्रदान कर रहे हों। परंतु उनके इरादे और कार्य कभी नहीं बदलते। इससे आशीष पाने की उनकी इच्छा और एक बार राज्य में प्रवेश करने और उसके बाद वहाँ हमेशा के लिए रहने—यहाँ तक कि अनंत स्वर्ग में प्रवेश करने की उनकी इच्छा बढ़ जाती है। जितना अधिक वे मेरे दिन के जल्दी आने की लालसा करते हैं, उतना ही अधिक वे महसूस करते हैं कि सत्य उनके मार्ग की बाधा और अड़चन बन गया है। वे हमेशा के लिए स्वर्ग के राज्य के आशीषों का आनंद उठाने हेतु राज्य में कदम रखने के लिए मुश्किल से इंतजार कर पाते हैं—सब-कुछ बिना सत्य की खोज करने या न्याय और ताड़ना स्वीकार करने, यहाँ तक कि मेरे घर में विनीत भाव से रहने और मेरी आज्ञा के अनुसार कार्य करने की जरूरत समझे बिना। ये लोग न तो सत्य की खोज करने की अपनी इच्छा पूरी करने के लिए मेरे घर में प्रवेश करते हैं, न ही मेरे प्रबंधन में सहयोग करने के लिए; उनका उद्देश्य महज उन लोगों में शामिल होने का होता है, जिन्हें आने वाले युग में नष्ट नहीं किया जाएगा। इसलिए उनके हृदय ने कभी नहीं जाना कि सत्य क्या है, या सत्य को कैसे ग्रहण किया जाए। यही कारण है कि ऐसे लोगों ने कभी सत्य का अभ्यास या अपनी भ्रष्टता की गहराई का एहसास नहीं किया, और फिर भी वे मेरे घर में हमेशा “सेवकों” के रूप में रहे हैं। वे “धैर्यपूर्वक” मेरे दिन के आने का इंतज़ार करते हैं और मेरे कार्य के तरीके से यहाँ-वहाँ उछाले जाकर भी थकते नहीं। लेकिन भले ही उनकी कोशिश कितनी भी बड़ी हो और उन्होंने उसकी कुछ भी कीमत चुकाई हो, किसी ने उन्हें सत्य के लिए कष्ट उठाते हुए या मेरी खातिर कुछ देते हुए नहीं देखा। अपने हृदय में वे उस दिन को देखने के लिए बेचैन हैं, जब मैं पुराने युग का अंत करूँगा, और इससे भी बढ़कर, वे यह जानने का इंतज़ार नहीं कर सकते कि मेरा सामर्थ्य और मेरा अधिकार कितने विशाल हैं। जिस चीज़ के लिए उन्होंने कभी शीघ्रता नहीं की, वह है खुद को बदलना और सत्य का अनुसरण करना। वे उससे प्रेम करते हैं, जिससे मैं उकता गया हूँ और उससे उकता गए हैं, जिससे मैं प्रेम करता हूँ। वे उसकी अभिलाषा करते हैं जिससे मैं नफरत करता हूँ, लेकिन उसे खोने से डरते हैं जिससे मैं घृणा करता हूँ। वे इस बुरे संसार में रहते हुए भी इससे कभी नफरत नहीं करते, फिर भी इस बात से बहुत डरते हैं कि मैं इसे नष्ट कर दूँगा। अपने परस्पर विरोधी इरादों के बीच वे इस संसार से प्यार करते हैं जिससे मैं घृणा करता हूँ, लेकिन इस बात के लिए लालायित भी रहते हैं कि मैं इस संसार को शीघ्र नष्ट कर दूँ, और इससे पहले कि वे सच्चे मार्ग से भटक जाएँ, उन्हें विनाश के कष्ट से बचा लिया जाए और अगले युग के स्वामियों के रूप में रूपांतरित कर दिया जाए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते और उस सबसे उकता गए हैं, जो मुझसे आता है। वे आशीष खोने के डर से थोड़े समय के लिए “आज्ञाकारी लोग” बन सकते हैं, लेकिन आशीष पाने के लिए उनकी उत्कंठा और नष्ट होने तथा जलती हुई आग की झील में प्रवेश करने का उनका भय कभी छिपाया नहीं जा। जैसे-जैसे मेरा दिन नज़दीक आता है, उनकी इच्छा लगातार उत्कट होती जाती है। और आपदा जितनी बड़ी होती है, उतना ही वह उन्हें असहाय बना देती है और वे यह नहीं जान पाते कि मुझे प्रसन्न करने के लिए एवं उन आशीषों को खोने से बचाने के लिए, जिनकी उन्होंने लंबे समय से लालसा की है, कहाँ से शुरुआत करें। जैसे ही मेरा हाथ अपना काम करना शुरू करता है, ये लोग एक अग्र-दल के रूप में कार्य करने के लिए उत्सुक हो जाते हैं। इस डर से कि मैं उन्हें नहीं देखूँगा, वे बस सेना की सबसे आगे की टुकड़ी में आने की सोचते हैं। वे वही करते और कहते हैं, जिसे वे सही समझते हैं, और यह कभी नहीं जान पाते कि उनके क्रिया-कलाप कभी सत्य के अनुरूप नहीं रहे, और कि उनके कर्म मेरी योजनाओं में गड़बड़ी और हस्तक्षेप मात्र करते हैं। उन्होंने कड़ी मेहनत की हो सकती है, और वे कष्ट सहने के अपने इरादे और प्रयास में सच्चे हो सकते हैं, पर उनके कार्यों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि मैंने कभी नहीं देखा कि उनके कार्य अच्छे इरादे के साथ किए गए हैं, और उन्हें अपनी वेदी पर कुछ रखते हुए तो मैंने बहुत ही कम देखा है। इन अनेक वर्षों में मेरे सामने उन्होंने ऐसे ही कार्य किए हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम लोगों को अपने कर्मों पर विचार करना चाहिए
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 354
मूल रूप से मैं तुम लोगों को और अधिक सत्य प्रदान करना चाहता था, लेकिन मुझे इससे विरत होना पड़ा, क्योंकि सत्य के प्रति तुम्हारा रवैया बहुत ठंडा और उदासीन है; मैं नहीं चाहता कि मेरी कोशिशें व्यर्थ जाएँ, न ही मैं यह देखना चाहता हूँ कि लोग मेरे वचनों को तो थामे रहें, लेकिन काम हर लिहाज से ऐसे करें, जिनसे मेरा विरोध होता हो, जो मुझे कलंकित करते हों और मेरा तिरस्कार करते हों। तुम लोगों के रवैये और मानवीय स्वभाव के कारण, मैं तुम्हें अपने वचनों का एक छोटा-सा भाग ही प्रदान करता हूँ, जो तुम्हारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, और जो मनुष्यों के बीच मेरा परीक्षण-कार्य है। केवल अब मैंने वास्तव में पुष्टि की है कि जो निर्णय और योजनाएँ मैंने बनाई हैं, वे तुम लोगों की जरूरतों के अनुरूप हैं, और यह भी कि मानव-जाति के प्रति मेरा रवैया सही है। मेरे सामने तुम लोगों के कई वर्षों के व्यवहार ने मुझे बिना दृष्टांत के उत्तर दे दिया, और इस उत्तर का प्रश्न यह है कि : “सत्य और सच्चे परमेश्वर के सामने मनुष्य का रवैया क्या है?” मैंने मनुष्य के लिए जो प्रयास किए हैं, वे मनुष्य के लिए मेरे प्रेम के सार को प्रमाणित करते हैं, और मेरे सामने मनुष्य का हर कार्य सत्य से घृणा करने और मेरा विरोध करने के उसके सार को प्रमाणित करता है। मैं हर समय उन सबके लिए चिंतित रहता हूँ, जो मेरा अनुसरण करते हैं, लेकिन मेरा अनुसरण करने वाले कभी मेरे वचनों को ग्रहण करने में समर्थ नहीं होते; यहाँ तक कि वे मेरे सुझाव स्वीकार करने में भी सक्षम नहीं हैं। यह बात मुझे सबसे ज़्यादा उदास करती है। कोई भी मुझे कभी भी समझ नहीं पाया है, और इतना ही नहीं, कोई भी मुझे कभी भी स्वीकार नहीं कर पाया है, बावजूद इसके कि मेरा रवैया नेक और मेरे वचन सौम्य हैं। सभी लोग मेरे द्वारा उन्हें सौंपा गया कार्य अपने विचारों के अनुसार करने की कोशिश करते हैं; वे मेरे इरादे को जानने की कोशिश नहीं करते, मेरी अपेक्षाओं के बारे में पूछने की बात तो छोड़ ही दीजिए। वे अभी भी वफादारी के साथ मेरी सेवा करने का दावा करते हैं, जबकि वे मेरे खिलाफ विद्रोह करते हैं। बहुतों का यह मानना है कि जो सत्य उन्हें स्वीकार्य नहीं हैं या जिनका वे अभ्यास नहीं कर पाते, वे सत्य ही नहीं हैं। ऐसे लोगों में सत्य ऐसी चीज़ बन जाते हैं, जिन्हें नकार दिया जाता है और दरकिनार कर दिया जाता है। उसी समय, लोग मुझे वचन में परमेश्वर के रूप में पहचानते हैं, परंतु साथ ही मुझे एक ऐसा बाहरी व्यक्ति मानते हैं, जो सत्य, मार्ग या जीवन नहीं है। कोई इस सत्य को नहीं जानता : मेरे वचन सदा-सर्वदा अपरिवर्तनीय सत्य हैं। मैं मनुष्य के लिए जीवन की आपूर्ति और मानव-जाति के लिए एकमात्र मार्गदर्शक हूँ। मेरे वचनों का मूल्य और अर्थ इससे निर्धारित नहीं होता कि उन्हें मानव-जाति द्वारा पहचाना या स्वीकारा जाता है या नहीं, बल्कि स्वयं वचनों के सार द्वारा निर्धारित होता है। भले ही इस पृथ्वी पर एक भी व्यक्ति मेरे वचनों को ग्रहण न कर पाए, मेरे वचनों का मूल्य और मानव-जाति के लिए उनकी सहायता किसी भी मनुष्य के लिए अपरिमेय है। इसलिए ऐसे अनेक लोगों से सामना होने पर, जो मेरे वचनों के खिलाफ विद्रोह करते हैं, उनका खंडन करते हैं, या उनका पूरी तरह से तिरस्कार करते हैं, मेरा रुख केवल यह रहता है : समय और तथ्यों को मेरी गवाही देने दो और यह दिखाने दो कि मेरे वचन सत्य, मार्ग और जीवन हैं। उन्हें यह दिखाने दो कि जो कुछ मैंने कहा है, वह सही है, और वह ऐसा है जिसकी आपूर्ति लोगों को की जानी चाहिए, और इतना ही नहीं, जिसे मनुष्य को स्वीकार करना चाहिए। मैं उन सबको, जो मेरा अनुसरण करते हैं, यह तथ्य ज्ञात करवाऊँगा : जो लोग पूरी तरह से मेरे वचनों को स्वीकार नहीं कर सकते, जो मेरे वचनों का अभ्यास नहीं कर सकते, जिन्हें मेरे वचनों में कोई लक्ष्य नहीं मिल पाता, और जो मेरे वचनों के कारण उद्धार प्राप्त नहीं कर पाते, वे लोग हैं जो मेरे वचनों के कारण निंदित हुए हैं और इतना ही नहीं, जिन्होंने मेरे उद्धार को खो दिया है, और मेरी लाठी उन पर से कभी नहीं हटेगी।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम लोगों को अपने कर्मों पर विचार करना चाहिए
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 355
मानवजाति द्वारा सामाजिक विज्ञानों के आविष्कार के बाद से मनुष्य का मन विज्ञान और ज्ञान से भर गया है। तब से विज्ञान और ज्ञान मानवजाति के शासन के लिए उपकरण बन गए हैं, और अब मनुष्य के पास परमेश्वर की आराधना करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश और अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं रही हैं। मनुष्य के हृदय में परमेश्वर की स्थिति सबसे नीचे हो गई है। हृदय में परमेश्वर के बिना मनुष्य की आंतरिक दुनिया अंधकारमय, आशारहित और खोखली है। बाद में मनुष्य के हृदय और मन को भरने के लिए कई समाज-वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और राजनीतिज्ञों ने सामने आकर सामाजिक विज्ञान के सिद्धांत, मानव-विकास के सिद्धांत और अन्य कई सिद्धांत व्यक्त किए, जो इस सच्चाई का खंडन करते हैं कि परमेश्वर ने मनुष्य की रचना की है, और इस तरह, यह विश्वास करने वाले बहुत कम रह गए हैं कि परमेश्वर ने सब-कुछ बनाया है, और विकास के सिद्धांत पर विश्वास करने वालों की संख्या और अधिक बढ़ गई है। अधिकाधिक लोग पुराने विधान के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के अभिलेखों और उसके वचनों को मिथक और किंवदंतियाँ समझते हैं। अपने हृदयों में लोग परमेश्वर की गरिमा और महानता के प्रति, और इस सिद्धांत के प्रति भी कि परमेश्वर का अस्तित्व है और वह सभी चीज़ों पर प्रभुत्व रखता है, उदासीन हो जाते हैं। मानवजाति का अस्तित्व और देशों एवं राष्ट्रों का भाग्य उनके लिए अब और महत्वपूर्ण नहीं रहे, और मनुष्य केवल खाने-पीने और भोग-विलासिता की खोज में चिंतित, एक खोखले संसार में रहता है। ... कुछ लोग स्वयं इस बात की खोज करने का उत्तरदायित्व लेते हैं कि आज परमेश्वर अपना कार्य कहाँ करता है, या यह तलाशने का उत्तरदायित्व कि वह किस प्रकार मनुष्य के गंतव्य पर नियंत्रण और उसकी व्यवस्था करता है। और इस तरह, मनुष्य के बिना जाने ही मानव-सभ्यता मनुष्य की इच्छाओं के अनुसार चलने में और भी अधिक अक्षम हो गई है, और कई ऐसे लोग भी हैं, जो यह महसूस करते हैं कि इस प्रकार के संसार में रहकर वे, उन लोगों के बजाय जो चले गए हैं, कम खुश हैं। यहाँ तक कि उन देशों के लोग भी, जो अत्यधिक सभ्य हुआ करते थे, इस तरह की शिकायतें व्यक्त करते हैं। क्योंकि परमेश्वर के मार्गदर्शन के बिना शासक और समाजशास्त्री मानवजाति की सभ्यता को सुरक्षित रखने के लिए अपना कितना भी दिमाग क्यों न ख़पा लें, कोई फायदा नहीं होगा। मनुष्य के हृदय का खालीपन कोई नहीं भर सकता, क्योंकि कोई मनुष्य का जीवन नहीं बन सकता, और कोई सामाजिक सिद्धांत मनुष्य को उस खालीपन से मुक्ति नहीं दिला सकता, जिससे वह व्यथित है। विज्ञान, ज्ञान, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, फुरसत, आराम : ये मनुष्य को केवल अस्थायी सांत्वना देते हैं। यहाँ तक कि इन बातों के साथ भी मनुष्य पाप करता और समाज के अन्याय का रोना रोता है। ये चीज़ें मनुष्य की अन्वेषण की लालसा और इच्छा को दबा नहीं सकतीं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मनुष्य को परमेश्वर द्वारा बनाया गया था और मनुष्यों के बेतुके त्याग और अन्वेषण केवल और अधिक कष्ट की ओर ही ले जा सकते हैं और मनुष्य को एक निरंतर भय की स्थिति में रख सकते हैं, और वह यह नहीं जान सकता कि मानवजाति के भविष्य या आगे आने वाले मार्ग का सामना किस प्रकार किया जाए। यहाँ तक कि मनुष्य विज्ञान और ज्ञान से भी डरने लगता है, और खालीपन के एहसास से और भी भय खाने लगता है। इस संसार में, चाहे तुम किसी स्वंतत्र देश में रहते हो या बिना मानवाधिकारों वाले देश में, तुम मानवजाति के भाग्य से बचकर भागने में सर्वथा असमर्थ हो। तुम चाहे शासक हो या शासित, तुम भाग्य, रहस्यों और मानवजाति के गंतव्य की खोज करने की इच्छा से बचकर भागने में सर्वथा अक्षम हो, और खालीपन के व्याकुल करने वाले बोध से बचकर भागने में तो और भी ज्यादा अक्षम हो। इस प्रकार की घटनाएँ, जो समस्त मानवजाति के लिए सामान्य हैं, समाजशास्त्रियों द्वारा सामाजिक घटनाएँ कही जाती हैं, फिर भी कोई महान व्यक्ति इस समस्या का समाधान करने के लिए सामने नहीं आ सकता। मनुष्य आखिरकार मनुष्य है, और परमेश्वर का स्थान और जीवन किसी मनुष्य द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। मानवजाति को केवल एक निष्पक्ष समाज की ही आवश्यकता नहीं है, जिसमें हर व्यक्ति को नियमित रूप से अच्छा भोजन मिलता हो और जिसमें सभी समान और स्वतंत्र हों, बल्कि मानवजाति को आवश्यकता है परमेश्वर के उद्धार और अपने लिए जीवन की आपूर्ति की। केवल जब मनुष्य परमेश्वर का उद्धार और जीवन की आपूर्ति प्राप्त करता है, तभी उसकी आवश्यकताओं, अन्वेषण की लालसा और आध्यात्मिक रिक्तता का समाधान हो सकता है। यदि किसी देश या राष्ट्र के लोग परमेश्वर के उद्धार और उसकी देखभाल प्राप्त करने में अक्षम हैं, तो वह देश या राष्ट्र पतन के मार्ग पर, अंधकार की ओर चला जाएगा, और परमेश्वर द्वारा जड़ से मिटा दिया जाएगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 356
