इंसान की भ्रष्टता का खुलासा 1
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 300
भ्रष्टाचार के हजारों सालों बाद, मनुष्य संवेदनहीन और मूर्ख बन गया है; वह एक दुष्ट आत्मा बन गया है जो परमेश्वर का विरोध करती है, इस हद तक कि परमेश्वर के प्रति मनुष्य की विद्रोहशीलता इतिहास की पुस्तकों में दर्ज की गई है, यहाँ तक कि मनुष्य खुद भी अपने विद्रोही आचरण का पूरा लेखा-जोखा देने में असमर्थ है—क्योंकि मनुष्य शैतान के द्वारा पूरी तरह से भ्रष्ट किया जा चुका है, और शैतान के द्वारा रास्ते से भटका दिया गया है इसलिए वह नहीं जानता कि कहाँ जाना है। आज भी, मनुष्य परमेश्वर को धोखा देता है : जब मनुष्य परमेश्वर को देखता है, तो वह उसे धोखा देता है, और जब वह परमेश्वर को नहीं देख पाता, तब भी वह उसे धोखा देता है। कुछ ऐसे भी हैं, जो परमेश्वर के श्रापों और परमेश्वर के कोप का अनुभव करने के बाद भी उसे धोखा देते हैं। इसलिए मैं कहता हूँ कि मनुष्य की समझ ने अपने मूल प्रकार्य को खो दिया है, और मनुष्य की अंतरात्मा ने भी, अपने मूल प्रकार्य को खो दिया है। मनुष्य जिसे मैं देखता हूँ, वह मानव रूप में एक जानवर है, वह एक जहरीला साँप है, मेरी आँखों के सामने वह कितना भी दयनीय बनने की कोशिश करे, मैं उसके प्रति कभी भी दयावान नहीं बनूँगा, क्योंकि मनुष्य को काले और सफेद के बीच, सत्य और असत्य के बीच अन्तर की समझ नहीं है, मनुष्य की समझ बहुत ही सुन्न हो गई है, फिर भी वह आशीषें पाने की कामना करता है; उसकी मानवता बहुत नीच है फिर भी वह एक राजा के प्रभुत्व को पाने की कामना करता है। ऐसी समझ के साथ, वह किसका राजा बन सकता है? ऐसी मानवता के साथ, कैसे वह सिंहासन पर बैठ सकता है? सचमुच में मनुष्य को कोई शर्म नहीं है! वह नीच ढोंगी है! तुम सब जो आशीषें पाने की कामना करते हो, मैं सुझाव देता हूँ कि पहले शीशे में अपना बदसूरत प्रतिबिंब देखो—क्या तू एक राजा बनने लायक है? क्या तेरे पास एक ऐसा चेहरा है जो आशीषें पा सकता है? तेरे स्वभाव में ज़रा-सा भी बदलाव नहीं आया है और तूने किसी भी सत्य का अभ्यास नहीं किया, फिर भी तू एक बेहतरीन कल की कामना करता है। तू अपने आप को भुलावे में रख रहा है! ऐसी गन्दी जगह में जन्म लेकर, मनुष्य समाज के द्वारा बुरी तरह संक्रमित किया गया है, वह सामंती नैतिकता से प्रभावित किया गया है, और उसे "उच्च शिक्षा के संस्थानों" में सिखाया गया है। पिछड़ी सोच, भ्रष्ट नैतिकता, जीवन पर मतलबी दृष्टिकोण, जीने के लिए तिरस्कार-योग्य दर्शन, बिल्कुल बेकार अस्तित्व, पतित जीवन शैली और रिवाज—इन सभी चीज़ों ने मनुष्य के हृदय में गंभीर रूप से घुसपैठ कर ली है, और उसकी अंतरात्मा को बुरी तरह खोखला कर दिया है और उस पर गंभीर प्रहार किया है। फलस्वरूप, मनुष्य परमेश्वर से और अधिक दूर हो गया है, और परमेश्वर का और अधिक विरोधी हो गया है। दिन-प्रतिदिन मनुष्य का स्वभाव और अधिक शातिर बन रहा है, और एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो स्वेच्छा से परमेश्वर के लिए कुछ भी त्याग करे, एक भी व्यक्ति नहीं जो स्वेच्छा से परमेश्वर की आज्ञा का पालन करे, इसके अलावा, न ही एक भी व्यक्ति ऐसा है जो स्वेच्छा से परमेश्वर के प्रकटन की खोज करे। इसकी बजाय, इंसान शैतान की प्रभुता में रहकर, कीचड़ की धरती पर बस सुख-सुविधा में लगा रहता है और खुद को देह के भ्रष्टाचार को सौंप देता है। सत्य को सुनने के बाद भी, जो लोग अन्धकार में जीते हैं, इसे अभ्यास में लाने का कोई विचार नहीं करते, यदि वे परमेश्वर के प्रकटन को देख लेते हैं तो इसके बावजूद उसे खोजने की ओर उन्मुख नहीं होते हैं। इतनी पथभ्रष्ट मानवजाति को उद्धार का मौका कैसे मिल सकता है? इतनी पतित मानवजाति प्रकाश में कैसे जी सकती है?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'एक अपरिवर्तित स्वभाव का होना परमेश्वर के साथ शत्रुता में होना है' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 301
मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव शैतान के द्वारा उसे जहर दिये जाने और रौंदे जाने के कारण उपजा है, उस प्रबल नुकसान से उपजा है जिसे शैतान ने उसकी सोच, नैतिकता, अंतर्दृष्टि, और समझ को पहुँचाया है। क्योंकि मनुष्य की मौलिक चीजें शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दी गईं हैं, और पूरी तरह से उसके विपरीत हैं जैसा परमेश्वर ने मूल रूप से इंसान को बनाया था, इसी कारण ही मनुष्य परमेश्वर का विरोध करता है और सत्य को नहीं समझता। इस प्रकार, मनुष्य के स्वभाव में बदलाव उसकी सोच, अंतर्दृष्टि और समझ में बदलाव के साथ शुरू होना चाहिए जो परमेश्वर और सत्य के बारे में उसके ज्ञान को बदलेगा। जो लोग अधिकतम गहराई से भ्रष्ट स्थानों में जन्मे हैं वे इस बारे में और अधिक अज्ञानी हैं कि परमेश्वर क्या है, या परमेश्वर में विश्वास करने का क्या अर्थ है। लोग जितने अधिक भ्रष्ट होते हैं, वे उतना ही कम परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में जानते हैं, और उनकी समझ और अंतर्दृष्टि उतनी ही खराब होती है। परमेश्वर के विरुद्ध मनुष्य के विरोध और उसकी विद्रोहशीलता का स्रोत शैतान के द्वारा उसकी भ्रष्टता है। क्योंकि वह शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है, इसलिये मनुष्य की अंतरात्मा सुन्न हो गई है, वह अनैतिक हो गया है, उसके विचार पतित हो गए हैं, और उसका मानसिक दृष्टिकोण पिछड़ा हुआ है। शैतान के द्वारा भ्रष्ट होने से पहले, मनुष्य स्वाभाविक रूप से परमेश्वर का अनुसरण करता था और उसके वचनों को सुनने के बाद उनका पालन करता था। उसमें स्वाभाविक रूप से सही समझ और विवेक था, और सामान्य मानवता थी। शैतान के द्वारा भ्रष्ट होने के बाद, उसकी मूल समझ, विवेक, और मानवता मंद पड़ गई और शैतान के द्वारा दूषित हो गई। इस प्रकार, उसने परमेश्वर के प्रति अपनी आज्ञाकारिता और प्रेम को खो दिया है। मनुष्य की समझ पथ से हट गई है, उसका स्वभाव एक जानवर के समान हो गया है, और परमेश्वर के प्रति उसकी विद्रोहशीलता और भी अधिक बढ़ गई है और गंभीर हो गई है। लेकिन फिर भी, मनुष्य इसे न तो जानता है और न ही पहचानता है, और केवल आँख बंद करके विरोध और विद्रोह करता है। मनुष्य के स्वभाव का प्रकाशन उसकी समझ, अंतर्दृष्टि, और अंत:करण का प्रकटीकरण है; और क्योंकि उसकी समझ और अंतर्दृष्टि सही नहीं हैं, और उसका अंत:करण अत्यंत मंद पड़ गया है, इसलिए उसका स्वभाव परमेश्वर के प्रति विद्रोही है। यदि मनुष्य की समझ और अंतर्दृष्टि बदल नहीं सकती, तो फिर उसके स्वभाव में ऐसा बदलाव होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता, जो परमेश्वर के हृदय के अनुकूल हो। यदि मनुष्य की समझ सही नहीं है, तो वह परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकता और परमेश्वर के द्वारा उपयोग के लिए अयोग्य है। "सामान्य समझ" के मायने हैं परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना और उसके प्रति निष्ठावान बने रहना, परमेश्वर के लिए तड़पना, परमेश्वर के प्रति पूर्णतया शुद्ध होना, और परमेश्वर के प्रति अंत:करण रखना, यह परमेश्वर के साथ एक हृदय और मन होने को दर्शाता है, जानबूझकर परमेश्वर का विरोध करने को नहीं। पथभ्रष्ट समझ का होना ऐसा नहीं है। चूँकि मनुष्य शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया था इसलिये, उसने परमेश्वर के बारे में धारणाएँ बना लीं, और परमेश्वर के लिए उसके अंदर निष्ठा या तड़प नहीं रही है, परमेश्वर के प्रति अंतरात्मा की तो बात ही क्या। मनुष्य जानबूझकर परमेश्वर का विरोध करता और उस पर दोष लगाता है, और इसके अलावा, उसकी पीठ पीछे उस पर अपशब्दों का प्रहार करता है। मनुष्य स्पष्ट रूप से जानता है कि वह परमेश्वर है, फिर भी उसकी पीठ पीछे उस पर दोष लगाता है, परमेश्वर की आज्ञापालन का उसका कोई भी इरादा नहीं होता, वह सिर्फ परमेश्वर से अंधाधुंध माँग और निवेदन करता रहता है। ऐसे लोग—जिनकी समझ पथभ्रष्ट होती है—वे अपने घृणित स्वभाव को जानने या अपनी विद्रोहशीलता पर पछतावा करने के अयोग्य होते हैं। यदि लोग अपने आप को जानने के योग्य हों, तो फिर वे अपनी समझ को थोड़ा-सा पुनः प्राप्त कर चुके हैं; परमेश्वर के प्रति अधिक विद्रोही लोग, जो अपने आप को अब तक नहीं जान पाये, उनमें समझ उतनी ही कम होती है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'एक अपरिवर्तित स्वभाव का होना परमेश्वर के साथ शत्रुता में होना है' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 302
मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव के प्रकटीकरण का स्रोत उसका मंद अंत:करण, उसकी दुर्भावनापूर्ण प्रकृति और उसकी विकृत समझ से बढ़कर और किसी में भी नहीं है; यदि मनुष्य का अंत:करण और समझ फिर से सामान्य होने के योग्य हो पाएँ, तो फिर वह परमेश्वर के सामने उपयोग करने के योग्य बन जायेगा। सिर्फ इसलिए क्योंकि मनुष्य का अंत:करण हमेशा सुन्न रहा है, मनुष्य की समझ जो कभी भी सही नहीं रही, लगातार मंद होती जा रही है, इस कारण ही मनुष्य लगातार परमेश्वर के प्रति विद्रोही बना हुआ है, इस हद तक कि उसने यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिया और अंतिम दिनों के देहधारी परमेश्वर को अपने घर में प्रवेश देने से इंकार कर रहा है, और परमेश्वर के देह पर दोष लगाता है, और परमेश्वर के देह को तुच्छ जानता है। यदि मनुष्य में थोड़ी-सी भी मानवता होती, तो वह परमेश्वर के देहधारी शरीर के साथ इतना निर्दयी व्यवहार न करता; यदि उसे थोड़ी-सी भी समझ होती, तो वह देहधारी परमेश्वर के शरीर के साथ अपने व्यवहार में इतना शातिर न होता; यदि उसमें थोड़ा-सा भी विवेक होता, तो वह देहधारी परमेश्वर को इस ढंग से "धन्यवाद" न देता। मनुष्य देहधारी परमेश्वर के युग में जीता है, फिर भी वह इतना अच्छा अवसर दिये जाने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देने की बजाय परमेश्वर के आगमन को कोसता है, या परमेश्वर के देहधारण के तथ्य को पूरी तरह से अनदेखा कर देता है, और प्रकट रूप से इसके विरोध में होता है और इससे ऊबा हुआ है। मनुष्य परमेश्वर के आगमन के प्रति चाहे जैसा भी व्यवहार करे, संक्षेप में, परमेश्वर ने हमेशा धैर्यपूर्वक अपने कार्य को जारी रखा है—भले ही मनुष्य ने परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी स्वागत करने वाला रुख़ नहीं रखा है, और अंधाधुंध उससे निवेदन करता रहता है। मनुष्य का स्वभाव अत्यंत शातिर बन गया है, उसकी समझ अत्यंत मंद हो गई है, और उसका अंत:करण दुष्ट के द्वारा पूरी तरह से रौंद दिया गया है और मनुष्य के मौलिक अंत:करण का अस्तित्व बहुत पहले ही समाप्त हो गया था। मनुष्य, मानवजाति को बहुत अधिक जीवन और अनुग्रह प्रदान करने के लिए देहधारी परमेश्वर का न केवल एहसानमंद नहीं है, बल्कि परमेश्वर के द्वारा उसे सत्य दिए जाने पर वह आक्रोश में भी है; ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्य को सत्य में थोड़ी-सी भी रूचि नहीं है, इसलिए वह परमेश्वर के प्रति आक्रोश में आ गया है। मनुष्य न सिर्फ देहधारी परमेश्वर के लिए अपनी जान देने के नाकाबिल है, बल्कि वह उससे उपकार हासिल करने की कोशिश भी करता रहता है, और परमेश्वर से ऐसे सूद की माँग करता है जो उससे दर्जनों गुना बड़ी हैं जो मनुष्य ने परमेश्वर को दिया है। ऐसे विवेक और समझ के लोग इसे कोई बड़ी बात नहीं मानते हैं, वे अब भी ऐसा मानते हैं कि उन्होंने परमेश्वर के लिए स्वयं को बहुत अधिक खर्च किया है, और परमेश्वर ने उन्हें बहुत थोड़ा दिया है। कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने मुझे सिर्फ एक कटोरा पानी ही दिया है फिर भी अपने हाथ पसार कर माँग करते हैं कि मैं उन्हें दो कटोरे दूध की कीमत चुकाऊँ या मुझे एक रात के लिए कमरा दिया है परन्तु मुझ से कई रातों के किराए की माँग करते हैं। ऐसी मानवता, और ऐसे विवेक के साथ, कैसे तू अब भी जीवन पाने की कामना कर सकता है? तू कितना घृणित अभागा है! इंसान की इसी प्रकार की मानवता और विवेक के कारण ही देहधारी परमेश्वर पूरी धरती पर भटकता फिरता है, वह किसी भी स्थान पर आश्रय नहीं पाता। जो सचमुच विवेक और मानवता को धारण किये हुए हैं उन्हें देहधारी परमेश्वर की आराधना और सच्चे दिल से सेवा इसलिए नहीं करनी चाहिए कि उसने बहुत कार्य किया है, बल्कि तब भी करनी चाहिए अगर उसने कुछ भी कार्य न किया होता। जो लोग सही समझ के हैं उन्हें यह करना चाहिये और यह मनुष्य का कर्तव्य है। अधिकतर लोग परमेश्वर की सेवा करने के लिए शर्तों की बात भी करते हैं : वे परवाह नहीं करते कि वह परमेश्वर है या मनुष्य है, वे सिर्फ अपनी शर्तों की ही बात करते हैं, और सिर्फ अपनी ही इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करते हैं। जब तुम लोग मेरे लिए खाना पकाते हो, तो तुम सेवा शुल्क की माँग करते हो, जब तुम लोग मेरे लिए दौड़ते हो, तो तुम लोग मुझसे दौड़ने का शुल्क माँगते हो, जब तुम लोग मेरे लिए काम करते हो तो काम करने का शुल्क माँगते हो, जब तुम लोग मेरे कपड़े धोते हो तो कपड़े धोने का शुल्क माँगते हो, जब तुम कलीसिया के लिए कुछ करते हो तो स्वास्थ्यलाभ की लागत माँगते हो, जब तुम लोग बोलते हो तो तुम वक्ता का शुल्क माँगते हो, जब तुम लोग पुस्तकें बाँटते हो तो तुम लोग वितरण शुल्क माँगते हो, और जब लिखते हो तो लिखने का शुल्क माँगते हो। जिनके साथ मैं निपट चुका हूँ वे मुझ से मुआवजा तक माँगते हैं, जबकि वे जो घर भेजे जा चुके हैं अपने नाम के नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति की माँग करते हैं; वे जो अविवाहित हैं दहेज की माँग करते हैं, या अपनी खोई हुई जवानी के लिए मुआवजे की माँग करते हैं, वे जो मुर्गे को काटते हैं वे कसाई के शुल्क की माँग करते हैं, वे जो खाने को तलते हैं, तलने का शुल्क माँगते हैं, और वे जो सूप बनाते हैं उसके लिए भी भुगतान माँगते हैं...। यह तुम लोगों की ऊँची और शक्तिशाली मानवता है और ये तुम सबके स्नेही विवेक के द्वारा निर्धारित कार्य हैं। तुम लोगों की समझ कहाँ है? तुम लोगों की मानवता कहाँ है? मैं तुम लोगों को बता दूँ! यदि तुम लोग ऐसे ही करते रहोगे, तो मैं तुम सबके मध्य में कार्य करना बंद कर दूँगा। मैं मनुष्य के रूप में जंगली जानवरों के झुंड में कार्य नहीं करूँगा, मैं ऐसे समूह के लोगों के लिए दुःख नहीं सहूँगा जिनका उजला चेहरा जंगली हृदय को छुपाये हुए है, मैं ऐसे जानवरों के झुंड के लिए कष्ट नहीं झेलूँगा जिनके उद्धार की थोड़ी-सी भी संभावना नहीं है। जिस दिन मैं तुम सबकी ओर पीठ कर लूँगा उसी दिन तुम सब मर जाओगे, उस दिन अंधकार तुम सब पर आ जायेगा, और उस दिन तुम सब प्रकाश के द्वारा त्याग दिए जाओगे। मैं तुम लोगों को बता दूँ! मैं कभी भी तुम लोगों जैसे समूह पर दयालु नहीं बनूँगा, एक ऐसा झुंड जो जानवरों से भी बदतर है! मेरे वचनों और कार्यकलापों की कुछ सीमायें हैं, और तुम सबकी मानवता और विवेक जैसे हैं उसके चलते, मैं और कार्य नहीं करूँगा, क्योंकि तुम सबमें विवेक की बहुत कमी है, तुम लोगों ने मुझे बहुत अधिक पीड़ा दी है, और तुम लोगों का घृणित व्यवहार मुझे बहुत अधिक घिन दिलाता है! तुम जैसे लोग जिनमें मानवता और विवेक की इतनी कमी है उन्हें उद्धार का अवसर कभी नहीं मिलेगा; मैं ऐसे बेरहम और एहसान-फरामोश लोगों को कभी भी नहीं बचाऊँगा। जब मेरा दिन आएगा, मैं अनंत काल के लिए अनाज्ञाकारिता की संतानों पर अपनी झुलसाने वाली आग की लपटों को बरसाऊँगा जिन्होंने एक बार मेरे प्रचण्ड कोप को उकसाया था, मैं ऐसे जानवरों पर अपने अनंत दंड को थोप दूंगा जिन्होंने कभी मुझे अपशब्द कहे थे और मुझे त्याग दिया था, मैं अनाज्ञाकारिता के पुत्रों को अपने क्रोध की आग में हमेशा के लिए जलाऊँगा जिन्होंने कभी मेरे साथ खाया था और जो मेरे साथ रहे थे, परन्तु मुझ में विश्वास नहीं रखा, और मेरा अपमान किया और मुझे धोखा दिया था। मैं उन सब को सज़ा दूँगा जिन्होंने मेरे क्रोध को भड़काया, मैं उन सभी जानवरों पर अपने कोप की सम्पूर्णता को बरसाऊँगा जिन्होंने कभी बराबरी में मेरे बगल में खड़े होने की कामना की थी, फिर भी मेरी आराधना या मेरा आज्ञापालन नहीं किया, मेरी छड़ी जिससे मैं मनुष्य को मारता हूँ, वह उन जानवरों पर टूट पड़ेगी जिन्होंने कभी मेरी देखभाल और जो रहस्य मैंने बोले उनका आनंद लिया था, और जिन्होंने कभी मुझसे भौतिक आनंद लेने की कोशिश की थी। मैं ऐसे किसी भी व्यक्ति को क्षमा नहीं करूँगा जो मेरा स्थान लेने की कोशिश करते हैं; मैं उन में से किसी को भी नहीं छोड़ूँगा जो मुझ से खाना और कपड़े हथियाने की कोशिश करते हैं। फिलहाल तो, तुम सब नुकसान से बचे हुए हो और मुझसे माँगने में हद से आगे बढ़ जाने के कारण असफल हो जाते हो। जब कोप का दिन आ जायेगा तो तुम मुझ से और अधिक नहीं माँगोगे; उस समय, मैं तुम लोगों को जी भरकर चीजों का "आनंद" लेने दूँगा, मैं तुम सबके चेहरों को मिट्टी में घुसा दूँगा, और तुम सब फिर दोबारा कभी भी उठ नहीं पाओगे! देर-सवेर, मैं तुम सबका यह कर्ज "चुका" दूँगा—और मैं आशा करता हूँ कि तुम सब धीरज से इस दिन के आने की प्रतीक्षा करोगे।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'एक अपरिवर्तित स्वभाव का होना परमेश्वर के साथ शत्रुता में होना है' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 303
मनुष्य परमेश्वर को पाने में इसलिए असफल नहीं होता कि परमेश्वर के पास भावना है, या इसलिए कि परमेश्वर मनुष्य के द्वारा प्राप्त होना नहीं चाहता, बल्कि इसलिए कि मनुष्य परमेश्वर को पाना ही नहीं चाहता, और इसलिए क्योंकि मनुष्य परमेश्वर को आवश्यकता की भावना के साथ खोजता ही नहीं। जो सचमुच परमेश्वर को खोजता है वह परमेश्वर के द्वारा श्रापित कैसे किया जा सकता है? जो सही समझ और संवेदनशील विवेक का हो वह परमेश्वर के द्वारा कैसे श्रापित किया जा सकता है? जो सचमुच परमेश्वर की आराधना और सेवा करता है उसे परमेश्वर के कोप की आग से नष्ट कैसे किया जा सकता है? जिसे परमेश्वर की आज्ञा मानने में ख़ुशी मिलती है, उसे परमेश्वर के घर से बाहर कैसे निकाला जा सकता है? जो परमेश्वर को अधिक से अधिक प्रेम करना चाहता है, वह परमेश्वर की सज़ा में कैसे रह सकता है? जो परमेश्वर के लिए सबकुछ त्यागने के लिए तैयार है उसका सब कुछ ले लिया जाए, ये कैसे हो सकता है? मनुष्य परमेश्वर का अनुसरण करने का इच्छुक नहीं है, अपनी सम्पत्ति को परमेश्वर के लिए खर्च करने का इच्छुक नहीं है, और परमेश्वर के लिए जीवन-भर के प्रयास समर्पित करने के लिए तैयार नहीं है; इसके बजाय कहता है कि परमेश्वर बहुत दूर चला गया है, परमेश्वर के बारे में बहुत कुछ मनुष्य की धारणाओं के साथ मेल नहीं खाता। ऐसी मानवता के साथ, यद्यपि तुम सब अपने प्रयासों में उदार भी होते तो भी तुम लोग परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं कर पाओगे, इस तथ्य के बारे में तो क्या कहा जाए कि तुम परमेश्वर को नहीं खोजते हो। क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम सब मानवजाति के दोषपूर्ण उत्पाद हो? क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों की मानवता से ज़्यादा नीच और कोई मानवता नहीं है? क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम लोगों का आदर करने क लिए दूसरे तुम्हें क्या कहकर बुलाते हैं? जो लोग सच में परमेश्वर को प्रेम करते हैं वे तुम लोगों को भेड़िये का पिता, भेड़िये की माता, भेड़िये का पुत्र, और भेड़िये का पोता कह कर बुलाते हैं; तुम सब भेड़िये के वंशज हो, भेड़िये के लोग हो, और तुम लोगों को अपनी पहचान जाननी चाहिए और उसे कभी नहीं भूलना चाहिए। यह न सोचो कि तुम लोग कोई श्रेष्ठ हस्ती हो : तुम सब मानवजाति के मध्य गैर-मनुष्यों का सबसे अधिक क्रूर झुंड हो। क्या तुम्हें इसमें से कुछ नहीं पता? क्या तुम लोगों को पता है कि तुम सबके मध्य में कार्य करने के द्वारा मैंने कितना जोखिम उठाया है? यदि तुम सबकी समझ वापस सामान्य नहीं हो सकती, और तुम सबका विवेक सामान्य रूप से कार्य नहीं कर सकता, तो फिर तुम सब कभी भी "भेड़िये" की पदवी से मुक्त नहीं हो पाओगे, तुम सब कभी भी श्राप के दिन से बच नहीं पाओगे, अपनी सज़ा के दिन से कभी बच नहीं पाओगे। तुम सब हीन जन्मे थे, एक मूल्यरहित वस्तु। तुम सब प्रकृति से भूखे भेड़ियों का झुंड, मलबे और कचरे का एक ढेर हो, और, तुम सबकी तरह, मैं तुम लोगों के ऊपर एहसान पाने के लिए कार्य नहीं करता, बल्कि इसलिए करता हूँ क्योंकि कार्य की आवश्यकता है। यदि तुम सब इसी ढंग से विद्रोही बने रहोगे, तो मैं अपना कार्य रोक दूँगा, और फिर दोबारा तुम लोगों पर कभी कार्य नहीं करूँगा; बल्कि मैं अपना कार्य दूसरे झुंड पर स्थानांतरित कर दूँगा जो मुझे प्रसन्न करता है, और इस तरह से मैं तुम सबको हमेशा के लिए छोड़ दूँगा, क्योंकि मैं उन पर नजर डालने के लिए तैयार नहीं हूँ जो मेरे साथ शत्रुता रखते हैं। तो फिर, क्या तुम सब मेरे अनुरूप बनने की कामना करते हो, या मेरे विरुद्ध शत्रुता रखने की?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'एक अपरिवर्तित स्वभाव का होना परमेश्वर के साथ शत्रुता में होना है' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 304
सभी मनुष्य यीशु के सच्चे रूप को देखने और उसके साथ रहने की इच्छा करते हैं। मुझे नही लगता कि भाई-बहनों में से एक भी ऐसा है जो कहेगा कि वह यीशु को देखने या उसके साथ रहने की इच्छा नहीं करता। यीशु को देखने से पहले अर्थात, देहधारी परमेश्वर को देखने से पहले, संभवत: तुम लोगों के भीतर अनेक तरह के विचार होंगे, उदाहरण के लिए, यीशु के रूप के बारे में, उसके बोलने के तरीके, उसकी जीवन-शैली के बारे में इत्यादि। लेकिन एक बार उसे वास्तव में देख लेने के बाद तुम्हारे विचार तेजी से बदल जाएँगे। ऐसा क्यों है? क्या तुम लोग जानना चाहते हो? यह सच है कि मनुष्य की सोच को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि मसीह का सार इंसान द्वारा किए गए किसी भी परिवर्तन को सहन नहीं करता। तुम लोग मसीह को अविनाशी या एक संत मानते हो, लेकिन कोई भी उसे दिव्य सार धारी सामान्य मनुष्य नहीं मानता है। इसलिए, ऐसे बहुत-से लोग जो दिन-रात परमेश्वर को देखने की कामना करते हैं, वास्तव में परमेश्वर के शत्रु हैं और परमेश्वर के अनुरूप नहीं हैं। क्या यह मनुष्य की ओर से की गई गलती नहीं है? तुम लोग अभी भी यह सोचते हो कि तुम्हारा विश्वास और तुम्हारी निष्ठा ऐसी है कि तुम सब मसीह के रूप को देखने के योग्य हो, परन्तु मैं तुमसे आग्रह करता हूँ कि तुम अपने आपको और ज्यादा व्यवहारिक चीज़ों से युक्त कर लो! क्योंकि अतीत, वर्तमान और भविष्य में ऐसे बहुत-से लोग जो मसीह के सम्पर्क में आए, वे असफल हो गए हैं और असफल हो जाएँगे; वे सभी फरीसियों की भूमिका निभाते हैं। तुम लोगों की असफलता का क्या कारण है? इसका सीधा-सा कारण यह है कि तुम्हारी धारणाओं में एक ऐसा परमेश्वर है जो बहुत ऊंचा और विराट है और प्रशंसा के योग्य है। परन्तु सत्य वह नहीं होता जो मनुष्य चाहता है। न केवल मसीह ऊँचा और विराट नहीं है, बल्कि वह विशेष रूप से छोटा है; वह न केवल मनुष्य है बल्कि वह एक सामान्य मनुष्य है; वह न केवल स्वर्ग में आरोहित नहीं हो सकता, बल्कि वह पृथ्वी पर भी स्वतन्त्रता से नहीं घूम सकता। इसीलिए लोग उसके साथ सामान्य मनुष्य जैसा व्यवहार करते हैं; जब वे उसके साथ होते हैं तो उसके साथ बेतकल्लुफ़ी भरा व्यवहार करते हैं, और उसके साथ लापरवाही से बात करते हैं, और तब भी पूरे समय "सच्चे मसीह" के आने का इन्तज़ार करते रहते हैं। जो मसीह पहले ही आ चुका है उसे तुम लोग एक साधारण मनुष्य समझते हो और उसके वचनों को भी एक साधारण मनुष्य के शब्द मानते हो। इसलिए, तुमने मसीह से कुछ भी प्राप्त नहीं किया है, बल्कि अपनी कुरूपता को ही प्रकाश में पूरी तरह से उजागर कर दिया है।
मसीह के संपर्क में आने से पहले, तुम लोगों को शायद यह विश्वास हो कि तुम्हारा स्वभाव पूरी तरह से बदल चुका है, और तुम मसीह के निष्ठावान अनुयायी हो, और यह भी विश्वास हो कि तुम मसीह के आशीष पाने के सबसे ज़्यादा योग्य हो। क्योंकि तुम कई मार्गों की यात्रा कर चुके हो, बहुत सारा काम करके बहुत-सा फल प्राप्त कर चुके हो, इसलिए अंत में तुम्हें ही मुकुट मिलेगा। फिर भी, एक सच्चाई ऐसी है जिसे शायद तुम नहीं जानते: जब मनुष्य मसीह को देखता है तो मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव, उसका विद्रोह और प्रतिरोध उजागर हो जाता है। किसी अन्य अवसर की तुलना में इस अवसर पर उसका विद्रोही स्वभाव और प्रतिरोध कहीं ज्यादा पूर्ण और निश्चित रूप से उजागर होता है। मसीह मनुष्य का पुत्र है—मनुष्य का ऐसा पुत्र जिसमें सामान्य मानवता है—इसलिए मनुष्य न तो उसका सम्मान करता है और न ही उसका आदर करता है। चूँकि परमेश्वर देह में रहता है, इसलिए मनुष्य का विद्रोह पूरी तरह से और स्पष्ट विवरण के साथ प्रकाश में आ जाता है। अतः मैं कहता हूँ कि मसीह के आगमन ने मानवजाति के सारे विद्रोह को खोद निकाला है और मानवजाति के स्वभाव को बहुत ही स्पष्ट रूप से प्रकाश में ला दिया है। इसे कहते हैं "लालच देकर एक बाघ को पहाड़ के नीचे ले आना" और "लालच देकर एक भेड़िए को उसकी गुफा से बाहर ले आना।" क्या तुम लोग कह सकते हो कि तुम परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हो? क्या तुम लोग कह सकते हो कि तुम परमेश्वर के प्रति संपूर्ण आज्ञाकारिता दिखाते हो? क्या तुम लोग कह सकते हो कि तुम विद्रोही नहीं हो? कुछ लोग कहेंगेः जब भी परमेश्वर मुझे नई परिस्थिति में डालता है, तो मैं इसे स्वीकार कर लेता हूँ और कभी कोई शिकायत नहीं करता। साथ ही, मैं परमेश्वर के बारे में कोई धारणा नहीं बनाता। कुछ कहेंगेः परमेश्वर मुझे जो भी काम सौंपता है, मैं उसे अपनी पूरी योग्यता के साथ करता हूँ और कभी भी लापरवाही नहीं करता। तब मैं तुम लोगों से यह पूछता हूँ: क्या तुम सब मसीह के साथ रहते हुए उसके अनुरूप हो सकते हो? और कितने समय तक तुम सब उसके अनुरूप रहोगे? एक दिन? दो दिन? एक घंटा? दो घंटे? हो सकता है तुम्हारी आस्था प्रशंसा के योग्य हो, परन्तु तुम लोगों में कोई खास दृढ़ता नहीं है। जब तुम सचमुच में मसीह के साथ रहोगे, तो तुम्हारा दंभ और अहंकार धीरे-धीरे तुम्हारे शब्दों और कार्यों के द्वारा प्रकट होने लगेगा, और इसी प्रकार तुम्हारी अत्यधिक इच्छाएँ, अवज्ञाकारी मानसिकता और असंतुष्टि स्वतः ही उजागर हो जाएँगी। आखिरकार, तुम्हारा अहंकार बहुत ज़्यादा बड़ा हो जाएगा, जब तक कि तुम मसीह के साथ वैसे ही बेमेल नहीं हो जाते जैसे पानी और आग, और तब तुम लोगों का स्वभाव पूरी तरह से उजागर हो जायेगा। उस समय, तुम्हारी धारणाएँ पर्दे में नहीं रह सकेंगी। तुम्हारी शिकायतें भी अनायास ही बाहर आ जाएँगी, और तुम्हारी नीच मानवता पूरी तरह से उजागर हो जाएगी। फिर भी, तुम अपने विद्रोहीपन को स्वीकार करने से लगातार इनकार करते रहते हो। बल्कि तुम यह विश्वास करते रहते हो कि ऐसे मसीह को स्वीकार करना मनुष्य के लिए आसान नहीं है, वह मनुष्य के प्रति बहुत अधिक कठोर है, अगर वह कोई अधिक दयालु मसीह होता तो तुम पूरी तरह से उसे समर्पित हो जाते। तुम लोग यह विश्वास करते हो कि तुम्हारे विद्रोह का एक जायज़ कारण है, तुम केवल तभी मसीह के विरूद्ध विद्रोह करते हो जब वह तुम लोगों को हद से ज़्यादा मजबूर कर देता है। तुमने कभी यह एहसास नहीं किया कि तुम मसीह को परमेश्वर नहीं मानते, न ही तुम्हारा इरादा उसकी आज्ञा का पालन करने का है। बल्कि, तुम ढिठाई से यह आग्रह करते हो कि मसीह तुम्हारे मन के अनुसार काम करे, और यदि वह एक भी कार्य ऐसा करे जो तुम्हारे मन के अनुकूल नहीं हो तो तुम लोग मान लेते हो कि वह परमेश्वर नहीं, मनुष्य है। क्या तुम लोगों में से बहुत से लोग ऐसे ही नहीं हैं जिन्होंने उसके साथ इस तरह से विवाद किया है? आख़िरकार तुम लोग किसमें विश्वास करते हो? और तुम लोग उसे किस तरह से खोजते हो?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'वे सभी जो मसीह से असंगत हैं निश्चित ही परमेश्वर के विरोधी हैं' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 305
तुम सब हमेशा मसीह को देखने की कामना करते हो, लेकिन मैं तुम सबसे विनती करता हूँ कि तुम अपने आपको इतना ऊँचा न समझो; हर कोई मसीह को देख सकता है, परन्तु मैं कहता हूँ कि कोई भी मसीह को देखने के लायक नहीं है। क्योंकि मनुष्य का स्वभाव बुराई, अहंकार और विद्रोह से भरा हुआ है, इस समय तुम मसीह को देखोगे तो तुम्हारा स्वभाव तुम्हें बर्बाद कर देगा और बेहद तिरस्कृत करेगा। किसी भाई (या बहन) के साथ तुम्हारी संगति शायद तुम्हारे बारे में बहुत कुछ न दिखाए, परन्तु जब तुम मसीह के साथ संगति करते हो तो यह इतना आसान नहीं होता। किसी भी समय, तुम्हारी धारणा जड़ पकड़ सकती है, तुम्हारा अहंकार फूटना शुरू कर सकता है, और तुम्हारा विद्रोह फलना-फूलना शुरू कर सकता है। ऐसी मानवता के साथ तुम लोग कैसे मसीह की संगति के काबिल हो सकते हो? क्या तुम उसके साथ प्रत्येक दिन के प्रत्येक पल में परमेश्वर जैसा बर्ताव कर सकते हो? क्या तुममें सचमुच परमेश्वर के प्रति समर्पण की वास्तविकता होगी? तुम सब अपने हृदय में यहोवा के रूप में एक ऊँचे परमेश्वर की आराधना करते हो, लेकिन दृश्यमान मसीह को मनुष्य समझते हो। तुम लोगों की समझ बहुत ही हीन है और तुम्हारी मानवता अत्यंत नीची है! तुम सब सदैव के लिए मसीह को परमेश्वर के रूप में मानने में असमर्थ हो; कभी-कभार ही, जब तुम्हारा मन होता है, तुम उसकी ओर लपकते हो और परमेश्वर के रूप में उसकी आराधना करने लगते हो। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुम लोग परमेश्वर के विश्वासी नहीं हो, बल्कि उन लोगों का सहभागी जत्था हो जो मसीह के विरूद्ध लड़ते हैं। ऐसे मनुष्यों को भी जो दूसरों के प्रति हमदर्दी दिखाते हैं, इसका प्रतिफल दिया जाता है। फिर भी मसीह को, जिसने तुम्हारे मध्य ऐसा कार्य किया है, न तो मनुष्य का प्रेम मिला है और न ही मनुष्य की तरफ से उसे कोई प्रतिफल या समर्पण मिला है। क्या यह दिल दुखाने वाली बात नहीं है?