तुम्हारे दिल में एक बहुत बड़ा रहस्य है, जिसके बारे में तुमने कभी नहीं जाना है, क्योंकि तुम एक प्रकाशविहीन दुनिया में रह रहे हो। तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा शैतान द्वारा छीन लिए गए हैं। तुम्हारी आँखें अंधकार से धुंधला गई हैं, तुम न तो आकाश में सूर्य को देख सकते हो और न ही रात के टिमटिमाते तारे को। तुम्हारे कान कपटपूर्ण शब्दों से भरे हुए हैं, तुम न तो यहोवा की गरजती वाणी सुनते हो, न ही सिंहासन से बहने वाले पानी की आवाज़ को। तुमने वह सब कुछ खो दिया है जिस पर तुम्हारा हक है, वह सब भी जो सर्वशक्तिमान ने तुम्हें प्रदान किया था। तुम दुःख के अनंत सागर में प्रवेश कर चुके हो, तुम्हारे पास खुद को बचाने की ताकत नहीं है, न जीवित बचे रहने की कोई उम्मीद है। तुम बस संघर्ष करते हो और व्यर्थ की भाग-दौड़ करते हो...। उस क्षण से, सर्वशक्तिमान के आशीषों से दूर, सर्वशक्तिमान के प्रावधानों की पहुंच से बाहर, ऐसे पथ पर चलते हुए जहां से लौटना संभव नहीं, तुम दुष्ट के द्वारा पीड़ित होने के लिए शापित हो गए थे। लाखों पुकार भी शायद ही तुम्हारे दिल और तुम्हारी आत्मा को जगा सकें। तुम उस शैतान की गोद में गहरी नींद में सो रहे हो, जो तुम्हें फुसलाकर एक ऐसे असीम क्षेत्र में ले गया है, जहाँ न कोई दिशा है, न कोई दिशा-सूचक। अब से, तुमने अपनी मौलिक मासूमियत और शुद्धता खो दी, और सर्वशक्तिमान की देखभाल से दूर रहना शुरू कर दिया। तुम्हारे दिल के भीतर, सभी मामलों में तुम्हें चलाने वाला शैतान है, वो तुम्हारा जीवन बन गया है। अब तुम उससे न तो डरते हो, न बचते हो, न ही उस पर शक करते हो; इसके बजाय, तुम उसे अपने दिल में परमेश्वर मानते हो। तुमने उसे पवित्र के रूप में स्थापित कर पूजना शुरू कर दिया, तुम दोनों शरीर और छाया जैसे अविभाज्य हो गए हो, एक-साथ जीने मरने के लिए प्रतिबद्ध हो। तुम्हें कुछ पता नहीं है कि तुम कहाँ से आए, क्यों पैदा हुए, या तुम क्यों मरोगे। तुम सर्वशक्तिमान को एक अजनबी के रूप में देखते हो; तुम उसके उद्गम को नहीं जानते, तुम्हारे लिए जो कुछ उसने किया है, वो जानने की तो बात ही दूर है। उससे जो कुछ भी आता है वह तुम्हारे लिए घृणित हो गया है; तुम न तो इसकी कद्र करते हो और न ही इसकी कीमत जानते हो। तुम उस दिन से शैतान के साथ-साथ चलते हो, जबसे तुमने सर्वशक्तिमान का प्रावधान प्राप्त किया है। तुमने शैतान के साथ हजारों वर्षों के संकटों और तूफानों को सहा है, और तुम उसके साथ उस परमेश्वर के खिलाफ खड़े हो जो तुम्हारे जीवन का स्रोत है। तुम पश्चाताप के बारे में कुछ नहीं जानते, तो यह जानने की तो बात ही छोड़ो कि तुम अपने पतन के कगार पर आ गए हो। तुम यह भूल गए हो कि शैतान ने तुम्हें बहकाया और पीड़ित किया है; तुम अपने आरंभ को भूल गए हो। इस तरह शैतान ने आज तक, तुम्हें पूरे रास्ते, हर कदम पर कष्ट दिया है। तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा सुन्न हो गए हैं, सड़ गए हैं। तुमने इंसानी दुनिया के संताप के बारे में शिकायत करना बंद कर दिया है; तुम तो अब यह भी नहीं मानते कि दुनिया अन्यायपूर्ण है। सर्वशक्तिमान का अस्तित्व है या नहीं इसकी परवाह तो तुम्हें और भी कम है। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुमने बहुत पहले शैतान को अपना सच्चा पिता मान लिया था और तुम उससे अलग नहीं हो सकते। यह तुम्हारे दिल के भीतर का रहस्य है।
जैसे-जैसे भोर होती है, एक सुबह का तारा पूर्व में चमकने लगता है। यह एक ऐसा सितारा है जो पहले वहाँ कभी नहीं था, यह शांत, जगमगाते आसमान को रोशन करता है, मनुष्यों के दिलों में बुझी हुई रोशनी को फिर से जलाता है। तुम्हारे और अन्य लोगों पर समान रूप से चमकने वाले इस प्रकाश के कारण मनुष्य अब अकेला नहीं रह गया है। फिर भी तुम इकलौते हो जो कि अंधेरी रात में सोये रहते हो। तुम न कोई ध्वनि सुनते हो और न ही कोई प्रकाश देखते हो; तुम एक नए युग के, एक नए स्वर्ग और पृथ्वी के आगमन से अनजान हो, क्योंकि तुम्हारा पिता तुमसे कहता है, “मेरे बच्चे, उठो मत, अभी भी रात है। मौसम ठंडा है, इसलिए बाहर मत जाओ, ऐसा न हो कि तलवार और भाले तुम्हारी आंखों को बेध दें।” तुम केवल अपने पिता की चेतावनियों पर भरोसा करते हो, क्योंकि तुम्हारा मानना है कि केवल तुम्हारा पिता सही है, क्योंकि वह तुमसे उम्र में बड़ा है और वह तुमसे बहुत प्यार करता है। इस तरह की चेतावनी और प्रेम तुम्हें इस पौराणिक कथा पर विश्वास नहीं करने देते कि दुनिया में प्रकाश है; वे तुम्हें इस बात की परवाह करने से रोक देते हैं कि सत्य अभी भी इस दुनिया में मौजूद है या नहीं। अब तुम सर्वशक्तिमान द्वारा बचाये जाने की आशा नहीं करते। तुम यथास्थिति से संतुष्ट हो, अब तुम प्रकाश के आगमन की प्रतीक्षा नहीं करते, पौराणिक कथाओं में सर्वशक्तिमान के जिस आगमन के बारे मे बताया गया है तुम उसकी राह नहीं देखते। तुम्हारे अनुसार जो भी सुंदर है उसे पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता, वह अस्तित्व में नहीं हो सकता। तुम्हारी नज़र में, मानवजाति का आने वाला कल, मानवजाति का भविष्य, बस गायब हो जाता है, मिट जाता है। तुम अपने पिता के कपड़ों से पूरी ताकत से चिपके रहते हो, उसके कष्ट साझा करने के लिए तैयार रहते हो, इस गहरे डर से कि कहीं यात्रा के अपने साथी या सूदूर की यात्रा की दिशा न खो दो। मनुष्यों की विशाल और धुंधली दुनिया ने तुम जैसे कइयों को बनाया है, जो इस दुनिया की विभिन्न भूमिकाओं को निभाने में निर्भीक और निडर हैं। इसने कई “योद्धाओं” को बनाया है जिनमें मृत्यु का भय नहीं है। इससे भी बड़ी बात यह है कि इसने सुन्न और लकवाग्रस्त मनुष्यों के एक के बाद एक कई जत्थे तैयार किए हैं जो अपनी रचना के उद्देश्य से अनभिज्ञ हैं। सर्वशक्तिमान की आंखें गहराई से पीड़ित मानवजाति के प्रत्येक सदस्य का अवलोकन करती हैं। सर्वशक्तिमान को पीड़ितों की कराहें सुनायी देती हैं, उसे पीड़ितों की बेशर्मी दिखायी देती है, और वह उस मानवजाति की लाचारी और खौफ को महसूस करता है जो उद्धार का अनुग्रह खो चुकी है। मानवजाति परमेश्वर की देखभाल को अस्वीकार कर, अपने ही रास्ते पर चलती है; उसकी आँखों की जांच से बचने का प्रयास करते हुए, आखिरी सांस तक दुश्मन की संगति में गहरे समुद्र की कड़वाहट का स्वाद लेना पसंद करती है। अब मनुष्य को सर्वशक्तिमान की आह सुनाई नहीं देती; अब इस दुःखद मानवजाति को सहलाने के लिए सर्वशक्तिमान के हाथ तैयार नहीं हैं। वह बार-बार पकड़ता है, और बार-बार गँवा देता है, इस तरह उसका किया कार्य दोहराया जाता है। उस क्षण से, वह थकान महसूस करने लगता है, उकताने लगता है और इसलिए वह उस काम को बंद कर देता है जो उसके हाथ में है और मानवजाति के बीच में चलना बंद कर देता है...। मनुष्य इनमें से किसी भी परिवर्तन से अनजान है, सर्वशक्तिमान के आने और जाने से, उसकी उदासी और विषाद से अनजान है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सर्वशक्तिमान की आह
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 357
हालाँकि परमेश्वर का प्रबंधन गहरा है, पर यह मनुष्य की समझ से परे नहीं है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर का संपूर्ण कार्य उसके प्रबंधन और मनुष्य के उद्धार के कार्य से जुड़ा हुआ है, और मानवजाति के जीवन, रहन-सहन और मंज़िल से संबंध रखता है। परमेश्वर मनुष्य के मध्य और उनपर जो कार्य करता है, उसे बहुत ही व्यावहारिक और अर्थपूर्ण कहा जा सकता है। वह मनुष्य द्वारा देखा और अनुभव किया जा सकता है, और वह अमूर्त बिलकुल नहीं है। यदि मनुष्य परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले समस्त कार्य को स्वीकार करने में अक्षम है, तो उसके कार्य का महत्व ही क्या है? और इस प्रकार का प्रबंधन मनुष्य को उद्धार की ओर कैसे ले जा सकता है? परमेश्वर का अनुसरण करने वाले बहुत सारे लोग केवल इस बात से मतलब रखते हैं कि आशीष कैसे प्राप्त किए जाएँ या आपदा से कैसे बचा जाए। जैसे ही परमेश्वर के कार्य और प्रबंधन का उल्लेख किया जाता है, वे चुप हो जाते हैं और उनकी सारी रुचि समाप्त हो जाती है। उन्हें लगता है कि इस प्रकार के उबाऊ मुद्दों को समझने से उनके जीवन के विकास में मदद नहीं मिलेगी या कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। परिणामस्वरूप, हालाँकि उन्होंने परमेश्वर के प्रबंधन के बारे में सुना होता है, वे उसपर बहुत कम ध्यान देते हैं। उन्हें वह इतना मूल्यवान नहीं लगता कि उसे स्वीकारा जाए, और उसे अपने जीवन का अंग तो वे बिलकुल नहीं समझते। ऐसे लोगों का परमेश्वर का अनुसरण करने का केवल एक सरल उद्देश्य होता है, और वह उद्देश्य है आशीष प्राप्त करना। ऐसे लोग ऐसी किसी भी दूसरी चीज़ पर ध्यान देने की परवाह नहीं कर सकते जो इस उद्देश्य से सीधे संबंध नहीं रखती। उनके लिए, आशीष प्राप्त करने के लिए परमेश्वर में विश्वास करने से ज्यादा वैध उद्देश्य और कोई नहीं है—यह उनके विश्वास का असली मूल्य है। यदि कोई चीज़ इस उद्देश्य को प्राप्त करने में योगदान नहीं करती, तो वे उससे पूरी तरह से अप्रभावित रहते हैं। आज परमेश्वर में विश्वास करने वाले अधिकांश लोगों का यही हाल है। उनके उद्देश्य और इरादे न्यायोचित प्रतीत होते हैं, क्योंकि जब वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, तो वे परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाते भी हैं, परमेश्वर के प्रति समर्पित होते हैं और अपना कर्तव्य भी निभाते हैं। वे अपनी जवानी न्योछावर कर देते हैं, परिवार और आजीविका त्याग देते हैं, यहाँ तक कि वर्षों अपने घर से दूर व्यस्त रहते हैं। अपने परम उद्देश्य के लिए वे अपनी रुचियाँ बदल डालते हैं, अपने जीवन का दृष्टिकोण बदल देते हैं, यहाँ तक कि अपनी खोज की दिशा तक बदल देते हैं, किंतु परमेश्वर पर अपने विश्वास के उद्देश्य को नहीं बदल सकते। वे अपने आदर्शों के प्रबंधन के लिए भाग-दौड़ करते हैं; चाहे मार्ग कितना भी दूर क्यों न हो, और मार्ग में कितनी भी कठिनाइयाँ और अवरोध क्यों न आएँ, वे दृढ़ रहते हैं और मृत्यु से नहीं डरते। इस तरह से अपने आप को समर्पित रखने के लिए उन्हें कौन-सी ताकत बाध्य करती है? क्या यह उनका विवेक है? क्या यह उनका महान और कुलीन चरित्र है? क्या यह बुराई से बिलकुल अंत तक लड़ने का उनका दृढ़ संकल्प है? क्या यह बिना प्रतिफल की आकांक्षा के परमेश्वर की गवाही देने का उनका विश्वास है? क्या यह परमेश्वर की इच्छा प्राप्त करने के लिए सब-कुछ त्याग देने की तत्परता के प्रति उनकी निष्ठा है? या यह अनावश्यक व्यक्तिगत माँगें हमेशा त्याग देने की उनकी भक्ति-भावना है? ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए, जिसने कभी परमेश्वर के प्रबंधन को नहीं समझा, फिर भी इतना कुछ देना एक चमत्कार ही है! फिलहाल, आओ इसकी चर्चा न करें कि इन लोगों ने कितना कुछ दिया है। किंतु उनका व्यवहार हमारे विश्लेषण के बहुत योग्य है। उनके साथ इतनी निकटता से जुड़े उन लाभों के अतिरिक्त, परमेश्वर को कभी नहीं समझने वाले लोगों द्वारा उसके लिए इतना कुछ दिए जाने का क्या कोई अन्य कारण हो सकता है? इसमें हमें पूर्व की एक अज्ञात समस्या का पता चलता है : मनुष्य का परमेश्वर के साथ संबंध केवल एक नग्न स्वार्थ है। यह आशीष देने वाले और लेने वाले के मध्य का संबंध है। स्पष्ट रूप से कहें तो, यह कर्मचारी और नियोक्ता के मध्य के संबंध के समान है। कर्मचारी केवल नियोक्ता द्वारा दिए जाने वाले प्रतिफल प्राप्त करने के लिए कार्य करता है। इस प्रकार के संबंध में कोई स्नेह नहीं होता, केवल एक लेनदेन होता है। प्रेम करने या प्रेम पाने जैसी कोई बात नहीं होती, केवल दान और दया होती है। कोई समझदारी नहीं होती, केवल दबा हुआ आक्रोश और धोखा होता है। कोई अंतरंगता नहीं होती, केवल एक अगम खाई होती है। अब जबकि चीज़ें इस बिंदु तक आ गई हैं, तो कौन इस क्रम को उलट सकता है? और कितने लोग इस बात को वास्तव में समझने में सक्षम हैं कि यह संबंध कितना भयानक बन चुका है? मैं मानता हूँ कि जब लोग आशीष प्राप्त होने के आनंद में निमग्न हो जाते हैं, तो कोई यह कल्पना नहीं कर सकता कि परमेश्वर के साथ इस प्रकार का संबंध कितना शर्मनाक और भद्दा है।