हो सकता है कि परमेश्वर में अपने इतने वर्षों के विश्वास के कारण तुमने कभी किसी को कोसा न हो और न ही कोई बुरा कार्य किया हो, फिर भी अगर मसीह के साथ अपनी संगति में तुम सच नहीं बोल सकते, सच्चाई से कार्य नहीं कर सकते, या मसीह के वचन का पालन नहीं कर सकते; तो मैं कहूँगा कि तुम संसार में सबसे अधिक कुटिल और कपटी व्यक्ति। हो सकता है तुम अपने रिश्तेदारों, मित्रों, पत्नी (या पति), बेटों और बेटियों, और माता पिता के प्रति अत्यंत स्नेहपूर्ण और निष्ठावान हो, और कभी दूसरों का फायदा नहीं उठाते हो, लेकिन अगर तुम मसीह के अनुरूप नहीं पाते हो और उसके साथ समरसता के साथ व्यवहार नहीं कर पाते हो, तो भले ही तुम अपने पड़ोसियों की सहायता के लिए अपना सब कुछ खपा दो या अपने माता-पिता और घरवालों की अच्छी देखभाल करो, तब भी मैं कहूँगा कि तुम धूर्त हो, और साथ में चालाक भी हो। सिर्फ इसलिए कि तुम दूसरों के साथ अच्छा तालमेल बिठा लेते हो या कुछ अच्छे काम कर लेते हो, तो यह न सोचो कि तुम मसीह के अनुरूप हो। क्या तुम लोग सोचते हो कि तुम्हारी उदारता स्वर्ग की आशीष बटोर सकती है? क्या तुम सोचते हो कि थोड़े-से अच्छे काम कर लेना तुम्हारी आज्ञाकारिता का स्थान ले सकता है? तुम लोगों में से कोई भी निपटारा और काट-छांट स्वीकार नहीं कर पाता, और तुम सभी को मसीह की सरल मानवता को अंगीकार करने में कठिनाई होती है। फिर भी तुम सब परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता का निरंतर ढोल पीटते रहते हो। तुम्हारी इस तरह की आस्था का तुम पर उचित प्रतिकार फूटेगा। काल्पनिक भ्रमों में लिप्त होना और मसीह को देखने की इच्छा करना छोड़ दो, क्योंकि तुम सब आध्यात्मिक कद में बहुत छोटे हो, इतने कि तुम लोग उसे देखने के योग्य भी नहीं हो। जब तुम अपने विद्रोह से पूरी तरह से मुक्त हो जाओगे, और मसीह के साथ समरसता स्थापित कर लोगे, तभी परमेश्वर स्वाभाविक रूप से तुम्हारे सामने प्रकट होगा। यदि तुम काट-छांट या न्याय से गुज़रे बिना परमेश्वर को देखने जाते हो, तो तुम निश्चित तौर पर परमेश्वर के विरोधी बन जाओगे और विनाश तुम्हारी नियति बन जाएगा। मनुष्य के स्वभाव में परमेश्वर के प्रति बैर-भाव अंतर्निहित है, क्योंकि सभी मनुष्यों को शैतान के द्वारा पूरी तरह से भ्रष्ट कर दिया गया है। यदि कोई मनुष्य भ्रष्ट होते हुए परमेश्वर से संगति करने का प्रयास करे, तो यह निश्चित है कि इसका कोई अच्छा परिणाम नहीं हो सकता; मनुष्य के सारे कर्म और शब्द निश्चित तौर पर हर मोड़ पर उसकी भ्रष्टता को उजागर करेंगे; और जब वह परमेश्वर के साथ जुड़ेगा, तो उसका विद्रोह अपने सभी पहलुओं के साथ प्रकट हो जाएगा। मनुष्य अनजाने में मसीह का विरोध करता है, मसीह को धोखा देता है, और मसीह को अस्वीकार करता है; जब यह होता है तो मनुष्य और भी ज़्यादा संकट की स्थिति में आ जाता है, और यदि यह जारी रहता है, तो वह दंड का भागी बनता है।
कुछ लोग यह मान सकते हैं कि यदि परमेश्वर के साथ संगति इतनी खतरनाक है, तो बुद्धिमानी यही होगी कि परमेश्वर से दूर रहा जाए। तब, ऐसे लोगों को भला क्या हासिल होगा? क्या वे परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हो सकते हैं? निश्चित ही, परमेश्वर के साथ संगति बहुत कठिन है, परन्तु ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्य भ्रष्ट है, न कि इसलिए कि परमेश्वर मनुष्य के साथ जुड़ नहीं सकता। तुम लोगों के लिए सबसे अच्छा यह होगा कि तुम सब स्वयं को जानने की सच्चाई पर ज़्यादा ध्यान दो। तुम लोग परमेश्वर की कृपा क्यों नहीं प्राप्त कर पाए हो? तुम्हारा स्वभाव उसे घिनौना क्यों लगता है? तुम्हारे शब्द उसके अंदर जुगुप्ता क्यों उत्पन्न करते हैं? जैसे ही तुम लोग थोड़ी-सी निष्ठा दिखाते हो, तो खुद ही तुम अपनी तारीफ करने लगते हो और अपने छोटे से योगदान के लिए पुरस्कार चाहते हो; जब तुम थोड़ी-सी आज्ञाकारिता दिखाते हो तो दूसरों को नीची दृष्टि से देखते हो, और कोई छोटा-मोटा काम संपन्न करते ही तुम परमेश्वर का अनादर करने लगते हो। तुम लोग परमेश्वर का स्वागत करने के बदले में धन-संपत्ति, भेंटों और प्रशंसा की अभिलाषा करते हो। एक या दो सिक्के देते हुए भी तुम्हारा दिल दुखता है; जब तुम दस सिक्के देते हो तो तुम आशीषों की और दूसरों से विशिष्ट माने जाने की अभिलाषा करते हो। तुम लोगों जैसी मानवता के बारे में तो बात करना और सुनना भी अपमानजनक है। क्या तुम्हारे शब्दों और कार्यों में कुछ प्रशंसा योग्य है? वे जो अपने कर्तव्यों को निभाते हैं और वे जो नहीं निभाते; वे जो अगुवाई करते हैं और वे जो अनुसरण करते हैं; वे जो परमेश्वर का स्वागत करते और वे जो नहीं करते; वे जो दान देते हैं और वे जो नहीं देते; वे जो उपदेश देते हैं और वे जो वचन को ग्रहण करते हैं, इत्यादि; इस प्रकार के सभी लोग अपनी तारीफ करते हैं। क्या तुम्हें यह हास्यास्पद नहीं लगता? तुम लोग भली-भांति जानते हो कि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, फिर भी तुम परमेश्वर के अनुरूप नहीं हो सकते हो। तुम लोग भली-भांति यह जानते हुए भी कि तुम सब बिल्कुल अयोग्य हो, तुम लोग डींगें मारते रहते हो। क्या तुम्हें ऐसा महसूस नहीं होता कि तुम्हारी समझ इतनी खराब हो चुकी है कि तुम्हारे पास अब आत्म-नियंत्रण ही नहीं रहा है? इस तरह की समझ के साथ तुम लोग परमेश्वर के साथ संगति करने के योग्य कैसे हो सकते हो? क्या तुम लोगों को इस मुकाम पर अपने लिए डर नहीं लगता है? तुम्हारा स्वभाव पहले ही इतना खराब हो चुका है कि तुम परमेश्वर के अनुरूप होने में समर्थ नहीं हो। इस बात को देखते हुए, क्या तुम लोगों की आस्था हास्यास्पद नहीं है? क्या तुम्हारी आस्था बेतुकी नहीं है? तुम अपने भविष्य से कैसे निपटोगे? तुम उस मार्ग का चुनाव कैसे करोगे जिस पर तुम्हें चलना है?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'वे सभी जो मसीह से असंगत हैं निश्चित ही परमेश्वर के विरोधी हैं' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 306
मैंने बहुत सारे वचन कहे हैं, और अपनी इच्छा और अपने स्वभाव को भी व्यक्त किया है, फिर भी लोग अभी भी मुझे जानने और मुझ पर विश्वास करने में अक्षम हैं। या यह कहा जा सकता है कि लोग अभी भी मेरी आज्ञा का पालन करने में अक्षम हैं। जो बाइबल में जीते हैं, जो व्यवस्था में जीते हैं, जो सलीब पर जीते हैं, जो सिद्धांत के अनुसार जीते हैं, जो उस कार्य के मध्य जीते हैं जिसे मैं आज करता हूँ—उनमें से कौन मेरे अनुकूल है? तुम लोग सिर्फ़ आशीष और पुरस्कार पाने के बारे में ही सोचते हो, पर कभी यह नहीं सोचा कि मेरे अनुकूल वास्तव में कैसे बनो, या अपने को मेरे विरुद्ध होने से कैसे रोको। मैं तुम लोगों से बहुत निराश हूँ, क्योंकि मैंने तुम लोगों को बहुत अधिक दिया है, जबकि मैंने तुम लोगों से बहुत कम हासिल किया है। तुम लोगों का छल, तुम लोगों का घमंड, तुम लोगों का लालच, तुम लोगों की फालतू इच्छाएँ, तुम लोगों का धोखा, तुम लोगों की अवज्ञा—इनमें से कौन-सी चीज़ मेरी नज़र से बच सकती है? तुम लोग मेरे प्रति असावधान हो, मुझे मूर्ख बनाते हो, मेरा अपमान करते हो, मुझे फुसलाते हो, मुझसे ज़बरन वसूली करते हो, बलिदानों के लिए मुझसे ज़बरदस्ती करते हो—ऐसे दुष्कर्म मेरी सज़ा से कैसे बचकर निकल सकते हैं? ये सब दुष्कर्म मेरे साथ तुम लोगों की शत्रुता का प्रमाण हैं, और तुम लोगों की मेरे साथ अनुकूलता न होने का प्रमाण हैं। तुम लोगों में से प्रत्येक अपने को मेरे साथ बहुत अनुकूल समझता है, परंतु यदि ऐसा होता, तो फिर यह अकाट्य प्रमाण किस पर लागू होगा? तुम लोगों को लगता है कि तुम्हारे अंदर मेरे प्रति बहुत ईमानदारी और निष्ठा है। तुम लोग सोचते हो कि तुम बहुत ही रहमदिल, बहुत ही करुणामय हो और तुमने मेरे प्रति बहुत समर्पण किया है। तुम लोग सोचते हो कि तुम लोगों ने मेरे लिए पर्याप्त से अधिक किया है। लेकिन क्या तुम लोगों ने कभी इसे अपने कामों से मिलाकर देखा है? मैं कहता हूँ, तुम लोग बहुत ही घमंडी, बहुत ही लालची, बहुत ही लापरवाह हो; और जिन चालबाज़ियों से तुम मुझे मूर्ख बनाते हो, वे बहुत शातिर हैं, और तुम्हारे इरादे और तरीके बहुत घृणित हैं। तुम लोगों की वफ़ादारी बहुत ही थोड़ी है, तुम्हारी ईमानदारी बहुत ही कम है, और तुम्हारी अंतरात्मा तो और अधिक क्षुद्र है। तुम लोगों के हृदय में बहुत ही अधिक द्वेष है, और तुम्हारे द्वेष से कोई नहीं बचा है, यहाँ तक कि मैं भी नहीं। तुम लोग अपने बच्चों या अपने पति या आत्म-रक्षा के लिए मुझे बाहर निकाल देते हो। मेरी चिंता करने के बजाय तुम लोग अपने परिवार, अपने बच्चों, अपनी हैसियत, अपने भविष्य और अपनी संतुष्टि की चिंता करते हो। तुम लोगों ने बातचीत या कार्य करते समय कभी मेरे बारे में सोचा है? ठंड के दिनों में तुम लोगों के विचार अपने बच्चों, अपने पति, अपनी पत्नी या अपने माता-पिता की तरफ मुड़ जाते हैं। गर्मी के दिनों में भी तुम सबके विचारों में मेरे लिए कोई स्थान नहीं होता। जब तुम अपना कर्तव्य निभाते हो, तब तुम अपने हितों, अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा, अपने परिवार के सदस्यों के बारे में ही सोच रहे होते हो। तुमने कब मेरे लिए क्या किया है? तुमने कब मेरे बारे में सोचा है? तुमने कब अपने आप को, हर कीमत पर, मेरे लिए और मेरे कार्य के लिए समर्पित किया है? मेरे साथ तुम्हारी अनुकूलता का प्रमाण कहाँ है? मेरे साथ तुम्हारी वफ़ादारी की वास्तविकता कहाँ है? मेरे साथ तुम्हारी आज्ञाकारिता की वास्तविकता कहाँ है? कब तुम्हारे इरादे केवल मेरे आशीष पाने के लिए नहीं रहे हैं? तुम लोग मुझे मूर्ख बनाते और धोखा देते हो, तुम लोग सत्य के साथ खेलते हो, तुम सत्य के अस्तित्व को छिपाते हो, और सत्य के सार को धोखा देते हो। इस तरह मेरे ख़िलाफ़ जाने से भविष्य में क्या चीज़ तुम लोगों की प्रतीक्षा कर रही है? तुम लोग केवल एक अज्ञात परमेश्वर के साथ अनुकूलता की खोज करते हो, और मात्र एक अज्ञात विश्वास की खोज करते हो, लेकिन तुम मसीह के साथ अनुकूल नहीं हो। क्या तुम्हारी दुष्टता के लिए भी वही प्रतिफल नहीं मिलेगा, जो दुष्ट को मिलता है? उस समय तुम लोगों को एहसास होगा कि जो कोई मसीह के अनुकूल नहीं होता, वह कोप के दिन से बच नहीं सकता, और तुम लोगों को पता चलेगा कि जो मसीह के शत्रु हैं, उन्हें कैसा प्रतिफल दिया जाएगा। जब वह दिन आएगा, तो परमेश्वर में विश्वास के कारण धन्य होने और स्वर्ग में प्रवेश पाने के तुम लोगों के सभी सपने चूर-चूर हो जाएँगे। परंतु यह उनके लिए नहीं है, जो मसीह के अनुकूल हैं। यद्यपि उन्होंने बहुत-कुछ खोया है, यद्यपि उन्होंने बहुत कठिनाइयों का सामना किया है, तथापि वे उस सब उत्तराधिकार को प्राप्त करेंगे, जो मैं मानवजाति को वसीयत के रूप में दूँगा। अंततः तुम लोग समझ जाओगे कि सिर्फ़ मैं ही धार्मिक परमेश्वर हूँ, और केवल मैं ही मानवजाति को उसकी खूबसूरत मंज़िल तक ले जाने में सक्षम हूँ।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'तुम्हें मसीह के साथ अनुकूलता का तरीका खोजना चाहिए' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 307
परमेश्वर ने मनुष्यों को बहुत-कुछ सौंपा है और अनगिनत प्रकार से उनके प्रवेश के बारे में भी संबोधित किया है। परंतु चूँकि लोगों की क्षमता बहुत ख़राब है, इसलिए परमेश्वर के बहुत सारे वचन जड़ पकड़ने में असफल रहे हैं। इस ख़राब क्षमता के विभिन्न कारण हैं, जैसे कि मनुष्य के विचार और नैतिकता का भ्रष्ट होना, और उचित पालन-पोषण की कमी; सामंती अंधविश्वास, जिन्होंने मनुष्य के हृदय को बुरी तरह से जकड़ लिया है; दूषित और पतनशील जीवन-शैलियाँ, जिन्होंने मनुष्य के हृदय के गहनतम कोनों में कई बुराइयाँ स्थापित कर दी हैं; सांस्कृतिक ज्ञान की सतही समझ, लगभग अठानवे प्रतिशत लोगों में सांस्कृतिक ज्ञान की शिक्षा की कमी है और इतना ही नहीं, बहुत कम लोग उच्च स्तर की सांस्कृतिक शिक्षा प्राप्त करते हैं। इसलिए, मूल रूप से लोगों को पता नहीं है कि परमेश्वर या पवित्रात्मा का क्या अर्थ है, उनके पास परमेश्वर की सामंती अंधविश्वासों से प्राप्त केवल एक धुँधली और अस्पष्ट तसवीर है। वे घातक प्रभाव, जो हज़ारों वर्षो की "राष्ट्रवाद की बुलंद भावना" ने मनुष्य के हृदय में गहरे छोड़े हैं, और साथ ही सामंती सोच, जिसके द्वारा लोग बिना किसी स्वतंत्रता के, बिना महत्वाकांक्षा या आगे बढ़ने की इच्छा के, बिना प्रगति की अभिलाषा के, बल्कि निष्क्रिय और प्रतिगामी रहने और गुलाम मानसिकता से घिरे होने के कारण बँधे और जकड़े हुए हैं, इत्यादि—इन वस्तुगत कारकों ने मनुष्यजाति के वैचारिक दृष्टिकोण, आदर्शों, नैतिकता और स्वभाव पर अमिट रूप से गंदा और भद्दा प्रभाव छोड़ा है। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे मनुष्य आतंक की अँधेरी दुनिया में जी रहे हैं, और उनमें से कोई भी इस दुनिया के पार नहीं जाना चाहता, और उनमें से कोई भी किसी आदर्श दुनिया में जाने के बारे में नहीं सोचता; बल्कि, वे अपने जीवन की सामान्य स्थिति से संतुष्ट हैं, बच्चे पैदा करने और पालने-पोसने, उद्यम करने, पसीना बहाने, अपना रोजमर्रा का काम करने; एक आरामदायक और खुशहाल परिवार के सपने देखने, और दांपत्य प्रेम, नाती-पोतों, अपने अंतिम समय में आनंद के सपने देखने में दिन बिताते हैं और शांति से जीवन जीते हैं...। सैकड़ों-हजारों साल से अब तक लोग इसी तरह से अपना समय व्यर्थ गँवा रहे हैं, कोई पूर्ण जीवन का सृजन नहीं करता, सभी इस अँधेरी दुनिया में केवल एक-दूसरे की हत्या करने के लिए तत्पर हैं, प्रतिष्ठा और संपत्ति की दौड़ में और एक-दूसरे के प्रति षड्यंत्र करने में संलग्न हैं। किसने कब परमेश्वर की इच्छा जानने की कोशिश की है? क्या किसी ने कभी परमेश्वर के कार्य पर ध्यान दिया है? एक लंबे अरसे से मानवता के सभी अंगों पर अंधकार के प्रभाव ने कब्ज़ा जमा लिया है और वही मानव-प्रकृति बन गए हैं, और इसलिए परमेश्वर के कार्य को करना काफी कठिन हो गया है, यहाँ तक कि जो परमेश्वर ने लोगों को आज सौंपा है, उस पर वे ध्यान भी देना नहीं चाहते। कुछ भी हो, मैं विश्वास करता हूँ कि मेरे द्वारा ये वचन बोलने का लोग बुरा नहीं मानेंगे, क्योंकि मैं हज़ारों वर्षों के इतिहास के बारे में बात कर रहा हूँ। इतिहास के बारे में बात करने का अर्थ है तथ्य, और इससे भी अधिक, घोटाले, जो सबके सामने प्रत्यक्ष हैं, इसलिए तथ्य के विपरीत बात कहने का क्या अर्थ है? परंतु मैं यह भी विश्वास करता हूँ कि इन शब्दों को देख-सुनकर समझदार लोग जागृत होंगे और प्रगति करने का प्रयास करेंगे। परमेश्वर आशा करता है कि मनुष्य शांति और संतोष के साथ जीने और कार्य करने तथा परमेश्वर से प्रेम करने का कार्य एक-साथ कर सकते हैं। यह परमेश्वर की इच्छा है कि सारी मनुष्यजाति विश्राम में प्रवेश करे; इससे भी अधिक, परमेश्वर की इच्छा यह है कि संपूर्ण भूमि परमेश्वर की महिमा से भर जाए। यह शर्म की बात है कि मनुष्य विस्मरण की स्थिति में डूबे और प्रसुप्त रहते हैं, उन्हें शैतान द्वारा इतनी बुरी तरह से भ्रष्ट किया गया है कि अब वे मनुष्य जैसे रहे ही नहीं। इसलिए मनुष्य के विचार, नैतिकता और शिक्षा एक महत्वपूर्ण कड़ी बनाते हैं, और सांस्कृतिक ज्ञान के प्रशिक्षण से दूसरी कड़ी बनती है, जो मनुष्यों की सांस्कृतिक क्षमता बढ़ाने और उनका आध्यात्मिक दृष्टिकोण बदलने के लिए बेहतर है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'कार्य और प्रवेश (3)' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 308
लोगों के जीवन अनुभवों में, वे प्रायः मन ही मन सोचते हैं, मैंने परमेश्वर के लिए अपने परिवार और जीविका का त्याग कर दिया है, और उसने मुझे क्या दिया है? मुझे इसमें अवश्य जोड़ना, और इसकी पुष्टि करनी चाहिए—क्या मैंने हाल ही में कोई आशीष प्राप्त किया है? मैंने इस दौरान बहुत कुछ दिया है, मैं बहुत दौड़ा-भागा हूँ, मैंने बहुत अधिक सहा है—क्या परमेश्वर ने बदले में मुझे कोई प्रतिज्ञाएँ दी हैं? क्या उसने मेरे अच्छे कर्म याद रखे हैं? मेरा अंत क्या होगा? क्या मैं परमेश्वर के आशीष प्राप्त कर सकता हूँ? ... प्रत्येक व्यक्ति अपने हृदय में निरंतर ऐसा गुणा-भाग करता है, और वे परमेश्वर से माँगें करते हैं जिनमें उनके कारण, महत्वाकांक्षाएँ, तथा लेन-देन की मानसिकता होती है। कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य अपने हृदय में लगातार परमेश्वर की परीक्षा लेता रहता है, परमेश्वर के बारे में लगातार मनसूबे बनाता रहता है, और स्वयं अपने व्यक्तिगत मनोरथ के पक्ष में परमेश्वर के साथ तर्क-वितर्क करता रहता है, और परमेश्वर से कुछ न कुछ कहलवाने की कोशिश करता है, यह देखने के लिए कि परमेश्वर उसे वह दे सकता है या नहीं जो वह चाहता है। परमेश्वर का अनुसरण करने के साथ ही साथ, मनुष्य परमेश्वर से परमेश्वर के समान बर्ताव नहीं करता है। मनुष्य ने परमेश्वर के साथ हमेशा सौदेबाजी करने की कोशिश की है, उससे अनवरत माँगें की हैं, और यहाँ तक कि एक इंच देने के बाद एक मील लेने की कोशिश करते हुए, हर क़दम पर उस पर दबाव भी डाला है। परमेश्वर के साथ सौदबाजी करने की कोशिश करते हुए साथ ही साथ, मनुष्य उसके साथ तर्क-वितर्क भी करता है, और यहाँ तक कि ऐसे लोग भी हैं जो, जब परीक्षाएँ उन पर पड़ती हैं या जब वे अपने आप को किन्हीं निश्चित स्थितियों में पाते हैं, तो प्रायः कमज़ोर, निष्क्रिय और अपने कार्य में सुस्त पड़ जाते हैं, और परमेश्वर के बारे में शिकायतों से भरे होते हैं। मनुष्य ने जब पहले-पहल परमेश्वर में विश्वास करना आरंभ किया था, उसी समय से मनुष्य ने परमेश्वर को एक अक्षय पात्र, एक स्विस आर्मी चाकू माना है, और अपने आपको परमेश्वर का सबसे बड़ा साहूकार माना है, मानो परमेश्वर से आशीष और प्रतिज्ञाएँ प्राप्त करने की कोशिश करना उसका जन्मजात अधिकार और कर्तव्य है, जबकि परमेश्वर का दायित्व मनुष्य की रक्षा और देखभाल करना, और उसे भरण-पोषण देना है। ऐसी है "परमेश्वर में विश्वास" की मूलभूत समझ, उन सब लोगों की जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और ऐसी है परमेश्वर में विश्वास की अवधारणा की उनकी गहनतम समझ। मनुष्य की प्रकृति के सार से लेकर उसके व्यक्तिपरक अनुसरण तक, ऐसा कुछ भी नहीं है जो परमेश्वर के भय से संबंधित हो। परमेश्वर में विश्वास करने में मनुष्य के लक्ष्य का परमेश्वर की आराधना के साथ कोई लेना-देना संभवतः नहीं हो सकता है। कहने का तात्पर्य यह, मनुष्य ने न कभी यह विचार किया और न समझा कि परमेश्वर में विश्वास करने के लिए परमेश्वर का भय मानने और आराधना करने की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थितियों के आलोक में, मनुष्य का सार स्पष्ट है। यह सार क्या है? यह सार यह है कि मनुष्य का हृदय द्वेषपूर्ण है, छल और कपट रखता है, निष्पक्षता और धार्मिकता और उससे जो सकारात्मक है प्रेम नहीं करता है, और यह तिरस्करणीय और लोभी है। मनुष्य का हृदय परमेश्वर के लिए और अधिक बंद नहीं हो सकता है; उसने इसे परमेश्वर को बिल्कुल भी नहीं दिया है। परमेश्वर ने मनुष्य का सच्चा हृदय कभी नहीं देखा है, न ही उसकी मनुष्य द्वारा कभी आराधना की गई है। परमेश्वर चाहे जितनी बड़ी कीमत चुकाए, या वह चाहे जितना अधिक कार्य करे, या वह मनुष्य का चाहे जितना भरण-पोषण करे, मनुष्य इस सबके प्रति अंधा, और सर्वथा उदासीन ही बना रहता है। मनुष्य ने कभी परमेश्वर को अपना हृदय नहीं दिया है, वह केवल स्वयं ही अपने हृदय का ध्यान रखना, स्वयं अपने निर्णय लेना चाहता है—जिसका निहितार्थ यह है कि मनुष्य परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग का अनुसरण करना, या परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं का पालन करना नहीं चाहता है, न ही वह परमेश्वर के रूप में परमेश्वर की आराधना करना चाहता है। ऐसी है आज मनुष्य की दशा।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 309
क्या बहुत से लोग इसलिए परमेश्वर का विरोध नहीं करते और पवित्र आत्मा के कार्य में इसलिए बाधा नहीं डालते क्योंकि वे परमेश्वर के विभिन्न और विविधतापूर्ण कार्यों को नहीं जानते हैं, और इसके अलावा, क्योंकि वे केवल चुटकीभर ज्ञान और सिद्धांत से संपन्न होते हैं जिससे वे पवित्र आत्मा के कार्य को मापते हैं? यद्यपि इस प्रकार के लोगों का अनुभव केवल सतही होता है, किंतु वे घमंडी और आसक्त प्रकृति के होते हैं और वे पवित्र आत्मा के कार्य को अवमानना से देखते हैं, पवित्र आत्मा के अनुशासन की उपेक्षा करते हैं और इसके अलावा, पवित्र आत्मा के कार्यों की "पुष्टि" करने के लिए अपने पुराने तुच्छ तर्कों का उपयोग करते हैं। वे दिखावा भी करते हैं, और अपनी शिक्षा और पांडित्य को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त होते हैं, और उन्हें यह भी भरोसा रहता है कि वे संसार भर में यात्रा करने में सक्षम हैं। क्या ये ऐसे लोग नहीं हैं जो पवित्र आत्मा द्वारा तिरस्कृत और अस्वीकृत कर दिए गए हैं और क्या ये नए युग के द्वारा हटा नहीं दिए जाएँगे? क्या ये वही अज्ञानी और अल्पसूचित घृणित लोग नहीं हैं जो परमेश्वर के सामने आते हैं और खुलेआम उसका विरोध करते हैं, जो केवल यह दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि वे कितने मेधावी हैं? बाइबल के अल्प ज्ञान के साथ, वे संसार के "शैक्षणिक समुदाय" में निरंकुश आचरण करने की कोशिश करते हैं, और केवल एक सतही सिद्धांत के साथ लोगों को सिखाते हुए, वे पवित्र आत्मा के कार्य को पलटने का प्रयत्न करते हैं, और इसे अपने खुद के विचारों की प्रक्रिया के इर्दगिर्द घुमाने का प्रयास करते हैं। अपनी अदूरदर्शिता के कारण वे एक ही झलक में परमेश्वर के 6,000 सालों के कार्यों को देखने की कोशिश करते हैं। इन लोगों के पास समझ नाम की कोई चीज ही नहीं है! वास्तव में, परमेश्वर के बारे में लोगों को जितना अधिक ज्ञान होता है, वे उसके कार्य का आकलन करने में उतने ही धीमे होते हैं। इसके अलावा, वे परमेश्वर के आज के कार्य के बारे में अपने ज्ञान की बहुत कम बात करते हैं, लेकिन वे अपने निर्णय में जल्दबाज़ी नहीं करते हैं। लोग परमेश्वर के बारे में जितना कम जानते हैं, वे उतने ही अधिक घमंडी और अति आत्मविश्वासी होते हैं और उतनी ही अधिक बेहूदगी से परमेश्वर के अस्तित्व की घोषणा करते हैं—फिर भी वे केवल सिद्धांत की बात ही करते हैं और कोई भी वास्तविक प्रमाण प्रस्तुत नहीं करते। इस प्रकार के लोगों का कोई मूल्य नहीं होता है। जो लोग पवित्र आत्मा के कार्य को एक खेल की तरह देखते हैं वे ओछे लोग होते हैं! जो लोग पवित्र आत्मा के नए कार्य का सामना करते समय सचेत नहीं रहते हैं, जो अपना मुँह चलाते रहते हैं, जो मीन-नेख निकालते रहते हैं, जो पवित्र आत्मा के धार्मिक कार्यों को नकारने के अपने मिजाज पर लगाम नहीं लगाते हैं, और जो उसका अपमान और ईशनिंदा भी करते हैं—क्या इस प्रकार के अशिष्ट लोग पवित्र आत्मा के कार्य से अनभिज्ञ नहीं हैं? इसके अलावा, क्या वे अत्यंत अहंकारी, अंतर्निहित रूप से घमंडी और दुर्दमनीय लोग नहीं हैं? कोई ऐसा दिन आ भी जाए जब ऐसे लोग पवित्र आत्मा के नए कार्य को स्वीकार कर लें, तो भी परमेश्वर उन्हें सहन नहीं करेगा। न केवल वे उन्हें तुच्छ समझते हैं जो परमेश्वर के लिए कार्य करते हैं, बल्कि वे स्वयं भी परमेश्वर के विरुद्ध ईशनिंदा करते हैं, इस प्रकार के आततायी लोग, न तो इस युग में और न ही आने वाले युग में क्षमा किए जाएँगे, और वे हमेशा के लिए नरक में सड़ेंगे! इस प्रकार के अशिष्ट, आसक्त लोग परमेश्वर में भरोसा करने का दिखावा करते हैं और लोग जितने अधिक इस तरह के होते हैं, उतनी ही अधिक उनकी परमेश्वर के प्रशासकीय आदेशों का उल्लंघन करने की संभावना रहती है। क्या वे सभी अहंकारी लोग, जो स्वाभाविक रूप से उच्छृंखल हैं, और जिन्होंने कभी भी किसी का भी आज्ञापालन नहीं किया है, इसी मार्ग पर नहीं चलते हैं? क्या वे दिन प्रतिदिन परमेश्वर का विरोध नहीं करते हैं, वह परमेश्वर जो हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता है?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 310
कई हजार वर्षों की प्राचीन संस्कृति और इतिहास के ज्ञान ने मनुष्य की सोच और धारणाओं तथा उसके मानसिक दृष्टिकोण को इतना कसकर बंद कर दिया है कि वे अभेद्य और प्राकृतिक रूप से नष्ट न होने वाले[1] बन गए हैं। लोग नरक के अठारहवें घेरे में रहते हैं, मानो उन्हें परमेश्वर द्वारा काल-कोठरियों में निर्वासित कर दिया गया हो, जहाँ प्रकाश कभी दिखाई नहीं दे सकता। सामंती सोच ने लोगों का इस तरह उत्पीड़न किया है कि वे मुश्किल से साँस ले पाते हैं और उनका दम घुट रहा है। उनमें प्रतिरोध करने की थोड़ी-सी भी ताकत नहीं है; वे बस सहते हैं और चुपचाप सहते हैं...। कभी किसी ने धार्मिकता और न्याय के लिए संघर्ष करने या खड़े होने का साहस नहीं किया; लोग बस दिन-ब-दिन और साल-दर-साल सामंती नीति-शास्त्र के प्रहारों और दुर्व्यवहारों तले जानवर से भी बदतर जीवन जीते हैं। उन्होंने कभी मानव-जगत में खुशी पाने के लिए परमेश्वर की तलाश करने के बारे में नहीं सोचा। ऐसा लगता है, मानो लोगों को पीट-पीटकर इस हद तक तोड़ डाला गया है कि वे पतझड़ में गिरे पत्तों की तरह हो गए हैं, मुरझाए हुए, सूखे और पीले-भूरे रंग के। लोग लंबे समय से अपनी याददाश्त खो चुके हैं; वे असहाय-से उस नरक में रहते हैं, जिसका नाम है मानव-जगत, अंत के दिन आने का इंतज़ार करते हुए, ताकि वे इस नरक के साथ ही नष्ट हो जाएँ, मानो वह अंत का दिन, जिसके लिए वे लालायित रहते हैं, वह दिन हो, जब मनुष्य आरामदायक शांति का आनंद लेगा। सामंती नैतिकता ने मनुष्य का जीवन "अधोलोक" में पहुँचा दिया है, जिससे उसकी प्रतिरोध करने की शक्ति और भी कम हो गई है। सभी प्रकार के उत्पीड़न मनुष्य को धीरे-धीरे अधोलोक में धकेल रहे हैं, जिससे वह अधोलोक की और अधिक गहराई में पहुँच रहा है और परमेश्वर से अधिकाधिक दूर होता गया है, आज तो परमेश्वर उसके लिए पूर्णत: अजनबी बन गया है, और जब वे मिलते हैं, तो वह उससे बचने के लिए जल्दी से निकल जाता है। मनुष्य उस पर ध्यान नहीं देता और उसे एक तरफ अकेला खड़ा छोड़ देता है, जैसे कि उसने उसे कभी जाना ही न हो या उसने उसे पहले कभी देखा ही न हो। फिर भी परमेश्वर अपना अदम्य रोष उस पर प्रकट न करते हुए मानव-जीवन की लंबी यात्रा के दौरान लगातार मनुष्य की प्रतीक्षा करता रहा है और इस दौरान बिना एक भी शब्द बोले, केवल मनुष्य के पश्चात्ताप करने और नए सिरे से शुरुआत करने की मौन प्रतीक्षा करता रहा है। मनुष्य के साथ मानव-जगत की पीड़ाएँ साझा करने के लिए परमेश्वर बहुत पहले मानव-जगत में आया था। मनुष्य के साथ गुज़ारे इन तमाम वर्षों में कोई भी उसके अस्तित्व को खोज नहीं पाया है। परमेश्वर स्वयं द्वारा लाया गया कार्य पूरा करते हुए मानव-जगत की दुर्दशा का कष्ट चुपचाप सहन करता रहता है। ऐसे कष्टों से गुजरते हुए, जिनका अनुभव मनुष्य ने पहले कभी नहीं किया, वह पिता परमेश्वर की इच्छा और मानवजाति की ज़रूरतों की खातिर कष्ट सहना जारी रखता है। पिता परमेश्वर की इच्छा की खातिर, और मानवजाति की ज़रूरतों की खातिर भी, मनुष्य की उपस्थिति में वह चुपचाप उसकी सेवा में खड़ा रहा है, और मनुष्य की उपस्थिति में उसने खुद को नम्र किया है। प्राचीन संस्कृति के ज्ञान ने मनुष्य को चुपके से परमेश्वर की उपस्थिति से चुरा लिया है और मनुष्य को शैतानों के राजा और उसकी संतानों को सौंप दिया है। चार पुस्तकों और पाँच क्लासिक्स[क] ने मनुष्य की सोच और धारणाओं को विद्रोह के एक अलग युग में पहुँचा दिया है, जिससे वह उन पुस्तकों और क्लासिक्स के संकलनकर्ताओं की पहले से भी ज्यादा खुशामदी करने लगा है, और परिणामस्वरूप परमेश्वर के बारे में उसकी धारणाएँ और ज्यादा ख़राब हो गई हैं। शैतानों के राजा ने बिना मनुष्य के जाने ही उसके दृदय से निर्दयतापूर्वक परमेश्वर को बाहर निकाल दिया और फिर विजयी उल्लास के साथ खुद उस पर कब्ज़ा जमा लिया। तब से मनुष्य एक कुरूप और दुष्ट आत्मा तथा शैतानों के राजा के चेहरे के अधीन हो गया। उसके सीने में परमेश्वर के प्रति घृणा भर गई, और शैतानों के राजा की द्रोहपूर्ण दुर्भावना दिन-ब-दिन तब तक मनुष्य के भीतर फैलती गई, जब तक कि वह पूरी तरह से बरबाद नहीं हो गया। उसके पास ज़रा-भी स्वतंत्रता नहीं रह गयी और उसके पास शैतानों के राजा के चंगुल से छूटने का कोई उपाय नहीं था। उसके पास वहीं के वहीं उसकी उपस्थिति में बंदी बनने, आत्मसमर्पण करने और उसकी अधीनता में घुटने टेक देने के सिवा कोई चारा नहीं था। बहुत पहले जब मनुष्य का हृदय और आत्मा अभी शैशवावस्था में ही थे, शैतानों के राजा ने उनमें नास्तिकता के फोड़े का बीज बो दिया था, और उसे इस तरह की भ्रांतियाँ सिखा दीं, जैसे कि "विज्ञान और प्रौद्योगिकी को पढ़ो; चार आधुनिकीकरणों को समझो; और दुनिया में परमेश्वर जैसी कोई चीज़ नहीं है।" यही नहीं, वह हर अवसर पर चिल्लाता है, "आओ, हम एक सुंदर मातृभूमि का निर्माण करने के लिए अपने कठोर श्रम पर भरोसा करें," और बचपन से ही हर व्यक्ति को अपने देश की सेवा करने के लिए तैयार रहने के लिए कहता है। बेख़बर मनुष्य, इसके सामने लाया गया, और इसने बेझिझक सारा श्रेय (अर्थात् समस्त मनुष्यों को अपने हाथों में रखने का परमेश्वर का श्रेय) हथिया लिया। कभी भी इसे शर्म का बोध नहीं हुआ। इतना ही नहीं, इसने निर्लज्जतापूर्वक परमेश्वर के लोगों को पकड़ लिया और उन्हें अपने घर में खींच लिया, जहाँ वह मेज पर एक चूहे की तरह उछलकर चढ़ गया और मनुष्यों से परमेश्वर के रूप में अपनी आराधना करवाई। कैसा आततायी है! वह चीख-चीखकर ऐसी शर्मनाक और घिनौनी बातें कहता है : "दुनिया में परमेश्वर जैसी कोई चीज़ नहीं है। हवा प्राकृतिक नियमों के कारण होने वाले रूपांतरणों से चलती है; बारिश तब होती है, जब पानी भाप बनकर ठंडे तापमानों से मिलता है और बूँदों के रूप में संघनित होकर पृथ्वी पर गिरता है; भूकंप भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण पृथ्वी की सतह का हिलना है; सूखा सूरज की सतह पर नाभिक विक्षोभ के कारण हवा के शुष्क हो जाने से पड़ता है। ये प्राकृतिक घटनाएँ हैं। इस सबमें परमेश्वर का किया कौन-सा काम है?" ऐसे लोग भी हैं, जो कुछ ऐसे बयान भी देते हैं, जिन्हें स्वर नहीं दिया जाना चाहिए, जैसे कि : "मनुष्य प्राचीन काल में वानरों से विकसित हुआ था, और आज की दुनिया लगभग एक युग पहले शुरू हुए आदिम समाजों के अनुक्रमण से विकसित हुई है। किसी देश का उत्थान या पतन पूरी तरह से उसके लोगों के हाथों में है।" पृष्ठभूमि में, शैतान लोगों को उसे दीवार पर लटकाकर या मेज पर रखकर श्रद्धांजलि अर्पित करने और भेंट चढ़ाने के लिए बाध्य करता है। जब वह चिल्लाता है कि "कोई परमेश्वर नहीं है," उसी समय वह खुद को परमेश्वर के रूप में स्थापित भी करता है और परमेश्वर के स्थान पर खड़ा होकर तथा शैतानों के राजा की भूमिका ग्रहण कर अशिष्टता के साथ परमेश्वर को धरती की सीमाओं से बाहर धकेल देता है। कितनी बेहूदा बात है! यह आदमी को उससे गहरी घृणा करने के लिए बाध्य कर देता है। ऐसा लगता है कि परमेश्वर और वह कट्टर दुश्मन हैं, और दोनों सह-अस्तित्व में नहीं रह सकते। वह व्यवस्था की पहुँच से बाहर आज़ाद घूमता है[2] और परमेश्वर को दूर भगाने की योजना बनाता है। ऐसा है यह शैतानों का राजा! इसके अस्तित्व को कैसे बरदाश्त किया जा सकता है? यह तब तक चैन से नहीं बैठेगा, जब तक परमेश्वर के काम को ख़राब नहीं कर देता और उसे पूरा खंडहर[3] नहीं बना देता, मानो वह अंत तक परमेश्वर का विरोध करना चाहता हो, जब तक कि या तो मछली न मर जाए या जाल न टूट जाए। वह जानबूझकर खुद को परमेश्वर के ख़िलाफ़ खड़ा कर लेता है और उसके करीब आता जाता है। इसका घिनौना चेहरा बहुत पहले से पूरी तरह से बेनक़ाब हो गया है, जो अब आहत और क्षत-विक्षत[4] है और एक खेदजनक स्थिति में है, फिर भी वह परमेश्वर से नफ़रत करने से बाज़ नहीं आएगा, मानो परमेश्वर को एक कौर में निगलकर ही वह अपने दिल में बसी घृणा से मुक्ति पा सकेगा। परमेश्वर के इस शत्रु को हम कैसे बरदाश्त कर सकते हैं! केवल इसके उन्मूलन और पूर्ण विनाश से ही हमारे जीवन की इच्छा फलित होगी। इसे उच्छृंखल रूप से कैसे दौड़ते फिरने दिया जा सकता है? यह मनुष्य को इस हद तक भ्रष्ट कर चुका है कि मनुष्य स्वर्ग सूर्य को नहीं जानता, और वह अचेत और भावनाशून्य हो गया है। मनुष्य ने सामान्य मानवीय विवेक खो दिया है। शैतान को नष्ट और भस्म करने के लिए क्यों नहीं हम अपनी पूरी हस्ती का बलिदान कर दें, ताकि भविष्य की सारी चिंताएँ दूर कर सकें और परमेश्वर के कार्य को जल्दी से अभूतपूर्व भव्यता तक पहुँचने दें? बदमाशों का यह गिरोह मनुष्यों की दुनिया में आ गया है और यहाँ उथल-पुथल मचा दी है। वे सभी मनुष्यों को एक खड़ी चट्टान की कगार पर ले आए हैं और गुप्त रूप से उन्हें वहाँ से धकेलकर टुकड़े-टुकड़े करने की योजना बना रहे हैं, ताकि फिर वे उनके शवों को निगल सकें। वे व्यर्थ ही परमेश्वर की योजना को खंडित करने और उसके साथ जुआ खेलकर पासे की एक ही चाल में सब-कुछ दाँव पर लगाने[5] की आशा करते हैं। यह किसी भी तरह से आसान नहीं है! अंतत: शैतानों के राजा के लिए सलीब तैयार कर दिया गया है, जो सबसे घृणित अपराधों का दोषी है। परमेश्वर सलीब का नहीं है। वह पहले ही शैतान के लिए उसे किनारे रख चुका है। परमेश्वर अब से बहुत पहले ही विजयी होकर उभर चुका है और अब मानवजाति के पापों पर दुख महसूस नहीं करता, लेकिन वह समस्त मानवजाति के लिए उद्धार लाएगा।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'कार्य और प्रवेश (7)' से उद्धृत
फुटनोट :
1. "प्राकृतिक रूप से नष्ट न होने वाले" का प्रयोग यहाँ व्यंग्य के रूप में किया गया है, जिसका अर्थ है कि लोग अपने ज्ञान, संस्कृति और आध्यात्मिक दृष्टिकोण में कठोर हैं।
2. "व्यवस्था की पहुँच से बाहर आज़ाद घूमता है" इंगित करता है कि शैतान उन्मत्त होकर आपे से बाहर हो जाता है।
3. "पूरा खंडहर" बताता है कि कैसे उस शैतान का हिंसक व्यवहार देखने में असहनीय है।
4. "आहत और क्षत-विक्षत" शैतानों के राजा के बदसूरत चेहरे के बारे में बताता है।
5. "पासे की एक ही चाल में सब-कुछ दाँव पर लगाने" का अर्थ है अंत में जीतने की उम्मीद में अपना सारा धन एक ही दाँव पर लगा देना। यह शैतान की भयावह और कुटिल योजनाओं के लिए एक रूपक है। इस अभिव्यक्ति का प्रयोग उपहास में किया जाता है।
क. चार पुस्तकें और पाँच क्लासिक्स चीन में कन्फ्यूशीवाद की प्रामाणिक किताबें हैं।
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 311
ऊपर से नीचे तक और शुरू से अंत तक शैतान परमेश्वर के कार्य को बाधित करता रहा है और उसके विरोध में काम करता रहा है। "प्राचीन सांस्कृतिक विरासत", मूल्यवान "प्राचीन संस्कृति के ज्ञान", "ताओवाद और कन्फ्यूशीवाद की शिक्षाओं" और "कन्फ्यूशियन क्लासिक्स और सामंती संस्कारों" की इस सारी चर्चा ने मनुष्य को नरक में पहुँचा दिया है। उन्नत आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ-साथ अत्यधिक विकसित उद्योग, कृषि और व्यवसाय कहीं नज़र नहीं आते। इसके बजाय, यह सिर्फ़ प्राचीन काल के "वानरों" द्वारा प्रचारित सामंती संस्कारों पर जोर देता है, ताकि परमेश्वर के कार्य को जानबूझकर बाधित कर सके, उसका विरोध कर सके और उसे नष्ट कर सके। न केवल इसने आज तक मनुष्य को सताना जारी रखा है, बल्कि वह उसे पूरे का पूरा निगल[1] भी जाना चाहता है। सामंतवाद की नैतिक और आचार-विचार विषयक शिक्षाओं के प्रसारण और प्राचीन संस्कृति के ज्ञान की विरासत ने लंबे समय से मनुष्य को संक्रमित किया है और उन्हें छोटे-बड़े शैतानों में बदल दिया है। कुछ ही लोग हैं, जो ख़ुशी से परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, और कुछ ही लोग हैं, जो उसके आगमन का उल्लासपूर्वक स्वागत करते हैं। समस्त मानवजाति का चेहरा हत्या के इरादे से भर गया है, और हर जगह हत्यारी साँस हवा में व्याप्त है। वे परमेश्वर को इस भूमि से निष्कासित करना चाहते हैं; हाथों में चाकू और तलवारें लिए वे परमेश्वर का "विनाश" करने के लिए खुद को युद्ध के विन्यास में व्यवस्थित करते हैं। शैतान की इस सारी भूमि पर, जहाँ मनुष्य को लगातार सिखाया जाता है कि कहीं कोई परमेश्वर नहीं है, मूर्तियाँ फैली हुई हैं, और ऊपर हवा जलते हुए कागज और धूप की वमनकारी गंध से तर है, इतनी घनी कि दम घुटता है। यह उस कीचड़ की बदबू की तरह है, जो जहरीले सर्प के कुलबुलाते समय ऊपर उठती है, जिससे व्यक्ति उलटी किए बिना नहीं रह सकता। इसके अलावा, वहाँ अस्पष्ट रूप से दुष्ट दानवों के मंत्रोच्चार की ध्वनि सुनी जा सकती है, जो दूर नरक से आती हुई प्रतीत होती है, जिसे सुनकर आदमी काँपे बिना नहीं रह सकता। इस देश में हर जगह इंद्रधनुष के सभी रंगों वाली मूर्तियाँ रखी हैं, जिन्होंने इस देश को कामुक आनंद की दुनिया में बदल दिया है, और शैतानों का राजा दुष्टतापूर्वक हँसता रहता है, मानो उसका नीचतापूर्ण षड्यंत्र सफल हो गया हो। इस बीच, मनुष्य पूरी तरह से बेखबर रहता है, और उसे यह भी पता नहीं कि शैतान ने उसे पहले ही इस हद तक भ्रष्ट कर दिया है कि वह बेसुध हो गया है और उसने हार में अपना सिर लटका दिया है। शैतान चाहता है कि एक ही झपट्टे में परमेश्वर से संबंधित सब-कुछ साफ़ कर दे, और एक बार फिर उसे अपवित्र कर उसका हनन कर दे; वह उसके कार्य को टुकड़े-टुकड़े करने और उसे बाधित करने का इरादा रखता है। वह कैसे परमेश्वर को समान दर्जा दे सकता है? कैसे वह पृथ्वी पर मनुष्यों के बीच अपने काम में परमेश्वर का "हस्तक्षेप" बरदाश्त कर सकता है? कैसे वह परमेश्वर को उसके घिनौने चेहरे को उजागर करने दे सकता है? शैतान कैसे परमेश्वर को अपने काम को अव्यवस्थित करने की अनुमति दे सकता है? क्रोध के साथ भभकता यह शैतान कैसे परमेश्वर को पृथ्वी पर अपने शाही दरबार पर नियंत्रण करने दे सकता है? कैसे वह स्वेच्छा से परमेश्वर के श्रेष्ठतर सामर्थ्य के आगे झुक सकता है? इसके कुत्सित चेहरे की असलियत उजागर की जा चुकी है, इसलिए किसी को पता नहीं है कि वह हँसे या रोए, और यह बताना वास्तव में कठिन है। क्या यही इसका सार नहीं है? अपनी कुरूप आत्मा के बावजूद वह यह मानता है कि वह अविश्वसनीय रूप से सुंदर है। यह सहअपराधियों का गिरोह![2] वे भोग में लिप्त होने के लिए मनुष्यों के देश में उतरते हैं और हंगामा करते हैं, और चीज़ों में इतनी हलचल पैदा कर देते हैं कि दुनिया एक चंचल और अस्थिर जगह बन जाती है और मनुष्य का दिल घबराहट और बेचैनी से भर जाता है, और उन्होंने मनुष्य के साथ इतना खिलवाड़ किया है कि उसका रूप उस क्षेत्र के एक अमानवीय जानवर जैसा अत्यंत कुरूप हो गया है, जिससे मूल पवित्र मनुष्य का आखिरी निशान भी खो गया है। इतना ही नहीं, वे धरती पर संप्रभु सत्ता ग्रहण करना चाहते हैं। वे परमेश्वर के कार्य को इतना बाधित करते हैं कि वह मुश्किल से बहुत धीरे आगे बढ़ पाता है, और वे मनुष्य को इतना कसकर बंद कर देते हैं, जैसे कि तांबे और इस्पात की दीवारें हों। इतने सारे गंभीर पाप करने और इतनी आपदाओं का कारण बनने के बाद भी क्या वे ताड़ना के अलावा किसी अन्य चीज़ की उम्मीद कर रहे हैं? राक्षस और बुरी आत्माएँ काफी समय से पृथ्वी पर अंधाधुंध विचरण कर रही हैं, और उन्होंने परमेश्वर की इच्छा और कष्टसाध्य प्रयास दोनों को इतना कसकर बंद कर दिया है कि वे अभेद्य बन गए हैं। सचमुच, यह एक घातक पाप है! ऐसा कैसे हो सकता है कि परमेश्वर चिंतित महसूस न करे? परमेश्वर कैसे क्रोधित महसूस न करे? उन्होंने परमेश्वर के कार्य में गंभीर बाधा पहुँचाई है और उसका घोर विरोध किया है : कितने विद्रोही हैं वे! यहाँ तक कि वे छोटे-बड़े राक्षस भी शेर के पीछे चलते गीदड़ों जैसा व्यवहार करते हैं और बुराई की धारा में बहते हैं, और चलते हुए गड़बड़ी पैदा करते हैं। सत्य को जानने के बावजूद उसका जानबूझकर विरोध करते हैं, ये विद्रोह के बेटे! यह ऐसा है, मानो अब जबकि नरक का राजा राजसी सिंहासन पर चढ़ गया है, तो वे दंभी और बेपरवाह हो गए हैं और अन्य सभी की अवमानना करने लगे हैं। उनमें से कितने सत्य की खोज करते हैं और धार्मिकता का पालन करते हैं? वे सभी जानवर हैं, जो सूअरों और कुत्तों से बेहतर नहीं हैं, वे गोबर के एक ढेर के बीच में बदबूदार मक्खियों के एक समूह के ऊपर दंभपूर्ण आत्म-बधाई में अपने सिर हिलाते हैं और हर तरह का उपद्रव भड़काते[3] हैं। उनका मानना है कि नरक का उनका राजा सबसे बड़ा राजा है, और इतना भी नहीं जानते कि वे खुद बदबूदार मक्खियों से ज्यादा कुछ नहीं हैं। और फिर भी, वे अपने माता-पिता रूपी सूअरों और कुत्तों की ताकत का लाभ उठाकर परमेश्वर के अस्तित्व को बदनाम करते हैं। वे तुच्छ मक्खियाँ मानती हैं कि उनके माता-पिता बड़े-बड़े दाँतों वाली व्हेल[4] की तरह विशाल हैं। वे इतना भी नहीं जानते कि वे खुद बहुत छोटे हैं, और उनके माता-पिता उनसे लाखों गुना बड़े गंदे सूअर और कुत्ते हैं। अपनी नीचता से अनजान वे अंधाधुंध दौड़ने के लिए उन सूअरों और कुत्तों द्वारा छोड़ी गई सड़न की बदबू पर भरोसा करते हैं और शर्मिंदगी से बेखबर वे व्यर्थ ही भविष्य की पीढ़ियों को पैदा करने के बारे में सोचते हैं! अपनी पीठ पर हरे पंख लगाए (जो उनके परमेश्वर पर विश्वास करने के दावे का सूचक है), वे आत्मतुष्ट हैं और हर जगह अपनी सुंदरता और आकर्षण की डींग हाँकते हैं, जबकि वे चुपके से अपने शरीर की मलिनताओं को मनुष्य पर फेंक देते हैं। इतना ही नहीं, वे स्वयं से अत्यधिक प्रसन्न होते हैं, मानो वे इंद्रधनुष के रंगों वाले एक जोड़ी पंखों का इस्तेमाल कर अपनी मलिनताएँ छिपा सकते हों, और इस तरह वे सच्चे परमेश्वर के अस्तित्व पर अपना कहर बरपाते हैं (यह धार्मिक दुनिया में परदे के पीछे चलने वाली हकीकत बताता है)। मनुष्य को कैसे पता चलेगा कि मक्खी के पंख कितने भी खूबसूरत और आकर्षक हों, मक्खी एक अत्यंत छोटे प्राणी से बढ़कर कुछ नहीं है, जिसका पेट गंदगी से भरा हुआ और शरीर रोगाणुओं से ढका हुआ है? अपने माता-पिता रूपी सूअर और कुत्तों के बल पर वे देश-भर में हैवानियत में निरंकुश होकर अंधाधुंध दौड़ते हैं (यह उस तरीके को संदर्भित करता है, जिससे परमेश्वर को सताने वाले धार्मिक अधिकारी सच्चे परमेश्वर और सत्य से विद्रोह करने के लिए राष्ट्र की सरकार से मिले मजबूत समर्थन पर भरोसा करते हैं)। ऐसा लगता है, मानो यहूदी फरीसियों के भूत परमेश्वर के साथ बड़े लाल अजगर के देश में, अपने पुराने घोंसले में लौट आए हों। उन्होंने हजारों साल पहले का अपना काम फिर करते हुए उत्पीड़न का दूसरा दौर शुरू कर दिया है। पतितों के इस समूह का अंततः पृथ्वी पर नष्ट हो जाना निश्चित है! ऐसा प्रतीत होता है कि कई सहस्राब्दियों के बाद अशुद्ध आत्माएँ और भी चालाक और धूर्त हो गई हैं। वे गुप्त रूप से लगातार परमेश्वर के काम को क्षीण करने के तरीकों के बारे में सोच रही हैं। प्रचुर छल-कपट के साथ वे अपनी मातृभूमि में कई हजार साल पहले की त्रासदी की पुनरावृत्ति करना चाहती हैं और परमेश्वर को लगभग पुकार उठने की कगार तक ले आती हैं। परमेश्वर उन्हें नष्ट करने के लिए तीसरे स्वर्ग में लौट जाने से खुद को मुश्किल से रोक पाता है। परमेश्वर से प्रेम करने के लिए मनुष्य को उसकी इच्छा, उसकी खुशी और उसके दुःख को जानना चाहिए, और यह समझना चाहिए कि वह किस चीज़ से घृणा करता है। ऐसा करने से मनुष्य के प्रवेश में और तेज़ी आएगी। मनुष्य का प्रवेश जितना तेज़ होगा, उतनी ही शीघ्र परमेश्वर की इच्छा पूर्ण होगी; और उतनी ही स्पष्टता से मनुष्य शैतानों के राजा को जान पाएगा और उतना ही वह परमेश्वर के नज़दीक आएगा, ताकि उसकी इच्छा फलित हो सके।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'कार्य और प्रवेश (7)' से उद्धृत
फुटनोट :
1. "निगल" जाना शैतानों के राजा के शातिर व्यवहार के बारे में बताता है, जो लोगों को पूरी तरह से मोह लेता है।
2. "सहअपराधियों का गिरोह" का वही अर्थ है, जो "गुंडों के गिरोह" का है।
3. "हर तरह का उपद्रव भड़काते" का मतलब है कि कैसे वे लोग, जो राक्षसी किस्म के होते हैं, दंगा फैलाते हैं और परमेश्वर के कार्य को बाधित करते हैं तथा उसका विरोध करते हैं।
4. "दाँतों वाली व्हेल" का इस्तेमाल उपहास के रूप में किया गया है। यह एक रूपक है, जो बताता है कि कैसे मक्खियाँ इतनी छोटी होती हैं कि सूअर और कुत्ते भी उन्हें व्हेल की तरह विशाल नज़र आते हैं।
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 312
हज़ारों सालों से यह भूमि मलिन रही है। यह गंदी और दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए,[1] क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध ज़मीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर ज़बर्दस्त पहरेदारी[2] है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? शैतान मनुष्य के पूरे शरीर को कसकर बांध देता है, अपनी दोनों आंखों पर पर्दा डालकर, अपने होंठ मजबूती से बंद कर देता है। शैतानों के राजा ने हज़ारों वर्षों तक उपद्रव किया है, और आज भी वह उपद्रव कर रहा है और इस भुतहा शहर पर बारीक नज़र रखे हुए है, मानो यह राक्षसों का एक अभेद्य महल हो; इस बीच रक्षक कुत्ते चमकती हुई आंखों से घूरते हैं, वे इस बात से अत्यंत भयभीत रहते हैं कि कहीं परमेश्वर अचानक उन्हें पकड़कर समाप्त न कर दे, उन्हें सुख-शांति के स्थान से वंचित न कर दे। ऐसे भुतहा शहर के लोग परमेश्वर को कैसे देख सके होंगे? क्या उन्होंने कभी परमेश्वर की प्रियता और मनोहरता का आनंद लिया है? उन्हें मानव-जगत के मामलों की क्या कद्र है? उनमें से कौन परमेश्वर की उत्कट इच्छा को समझ सकता है? फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि देहधारी परमेश्वर पूरी तरह से छिपा रहता है : इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहां राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, ये लंबे समय से परमेश्वर का तिरस्कार करते रहे हैं, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज़ को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! किसने परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कियाहै? किसने परमेश्वर के कार्य के लिए अपना जीवन अर्पित किया है या रक्त बहाया है? पीढ़ी-दर-पीढ़ी, माता-पिता से लेकर बच्चों तक, गुलाम बनाए गए मनुष्य ने परमेश्वर को बड़ी बेरुखी से गुलाम बना लिया है—ऐसा कैसे हो सकता है कि यह रोष न भड़काए? दिल में हज़ारों वर्ष की घृणा भरी हुई है, हज़ारों साल का पाप दिल पर अंकित है—इससे कैसे न घृणा पैदा होगी? परमेश्वर का बदला लो, उसके शत्रु को पूरी तरह से समाप्त कर दो, उसे अब और बेकाबू न दौड़ने दो, और अब उसे मनचाहे तरीके से परेशानी मत बढ़ाने दो! यही समय है : मनुष्य अपनी सभी शक्तियाँ लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए सभी प्रयास किए हैं, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दानव के घृणित चेहरे से नकाब उतार सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अपने दर्द से उबरने और इस दुष्ट प्राचीन शैतान से मुँह मोड़ने दे। परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहां हैं? निष्पक्षता कहां है? आराम कहां है? गर्मजोशी कहां है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखेभरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए? क्यों नहीं परमेश्वर को उस धरती पर स्वतंत्रता से घूमने दिया जाए, जिसे उसने बनाया? क्यों परमेश्वर को इस हद तक खदेड़ा जाए कि उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह भी न रहे? मनुष्यों की गर्मजोशी कहां है? लोगों की स्वागत की भावना कहां है? परमेश्वर में ऐसी तड़प क्यों पैदा की जाए? परमेवर को बार-बार पुकारने पर मजबूर क्यों किया जाए? परमेश्वर को अपने प्रिय पुत्र के लिए चिंता करने पर मजबूर क्यों किया जाए? इस अंधकारपूर्ण समाज में इसके घटिया रक्षक कुत्ते परमेश्वर को उसकी बनायी दुनिया में स्वतंत्रता से आने-जाने क्यों नहीं देते? दुख-दर्द में रहने वाला इंसान यह सब क्यों नहीं समझता? तुम लोगों के लिए परमेश्वर ने बहुत यातना सही है, और अत्यंत पीड़ा के साथ अपना प्यारा पुत्र, अपना देह और रक्त तुम लोगों को सौंपा है—तो फिर तुम लोग अभी भी उससे नज़रें क्यों फेर लेते हो? हर किसी के सामने तुम लोग परमेश्वर के आगमन को अस्वीकार कर देते हो, और परमेश्वर की दोस्ती को नकार देते हो। तुम लोग इतने निर्लज्ज क्यों हो? क्या तुम लोग ऐसे अंधकारपूर्ण समाज में अन्याय सहन करना चाहते हो? तुम अपने आपको हज़ारों साल की शत्रुता से भरने के बजाय शैतानों के सरदार के "मल" से भर लेते हो?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'कार्य और प्रवेश (8)' से उद्धृत
फुटनोट :
1. "निराधार आरोप लगाते हुए" उन तरीकों को संदर्भित करता है, जिनके द्वारा शैतान लोगों को नुकसान पहुँचाता है।
2. "ज़बर्दस्त पहरेदारी" दर्शाता है कि वे तरीके, जिनके द्वारा शैतान लोगों को यातना पहुँचाता है, बहुत ही शातिर होते हैं, और लोगों को इतना नियंत्रित करते हैं कि उन्हें हिलने-डुलने की भी जगह नहीं मिलती।
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 313
यदि लोग वास्तव में मानव-जीवन के सही मार्ग को और साथ ही परमेश्वर के मानव-जाति के प्रबंधन के उद्देश्य को पूरी तरह से समझ सकें, तो वे अपने व्यक्तिगत भविष्य और भाग्य को एक खजाने के रूप में अपने दिल में थामे नहीं रहेंगे। तब वे अपने उन माता-पिता की सेवा करने में और दिलचस्पी नहीं रखेंगे, जो सूअरों और कुत्तों से भी बदतर हैं। क्या मनुष्य का भविष्य और भाग्य ठीक वर्तमान समय के पतरस के तथाकथित "माता-पिता" नहीं हैं? वे मनुष्य के मांस और रक्त की तरह हैं। देह का गंतव्य और भविष्य भला क्या होगा? क्या वह जीते-जी परमेश्वर का दर्शन करना होगा, या मृत्यु के बाद आत्मा का परमेश्वर से मिलना? क्या कल देह क्लेशों की एक बड़ी भट्ठी में नष्ट होगी, या अग्निकांड में? क्या इस तरह के प्रश्न इससे संबंधित नहीं हैं कि क्या मनुष्य की देह दुर्भाग्य सहन करेगी, या उस सबसे बड़ी खबर से पीड़ित होगी, जिससे इस वर्तमान धारा में कोई भी व्यक्ति, जिसके पास दिमाग है और जो समझदार है, सबसे ज्यादा चिंतित है? (यहाँ पीड़ा आशीर्वाद पाने से संबंध रखती है; इसका अर्थ है कि भविष्य के परीक्षण मनुष्य के गंतव्य के लिए लाभदायक हैं। दुर्भाग्य का मतलब है दृढ़ता से खड़ा न रह पाना या धोखा खाना; या इसका मतलब है व्यक्ति को दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियाँ मिलेंगी और वह आपदाओं के बीच अपना जीवन गँवा देगा, और कि व्यक्ति की आत्मा के लिए कोई उपयुक्त गंतव्य नहीं है।) यद्यपि मनुष्यों के पास ठोस विवेक है, लेकिन संभवतः वे जो सोचते हैं, वह उससे पूरी तरह मेल नहीं खाता, जिससे उनका विवेक सुसज्जित होना चाहिए। इसका कारण यह है कि वे सब अपेक्षाकृत भ्रमित हैं और आँख मूँदकर चीज़ों का अनुसरण करते हैं। उन सभी को इस बात की पूरी समझ होनी चाहिए कि उन्हें किस चीज़ में प्रवेश करना चाहिए, और विशेष रूप से, उन्हें यह पता लगाना चाहिए कि क्लेश के दौरान किस चीज़ में प्रवेश किया जाना चाहिए (यानी, भट्ठी में शुद्धिकरण के दौरान), और साथ ही, उन्हें अग्नि-परीक्षाओं के दौरान किस-किस चीज़ से लैस होना चाहिए। हमेशा अपने माता-पिता (अर्थात देह) की सेवा न करो, जो सूअरों और कुत्तों की तरह हैं, और चींटियों और कीड़ों से भी बदतर हैं। इस पर दुखी होने, इतना सोच-विचार करने और अपने दिमाग को परेशान करने से क्या फायदा? यह देह तेरी अपनी नहीं है, बल्कि यह परमेश्वर के हाथों में है, जो न केवल तुझे नियंत्रित करता है, बल्कि शैतान को भी आज्ञा देता है। (मूलतः इसका अर्थ है कि यह देह मूलत: शैतान की है। चूँकि शैतान भी परमेश्वर के हाथों में है, इसलिए इसे केवल इसी तरह से कहा जा सकता है। इसका कारण यह है कि इसे इस तरह से कहना अधिक प्रेरणास्पद है; यह बताता है कि मानव पूरी तरह से शैतान के अधिकार-क्षेत्र में नहीं, बल्कि परमेश्वर के हाथों में हैं।) तू देह के उत्पीड़न तले जी रहा है, लेकिन क्या देह तेरी है? क्या यह तेरे नियंत्रण में है? इस पर परेशान होकर क्यों अपना दिमाग ख़राब करता है? क्यों पागलों की तरह अपनी बदबूदार देह के लिए, जो लंबे समय से निंदित, शापित और अशुद्ध आत्माओं द्वारा मलिन की गई है, परमेश्वर से आग्रह करने की परेशानी उठाता है? शैतान के सहयोगियों को हमेशा अपने दिल के इतने करीब रखने की क्या ज़रूरत है? क्या तुझे चिंता नहीं है कि देह तेरे वास्तविक भविष्य को, तेरी अद्भुत आशाओं को और तेरे जीवन के वास्तविक गंतव्य को बरबाद कर सकती है?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'मानव-जाति के प्रबंधन का उद्देश्य' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 314