परमेश्वर में मानवजाति के विश्वास के बारे में सबसे दुःखद बात यह है कि मनुष्य परमेश्वर के कार्य के बीच अपने खुद के प्रबंधन का संचालन करता है, जबकि परमेश्वर के प्रबंधन पर कोई ध्यान नहीं देता। मनुष्य की सबसे बड़ी असफलता इस बात में है कि जब वह परमेश्वर के प्रति समर्पित होने और उसकी आराधना करने का प्रयास करता है, उसी समय कैसे वह अपनी आदर्श मंज़िल का निर्माण कर रहा होता है और इस बात की साजिश रच रहा होता है कि सबसे बड़ा आशीष और सर्वोत्तम मंज़िल कैसे प्राप्त किए जाएँ। यहाँ तक कि अगर कोई समझता भी है कि वह कितना दयनीय, घृणास्पद और दीन-हीन है, तो भी ऐसे कितने लोग अपने आदर्शों और आशाओं को तत्परता से छोड़ सकते हैं? और कौन अपने कदमों को रोकने और केवल अपने बारे में सोचना बंद कर सकने में सक्षम हैं? परमेश्वर को उन लोगों की ज़रूरत है, जो उसके प्रबंधन को पूरा करने के लिए उसके साथ निकटता से सहयोग करेंगे। उसे उन लोगों की ज़रूरत है, जो अपने पूरे तन-मन को उसके प्रबंधन के कार्य में अर्पित कर उसके प्रति समर्पित होंगे। उसे ऐसे लोगों की ज़रूरत नहीं है, जो हर दिन उससे भीख माँगने के लिए अपने हाथ फैलाए रहते हैं, और उनकी तो बिलकुल भी ज़रूरत नहीं है, जो थोड़ा-सा देते हैं और फिर पुरस्कृत होने का इंतज़ार करते हैं। परमेश्वर उन लोगों से घृणा करता है, जो तुच्छ योगदान करते हैं और फिर अपनी उपलब्धियों से संतुष्ट हो जाते हैं। वह उन निष्ठुर लोगों से नफरत करता है, जो उसके प्रबंधन-कार्य से नाराज़ रहते हैं और केवल स्वर्ग जाने और आशीष प्राप्त करने के बारे में बात करना चाहते हैं। वह उन लोगों से और भी अधिक घृणा करता है, जो उसके द्वारा मानवजाति के बचाव के लिए किए जा रहे कार्य से प्राप्त अवसर का लाभ उठाते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इन लोगों ने कभी इस बात की परवाह नहीं की है कि परमेश्वर अपने प्रबंधन-कार्य के माध्यम से क्या हासिल और प्राप्त करना चाहता है। उनकी रुचि केवल इस बात में होती है कि किस प्रकार वे परमेश्वर के कार्य द्वारा प्रदान किए गए अवसर का उपयोग आशीष प्राप्त करने के लिए कर सकते हैं। वे परमेश्वर के हृदय की परवाह नहीं करते, और पूरी तरह से अपनी संभावनाओं और भाग्य में तल्लीन रहते हैं। जो लोग परमेश्वर के प्रबंधन-कार्य से कुढ़ते हैं और इस बात में ज़रा-सी भी रुचि नहीं रखते कि परमेश्वर मानवजाति को कैसे बचाता है और उसकी क्या मर्ज़ी है, वे केवल वही कर रहे हैं जो उन्हें अच्छा लगता है और उनका तरीका परमेश्वर के प्रबंधन-कार्य से अलग-थलग है। उनके व्यवहार को परमेश्वर द्वारा न तो याद किया जाता है और न ही अनुमोदित किया जाता है—परमेश्वर द्वारा उसे कृपापूर्वक देखे जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 3: मनुष्य को केवल परमेश्वर के प्रबंधन के बीच ही बचाया जा सकता है
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 358
जल्द ही, मेरा कार्य पूरा हो जाएगा। कई वर्ष जो हमने एक साथ बिताए हैं वे असहनीय यादें बन गए हैं। मैंने अनवरत अपने वचनों को दोहराया है और हमेशा अपने नये कार्य को प्रसारित किया है। निस्संदेह, मैं जो कार्य करता हूँ उसके प्रत्येक अंश में मेरी सलाह एक आवश्यक घटक है। मेरी सलाह के बिना, तुम सभी लोग भटक जाओगे, यहाँ तक कि पूरी तरह उलझन में पड़ जाओगे। मेरा कार्य अब समाप्त होने ही वाला है और अपने अंतिम चरण में है। मैं अभी भी सलाह प्रदान करने का कार्य करना चाहता हूँ, अर्थात्, तुम लोगों के सुनने के लिए सलाह के वचन पेश करना चाहता हूँ। मैं केवल यह आशा करता हूँ कि तुम लोग मेरे श्रमसाध्य प्रयासों को बर्बाद नहीं करोगे और इसके अलावा, तुम लोग मेरी सहृदय परवाह को समझोगे, और मेरे वचनों को एक इंसान के रूप में अपने व्यवहार का आधार बनाओगे। चाहे ये वचन ऐसे हों जिन्हें तुम लोग सुनना चाहो या न चाहो, चाहे ये वचन ऐसे हों जिन्हें स्वीकार कर तुम लोगों को आनंद हो या तुम इसे बस असहजता के साथ ही स्वीकार कर सको, तुम लोगों को उन्हें गंभीरता से अवश्य लेना चाहिए। अन्यथा, तुम लोगों के लापरवाह और निश्चिंत स्वभाव और व्यवहार मुझे गंभीर रूप से परेशान कर देंगे और, निश्चय ही, मुझे घृणा से भर देंगे। मुझे बहुत आशा है कि तुम सभी लोग मेरे वचनों को बार-बार—हजारों बार—पढ़ सकते हो और यहाँ तक कि उन्हें याद भी कर सकते हो। केवल इसी तरीके से तुम लोग से मेरी अपेक्षाओं पर सफल हो सकोगे। हालाँकि, अभी तुम लोगों में से कोई भी इस तरह से नहीं जी रहा है। इसके विपरीत, तुम सभी एक ऐयाश जीवन में डूबे हुए हो, जी-भर कर खाने-पीने का जीवन, और तुम लोगों में से कोई भी अपने हृदय और आत्मा को समृद्ध करने के लिए मेरे वचनों का उपयोग नहीं करता है। यही कारण है कि मैंने मनुष्य जाति के असली चेहरे के बारे में यह निष्कर्ष निकाला है : मनुष्य कभी भी मेरे साथ विश्वासघात कर सकता है और कोई भी मेरे वचनों के प्रति पूर्णतः निष्ठावान नहीं हो सकता है।
“मनुष्य शैतान के द्वारा इतना भ्रष्ट किया गया है कि अब और वह मनुष्य जैसा प्रतीत ही नहीं होता है।” इस वाक्यांश को अब अधिकांश लोग एक हद तक मान गए हैं। मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ क्योंकि मैं जिस “मान्यता” की बात कर रहा हूँ वह वास्तविक ज्ञान के विपरीत केवल सतही अभिस्वीकृति है। चूँकि तुम में से कोई भी स्वयं का सही तरीके से मूल्यांकन या पूरी तरह से विश्लेषण नहीं कर सकता है, इसलिए तुम लोग मेरे वचनों पर हमेशा अनिश्चित रहते हो। लेकिन इस बार, मैं तुम लोगों में मौजूद सबसे गंभीर समस्या की व्याख्या करने के लिए तथ्यों का उपयोग कर रहा हूँ। वह समस्या है “विश्वासघात”। तुम सभी लोग “विश्वासघात” शब्द से परिचित हो क्योंकि अधिकांश लोगों ने दूसरों को धोखा देने वाला कुछ काम किया है, जैसे कि किसी पति का अपनी पत्नी के साथ विश्वासघात करना, किसी पत्नी का अपने पति के साथ विश्वासघात करना, किसी बेटे का अपने पिता के साथ विश्वासघात करना, किसी बेटी का अपनी माँ के साथ विश्वासघात करना, किसी गुलाम का अपने मालिक के साथ विश्वासघात करना, दोस्तों का एक दूसरे के साथ विश्वासघात करना, रिश्तेदारों का एक दूसरे के साथ विश्वासघात करना, विक्रेताओं का क्रेताओं के साथ विश्वासघात करना, इत्यादि। इन सभी उदाहरणों में विश्वासघात का सार निहित है। संक्षेप में, विश्वासघात व्यवहार का एक ऐसा रूप है जिसमें वादा तोड़ा जाता है, नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन किया जाता है, या मानवीय नैतिकता के विरुद्ध काम किया जाता है, जो मानवता के ह्रास को प्रदर्शित करता है। आम तौर पर, इस दुनिया में जन्म लेने वाले एक इंसान के नाते, तुमने कुछ ऐसा किया होगा जिसमें सत्य के साथ विश्वासघात निहित है, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हें याद है या नहीं कि तुमने कभी किसी दूसरे को धोखा देने के लिए कुछ किया है, या तुमने पहले कई बार दूसरों को धोखा दिया है। चूँकि तुम अपने माता-पिता या दोस्तों को धोखा देने में सक्षम हो, तो तुम दूसरों के साथ भी विश्वासघात करने में सक्षम हो, और इससे भी बढ़कर तुम मुझे धोखा देने में और उन चीजों को करने में सक्षम हो जो मेरे लिए घृणित हैं। दूसरे शब्दों में, विश्वासघात महज़ एक सतही अनैतिक व्यवहार नहीं है, बल्कि यह कुछ ऐसा है जो सत्य के साथ टकराता है। यह वास्तव में मानव जाति के मेरे प्रति विरोध और अवज्ञा का स्रोत है। यही कारण है कि मैंने निम्नलिखित कथन में इसका सारांश दिया है : विश्वासघात मनुष्य की प्रकृति है, और यह प्रकृति मेरे साथ प्रत्येक व्यक्ति के सामंजस्य की बहुत बड़ी शत्रु है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (1)
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 359
ऐसा व्यवहार जो पूरी तरह से मेरी आज्ञा का पालन नहीं कर सकता है, विश्वासघात है। ऐसा व्यवहार जो मेरे प्रति निष्ठावान नहीं हो सकता है विश्वासघात है। मेरे साथ धोखा करना और मेरे साथ छल करने के लिए झूठ का उपयोग करना, विश्वासघात है। धारणाओं से भरा होना और हर जगह उन्हें फैलाना विश्वासघात है। मेरी गवाहियों और हितों की रक्षा नहीं कर पाना विश्वासघात है। दिल में मुझसे दूर होते हुए भी झूठमूठ मुस्कुराना विश्वासघात है। ये सभी विश्वासघात के काम हैं जिन्हें करने में तुम लोग हमेशा सक्षम रहे हो, और ये तुम लोगों के बीच आम बात है। तुम लोगों में से शायद कोई भी इसे समस्या न माने, लेकिन मैं ऐसा नहीं सोचता हूँ। मैं अपने साथ किसी व्यक्ति के विश्वासघात को एक तुच्छ बात नहीं मान सकता हूँ, और निश्चय ही, मैं इसे अनदेखा नहीं कर सकता हूँ। अब, जबकि मैं तुम लोगों के बीच कार्य कर रहा हूँ, तो तुम लोग इस तरह से व्यवहार कर रहे हो—यदि किसी दिन तुम लोगों की निगरानी करने के लिए कोई न हो, तो क्या तुम लोग ऐसे डाकू नहीं बन जाओगे जिन्होंने खुद को अपनी छोटी पहाड़ियों का राजा घोषित कर दिया है? जब ऐसा होगा और तुम विनाश का कारण बनोगे, तब तुम्हारे पीछे उस गंदगी को कौन साफ करेगा? तुम सोचते हो कि विश्वासघात के कुछ कार्य तुम्हारे सतत व्यवहार नहीं, बल्कि मात्र कभी-कभी होने वाली घटनाएँ हैं, और उनकी इतने गंभीर तरीके से चर्चा नहीं होनी चाहिए कि तुम्हारे अहं को ठेस पहुँचे। यदि तुम वास्तव में ऐसा मानते हो, तो तुम में समझ का अभाव है। इस तरीके से सोचना विद्रोह का एक नमूना और विशिष्ट उदाहरण है। मनुष्य की प्रकृति उसका जीवन है; यह एक सिद्धांत है जिस पर वह जीवित रहने के लिए निर्भर करता है और वह इसे बदलने में असमर्थ है। विश्वासघात की प्रकृति का उदाहरण लो। यदि तुम किसी रिश्तेदार या मित्र को धोखा देने के लिए कुछ कर सकते हो, तो यह साबित करता है कि यह तुम्हारे जीवन और तुम्हारी प्रकृति का हिस्सा है जिसके साथ तुम पैदा हुए थे। यह कुछ ऐसा है जिससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति अन्य लोगों की चीजें चुराना पसंद करता है, तो यह चुराना पसंद करना उसके जीवन का एक हिस्सा है, भले ही कभी-कभी वह चोरी करता है, और अन्य समय वह नहीं करता है। चाहे वह चोरी करता है अथवा नहीं, इससे यह साबित नहीं हो सकता कि उसका चोरी करना केवल एक प्रकार का व्यवहार है। बल्कि, इससे साबित होता है कि उसका चोरी करना उसके जीवन का एक हिस्सा, अर्थात्, उसकी प्रकृति है। कुछ लोग पूछेंगे : चूँकि यह उसकी प्रकृति है, तो ऐसा क्यों है कि वह कभी-कभी अच्छी चीजें देखता है लेकिन उन्हें चोरी नहीं करता है? उत्तर बहुत आसान है। उसके चोरी नहीं करने के कई कारण हैं। हो सकता है कि वह इसलिए चोरी न करता हो क्योंकि चौकस निगाहों के नीचे से निकाल ले जाने के लिए वस्तु बहुत बड़ी हो, या चोरी करने के लिए उपयुक्त समय न हो, या वस्तु बहुत महँगी हो, बहुत कड़े पहरे में हो, या शायद उसकी इस चीज में विशेष रूप से रुचि न हो, या उसे यह न समझ आये कि उसके लिए इसका क्या उपयोग है, इत्यादि। ये सभी कारण संभव हैं। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कोई वस्तु चुराता है या नहीं, इससे यह साबित नहीं होता है कि यह विचार उसके अंदर केवल क्षण भर के लिये रहता है, एक पल के लिए कौंधता है। इसके विपरीत, यह उसकी प्रकृति का एक हिस्सा है जिसमें सुधार लाना कठिन है। ऐसा व्यक्ति केवल एक बार चोरी करके संतुष्ट नहीं होता है; बल्कि जब भी कोई अच्छी वस्तु या उपयुक्त स्थिति उसके सामने आती है, तो दूसरों की चीजों को अपनी बना लेने के ऐसे विचार उसमें जाग जाते हैं। यही कारण है कि मैं कहता हूँ कि यह विचार केवल समय-समय पर नहीं उठता है, बल्कि इस व्यक्ति की स्वयं की प्रकृति में ही शामिल है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (1)
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 360