आज तुम लोगों ने जो समझा है, वह पूरे इतिहास में ऐसे किसी भी व्यक्ति से ऊँचा है, जिसे पूर्ण नहीं बनाया गया था। चाहे तुम लोगों का परीक्षणों का ज्ञान हो या परमेश्वर में आस्था, वे परमेश्वर के किसी भी विश्वासी से ऊँचे हैं। जिन चीजों को तुम लोग समझते हो, ये वे हैं, जिन्हें तुम लोग परिवेशों के परीक्षणों से गुजरने से पहले जान गए हो, लेकिन तुम्हारा वास्तविक आध्यात्मिक कद उनके बिलकुल भी अनुरूप नहीं है। तुम लोग जो जानते हो, वह उससे अधिक है, जिसे तुम लोग अभ्यास में लाते हो। यद्यपि तुम लोग कहते हो कि जो लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए, और आशीषों के लिए नहीं बल्कि केवल परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए, किंतु जो तुम्हारे जीवन में अभिव्यक्त होता है, वह इससे एकदम अलग है, और बहुत दूषित हो गया है। अधिकतर लोग शांति और अन्य लाभों के लिए परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। जब तक तुम्हारे लिए लाभप्रद न हो, तब तक तुम परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते, और यदि तुम परमेश्वर के अनुग्रह प्राप्त नहीं कर पाते, तो तुम खीज जाते हो। तुमने जो कहा, वो तुम्हारा असली आध्यात्मिक कद कैसे हो सकता है? जब अनिवार्य पारिवारिक घटनाओं, जैसे कि बच्चों का बीमार पड़ना, प्रियजनों का अस्पताल में भर्ती होना, फसल की ख़राब पैदावार, और परिवार के सदस्यों द्वारा उत्पीड़न, की बात आती है, तो ये अकसर घटित होने वाले रोज़मर्रा के मामले भी तुम्हारे लिए बहुत अधिक हो जाते हैं। जब ऐसी चीजें होती हैं, तो तुम दहशत में आ जाते हो, तुम नहीं जानते कि क्या करना है—और अधिकांश समय तुम परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हो। तुम शिकायत करते हो कि परमेश्वर के वचनों ने तुमको धोखा दिया है, कि परमेश्वर के कार्य ने तुम्हारा उपहास किया है। क्या तुम लोगों के ऐसे ही विचार नहीं हैं? क्या तुम्हें लगता है कि ऐसी चीजें कभी-कभार ही तुम लोगों के बीच में होती हैं? तुम लोग हर दिन इसी तरह की घटनाओं के बीच रहते हुए बिताते हो। तुम लोग परमेश्वर में अपने विश्वास की सफलता के बारे में, और परमेश्वर की इच्छा कैसे पूरी करें, इस बारे में ज़रा भी विचार नहीं करते। तुम लोगों का असली आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, यहाँ तक कि नन्हे चूज़े से भी छोटा। जब तुम्हारे पारिवारिक व्यवसाय में नुकसान होता है, तो तुम परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हो, जब तुम लोग स्वयं को परमेश्वर की सुरक्षा से रहित किसी परिवेश में पाते हो, तब भी तुम परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हो, यहाँ तक कि तुम तब भी शिकायत करते हो, जब तुम्हारे चूज़े मर जाते हैं या तुम्हारी बूढ़ी गाय बाड़े में बीमार पड़ जाती है। तुम तब शिकायत करते हो, जब तुम्हारे बेटे का शादी करने करने का समय आता है, लेकिन तुम्हारे परिवार के पास पर्याप्त धन नहीं होता; तुम मेज़बानी का कर्तव्य निभाना चाहते हो, लेकिन तुम्हारे पास पैसे नहीं होते, तब भी तुम शिकायत करते हो। तुम शिकायतों से लबालब भरे हो, और इस वजह से कभी-कभी सभाओं में भी नहीं जाते या परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते भी नहीं हो, कभी-कभी लंबे समय तक नकारात्मक भी हो जाते हो। आज तुम्हारे साथ जो कुछ भी होता है, उसका तुम्हारी संभावनाओं या भाग्य से कोई संबंध नहीं होता; ये चीजें तब भी होतीं, जब तुम परमेश्वर पर विश्वास न करते, मगर आज तुम उनका उत्तरदायित्व परमेश्वर पर डाल देते हो और जोर देकर कहते हो कि परमेश्वर ने तुम्हें हटा दिया है। परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास का क्या हाल है? क्या तुमने अपना जीवन सचमुच अर्पित किया है? यदि तुम लोगों ने अय्यूब के समान परीक्षण सहे होते, तो आज परमेश्वर का अनुसरण करने वाले तुम लोगों में से कोई भी अडिग न रह पाता, तुम सभी लोग नीचे गिर जाते। और, निस्संदेह, तुम लोगों और अय्यूब के बीच ज़मीन-आसमान का अंतर है। आज यदि तुम लोगों की आधी संपत्ति जब्त कर ली जाए, तो तुम लोग परमेश्वर के अस्तित्व को नकारने की हिम्मत कर लोगे; यदि तुम्हारा बेटा या बेटी तुमसे ले लिया जाए, तो तुम चिल्लाते हुए सड़कों पर दौड़ोगे कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है; यदि आजीविका कमाने का तुम्हारा एकमात्र रास्ता बंद हो जाए, तो तुम परमेश्वर से उसके बारे में पूछताछ करने की कोशिश करोगे; तुम पूछोगे कि मैंने तुम्हें डराने के लिए शुरुआत में इतने सारे वचन क्यों कहे। ऐसा कुछ नहीं है, जिसे तुम लोग ऐसे समय में करने की हिम्मत न करो। यह दर्शाता है कि तुम लोगों ने वास्तव में कोई सच्ची अंतर्दृष्टि नहीं पाई है, और तुम्हारा कोई वास्तविक आध्यात्मिक कद नहीं है। इसलिए, तुम लोगों में परीक्षण अत्यधिक बड़े हैं, क्योंकि तुम लोग बहुत ज्यादा जानते हो, लेकिन तुम लोग वास्तव में जो समझते हो, वह उसका हज़ारवाँ हिस्सा भी नहीं है जिससे तुम लोग अवगत हो। मात्र समझ और ज्ञान पर मत रुको; तुम लोगों ने अच्छी तरह से देखा है कि तुम लोग वास्तव में कितना अभ्यास में ला सकते हो, पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी में से कितनी तुम्हारे कठोर परिश्रम के पसीने से अर्जित की गई है, और तुम लोगों ने अपने कितने अभ्यासों में अपने स्वयं के संकल्प को साकार किया है। तुम्हें अपने आध्यात्मिक कद और अभ्यास को गंभीरता से लेना चाहिए। परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम्हें किसी के लिए भी मात्र ढोंग करने का प्रयास नहीं करना चाहिए—अंतत: तुम सत्य और जीवन प्राप्त कर सकते हो या नहीं, यह तुम्हारी स्वयं की खोज पर निर्भर करता है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'अभ्यास (3)' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 315
कुछ लोग खूबसूरती से सज-धज कर रहते हैं, लेकिन बस ऊपर-ऊपर से : बहनें अपने आपको फूलों की तरह सँवारती हैं और भाई राजकुमारों या छबीले नौजवानों की तरह कपड़े पहनते हैं। वे केवल बाहरी चीज़ों की परवाह करते हैं, जैसे कि अपने खाने-पहनने की; लेकिन अंदर से वे कंगाल होते हैं, उन्हें परमेश्वर का ज़रा-सा भी ज्ञान नहीं होता। इसके क्या मायने हो सकते हैं? और कुछ तो ऐसे हैं जो भिखारियों की तरह कपड़े पहनते हैं—वे वाकई पूर्वी एशिया के गुलाम लगते हैं! क्या तुम लोगों को सचमुच नहीं पता कि मैं तुम लोगों से क्या अपेक्षा करता हूँ? आपस में सँवाद करो : तुम लोगों ने वास्तव में क्या पाया है? तुमने इतने सालों तक परमेश्वर में आस्था रखी है, फिर भी तुम लोगों ने इतना ही प्राप्त किया है—क्या तुम लोगों को शर्म नहीं आती? क्या तुम लज्जित महसूस नहीं करते? इतने सालों से तुम सत्य मार्ग पर चलने का प्रयास कर रहे हो, फिर भी तुम्हारा आध्यात्मिक कद नगण्य है! अपने मध्य तरुण महिलाओं को देखो, कपड़ों और मेकअप में तुम बहुत ही सुंदर दिखती हो, एक-दूसरे से अपनी तुलना करती हो—और तुलना क्या करती हो? अपनी मौज-मस्ती की? अपनी माँगों की? क्या तुम्हें यह लगता है कि मैं मॉडल भर्ती करने आया हूँ? तुम में ज़रा भी शर्म नहीं है! तुम लोगों का जीवन कहाँ है? जिन चीज़ों के पीछे तुम लोग भाग रही हो, क्या वे तुम्हारी फिज़ूल की इच्छाएँ नहीं हैं? तुम्हें लगता है कि तुम बहुत सुंदर हो, भले ही तुम्हें लगता हो कि तुम बहुत सजी-सँवरी हो, लेकिन क्या तुम सच में गोबर के ढेर में जन्मा कुलबुलाता कीड़ा नहीं हो? आज खुशकिस्मती से तुम जिस स्वर्गिक आशीष का आनंद ले रही हो, वो तुम्हारे सुंदर चेहरे के कारण नहीं है, बल्कि परमेश्वर अपवाद स्वरूप तुम्हें ऊपर उठा रहा है। क्या यह तुम्हें अब भी स्पष्ट नहीं हुआ कि तुम कहाँ से आई हो? जीवन का उल्लेख होने पर, तुम अपना मुँह बंद कर लेती हो और कुछ नहीं बोलती, बुत की तरह गूँगी बन जाती हो, फिर भी तुम सजने-सँवरने की जुर्रत करती हो! फिर भी तुम्हारा झुकाव अपने चेहरे पर लाली और पावडर पोतने की तरफ रहता है! और अपने बीच छबीले नौजवानों को देखो, ये अनुशासनहीन पुरुष जो दिनभर मटरगश्ती करते फिरते हैं, बेलगाम रहते हैं और अपने चेहरे पर लापरवाही के हाव-भाव लिए रहते हैं। क्या किसी व्यक्ति को ऐसा बर्ताव करना चाहिए? तुम लोगों में से हर एक आदमी और औरत का ध्यान दिनभर कहाँ रहता है? क्या तुम लोगों को पता है कि तुम लोग अपने भरण-पोषण के लिए किस पर निर्भर हो? अपने कपड़े देखो, देखो तुम्हारे हाथों ने क्या प्राप्त किया है, अपने पेट पर हाथ फेरो—इतने बरसों में तुमने अपनी आस्था में जो खून-पसीना बहाया है, उसकी कीमत के बदले तुमने क्या लाभ प्राप्त किया है? तुम अब भी पर्यटन-स्थल के बारे में सोचते हो, अपनी बदबूदार देह को सजाने-सँवारने की सोचते हो—निरर्थक काम! तुमसे सामान्यता का इंसान बनने के लिए कहा जाता है, फिर भी तुम असामान्य हो, यही नहीं तुम पथ-भ्रष्ट भी हो। ऐसा व्यक्ति मेरे सामने आने की धृष्टता कैसे कर सकता है? इस तरह की मानवीयता के साथ, तुम्हारा अपनी सुंदरता का प्रदर्शन करना, देह पर इतराना और हमेशा देह की वासनाओं में जीना—क्या तुम मलिन हैवानों और दुष्ट आत्माओं के वंशज नहीं हो? मैं ऐसे मलिन हैवानों को लंबे समय तक अस्तित्व में नहीं रहने दूँगा! ऐसा मानकर मत चलो कि मुझे पता ही नहीं कि तुम दिल में क्या सोचते हो। तुम अपनी वासना और देह को भले ही कठोर नियंत्रण में रख लो, लेकिन तुम्हारे दिल में जो विचार हैं, उन्हें मैं कैसे न जानूँगा? तुम्हारी आँखों की सारी ख्वाहिशों को मैं कैसे न जानूँगा? क्या तुम युवतियाँ अपनी देह का प्रदर्शन करने के लिए अपने आपको इतना सुंदर नहीं बनाती हो? पुरुषों से तुम्हें क्या लाभ होगा? क्या वे तुम लोगों को अथाह पीड़ा से बचा सकते हैं? जहाँ तक तुम लोगों में छबीले नौजवानों की बात है, तुम सब अपने आपको सभ्य और विशिष्ट दिखाने के लिए सजते-सँवरते हो, लेकिन क्या यह तुम्हारी सुंदरता पर ध्यान ले जाने के लिए रचा गया फरेब नहीं है? तुम लोग यह किसलिए कर रहे हो? महिलाओं से तुम लोगों को क्या फायदा होगा? क्या वे तुम लोगों के पापों का मूल नहीं हैं? मैंने तुम स्त्री-पुरुषों से बहुत-सी बातें कही हैं, लेकिन तुम लोगों ने उनमें से कुछ का ही पालन किया है। तुम लोगों के कान बहरे हैं, तुम लोगों की आँखें कमज़ोर पड़ चुकी हैं, तुम्हारा दिल इस हद तक कठोर है कि तुम्हारे जिस्मों में वासना के अलावा कुछ नहीं है, और यह ऐसा है कि तुम इसके चँगुल में फँस गए हो और अब निकल नहीं सकते। गंदगी और मैल में छटपटाते तुम जैसे कीड़ों के इर्द-गिर्द कौन आना चाहता है? मत भूलो कि तुम्हारी औकात उनसे ज़्यादा कुछ नहीं है जिन्हें मैंने गोबर के ढेर से निकाला है, तुम्हें मूलत: सामान्य मानवीयता से संसाधित नहीं किया गया था। मैं तुम लोगों से उस सामान्य मानवीयता की अपेक्षा करता हूँ जो मूलत: तुम्हारे अंदर नहीं थी, इसकी नहीं कि तुम अपनी वासना की नुमाइश करो या अपनी दुर्गंध-युक्त देह को बेलगाम छोड़ दो, जिसे बरसों तक शैतान ने प्रशिक्षित किया है। जब तुम लोग सजते-सँवरते हो, तो क्या तुम्हें डर नहीं लगता कि तुम इसमें और गहरे फँस जाओगे? क्या तुम लोगों को पता नहीं कि तुम लोग मूलत: पाप के हो? क्या तुम लोग जानते नहीं कि तुम्हारी देह वासना से इतनी भरी हुई है कि यह तुम्हारे कपड़ों तक से रिसती है, तुम लोगों की असह्य रूप से बदसूरत और मलिन दुष्टों जैसी स्थितियों को प्रकट करती है? क्या बात ऐसी नहीं है कि तुम लोग इसे दूसरों से ज़्यादा बेहतर ढंग से जानते हो? क्या तुम्हारे दिलों को, तुम्हारी आँखों को, तुम्हारे होठों को मलिन दुष्टों ने बिगाड़ नहीं दिया है? क्या तुम्हारे ये अंग गंदे नहीं हैं? क्या तुम्हें लगता है कि जब तक तुम कोई क्रियाकलाप नहीं करते, तब तक तुम सर्वाधिक पवित्र हो? क्या तुम्हें लगता है कि सुदंर वस्त्रों में सजने-सँवरने से तुम्हारी नीच आत्माएँ छिप जाएँगी? ऐसा नहीं होगा! मेरी सलाह है कि अधिक यथार्थवादी बनो : कपटी और नकली मत बनो और अपनी नुमाइश मत करो। तुम लोग अपनी वासना को लेकर एक-दूसरे के सामने शान बघारते हो, लेकिन बदले में तुम लोगों को अनंत यातनाएँ और निर्मम ताड़ना ही मिलेगी! तुम लोगों को एक-दूसरे से आँखें लड़ाने और रोमाँस में लिप्त रहने की क्या आवश्यकता है? क्या यह तुम लोगों की सत्यनिष्ठा का पैमाना और ईमानदारी की हद है? मुझे तुम लोगों में से उनसे नफरत है जो बुरी औषधि और जादू-टोने में लिप्त रहते हैं; मुझे तुम लोगों में से उन नौजवान लड़के-लड़कियों से नफरत है जिन्हें अपने शरीर से लगाव है। बेहतर होगा अगर तुम लोग स्वयं पर नियंत्रण रखो, क्योंकि अब आवश्यक है कि तुम्हारे अंदर सामान्य मानवीयता हो, और तुम्हें अपनी वासना की नुमाइश करने की अनुमति नहीं है—लेकिन फिर भी तुम लोग हाथ से कोई मौका जाने नहीं देते हो, क्योंकि तुम्हारी देह बहुत उछाल मार रही है और तुम्हारी वासना बहुत प्रचंड है!
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'अभ्यास (7)' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 316
अब, तुम्हारा प्रयास प्रभावी रहा है या नहीं, यह इस बात से मापा जाता है कि इस समय तुम लोगों के अंदर क्या है। तुम लोगों के परिणाम का निर्धारण करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है; कहने का अर्थ है कि तुम लोगों ने जिन चीज़ों का त्याग किया है और जो कुछ काम किए हैं, उनसे तुम लोगों का परिणाम सामने आता है। तुम लोगों के प्रयास से, तुम लोगों की आस्था से, तुम लोगों ने जो कुछ किया है उनसे, तुम लोगों का परिणाम जाना जाएगा। तुम लोगों में, बहुत-से ऐसे हैं जो पहले ही उद्धार से परे हो चुके हैं, क्योंकि आज का दिन लोगों के परिणाम को उजागर करने का दिन है, और मैं अपने काम में उलझा हुआ नहीं रहूँगा; मैं अगले युग में उन लोगों को नहीं ले जाऊँगा जो पूरी तरह से उद्धार से परे हैं। एक समय आएगा, जब मेरा कार्य पूरा हो जाएगा। मैं उन दुर्गंधयुक्त, बेजान लाशों पर कार्य नहीं करूँगा जिन्हें बिल्कुल भी बचाया नहीं जा सकता; अब इंसान के उद्धार के अंतिम दिन हैं, और मैं निरर्थक कार्य नहीं करूँगा। स्वर्ग और धरती का विरोध मत करो—दुनिया का अंत आ रहा है। यह अपरिहार्य है। चीज़ें इस मुकाम तक आ गयी हैं, और उन्हें रोकने के लिए तुम इंसान के तौर पर कुछ नहीं कर सकते; तुम अपनी इच्छानुसार चीज़ों को बदल नहीं सकते। कल, तुमने सत्य का अनुसरण करने के लिए कीमत अदा नहीं की थी और तुम निष्ठावान नहीं थे; आज, समय आ चुका है, तुम उद्धार से परे हो; और आने वाले कल में तुम्हारे उद्धार की कोई गुंजाइश नहीं होगी। हालाँकि मेरा दिल कोमल है और मैं तुम्हें बचाने के लिए सब-कुछ कर रहा हूँ, अगर तुम अपने स्तर पर प्रयास नहीं करते या अपने लिए विचार नहीं करते, तो इसका मुझसे क्या लेना-देना? जो लोग केवल अपने देह-सुख की सोचते हैं और सुख-साधनों का आनंद लेते हैं; जो विश्वास रखते हुए प्रतीत होते हैं लेकिन सचमुच विश्वास नहीं रखते; जो बुरी औषधियों और जादू-टोने में लिप्त रहते हैं; जो व्यभिचारी हैं, जो बिखर चुके हैं, तार-तार हो चुके हैं; जो यहोवा के चढ़ावे और उसकी संपत्ति को चुराते हैं; जिन्हें रिश्वत पसंद है; जो व्यर्थ में स्वर्गारोहित होने के सपने देखते हैं; जो अहंकारी और दंभी हैं, जो केवल व्यक्तिगत शोहरत और धन-दौलत के लिए संघर्ष करते हैं; जो कर्कश शब्दों को फैलाते हैं; जो स्वयं परमेश्वर की निंदा करते हैं; जो स्वयं परमेश्वर की आलोचना और बुराई करने के अलावा कुछ नहीं करते; जो गुटबाज़ी करते हैं और स्वतंत्रता चाहते हैं; जो खुद को परमेश्वर से भी ऊँचा उठाते हैं; वे तुच्छ नौजवान, अधेड़ उम्र के लोग और बुज़ुर्ग स्त्री-पुरुष जो व्यभिचार में फँसे हुए हैं; जो स्त्री-पुरुष निजी शोहरत और धन-दौलत का मज़ा लेते हैं और लोगों के बीच निजी रुतबा तलाशते हैं; जिन लोगों को कोई मलाल नहीं है और जो पाप में फँसे हुए हैं—क्या वे तमाम लोग उद्धार से परे नहीं हैं? व्यभिचार, पाप, बुरी औषधि, जादू-टोना, अश्लील भाषा और असभ्य शब्द सब तुम लोगों में निरंकुशता से फैल रहे हैं; सत्य और जीवन के वचन तुम लोगों के बीच कुचले जाते हैं और तुम लोगों के मध्य पवित्र भाषा मलिन की जाती है। तुम मलिनता और अवज्ञा से भरे हुए अन्यजाति राष्ट्रो! तुम लोगों का अंतिम परिणाम क्या होगा? जिन्हें देह-सुख से प्यार है, जो देह का जादू-टोना करते हैं, और जो व्यभिचार के पाप में फँसे हुए हैं, वे जीते रहने का दुस्साहस कैसे कर सकते हैं! क्या तुम नहीं जानते कि तुम जैसे लोग कीड़े-मकौड़े हैं जो उद्धार से परे हैं? किसी भी चीज़ की माँग करने का हक तुम्हें किसने दिया? आज तक, उन लोगों में ज़रा-सा भी परिवर्तन नहीं आया है जिन्हें सत्य से प्रेम नहीं है, जो केवल देह से प्यार करते हैं—ऐसे लोगों को कैसे बचाया जा सकता है? जो जीवन के मार्ग को प्रेम नहीं करते, जो परमेश्वर को ऊँचा उठाकर उसकी गवाही नहीं देते, जो अपने रुतबे के लिए षडयंत्र रचते हैं, जो अपनी प्रशंसा करते हैं—क्या वे आज भी वैसे ही नहीं हैं? उन्हें बचाने का क्या मूल्य है? तुम्हारा बचाया जाना इस बात पर निर्भर नहीं है कि तुम कितने वरिष्ठ हो या तुम कितने साल से काम कर रहे हो, और इस बात पर तो बिल्कुल भी निर्भर नहीं है कि तुमने कितनी साख बना ली है। बल्कि इस बात पर निर्भर है कि क्या तुम्हारा लक्ष्य फलीभूत हुआ है। तुम्हें यह जानना चाहिए कि जिन्हें बचाया जाता है वे ऐसे "वृक्ष" होते हैं जिन पर फल लगते हैं, ऐसे वृक्ष नहीं जो हरी-भरी पत्तियों और फूलों से तो लदे होते हैं, लेकिन जिन पर फल नहीं आते। अगर तुम बरसों तक भी गलियों की खाक छानते रहे हो, तो उससे क्या फर्क पड़ता है? तुम्हारी गवाही कहाँ है? परमेश्वर के प्रति तुम्हारी श्रद्धा, खुद के लिए तुम्हारे प्रेम और तुम्हारी वासनायुक्त कामनाओं से कहीं कम है—क्या इस तरह का व्यक्ति पतित नहीं है? वे उद्धार के लिए नमूना और आदर्श कैसे हो सकते हैं? तुम्हारी प्रकृति सुधर नहीं सकती, तुम बहुत ही विद्रोही हो, तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता! क्या ऐसे लोगों को हटा नहीं दिया जाएगा? क्या मेरे काम के समाप्त हो जाने का समय तुम्हारा अंत आने का समय नहीं है? मैंने तुम लोगों के बीच बहुत सारा कार्य किया है और बहुत सारे वचन बोले हैं—इनमें से कितने सच में तुम लोगों के कानों में गए हैं? इनमें से कितनों का तुमने कभी पालन किया है? जब मेरा कार्य समाप्त होगा, तो यह वो समय होगा जब तुम मेरा विरोध करना बंद कर दोगे, तुम मेरे खिलाफ खड़ा होना बंद कर दोगे। जब मैं काम करता हूँ, तो तुम लोग लगातार मेरे खिलाफ काम करते रहते हो; तुम लोग कभी मेरे वचनों का अनुपालन नहीं करते। मैं अपना कार्य करता हूँ, और तुम अपना "काम" करते हो, और अपना छोटा-सा राज्य बनाते हो। तुम लोग लोमड़ियों और कुत्तों से कम नहीं हो, सब-कुछ मेरे विरोध में कर रहे हो! तुम लगातार उन्हें अपने आगोश में लाने का प्रयास कर रहे हो जो तुम्हें अपना अविभक्त प्रेम समर्पित करते हैं—तुम लोगों की श्रद्धा कहाँ है? तुम्हारा हर काम कपट से भरा होता है! तुम्हारे अंदर न आज्ञाकारिता है, न श्रद्धा है, तुम्हारा हर काम कपटपूर्ण और ईश-निंदा करने वाला होता है! क्या ऐसे लोगों को बचाया जा सकता है? जो पुरुष यौन-संबंधों में अनैतिक और लम्पट होते हैं, वे हमेशा कामोत्तेजक वेश्याओं को आकर्षित करके उनके साथ मौज-मस्ती करना चाहते हैं। मैं ऐसे काम-वासना में लिप्त अनैतिक राक्षसों को कतई नहीं बचाऊंगा। मैं तुम मलिन राक्षसों से घृणा करता हूँ, तुम्हारा व्यभिचार और तुम्हारी कामोत्तेजना तुम लोगों को नरक में धकेल देगी। तुम लोगों को अपने बारे में क्या कहना है? मलिन राक्षसो और दुष्ट आत्माओ, तुम लोग घिनौने हो! तुम निकृष्ट हो! ऐसे कूड़े-करकट को कैसे बचाया जा सकता है? क्या ऐसे लोगों को जो पाप में फँसे हुए हैं, उन्हें अब भी बचाया जा सकता है? आज, यह सत्य, यह मार्ग और यह जीवन तुम लोगों को आकर्षित नहीं करता; बल्कि, तुम लोग पाप की ओर, धन की ओर, रुतबे की ओर, शोहरत और लाभ की ओर आकर्षित होते हो; देह-सुख की ओर आकर्षित होते हो; सुंदर स्त्री-पुरुषों की ओर आकर्षित होते हो। मेरे राज्य में प्रवेश करने की तुम लोगों की क्या पात्रता है? तुम लोगों की छवि परमेश्वर से भी बड़ी है, तुम लोगों का रुतबा परमेश्वर से भी ऊँचा है, लोगों में तुम्हारी प्रतिष्ठा का तो कहना ही क्या—तुम लोग ऐसे आदर्श बन गए हो जिन्हें लोग पूजते हैं। क्या तुम प्रधान स्वर्गदूत नहीं बन गए हो? जब लोगों के परिणाम उजागर होते हैं, जो वो समय भी है जब उद्धार का कार्य समाप्ति के करीब होने लगेगा, तो तुम लोगों में से बहुत-से ऐसी लाश होंगे जो उद्धार से परे होंगे और जिन्हें हटा दिया जाना होगा। उद्धार-कार्य के दौरान, मैं सभी लोगों के प्रति दयालु और नेक होता हूँ। जब कार्य समाप्त होता है, तो अलग-अलग किस्म के लोगों का परिणाम प्रकट किया जाएगा, और उस समय, मैं दयालु और नेक नहीं रहूँगा, क्योंकि लोगों का परिणाम प्रकट हो चुका होगा, और हर एक को उसकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत कर दिया गया होगा, फिर और अधिक उद्धार-कार्य करने का कोई मतलब नहीं होगा, क्योंकि उद्धार का युग गुज़र चुका होगा, और गुज़र जाने के बाद वह वापस नहीं आएगा।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'अभ्यास (7)' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 317
मनुष्य सदा अंधकार के प्रभाव में रहा है, शैतान के प्रभाव की क़ैद में रखा गया है, बचकर निकल भी नहीं पाता, और शैतान के द्वारा संसाधित किए जाने के पश्चात्, उसका स्वभाव उत्तरोत्तर भ्रष्ट होता जाता है। कहा जा सकता है कि मनुष्य सदा ही अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभाव के बीच रहा है और परमेश्वर से सच्चे अर्थ में प्रेम करने में असमर्थ है। ऐसे में, यदि मनुष्य परमेश्वर से प्रेम करना चाहता है, तो उसे आत्मदंभ, आत्म-महत्व, अहंकार, मिथ्याभिमान इत्यादि, वह सब कुछ जो शैतान के स्वभाव का है, उतार फेंकना चाहिए। यदि नहीं, तो उसका प्रेम अशुद्ध प्रेम, शैतानी प्रेम, और ऐसा प्रेम है जो कदापि परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त नहीं कर सकता है। पवित्र आत्मा द्वारा प्रत्यक्षतः पूर्ण बनाए, निपटे, तोड़े, काटे-छाँटे, अनुशासित, ताड़ित और शुद्ध किए बिना कोई परमेश्वर से सच्चे अर्थ में प्रेम करने में समर्थ नहीं है। यदि तुम कहो कि तुम्हारे स्वभाव का एक हिस्सा परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए तुम परमेश्वर से सचमुच प्रेम करने में समर्थ हो, तो तुम्हारे शब्द अहंकारी हैं, और तुम हास्यास्पद हो। ऐसे लोग ही महादूत हैं! मनुष्य की जन्मजात प्रकृति परमेश्वर का सीधे प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ है; उसे परमेश्वर की पूर्णता के माध्यम से अपनी अंतर्जात प्रकृति को त्यागना ही होगा और केवल तभी—परमेश्वर की इच्छा की परवाह करके, परमेश्वर के अभिप्रायों को पूरा करके, और इससे भी आगे पवित्र आत्मा के कार्य से गुज़रकर—वह जो जीता है उसे परमेश्वर द्वारा अनुमोदित किया जा सकता है। देह में रहने वाला कोई भी व्यक्ति सीधे परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, जब तक कि वह पवित्र आत्मा द्वारा उपयोग किया गया मनुष्य न हो। हालाँकि, इस तरह के व्यक्ति के लिए भी, यह नहीं कहा जा सकता कि उसका स्वभाव और वह जो जीता है वह पूर्णतः परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है; केवल इतना कहा जा सकता है कि वह जो जीता है वह पवित्र आत्मा द्वारा निर्देशित है। ऐसे मनुष्य का स्वभाव परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है।
यद्यपि मनुष्य का स्वभाव परमेश्वर द्वारा नियत किया जाता है—यह निर्विवाद है और इसे सकारात्मक चीज़ माना जा सकता है—इसे शैतान द्वारा संसाधित किया गया है, और इसलिए मनुष्य का संपूर्ण स्वभाव शैतान का स्वभाव है। कुछ लोग कहते हैं कि परमेश्वर का स्वभाव चीज़ों को करने में निष्कपट होना है, और यह उनमें भी स्पष्ट दिखाई देता है, कि उनका चरित्र भी इसी तरह का है, और इसलिए वे कहते हैं कि उनका स्वभाव परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है। ये किस प्रकार के लोग हैं? क्या भ्रष्ट शैतानी स्वभाव परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करने में समर्थ है? जो कोई भी यह घोषणा करता है कि उनका स्वभाव परमेश्वर का द्योतक है, वह परमेश्वर की ईशनिंदा करता है और पवित्र आत्मा को अपमानित करता है! पवित्र आत्मा जिस पद्धति से कार्य करता है, वह दर्शाता है कि पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य केवल और केवल विजय का कार्य है। इस रूप में, मनुष्य के बहुत-से शैतानी स्वभाव अभी शुद्ध किए जाने हैं, और वह जो जीता है वह अब भी शैतान की छवि है, जिसे मनुष्य अच्छा मानता है, और यह मनुष्य की देह के कर्मों का प्रतिनिधित्व करता है; अधिक सटीक रूप से, यह शैतान का प्रतिनिधित्व करता है, और परमेश्वर का प्रतिनिधित्व बिल्कुल नहीं कर सकता है। यहाँ तक कि यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर को पहले ही इस हद तक प्यार करता हो कि वह पृथ्वी पर स्वर्ग के जीवन का आनंद ले पाता हो, ऐसे वक्तव्य दे पाता हो जैसे : "हे परमेश्वर! मैं तुझे जितना भी प्रेम करूँ वह कम है," और उच्चतम क्षेत्र तक पहुँच गया हो, तब भी यह नहीं कहा जा सकता कि वह परमेश्वर को जीता है या परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि मनुष्य का सार परमेश्वर के सार से भिन्न है, और मनुष्य कभी परमेश्वर को जी नहीं सकता, परमेश्वर बन पाना तो दूर की बात है। पवित्र आत्मा ने मनुष्य को जो जीने के लिए निर्देशित किया है, वह मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षा के अनुसार ही है।
शैतान के समस्त कार्य और कर्म मनुष्य में दिखाई देते हैं। आज मनुष्य के समस्त कार्य और कर्म शैतान की अभिव्यक्ति हैं और इसलिए परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं। मनुष्य शैतान का मूर्त रूप है, और मनुष्य का स्वभाव परमेश्वर के स्वभाव का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ है। कुछ लोग अच्छे चरित्र के होते हैं; परमेश्वर ऐसे लोगों के चरित्र के माध्यम कुछ कार्य कर सकता है, और वे जो कार्य करते हैं, वह पवित्र आत्मा द्वारा निर्देशित होता है। फिर भी उनका स्वभाव परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ है। परमेश्वर उनके ऊपर जो कार्य करता है, वह पहले से ही भीतर विद्यमान चीज़ों के साथ कार्य करने और उन्हें बढ़ाने से अधिक कुछ नहीं है। बीते युगों के भविष्यवक्ता हों या परमेश्वर द्वारा प्रयुक्त लोग हों, कोई भी उसका सीधे प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है। लोग केवल परिस्थितियों के दबाव में परमेश्वर से प्रेम करने लगते हैं, और कोई एक भी स्वयं अपनी इच्छा से सहयोग करने को तत्पर नहीं होता है। सकारात्मक चीज़ें क्या हैं? वह सब जो सीधे परमेश्वर से आता है सकारात्मक है; तथापि, मनुष्य का स्वभाव शैतान द्वारा संसाधित किया गया है और परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है। केवल देहधारी परमेश्वर का प्रेम, कष्ट झेलने की इच्छाशक्ति, धार्मिकता, अधीनता, विनम्रता और अदृश्यता सीधे परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब वह आया, वह पापमय प्रकृति से रहित आया और, शैतान द्वारा संसाधित हुए बिना, सीधे परमेश्वर से आया। यीशु केवल पापमय देह की सदृशता में है और पाप का प्रतिनिधित्व नहीं करता है; इसलिए, सलीब पर चढ़ने के द्वारा उसके कार्य निष्पादन से पहले के समय तक (उसके सलीब पर चढ़ने के क्षण सहित) उसके कार्य, कर्म और वचन, सभी परमेश्वर के प्रत्यक्ष रूप से प्रतिनिधि हैं। यीशु का यह उदाहरण इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि पापमय प्रकृति वाला कोई भी व्यक्ति परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है, और मनुष्य का पाप शैतान का प्रतिनिधित्व करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि पाप परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं करता और परमेश्वर निष्पाप है। यहाँ तक कि पवित्र आत्मा द्वारा मनुष्य में किया गया कार्य भी पवित्र आत्मा द्वारा निर्देशित किया गया ही माना जा सकता है, और परमेश्वर की ओर से मनुष्य द्वारा किया गया नहीं कहा जा सकता। किंतु, जहाँ तक मनुष्य का संबंध है, परमेश्वर का प्रतिनिधित्व न उसका पाप करता है और न उसका स्वभाव। अतीत से लेकर आज तक पवित्र आत्मा द्वारा मनुष्य पर किए गए समस्त कार्य पर दृष्टि डालने पर, हम देखते हैं कि मनुष्य के पास वह सब जो वह जीता है, इसलिए है क्योंकि पवित्र आत्मा ने उस पर कार्य किया है। बहुत ही कम हैं जो पवित्र आत्मा द्वारा निपटे और अनुशासित किए जाने के बाद सत्य को जी पाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि मात्र पवित्र आत्मा का कार्य ही उपस्थित है; मनुष्य की ओर से सहयोग अनुपस्थित है। क्या अब तुम इसे स्पष्ट रूप से देख रहे हो? तो फिर, जब पवित्र आत्मा कार्य करता है तब उसके साथ सहयोग करने और अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए तुम अपना अधिकतम कैसे करोगे?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'भ्रष्ट मनुष्य परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करने में अक्षम है' से
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 318
परमेश्वर पर तुम्हारा विश्वास, सत्य की तुम्हारी खोज, और यहाँ तक कि तुम्हारे आचरण का तरीका, सब वास्तविकता पर आधारित होने चाहिए : जो कुछ भी तुम करते हो वह व्यावहारिक होना चाहिए, और तुम्हें भ्रामक और काल्पनिक बातों का अनुसरण नहीं करना चाहिए। इस प्रकार से व्यवहार करने का कोई मूल्य नहीं है, और, इतना ही नहीं, ऐसे जीवन का कोई अर्थ नहीं है। चूँकि तुम्हारी खोज और जीवन केवल मिथ्या और कपट के बीच व्यतीत होते हैं, और चूँकि तुम उन चीजों की खोज नहीं करते जो मूल्यवान और अर्थपूर्ण हैं, इसलिए तुम्हें केवल अनर्गल तर्क-वितर्क और सिद्धांत प्राप्त होते हैं, जो सत्य से संबंधित नहीं होते। ऐसी चीजों का तुम्हारे अस्तित्व के अर्थ और मूल्य से कोई संबंध नहीं है और ये तुम्हारे लिए केवल खोखला अधिकार ला सकती हैं। इस तरह, तुम्हारा पूरा जीवन बिना किसी मूल्य और अर्थ का हो जाएगा—और यदि तुम सार्थक जीवन की खोज नहीं करते, तो तुम सौ वर्षों तक भी जीवित रह सकते हो किंतु यह सब व्यर्थ होगा। उसे मानव-जीवन कैसे कहा जा सकता है? क्या यह वास्तव में एक जानवर का जीवन नहीं है? इसी प्रकार, यदि तुम लोग परमेश्वर पर विश्वास के मार्ग का अनुसरण करने का प्रयास तो करते हो, किंतु उस परमेश्वर को खोजने का कोई प्रयास नहीं करते, जिसे देखा जा सकता है, और इसके बजाय अदृश्य एवं अमूर्त परमेश्वर की आराधना करते हो, तो क्या इस प्रकार की खोज और भी अधिक व्यर्थ नहीं है? अंत में, तुम्हारी खोज खंडहरों का ढेर बन जाएगी। ऐसी खोज का तुम्हें क्या लाभ है? मनुष्य के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह केवल उन्हीं चीजों से प्यार करता है, जिन्हें वह देख या स्पर्श नहीं कर सकता, जो अत्यधिक रहस्यमयी और अद्भुत होती हैं, और जो मनुष्यों द्वारा अकल्पनीय और अप्राप्य हैं। जितनी अधिक अवास्तविक ये वस्तुएँ होती हैं, उतना ही अधिक लोगों द्वारा उनका विश्लेषण किया जाता है, और यहाँ तक कि लोग अन्य सभी से बेपरवाह होकर भी उनकी खोज करते हैं और उन्हें प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। जितना अधिक अवास्तविक ये चीज़ें होती हैं, उतना ही अधिक बारीकी से लोग उनकी जाँच और विश्लेषण करते हैं और, यहाँ तक कि इतनी दूर चले जाते हैं कि उनके बारे में अपने स्वयं के व्यापक विचार बना लेते हैं। इसके विपरीत, चीजें जितनी अधिक वास्तविक होती है, लोग उनके प्रति उतने ही अधिक उपेक्षापूर्ण होते हैं; वे केवल उन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं और यहाँ तक कि उनके प्रति तिरस्कारपूर्ण भी हो जाते हैं। क्या यही प्रवृत्ति तुम लोगों की उस यथार्थपरक कार्य के प्रति नहीं है, जो मैं आज करता हूँ? ये चीज़ें जितनी अधिक वास्तविक होती हैं, उतना ही अधिक तुम लोग उनके विरुद्ध पूर्वाग्रही हो जाते हो। तुम उनकी जाँच करने के लिए ज़रा भी समय नहीं निकालते, बल्कि केवल उनकी उपेक्षा कर देते हो; तुम लोग इन यथार्थवादी, निम्नस्तरीय अपेक्षाओं को हेय दृष्टि से देखते हो, और यहाँ तक कि इस परमेश्वर के बारे में कई धारणाओं को प्रश्रय देते हो, जो कि सर्वाधिक वास्तविक है, और बस उसकी वास्तविकता और सामान्यता को स्वीकार करने में अक्षम हो। इस तरह, क्या तुम लोग एक अज्ञात विश्वास नहीं रखते? तुम लोगों का अतीत के अज्ञात परमेश्वर में अचल विश्वास है, और आज के वास्तविक परमेश्वर में कोई रुचि नहीं है। क्या ऐसा इसलिए नहीं है, क्योंकि कल का परमेश्वर और आज का परमेश्वर दो भिन्न-भिन्न युगों से हैं? क्या ऐसा इसलिए भी नहीं है, क्योंकि कल का परमेश्वर स्वर्ग का उच्च परमेश्वर है, जबकि आज का परमेश्वर धरती पर एक छोटा-सा मनुष्य है? इसके अलावा, क्या ऐसा इसलिए नहीं है, क्योंकि मनुष्यों द्वारा आराधना किया जाने वाला परमेश्वर उनकी अपनी धारणाओं से उत्पन्न हुआ है, जबकि आज का परमेश्वर धरती पर उत्पन्न, वास्तविक देह है? हर चीज पर विचार करने के बाद, क्या ऐसा इसलिए नहीं है, क्योंकि आज का परमेश्वर इतना अधिक वास्तविक है कि मनुष्य उसकी खोज नहीं करता? क्योंकि आज का परमेश्वर लोगों से जो कहता है, वह ठीक वही है, जिसे करने के लिए लोग सबसे अधिक अनिच्छुक हैं, और जो उन्हें लज्जित महसूस करवाता है। क्या यह लोगों के लिए चीज़ों को कठिन बनाना नहीं है? क्या यह उसके दागों को उघाड़ नहीं देता? इस प्रकार से, वास्तविकता की खोज न करने वालों में से कई लोग देहधारी परमेश्वर के शत्रु बन जाते हैं, मसीह-विरोधी बन जाते हैं। क्या यह एक स्पष्ट तथ्य नहीं है? अतीत में, जब परमेश्वर का अभी देह बनना बाकी था, तो तुम कोई धार्मिक हस्ती या कोई धर्मनिष्ठ विश्वासी रहे होगे। परमेश्वर के देह बनने के बाद ऐसे कई धर्मनिष्ठ विश्वासी अनजाने में मसीह-विरोधी बन गए। क्या तुम जानते हो, यहाँ क्या चल रहा है? परमेश्वर पर अपने विश्वास में तुम वास्तविकता पर ध्यान केंद्रित नहीं करते या सत्य की खोज नहीं करते, बल्कि इसके बजाय तुम झूठ से ग्रस्त हो जाते हो—क्या यह देहधारी परमेश्वर के प्रति तुम्हारी शत्रुता का स्पष्टतम स्रोत नहीं है? देहधारी परमेश्वर मसीह कहलाता है, इसलिए क्या देहधारी परमेश्वर पर विश्वास न करने वाले सभी लोग मसीह-विरोधी नहीं हैं? इसलिए क्या तुम जिस पर विश्वास करते हो और जिससे प्रेम करते हो, वह सच में देहधारी परमेश्वर है? क्या यही वास्तव में जीवित, श्वास लेता हुआ वह परमेश्वर है, जो बहुत ही वास्तविक और असाधारण रूप से सामान्य है? तुम्हारी खोज का ठीक-ठीक क्या उद्देश्य है? क्या यह स्वर्ग में है या पृथ्वी पर? क्या यह एक धारणा है या सत्य? क्या यह परमेश्वर है या कोई अलौकिक प्राणी? वास्तव में, सत्य जीवन की सर्वाधिक वास्तविक सूक्ति है, और मानवजाति के बीच इस तरह की सूक्तियों में सर्वोच्च है। क्योंकि यही वह अपेक्षा है, जो परमेश्वर मनुष्य से करता है, और यही परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया जाने वाला कार्य है, इसीलिए इसे "जीवन की सूक्ति" कहा जाता है। यह कोई ऐसी सूक्ति नहीं है, जिसे किसी चीज में से संक्षिप्त किया गया है, न ही यह किसी महान हस्ती द्वारा कहा गया कोई प्रसिद्ध उद्धरण है। इसके बजाय, यह स्वर्ग और पृथ्वी तथा सभी चीजों के स्वामी का मानवजाति के लिए कथन है; यह मनुष्य द्वारा किया गया कुछ वचनों का सारांश नहीं है, बल्कि परमेश्वर का अंतर्निहित जीवन है। और इसीलिए इसे "समस्त जीवन की सूक्तियों में उच्चतम" कहा जाता है। लोगों की सत्य को अभ्यास में लाने की खोज उनके कर्तव्य का निर्वाह है, अर्थात्, यह परमेश्वर की अपेक्षा पूरी करने की कोशिश है। इस अपेक्षा का सार किसी भी मनुष्य द्वारा प्राप्त न किए जा सकने योग्य खोखले सिद्धांत के बजाय, सभी सत्यों में सबसे अधिक वास्तविक है। यदि तुम्हारी खोज सिद्धांत के अलावा कुछ नहीं है और वह वास्तविकता से युक्त नहीं है, तो क्या तुम सत्य के विरुद्ध विद्रोह नहीं करते हो? क्या तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो, जो सत्य पर आक्रमण करता है? ऐसा व्यक्ति परमेश्वर से प्रेम की अभिलाषा रखने वाला कैसे हो सकता है? वास्तविकता से रहित लोग वे लोग हैं, जो सत्य के साथ विश्वासघात करते हैं, और वे सभी सहज रूप से विद्रोही हैं!
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'जो परमेश्वर को और उसके कार्य को जानते हैं, केवल वे ही परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हैं' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 319
तुम सभी परमेश्वर के समक्ष पुरस्कृत होने और उसका अनुग्रह पाने की इच्छा रखते हो; सभी ऐसी चीजों की आशा करते हैं, जब वे परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करते हैं, क्योंकि सभी उच्चतर चीजों की खोज में लीन रहते हैं, और कोई भी दूसरों से पीछे नहीं रहना चाहता। लोग बस ऐसे ही हैं। यही कारण है कि तुम लोगों में से बहुत-से लोग लगातार स्वर्ग के परमेश्वर की चापलूसी करके उसका अनुग्रह पाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि वास्तव में, परमेश्वर के प्रति तुम लोगों की निष्ठा और निष्कपटता अपने प्रति तुम लोगों की निष्ठा और निष्कपटता से बहुत कम है। मैं यह क्यों कह रहा हूँ? क्योंकि मैं परमेश्वर के प्रति तुम लोगों की निष्ठा को बिलकुल भी स्वीकार नहीं करता, और इसलिए भी, क्योंकि मैं उस परमेश्वर के अस्तित्व को नकारता हूँ, जो तुम लोगों के दिलों में है। दूसरे शब्दों में, जिस परमेश्वर की तुम लोग आराधना करते हो, जिस अस्पष्ट परमेश्वर का तुम लोग गुणगान करते हो, उसका कोई अस्तित्व नहीं है। मैं यह इतनी निश्चितता से इसलिए कह सकता हूँ, क्योंकि तुम लोग सच्चे परमेश्वर से बहुत दूर हो। तुम लोगों की निष्ठा का कारण तुम लोगों के दिलों के भीतर की मूर्ति है; इस बीच, मेरी नज़र में, जिस परमेश्वर को तुम लोग मानते हो, वह न तो बड़ा है और न ही छोटा, तुम लोग उसे केवल शब्दों से स्वीकार करते हो। जब मैं कहता हूँ कि तुम लोग परमेश्वर से बहुत दूर हो, तो मेरा मतलब है कि तुम लोग सच्चे परमेश्वर से दूर हो, जबकि अस्पष्ट परमेश्वर निकट प्रतीत होता है। जब मैं कहता हूँ, "बड़ा नहीं," तो यह इस संदर्भ में है कि आज तुम लोग जिस परमेश्वर में विश्वास रखते हो, वह केवल महान क्षमताओं से रहित कोई व्यक्ति प्रतीत होता है, ऐसा व्यक्ति जो बहुत बुलंद नहीं है। और जब मैं "छोटा नहीं" कहता हूँ, तो इसका मतलब है कि हालाँकि यह व्यक्ति हवा को नहीं बुला सकता और बारिश को आज्ञा नहीं दे सकता, फिर भी वह परमेश्वर के आत्मा को वह कार्य करने के लिए बुलाने में सक्षम है, जो आकाश और पृथ्वी को हिला देता है, और लोगों को पूरी तरह से भौचक्का कर देता है। बाहरी तौर पर, तुम सभी पृथ्वी पर इस मसीह के प्रति अत्यधिक आज्ञाकारी दिखाई देते हो, किंतु सार में, तुम लोगों को उस में विश्वास नहीं है, और न ही तुम उससे प्यार करते हो। दूसरे शब्दों में, जिसमें तुम लोग वास्तव में विश्वास रखते हो, वह तुम लोगों की खुद की भावनाओं का अस्पष्ट परमेश्वर है, और जिसे तुम लोग वास्तव में प्यार करते हो, वह वो परमेश्वर है जिसके लिए तुम दिन-रात तरसते हो, किंतु जिसे तुमने व्यक्तिगत रूप से कभी नहीं देखा है। किंतु इस मसीह के प्रति तुम्हारा विश्वास खंडित और शून्य है। विश्वास का अर्थ है आस्था और भरोसा; प्रेम का अर्थ है व्यक्ति के हृदय में श्रद्धा और प्रशंसा, कभी वियोग नहीं। किंतु आज के मसीह के प्रति तुम लोगों का विश्वास और प्रेम इससे बहुत कम है। जब विश्वास की बात आती है, तो तुम लोग कैसे उसमें विश्वास रखते हो? जब प्यार की बात आती है, तो तुम लोग किस तरह से उससे प्यार करते हो? तुम लोगों को उसके स्वभाव की कोई समझ ही नहीं है, उसके सार को तो तुम बिलकुल भी नहीं जानते, तो फिर तुम लोग उसमें विश्वास कैसे रखते हो? उसमें तुम लोगों के विश्वास की वास्तविकता कहाँ है? तुम लोग उसे कैसे प्यार करते हो? उसके प्रति तुम लोगों के प्यार की वास्तविकता कहाँ है?
बहुत-से लोगों ने आज तक बिना किसी हिचकिचाहट के मेरा अनुसरण किया है। इसी तरह, तुम लोगों ने भी पिछले कई वर्षों में बहुत मेहनत की है। तुममें से प्रत्येक के सहज चरित्र और आदतों को मैंने शीशे की तरह साफ़ समझा है; तुममें से प्रत्येक के साथ बातचीत अत्यधिक दुष्कर रही है। अफ़सोस की बात यह है कि यद्यपि मैंने तुम लोगों के बारे में बहुत-कुछ समझा है, लेकिन तुम लोग मेरे बारे में कुछ भी नहीं समझते। कोई आश्चर्य नहीं कि लोग कहते हैं कि तुम लोग पलभर को भ्रमित होकर किसी की चाल में आ गए। वास्तव में, तुम लोग मेरे स्वभाव के बारे में कुछ नहीं समझते, और इसकी थाह तो तुम पा ही नहीं सकते कि मेरे मन में क्या है। आज, मेरे बारे में तुम लोगों की गलतफहमियाँ तेजी से बढ़ रही हैं, और मुझमें तुम लोगों का विश्वास एक भ्रमित विश्वास बना हुआ है। यह कहने के बजाय कि तुम लोगों को मुझमें विश्वास है, यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि तुम लोग चापलूसी से मेरा अनुग्रह पाने की कोशिश कर रहे हो और मेरी खुशामद कर रहे हो। तुम लोगों के इरादे बहुत सरल हैं : जो भी कोई मुझे पुरस्कृत कर सकता है, मैं उसी का अनुसरण करूँगा और जो भी कोई मुझे महान आपदाओं से बचाएगा, मैं उसी में विश्वास रखूँगा, चाहे वह परमेश्वर हो या कोई ईश्वर-विशेष हो। इनमें से किसी में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। तुम लोगों के बीच ऐसे कई लोग हैं, और यह स्थिति बहुत गंभीर है। अगर किसी दिन इस बात की परीक्षा हो जाए कि तुम लोगों में से कितनों को मसीह में उसके सार में अंतर्दृष्टि के कारण विश्वास है, तो मुझे डर है कि तुम लोगों में से एक भी मेरे लिए संतोषजनक नहीं होगा। इसलिए तुममें से प्रत्येक के लिए इस प्रश्न पर विचार करना दुखदायी नहीं होगा : जिस परमेश्वर में तुम लोग विश्वास रखते हो, वह मुझसे बहुत अलग है, और ऐसा होने के कारण, परमेश्वर में तुम लोगों के विश्वास का सार क्या है? जितना अधिक तुम लोग अपने तथाकथित परमेश्वर में विश्वास रखते हो, उतना ही अधिक तुम लोग मुझसे दूर भटक जाते हो। तो फिर, इस मुद्दे का सार क्या है? यह निश्चित है कि तुम लोगों में से किसी ने भी कभी इस तरह के प्रश्न पर विचार नहीं किया है, लेकिन क्या तुम लोगों को इसकी गंभीरता का एहसास हुआ है? क्या तुम लोगों ने इस तरह से विश्वास रखते रहने के परिणामों के बारे में सोचा है?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 320
मैं उन लोगों में प्रसन्नता अनुभव करता हूँ जो दूसरों पर शक नहीं करते, और मैं उन लोगों को पसंद करता हूँ जो सच को तत्परता से स्वीकार कर लेते हैं; इन दो प्रकार के लोगों की मैं बहुत परवाह करता हूँ, क्योंकि मेरी नज़र में ये ईमानदार लोग हैं। यदि तुम धोखेबाज हो, तो तुम सभी लोगों और मामलों के प्रति सतर्क और शंकित रहोगे, और इस प्रकार मुझमें तुम्हारा विश्वास संदेह की नींव पर निर्मित होगा। मैं इस तरह के विश्वास को कभी स्वीकार नहीं कर सकता। सच्चे विश्वास के अभाव में तुम सच्चे प्यार से और भी अधिक वंचित हो। और यदि तुम परमेश्वर पर इच्छानुसार संदेह करने और उसके बारे में अनुमान लगाने के आदी हो, तो तुम यकीनन सभी लोगों में सबसे अधिक धोखेबाज हो। तुम अनुमान लगाते हो कि क्या परमेश्वर मनुष्य जैसा हो सकता है : अक्षम्य रूप से पापी, क्षुद्र चरित्र का, निष्पक्षता और विवेक से विहीन, न्याय की भावना से रहित, शातिर चालबाज़ियों में प्रवृत्त, विश्वासघाती और चालाक, बुराई और अँधेरे से प्रसन्न रहने वाला, आदि-आदि। क्या लोगों के ऐसे विचारों का कारण यह नहीं है कि उन्हें परमेश्वर का थोड़ा-सा भी ज्ञान नहीं है? ऐसा विश्वास पाप से कम नहीं है! कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो मानते हैं कि जो लोग मुझे खुश करते हैं, वे बिल्कुल ऐसे लोग हैं जो चापलूसी और खुशामद करते हैं, और जिनमें ऐसे हुनर नहीं होंगे, वे परमेश्वर के घर में अवांछनीय होंगे और वे वहाँ अपना स्थान खो देंगे। क्या तुम लोगों ने इतने बरसों में बस यही ज्ञान हासिल किया है? क्या तुम लोगों ने यही प्राप्त किया है? और मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान इन गलतफहमियों पर ही नहीं रुकता; परमेश्वर के आत्मा के खिलाफ तुम्हारी निंदा और स्वर्ग की बदनामी इससे भी बुरी बात है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि ऐसा विश्वास तुम लोगों को केवल मुझसे दूर भटकाएगा और मेरे खिलाफ बड़े विरोध में खड़ा कर देगा। कार्य के कई वर्षों के दौरान तुम लोगों ने कई सत्य देखे हैं, किंतु क्या तुम लोग जानते हो कि मेरे कानों ने क्या सुना है? तुम में से कितने लोग सत्य को स्वीकारने के लिए तैयार हैं? तुम सब लोग विश्वास करते हो कि तुम सत्य के लिए कीमत चुकाने को तैयार हो, किंतु तुम लोगों में से कितनों ने वास्तव में सत्य के लिए दुःख झेला है? तुम लोगों के हृदय में अधार्मिकता के सिवाय कुछ नहीं है, जिससे तुम लोगों को लगता है कि हर कोई, चाहे वह कोई भी हो, धोखेबाज और कुटिल है—यहाँ तक कि तुम यह भी विश्वास करते हो कि देहधारी परमेश्वर, किसी सामान्य मनुष्य की तरह, दयालु हृदय या कृपालु प्रेम से रहित हो सकता है। इससे भी अधिक, तुम लोग विश्वास करते हो कि कुलीन चरित्र और दयालु, कृपालु प्रकृति केवल स्वर्ग के परमेश्वर में ही होती है। तुम लोग विश्वास करते हो कि ऐसा कोई संत नहीं होता, कि केवल अंधकार एवं दुष्टता ही पृथ्वी पर राज करते हैं, जबकि परमेश्वर एक ऐसी चीज़ है, जिसे लोग अच्छाई और सुंदरता के लिए अपने मनोरथ सौंपते हैं, वह उनके द्वारा गढ़ी गई एक किंवदंती है। तुम लोगों के विचार से, स्वर्ग का परमेश्वर बहुत ही ईमानदार, धार्मिक और महान है, आराधना और श्रद्धा के योग्य है, जबकि पृथ्वी का यह परमेश्वर स्वर्ग के परमेश्वर का एक स्थानापन्न और साधन है। तुम विश्वास करते हो कि यह परमेश्वर स्वर्ग के परमेश्वर के समकक्ष नहीं हो सकता, उनका एक-साथ उल्लेख तो बिलकुल नहीं किया जा सकता। जब परमेश्वर की महानता और सम्मान की बात आती है, तो वे स्वर्ग के परमेश्वर की महिमा से संबंधित होते हैं, किंतु जब मनुष्य की प्रकृति और भ्रष्टता की बात आती है, तो ये ऐसे लक्षण हैं जिनमें पृथ्वी के परमेश्वर का एक अंश है। स्वर्ग का परमेश्वर हमेशा उत्कृष्ट है, जबकि पृथ्वी का परमेश्वर हमेशा ही नगण्य, कमज़ोर और अक्षम है। स्वर्ग के परमेश्वर में भावना नहीं, केवल धार्मिकता है, जबकि धरती के परमेश्वर के केवल स्वार्थपूर्ण उद्देश्य हैं और वह निष्पक्षता और विवेक से रहित है। स्वर्ग के परमेश्वर में थोड़ी-सी भी कुटिलता नहीं है और वह हमेशा विश्वसनीय है, जबकि पृथ्वी के परमेश्वर में हमेशा बेईमानी का एक पक्ष होता है। स्वर्ग का परमेश्वर मनुष्यों से बहुत प्रेम करता है, जबकि पृथ्वी का परमेश्वर मनुष्य की पर्याप्त परवाह नहीं करता, यहाँ तक कि उसकी पूरी तरह से उपेक्षा करता है। यह त्रुटिपूर्ण ज्ञान तुम लोगों के हृदय में काफी समय से रखा गया है और भविष्य में भी बनाए रखा जा सकता है। तुम लोग मसीह के सभी कर्मों पर अधार्मिकता के दृष्टिकोण से विचार करते हो और उसके सभी कार्यों और साथ ही उसकी पहचान और सार का मूल्यांकन दुष्ट के परिप्रेक्ष्य से करते हो। तुम लोगों ने बहुत गंभीर गलती की है और ऐसा काम किया है, जो तुमसे पहले के लोगों ने कभी नहीं किया। अर्थात्, तुम लोग केवल अपने सिर पर मुकुट धारण करने वाले स्वर्ग के उत्कृष्ट परमेश्वर की सेवा करते हो और उस परमेश्वर की सेवा कभी नहीं करते, जिसे तुम इतना महत्वहीन समझते हो, मानो वह तुम लोगों को दिखाई तक न देता हो। क्या यह तुम लोगों का पाप नहीं है? क्या यह परमेश्वर के स्वभाव के विरुद्ध तुम लोगों के अपराध का विशिष्ट उदाहरण नहीं है? तुम लोग स्वर्ग के परमेश्वर की आराधना करते हो। तुम बुलंद छवियों से प्रेम करते हो और उन लोगों का सम्मान करते हो, जो अपनी वाक्पटुता के लिए प्रतिष्ठित हैं। तुम सहर्ष उस परमेश्वर द्वारा नियंत्रित हो जाते हो, जो तुम लोगों के हाथ धन-दौलत से भर देता है, और उस परमेश्वर के लिए बहुत अधिक लालायित रहते हो जो तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर सकता है। तुम केवल इस परमेश्वर की आराधना नहीं करते, जो अभिमानी नहीं है; तुम केवल इस परमेश्वर के साथ जुड़ने से घृणा करते हो, जिसे कोई मनुष्य ऊँची नज़र से नहीं देखता। तुम केवल इस परमेश्वर की सेवा करने के अनिच्छुक हो, जिसने तुम्हें कभी एक पैसा नहीं दिया है, और जो तुम्हें अपने लिए लालायित करवाने में असमर्थ है, वह केवल यह अनाकर्षक परमेश्वर ही है। इस प्रकार का परमेश्वर तुम्हारे क्षितिज को विस्तृत करने में, तुम्हें खज़ाना मिल जाने का एहसास करने में सक्षम नहीं बना सकता, तुम्हारी इच्छा पूरी तो बिलकुल नहीं कर सकता। तो फिर तुम उसका अनुसरण क्यों करते हो? क्या तुमने कभी इस तरह के प्रश्न पर विचार किया है? तुम जो करते हो, वह केवल इस मसीह का ही अपमान नहीं करता, बल्कि, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण रूप से, वह स्वर्ग के परमेश्वर का अपमान करता है। मेरे विचार से परमेश्वर पर तुम लोगों के विश्वास का यह उद्देश्य नहीं है!