कोई भी अपना सच्चा चेहरा दर्शाने के लिए अपने स्वयं के शब्दों और क्रियाओं का उपयोग कर सकता है। यह सच्चा चेहरा निश्चित रूप से उसकी प्रकृति है। यदि तुम बहुत कुटिल ढंग से बोलने वाले व्यक्ति हो, तो तुम कुटिल प्रकृति के हो। यदि तुम्हारी प्रकृति धूर्त है, तो तुम कपटी ढंग से काम करते हो, और इससे तुम बहुत आसानी से लोगों को धोखा दे देते हो। यदि तुम्हारी प्रकृति अत्यंत कुटिल है, तो हो सकता है कि तुम्हारे वचन सुनने में सुखद हों, लेकिन तुम्हारे कार्य तुम्हारी कुटिल चालों को छिपा नहीं सकते हैं। यदि तुम्हारी प्रकृति आलसी है, तो तुम जो कुछ भी कहते हो, उस सबका उद्देश्य तुम्हारी लापरवाही और अकर्मण्यता के लिए उत्तरदायित्व से बचना है, और तुम्हारे कार्य बहुत धीमे और लापरवाह होंगे, और सच्चाई को छिपाने में बहुत माहिर होंगे। यदि तुम्हारी प्रकृति सहानुभूतिपूर्ण है, तो तुम्हारे वचन तर्कसंगत होंगे और तुम्हारे कार्य भी सत्य के अत्यधिक अनुरूप होंगे। यदि तुम्हारी प्रकृति निष्ठावान है, तो तुम्हारे वचन निश्चय ही खरे होंगे और जिस तरीके से तुम कार्य करते हो, वह भी व्यावहारिक और यथार्थवादी होगा, जिसमें ऐसा कुछ न होगा जिससे तुम्हारे मालिक को असहजता महसूस हो। यदि तुम्हारी प्रकृति कामुक या धन लोलुप है, तो तुम्हारा हृदय प्रायः इन चीजों से भरा होगा और तुम बेइरादा कुछ विकृत, अनैतिक काम करोगे, जिन्हें भूलना लोगों के लिए कठिन होगा और वे काम उनमें घृणा पैदा करेंगे। जैसा कि मैंने कहा है, यदि तुम्हारी प्रकृति विश्वासघात की है तो तुम मुश्किल से ही स्वयं को इससे छुड़ा सकते हो। इसे भाग्य पर मत छोड़ दो कि अगर तुम लोगों ने किसी के साथ गलत नहीं किया है तो तुम लोगों की विश्वासघात की प्रकृति नहीं है। यदि तुम ऐसा ही सोचते हो तो तुम घृणित हो। मेरे सभी वचन, हर बार जो मैं बोलता हूँ, वे सभी लोगों पर लक्षित होते हैं, न कि केवल एक व्यक्ति या एक प्रकार के व्यक्ति पर। सिर्फ इसलिए कि तुमने मेरे साथ एक मामले में विश्वासघात नहीं किया है, यह साबित नहीं करता कि तुम मेरे साथ किसी अन्य मामले में विश्वासघात नहीं कर सकते हो। कुछ लोग अपने विवाह में असफलताओं के दौरान सत्य की तलाश करने में अपना आत्मविश्वास खो देते हैं। कुछ लोग परिवार के टूटने के दौरान मेरे प्रति निष्ठावान होने के अपने दायित्व को त्याग देते हैं। कुछ लोग खुशी और उत्तेजना के एक पल की तलाश करने के लिए मेरा परित्याग कर देते हैं। कुछ लोग प्रकाश में रहने और पवित्र आत्मा के कार्य का आनंद प्राप्त करने के बजाय एक अंधेरी खोह में पड़े रहना पसंद करेंगे। कुछ लोग धन की अपनी लालसा को संतुष्ट करने के लिए दोस्तों की सलाह पर ध्यान नहीं देते हैं, और अब भी अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं कर सकते हैं और स्वयं में बदलाव नहीं कर सकते हैं। कुछ लोग मेरा संरक्षण प्राप्त करने के लिए केवल अस्थायी रूप से मेरे नाम के अधीन रहते हैं, जबकि अन्य लोग केवल दबाव में मेरे प्रति थोड़ा-सा समर्पित होते हैं क्योंकि वे जीवन से चिपके रहते हैं और मृत्यु से डरते हैं। क्या ये और अन्य अनैतिक कार्य जो सत्यनिष्ठा से रहित हैं, ऐसे व्यवहार नहीं हैं जिनसे लोग लंबे समय पहले अपने दिलों की गहराई में मेरे साथ विश्वासघात करते आ रहे हैं? निस्संदेह, मुझे पता है कि लोग मुझसे विश्वासघात करने की पहले से योजना नहीं बनाते; उनका विश्वासघात उनकी प्रकृति का स्वाभाविक रूप से प्रकट होना है। कोई मेरे साथ विश्वासघात नहीं करना चाहता है, और कोई भी इस बात से खुश नहीं है कि उसने मेरे साथ विश्वासघात करने का कोई काम किया है। इसके विपरीत, वे डर से काँप रहे हैं, है ना? तो क्या तुम लोग इस बारे में सोच रहे हो कि तुम लोग इन विश्वासघातों से कैसे छुटकारा पा सकते हो, और कैसे तुम लोग वर्तमान परिस्थिति को बदल सकते हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (1)
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 361
मनुष्य का स्वभाव मेरे सार से काफी भिन्न है, क्योंकि मनुष्य की भ्रष्ट प्रकृति पूरी तरह से शैतान से उत्पन्न होती है और मनुष्य की प्रकृति को शैतान द्वारा संसाधित और भ्रष्ट किया गया है। अर्थात्, मनुष्य इसकी बुराई और कुरूपता के प्रभाव के अधीन जीता है। मनुष्य सत्य के संसार या पवित्र वातावरण में बड़ा नहीं होता है, और प्रकाश में तो बिलकुल नहीं। इसलिए, जन्म से ही किसी व्यक्ति की प्रकृति के भीतर सत्य सहज रूप से निहित हो, यह संभव नहीं है, और कोई परमेश्वर के भय, परमेश्वर की आज्ञाकारिता के सार के साथ तो पैदा हो ही नहीं सकता। इसके विपरीत, लोग एक ऐसी प्रकृति से युक्त होते हैं जो परमेश्वर का विरोध करती है, परमेश्वर की अवज्ञा करती है, और जिसमें सत्य के लिए कोई प्रेम नहीं होता। यही प्रकृति वह समस्या है जिसके बारे में मैं बात करना चाहता हूँ—विश्वासघात। विश्वासघात प्रत्येक व्यक्ति के परमेश्वर के प्रतिरोध का स्रोत है। यह एक ऐसी समस्या है जो केवल मनुष्य में विद्यमान है और मुझमें नहीं है। कुछ लोग पूछेंगे : चूँकि सभी मनुष्य दुनिया में वैसे ही रह रहे हैं जैसे मसीह रहता है, तो ऐसा क्यों है कि सभी मनुष्यों की ऐसी प्रकृति है जो परमेश्वर को धोखा देती है, लेकिन मसीह की प्रकृति ऐसी नहीं है? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसे तुम लोगों को स्पष्ट रूप से अवश्य समझाया जाना चाहिए।
मानव जाति का अस्तित्व बार-बार आत्मा के देहधारण पर आधारित है। दूसरे शब्दों में, प्रत्येक व्यक्ति तब देह में मानव जीवन प्राप्त करता है जब उसकी आत्मा देहधारण करती है। एक व्यक्ति की देह का जन्म होने के बाद, उसका जीवन तब तक रहता है जब तक देह की अंतिम सीमा नहीं आ जाती है, अर्थात्, वो अंतिम क्षण जब आत्मा अपना आवरण छोड़ देता है। यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है, व्यक्ति की आत्मा बारम्बार आती और जाती है, और इस प्रकार मानवजाति का अस्तित्व बना रहता है। शरीर का जीवन मनुष्य के आत्मा का भी जीवन है और मनुष्य का आत्मा मनुष्य के शरीर के अस्तित्व को सहारा देता है। अर्थात्, प्रत्येक व्यक्ति का जीवन उसकी आत्मा से आता है; और जीवन देह में अंतर्निहित नहीं है। इस प्रकार, मनुष्य की प्रकृति उसकी आत्मा से आती है, न कि उसके शरीर से। प्रत्येक व्यक्ति का केवल आत्मा ही जानता है कि कैसे उसने शैतान के प्रलोभनों, यातना और भ्रष्टता का अनुभव किया है। मनुष्य के शरीर के लिए ये बातें ज्ञानातीत हैं। इसलिए, मानवजाति अनचाहे ही उत्तरोत्तर अधिक अंधकारमय, कलुषित और दुष्ट बनती जाती है, जबकि मेरे और मनुष्य के बीच की दूरी अधिक से अधिक बढ़ती जाती है, और मानवजाति का जीवन और अधिक अंधकारमय होता जाता है। मानवजाति की आत्माएँ शैतान की मुट्ठी में हैं, इसलिए ज़ाहिर है कि मनुष्य का शरीर भी शैतान के कब्जे में है। तो फिर कैसे इस तरह का शरीर और इस तरह की मानवजाति परमेश्वर का विरोध नहीं करेंगे? वे उसके साथ सहज ही संगत कैसे हो सकते हैं? मैंने इस कारण से शैतान को हवा में बहिष्कृत किया है क्योंकि उसने मेरे साथ विश्वासघात किया था। तो फिर, मनुष्य अपनी संलग्नता से कैसे मुक्त हो सकते हैं? यही कारण है कि मनुष्य की प्रकृति विश्वासघात की है। मुझे विश्वास है कि एक बार जब तुम लोग इस तर्क को समझ लोगे तो तुम लोगों में कुछ मात्र में मसीह के सार के प्रति विश्वास भी आ जाना चाहिए! परमेश्वर के आत्मा द्वारा धारण की हुई देह परमेश्वर की अपनी देह है। परमेश्वर का आत्मा सर्वोच्च है; वह सर्वशक्तिमान, पवित्र और धार्मिक है। इसी तरह, उसकी देह भी सर्वोच्च, सर्वशक्तिमान, पवित्र और धार्मिक है। इस तरह की देह केवल वह करने में सक्षम है जो मानवजाति के लिए धार्मिक और लाभकारी है, वह जो पवित्र, महिमामयी और प्रतापी है; वह ऐसी किसी भी चीज को करने में असमर्थ है जो सत्य, नैतिकता और न्याय का उल्लंघन करती हो, वह ऐसी किसी चीज को करने में तो बिल्कुल भी समर्थ नहीं है जो परमेश्वर के आत्मा के साथ विश्वासघात करती हो। परमेश्वर का आत्मा पवित्र है, और इसलिए उसका शरीर शैतान द्वारा भ्रष्ट नहीं किया जा सकता; उसका शरीर मनुष्य के शरीर की तुलना में भिन्न सार का है। क्योंकि यह परमेश्वर नहीं बल्कि मनुष्य है, जो शैतान द्वारा भ्रष्ट किया गया है; यह संभव नहीं कि शैतान परमेश्वर के शरीर को भ्रष्ट कर सके। इस प्रकार, इस तथ्य के बावजूद कि मनुष्य और मसीह एक ही स्थान के भीतर रहते हैं, यह केवल मनुष्य है, जो शैतान द्वारा काबू और उपयोग किया जाता है और जाल में फँसाया जाता है। इसके विपरीत, मसीह शैतान की भ्रष्टता के लिए शाश्वत रूप से अभेद्य है, क्योंकि शैतान कभी भी उच्चतम स्थान तक आरोहण करने में सक्षम नहीं होगा, और कभी भी परमेश्वर के निकट नहीं पहुँच पाएगा। आज, तुम सभी लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि यह केवल शैतान द्वारा भ्रष्ट मानवजाति है, जो मेरे साथ विश्वासघात करती है। मसीह के लिए विश्वासघात की समस्या हमेशा अप्रासंगिक रहेगी।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (2)
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 362
शैतान द्वारा भ्रष्ट की गई सभी आत्माएँ, शैतान के अधिकार क्षेत्र के नियंत्रण में हैं। केवल वे लोग जो मसीह में विश्वास करते हैं, शैतान के शिविर से बचा कर, अलग कर दिए गए हैं, और आज के राज्य में लाए गए हैं। अब ये लोग शैतान के प्रभाव में नहीं रहे हैं। फिर भी, मनुष्य की प्रकृति अभी भी मनुष्य के शरीर में जड़ जमाए हुए है। कहने का अर्थ है कि भले ही तुम लोगों की आत्माएँ बचा ली गई हैं, तुम लोगों की प्रकृति अभी भी पहले जैसी ही है और इस बात की अभी भी सौ प्रतिशत संभावना है कि तुम लोग मेरे साथ विश्वासघात करोगे। यही कारण है कि मेरा कार्य इतने लंबे समय तक चलता है, क्योंकि तुम्हारी प्रकृति दुःसाध्य है। अब तुम अपने कर्तव्यों को पूरा करते हुए इतने अधिक कष्ट उठा रहे हो जितने तुम उठा सकते हो, फिर भी तुम लोगों में से प्रत्येक मुझे धोखा देने और शैतान के अधिकार क्षेत्र, उसके शिविर में लौटने, और अपने पुराने जीवन में वापस जाने में सक्षम है—यह एक अखंडनीय तथ्य है। उस समय, तुम लोगों के पास लेशमात्र भी मानवता या मनुष्य से समानता दिखाने के लिए नहीं होगी, जैसी तुम अब दिखा रहे हो। गंभीर मामलों में, तुम लोगों को नष्ट कर दिया जाएगा और इससे भी बढ़कर तुम लोगों को, फिर कभी भी देहधारण नहीं करने के लिए, बल्कि गंभीर रूप से दंडित करने के लिए अनंतकाल के लिए अभिशप्त कर दिया जाएगा। यह तुम लोगों के सामने रख दी गई समस्या है। मैं तुम लोगों को इस तरह से याद दिला रहा हूँ ताकि एक तो, मेरा कार्य व्यर्थ नहीं जाएगा, और दूसरे, ताकि तुम सभी लोग प्रकाश के दिनों में रह सको। वास्तव में, मेरा कार्य व्यर्थ होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या नहीं है। महत्वपूर्ण है तुम लोगों का एक खुशहाल जीवन और एक अद्भुत भविष्य पाने में सक्षम होना। मेरा कार्य लोगों की आत्माओं को बचाने का कार्य है। यदि तुम्हारी आत्मा शैतान के हाथों में पड़ जाती है, तो तुम्हारा शरीर शांति में नहीं रहेगा। यदि मैं तुम्हारे शरीर की रक्षा कर रहा हूँ, तो तुम्हारी आत्मा भी निश्चित रूप से मेरी देखभाल के अधीन होगी। यदि मैं तुमसे सच में घृणा करूँ, तो तुम्हारा शरीर और आत्मा तुरंत शैतान के हाथों में पड़ जाएँगे। क्या तुम कल्पना कर सकते हो कि तब तुम्हारी स्थिति किस तरह की होगी? यदि किसी दिन मेरे वचनों का तुम पर कोई असर न हुआ, तो मैं तुम सभी लोगों को तब तक के लिए घोर यातना देने के लिए शैतान को सौंप दूँगा जब तक कि मेरा गुस्सा पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता, अथवा मैं कभी न सुधर सकने योग्य तुम मानवों को व्यक्तिगत रूप से दंडित करूँगा, क्योंकि मेरे साथ विश्वासघात करने वाले तुम लोगों के हृदय कभी नहीं बदलेंगे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (2)
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 363
अब तुम सभी लोगों को अपने अंदर यथाशीघ्र झांककर देखना चाहिए कि तुम लोगों के अंदर मेरे प्रति कितना विश्वासघात बाक़ी है। मैं उत्सुकता से तुम्हारी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। मेरे साथ अपने व्यवहार में लापरवाह मत होना। मैं कभी भी लोगों के साथ खेल नहीं खेलता हूँ। यदि मैं कहता हूँ कि मैं कुछ करूँगा तो मैं निश्चित रूप से ऐसा करूँगा। मुझे आशा है कि तुम सभी ऐसे लोग हो सकते हो जो मेरे वचनों को गंभीरता से लेते हो और यह नहीं सोचते हो कि वे मात्र वैज्ञानिक कपोल कथाएँ हैं। मैं तुम लोगों से एक ठोस कार्रवाई चाहता हूँ, न कि तुम लोगों की कल्पनाएँ। इसके बाद, तुम लोगों को मेरे प्रश्नों के उत्तर देने होंगे, जो इस प्रकार हैं :
1. यदि तुम सचमुच में सेवा करने वाले हो, तो क्या तुम बिना किसी लापरवाही या नकारात्मक तत्वों के निष्ठापूर्वक मुझे सेवा प्रदान कर सकते हो?
2. यदि तुम्हें पता चले कि मैंने कभी भी तुम्हारी सराहना नहीं की है, तो क्या तब भी तुम जीवन भर टिके रह कर मुझे सेवा प्रदान कर पाओगे?
3. यदि तुमने मेरी ख़ातिर बहुत सारे प्रयास किए हैं लेकिन मैं तब भी तुम्हारे प्रति बहुत रूखा रहूँ, तो क्या तुम गुमनामी में भी मेरे लिए कार्य करना जारी रख पाओगे?
4. यदि, तुम्हारे द्वारा मेरे लिए खर्च करने के बाद भी मैंने तुम्हारी तुच्छ माँगों को पूरा नहीं किया, तो क्या तुम मेरे प्रति निरुत्साहित और निराश हो जाओगे या यहाँ तक कि क्रोधित होकर गालियाँ भी बकने लगोगे?
5. यदि तुम हमेशा मेरे प्रति बहुत निष्ठावान रहे हो, मेरे लिए तुममें बहुत प्रेम है, मगर फिर भी तुम बीमारी, दरिद्रता, और अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के द्वारा त्यागे जाने की पीड़ा को भुगतते हो या जीवन में किसी भी अन्य दुर्भाग्य को सहन करते हो, तो क्या तब भी मेरे लिए तुम्हारी निष्ठा और प्यार बना रहेगा?
6. यदि मैने जो किया है उसमें से कुछ भी उससे मेल नहीं खाता है जिसकी तुमने अपने हृदय में कल्पना की है, तो तुम अपने भविष्य के मार्ग पर कैसे चलोगे?
7. यदि तुम्हें वह कुछ भी प्राप्त नहीं होता है जो तुमने प्राप्त करने की आशा की थी, तो क्या तुम मेरे अनुयायी बने रह सकते हो?
8. यदि तुम्हें मेरे कार्य का उद्देश्य और महत्व कभी भी समझ में नहीं आए हों, तो क्या तुम ऐसे आज्ञाकारी व्यक्ति हो सकते हो जो मनमाने निर्णय और निष्कर्ष नहीं निकालता हो?