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 321
तुम लोग लालायित रहते हो कि परमेश्वर तुम पर प्रसन्न हो, मगर तुम लोग परमेश्वर से दूर हो। यह क्या मामला है? तुम लोग केवल उसके वचनों को स्वीकार करते हो, उसके व्यवहार या काट-छाँट को नहीं, उसके प्रत्येक प्रबंध को स्वीकार करने, उस पर पूर्ण विश्वास रखने में तो तुम बिलकुल भी समर्थ नहीं हो। तो आखिर मामला क्या है? अंतिम विश्लेषण में, तुम लोगों का विश्वास अंडे के खाली खोल के समान है, जो कभी चूज़ा पैदा नहीं कर सकता। क्योंकि तुम लोगों का विश्वास तुम्हारे लिए सत्य लेकर नहीं आया है या उसने तुम्हें जीवन नहीं दिया है, बल्कि इसके बजाय तुम लोगों को पोषण और आशा का एक भ्रामक बोध दिया है। पोषण और आशा का बोध ही परमेश्वर पर तुम लोगों के विश्वास का उद्देश्य है, सत्य और जीवन नहीं। इसलिए मैं कहता हूँ कि परमेश्वर पर तुम लोगों के विश्वास का आधार चापलूसी और बेशर्मी से परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त करने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं रहा है, और उसे किसी भी तरह से सच्चा विश्वास नहीं माना जा सकता। इस प्रकार के विश्वास से कोई चूज़ा कैसे पैदा हो सकता है? दूसरे शब्दों में, इस तरह के विश्वास से क्या हासिल हो सकता है? परमेश्वर में विश्वास का प्रयोजन लक्ष्य पूरे करने में उसका उपयोग करना है। क्या यह तुम्हारे द्वारा परमेश्वर के स्वभाव के अपमान का एक और तथ्य नहीं है? तुम लोग स्वर्ग के परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हो, परंतु पृथ्वी के परमेश्वर के अस्तित्व से इनकार करते हो; लेकिन मैं तुम लोगों के विचार स्वीकार नहीं करता; मैं केवल उन लोगों की सराहना करता हूँ, जो अपने पैरों को ज़मीन पर रखते हैं और पृथ्वी के परमेश्वर की सेवा करते हैं, किंतु उनकी सराहना कभी नहीं करता, जो पृथ्वी के मसीह को स्वीकार नहीं करते। ऐसे लोग स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति कितने भी वफादार क्यों न हों, अंत में वे दुष्टों को दंड देने वाले मेरे हाथ से बचकर नहीं निकल सकते। ये लोग दुष्ट हैं; ये वे बुरे लोग हैं, जो परमेश्वर का विरोध करते हैं और जिन्होंने कभी खुशी से मसीह का आज्ञापालन नहीं किया है। निस्संदेह, उनकी संख्या में वे सब सम्मिलित हैं जो मसीह को नहीं जानते, और इसके अलावा, उसे स्वीकार नहीं करते। क्या तुम समझते हो कि जब तक तुम स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति वफादार हो, तब तक मसीह के प्रति जैसा चाहो वैसा व्यवहार कर सकते हो? गलत! मसीह के प्रति तुम्हारी अज्ञानता स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति अज्ञानता है। तुम स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति चाहे कितने भी वफादार क्यों न हो, यह मात्र खोखली बात और दिखावा है, क्योंकि पृथ्वी का परमेश्वर मनुष्य के लिए न केवल सत्य और अधिक गहरा ज्ञान प्राप्त करने में सहायक है, बल्कि इससे भी अधिक, मनुष्य की भर्त्सना करने और उसके बाद दुष्टों को दंडित करने के लिए तथ्य हासिल करने में सहायक है। क्या तुमने यहाँ लाभदायक और हानिकारक परिणामों को समझ लिया है? क्या तुमने उनका अनुभव किया है? मैं चाहता हूँ कि तुम लोग शीघ्र ही किसी दिन इस सत्य को समझो : परमेश्वर को जानने के लिए तुम्हें न केवल स्वर्ग के परमेश्वर को जानना चाहिए, बल्कि, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण रूप से, पृथ्वी के परमेश्वर को भी जानना चाहिए। अपनी प्राथमिकताओं को गड्डमड्ड मत करो या गौण को मुख्य की जगह मत लेने दो। केवल इसी तरह से तुम परमेश्वर के साथ वास्तव में एक अच्छा संबंध बना सकते हो, परमेश्वर के नज़दीक हो सकते हो, और अपने हृदय को उसके और अधिक निकट ले जा सकते हो। यदि तुम काफी वर्षों से विश्वासी रहे हो और लंबे समय से मुझसे जुड़े हुए हो, किंतु फिर भी मुझसे दूर हो, तो मैं कहता हूँ कि अवश्य ही तुम प्रायः परमेश्वर के स्वभाव का अपमान करते हो, और तुम्हारे अंत का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होगा। यदि मेरे साथ कई वर्षों का संबंध न केवल तुम्हें ऐसा मनुष्य बनाने में असफल रहा है जिसमें मानवता और सत्य हो, बल्कि, इससे भी अधिक, उसने तुम्हारे दुष्ट तौर-तरीकों को तुम्हारी प्रकृति में बद्धमूल कर दिया है, और न केवल तुम्हारा अहंकार पहले से दोगुना हो गया है, बल्कि मेरे बारे में तुम्हारी गलतफहमियाँ भी कई गुना बढ़ गई हैं, यहाँ तक कि तुम मुझे अपना छोटा सह-अपराधी मान लेते हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हारा रोग अब त्वचा में ही नहीं रहा, बल्कि तुम्हारी हड्डियों तक में घुस गया है। तुम्हारे लिए बस यही शेष बचा है कि तुम अपने अंतिम संस्कार की व्यवस्था किए जाने की प्रतीक्षा करो। तब तुम्हें मुझसे प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं है कि मैं तुम्हारा परमेश्वर बनूँ, क्योंकि तुमने मृत्यु के योग्य पाप किया है, एक अक्षम्य पाप किया है। मैं तुम पर दया कर भी दूँ, तो भी स्वर्ग का परमेश्वर तुम्हारा जीवन लेने पर जोर देगा, क्योंकि परमेश्वर के स्वभाव के प्रति तुम्हारा अपराध कोई साधारण समस्या नहीं है, बल्कि बहुत ही गंभीर प्रकृति का है। जब समय आएगा, तो मुझे दोष मत देना कि मैंने तुम्हें पहले नहीं बताया था। मैं फिर से कहता हूँ : जब तुम मसीह—पृथ्वी के परमेश्वर—से एक साधारण मनुष्य के रूप में जुड़ते हो, अर्थात् जब तुम यह मानते हो कि यह परमेश्वर एक व्यक्ति के अलावा कुछ नहीं है, तो तुम नष्ट हो जाओगे। तुम सबके लिए मेरी यही एकमात्र चेतावनी है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 322
मनुष्य में केवल विश्वास का अनिश्चित शब्द मौजूद है, फिर भी वह यह नहीं जानता कि विश्वास क्या होता है, और यह तो बिलकुल भी नहीं जानता कि उसे विश्वास क्यों है। मनुष्य बहुत कम जानता है, और स्वयं मनुष्य में बहुत सारी कमियाँ हैं; मुझ पर उसका विश्वास नासमझी और अज्ञानता से भरा है। यद्यपि वह नहीं जानता कि विश्वास क्या होता है, न ही वह यह जानता है कि वह मुझमें विश्वास क्यों करता है, फिर भी वह सनकियों की तरह मुझें विश्वास किए चला जाता है। मैं मनुष्य से मात्र यह नहीं चाहता कि वह मुझे सनकियों की तरह इस तरीके से पुकारे या मुझ पर असंगत तरीके से विश्वास करे, क्योंकि जो काम मैं करता हूँ, वह इसलिए करता हूँ कि वह मुझे देख और जान सके, इसलिए नहीं कि वह मुझसे प्रभावित हो और एक नई रोशनी में मुझे देखे। मैंने एक बार कई चिह्न और अचंभे दिखाए थे और कई चमत्कार प्रदर्शित किए थे, और उस समय के इजराइलियों ने मेरी बहुत प्रशंसा की थी तथा बीमारों को चंगा करने तथा दुष्टात्माओं को निकालने की मेरी विलक्षण क्षमता का बड़ा सम्मान किया था। उस समय यहूदी सोचते थे कि मेरी चंगाई की शक्तियाँ अति उत्तम और असाधारण हैं—और मेरे अनेक कर्मों के कारण उन्होंने मेरा बड़ा सम्मान किया, और मेरी सारी शक्तियों की बहुत प्रशंसा की। इस प्रकार, जिन्होंने भी मुझे चमत्कार करते देखा, उन सबने निकटता से मेरा अनुसरण किया, यहाँ तक कि बीमारों को चंगा करते देखने के लिए हज़ारों लोग मेरे इर्द-गिर्द इकट्ठे हो गए। मैंने इतने सारे चिह्न और चमत्कार प्रकट किए, फिर भी लोगों ने मुझे एक महान चिकित्सक ही माना; मैंने उस समय लोगों को शिक्षा देने के लिए बहुत सारे वचन भी कहे, फिर भी उन्होंने मुझे मात्र अपने चेलों से बेहतर एक अच्छा शिक्षक ही समझा। यहाँ तक कि आज भी, जबकि मनुष्य मेरे कार्य के ऐतिहासिक दस्तावेज देख चुके हैं, उनकी व्याख्या यही चली आ रही है कि मैं बीमारों को चंगा करने वाला एक महान चिकित्सक और अज्ञानियों का शिक्षक हूँ, और उन्होंने मुझे दयावान प्रभु यीशु मसीह के रूप में परिभाषित किया है। पवित्र शास्त्र की व्याख्या करने वाले हो सकता है, चंगाई की मेरी कुशलता को पार कर गए हों, या चेले अपने गुरु से आगे निकल गए हों, फिर भी ऐसे प्रसिद्ध मनुष्य, जिनका नाम सारे संसार में जाना जाता है, मुझे मात्र चिकित्सक जितना छोटा समझते हैं। मेरे कर्मों की संख्या समुद्र-तटों की रेत के कणों से भी ज़्यादा है, और मेरी बुद्धि सुलेमान के सभी पुत्रों से बढ़कर है, फिर भी लोग मुझे मामूली हैसियत का मात्र एक चिकित्सक और मनुष्यों का कोई अज्ञात शिक्षक समझते हैं। बहुत-से लोग केवल इसलिए मुझ पर विश्वास करते हैं कि मैं उनको चंगा कर सकता हूँ। बहुत-से लोग सिर्फ इसलिए मुझ पर विश्वास करते हैं कि मैं उनके शरीर से अशुद्ध आत्माओं को निकालने के लिए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करूँगा, और बहुत-से लोग मुझसे बस शांति और आनंद प्राप्त करने के लिए मुझ पर विश्वास करते हैं। बहुत-से लोग मुझसे सिर्फ और अधिक भौतिक संपदा माँगने के लिए मुझ पर विश्वास करते हैं। बहुत-से लोग मुझसे सिर्फ इस जीवन को शांति से गुज़ारने और आने वाले संसार में सुरक्षित और स्वस्थ रहने के लिए मुझ पर विश्वास करते हैं। बहुत-से लोग केवल नरक की पीड़ा से बचने के लिए और स्वर्ग के आशीष प्राप्त करने के लिए मुझ पर विश्वास करते हैं। बहुत-से लोग केवल अस्थायी आराम के लिए मुझ पर विश्वास करते हैं और आने वाले संसार में कुछ हासिल करने की कोशिश नहीं करते। जब मैंने अपना क्रोध नीचे मनुष्यों पर उतारा और उसका सारा आनंद और शांति छीन ली, तो मनुष्य संदिग्ध हो गया। जब मैंने मनुष्य को नरक का कष्ट दिया और स्वर्ग के आशीष वापस ले लिए, तो मनुष्य की लज्जा क्रोध में बदल गई। जब मनुष्य ने मुझसे खुद को चंगा करने के लिए कहा, तो मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया और उसके प्रति घृणा महसूस की; तो मनुष्य मुझे छोड़कर चला गया और बुरी दवाइयों तथा जादू-टोने का मार्ग खोजने लगा। जब मैंने मनुष्य द्वारा मुझसे माँगा गया सब-कुछ वापस ले लिया, तो हर कोई बिना कोई निशान छोड़े गायब हो गया। इसलिए मैं कहता हूँ कि मनुष्य मुझ पर इसलिए विश्वास करता है, क्योंकि मैं बहुत अनुग्रह देता हूँ, और प्राप्त करने के लिए और भी बहुत-कुछ है। यहूदी मुझ पर मेरे अनुग्रह के कारण ही विश्वास करते थे और जहाँ कहीं मैं जाता था, मेरा अनुसरण करते थे। सीमित ज्ञान और अनुभव वाले वे अज्ञानी मनुष्य केवल वे चिह्न और चमत्कार देखना चाहते थे, जिन्हें मैं प्रकट करता था। वे मुझे यहूदियों के घराने के मुखिया के रूप में मानते थे, जो सबसे बड़े चमत्कार कर सकता था। और इसलिए जब मैंने मनुष्यों में से दुष्टात्माओं को निकाला, तो उनके बीच बड़ी चर्चा हुई : उन्होंने कहा कि मैं एलियाह हूँ, मैं मूसा हूँ, मैं सभी पैगंबरों में सबसे प्राचीन हूँ, कि मैं चिकित्सकों में सबसे महान हूँ। मेरे यह कहने के बावजूद कि मैं जीवन, मार्ग और सत्य हूँ, कोई मेरी हस्ती और मेरी पहचान को नहीं जान सका। मेरे यह कहने के बावजूद कि स्वर्ग वह जगह है जहाँ मेरा पिता रहता है, कोई यह नहीं जान पाया कि मैं परमेश्वर का पुत्र और स्वयं परमेश्वर हूँ। मेरे यह कहने के बावजूद कि मैं सारी मानव-जाति के लिए छुटकारा लाऊँगा और मनुष्यों को दाम देकर छुड़ाऊँगा, कोई नहीं जान पाया कि मैं मनुष्यों का उद्धारकर्ता हूँ; और मनुष्यों ने मुझे केवल एक उदार और दयालु मनुष्य के रूप में जाना। और यह स्पष्ट कर देने पर भी कि सब-कुछ मेरा है, किसी ने मेरे बारे में नहीं जाना, और किसी ने यह विश्वास नहीं किया कि मैं जीवित परमेश्वर का पुत्र हूँ। लोगों का मुझमें ऐसा विश्वास है, और इस तरह वे मुझे धोखा देते हैं। जब वे मेरे बारे में ऐसे विचार रखते हैं, तो वे मेरी गवाही कैसे दे सकते हैं?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'तुम विश्वास के बारे में क्या जानते हो?' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 323
लोगों ने लम्बे समय से परमेश्वर में विश्वास किया है, फिर भी उनमें से ज्यादातर को कोई समझ नहीं है कि "परमेश्वर" शब्द का अर्थ क्या है, वे बस घबराहट में अनुसरण करते हैं। उन्हें पता नहीं है कि वास्तव में मनुष्य को परमेश्वर में विश्वास क्यों करना चाहिए, या परमेश्वर क्या है। यदि लोग सिर्फ़ परमेश्वर में विश्वास करना और उसका अनुसरण करना जानते हैं, परन्तु यह नहीं जानते कि परमेश्वर क्या है, और यदि वे परमेश्वर को भी नहीं जानते, तो क्या यह बस एक बहुत बड़ा मज़ाक नहीं है? इतनी दूर आने के बाद, भले ही लोगों ने अब तक बहुत-से स्वर्गिक रहस्य देखे हैं और अथाह ज्ञान की बहुत-सी बातें सुनी हैं, जो मनुष्य ने पहले कभी नहीं समझी थीं, तब भी वे बहुत से अत्यंत प्राथमिक सत्यों से अनजान हैं जिन पर मनुष्य ने पहले कभी चिंतन-मनन नहीं किया। कुछ लोग कह सकते हैं, "हमने कई वर्ष परमेश्वर में विश्वास किया है। हम कैसे नहीं जान सकते हैं कि परमेश्वर क्या है? क्या यह प्रश्न हमारा निरादर नहीं करता?" परन्तु वास्तविकता में, यद्यपि आज लोग मेरा अनुसरण करते हैं, किंतु वे आज के किसी कार्य के बारे में कुछ भी नहीं जानते, और सबसे सीधे-सादे और सबसे आसान प्रश्नों को भी समझने में विफल हो जाते हैं, फिर ऐसे अत्यंत जटिल प्रश्नों की तो बात ही छोड़ दें जो परमेश्वर के बारे में हैं। जान लो कि जिन प्रश्नों से तुम लोगों का कोई वास्ता नहीं है, जिन्हें तुम लोगों ने पहचाना नहीं है, यही वे प्रश्न हैं जिन्हें समझना तुम लोगों के लिए सबसे आवश्यक है, क्योंकि तुम लोग केवल भीड़ के पीछे चलना जानते हो और जिनसे तुम लोगों को स्वयं को सुसज्जित करना चाहिए उन पर कोई ध्यान नहीं देते हो और उनकी कोई परवाह नहीं करते हो। क्या तुम सचमुच जानते भी हो कि तुम्हें परमेश्वर में विश्वास क्यों करना चाहिए? क्या तुम सचमुच जानते हो कि परमेश्वर क्या है? क्या तुम लोग सचमुच जानते हो कि मनुष्य क्या है? परमेश्वर में विश्वास करने वाले व्यक्ति के रूप में यदि तुम इन बातों को समझने में विफल हो जाते हो, तो क्या तुम परमेश्वर के विश्वासी की गरिमा खो नहीं देते? आज मेरा कार्य यह है : लोगों को उनका सार समझाना, वह सब समझाना जो मैं करता हूँ, और परमेश्वर के असली चेहरे से परिचित करवाना। यह मेरी प्रबंधन योजना का समापन भाग, मेरे कार्य का अंतिम चरण है। यही कारण है कि मैं जीवन के सारे सत्य तुम लोगों को पहले से बता रहा हूँ, ताकि तुम लोग उन्हें मुझ से स्वीकार कर सको। चूंकि यह अंतिम युग का कार्य है, इसलिए मुझे तुम सब लोगों को जीवन के सारे जीवन-सत्य बताने होंगे जिन्हें तुम लोगों ने पहले कभी ग्रहण नहीं किया है, बावजूद इसके कि बहुत अपूर्ण और बहुत अनुपयुक्त होने के कारण तुम लोग उसे समझने या धारण करने में असमर्थ हो। मैं अपने कार्य का समापन करूँगा; मुझे जो कार्य करना है, उसे मैं पूरा करूँगा, और तुम लोगों को मैंने जो आदेश दिए हैं उन सबके बारे में तुम लोगों को बताऊँगा, ताकि कहीं ऐसा न हो कि जब अँधेरा छाये तब तुम लोग फिर भटक जाओ और दुष्ट के कुचक्रों के फेर में पड़ जाओ। कई तरीके हैं जो तुम नहीं समझते हो, कई मामले हैं जिनका तुम्हें कोई ज्ञान नहीं है। तुम लोग इतने अज्ञानी हो; मैं तुम लोगों की कद-काठी और तुम लोगों की कमियां अच्छी तरह जानता हूँ। इसलिए, यद्यपि कई वचन हैं जिन्हें समझने में तुम लोग असमर्थ हो, फिर भी मैं तुम सब लोगों को ये सारे सत्य बताने का इच्छुक हूँ जिन्हें तुमने पहले कभी ग्रहण नहीं किया हैहे, क्योंकि मैं चिंता करता रहता हूँ कि तुम लोगों की वर्तमान कद-काठी में, तुम मेरे प्रति अपनी गवाही पर डटे रहने में समर्थ हो या नहीं। ऐसा नहीं है कि मुझे तुम लोगों की कोई परवाह नहीं है; तुम लोग पूरे जंगली हो जिन्हें अभी मेरे औपचारिक प्रशिक्षण से गुज़रना है, और मैं पूरी तरह देख नहीं सकता कि तुम लोगों के भीतर कितनी महिमा है। हालाँकि तुम लोगों पर कार्य करते हुए मैंने बहुत ऊर्जा व्यय की है, तब भी तुम लोगों में सकारात्मक तत्व वास्तव में अविद्यमान प्रतीत होते हैं, जबकि नकारात्मक तत्व अँगुलियों पर गिने जा सकते हैं और केवल ऐसी गवाहियों का काम कर सकते हैं, जो शैतान को लज्जित करती हैं। तुम्हारे भीतर लगभग बाकी सब कुछ शैतान का ज़हर है। तुम लोग मुझे ऐसे दिखते हो जैसे तुम उद्धार से परे हो। अभी स्थिति यह है कि मैं तुम लोगों की विभिन्न अभिव्यक्तियों और व्यवहारों को देखता हूँ, और अंततः, मैं तुम लोगों की असली कद-काठी जानता हूँ। यही कारण है कि मैं तुम लोगों को लेकर अत्यधिक चिंता करता रहता हूँ: जीवन जीने के लिए अकेले छोड़ दिये जायें, तो क्या मनुष्य आज जैसे हैं, उसके तुल्य या उससे बेहतर हो पाएंगे? क्या तुम लोगों की बचकानी कद-काठी तुम लोगों को व्याकुल नहीं करती? क्या तुम लोग सचमुच इस्राएल के चुने हुए लोगों जैसे हो सकते हो-हर समय, केवल और केवल मेरे प्रति निष्ठावान? तुम लोगों में जो उद्घाटित हुआ है, वह अपने माता-पिता से बिछड़े बच्चों का शरारतीपन नहीं है, बल्कि जंगलीपन है जो अपने स्वामियों के चाबुक की पहुँच से बाहर हो चुके जानवरों से फूटकर बाहर आ जाता है। तुम लोगों को अपनी प्रकृति जाननी चाहिए, जो तुम लोगों में समान कमज़ोरी भी है; यह एक रोग है जो तुम लोगों में समान है। इस प्रकार, आज तुम लोगों को मेरा एकमात्र उपदेश यह है कि मेरे प्रति अपनी गवाही पर अडिग रहो। किसी भी परिस्थिति में पुरानी बीमारी को फिर भड़कने न दो। गवाही देना ही वह है, जो सबसे महत्वपूर्ण है—यह मेरे कार्य का मर्म है। तुम लोगों कोमेरे वचन वैसे ही स्वीकार करने चाहिए जैसे मरियम ने यहोवा का प्रकाशन स्वीकार किया था, जो उस तक एक स्वप्न में आया था : विश्वास करके और आज्ञापालन करके। केवल यही पवित्रता की कसौटी पर खरा उतरता है। क्योंकि तुम लोग ही हो जो मेरे वचनों को सबसे अधिक सुनते हो, जिन्हें मेरा सबसे अधिक आशीष प्राप्त है। मैंने तुम लोगों को अपनी समस्त मूल्यवान चीज़ें दे दी हैं, मैंने सब कुछ तुम लोगों को प्रदान कर दिया है, तो भी तुम लोग इस्राएल के लोगों से इतने अत्यधिक भिन्न कद-काठी के हो; तुम बहुत ही अलग-अलग हो। लेकिन उनकी तुलना में, तुम लोगों ने इतना अधिक प्राप्त किया है; जहां वे मेरे प्रकटन की हताशा से प्रतीक्षा करते हैं, तुम लोग मेरे साथ, मेरी उदारता को साझा करते हुए, सुखद दिन बिताते हो। इस भिन्नता को देखते हुए, मेरे ऊपर चीखने-चिल्लाने और मेरे साथ झगड़ा करने और जो मेरा है, उसमें अपने हिस्से की माँग करने का अधिकार तुम लोगों को कौन देता है? क्या तुम लोगों को बहुत नहीं मिला है? मैं तुम लोगों को इतना अधिक देता हूँ, परन्तु बदले में तुम लोग जो मुझे देते हो, वह है हृदयविदारक उदासी और दुष्चिंता और अदम्य रोष और असंतोष। तुम बहुत घृणास्पद हो—तथापि तुम दयनीय भी हो, इसलिए मेरे पास इसके सिवा कोई चारा नहीं है कि मैं अपना सारा रोष निगल लूँ और तुम लोगों के सामने बार-बार अपनी आपत्तियों को ज़ाहिर करूँ। हज़ारों वर्षों के कार्य के दौरान, मैंने कभी मानवजाति के साथ प्रतिवाद नहीं किया क्योंकि मैंने पाया है कि मानवता के समूचे विकास में, तुम लोगों के बीच केवल "चकमेबाज" ही हैं जो सबसे अधिक प्रख्यात बने हैं, प्राचीन कालों के प्रसिद्ध पुरखों द्वारा तुम लोगों के लिए छोड़ी गई बहुमूल्य धरोहरों की तरह। उन सूअर और कुत्तों से, निचले दर्जे के इन्सानों से मुझे कितनी घृणा है। तुम लोगों में अंतरात्मा की कमी है! तुम लोग बहुत अधम चरित्र के हो! तुम लोगों के हृदय बहुत कठोर हैं! यदि मैं अपने ऐसे वचनों और कार्य को इस्राएलियों के बीच ले गया होता, तो मैं बहुत पहले ही महिमा प्राप्त कर चुका होता। परन्तु तुम लोगों के बीच यह अप्राप्य है; तुम लोगों के बीच सिर्फ़ क्रूर उपेक्षा, तुम्हारा रूखा व्यवहार और तुम्हारे बहाने हैं। तुम लोग बहुत संवेदनाशून्य और बिल्कुल बेकार हो!
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ क्या है?' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 324
तुम सभी को अब परमेश्वर पर विश्वास करने का सही अर्थ समझना चाहिए। परमेश्वर पर विश्वास करने के जिस अर्थ के बारे में मैंने पहले बोला था, वह तुम लोगों के सकारात्मक प्रवेश से सम्बन्धित है। आज ऐसा नहीं है : आज मैं परमेश्वर पर तुम सब के विश्वास के सार का विश्लेषण करना चाहूँगा। बेशक, यह तुम लोगों का नकारात्मकता के एक पहलू से मार्गदर्शन करना है; यदि मैं ऐसा नहीं करूँगा, तो, तुम अपना सच्चा चेहरा कभी नहीं देख पाओगे, और हमेशा अपनी धर्मपरायणता और निष्ठा पर घमण्ड करोगे। यह कहना उचित होगा कि यदि मैं तुम लोगों के हृदय की गहराई में छिपी हुई कुरूपता को प्रकट न करूँ, तो तुममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने सिर पर मुकुट रखकर समस्त महिमा अपने लिए रख लेगा। तुम सबकी अभिमानी और दंभी प्रकृति तुम सबको अपने अंतःकरण के साथ विश्वासघात करने, मसीह के खिलाफ विद्रोह करने और उसका विरोध करने और अपनी कुरूपता प्रकट करने के लिए प्रेरित करती है, और इस तरह तुम सबके इरादों, धारणाओं, असाधारण इच्छाओं और लालच से भरी नज़रों को प्रकाश में ले आती है। फिर भी तुम सब मसीह के कार्य के लिए अपने जीवन भर के जोश के बारे में बक-बक करते रहते हो और मसीह के द्वारा बहुत पहले कहे गए सत्यों को बार-बार दोहराते रहते हो। यही तुम सबका "विश्वास" है—यही तुम सबका "अशुद्धता रहित विश्वास" है। मैंने मनुष्य के लिए आरंभ से ही बहुत कठोर मानक रखा है। यदि तुम्हारी वफ़ादारी इरादों और शर्तों के साथ आती है, तो मैं तुम्हारी तथाकथित वफादारी के बिना रहूँगा, क्योंकि मैं उन लोगों से घृणा करता हूँ जो मुझे अपने इरादों से धोखा देते हैं और शर्तों के साथ मुझसे ज़बरन वसूली करते हैं। मैं मनुष्यों से सिर्फ़ यही चाहता हूँ कि वे मेरे प्रति पूरे वफादार हों और सब चीज़े एक शब्द : विश्वास के वास्ते—और उसे साबित करने के लिए करें। मैं तुम्हारे द्वारा मुझे प्रसन्न करने की कोशिश करने के लिए की जाने वाली खुशामद का तिरस्कार करता हूँ, क्योंकि मैंने हमेशा तुम सबके साथ ईमानदारी से व्यवहार किया है, और इसलिए मैं तुम सब से भी यही चाहता हूँ कि तुम भी मेरे प्रति एक सच्चे विश्वास के साथ कार्य करो। जब विश्वास की बात आती है, तो कई लोग यह सोच सकते हैं कि वे परमेश्वर का अनुसरण इसलिए करते हैं क्योंकि उनमें विश्वास है, अन्यथा वे इस प्रकार की पीड़ा नहीं सहते। तो मैं तुम से पूछता हूँ : यदि तुम परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हो, तो उसका आदर क्यों नहीं करते? यदि तुम परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हो तो तुम्हारे हृदय में उसका थोड़ा-सा भी भय क्यों नहीं है? तुम स्वीकार करते हो कि मसीह परमेश्वर का देहधारण है, तो तुम उसकी अवमानना क्यों करते हो? तुम उसके प्रति इतने अनादरपूर्वक कार्य क्यों करते हो? तुम उसकी खुलेआम आलोचना क्यों करते हो? तुम हमेशा उसकी गतिविधियों की जासूसी क्यों करते हो? तुम उसकी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित क्यों नहीं होते? तुम उसके वचन के अनुसार कार्य क्यों नहीं करते? क्यों तुम उसकी भेंटों को जबरन छीनने और लूटने का प्रयास करते हो? क्यों तुम मसीह के स्थान से बोलते हो? क्यों तुम उसके कार्य और वचनों के सही या गलत होने का का आकलन करते हो? क्यों तुम पीठ पीछे उसकी निंदा करने का साहस करते हो? क्या यही और अन्य बातें हैं, जो तुम सबके विश्वास का निर्माण करती हैं?
तुम सबके शब्दों और व्यवहार में मसीह के प्रति तुम्हारे अविश्वास के तत्व प्रकट होते हैं। तुम जो कुछ भी करते हो उसके इरादों और लक्ष्यों में अविश्वास व्याप्त रहता है। यहाँ तक कि तुम सबकी नज़रों में भी मसीह के प्रति अविश्वास होता है। यह कहा जा सकता है कि पल-प्रति-पल तुम सब अविश्वास के तत्वों को स्थान देते हो। इसका अर्थ है किहर पल तुम सब मसीह के साथ विश्वासघात करने के खतरे में हो, क्योंकि तुम सबके शरीर में दौड़ने वाला रक्त देहधारी परमेश्वर में अविश्वास से तर रहता है। इसलिए, मैं कहता हूँ कि परमेश्वर पर विश्वास के मार्ग पर जिन पदचिह्नों को तुम छोडते हो, वे वास्तविक नहीं हैं; जब तुम लोग परमेश्वर में विश्वास के मार्ग पर चलते हो, तो तुम जमीन पर अपने पैर मजबूती से नहीं रखते—तुम बस बेमन से कार्य करते हो। तुम सब कभी मसीह के वचनों पर पूरी तरह से विश्वास नहीं करते और उन्हें तुरंत अभ्यास में लाने में अक्षम हो। यही कारण है कि तुम सब मसीह पर विश्वास नहीं करते, और हमेशा उसके बारे में धारणाएँ रखना एक अन्य कारण है कि तुम मसीह पर विश्वास नहीं करते। मसीह के कार्य के बारे में हमेशा संशय ग्रस्त रहना, मसीह के वचनों पर कान न देना, मसीह के द्वारा किए गए जो भी कार्य हैं उनके बारे में राय रखना और उसके कार्य को सही तरह से समझने में समर्थ नहीं होना, तुम्हें चाहे कैसा भी स्पष्टीकरण क्यों न प्राप्त हो, अपनी धारणाओं को छोड़ने में कठिनाई महसूस करना, इत्यादि—ये सभी अविश्वास के तत्व तुम सबके हृदय में मिश्रित हो गए हैं। यद्यपि तुम सब मसीह के कार्य का अनुसरण करते हो और कभी भी पीछे नहीं रहते हो, किन्तु तुम सबके हृदयों में अत्यधिक विद्रोह मिश्रित हो गया है। यह विद्रोह परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास की एक अशुद्धि है। शायद तुम सबको ऐसा न लगता हो, किन्तु यदि इसमें तुम अपने इरादों को नहीं पहचान सकते, तो तुम्हारा उन लोगों में से होना निश्चित है जो नष्ट होंगे, क्योंकि परमेश्वर केवल उन्हें ही पूर्ण करता है जो वास्तव में उस पर विश्वास करते हैं, उन्हें नहीं जो उस पर संशय करते हैं, और उन सबको तो बिल्कुल नहीं जो कभी भी उसे परमेश्वर न मानने के बावजूद उसका अनिच्छा से अनुसरण करते हैं।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 325
कुछ लोग सत्य में आनंदित नहीं होते, न्याय में तो बिल्कुल भी नहीं। बल्कि वे शक्ति और सम्पत्तियों में आनन्दित होते हैं; इस प्रकार के लोग शक्ति के खोजी कहे जाते हैं। वे केवल दुनिया के प्रभावशाली सम्प्रदायों तथा सेमिनरी से आने वाले पादरियों और शिक्षकों को खोजते हैं। हालंकि उन्होंने सत्य के मार्ग को स्वीकार कर लिया है, फिर भी वे आधा विश्वास करते हैं; और वे अपने दिलो-दिमाग को पूरी तरह से समर्पित करने में असमर्थ होते हैं, वे मुख से तो परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की बात करते हैं, किन्तु उनकी नज़रें बड़े पादरियों और शिक्षकों पर केन्द्रित रहती हैं, और वे मसीह की ओर दूसरी नजर भी नहीं डालते। उनके हृदय प्रसिद्धि, वैभव और महिमा पर ही टिक गए हैं। वे इसे असंभव समझते हैं कि ऐसा मामूली व्यक्ति इतने लोगों पर विजय प्राप्त कर सकता है कि एक इतना साधारण व्यक्ति लोगों को पूर्ण बनाबना सकता है। वे इसे असंभव समझते हैं कि ये धूल और घूरे में पड़े नाचीज़ लोग परमेश्वर के द्वारा चुने गए हैं। वे मानते हैं कि यदि ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार की योजना के लक्ष्य रहे होते, तो स्वर्ग और पृथ्वी उलट-पुलट हो जाते और सभी लोग ठहाके लगाकर हँसते। उनका मानना है कि यदि परमेश्वर ने ऐसे नाचीज़ों को पूर्ण बनाने के लिए चुना होता, तो वे सभी बड़े लोग स्वयं परमेश्वर बन जाते। उनके दृष्टिकोण अविश्वास से दूषित हैं; अविश्वास करने से अधिक, वे बेहूदे जानवर हैं। क्योंकि वे केवल पद, प्रतिष्ठा और सत्ता को महत्व देते है और केवल बड़े समूहों और सम्प्रदायों को सम्मान देते हैं। उनमें उनके लिए बिल्कुल भी सम्मान नहीं है जिनकी अगुवाई मसीह करता है; वे तो बस ऐसे गद्दार हैं जिन्होंने मसीह से, सत्य से और जीवन से अपना मुँह मोड़ लिया है।
तुम मसीह की विनम्रता की प्रशंसा नहीं करते, बल्कि विशेष हैसियत वाले उन झूठे चरवाहों की प्रशंसा करते हो। तुम मसीह की मनोहरता या बुद्धि से प्रेम नहीं करते हो, बल्कि उन व्यभिचारियों से प्रेम करते हो जो संसार की कीचड़ में लोट लगाते हैं। तुम मसीह की पीड़ा पर हँसते हो, जिसके पास अपना सिर टिकाने तक की जगह नहीं है, किन्तु उन मुरदों की तारीफ़ करते हो जो चढ़ावों को हड़प लेते हैं और अय्याशी में जीते हैं। तुम मसीह के साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं हो, परन्तु उन धृष्ट मसीह-विरोधियों की बाँहों में प्रसन्नता से जाते हो, हालाँकि वे तुम्हें सिर्फ देह, शब्द और नियंत्रण ही प्रदान करते हैं। अब भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा की ओर, उनकी हैसियत की ओर, उनके प्रभाव की ओर मुड़ता है। फिर भी तुम ऐसा रवैया बनाये रखते हो जहाँ तुम मसीह के कार्य को गले से उतारना कठिन पाते हो और उसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होते। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुममें मसीह को स्वीकार करने का विश्वास नहीं है। तुमने आज तक उसका अनुसरण सिर्फ़ इसलिए किया, क्योंकि तुम्हारे पास कोई और चारा नहीं था। तुम्हारे हृदय में हमेशा बुलंद छवियों का स्थान रहा है; तुम न तो उनके हर वचन और कर्म को, और न ही उनके प्रभावशाली वचनों और हाथों को भूल सकते हो। तुम सबके हृदय में वे हमेशा सर्वोच्च और हमेशा नायक हैं। किन्तु आज के मसीह के लिए ऐसा नहीं है। तुम्हारे हृदय में वह हमेशा महत्वहीन और हमेशा आदर के अयोग्य है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण है, उसका बहुत ही कम प्रभाव है और वह उत्कृष्ट तो बिल्कुल नहीं है।
बहरहाल, मैं कहता हूँ कि जो लोग सत्य का सम्मान नहीं करते हैं वे सभी अविश्वासी और सत्य के प्रति गद्दार हैं। ऐसे लोगों को कभी भी मसीह का अनुमोदन प्राप्त नहीं होगा। क्या अब तुमने पहचान लिया है कि तुम्हारे भीतर कितना अधिक अविश्वास है, और मसीह के प्रति कितना विश्वासघात है? मैं तुमको इस तरह से शिक्षा देता हूँ : चूँकि तुमने सत्य का मार्ग चुना है, तो तुम्हें सम्पूर्ण हृदय से खुद को समर्पित कर देना चाहिए; दुविधाग्रस्त या अधूरे मन वाले न बनो। तुम्हें समझना चाहिए कि परमेश्वर इस संसार या किसी एक व्यक्ति का नहीं है, बल्कि उन सबका है जो उस पर सचमुच विश्वास करते हैं, उन सबका जो उसकी आराधना करते हैं, और उन सबका है जो उसके प्रति समर्पित और निष्ठावान है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 326
अपने विश्वास में लोग परमेश्वर को उन्हें एक उपयुक्त मंज़िल और जितना वे चाहते हैं, उतना अनुग्रह देने, उसे अपना सेवक बनाने, उसे अपने साथ एक शांतिपूर्ण, मैत्रीपूर्ण संबंध, फिर वह चाहे कभी भी हो, बनाए रखने के लिए बाध्य करना चाहते हैं, ताकि उनके बीच कभी कोई संघर्ष न हो। अर्थात् परमेश्वर में उनका विश्वास यह माँग करता है कि वह उनकी सभी आवश्यकताएँ पूरी करने का वादा करे और उनके द्वारा बाइबल में पढ़े गए इन वचनों को ध्यान में रखते हुए कि, "मैं तुम लोगों की प्रार्थनाएँ सुनूँगा," उन्हें वह सब प्रदान करे, जिसके लिए वे प्रार्थना करें। वे परमेश्वर से किसी का न्याय या निपटारा न करने की अपेक्षा करते हैं, क्योंकि वह हमेशा दयालु उद्धारकर्ता यीशु रहा है, जो हर समय और सभी जगहों पर लोगों के साथ एक अच्छा संबंध रखता है। लोग परमेश्वर में कुछ इस तरह विश्वास करते हैं : वे बस बेशर्मी से परमेश्वर से माँग माँगें करते हैं, यह मानते हैं कि चाहे वे विद्रोही हों या आज्ञाकारी, वह बस आँख मूँदकर उन्हें सब-कुछ प्रदान करेगा। वे बस परमेश्वर से लगातार "ऋण वसूली" करते हैं, यह विश्वास करते हुए कि उसे उन्हें बिना किसी प्रतिरोध के "चुकाना" चाहिए और इतना ही नहीं, दोगुना भुगतान करना चाहिए; वे सोचते हैं कि परमेश्वर ने उनसे कुछ लिया हो या नहीं, वे उसके साथ चालाकी कर सकते हैं, वह लोगों के साथ मनमानी नहीं कर सकता, और लोगों के सामने जब वह चाहे और बिना उनकी अनुमति के अपनी बुद्धि और धार्मिक स्वभाव तो बिलकुल भी प्रकट नहीं कर सकता, जो कई वर्षों से छिपाए हुए हैं। वे बस परमेश्वर के सामने अपने पाप स्वीकार करते हैं, और यह मानते हैं कि परमेश्वर उन्हें दोषमुक्त कर देगा, वह ऐसा करने से नाराज़ नहीं होगा, और यह हमेशा के लिए चलता रहेगा। वे परमेश्वर को आदेश दे देते हैं, और यह मानकर चलते हैं कि वह उनका पालन करेगा, क्योंकि यह बाइबल में दर्ज है कि परमेश्वर मनुष्यों से सेवा करवाने के लिए नहीं आया, बल्कि उनकी सेवा करने के लिए आया है, वह यहाँ उनका सेवक है। क्या तुम लोग अब तक यही मानते नहीं आए हो? जब भी तुम परमेश्वर से कुछ पाने में असमर्थ होते हो, तुम भाग जाना चाहते हो; जब तुम्हें कुछ समझ में नहीं आता, तो तुम बहुत क्रोधित हो जाते हो, और इस हद तक चले जाते हो कि उसे तरह-तरह की गालियाँ देने लगते हो। तुम लोग स्वयं परमेश्वर को पूरी तरह से अपनी बुद्धि और चमत्कार भी व्यक्त नहीं करने दोगे, तुम लोग तो बस अस्थायी आराम और सुविधा का आनंद लेना चाहते हो। परमेश्वर में आस्था को लेकर अब तक तो तुम्हारा वही पुराना दृष्टिकोण रहा है। यदि परमेश्वर तुम लोगों को थोड़ा-सा प्रताप दिखा दे, तो तुम लोग दुखी हो जाते हो। क्या तुम लोग देख रहे हो कि तुम्हारा आध्यात्मिक कद कितना कितनी महान है? यह न समझो कि तुम सभी परमेश्वर के प्रति वफ़ादार हो, जबकि वास्तव में तुम लोगों के पुराने विचार नहीं बदले हैं। जब तक तुम पर कोई मुसीबत नहीं आ पड़ती, तुम्हें लगता है कि सब-कुछ सुचारु रूप से चल रहा है, और परमेश्वर के प्रति तुम्हारा प्रेम एक ऊँचे मुकाम पर पहुँच जाता है। अगर तुम्हारे साथ कुछ मामूली-सा भी घट जाए, तो तुम रसातल में जा गिरते हो। क्या यही परमेश्वर के प्रति तुम्हारा निष्ठावान होना है?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'मनुष्य के उद्धार के लिए तुम्हें सामाजिक प्रतिष्ठा के आशीष से दूर रहकर परमेश्वर की इच्छा को समझना चाहिए' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 327
तुम लोगों की खोज में, तुम्हारी बहुत सी व्यक्तिगत अवधारणाएँ, आशाएँ और भविष्य होते हैं। वर्तमान कार्य तुम लोगों की हैसियत पाने की अभिलाषा और तुम्हारी अनावश्यक अभिलाषाओं से निपटने के लिए है। आशाएँ, हैसियत और अवधारणाएँ सभी शैतानी स्वभाव के विशिष्ट प्रतिनिधित्व हैं। लोगों के हृदय में इन चीज़ों के होने का कारण पूरी तरह से यह है कि शैतान का विष हमेशा लोगों के विचारों को दूषित कर रहा है, और लोग शैतान के इन प्रलोभनों से पीछा छुड़ाने में हमेशा असमर्थ रहे हैं। वे पाप के बीच रह रहे हैं, मगर इसे पाप नहीं मानते, और अभी भी सोचते हैं: "हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए उसे हमें आशीष प्रदान करना चाहिए और हमारे लिए सब कुछ सही ढंग से व्यवस्थित करना चाहिए। हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए हमें दूसरों से श्रेष्ठतर होना चाहिए, और हमारे पास दूसरों की तुलना में बेहतर हैसियत और बेहतर भविष्य होना चाहिए। चूँकि हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए उसे हमें असीम आशीष देनी चाहिए। अन्यथा, इसे परमेश्वर पर विश्वास करना नहीं कहा जाएगा।" बहुत सालों से, जिन विचारों पर लोगों ने अपने अस्तित्व के लिए भरोसा रखा था, वे उनके हृदय को इस स्थिति तक दूषित कर रहे हैं कि वे विश्वासघाती, डरपोक और नीच हो गए हैं। उनमें न केवल इच्छा-शक्ति और संकल्प का अभाव है, बल्कि वे लालची, अभिमानी और स्वेच्छाचारी भी बन गए हैं। उनमें ऐसे किसी भी संकल्प का सर्वथा अभाव है जो स्वयं को ऊँचा उठाता हो, बल्कि, उनमें इन अंधेरे प्रभावों की बाध्यताओं से पीछा छुड़ाने की लेश-मात्र भी हिम्मत नहीं है। लोगों के विचार और जीवन इतने सड़े हुए हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करने के बारे में उनके दृष्टिकोण अभी भी बेहद वीभत्स हैं। यहाँ तक कि जब लोग परमेश्वर में विश्वास के बारे में अपना दृष्टिकोण बताते हैं तो इसे सुनना मात्र ही असहनीय होता है। सभी लोग कायर, अक्षम, नीच और दुर्बल हैं। उन्हें अंधेरे की शक्तियों के प्रति क्रोध नहीं आता, उनके अंदर प्रकाश और सत्य के लिए प्रेम पैदा नहीं होता; बल्कि, वे उन्हें बाहर निकालने का पूरा प्रयास करते हैं। क्या तुम लोगों के वर्तमान विचार और दृष्टिकोण ठीक ऐसे ही नहीं हैं? "चूँकि मैं परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ, इसलिए मुझ पर आशीषों की वर्षा होनी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मेरी हैसियत कभी न गिरे, यह अविश्वासियों की तुलना में अधिक बनी रहनी चाहिए।" तुम्हारा यह दृष्टिकोण कोई एक-दो वर्षों से नहीं है; बल्कि बरसों से है। तुम लोगों की लेन-देन संबंधी मानसिकता कुछ ज़्यादा ही विकसित है। यद्यपि आज तुम लोग इस चरण तक पहुँच गए हो, तब भी तुम लोगों ने हैसियत का राग अलापना नहीं छोड़ा, बल्कि लगातार इसके बारे में पूछताछ करते रहते हो, और इस पर रोज नज़र रखते हो, इस गहरे डर के साथ कि कहीकहीं किसी दिन तुम लोगों की हैसियत खो न जाए और तुम लोगों का नाम बर्बाद न हो जाए। लोगों ने सहूलियत की अपनी अभिलाषा का कभी त्याग नहीं किया। इसलिए, जैसा कि मैं आज जिस तरह तुम्हारा न्याय कर रहा हूँ, अंत में तुम लोगों के अंदर किस स्तर की समझ होगी? तुम लोग कहोगे कि यद्यपि तुम लोगों की हैसियत ऊँची नहीं है, फिर भी तुम लोगों ने परमेश्वर के उत्कर्ष का आनंद तो लिया ही है। क्योंकि तुम लोग अधम पैदा हुए थे इसलिए तुम लोगों की कोई हैसियत नहीं है, लेकिन तुम हैसियत प्राप्त कर लेते हो क्योंकि परमेश्वर तुम्हारा उत्कर्ष करता है—यह तुम लोगों को परमेश्वर ने प्रदान किया है। आज तुम लोग व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का प्रशिक्षण, उसकी ताड़ना और उसका न्याय प्राप्त करने में सक्षम हो। यह भी उसी का उत्कर्ष है। तुम लोग व्यक्तिगत रूप से उसके द्वारा शुद्धिकरण और प्रज्ज्वलन प्राप्त करने में सक्षम हो। यह परमेश्वर का महान प्रेम है। युगों-युगों से एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसने उसका शुद्धिकरण और प्रज्ज्वलन प्राप्त किया हो और एक भी व्यक्ति उसके वचनों के द्वारा पूर्ण नहीं हो पाया है। परमेश्वर अब तुम लोगों से आमने-सामने बात कर रहा है, तुम लोगों को शुद्ध कर रहा है, तुम लोगों के भीतर के विद्रोहीपन को उजागर कर रहा है—यह सचमुच उसका उत्कर्ष है। लोगों में क्या योग्यता हैं? चाहे वे दाऊद के पुत्र हों या मोआब के वंशज, कुल मिला कर, लोग ऐसे सृजित प्राणी हैं जिनके पास गर्व करने के लिए कुछ नहीं है। चूँकि तुम लोग परमेश्वर के प्राणी हो, इसलिए तुम लोगों को एक प्राणी का कर्तव्य निभाना चाहिए। तुम लोगों से अन्य कोई अपेक्षाएँ नहीं हैं। तुम लोगों को ऐसे प्रार्थना करनी चाहिए : "हे परमेश्वर, चाहे मेरी हैसियत हो या न हो, अब मैं स्वयं को समझती हूँ। यदि मेरी हैसियत ऊँची है तो यह तेरे उत्कर्ष के कारण है, और यदि यह निम्न है तो यह तेरे आदेश के कारण है। सब-कुछ तेरे हाथों में है। मेरे पास न तो कोई विकल्प हैं न ही कोई शिकायत है। तूने निश्चित किया कि मुझे इस देश में और इन लोगों के बीच पैदा होना है, और मुझे पूरी तरह से तेरे प्रभुत्व के अधीन आज्ञाकारी होना चाहिए क्योंकि सब-कुछ उसी के भीतर है जो तूने निश्चित किया है। मैं हैसियत पर ध्यान नहीं देती हूँ; आखिरकार, मैं मात्र एक प्राणी ही तो हूँ। यदि तू मुझे अथाह गड्ढे में, आग और गंधक की झील में डालता है, तो मैं एक प्राणी से अधिक कुछ नहीं हूँ। यदि तू मेरा उपयोग करता है, तो मैं एक प्राणी हूँ। यदि तू मुझे पूर्ण बनाता है, मैं तब भी एक प्राणी हूँ। यदि तू मुझे पूर्ण नहीं बनाता, तब भी मैं तुझ से प्यार करती हूँ क्योंकि मैं सृष्टि के एक प्राणी से अधिक कुछ नहीं हूँ। मैं सृष्टि के परमेश्वर द्वारा रचित एक सूक्ष्म प्राणी से अधिक कुछ नहीं हूँ, सृजित मनुष्यों में से सिर्फ एक हूँ। तूने ही मुझे बनाया है, और अब तूने एक बार फिर मुझे अपने हाथों में अपनी दया पर रखा है। मैं तेरा उपकरण और तेरी विषमता होने के लिए तैयार हूँ क्योंकि सब-कुछ वही है जो तूने निश्चित किया है। कोई इसे बदल नहीं सकता। सभी चीजें और सभी घटनाएँ तेरे हाथों में हैं।" जब वह समय आएगा, तब तू हैसियत पर ध्यान नहीं देगी, तब तू इससे छुटकारा पा लेगी। तभी तू आत्मविश्वास से, निर्भीकता से खोज करने में सक्षम होगी, और तभी तेरा हृदय किसी भी बंधन से मुक्त हो सकता है। एक बार लोग जब इन चीज़ों से छूट जाते हैं, तो उनके पास और कोई चिंताएँ नहीं होतीं। अभी तुम लोगों में से अधिकांश की चिंताएँ क्या हैं? तुम लोग हमेशा हैसियत के हाथों विवश हो जाते हो और हमेशा अपनी संभावनाओं की चिंता करते रहते हो। तुम लोग हमेशा परमेश्वर के कथनों की पुस्तक के पन्ने पलटते रहते हो, मानवजाति की मंज़िल से संबंधित कहावतों को पढ़ना चाहते हो और जानना चाहते हो कि तुम्हारी संभावनाएँ और मंज़िल क्या होगी। तुम सोचते हो, "क्या वाकई मेरी कोई संभावना है? क्या परमेश्वर ने उन्हें वापस ले लिया है? परमेश्वर बस यह कहता है कि मैं एक विषमता हूँ; तो फिर, मेरी संभावनाएँ क्या हैं?" अपनी संभावनाओं और नियति को दर-किनार करना तुम्हारे लिए मुश्किल है। अब तुम लोग अनुयायी हो, और तुम लोगों को कार्य के इस स्तर की कुछ समझ प्राप्त हो गयी है। लेकिन, तुम लोगों ने अभी तक हैसियत के लिए अपनी अभिलाषा का त्याग नहीं किया है। जब तुम लोगों की हैसियत ऊँची होती है तो तुम लोग अच्छी तरह से खोज करते हो, किन्तु जब तुम्हारी हैसियत निम्न होती है तो तुम लोग खोज नहीं करते। तुम्हारे मन में हमेशा हैसियत के आशीष होते हैं। ऐसा क्यों होता है कि अधिकांश लोग अपने आप को निराशा से निकाल नहीं पाते? क्या उत्तर हमेशा निराशाजनक संभावनाएँ नहीं होता? जैसे ही परमेश्वर के कथन उच्चारित होते हैं, तुम लोग यह देखने की हड़बड़ी करते हो कि तुम्हारी हैसियत और पहचान वास्तव में क्या है। तुम लोग हैसियत और पहचान को प्राथमिकता देते हो, और दर्शन को दूसरे स्थान पर रखते हो। तीसरे स्थान पर वह चीज़ है "जिसमें तुम लोगों को प्रवेश करना चाहिए", और चौथे स्थान पर परमेश्वर की वर्तमान इच्छा आती है। तुम लोग सबसे पहले यह देखते हो कि तुम लोगों को परमेश्वर द्वारा दिए गए उपनाम "विषमता" को बदला गया है या नहीं। तुम लोग बार-बार पढ़ते हो, और जब देखते हो कि "विषमता" उपनाम हटा दिया गया है, तो तुम लोग खुश होकर परमेश्वर का धन्यवाद करते हो और उसके महान सामर्थ्य की स्तुति करते हो। लेकिन यदि तुम देखते हो कि तुम लोग अभी भी विषमता ही हो, तो तुम लोग तुरंत परेशान हो जाते हो और तुम लोगों के हृदय की प्रेरणा तुरंत गायब हो जाती है। जितना अधिक तू इस तरह से तलाश करेगी उतना ही कम तू पाएगी। हैसियत के लिए किसी व्यक्ति की अभिलाषा जितनी अधिक होगी, उतनी ही गंभीरता से उसके साथ निपटा जाएगा और उसे उतने ही बड़े शुद्धिकरण से गुजरना होगा। इस तरह के लोग निकम्मे होते हैं! उनके साथ अच्छी तरह से निपटने और उनका न्याय करने की ज़रूरत है ताकि वे इन चीज़ों को पूरी तरह से छोड़ दें। यदि तुम लोग अंत तक इसी तरह से अनुसरण करोगे, तो तुम लोग कुछ भी नहीं पाओगे। जो लोग जीवन का अनुसरण नहीं करते वे रूपान्तरित नहीं किए जा सकते; जिनमें सत्य की प्यास नहीं है वे सत्य प्राप्त नहीं कर सकते। तू व्यक्तिगत रूपान्तरण का अनुसरण करने और प्रवेश करने पर ध्यान नहीं देती; बल्कि तू हमेशा उन अनावश्यक अभिलाषाओं और उन चीज़ों पर ध्यान देती है जो परमेश्वर के लिए तेरे प्रेम को बाधित करती हैं और तुझे उसके करीब आने से रोकती हैं। क्या ये चीजें तुझे रूपान्तरित कर सकती हैं? क्या ये तुझे राज्य में ला सकती हैं? यदि तेरी खोज का उद्देश्य सत्य की तलाश करना नहीं है, तो तू इस अवसर का लाभ उठाकरइन चीज़ों को पाने के लिए फिर से दुनिया में लौट सकती है। अपने समय को इस तरह बर्बाद करना ठीक नहीं है—क्यों अपने आप को यातना देती है? क्या यह सच नहीं है कि तू सुंदर दुनिया में सभी प्रकार की चीजों का आनंद उठा सकती है? धन, सुंदर स्त्री-पुरुष, हैसियत, अभिमान, परिवार, बच्चे, इत्यादि—क्या तू दुनिया की इन बेहतरीन चीज़ों का आनंद नहीं उठा सकती? यहाँ एक ऐसे स्थान की खोज में इधर-उधर भटकना जहाँ तू खुश रह सके, उससे क्या फायदा? जब मनुष्य के पुत्र के पास ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ वह आराम करने के लिए अपना सिर रख सके, तो तुझे आराम के लिए जगह कैसे मिल सकती है? वह तेरे लिए आराम की एक सुन्दर जगह कैसे बना सकता है? क्या यह संभव है? मेरे न्याय के अतिरिक्त, आज तू केवल सत्य पर शिक्षाएँ प्राप्त कर सकती है। तू मुझ से आराम प्राप्त नहीं कर सकती और तू उस सुखद आशियाने को प्राप्त नहीं कर सकती जिसके बारे में तू दिन-रात सोचती रहती है। मैं तुझे दुनिया की दौलत प्रदान नहीं करूँगा। यदि तू सच्चे मन से अनुसरण करे, तो मैं तुझे समग्र जीवन का मार्ग देने, तुझे पानी में वापस आयी किसी मछली की तरह स्वीकार करने को तैयार हूँ। यदि तू सच्चे मन से अनुसरण नहीं करेगी, तो मैं यह सब वापस ले लूँगा। मैं अपने मुँह के वचनों को उन्हें देने को तैयार नहीं हूँ जो आराम के लालची हैं, जो बिल्कुल सूअरों और कुत्तों जैसे हैं!
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'तुम विषमता होने के अनिच्छुक क्यों हो?' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 328
इस बात का निरीक्षण करना कि तुम जो कुछ भी करते हो, क्या उसमें धार्मिकता का अभ्यास करते हो, और क्या तुम्हारी समस्त क्रियाओं की परमेश्वर द्वारा निगरानी की जाती है : यह वह सिद्धांत है, जिसके द्वारा परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग अपने कार्य करते हैं। तुम लोग धर्मी कहलाओगे, क्योंकि तुम लोग परमेश्वर को संतुष्ट करने में सक्षम हो, और क्योंकि तुम परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा स्वीकार करते हो। परमेश्वर की नज़र में जो लोग परमेश्वर की देखभाल, सुरक्षा और पूर्णता स्वीकार करते हैं, और जो उसके द्वारा प्राप्त कर लिए जाते हैं, वे धर्मी हैं और परमेश्वर उन्हें मूल्यवान समझता है। जितना अधिक तुम परमेश्वर के वर्तमान वचन स्वीकार करते हो, उतना ही अधिक तुम परमेश्वर की इच्छा प्राप्त करने और समझने में सक्षम हो जाते हो, और उतना ही अधिक तुम परमेश्वर के वचनों को जी सकते हो और उसकी अपेक्षाएँ पूरी कर सकते हो। यह तुम लोगों के लिए परमेश्वर का आदेश है, जिसे प्राप्त करने में तुम लोगों को सक्षम होना चाहिए। यदि तुम परमेश्वर के मापन और परिसीमन के लिए अपनी धारणाओं का उपयोग करते हो, मानो परमेश्वर कोई मिट्टी की अचल मूर्ति हो, और अगर तुम लोग परमेश्वर को बाइबल के मापदंडों के भीतर सीमांकित करते हो और उसे कार्य के एक सीमित दायरे में समाविष्ट करते हो, तो इससे यह प्रमाणित होता है कि तुम लोगों ने परमेश्वर की निंदा की है। चूँकि पुराने विधान के युग के यहूदियों ने परमेश्वर को एक अचल प्रतिमा के रूप में लिया था, जिसे वे अपने हृदयों में रखते थे, मानो परमेश्वर को मात्र मसीह ही कहा जा सकता था, और मात्र वही, जिसे मसीह कहा जाता था, परमेश्वर हो सकता हो, और चूँकि मानवजाति परमेश्वर की सेवा और आराधना इस तरह से करती थी, मानो वह मिट्टी की एक (निर्जीव) मूर्ति हो, इसलिए उन्होंने उस समय के यीशु को मौत की सजा देते हुए सलीब पर चढ़ा दिया—निर्दोष यीशु को इस तरह मौत की सजा दे दी गई। परमेश्वर ने कोई अपराध नहीं किया था, फिर भी मनुष्य ने उसे छोड़ने से इनकार कर दिया, और उसे मृत्युदंड देने पर जोर दिया, और इसलिए यीशु को सलीब पर चढ़ा दिया गया। मनुष्य सदैव विश्वास करता है कि परमेश्वर स्थिर है, और वह उसे एक अकेली पुस्तक बाइबल के आधार पर परिभाषित करता है, मानो मनुष्य को परमेश्वर के प्रबंधन की पूर्ण समझ हो, मानो मनुष्य वह सब अपनी हथेली पर रखता हो, जो परमेश्वर करता है। लोग बेहद बेतुके, बेहद अहंकारी और स्वभाव से बड़बोले हैं। परमेश्वर के बारे में तुम्हारा ज्ञान कितना भी महान क्यों न हो, मैं फिर भी यही कहता हूँ कि तुम परमेश्वर को नहीं जानते, कि तुम वह व्यक्ति हो जो परमेश्वर का सबसे अधिक विरोध करता है, और कि तुमने परमेश्वर की निंदा की है, कि तुम परमेश्वर के कार्य का पालन करने और परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के मार्ग पर चलने में सर्वथा अक्षम हो। क्यों परमेश्वर मनुष्य के कार्यकलापों से कभी संतुष्ट नहीं होता? क्योंकि मनुष्य परमेश्वर को नहीं जानता, क्योंकि उसकी अनेक धारणाएँ है, क्योंकि उसका परमेश्वर का ज्ञान वास्तविकता से किसी भी तरह मेल नहीं खाता, इसके बजाय वह नीरस ढंग से एक ही विषय को बिना बदलाव के दोहराता रहता है और हर स्थिति के लिए एक ही दृष्टिकोण इस्तेमाल करता है। और इसलिए, आज पृथ्वी पर आने पर, परमेश्वर को एक बार फिर मनुष्य द्वारा सलीब पर चढ़ा दिया गया है। क्रूर मानवजाति! साँठ-गाँठ और साज़िश, एक-दूसरे से छीनना और हथियाना, प्रसिद्धि और संपत्ति के लिए हाथापाई, आपसी कत्लेआम—यह सब कब समाप्त होगा? परमेश्वर द्वारा बोले गए लाखों वचनों के बावजूद किसी को भी होश नहीं आया है। लोग अपने परिवार और बेटे-बेटियों के वास्ते, आजीविका, भावी संभावनाओं, हैसियत, महत्वाकांक्षा और पैसों के लिए, भोजन, कपड़ों और देह-सुख के वास्ते कार्य करते हैं। पर क्या कोई ऐसा है, जिसके कार्य वास्तव में परमेश्वर के वास्ते हैं? यहाँ तक कि जो परमेश्वर के लिए कार्य करते हैं, उनमें से भी बहुत थोड़े ही हैं, जो परमेश्वर को जानते हैं। कितने लोग अपने स्वयं के हितों के लिए काम नहीं करते? कितने लोग अपनी हैसियत बचाए रखने के लिए दूसरों पर अत्याचार या उनका बहिष्कार नहीं करते? और इसलिए, परमेश्वर को असंख्य बार बलात् मृत्युदंड दिया गया है, और अनगिनत बर्बर न्यायाधीशों ने परमेश्वर की निंदा की है और एक बार फिर उसे सलीब पर चढ़ाया है। कितने लोगों को इसलिए धर्मी कहा जा सकता है, क्योंकि वे वास्तव में परमेश्वर के लिए कार्य करते हैं?
क्या परमेश्वर के सामने एक संत या धर्मी व्यक्ति के रूप में पूर्ण बनाया जाना इतना आसान है? यह एक सच्चा वक्तव्य है कि "इस पृथ्वी पर कोई भी धर्मी नहीं है, जो धर्मी हैं वे इस संसार में नहीं हैं।" जब तुम लोग परमेश्वर के सम्मुख आते हो, तो विचार करो कि तुम लोग क्या पहने हुए हो, अपने हर शब्द और क्रिया, अपने हर विचार और धारणा, और यहाँ तक कि उन सपनों पर भी विचार करो, जिन्हें तुम लोग हर दिन देखते हो—वे सब तुम्हारे अपने वास्ते हैं। क्या यह सही स्थिति नहीं है? "धार्मिकता" का अर्थ भिक्षा देना नहीं है, इसका अर्थ अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना नहीं है, और इसका अर्थ लड़ाई-झगड़ों और विवादों, लूट या चोरी से अलग रहना नहीं है। धार्मिकता का अर्थ परमेश्वर के आदेश को अपने कर्तव्य के रूप में लेना और, समय और स्थान की परवाह किए बिना परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं का अपनी स्वर्ग से भेजी गई वृत्ति के रूप में पालन करना है, ठीक वैसे ही जैसे प्रभु यीशु द्वारा किया गया था। यही वह धार्मिकता है, जिसके बारे में परमेश्वर ने कहा था। लूत को धर्मी इसलिए कहा जा सका था, क्योंकि उसने अपने लाभ-हानि का विचार किए बिना परमेश्वर द्वारा भेजे गए दो फ़रिश्तों को बचाया था; केवल यही कहा जा सकता है कि उसने उस समय जो किया, उसे धर्मी कहा जा सकता है, परंतु उसे धर्मी पुरुष नहीं कहा जा सकता। चूँकि लूत ने परमेश्वर को देखा था, केवल इसलिए उसने उन फ़रिश्तों के बदले अपनी दो बेटियाँ दे दीं, किंतु अतीत का उसका समस्त आचरण धार्मिकता का प्रतिनिधित्व नहीं करता था। और इसलिए मैं कहता हूँ कि "इस पृथ्वी पर कोई धर्मी नहीं है।" यहाँ तक कि जो लोग सही हालत में आने की धारा में हैं, उनमें से भी किसी को धर्मी नहीं कहा जा सकता। तुम्हारे कार्य कितने भी अच्छे क्यों न हों, तुम परमेश्वर के नाम का महिमामंडन करते हुए कैसे दिखाई देते हो, दूसरों को मारते या श्राप नहीं देते, न ही दूसरों की चोरी करते और उन्हें लूटते हो, तब भी तुम्हें धर्मी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह बात तो किसी सामान्य व्यक्ति में भी हो सकती है। अभी जो महत्वपूर्ण है, वह यह है कि तुम परमेश्वर को नहीं जानते। केवल यह कहा जा सकता है कि वर्तमान में तुममें थोड़ी-सी सामान्य मानवीयता है, लेकिन परमेश्वर द्वारा कही गई धार्मिकता का कोई तत्त्व नहीं है, और इसलिए जो कुछ भी तुम करते हो, उसमें से कुछ भी यह साबित करने में सक्षम नहीं है कि तुम परमेश्वर को जानते हो।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'दुष्टों को निश्चित ही दंड दिया जाएगा' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 329
पहले, जब परमेश्वर स्वर्ग में था, तब मनुष्य ने इस तरह कार्य किया, जो परमेश्वर के प्रति धोखा था। आज परमेश्वर मनुष्य के बीच में है—कोई नहीं जानता कि कितने वर्ष हो गए हैं—फिर भी कार्य करते हुए मनुष्य प्रवृत्तियों से गुज़र रहा है और परमेश्वर को मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहा है। क्या मनुष्य अपनी सोच में अत्यंत पिछड़ा हुआ नहीं है? ऐसा ही यहूदा के साथ था : यीशु के आने से पहले यहूदा अपने भाई-बहनों से झूठ बोला करता था, यहाँ तक कि यीशु के आने के बाद भी वह नहीं बदला; वह यीशु के बारे में जरा भी नहीं जानता था, और अंत में उसने यीशु के साथ विश्वासघात किया। क्या इसका कारण यह नहीं था कि वह परमेश्वर को नहीं जानता था? यदि आज तुम लोग अभी भी परमेश्वर को नहीं जानते, तो संभव है कि तुम लोग दूसरे यहूदा बन जाओ और इसके परिणामस्वरूप दो हजार वर्ष पहले अनुग्रह के युग में यीशु को सलीब पर चढ़ाए जाने की त्रासदी पुनः खेली जाए। क्या तुम लोगों को इस बात पर विश्वास नहीं है? यह सच है! वर्तमान में ज़्यादातर लोग ऐसी ही स्थिति में हैं—हो सकता है, मैं यह बात थोड़ा ज्यादा जल्दी कह रहा हूँ—और ऐसे लोग यहूदा की भूमिका निभा रहे हैं। मैं अनर्गल नहीं कह रहा, बल्कि तथ्य के आधार पर कह रहा हूँ—और तुम विश्वास किए बिना नहीं रह सकते। यद्यपि अनेक लोग विनम्रता का दिखावा करते हैं, किंतु उनके हृदयों में बंद पानी के एक कुंड, बदबूदार पानी के एक नाले के अलावा कुछ नहीं है। अभी कलीसिया में इस तरह के बहुत लोग हैं, और तुम लोग सोचते हो, मुझे कुछ पता नहीं है। आज मेरा पवित्रात्मा मेरे लिए निर्णय लेता है और मेरे लिए गवाही देता है। क्या तुम्हें लगता है कि मैं कुछ नहीं जानता? क्या तुम्हें लगता है कि मैं तुम लोगों के दिलों के अंदर के कपटपूर्ण विचारों, या जो चीज़ें तुम अपने दिलों के भीतर रखते हो, उनके बारे में कुछ नहीं समझता? क्या परमेश्वर को धोखा देना इतना आसान है? क्या तुम्हें लगता है कि तुम परमेश्वर के साथ जैसा चाहो, वैसा व्यवहार कर सकते हो? अतीत में मैं चिंतित था कि शायद तुम लोग लाचार हो, इसलिए मैं तुम लोगों को स्वतंत्रता देता गया, किंतु मनुष्यता यह बताने में असमर्थ थी कि मैं उनके साथ भलाई कर रहा था, और इसलिए जब मैंने उन्हें उँगली पकड़ाई, तो उन्होंने पहुँचा पकड़ लिया। अपने बीच एक-दूसरे से पूछो : मैं लगभग किसी से भी कभी नहीं निपटा, और मैंने किसी को भी कभी हलके-से भी नहीं फटकारा—फिर भी मैं मनुष्य की अभिप्रेरणाओं और धारणाओं के बारे में बहुत स्पष्ट हूँ। क्या तुम्हें लगता है कि स्वयं परमेश्वर, जिसकी गवाही परमेश्वर देता है, मूर्ख है? यदि ऐसा है, तो मैं कहता हूँ कि तुम बहुत अंधे हो। मैं तुम्हें बेनकाब नहीं करूँगा, पर आओ देखें कि तुम कितने भ्रष्ट हो सकते हो। आओ देखें कि क्या तुम्हारी चालाकियाँ तुम्हें बचा सकती हैं, या परमेश्वर से प्रेम करने के लिए सर्वोत्तम प्रयास करना तुम्हें बचा सकता है? आज मैं तुम्हारी निंदा नहीं करूँगा; आओ यह देखने के लिए परमेश्वर के समय का इंतजार करें, कि वह तुमसे कैसे प्रतिशोध लेता है। अब मेरे पास तुम्हारे साथ निरर्थक बातचीत के लिए समय नहीं है, और मैं केवल तुम्हारे वास्ते अपने बड़े काम में विलंब नहीं करना चाहता। तुम जैसे किसी भुनगे के साथ व्यवहार करने में परमेश्वर को जो समय लगेगा, तुम उसके योग्य नहीं हो—इसलिए आओ देखें, तुम कितने लंपट हो सकते हो। ऐसे लोग परमेश्वर के थोड़े-से भी ज्ञान की खोज नहीं करते, न ही उनमें परमेश्वर के लिए थोड़ा-सा भी प्रेम होता है, और फिर भी वे परमेश्वर द्वारा धर्मी कहलाए जाने की इच्छा रखते हैं—क्या यह एक मज़ाक नहीं है? चूँकि वास्तव में ईमानदार लोगों की संख्या बहुत थोड़ी है, इसलिए मैं अपने आपको मनुष्य को केवल जीवन देने पर ही ध्यान केंद्रित करूँगा। मैं केवल वही करूँगा, जो मुझे आज करना चाहिए, किंतु भविष्य में मैं हर व्यक्ति को उसके कार्यों के अनुसार प्रतिफल दूँगा। जो कहने की बात है, वह मैंने कह दी है, क्योंकि ठीक यही वह कार्य है, जो मैं करता हूँ। मैं केवल वही करता हूँ जो मुझे करना चाहिए, और वह नहीं करता जो मुझे नहीं करना चाहिए। फिर भी, मुझे आशा है कि तुम लोग इस बारे में सोचने पर अधिक समय व्यतीत करोगे : वास्तव में परमेश्वर के बारे में तुम्हारा ज्ञान कितना सच्चा है? क्या तुम वैसे व्यक्ति हो, जिसने परमेश्वर को एक बार और सलीब पर चढ़ाया है? मेरे अंतिम शब्द ये हैं : धिक्कार है उन लोगों को, जो परमेश्वर को सलीब पर चढ़ाते हैं।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'दुष्टों को निश्चित ही दंड दिया जाएगा' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 330
जब तुम आज के मार्ग पर चलते हो, तो किस प्रकार का अनुगमन सबसे अच्छा होता है? अपने अनुगमन में तुम्हें खुद को किस तरह के व्यक्ति के रूप में देखना चाहिए? यह तुम्हारे हित में है कि तुम यह जानो कि आज जो कुछ भी तुम पर पड़ता है, उसके प्रति तुम्हारा नजरिया क्या होना चाहिए, चाहे वह परीक्षण हों या कठिनाइयाँ, या फिर निर्मम ताड़ना और श्राप। इन सभी मामलों का सामना करते हुए, हर स्थिति में तुम्हें उन पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए। मैं यह क्यों कहता हूँ? मैं इसे इसलिए कहता हूँ, क्योंकि आज जो चीजें तुम पर पड़ती हैं, आखिरकार, वे छोटी अवधि के परीक्षण हैं जो बार-बार आते हैं; जहाँ तक तुम्हारी बात है, शायद वे आत्मा के लिए विशेष रूप से कष्टदायक नहीं हैं, और इसलिए तुम चीजों को उनके सहज रास्ते बह जाने देते हो, और प्रगति की खोज में उन्हें मूल्यवान संपत्ति नहीं मानते। तुम कितने विचारहीन हो! तुम इतने विचारहीन हो कि इस मूल्यवान संपत्ति को अपनी आँखों के सामने उड़ते एक बादल जैसा समझते हो, और तुम बार-बार बरसने वाले इन कठोर आघातों को सँजोकर नहीं रखते—आघात, जो कि थोड़ी देर के लिए होते हैं और तुम्हें हल्के लगते हैं—बल्कि उन्हें दिल पर न लेते हुए उन्हें ठंडी अनासक्ति से देखते हो, और उन्हें सिर्फसांयोगिक आघात समझते हो। तुम इतने घमंडी हो! इन भयंकर हमलों के प्रति, हमले जो कि बार-बार आने वाले तूफानों की तरह हैं, तुम केवल क्षुद्र अनादर दिखाते हो; कभी-कभी तुम अपनी पूर्ण उदासीनता की अभिव्यक्ति प्रकट करते हुए एक ठंडी मुस्कान तक देते हो—क्योंकि तुमने मन में कभी एक बार भी नहीं सोचा कि तुम इस तरह के "दुर्भाग्य" क्यों झेलते रहते हो। क्या ऐसा हो सकता है कि मैं मनुष्य के साथ बहुत अन्याय करता हूँ? क्या मैं दूसरों की गलतियाँ निकालने को अपना काम बना लेता हूँ? भले ही तुम्हारी मानसिकता संबंधी समस्याएँ उतनी गंभीर न हों जितना मैंने वर्णित किया है, फिर भी तुमने अपने बाहरी आत्मसंयम के माध्यम से, लंबे समय से अपनी आंतरिक दुनिया की एक उत्तम छवि का चित्रण किया है। मुझे यह बताने की कोई आवश्यकता नहीं है कि तुम्हारे दिल की गहराइयों में छिपी एकमात्र चीज है असभ्य कटूक्ति और उदासी के हल्के निशान, जो दूसरों को मुश्किल से दिखाई पड़ते हैं। क्योंकि तुम्हें लगता है कि इस तरह के परीक्षण झेलना बहुत गलत है, तुम कोसते हो; चूँकि ये परीक्षण तुम्हें दुनिया की वीरानी का एहसास कराते हैं, इसलिए तुम उदासी से भर जाते हो। इन बार-बार के आघातों और अनुशासन के कार्यों को सर्वोत्तम सुरक्षा के रूप में देखने के बजाय तुम उन्हें स्वर्ग द्वारा निरर्थक परेशानी पैदा किए जाने के रूप में, या फिर स्वयं से लिए जाने वाले उपयुक्त प्रतिशोध के रूप में देखते हो। तुम कितने अज्ञानी हो! तुम निर्दयता से अच्छे समय को अँधेरे में कैद कर लेते हो; बार-बार तुम अद्भुत परीक्षणों और अनुशासन के कार्यों को अपने दुश्मनों द्वारा किए गए हमलों के रूप में देखते हो। तुम नहीं जानते कि अपने वातावरण के अनुसार कैसे ढलना है, और ऐसा प्रयास करने के इच्छुक तो और भी कम हो, क्योंकि तुम इस बार-बार की—और अपनी दृष्टि में निर्मम—ताड़ना से कुछ भी हासिल करने के लिए तैयार नहीं हो। तुम न तो खोज करने का प्रयास करते हो और न ही अन्वेषण करने का, बस अपने भाग्य के आगे नतमस्तक हो जाते हो, चाहे वह तुम्हें जहाँ भी ले जाए। जो बातें शायद तुम्हें बर्बर ताड़ना के कार्य लगें, उन्होंने तुम्हारा दिल नहीं बदला, न ही उन्होंने तुम्हारे दिल पर कब्जा किया है; इसके बजाय उन्होंने तुम्हारे दिल में छुरा घोंपा है। तुम इस "क्रूर ताड़ना" को इस जीवन में सिर्फ अपने दुश्मन की तरह देखते हो, और इसलिए तुमने कुछ भी हासिल नहीं किया है। तुम इतने दंभी हो! शायद ही कभी तुम मानते हो कि तुम इस तरह के परीक्षण अपने घिनौनेपन के कारण भुगतते हो; इसके बजाय, तुम खुद को बहुत अभागा समझते हो, और तो और कहते हो कि मैं हमेशा तुम्हारी गलतियाँ निकालता रहता हूँ। आज जब चीजें इस मुकाम पर पहुँच गई हैं, जो मैं कहता और करता हूँ, इसके बारे में वास्तव में तुम कितना जानते हो? ऐसा मत सोचो कि तुम एक स्वाभाविक रूप से जन्मी विलक्षण प्रतिभा हो, जो स्वर्ग से थोड़ी ही निम्न, किंतु पृथ्वी से कहीं अधिक ऊँची है। तुम किसी भी अन्य से ज्यादा होशियार होने से बहुत दूर हो—यहाँ तक कि यह भी कहा जा सकता है कि पृथ्वी पर जितने भी विवेकशील लोग हैं, उनसे तुम्हारा कहीं ज्यादा मूर्ख होना बड़ा प्यारा है, क्योंकि तुम खुद को बहुत ऊँचा समझते हो, और तुममें कभी भी हीनता की भावना नहीं रही, मानो तुम मेरे कार्यों की छोटी से छोटी बात पूरी तरह समझ सकते हो। वास्तव में, तुम ऐसे व्यक्ति हो, जिसके पास विवेक की मूलभूत रूप से कमी है, क्योंकि तुम्हें इस बात का कुछ पता नहीं है कि मेरा इरादा क्या करने का है, और उससे भी कम तुम्हें इस बात की जानकारी है कि मैं अभी क्या कर रहा हूँ। और इसलिए मैं कहता हूँ कि तुम जमीन पर कड़ी मेहनत करने वाले किसी बूढ़े किसान के बराबर भी नहीं हो, ऐसा किसान, जिसे मानव-जीवन की थोड़ी-भी समझ नहीं है और फिर भी जो जमीन पर खेती करते हुए अपना पूरा भरोसा स्वर्ग के आशीषों पर रखता है। तुम अपने जीवन के संबंध में एक पल भी विचार नहीं करते, तुम्हें यश के बारे में कुछ नहीं पता, और तुम्हारे पास आत्म-ज्ञान तो बिलकुल नहीं है। तुम इतने "सर्वोत्कृष्ट" हो!