9. मानवजाति के साथ रहते समय, मैंने जो वचन कहे हैं और मैंने जो कार्य किए हैं उन सभी को क्या तुम संजोए रख सकते हो?
10. यदि तुम कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाते हो, तो भी क्या तुम मेरे निष्ठावान अनुयायी बने रहने में सक्षम हो, और आजीवन मेरे लिए कष्ट भुगतने को तैयार हो?
11. क्या तुम मेरे वास्ते भविष्य में अपने जीने के मार्ग पर विचार न करने, योजना न बनाने या तैयारी न करने में सक्षम हो?
ये प्रश्न तुम लोगों से मेरी अंतिम अपेक्षाओं को दर्शाते हैं, और मुझे आशा है कि तुम सभी लोग मुझे उत्तर दे सकते हो। यदि तुम इन प्रश्नों में पूछी गई एक या दो चीजों को पूरा कर चुके हो, तो तुम्हें अपना प्रयास जारी रखने की आवश्यकता है। यदि तुम इन अपेक्षाओं में से किसी एक को भी पूरा नहीं कर सकते हो, तो तुम निश्चित रूप से उस प्रकार के व्यक्ति हो जिसे नरक में डाला जाएगा। ऐसे लोगों से मुझे अब कुछ और कहने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे निश्चित रूप से ऐसे लोग नहीं हैं जो मेरे अनुकूल हो सकते हों। मैं किसी ऐसे व्यक्ति को अपने घर में कैसे रख सकता हूँ जो किसी भी परिस्थिति में मेरे साथ विश्वासघात कर सकता है? जहाँ तक ऐसे लोगों की बात है जो अधिकांश परिस्थितियों में मेरे साथ विश्वासघात कर सकते हैं, मैं अन्य व्यवस्थाएँ करने से पहले उनके प्रदर्शन का अवलोकन करूँगा। फिर भी, वे सब लोग जो, चाहे किसी भी परिस्थिति में, मेरे साथ विश्वासघात करने में सक्षम हैं, मैं उन्हें कभी भी नहीं भूलूँगा; मैं उन्हें अपने मन में याद रखूँगा और उनके बुरे कार्यों का बदला चुकाने के अवसर की प्रतीक्षा करूँगा। मैंने जो अपेक्षाएँ की हैं वे सभी ऐसी समस्याऐं हैं, जिनका तुम्हें स्वयं में निरीक्षण करना चाहिए। मुझे आशा है कि तुम सभी लोग उन पर गंभीरता से विचार कर सकते हो और मेरे साथ लापरवाही से व्यवहार नहीं करोगे। निकट भविष्य में, मैं अपनी अपेक्षाओं के जवाब में तुम्हारे द्वारा दिए गए उत्तरों की जाँच करूँगा। उस समय तक, मैं तुम लोगों से कुछ और अपेक्षा नहीं करूँगा तथा तुम लोगों को कड़ी फटकार नहीं लगाऊँगा। इसकी बजाय, मैं अपने अधिकार का प्रयोग करूँगा। जिन्हें रखा जाना चाहिए उन्हें रखा जाएगा, जिन्हें पुरस्कृत किया जाना चाहिए उन्हें पुरस्कृत किया जाएगा, जिन्हें शैतान को दिया जाना चाहिए, उन्हें शैतान को दिया जाएगा, जिन्हें भारी दंड मिलना चाहिए, उन्हें भारी दंड दिया जाएगा, और जिनका नाश हो जाना चाहिए, उन्हें नष्ट कर दिया जाएगा। इस तरह, मेरे दिनों में मुझे परेशान करने वाला कोई भी नहीं होगा। क्या तुम मेरे वचनों पर विश्वास करते हो? क्या तुम प्रतिकार में विश्वास करते हो? क्या तुम विश्वास करते हो कि मैं उन सभी बुरे लोगों को दंड दूँगा जो मुझे धोखा देते हैं और मेरे साथ विश्वासघात करते हैं? तुम उस दिन के जल्दी आने की आशा करते हो या उसके देर से आने की? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सज़ा से बहुत भयभीत है, या कोई ऐसे व्यक्ति हो जो मेरा प्रतिरोध करेगा, भले ही उसे दंड भुगतना पड़े? जब वह दिन आएगा, तो क्या तुम कल्पना कर सकते हो कि तुम हँसी-खुशी के बीच रह रहे होगे, या रो रहे होगे और अपने दांत भींच रहे होगे? तुम क्या आशा करते हो कि तुम्हारा किस तरह का अंत होगा? क्या तुमने कभी गंभीरता से विचार किया है कि तुम मुझ पर शत प्रतिशत विश्वास करते हो या मुझ पर शत प्रतिशत संदेह करते हो? क्या तुमने कभी ध्यान से विचार किया है कि तुम्हारे कार्य और व्यवहार तुम्हारे लिए किस प्रकार के परिणाम और अंत लाएँगे? क्या तुम सचमुच में आशा करते हो कि मेरे सभी वचन एक-एक करके पूरे होंगे, या तुम बहुत डरे हुए हो कि मेरे वचन एक-एक करके पूरे होंगे? यदि तुम आशा करते हो कि अपने वचनों को पूरा करने के लिए मैं शीघ्र ही प्रस्थान करूँ, तो तुम्हें अपने स्वयं के शब्दों और कार्यों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? यदि तुम मेरे प्रस्थान की आशा नहीं करते हो और यह आशा नहीं करते हो कि मेरे सभी वचन तुरंत पूरे हो जाएँ, तो तुम मुझ पर विश्वास ही क्यों करते हो? क्या तुम सचमुच जानते हो कि तुम मेरा अनुसरण क्यों कर रहे हो? यदि यह केवल तुम्हारे क्षितिज का विस्तार करने के लिए है, तो तुम्हें इतनी मुश्किलें उठाने की आवश्यकता नहीं है। यदि यह आशीष पाने और भविष्य की आपदा से बचने के लिए है, तो तुम अपने स्वयं के आचरण के बारे में चिंतित क्यों नहीं हो? तुम अपने आपसे क्यों नहीं पूछते हो कि क्या तुम मेरी अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हो? तुम अपने आपसे क्यों नहीं पूछते हो कि तुम मेरी भविष्य की आशीषों को प्राप्त करने के योग्य हो या नहीं?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (2)
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 364
मेरे सभी लोगों को जो मेरे सम्मुख सेवा करते हैं, अतीत के बारे में सोचना चाहिए कि क्या मेरे लिए तुम्हारे प्रेम में अशुद्धता थी? क्या मेरे प्रति तुम्हारी निष्ठा शुद्ध और सम्पूर्ण थी? क्या मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान सच्चा था? तुम लोगों के हृदय में मेरा स्थान कितना था? क्या मैंने तुम्हारे हृदय को पूरी तरह से भर दिया? मेरे वचनों ने तुम लोगों के भीतर कितना कार्य किया? मुझे मूर्ख न समझो! मैं ये सब बातें अच्छी तरह समझता हूँ! आज, जब मैंने उद्धार की वाणी बोली है, तो क्या मेरे प्रति तुम लोगों के प्रेम में कुछ वृद्धि हुई है? क्या मेरे प्रति तुम लोगों की निष्ठा का कुछ भाग शुद्ध हुआ है? क्या मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान अधिक गहरा हुआ है? क्या अतीत की प्रशंसा ने तुम लोगों के आज के ज्ञान की एक मजबूत नींव डाली है? तुम लोगों के अंतःकरण का कितना भाग मेरी आत्मा से भरा हुआ है? तुम लोगों के भीतर मेरी छवि को कितना स्थान दिया गया है? क्या मेरे कथनों ने तुम लोगों के मर्मस्थल पर चोट की है? क्या तुम लोग सचमुच महसूस करते हो कि अपनी लज्जा को छिपाने के लिए तुम लोगों के पास कोई स्थान नहीं है? क्या तुम्हें सचमुच लगता है कि तुम मेरे जन होने के योग्य नहीं हो? यदि तुम उपरोक्त प्रश्नों के प्रति पूर्णतः अनजान हो, तो यह दिखाता है कि तुम मुसीबत में हो, तुम केवल संख्या बढ़ाने के लिए हो, मेरे द्वारा पूर्वनियत समय पर, तुम्हें निश्चित रूप से बाहर निकाल दिया जाएगा और दूसरी बार अथाह कुंड में डाल दिया जाएगा। ये मेरे चेतावनी भरे वचन हैं, और जो कोई भी इन्हें हल्के में लेगा, उस पर मेरे न्याय की चोट पड़ेगी, और, नियत समय पर उस पर आपदा टूट पड़ेगी। क्या ऐसा ही नहीं है? क्या यह समझाने के लिए मुझे उदाहरण देने की आवश्यकता है? क्या तुम लोगों को कोई मिसाल देने के लिए मुझे और अधिक स्पष्ट रूप से बोलना होगा? सृष्टि के सृजन से लेकर आज तक, बहुत से लोगों ने मेरे वचनों की अवज्ञा की है और इस तरह उन्हें प्रतिलाभ की मेरी धारा से हटाकर बाहर निकाल दिया गया है; अंततः उनके शरीर नष्ट हो जाते हैं और उनकी आत्माएँ अधोलोक में डाल दी जाती हैं, आज भी वे भयंकर सज़ा भुगत रहे हैं। बहुत से लोगों ने मेरे वचनों का अनुसरण किया है, परंतु वे मेरी प्रबुद्धता और रोशनी के विरोध में चले गए हैं, इसलिए मैंने उन्हें अलग कर दिया है, वे शैतान के अधिकार क्षेत्र में गिरकर मेरे विरोधी बन गए हैं। (आज सीधे तौर पर मेरा विरोध करने वाले सभी लोग केवल सतही तौर पर मेरे वचनों का पालन करते हैं, और मेरे वचनों के सार की अवज्ञा करते हैं।) बहुत से ऐसे भी हैं जिन्होंने केवल मेरे उन वचनों को ही सुना है जो मैंने कल बोले थे, जिन्होंने अतीत के “कूड़े” को पकड़कर रखा है, और वर्तमान “उपज” को नहीं सँजोया है। ये लोग न केवल शैतान के द्वारा बंदी बना लिए गए हैं, बल्कि अनंतकाल के लिए पापी और मेरे शत्रु भी बन गए हैं, और सीधे तौर पर मेरा विरोध करते हैं। ऐसे लोग मेरे क्रोध की पराकाष्ठा पर मेरे दण्ड के भागी होते हैं, और वे अभी तक भी अंधे बने हुए हैं, आज भी अँधेरी कालकोठरियों में हैं (जिसका मतलब है कि ऐसे लोग शैतान द्वारा नियंत्रित सड़ी, सुन्न पड़ चुकी लाशें हैं; क्योंकि उनकी आँखों पर मैंने परदा डाल दिया है, इसलिए मैं कहता हूँ कि वे अंधे हैं)। तुम लोगों के संदर्भ के लिए एक उदाहरण देना बेहतर होगा, ताकि तुम लोग उससे सीख सको :
पौलुस का उल्लेख करने पर, तुम लोग उसके इतिहास के बारे में, और उसके विषय में कुछ ऐसी कहानियों के बारे में सोचोगे जो त्रुटिपूर्ण और वास्तविकता से भिन्न हैं। उसे छोटी उम्र से ही माता-पिता द्वारा शिक्षित कर दिया गया था, उसने मेरा जीवन प्राप्त कर लिया था, और मेरे द्वारा पूर्वनिर्धारण के परिणाम स्वरूप वह मेरी अपेक्षा के अनुसार क्षमता से सम्पन्न था। 19 वर्ष की आयु में, उसने जीवन के बारे में विभिन्न पुस्तकें पढ़ीं; इसलिए मुझे इस विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं कि कैसे, अपनी योग्यता, मेरी प्रबुद्धता और रोशनी की वजह से, वह न केवल आध्यात्मिक विषयों पर कुछ अंर्तदृष्टि के साथ बोल सकता था, बल्कि वह मेरे इरादों को समझने में भी समर्थ था। निस्सन्देह, इसमें आन्तरिक व बाहरी वजहें भी शामिल हैं। तथापि, उसकी एक अपूर्णता यह थी कि अपनी प्रतिभा की वजह से, वह प्रायः बकवादी और डींगें मारने वाला बन जाया करता था। परिणाम स्वरूप, अवज्ञा के कारण, जिसका एक हिस्सा प्रधान स्वर्गदूत का प्रतिनिधित्व करता था, मेरे प्रथम देहधारण के समय, उसने मेरी अवहेलना का हर प्रयास किया। वह उनमें से था जो मेरे वचनों को नहीं जानते, और उसके हृदय से मेरा स्थान पहले ही तिरोहित हो चुका था। ऐसे लोग सीधे तौर पर मेरी दिव्यता का विरोध करते हैं, और मेरे द्वारा मार दिए जाते हैं, तथा अन्त में सिर झुका कर अपने पापों को स्वीकार करते हैं। इसलिए, जब मैंने उसकी दमदार बातों का उपयोग कर लिया—जिसका अर्थ है कि जब उसने कुछ समय तक मेरे लिए काम कर लिया—तो वह एक बार फिर अपने पुराने मार्ग पर चला गया, हालाँकि उसने सीधे तौर पर मेरे वचनों का विरोध नहीं किया, फिर भी उसने मेरे आंतरिक मार्गदर्शन और प्रबुद्धता की अवहेलना की, और इसलिए पहले उसने जो कुछ भी किया वह व्यर्थ हो गया; दूसरे शब्दों में, जिस महिमा के मुकुट के बारे में उसने कहा था, वे खोखले वचन उसकी कल्पना बनकर रह गए थे, क्योंकि आज भी वह मेरे बंधनों के बीच मेरे न्याय के अधीन है।
उपरोक्त उदाहरण से देखा जा सकता है कि जो कोई भी मेरा विरोध करता है (न केवल मेरे देह रूप का बल्कि उससे भी अधिक अहम, मेरे वचनों और मेरे आत्मा का—कहने का अर्थ है, मेरी दिव्यता का विरोध करता है), वह अपनी देह में मेरा न्याय प्राप्त करता है। जब मेरा आत्मा तुम्हें छोड़ देता है, तो तुम सीधे नीचे गिरते हुए अधोलोक में उतर जाते हो। यद्यपि तुम्हारी देह पृथ्वी पर होती है, फिर भी तुम किसी मानसिक विकार से पीड़ित व्यक्ति के समान होते हो : तुम अपनी समझ खो चुके हो, और तुरंत ऐसा महसूस करते हो मानो कि तुम कोई लाश हो, इतना अधिक कि तुम अपनी देह को अविलंब नष्ट कर देने के लिए मुझसे याचना करते हो। तुम में से अधिकांश आत्मवान लोग इन परिस्थितियों की गहरी समझ रखते हैं, इसलिए मुझे विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है। अतीत में, जब मैंने सामान्य मानवता में कार्य किया, तो अधिकांश लोग मेरे कोप और प्रताप के विरूद्ध अपना आकलन पहले ही कर चुके थे, और मेरी बुद्धि व स्वभाव की थोड़ी समझ रखते थे। आज, मैं सीधे तौर पर दिव्यता में बोलता और कार्य करता हूँ, और अभी भी कुछ लोग हैं जो अपनी आँखों से मेरे कोप और न्याय को देखेंगे; इसके अतिरिक्त, न्याय के युग के दूसरे भाग का मेरा मुख्य कार्य अपने सभी लोगों को सीधे तौर पर देह में मेरे कर्मों का ज्ञान करवाना, और तुम लोगों को मेरे स्वभाव का अवलोकन करवाना है। तो भी, चूंकि मैं देह में हूँ, इसलिए मैं तुम लोगों की कमज़ोरियों के प्रति विचारशील हूँ। मैं आशा करता हूँ कि तुम लोग अपनी आत्मा, प्राण और देह से खिलवाड़ करते हुए इन्हें लापरवाही से शैतान को न सौंप दो। जो कुछ तुम लोगों के पास है उसे सँजो कर रखने, और इसे मज़ाक में न लेने में ही भलाई है, क्योंकि ऐसी बातों का संबंध तुम लोगों के भविष्य से है। क्या तुम लोग वास्तव में मेरे वचनों का सही अर्थ समझने में समर्थ हो? क्या तुम लोग वास्तव में मेरी सच्ची भावनाओं के बारे में विचारशील होने में सक्षम हो?
क्या तुम लोग पृथ्वी पर मेरे आशीष का आनंद लेना चाहते हो, ऐसे आशीष का जो स्वर्ग के समान है? क्या तुम लोग मेरी समझ को, मेरे वचनों के आनंद को और मेरे बारे में ज्ञान को, अपने जीवन की सर्वाधिक बहुमूल्य और सार्थक वस्तु के रूप संजोने को तैयार हो? क्या तुम लोग, अपने भविष्य की संभावनाओं पर विचार किए बिना, वास्तव में मेरे प्रति पूरी तरह से समर्पण कर सकते हो? क्या तुम लोग सचमुच अपना जीवन-मरण मेरे अधीन करके एक भेड़ के समान मेरी अगुआई में चलने को राज़ी हो? क्या तुम लोगों में ऐसा कोई है जो यह करने में समर्थ है? क्या ऐसा हो सकता है कि ऐसे सभी लोग जो मेरे द्वारा स्वीकार किए जाते हैं और मेरी प्रतिज्ञाओं को प्राप्त करते हैं, वे ही ऐसे लोग हैं जो मेरा आशीष पाते हैं? क्या तुम लोग इन वचनों से कुछ समझे हो? यदि मैं तुम लोगों की परीक्षा लूँ, तो क्या तुम लोग सचमुच स्वयं को मेरे हवाले कर सकते हो, और इन परीक्षणों के बीच, मेरे इरादों की खोज और मेरे हृदय को महसूस कर सकते हो? मैं नहीं चाहता कि तुम अधिक मर्मस्पर्शी बातें कहने, या बहुत-सी रोमांचक कहानियाँ सुनाने लायक बनो; बल्कि, मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी उत्तम गवाही देने लायक बनो, पूरी तरह और गहराई से वास्तविकता में प्रवेश कर सको। यदि मैं सीधे तौर पर तुम से न बोलता, तो क्या तुम अपने आसपास की सब चीजों को त्याग कर मुझे अपना उपयोग करने दे सकते थे? क्या मुझे इसी वास्तविकता की अपेक्षा नहीं है? मेरे वचनों के अर्थ को कौन ग्रहण कर सकता है? फिर भी मैं कहता हूँ कि तुम लोग अब गलतफहमी में न पड़ना, तुम लोग अपने प्रवेश में सक्रिय बनो और मेरे वचनों के सार को ग्रहण करो। ऐसा करना तुम लोगों को मेरे वचनों के मिथ्याबोध और मेरे अर्थ के विषय में अस्पष्ट होने से और इस प्रकार मेरे प्रशासनिक आदेशों के उल्लंघन से बचाएगा। मैं चाहता हूँ कि तुम लोग मेरे वचनों में तुम्हारे लिए मेरे जो इरादे हैं, उन्हें ग्रहण करो। अब केवल अपनी भविष्य की संभावनाओं पर ही विचार न करो, और तुम लोगों ने मेरे सम्मुख सभी चीज़ों में परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पित होने का जो संकल्प लिया है, ठीक उसी के अनुरूप कार्य करो। वे सभी जो मेरे कुल के भीतर हैं उन्हें जितना अधिक संभव हो उतना करना चाहिए; पृथ्वी पर मेरे कार्य के अंतिम भाग में तुम्हें अपना सर्वोत्तम अर्पण करना चाहिए। क्या तुम वास्तव में ऐसी बातों को अभ्यास में लाने के लिए तैयार हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 4
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 365
पृथ्वी पर, सब प्रकार की दुष्ट आत्माएँ हमेशा लुकछिपकर किसी विश्राम-स्थल की तलाश में लगी रहती हैं, और निरंतर मानव शवों की खोज करती रहती हैं, ताकि उनका उपभोग किया जा सके। मेरे लोगो! तुम्हें मेरी देखभाल और सुरक्षा के भीतर रहना चाहिए। कभी दुर्व्यसनी न बनो! कभी लापरवाही से व्यवहार न करो! तुम्हें मेरे घर में अपनी निष्ठा अर्पित करनी चाहिए, और केवल निष्ठा से ही तुम शैतान के छल-कपट के विरुद्ध पलटवार कर सकते हो। किन्हीं भी परिस्थितियों में तुम्हें वैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए जैसा तुमने अतीत में किया था, मेरे सामने कुछ करना और मेरी पीठ पीछे कुछ और करना; यदि तुम इस तरह करते हो, तो तुम पहले ही छुटकारे से परे हो। क्या मैं इस तरह के वचन बहुत बार नहीं कह चुका हूँ? बिलकुल इसीलिए क्योंकि मनुष्य की पुरानी प्रकृति सुधार से परे है, मुझे लोगों को बार-बार स्मरण दिलाना पड़ा है। ऊब मत जाना! वह सब जो मैं कहता हूँ तुम लोगों की नियति सुनिश्चित करने के लिए ही है! गंदा और मैला-कुचैला स्थान ही वह स्थान होता है जो शैतान को चाहिए होता है; तुम जितने अधिक दयनीय ढँग से सुधार के अयोग्य होते हो, और जितने अधिक दुर्व्यसनी होते हो, और संयम के आगे समर्पण करने से इनकार करते हो, अशुद्ध आत्माएँ तुम्हारे भीतर घुसपैठ करने के किसी भी अवसर का उतना ही अधिक लाभ उठाएँगी। यदि तुम इस अवस्था तक पहुँच चुके हो, तो तुम लोगों की निष्ठा किसी भी प्रकार की सच्चाई से रहित कोरी बकवास के अलावा और कुछ नहीं होगी, और अशुद्ध आत्माएँ तुम लोगों का संकल्प निगल लेंगी और इसे अवज्ञा और शैतानी षड़यंत्रों में बदल देंगी, ताकि इनका उपयोग मेरे कार्य में विघ्न डालने के लिए किया जा सके। वहाँ से, किसी भी समय मेरे द्वारा तुम पर प्रहार किया जा सकता है। कोई भी इस स्थिति की गंभीरता को नहीं समझता है; लोग सब कुछ सुनकर भी बहरे बने रहते हैं, और ज़रा भी चौकन्ने नहीं रहते हैं। मैं वह स्मरण नहीं करता जो अतीत में किया गया था; क्या तुम सच में अब भी एक बार और सब कुछ “भुलाकर” तुम्हारे प्रति मेरे उदार होने की प्रतीक्षा कर रहे हो? यद्यपि मानवों ने मेरा विरोध किया है, फिर भी मैं इसे उनके विरुद्ध स्मरण नहीं रखूँगा, क्योंकि वे बहुत छोटी कद-काठी के हैं, और इसलिए मैंने उनसे अत्यधिक ऊँची माँगें नहीं की हैं। मैं बस यही अपेक्षा करता हूँ कि वे दुर्व्यसनी न हों, और यह कि वे संयम के अधीन रहें। निश्चित रूप से इस एकमात्र पूर्वापेक्षा को पूरा करना तुम लोगों की क्षमता से बाहर नहीं है, है क्या? अधिकांश लोग मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि मैं उनके लिए और अधिक रहस्य प्रकाशित करूँ, जिन्हें देख कर वे अपनी आँखें निहाल कर सकें। फिर भी, यदि तुम स्वर्ग के सारे रहस्य समझ भी जाओ, तो उस ज्ञान के साथ तुम क्या कर सकते हो? क्या यह मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम बढ़ाएगा? क्या यह मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम जगाएगा? मैं मानवों को कम नहीं आँकता हूँ, न ही मैं बिना सोचे-विचारे उनके बारे में किसी निर्णय पर पहुँचता हूँ। यदि मानवों की वास्तविक परिस्थितियाँ ये नहीं होतीं, तो मैं इतनी आसानी से उन्हें ऐसे तमगों के मुकुट नहीं पहनाता। पीछे मुड़कर अतीत के बारे में सोचो : कितनी बार मैंने तुम लोगों पर लाँछन लगाए हैं? कितनी बार मैंने तुम लोगों को कम आँका है? कितनी बार मैंने तुम लोगों की वास्तविक परिस्थितियों पर ध्यान दिए बिना तुम लोगों को देखा है? कितनी बार मेरे कथन तुम लोगों को पूरे हृदय से जीतने में विफल रहे हैं? कितनी बार मैंने तुम लोगों के भीतर के तारों को गहराई से छेड़े बिना कोई बात की है? तुम लोगों में से किसने मेरे वचन भय और सिहरन के बिना पढ़े हैं, इस बात को लेकर अत्यंत भयभीत महसूस करते हुए कि मैं तुम्हें अथाह कुण्ड में धकेल दूँगा? कौन मेरे वचनों के कारण परीक्षाएँ नहीं सहता है? मेरे कथनों के भीतर अधिकार विध्यमान है, किंतु यह मानवों पर आकस्मिक न्याय पारित करने के लिए नहीं है; बल्कि, उनकी वास्तविक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, मैं अपने वचनों में अंतर्निहित अर्थ उनके सामने निरंतर प्रदर्शित करता रहता हूँ। तथ्य की बात करें तो क्या कोई है जो मेरे वचनों की सर्वक्षमतावान शक्ति को पहचानने में सक्षम है? क्या कोई है जो वह शु़द्धतम सोना ग्रहण कर सकता है जिससे मेरे वचन निर्मित हैं? मैंने कुल कितने वचन कहे हैं? क्या किसी ने कभी इन्हें सहेजकर रखा है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 10
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 366
मैं प्रतिदिन खड़े होकर ब्रह्मांड को देखता हूँ, और मनुष्य के जीवन का अनुभव करते हुए तथा मनुष्य के हर कर्म का नजदीक से अध्ययन करते हुए विनम्रतापूर्वक खुद को अपने निवास-स्थान में छिपा लेता हूँ। किसी ने भी कभी अपने आपको वास्तव में मुझे अर्पित नहीं किया है; किसी ने भी कभी सत्य का अनुसरण नहीं किया है। कोई भी कभी मेरे प्रति ईमानदार नहीं रहा है, न ही किसी ने भी कभी मेरे सम्मुख संकल्प किए हैं और फिर अपने कर्तव्य का पालन किया है। किसी ने भी कभी मुझे अपने भीतर निवास नहीं करने दिया है, न ही मुझे उतना महत्त्व दिया है जितना वह अपने जीवन को देता है। किसी ने भी कभी, व्यावहारिक वास्तविकता में, वह सब नहीं देखा है जो मेरी दिव्यता है; कोई भी कभी स्वयं व्यावहारिक परमेश्वर के संपर्क में रहने का इच्छुक नहीं रहा है। जब समुद्र मनुष्यों को पूर्णतः लील लेता है, तो मैं उन्हें उस ठहरे हुए समुद्र से बचाता हूँ और नए सिरे से जीने का अवसर देता हूँ। जब लोग जीने का आत्मविश्वास खो देते हैं, तो मैं उन्हें जीने का साहस देते हुए मृत्यु के कगार से खींच लाता हूँ, ताकि वे मेरा अपने अस्तित्व की नींव के रूप में इस्तेमाल कर सकें। जब लोग मेरी अवज्ञा करते हैं, तो मैं उन्हें उनकी अवज्ञा में से अपने आप को ज्ञात करवाता हूँ। मानवजाति की पुरानी प्रकृति और अपनी दया के आलोक में, मैं मनुष्यों को मृत्यु प्रदान करने के बजाय उन्हें पश्चात्ताप करने और नई शुरुआत करने देता हूँ। जब वे अकाल से पीड़ित होते हैं, तो भले ही उनके शरीर में एक ही साँस बची हो, मैं उन्हें शैतान की प्रवंचना का शिकार बनने से बचाते हुए मृत्यु से छुड़ा लेता हूँ। कितनी ही बार लोगों ने मेरा हाथ देखा है; कितनी ही बार उन्होंने मेरी दयालु मुखाकृति और मेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा देखा है; और कितनी ही बार उन्होंने मेरा प्रताप और कोप देखा है। यद्यपि मनुष्यों ने मुझे कभी नहीं जाना है, फिर भी मैं उनकी कमजोरियों का लाभ उठाते हुए जानबूझकर उत्तेजित नहीं होता। मनुष्यों के कष्टों के अनुभव ने मुझे उनकी कमजोरियों के प्रति सहानुभूति रखने में सक्षम बनाया है। मैं केवल लोगों की अवज्ञा और उनकी कृतघ्नता की प्रतिक्रिया में ही विभिन्न मात्राओं में ताड़ना देता हूँ।
जब लोग व्यस्त होते हैं तो मैं अपने आपको छिपा लेता हूँ, और उनके खाली समय में अपने आपको प्रकट करता हूँ। लोग कल्पना करते हैं कि मैं सब-कुछ जानता हूँ; वे मुझे ऐसा स्वयं परमेश्वर मानते हैं, जो सभी प्रार्थनाएँ स्वीकार करता है। इसलिए अधिकतर लोग मेरे सामने केवल परमेश्वर की सहायता माँगने आते हैं, मुझे जानने की इच्छा से नहीं। बीमारी की तीव्र वेदना में लोग अविलंब मेरी सहायता के लिए याचना करते हैं। विपत्ति के समय वे अपनी पीड़ा से बेहतर ढंग से छुटकारा पाने के लिए अपनी सारी परेशानियाँ अपनी पूरी शक्ति से मुझे बताते हैं। लेकिन एक भी मनुष्य सुख की स्थिति में होने पर मुझसे प्रेम करने में समर्थ नहीं हुआ है; एक भी व्यक्ति ने अपने शांति और आनंद के समय में मुझसे संपर्क नहीं किया है, ताकि मैं उसकी खुशी में शामिल हो सकूँ। जब लोगों के छोटे परिवार खुशहाल और सकुशल होते हैं, तो वे मुझे बहुत पहले ही दरकिनार कर देते हैं या मेरा प्रवेश निषिद्ध करते हुए मुझ पर अपने द्वार बंद कर देते हैं, ताकि वे अपने परिवारों की समृद्ध खुशी का आनंद ले सकें। मनुष्य का मन अत्यंत संकीर्ण है, इतना संकीर्ण कि मुझ जैसे प्यारे, दयालु और सुगम परमेश्वर को भी स्वीकार नहीं कर पाता। कितनी बार मनुष्यों द्वारा अपनी हँसी-खुशी की बेला में मुझे अस्वीकार किया गया है; कितनी बार लड़खड़ाते हुए मनुष्य ने बैसाखी की तरह मेरा सहारा लिया है; कितनी बार बीमारी से पीड़ित मनुष्यों द्वारा मुझे चिकित्सक की भूमिका निभाने के लिए बाध्य किया गया है। मनुष्य कितने क्रूर हैं! वे सर्वथा अविवेकी और अनैतिक हैं। यहाँ तक कि उनमें वे भावनाएँ भी महसूस नहीं की जा सकतीं जिनसे मनुष्यों के सुसज्जित होने की अपेक्षा की जाती है; उनमें मानवता का नामोनिशान भी लगभग नहीं है। अतीत का विचार करो और वर्तमान से उसकी तुलना करो : क्या तुम लोगों के भीतर कोई बदलाव हो रहा है? क्या तुमने अपने अतीत की कुछ चीजें छोड़ी हैं? या वह अतीत अभी बदला जाना बाकी है?
मैंने मनुष्यों के संसार की ऊँच-नीच का अनुभव करते हुए पर्वत-शृंखलाएँ और नदियों की घाटियाँ लाँघी हैं। मैं उनके बीच घूमा हूँ और कई वर्षों तक उनके बीच रहा हूँ, फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्यों का स्वभाव थोड़ा-सा ही बदला है। और यह ऐसा है, मानो लोगों की पुरानी प्रकृति ने उनमें जड़ पकड़ ली हो और अंकुरित हो गई हो। वे उस पुराने स्वभाव को कभी नहीं बदल पाते, वे उसे केवल उसकी मूल नींव पर थोड़ा-सा सुधारते हैं। जैसा कि लोग कहते हैं, सार नहीं बदला है, किंतु रूप बहुत बदल गया है। सभी लोग मुझे मूर्ख बनाने और चकित करने का प्रयास करते प्रतीत होते हैं, ताकि झाँसा देकर मेरी सराहना पा सकें। मैं मनुष्य की चालबाजी की न तो प्रशंसा करता हूँ, न ही उस पर ध्यान देता हूँ। अचानक आगबबूला होने के बजाय मैं देखने किंतु ध्यान न देने का रवैया अपनाता हूँ। मैं मानवजाति को एक निश्चित मात्रा तक छूट देने और तत्पश्चात् सभी मनुष्यों से एक-साथ व्यवहार करने की योजना बनाता हूँ। चूँकि सभी मनुष्य बेकार अभागे हैं, जो स्वयं से प्रेम नहीं करते और स्वयं को बिलकुल भी नहीं सँजोते, तो फिर वे मुझसे एक बार फिर दया और प्रेम दिखाने की अपेक्षा क्यों करते हैं? बिना अपवाद के, मनुष्य स्वयं को नहीं जानते, न ही वे अपना मोल समझते हैं। उन्हें अपने आप को तराजू में रखकर तोलना चाहिए। मनुष्य मुझ पर कोई ध्यान नहीं देते, इसलिए मैं भी उन्हें गंभीरता से नहीं लेता हूँ। वे मुझ पर कोई ध्यान नहीं देते, इसलिए मुझे भी उन पर ज्यादा परिश्रम से कार्य करने की आवश्यकता नहीं है। क्या यह दोनों ही स्थितियों में लाभ पाना नहीं है? क्या यह तुम लोगों का, मेरे लोगों का वर्णन नहीं करता? तुममें से किसने मेरे सम्मुख संकल्प लेकर उन्हें बाद में छोड़ा नहीं है? किसने बार-बार चीजों पर ध्यान देने के बजाय मेरे सामने दीर्घकालिक संकल्प लिए हैं? मनुष्य हमेशा अपनी सहूलियत के समय मेरे सम्मुख संकल्प करते हैं और विपत्ति के समय उन्हें छोड़ देते हैं; फिर, बाद में, वे अपना संकल्प दोबारा उठा लेते हैं और मेरे सम्मुख स्थापित कर देते हैं। क्या मैं इतना अनादरणीय हूँ कि मनुष्य द्वारा कूड़े के ढेर से उठाए गए इस कचरे को यूँ ही स्वीकार कर लूँगा? कुछ मनुष्य अपने संकल्पों पर अडिग रहते हैं, कुछ पवित्र होते हैं और कुछ बलिदान के रूप में मुझे अपनी सबसे बहुमूल्य चीजें अर्पित करते हैं। क्या तुम सभी लोग इसी तरह के नहीं हो? यदि, तुम राज्य में मेरे लोगों के एक सदस्य के रूप में, अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो, तो तुम लोग मेरे द्वारा तिरस्कृत और अस्वीकृत कर दिए जाओगे!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 14
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 367
समस्त मनुष्य आत्मज्ञान से रहित प्राणी हैं, और वे स्वयं को जानने में असमर्थ हैं। फिर भी, वे अन्य सभी को बहुत करीब से जानते हैं, मानो दूसरों के द्वारा की और कही गई हर चीज़ का “निरीक्षण” पहले उन्होंने ही ठीक उन्हीं के सामने किया हो और करने से पहले उनका अनुमोदन प्राप्त किया गया हो। परिणामस्वरूप, ऐसा लगता है, मानो उन्होंने अन्य सभी की, उनकी मनोवैज्ञानिक अवस्थाओं तक, पूरी नाप-तौल कर ली हो। सभी मनुष्य ऐसे ही हैं। भले ही उन्होंने राज्य के युग में प्रवेश कर लिया है, परंतु उनका स्वभाव अपरिवर्तित बना हुआ है। वे मेरे सामने अब भी वैसा ही करते हैं, जैसा मैं करता हूँ, परंतु मेरी पीठ पीछे वे अपने विशिष्ट “व्यापार” में संलग्न होना आरंभ कर देते हैं। लेकिन बाद में जब वे मेरे सम्मुख आते हैं, तो वे पूर्णतः भिन्न व्यक्तियों के समान होते हैं, प्रत्यक्षतः शांत और अविचलित, प्रकृतिस्थ चेहरे और संतुलित धड़कन के साथ। क्या वास्तव में यही चीज़ मनुष्यों को हेय नहीं बनाती? बहुत-से लोग दो पूर्णतः भिन्न चेहरे रखते हैं—एक जब वे मेरे सामने होते हैं, और दूसरा जब वे मेरी पीठ पीछे होते हैं। उनमें से कई लोग मेरे सामने नवजात मेमने के समान आचरण करते हैं, किंतु मेरी पीठ पीछे वे भयानक शेरों में बदल जाते हैं, और बाद में वे पहाड़ी पर आनंद से उड़ती छोटी चिड़ियों के समान व्यवहार करते हैं। बहुत-से लोग मेरे सामने उद्देश्य और संकल्प प्रदर्शित करते हैं। बहुत-से लोग प्यास और लालसा के साथ मेरे वचनों की तलाश करते हुए मेरे सामने आते हैं, किंतु मेरी पीठ पीछे वे उनसे उकता जाते हैं और उन्हें त्याग देते हैं, मानो मेरे कथन कोई बोझ हों। मैंने कई बार अपने शत्रु द्वारा भ्रष्ट की गई मनुष्यजाति को देखकर उससे आशा रखना छोड़ा है। कई बार मैंने उन्हें रो-रोकर क्षमा माँगते हुए अपने सामने आता देखकर, उनमें आत्मसम्मान के अभाव और उनकी अड़ियल असाध्यता के कारण, क्रोधवश उनके कार्यों के प्रति अपनी आँखें बंद कर ली हैं, यहाँ तक कि उस समय भी, जब उनका हृदय सच्चा और अभिप्राय ईमानदार होता है। कई बार मैंने लोगों को अपने साथ सहयोग करने के लिए पर्याप्त आत्मविश्वास से भरा देखा है, जो मेरे सामने, मेरे आगोश में, उसकी गर्माहट का स्वाद लेते प्रतीत होते हैं। कई बार, अपने चुने हुए लोगों का भोलापन, उनकी जीवंतता और मनोहरता देखकर क्यों नहीं मैं अपने हृदय में इन चीज़ों का खूब आनंद ले पाता। मनुष्य मेरे हाथों में अपने पूर्व-नियत आशीषों का आनंद लेना नहीं जानते, क्योंकि वे यह नहीं समझते कि “आशीषों” या “पीड़ाओं”, दोनों का ठीक-ठीक क्या तात्पर्य है। इस कारण, मनुष्य मेरी खोज में ईमानदारी से दूर हैं। यदि आने वाला कल नहीं होता, तो मेरे सामने खड़े तुम लोगों में से कौन बहती बर्फ जैसा शुद्ध और हरिताश्म जैसा बेदाग़ होता? क्या ऐसा हो सकता है मेरे प्रति तुम लोगों का प्रेम स्वादिष्ट भोजन या कपड़े के उत्तम दर्ज़े के सूट या उत्तम परिलब्धियों वाले उच्च पद से बदला जा सकता है? क्या उसे उस प्रेम से बदला जा सकता है, जो दूसरे तुम्हारे लिए रखते हैं? क्या वास्तव में परीक्षणों से गुजरना लोगों को मेरे प्रति अपना प्रेम त्यागने के लिए प्रेरित कर देगा? क्या कष्ट और क्लेश उन्हें मेरी व्यवस्थाओं के विरुद्ध शिकायत करने का कारण बनेंगे? किसी ने भी कभी वास्तव में मेरे मुख की तलवार की प्रशंसा नहीं की है : वे इसका वास्तविक तात्पर्य समझे बिना केवल इसका सतही अर्थ जानते हैं। यदि मनुष्य वास्तव में मेरी तलवार की धार देखने में सक्षम होते, तो वे चूहों की तरह तेजी से दौड़कर अपने बिलों में घुस जाते। अपनी संवेदनहीनता के कारण मनुष्य मेरे वचनों का वास्तविक अर्थ नहीं जानते, और इसलिए उन्हें कोई भनक नहीं है कि मेरे कथन कितने विकट हैं या वे मनुष्य की प्रकृति को कितना उजागर करते हैं और उन वचनों द्वारा उनकी भ्रष्टता का कितना न्याय हुआ है। इस कारण, मैं जो कहता हूँ, उसके बारे में उनके अधपके विचारों के परिणामस्वरूप अधिकतर लोगों ने एक उदासीन रवैया अपना लिया है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 15
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 368
युगों-युगों से, बहुत-से लोग निराश होकर, और अनिच्छा से, इस संसार से चले गए हैं, और बहुत-से लोग आशा और विश्वास के साथ इसमें आए हैं। मैंने बहुतों के आने की व्यवस्था की है, और बहुतों को दूर भेजा है। अनगिनत लोग मेरे हाथों से होकर गुज़रे हैं। बहुत-सी आत्माएँ अधोलोक में डाल दी गई हैं, बहुतों ने देह में जीवन जिया है, और बहुत-सी मर गईं और पृथ्वी पर पुनः जन्मी हैं। परंतु उनमें से किसी को भी आज राज्य के आशीषों का आनंद उठाने का अवसर नहीं मिला। मैंने मनुष्य को इतना अधिक दिया है, फिर भी उसने कम ही कुछ प्राप्त किया है, क्योंकि शैतान की शक्तियों के आक्रमण ने उन्हें मेरी सारी संपदा का आनंद उठा पाने योग्य नहीं छोड़ा है। उसके पास केवल उन्हें देखने का सौभाग्य ही है, किंतु वह उनका पूरा आनंद कभी नहीं उठा पाया। मनुष्य ने स्वर्ग की धन-संपत्ति पाने के लिए अपने शरीर के ख़ज़ाने से भरे घर की खोज कभी नहीं की, और इसलिए उसने वे आशीष गँवा दिए जो मैंने उसे दिए थे। क्या मनुष्य का आत्मा बिल्कुल वही आंतरिक शक्ति नहीं है जो उसे मेरे आत्मा से जोड़ता है? क्यों मनुष्य ने मुझे कभी अपने आत्मा से नहीं जोड़ा है? ऐसा क्यों है कि वह देह में मेरे निकट खिंचा चला आता है, किंतु आत्मा में ऐसा नहीं कर पाता है? क्या मेरा सच्चा चेहरा देह का चेहरा है? मनुष्य मेरा सार क्यों नहीं जानता? क्या मनुष्य की आत्मा में सचमुच कभी मेरा कोई अवशेष नहीं रहा है? क्या मैं मनुष्य की आत्मा से पूरी तरह लुप्त हो चुका हूँ? यदि मनुष्य आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश नहीं करता, तो वह मेरे मनोरथों को कैसे पकड़ सकता है? मनुष्य की दृष्टि में, क्या वहाँ वह है जो सीधे आध्यात्मिक क्षेत्र को बेध सके? कई बार ऐसा हुआ कि मैंने अपने आत्मा से मनुष्य को पुकारा है, फिर भी मनुष्य ऐसे व्यवहार करता है मानो मैंने उसे डँक मार दिया हो, दूर से मेरा आदर करते हुए, अत्यधिक डर से कि मैं उसे किसी और संसार में ले जाऊँगा। कई बार ऐसा हुआ कि मैंने मनुष्य की आत्मा में जाँच-पड़ताल की, फिर भी वह भुलक्कड़ बना रहता है, गहराई से भयभीत कि मैं उसके घर में घुस जाऊँगा और अवसर का लाभ उठाकर उसका सारा सामान छीन लूँगा। इस प्रकार, वह मुझे बाहर रोक देता है, वहाँ छोड़ देता है जहाँ मेरे सामने एक भावहीन, कसकर बंद दरवाज़े के सिवा कुछ नहीं होता। कई बार ऐसा हुआ कि मनुष्य गिर गया है और मैंने उसे बचाया है, फिर भी वह जागने के बाद तुरंत मुझे छोड़ देता है और, मेरे प्रेम से अनछुआ, चौकन्नी नज़र से मुझे देखता है; मानो मनुष्य के हृदय को मैंने कभी गरमाया नहीं है। मनुष्य भावनाहीन है, नृशंस पशु है। यद्यपि मेरे आलिंगन से उसने गरमाहट ली है, फिर भी वह इससे कभी गहराई से द्रवित नहीं हुआ है। मनुष्य पहाड़ी बनैले के समान है। उसने मानवजाति को मेरी ताड़ना कभी संजोकर नहीं रखी है। वह मेरे पास आने से आनाकानी करता है, और पहाड़ों के बीच रहना पसंद करता है, जहाँ वह जंगली जानवरों का खतरा झेलता है—फिर भी वह मुझमें शरण लेने का अनिच्छुक है। मैं किसी मनुष्य को बाध्य नहीं करता हूँ : मैं बस अपना कार्य करता हूँ। वह दिन आएगा जब मनुष्य शक्तिशाली महासागर के बीच से तैरकर मेरी तरफ आ जाएगा, ताकि वह पृथ्वी पर सकल संपदा का आनंद उठाए और समुद्र के द्वारा निगले जाने का जोखिम पीछे छोड़ दे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 20
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 369
बहुत से लोग मुझसे सच में प्रेम करना चाहते हैं, किन्तु क्योंकि उनके हृदय उनके स्वयं के नहीं हैं, इसलिए उनका स्वयं पर कोई नियंत्रण नहीं है; बहुत से लोग मेरे द्वारा दिए गए परीक्षणों का अनुभव कर सच में मुझसे प्रेम करते हैं, फिर भी वे यह समझने में अक्षम हैं कि मैं वास्तव में विद्यमान हूँ, और मात्र खालीपन में मुझसे प्रेम करते हैं, ना कि मेरे वास्तविक अस्तित्व के कारण; बहुत से लोग अपने हृदय मेरे सामने रखते हैं और फिर उन पर कोई ध्यान नहीं देते, और इस प्रकार शैतान को जब भी अवसर मिलता है उनके हृदय उसके द्वारा छीन लिए जाते हैं, और तब वे मुझे छोड़ देते हैं; जब मैं अपने वचनों को प्रदान करता हूँ तो बहुत से लोग मुझसे सचमुच प्रेम करते हैं, मगर मेरे वचनों को अपनी आत्मा में सँजोते नहीं हैं; उसके बजाए, वे उनका सार्वजनिक संपत्ति के समान यूँ ही उपयोग करते हैं और जब भी वे ऐसा महसूस करते हैं उन्हें वापस वहाँ उछाल देते हैं जहाँ से वे आए थे। मनुष्य दर्द के बीच मुझे खोजता है, और परीक्षणों के बीच मेरी ओर देखता है। शांति के समय के दौरान वह मेरा आनंद उठाता है जब संकट में होता है तो वह मुझे नकारता है, जब वह व्यस्त होता है तो मुझे भूल जाता है, और जब वह खाली होता है तब अन्यमनस्क तरीके से मेरे लिए कुछ करता है—फिर भी किसी ने भी अपने संपूर्ण जीवन भर मुझसे प्रेम नहीं किया है। मैं चाहता हूँ कि मनुष्य मेरे सम्मुख ईमानदार हो : मैं नहीं कहता कि वह मुझे कोई चीज़ दे, किन्तु केवल यही कहता हूँ कि सभी लोग मुझे गंभीरता से लें, कि, मुझे फुसलाने के बजाए, वे मुझे मनुष्य की ईमानदारी को वापस लाने की अनुमति दें। मेरी प्रबुद्धता, मेरी रोशनी और मेरे प्रयासों की कीमत सभी लोगों के बीच व्याप्त हो जाती हैं, लेकिन साथ ही मनुष्य के हर कार्य के वास्तविक तथ्य, मुझे दिए गए उनके धोखे भी, सभी लोगों के बीच व्याप्त हो जाते हैं। यह ऐसा है मानो मनुष्य के धोखे के अवयव उसके गर्भ में आने के समय से ही उसके साथ रहे हैं, मानो उसने चालबाजी के ये विशेष कौशल जन्म से ही धारण किए हुए है। इसके अलावा, उसने कभी भी इरादों को प्रकट नहीं किया है; किसी को भी कभी इन कपटपूर्ण कौशलों के स्रोत की प्रकृति का पता नहीं लगा है। परिणामस्वरूप, मनुष्य धोखे का एहसास किए बिना इसके बीच रहता है, और यह ऐसा है मानो वह अपने आपको क्षमा कर देता है, मानो यह उसके द्वारा मुझे जानबूझ कर दिए गए धोखे के बजाए परमेश्वर की व्यवस्था है। क्या यह मनुष्य का मुझसे धोखे का वास्तविक स्रोत नहीं है? क्या यह उसकी धूर्त योजना नहीं है? मैं कभी भी मनुष्य की चापलूसियों और झाँसापट्टी से संभ्रमित नहीं हुआ हूँ, क्योंकि मैंने बहुत पहले ही उसके सार को जान लिया था। कौन जानता है कि उसके खून में कितनी अशुद्धता है, और शैतान का कितना ज़हर उसकी मज्जा में है? मनुष्य हर गुज़रते दिन के साथ उसका और अधिक अभ्यस्त होता जाता है, इतना कि वह शैतान द्वारा की गई क्षति को महसूस नहीं करता, और इस प्रकार उसमें “स्वस्थ अस्तित्व की कला” को ढूँढ़ने में कोई रुचि नहीं होती है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 21
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 370
मनुष्य प्रकाश के बीच जीता है, फिर भी वह प्रकाश की बहुमूल्यता से अनभिज्ञ है। वह प्रकाश के सार तथा उसके स्रोत से और इस बात से भी अनजान है कि यह प्रकाश किसका है। जब मैं इंसान को प्रकाश देता हूँ, तो मैं तुरन्त ही लोगों की स्थितियों का निरीक्षण करता हूँ : प्रकाश के कारण सभी लोग बदल रहे हैं, पनप रहे हैं और उन्होंने अन्धकार को छोड़ दिया है। मैं ब्रह्माण्डके हर कोने में नज़र डालकर देखता हूँ और पाता हूँ कि पर्वत कोहरे में समा गए हैं, समुद्र शीत में जम गए हैं, और प्रकाश के आगमन की वजह से लोग पूरब की ओर देखते हैं कि शायद उन्हें कुछ अधिक मूल्यवान मिल जाए—फिर भी मनुष्य कोहरे के बीच एक सही दिशा नहीं पहचान पाता। चूँकि सारा संसार कोहरे से आच्छादित है, इसलिए जब मैं बादलों के बीच से देखता हूँ, तो मुझे कोई ऐसा इंसान नज़र नहीं आता जो मेरे अस्तित्व को खोज निकालता हो। इंसान पृथ्वी पर किसी चीज़की तलाश कर रहा है; वह भोजन की तलाश में घूमता-फिरता हुआ प्रतीत होता है; लगता है उसका इरादा मेरे आने का इन्तज़ार करने का है—फिर भी वह मेरे दिन से अनजान है और वह अक्सर पूर्व में केवल प्रकाश की झिलमिलाहट को ही देख पाता है। सभी लोगों के बीच मैं उनलोगों को खोजता हूँ जो सचमुच मेरे हृदय के अनुकूल हैं। मैं लोगों के बीच घूमता-फिरता हूँ, उनके बीच रहता हूँ, लेकिन इंसान पृथ्वी पर सुरक्षित और स्वस्थ है, इसलिए ऐसा कोई नहीं जो मेरे हृदय के अनुकूल हो। लोग नहीं जानते कि मेरी इच्छा का ध्यान कैसे रखें, वे मेरे कार्यों को नहीं देख पाते, प्रकाश के भीतर चल-फिर नहीं पाते और प्रकाश से दीप्त नहीं हो पाते। हालाँकि इंसान ने हमेशा मेरे वचनों को सँजोकर रखा है, फिर भी वह शैतान की कपटपूर्ण योजनाओं समझ नहीं पाता; चूँकि इंसान का आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, वह अपने मन मुताबिक काम नहीं कर पाता। इंसान ने कभी भी मुझसे ईमानदारी से प्रेम नहीं किया। जब मैं उसकी प्रशंसा करता हूँ, तो वह अपने आपको अयोग्य समझता है, लेकिन इससे वह मुझे संतुष्ट करने की कोशिश नहीं करता। वह मात्र उस “स्थान” को पकड़े रहता है जो मैंने उसके हाथों में सौंपा है और उसकी बारीकी से जाँच करता है; मेरी मनोरमता के प्रति असंवेदनशील बनकर, वह खुद को अपने स्थान से प्राप्त लाभों से भरने में जुटा रहता है। क्या यह मनुष्य की कमी नहीं है? जब पहाड़ सरकते हैं, तो क्या वे तुम्हारे स्थान की खातिर अपना रास्ता बादल सकते हैं? जब समुद्र बहते हैं, तो क्या वे मनुष्य के स्थान के सामने रुक सकते हैं? क्या मनुष्य का स्थान आकाश और पृथ्वी को पलट सकता है? मैं कभी इंसान के प्रति दयावान हुआ करता था, बार-बार—लेकिन कोई इसे सँजोता नहीं या खज़ाने की तरह संभालकर नहीं रखता, उन्होंने इसे मात्र एक कहानी की तरह सुना या उपन्यास की तरह पढ़ा। क्या मेरे वचन सचमुच इंसान के हृदय को नहीं छूते? क्या मेरे कथनों का वास्तव में कोई प्रभाव नहीं पड़ता? क्या ऐसा हो सकता है कि कोई भी मेरे अस्तित्व में विश्वास ही नहीं करता? इंसान खुद से प्रेम नहीं करता; बल्कि, वह मुझ पर आक्रमण करने के लिए शैतान के साथ मिल जाता है और मेरी सेवा करने के लिए शैतान को एक “परिसम्पत्ति” के रूप में इस्तेमाल करता है। मैं शैतान की सभी कपटपूर्ण योजनाओं को भेद दूँगा और पृथ्वी के लोगों को शैतान के धोखों को स्वीकार करने से रोक दूँगा, ताकि वे उसके अस्तित्व की वजह से मेरा विरोध न करें।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 22
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 371
मेरी नज़र में, मनुष्य सभी चीज़ों का शासक है। मैंने उसे कोई कम अधिकार नहीं दिए हैं, उसे पृथ्वी पर सभी चीज़ों, पहाड़ों की घास, जंगल के जानवरों, और जल की मछलियों का प्रबन्ध करने की अनुमति दी है। लेकिन वह इन चीज़ों से खुश होने के बजाए, चिंता से व्याकुल रहता है। उसका पूरा जीवन दुख और भागने-दौड़ने में बीतता है और अपने खालीपन में थोड़ी मौज-मस्ती भी करता रहता है; उसके पूरे जीवन में न तो कोई नए आविष्कार हैं और न ही कोई नया सृजन है। कोई भी अपने आप को इस खोखले जीवन से मुक्त नहीं कर पाता, किसी ने भी सार्थक जीवन की खोज नहीं की है, और न ही किसी ने कभी वास्तविक जीवन का अनुभव नहीं किया है। हालाँकि आज सभी लोग मेरे चमकते हुए प्रकाश में रहते हैं, लेकिन वे स्वर्ग के जीवन के बारे में कुछ नहीं जानते। यदि मैं मनुष्य के प्रति दयालु न रहूँ और उसे न बचाऊँ, तो सबका आना निरर्थक हो जाए, पृथ्वी पर उनके जीवन का कोई अर्थ न रहे, वे यूँ ही व्यर्थ में चले जाएँगे, उनके पास गर्व करने को कुछ न होगा। हर धर्म, समाज के हर वर्ग, हर राष्ट्र और हर सम्प्रदाय के लोग पृथ्वी पर खालीपन को जानते हैं, और वे सभी मुझे खोजते हैं और मेरी वापसी का इन्तज़ार करते हैं—लेकिन जब मैं आता हूँ तो कौन मुझे जान पाता है? मैंने सभी चीज़ें बनायी हैं, इंसान को बनाया है, और आज मैं मनुष्य के बीच आया हूँ। लेकिन, मनुष्य पलटकर मुझ पर ही वार करता है, और मुझसे बदला लेता है। क्या जो कार्य मैं मनुष्य पर करता हूँ वह उसके किसी लाभ का नहीं है? क्या मैं वाकई मनुष्य को संतुष्ट करने योग्य नहीं? मनुष्य मुझे अस्वीकार क्यों करता है? वह मेरे प्रति इतना निरूत्साहित और उदासीन क्यों है? पृथ्वी लाशों से क्यों भरी हुई है? क्या जिस संसार को मैंने मनुष्य के लिए बनाया था उसकी स्थिति वास्तव में ऐसी है? ऐसा क्यों हैं कि मैंने मनुष्य को अतुलनीय समृद्धि दी है, फिर भी वह बदले में मुझे अपने दोनों खाली हाथ दिखा देता है? मनुष्य मुझसे सचमुच प्रेम क्यों नहीं करता? वह कभी भी मेरे सामने क्यों नहीं आता? क्या मेरे सारे वचन वास्तव में व्यर्थ हैं? क्या मेरे वचन पानी की भाप बनकर उड़ गए? क्यों मनुष्य मेरे साथ सहयोग क्यों नहीं करना चाहता? क्या मेरे दिन का आगमन मनुष्य के लिए वास्तव में मृत्यु का पल है? क्या मैं वास्तव में उस समय मनुष्य को नष्ट कर सकता हूँ जब मेरे राज्य का गठन होता है? मेरी प्रबन्धन योजना के दौरान, कभी किसी ने मेरे इरादों को क्यों नहीं समझा? मनुष्य मेरे मुँह से निकले वचनों को सँजोने के बजाए, उनसे घृणा क्यों करता है, उन्हें अस्वीकार क्यों करता है? मैं कभी किसी की निंदा नहीं करता, बस लोगों से इतना कहता हूँ कि वे शांत रहकर आत्म-चिंतन करे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 25
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 372
मेरी उपस्थिति में मेरे लिए सब कुछ करते हुए, मनुष्य ने मेरी गर्मजोशी अनुभव की है, मनुष्य ने मन लगाकर मेरी सेवा की है, और मनुष्य ने मन से मेरे समक्ष समर्पण किया है। फिर भी आज के लोगों द्वारा यह अप्राप्य है; वे अपनी आत्मा में रोने के सिवा कुछ नहीं करते मानो उन्हें भूखे भेड़िये ने झपट लिया हो, और वे बिना रुके चीख-चीखकर मुझसे गुहार लगाते हुए, असहाय भाव से मुझे बस ताक सकते हैं। परंतु अंत में, वे अपनी दुर्दशा से बच नहीं पाते हैं। मैं बीती बातों पर सोचता हूँ कि अतीत में किस तरह लोगों ने मेरी उपस्थिति में प्रतिज्ञाएँ की थीं, मेरी उपस्थिति में आकाश और पृथ्वी के नाम पर मेरी दयालुता का बदला अपने स्नेह से चुकाने की कसमें खाई थीं। वे मेरे सामने दुःखी होकर रोते थे, और उनके रोने की चीखें हृदय-विदारक थीं, उन्हें सह पाना कठिन था। उनके संकल्प के कारण, मैं प्रायः लोगों को सहायता प्रदान करता। अनगिनत बार, लोग मेरे प्रति समर्पित होने के लिए मेरे सम्मुख आए हैं, उनका प्यारा-सा अंदाज़ भूल पाना कठिन है। अनगिनत बार, उन्होंने मुझसे प्रेम किया है, वे अपनी निष्ठा में अविचल हैं, उनका दृढ़निश्चय प्रशंसनीय है। अनगिनत बार, उन्होंने अपने जीवन का बलिदान करने की हद तक मुझसे प्रेम किया है, उन्होंने अपने आप से अधिक मुझसे प्रेम किया है और उनकी शुद्ध हृदयता देखकर, मैंने उनका प्रेम स्वीकार किया है। अनगिनत बार, उन्होंने मेरी उपस्थिति में स्वयं को अर्पित किया है, मेरी ख़ातिर मृत्यु के सामने तटस्थ रहे हैं, और मैंने उनके ललाट से चिंता मिटाई है और उनके मुखमंडलों का सावधानी से आंकलन किया है। ऐसा अनगिनत बार हुआ है जब मैंने बहुत दुलारे खज़ाने की तरह उन्हें प्रेम किया है, और ऐसा भी अनगिनत बार हुआ है जब मैंने अपने शत्रु की तरह उनसे नफ़रत की है। फिर भी, मेरे मन में जो है वह मनुष्य की समझ से बाहर है? जब लोग दुःखी होते हैं, मैं उन्हें सांत्वता देता हूँ, और जब वे कमज़ोर होते हैं, उनकी सहायता के लिए मैं उनके साथ हो जाता हूँ। जब वे भटक जाते हैं, मैं उन्हें दिशा दिखाता हूँ। जब वे रोते हैं, मैं उनके आँसू पोंछता हूँ। परंतु जब मैं उदास होता हूँ, तब कौन मुझे अपने हृदय से सांत्वना दे सकता है? जब मैं चिंता से व्यग्र होता हूँ, तब कौन मेरी भावनाओं का ख्याल रखता है? जब मैं उदास होता हूँ, तब कौन मेरे हृदय के घावों को चंगा कर सकता है? जब मुझे किसी की आवश्यकता होती है, तब कौन मेरे साथ सहयोग के लिए स्वेच्छा से स्वयं को अर्पित करता है? क्या ऐसा हो सकता है कि मेरे प्रति लोगों की पूर्व प्रवृत्ति अब लुप्त हो गई है, और कभी वापस नहीं आएगी? ऐसा क्यों है कि इसका लेशमात्र भी उनकी स्मृतियों में नहीं बचा है? ऐसा कैसे है कि लोग इन सब चीज़ों को भूल गए हैं? क्या यह सब मनुष्यजाति के शत्रुओं द्वारा उसकी भ्रष्टता के कारण नहीं है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 27
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 373
परमेश्वर ने मानवजाति बनाई, किन्तु जब वह मानव दुनिया में आता है, तो वही लोग उसका विरोध करने की कोशिश करते हैं, उसे अपने इलाके से निकाल देते हैं, मानो कि वह दुनिया में भटकता कोई अनाथ हो, या राष्ट्रविहीन वैश्विक व्यक्ति हो। किसी को भी परमेश्वर से लगाव नहीं है, कोई भी वास्तव में उसे सच्चा प्यार नहीं करता, किसी ने भी उसके आने का स्वागत नहीं किया है। बल्कि जब वे परमेश्वर को आता देखते हैं, तो उनके हर्षित चेहरे पलक झपकते ही उदास हो जाते हैं, मानो अचानक कोई तूफान आ रहा हो, या परमेश्वर उनके परिवार की खुशियाँ छीन लेगा, मानो परमेश्वर ने मानवजाति को कभी भी आशीष नहीं दिया हो, बल्कि मानवजाति को केवल दुख ही दिया हो। इसलिए, लोगों के मन में, परमेश्वर उनके लिए वरदान न होकर, कोई ऐसा है जो हमेशा उन्हें शाप देता रहता है। इसलिए, लोग न तो उस पर ध्यान देते हैं, न ही उसका स्वागत करते हैं, वे उसके प्रति हमेशा उदासीन रहते हैं, हमेशा से ऐसा ही रहा है। क्योंकि मानवजाति के हृदय में ये बातें बैठी हुई हैं, इसलिए परमेश्वर कहता है कि वे अविवेकी और अनैतिक हैं, यहाँ तक कि उनमें वे भावनाएँ भी महसूस नहीं की जा सकतीं जिनसे मनुष्यों के सुसज्जित होने की अपेक्षा की जाती है। इंसान को परमेश्वर की भावनाओं की कोई कद्र नहीं है, बल्कि वह परमेश्वर से निपटने के लिए तथाकथित “धार्मिकता” का उपयोग करता है। मानवजाति कई वर्षों से ऐसी ही है, यही कारण है कि परमेश्वर ने कहा है कि उसका स्वभाव नहीं बदला है। यह दिखाता है कि उसमें कोई सार नहीं है। ऐसा कहा जा सकता है कि मनुष्य निकम्मा और नाकारा है, क्योंकि उसने स्वयं को सँजोकर नहीं रखा है। यदि वह स्वयं से प्यार करके खुद को ही रौंदता है, तो क्या यह उसके निकम्मेपन को नहीं दिखाता? मानवजाति एक ऐसी अनैतिक स्त्री की तरह है जो स्वयं के साथ खेल खेलती है और दूषित किए जाने के लिए स्वेच्छा से स्वयं को दूसरों को सौंप देती है। किन्तु फिर भी, लोग नहीं जानते हैं कि वे कितने अधम हैं। उन्हें दूसरों के लिए कार्य करने, या दूसरों के साथ बातचीत करने, स्वयं को दूसरों के नियंत्रण में करने में खुशी मिलती है; क्या यह वास्तव में मानवजाति की गंदगी नहीं है? यद्यपि मैंने मानवजाति के बीच जीवन का अनुभव नहीं किया है, और मुझे वास्तव में मानव जीवन का अनुभव नहीं रहा है, फिर भी मुझे मनुष्य की हर हरकत, उसके हर क्रिया-कलाप, हर वचन और हर कर्म की एकदम स्पष्ट समझ है। मैं मानवजाति को उसे बेहद शर्मिंदा करने की हद तक उजागर कर सकता हूँ, इस सीमा तक कि वे अपनी चालाकियाँ दिखाने का और अपनी वासना को हवा देने की धृष्टता फिर न करे। इंसान घोंघे की तरह, जो अपने खोल में छिपा रहता है, अब कभी अपनी बदसूरत स्थिति को उजागर करने का धृष्टता नहीं करता। चूँकि मानवजाति स्वयं को नहीं जानती, इसलिए उसका सबसे बड़ा दोष अपने आकर्षण का दूसरों के सामने स्वेच्छा से जुलूस निकालनाहै, अपने कुरूप चेहरे का जूलूस निकालना है; परमेश्वर इस चीज़ से सबसे ज्यादा घृणा करता है। क्योंकि लोगों के आपसी संबंध असामान्य हैं, लोगों का आपसी व्यवहार ही सामान्य नहीं है, तो परमेश्वर और इंसान के बीच सामान्य संबंध की तो बात ही दूर है। परमेश्वर ने बहुत कुछ कहा है, और ऐसा करने में उसका मुख्य उद्देश्य इंसान के हृदय में अपनी जगह बनाना है, लोगों को उनके हृदय में बसी सभी मूर्तियों से मुक्त करना है। ताकि परमेश्वर समस्त मानवजाति पर सामर्थ्य का उपयोग कर सके और पृथ्वी पर अपने होने का उद्देश्य पूरा कर सके।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 14