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'जो लोग सीखते नहीं और अज्ञानी बने रहते हैं : क्या वे जानवर नहीं हैं?' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 331
जहाँ तक मेरे द्वारा बार-बार दी गई शिक्षाओं की बात है, उन्हें तो बहुत पहले तुम लोगों ने अपने दिमाग में पीछे की ओर धकेल दिया है, यहाँ तक कि तुम उनके साथ ऐसे पेश आते हो मानो वे खाली समय में जी बहलाने वाली खेलने की चीज हों। इन सभी चीजों को तुम हमेशा अपने व्यक्तिगत "ताबीज" के प्रकाश में देखते हो। जब शैतान परेशान करता है, तो तुम प्रार्थना करते हो; नकारात्मक होने पर तुम गहरी नींद में चले जाते हो; जब तुम खुश होते हो, तो तुम निरंकुश होकर दौड़ते हो; जब मैं तुम्हें फटकारता हूँ, तो तुम झुक जाते हो और विनम्र बन जाते हो; और फिर मेरे सामने से जाते ही, तुम दुष्टतापूर्ण उल्लास से हँसते हो। तुम खुद को दूसरों से ऊँचा समझते हो, लेकिन तुम कभी भी खुद को सबसे अधिक घमंड करने वाला नहीं समझते, और तुम हमेशा इतने अभिमानी, आत्म-संतुष्ट और धृष्ट होते हो कि शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। ऐसे "भद्र युवक", "भद्र युवतियाँ" "सज्जन" और "देवियाँ", जो सीखते नहीं और अज्ञानी बने रहते हैं, मेरे वचनों को अनमोल खजाना कैसे मान सकते हैं? अब मैं तुमसे फिर से पूछता हूँ : इतने लंबे समय में तुमने मेरे वचनों और मेरे कार्य से आखिर क्या सीखा है? क्या तुमने धोखा देने के बेहतर कौशल सीख लिए हैं? या अपनी देह में अधिक परिष्कृत हो गए हो? या मेरे प्रति तुम्हारा रवैया और अवमाननापूर्ण हो गया है? मैं तुमसे सीधे कहता हूँ : मैंने जो काम किए हैं उसी के कारण तुम्हारे जैसा इंसान, जिसमें एक चूहे जितना साहस हुआ करता था, अधिक निडर बना है। मेरे प्रति तुम जिस डर की भावना का अनुभव करते हो, वह हर गुजरते दिन के साथ कम होती जाती है, क्योंकि मैं बहुत दयालु हूँ, और मैंने हिंसा का प्रयोग कर तुम्हारी देह पर प्रतिबंध नहीं लगाए हैं। शायद, तुम समझते हो कि मैं केवल कठोर शब्द बोल रहा हूँ—लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि मैं तुम्हें मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखाता हूँ, और तुम्हारे मुँह पर तुम्हारी निंदा नहीं करता। इसके अलावा, मैं हमेशा तुम्हारी कमजोरी के लिए तुम्हें क्षमा करता हूँ, और पूर्णत: इसी वजह से तुम मेरे साथ उस तरह का व्यवहार करते हो, जैसे साँप ने दयालु किसान के साथ किया था। मैं मानवजाति के कौशल की पराकाष्ठा और उसकी निरीक्षण-शक्तियों की कुशाग्रता की कितनी प्रशंसा करता हूँ! मैं तुम्हें एक सत्य बता दूँ : आज यह बहुत कम महत्त्व रखता है कि तुम्हारे पास श्रद्धापूर्ण हृदय है या नहीं; उसके बारे में मैं न तो उत्सुक हूँ और न ही चिंतित। लेकिन मुझे तुम्हें यह भी बताना होगा : तुम, जो "प्रतिभा के धनी" हो, जो सीखते नहीं और अज्ञानी बने रहते हो, अंतत: अपनी आत्म-प्रशंसात्मक क्षुद्र चतुराई द्वारा नीचे गिरा दिए जाओगे—तुम वह होगे, जो दुःख भोगता है और जिसे ताड़ना दी जाती है। मैं इतना बेवकूफ नहीं हूँ कि जब तुम नरक में दुःख भुगतोगे तो मैं तुम्हारा साथ दूँगा, क्योंकि मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूँ। यह मत भूलो कि तुम एक सृजित प्राणी हो, जिसे मेरे द्वारा श्राप दिया गया है, लेकिन जिसे मेरे द्वारा सिखाया और बचाया भी जाता है, और तुममें ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे मैं छोड़ने का अनिच्छुक हूँ। मैं जिस भी समय अपना काम करता हूँ, कोई भी व्यक्ति, घटना या वस्तु मुझे बाधित नहीं कर सकती। मानवजाति के प्रति मेरा रवैया और दृष्टिकोण हमेशा एक-से रहे हैं। मैं तुम्हारी ओर विशेष रूप से बहुत प्रवृत नहीं हूँ, क्योंकि तुम मेरे प्रबंधन के लिए एक संलग्नक हो, और किसी भी अन्य प्राणी से अधिक विशेष होने से बहुत दूर हो। तुम्हें मेरी यह सलाह है : हर समय यह याद रखो, कि तुम परमेश्वर द्वारा सृजित प्राणी से अधिक कुछ नहीं हो! भले ही तुम अपना अस्तित्व मेरे साथ साझा कर सकते हो, लेकिन तुम्हें अपनी पहचान पता होनी चाहिए; अपने बारे में बहुत ऊँची राय मत रखो। अगर मैं नहीं भी फटकारता, या तुमसे नहीं निपटता, और मुस्कुराहट के साथ तुमसे मिलता हूँ, तो यह ये साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि तुम मेरे समान ही हो। तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम सत्य का अनुसरण करने वालों में से एक हो, न कि स्वयं सत्य हो! तुम्हें मेरे वचनों के साथ-साथ बदलने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। तुम इससे बच नहीं सकते। मैं तुमसे आग्रह करता हूँ, इस मूल्यवान समय के दौरान, जब तुम्हारे पास यह दुर्लभ अवसर है, कुछ सीखने का प्रयास करो। मुझे मूर्ख मत बनाओ; इसकी आवश्यकता नहीं है कि तुम मुझे धोखा देने के लिए चापलूसी का उपयोग करो। जब तुम मुझे खोजते हो, तो यह पूरी तरह मेरे लिए नहीं होता, बल्कि तुम्हारे खुद के लिए होता है!
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'जो लोग सीखते नहीं और अज्ञानी बने रहते हैं : क्या वे जानवर नहीं हैं?' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 332
इस समय तुम लोगों के जीवन का हर दिन निर्णायक है, और यह तुम्हारे गंतव्य और भाग्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, अतः आज जो कुछ तुम्हारे पास है, तुम्हें उससे आनंदित होना चाहिए और गुजरने वाले हर क्षण को सँजोना चाहिए। ख़ुद को अधिकतम लाभ देने के लिए तुम्हें जितना संभव हो, उतना समय निकालना चाहिए, ताकि तुम्हारा यह जीवन बेकार न चला जाए। तुम लोग भ्रमित महसूस कर सकते हो कि मैं इस तरह के वचन क्यों कह रहा हूँ? स्पष्ट कहूँ तो, मैं तुम लोगों में से किसी के भी व्यवहार से बिलकुल प्रसन्न नहीं हूँ। क्योंकि तुम्हारे बारे में मुझे जो आशाएँ थीं, वे वैसी नहीं थीं, जैसे तुम आज हो। इस प्रकार, मैं यह कह सकता हूँ : तुम लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति खतरे के मुहाने पर है, और मदद के लिए तुम्हारा पहले का रोना और सत्य का अनुसरण तथा ज्योति की खोज करने की तुम्हारी पूर्व आकांक्षाएँ खत्म होने वाली हैं। यह तुम्हारे प्रतिदान का अंतिम प्रदर्शन है, और यह कुछ ऐसी चीज है, जिसकी मैंने कभी अपेक्षा नहीं की थी। मैं तथ्यों के विपरीत कुछ नहीं कहना चाहता, क्योंकि तुम लोगों ने मुझे बहुत निराश किया है। शायद तुम लोग इसे स्वीकार नहीं करना चाहते, वास्तविकता का सामना नहीं करना चाहते—फिर भी मुझे तुमसे गंभीरता से यह पूछना चाहिए : इन सभी वर्षों में तुम्हारे हृदय किन चीजों से भरे रहे हैं? वे किसके प्रति वफादार हैं? यह मत कहना कि ये प्रश्न अनायास कहाँ से आ गए, और मुझसे यह मत पूछना कि मैंने ऐसी बातें क्यों पूछी हैं। यह जान लो : ऐसा इसलिए है, क्योंकि मैं लोगों को बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ, मैं तुम्हारी बहुत परवाह करता हूँ, और तुम्हारे आचरण और कर्मों पर मैंने अपना बहुत ज्यादा दिल झोंका है, जिनके लिए मैंने लगातार तुमसे प्रश्न किया है और सख्त तकलीफ सही है। फिर भी तुम लोग मुझे बदले में उदासीनता और असहनीय उपेक्षा के सिवा कुछ नहीं देते। तुम लोग मेरे प्रति इतने लापरवाह रहे हो; क्या यह संभव है कि मैं इसके बारे में कुछ नहीं जानूँगा? अगर तुम लोग यही मानते हो, तो इससे यह तथ्य और भी अधिक प्रमाणित हो जाता है कि तुम मेरे साथ दयालुता का व्यवहार नहीं करते। और इसलिए मैं कहता हूँ कि तुम लोग कटु सच्चाइयों से मुँह मोड़ रहे हो। तुम सभी लोग इतने चतुर हो कि तुम जानते तक नहीं कि तुम क्या कर रहे हो—तो फिर तुम मुझे अपना हिसाब देने के लिए किस चीज का उपयोग करोगे?
मेरे लिए सबसे ज्यादा चिंता का सवाल यह है कि तुम लोगों के हृदय किसके प्रति वफादार हैं। मुझे यह भी आशा है कि तुममें से प्रत्येक अपने विचारों को व्यवस्थित करने की कोशिश करेगा और खुद से पूछेगा कि तुम किसके प्रति वफादार हो और किसके लिए जीते हो। शायद तुम लोगों ने इन प्रश्नों पर कभी सावधानीपूर्वक विचार नहीं किया है, अतः मेरे द्वारा तुम्हारे सामने इनका उत्तर प्रकट करना कैसा रहेगा?
स्मृति वाला कोई भी व्यक्ति इस तथ्य को स्वीकार करेगा : मनुष्य अपने लिए जीता है और अपने प्रति वफादार होता है। मैं तुम लोगों के उत्तरों को पूरी तरह से सही नहीं मानता, क्योंकि तुममें से प्रत्येक अपनी-अपनी जिंदगी में गुजर-बसर कर रहा है और अपने स्वयं के कष्ट से जूझ रहा है। इसलिए, तुम ऐसे लोगों के प्रति वफादार हो, जिनसे तुम प्रेम करते हो और जो चीजें तुम्हें खुश करती हैं; तुम अपने प्रति पूर्णत: वफादार नहीं हो। क्योंकि तुममें से हर एक अपने आसपास के लोगों, घटनाओं, और चीजों से प्रभावित है, इसलिए तुम अपने प्रति सच्चे अर्थों में वफादार नहीं हो। मैं ये वचन तुम लोगों के अपने प्रति वफादार होने का समर्थन करने के लिए नहीं, बल्कि किसी एक चीज के प्रति तुम्हारी वफादारी उजागर करने के लिए कह रहा हूँ, क्योंकि इतने वर्षों के दौरान मैंने तुममें से किसी से भी कभी कोई वफादारी नहीं पाई है। इन सब वर्षों में तुम लोगों ने मेरा अनुसरण किया है, फिर भी तुमने मुझे कभी वफादारी का एक कण भी नहीं दिया है। इसकी बजाय, तुम उन लोगों के इर्दगिर्द घूमते रहे हो, जिनसे तुम प्रेम करते हो और जो चीज़ें तुम्हें प्रसन्न करती हैं—इतना कि हर समय, और हर जगह जहाँ तुम जाते हो, उन्हें अपने हृदय के करीब रखते हो और तुमने कभी भी उन्हें छोड़ा नहीं है। जब भी तुम लोग किसी एक चीज के बारे में, जिससे तुम प्रेम करते हो, उत्सुकता और चाहत से भर जाते हो, तो ऐसा तब होता है जब तुम मेरा अनुसरण कर रहे होते हो, या तब भी जब तुम मेरे वचनों को सुन रहे होते हो। इसलिए मैं कहता हूँ कि जिस वफादारी की माँग मैं तुमसे करता हूँ, उसे तुम अपने "पालतुओं" के प्रति वफादार होने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हो। हालाँकि तुम लोग मेरे लिए एक-दो चीजों का त्याग करते हो, पर वह तुम्हारे सर्वस्व का प्रतिनिधित्व नहीं करता, और यह नहीं दर्शाता कि वह मैं हूँ, जिसके प्रति तुम सचमुच वफादार हो। तुम लोग खुद को उन उपक्रमों में संलग्न कर देते हो, जिनके प्रति तुम बहुत गहरा चाव रखते हो : कुछ लोग अपने बेटे-बेटियों के प्रति वफादार हैं, तो अन्य अपने पतियों, पत्नियों, धन-संपत्ति, व्यवसाय, वरिष्ठ अधिकारियों, हैसियत या स्त्रियों के प्रति वफादार हैं। जिन चीजों के प्रति तुम लोग वफादार होते हो, उनसे तुम कभी ऊबते या नाराज नहीं होते; उलटे तुम उन चीजों को ज्यादा बड़ी मात्रा और बेहतर गुणवत्ता में पाने के लिए और अधिक लालायित हो जाते हो, और तुम कभी भी ऐसा करना छोडते नहीं हो। मैं और मेरे वचन हमेशा उन चीजों के पीछे धकेल दिए जाते हैं, जिनके प्रति तुम गहरा चाव रखते हो। और तुम्हारे पास उन्हें आखिरी स्थान पर रखने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचता। ऐसे लोग भी हैं जो इस आखिरी स्थान को भी अपनी वफादारी की उन चीजों के लिए छोड़ देते हैं, जिन्हें अभी खोजना बाकी है। उनके दिलों में कभी भी मेरा मामूली-सा भी निशान नहीं रहा है। तुम लोग सोच सकते हो कि मैं तुमसे बहुत ज्यादा अपेक्षा रखता हूँ या तुम पर गलत आरोप लगा रहा हूँ—लेकिन क्या तुमने कभी इस तथ्य पर ध्यान दिया है कि जब तुम खुशी-खुशी अपने परिवार के साथ समय बिता रहे होते हो, तो तुम कभी भी मेरे प्रति वफादार नहीं रहते? ऐसे समय में, क्या तुम्हें इससे तकलीफ नहीं होती? जब तुम्हारा दिल खुशी से भरा होता है, और तुम्हें अपनी मेहनत का फल मिलता है, तब क्या तुम खुद को पर्याप्त सत्य से लैस न करने के कारण निराश महसूस नहीं करते? मेरा अनुमोदन प्राप्त न करने पर तुम लोग कब रोए हो? तुम लोग अपने बेटे-बेटियों के लिए अपना दिमाग खपाते हो और बहुत तकलीफ उठाते हो, फिर भी तुम संतुष्ट नहीं होते; फिर भी तुम यह मानते हो कि तुमने उनके लिए ज्यादा मेहनत नहीं की है, कि तुमने उनके लिए वह सब कुछ नहीं किया है जो तुम कर सकते थे, जबकि मेरे लिए तुम हमेशा से असावधान और लापरवाह रहे हो; मैं केवल तुम्हारी यादों में रहता हूँ, तुम्हारे दिलों में नहीं। मेरा प्रेम और कोशिशें लोगों के द्वारा कभी महसूस नहीं की जातीं और तुमने उनकी कभी कोई कद्र नहीं की। तुम सिर्फ मामूली संक्षिप्त सोच-विचार करते हो, और समझते हो कि यह काफी होगा। यह "वफादारी" वह नहीं है, जिसकी मैंने लंबे समय से कामना की है, बल्कि वह है जो लंबे समय से मेरे लिए घृणास्पद रही है। फिर भी, चाहे मैं कुछ भी कहूँ, तुम केवल एक-दो चीजें ही स्वीकार करते रहते हो; तुम इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि तुम सभी बहुत "आत्मविश्वासी" हो, और तुम हमेशा मेरे द्वारा कहे गए वचनों में से सावधानी से छाँट लेते हो कि क्या स्वीकार करना है और क्या नहीं। अगर तुम लोग आज भी ऐसे ही हो, तो मेरे पास भी तुम्हारे आत्मविश्वास से निपटने के लिए कुछ तरीके हैं—और तो और, मैं तुम्हें स्वीकार करवा दूँगा कि मेरे वचन सत्य हैं और उनमें से कोई भी तथ्यों को विकृत नहीं करता।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'तुम किसके प्रति वफादार हो?' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 333
अगर मैं तुम लोगों के सामने कुछ पैसे रखूँ और तुम्हें चुनने की आजादी दूँ—और अगर मैं तुम्हारी पसंद के लिए तुम्हारी निंदा न करूँ—तो तुममें से ज्यादातर लोग पैसे का चुनाव करेंगे और सत्य को छोड़ देंगे। तुममें से जो बेहतर होंगे, वे पैसे को छोड़ देंगे और अनिच्छा से सत्य को चुन लेंगे, जबकि इन दोनों के बीच वाले एक हाथ से पैसे को पकड़ लेंगे और दूसरे हाथ से सत्य को। इस तरह तुम्हारा असली रंग क्या स्वत: प्रकट नहीं हो जाता? सत्य और किसी ऐसी अन्य चीज के बीच, जिसके प्रति तुम वफादार हो, चुनाव करते समय तुम सभी ऐसा ही निर्णय लोगे, और तुम्हारा रवैया ऐसा ही रहेगा। क्या ऐसा नहीं है? क्या तुम लोगों में बहुतेरे ऐसे नहीं हैं, जो सही और ग़लत के बीच में झूलते रहे हैं? सकारात्मक और नकारात्मक, काले और सफेद के बीच प्रतियोगिता में, तुम लोग निश्चित तौर पर अपने उन चुनावों से परिचित हो, जो तुमने परिवार और परमेश्वर, संतान और परमेश्वर, शांति और विघटन, अमीरी और ग़रीबी, हैसियत और मामूलीपन, समर्थन दिए जाने और दरकिनार किए जाने इत्यादि के बीच किए हैं। शांतिपूर्ण परिवार और टूटे हुए परिवार के बीच, तुमने पहले को चुना, और ऐसा तुमने बिना किसी संकोच के किया; धन-संपत्ति और कर्तव्य के बीच, तुमने फिर से पहले को चुना, यहाँ तक कि तुममें किनारे पर वापस लौटने की इच्छा[क] भी नहीं रही; विलासिता और निर्धनता के बीच, तुमने पहले को चुना; अपने बेटों, बेटियों, पत्नियों और पतियों तथा मेरे बीच, तुमने पहले को चुना; और धारणा और सत्य के बीच, तुमने एक बार फिर पहले को चुना। तुम लोगों के दुष्कर्मों को देखते हुए मेरा विश्वास ही तुम पर से उठ गया है। मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि तुम्हारा हृदय कोमल बनने का इतना प्रतिरोध करता है। सालों की लगन और प्रयास से मुझे स्पष्टत: केवल तुम्हारे परित्याग और निराशा से अधिक कुछ नहीं मिला, लेकिन तुम लोगों के प्रति मेरी आशाएँ हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती ही जाती हैं, क्योंकि मेरा दिन सबके सामने पूरी तरह से खुला पड़ा रहा है। फिर भी तुम लोग लगातार अँधेरी और बुरी चीजों की तलाश में रहते हो, और उन पर अपनी पकड़ ढीली करने से इनकार करते हो। तो फिर तुम्हारा परिणाम क्या होगा? क्या तुम लोगों ने कभी इस पर सावधानी से विचार किया है? अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा? क्या अब भी तुम लोग पहले को ही चुनोगे? क्या अब भी तुम मुझे निराशा और भयंकर कष्ट ही पहुँचाओगे? क्या अब भी तुम्हारे हृदयों में थोड़ा-सा भी सौहार्द होगा? क्या तुम अब भी इस बात से अनभिज्ञ रहोगे कि मेरे हृदय को सुकून पहुँचाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए? इस क्षण तुम्हारा चुनाव क्या है? क्या तुम मेरे वचनों के प्रति सर्मपण करोगे या उनसे उकताए रहोगे? मेरा दिन तुम लोगों की आँखों के सामने रख दिया गया है, और एक नया जीवन और एक नया प्रस्थान-बिंदु तुम लोगों के सामने है। लेकिन मुझे तुम्हें बताना होगा कि यह प्रस्थान-बिंदु पिछले नए कार्य का प्रारंभ नहीं है, बल्कि पुराने का अंत है। अर्थात् यह अंतिम कार्य है। मेरा ख्याल है कि तुम लोग समझ सकते हो कि इस प्रस्थान-बिंदु के बारे में असामान्य क्या है। लेकिन जल्दी ही किसी दिन तुम इस लोग प्रस्थान-बिंदु का सही अर्थ समझ जाओगे, अतः आओ, हम एक-साथ इससे आगे बढ़ें और आने वाले समापन का स्वागत करें! लेकिन तुम्हारे बारे में जो बात मुझे चिंतित किए रहती है, वह यह है कि अन्याय और न्याय से सामना होने पर तुम लोग हमेशा पहले को चुनते हो। हालाँकि यह सब तुम्हारे अतीत की बात है। मैं भी तुम्हारे अतीत की हर बात भूल जाने की उम्मीद करता हूँ, हालाँकि ऐसा करना बहुत मुश्किल है। फिर भी मेरे पास ऐसा करने का एक अच्छा तरीका है : भविष्य को अतीत का स्थान लेने दो और अपने अतीत की छाया मिटाकर अपने आज के सच्चे व्यक्तित्व को उसकी जगह लेने दो। इस तरह मैं एक बार फिर तुम लोगों को चुनाव करने का कष्ट दूँगा : तुम वास्तव में किसके प्रति वफादार हो?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'तुम किसके प्रति वफादार हो?' से उद्धृत
फुटनोट :
क. किनारे पर वापस लौटने की इच्छा : एक चीनी कहावत, जिसका मतलब है "अपने बुरे कामों से विमुख होना; अपने बुरे काम छोड़ना।"
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 334
जब भी गंतव्य का जिक्र होता है, तुम लोग उसे विशेष गंभीरता से लेते हो; इतना ही नहीं, यह एक ऐसी चीज़ है, जिसके बारे में तुम सभी विशेष रूप से संवेदनशील हो। कुछ लोग तो एक अच्छा गंतव्य पाने के लिए परमेश्वर के सामने दंडवत करते हुए अपने सिर जमीन से लगने का भी इंतज़ार नहीं करते। मैं तुम्हारी उत्सुकता समझता हूँ, जिसे शब्दों में व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है। यह इससे अधिक कुछ नहीं है कि तुम लोग अपनी देह विपत्ति में नहीं डालना चाहते, और भविष्य में चिरस्थायी सजा तो बिलकुल भी नहीं भुगतना चाहते। तुम लोग केवल स्वयं को थोड़ा और उन्मुक्त, थोड़ा और आसान जीवन जीने देने की आशा करते हो। इसलिए जब भी गंतव्य का जिक्र होता है, तुम लोग खास तौर से बेचैन महसूस करते हो और अत्यधिक डर जाते हो कि अगर तुम लोग पर्याप्त सतर्क नहीं रहे, तो तुम परमेश्वर को नाराज़ कर सकते हो और इस प्रकार उस दंड के भागी हो सकते हो, जिसके तुम पात्र हो। अपने गंतव्य की खातिर तुम लोग समझौते करने से भी नहीं हिचकेहो, यहाँ तक कि तुममें से कई लोग, जो कभी कुटिल और चंचल थे, अचानक विशेष रूप से विनम्र और ईमानदार बन गए हैं; तुम्हारी ईमानदारी का दिखावा लोगों की मज्जा तक को कँपा देता है। फिर भी, तुम सभी के पास "ईमानदार" दिल हैं, और तुम लोगों ने लगातार बिना कोई बात छिपाए अपने दिलों के राज़ मेरे सामने खोले हैं, चाहे वह शिकायत हो, धोखा हो या भक्ति हो। कुल मिलाकर, तुम लोगों ने अपने अस्तित्व के गहनतम कोनों में पड़ी महत्वपूर्ण चीज़ें मेरे सामने खुलकर "कबूल" की हैं। बेशक, मैंने कभी इन चीज़ों पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वे सब मेरे लिए बहुत आम हो गई हैं। लेकिन अपने अंतिम गंतव्य के लिए तुम लोग परमेश्वर का अनुमोदन पाने के लिए अपने सिर के बाल का एक रेशा भी गँवाने के बजाय आग के दरिया में कूद जाओगे। ऐसा नहीं है कि मैं तुम लोगों के साथ बहुत कट्टर हो रहा हूँ; बात यह है कि मैं जो कुछ भी करता हूँ, उसके रूबरू आने के लिए तुम्हारे हृदय के भक्ति-भाव में बहुत कमी है। तुम लोग शायद न समझ पाओ कि मैंने अभी क्या कहा है, इसलिए मैं तुम्हें एक आसान स्पष्टीकरण देता हूँ : तुम लोगों को सत्य और जीवन की ज़रूरत नहीं है; न ही तुम्हें अपने आचरण के सिद्धांतों की ज़रूरत है, मेरे श्रमसाध्य कार्य की तो निश्चित रूप से ज़रूरतनहीं है। इसके बजाय तुम लोगों को उन चीज़ों की ज़रूरत है, जो तुम्हारी देह से जुड़ी हैं—धन-संपत्ति, हैसियत, परिवार, विवाह आदि। तुम लोग मेरे वचनों और कार्य को पूरी तरह से ख़ारिज करते हो, इसलिए मैं तुम्हारे विश्वास को एक शब्द में समेट सकता हूँ : उथला। जिन चीज़ों के प्रति तुम लोग पूर्णत: समर्पित हो, उन्हें हासिल करने के लिए तुम किसी भी हद तक जा सकते हो, लेकिन मैंने पाया है कि तुम लोग परमेश्वर में अपने विश्वास से संबंधित मामलों में ऐसा नहीं करते। इसके बजाय, तुम सापेक्ष रूप से समर्पित हो, सापेक्ष रूप से ईमानदार हो। इसीलिए मैं कहता हूँ कि जिनके दिल में पूर्ण निष्ठा का अभाव है, वे परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास में असफल हैं। ध्यान से सोचो—क्या तुम लोगों के बीच कई लोग असफल हैं?
तुम लोगों को ज्ञात होना चाहिए कि परमेश्वर पर विश्वास में सफलता लोगों के अपने कार्यों का परिणाम होती है; जब लोग सफल नहीं होते, बल्कि असफल होते हैं, तो वह भी उनके अपने कार्यों के कारण ही होता है, उसमें किसी अन्य कारक की कोई भूमिका नहीं होती। मेरा मानना है कि तुम लोग ऐसी चीज़ प्राप्त करने के लिए सब-कुछ करोगे, जो परमेश्वर में विश्वास करने से ज्यादा मुश्किल होती है और जिसे पाने के लिए उससे ज्यादा कष्ट उठाने पड़ते हैं, और उसे तुम बड़ी गंभीरता से लोगे, यहाँ तक कि तुम उसमें कोई गलती बरदाश्त करने के लिए भी तैयार नहींहोंगे; इस तरह के निरंतर प्रयास तुम लोग अपने जीवन में करते हो। यहाँ तक कि तुम लोग उन परिस्थितियों में भी मेरी देह को धोखा दे सकते हो, जिनमें तुम अपने परिवार के किसी सदस्य को धोखा नहीं दोगे। यही तुम लोगों का अटल व्यवहार और तुम लोगों का जीवनसिद्धांत है। क्या तुम लोग अभी भी अपने गंतव्य की खातिर मुझे धोखा देने के लिए एक झूठा मुखौटा नहीं लगा रहे हो, ताकि तुम्हारा गंतव्य पूरी तरह से खूबसूरत हो जाए और तुम जो चाहते हो वह सब हो? मुझे ज्ञात है कि तुम लोगों की भक्ति वैसी ही अस्थायी है, जैसी अस्थायी तुम लोगों की ईमानदारी है। क्या तुम लोगों का संकल्प और वह कीमत जो तुम लोग चुकाते हो, भविष्य के बजाय वर्तमान क्षण के लिए नहीं हैं? तुम लोग केवल एक खूबसूरत गंतव्य सुरक्षित कर लेने के लिए एक अंतिम प्रयास करना चाहते हो, जिसका एकमात्र उद्देश्य सौदेबाज़ी है। तुम यह प्रयास सत्य के ऋणी होने से बचने के लिए नहीं करते, और मुझे उस कीमत का भुगतान करने के लिए तो बिलकुल भी नहीं, जो मैंने अदा की है। संक्षेप में, तुम केवल जो चाहते हो, उसे प्राप्त करने के लिए अपनी चतुर चालें चलने के इच्छुक हो, लेकिन उसके लिए खुला संघर्ष करने के लिए तैयार नहीं हो। क्या यही तुम लोगों की दिली ख्वाहिश नहीं है? तुम लोगों को अपने को छिपाना नहीं चाहिए, न ही अपने गंतव्य को लेकर इतनी माथापच्ची करनी चाहिए कि न तो तुम खा सको, न सो सको। क्या यह सच नहीं है कि अंत में तुम्हारा परिणाम पहले ही निर्धारित हो चुका होगा? तुम लोगों में से प्रत्येक को अपना कर्तव्य अपनी पूरी क्षमता से, खुले और ईमानदार दिलों के साथ पूरा करना चाहिए, और जो भी कीमत ज़रूरी हो, उसे चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए। जैसा कि तुम लोगों ने कहा है, जब दिन आएगा, तो परमेश्वर ऐसे किसी भी व्यक्ति के प्रति लापरवाह नहीं रहेगा, जिसने उसके लिए कष्ट उठाए होंगे या कीमत चुकाई होगी। इस प्रकार का दृढ़ विश्वास बनाए रखने लायक है, और यह सही है कि तुम लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। केवल इसी तरह से मैं तुम लोगों के बारे में निश्चिंत हो सकता हूँ। वरना तुम लोगों के बारे में मैं कभी निश्चिंत नहीं हो पाऊँगा, और तुम हमेशा मेरी घृणा के पात्र रहोगे। अगर तुम सभी अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन सको और अपना सर्वस्व मुझे अर्पित कर सको, मेरे कार्य के लिए कोई कोर-कसर न छोड़ो, और मेरे सुसमाचार के कार्य के लिए अपनी जीवन भर की ऊर्जा अर्पित कर सको, तो क्या फिर मेरा हृदय तुम्हारे लिए अक्सरहर्ष से नहीं उछलेगा? इस तरह से मैं तुम लोगों के बारे में पूरी तरह से निश्चिंत हो सकूँगा, या नहीं? यह शर्म की बात है कि तुम लोग जो कर सकते हो, वह मेरी अपेक्षाओं का दयनीय रूप से एक बहुत छोटा-सा भाग है। ऐसे में, तुम लोग मुझसे वे चीज़ें पाने की धृष्टता कैसे कर सकते हो, जिनकी तुम आशा करते हो?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'गंतव्य के बारे में' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 335
तुम्हारा गंतव्य और तुम्हारी नियति तुम लोगों के लिए बहुत अहम हैं—वे गंभीर चिंता के विषय हैं। तुम मानते हो कि अगर तुम अत्यंत सावधानी से कार्य नहीं करते, तो इसका अर्थ यह होगा कि तुम्हारा कोई गंतव्य नहीं होगा, कि तुमने अपना भाग्य बिगाड़ लिया है। लेकिन क्या तुम लोगों ने कभी सोचा है कि अगर कोई मात्र अपने गंतव्य के लिए प्रयास करता है, तो वह व्यर्थ ही परिश्रम करता है? ऐसे प्रयास सच्चे नहीं हैं—वे नकली और कपटपूर्ण हैं। यदि ऐसा है, तो जो लोग केवल अपने गंतव्य के लिए कार्य करते हैं, वे अपनी अंतिम पराजय की दहलीज पर हैं, क्योंकि परमेश्वर में व्यक्ति के विश्वास की विफलता धोखे के कारण होती है। मैं पहले कह चुका हूँ कि मुझे चाटुकारिता या खुशामद या अपने साथ उत्साह के साथ व्यवहार किया जाना पसंद नहीं है। मुझे ऐसे ईमानदार लोग पसंद हैं, जो मेरे सत्य और अपेक्षाओं का सामना कर सकें। इससे भी अधिक मुझे तब अच्छा लगता है, जब लोग मेरे हृदय के प्रति अत्यधिक चिंता या आदर का भाव दिखाते हैं, और जब वे मेरी खातिर सब-कुछ छोड़ देने में सक्षम होते हैं। केवल इसी तरह से मेरे हृदय को सुकून मिल सकता है। इस समय, तुम लोगों के विषय में ऐसी कितनी चीज़ें हैं, जो मुझे नापसंद हैं? तुम लोगों के विषय में ऐसी कितनी चीज़ें हैं, जो मुझे पसंद हैं? क्या ऐसा हो सकता है कि तुम लोगों में से किसी ने भी कुरूपता की वे सभी विभिन्न अभिव्यक्तियाँ महसूस न की हों, जो तुम लोगों ने अपने गंतव्य की खातिर प्रदर्शित की हैं?
अपने दिल में मैं ऐसे किसी भी दिल के लिए हानिकारक नहीं होना चाहता, जो सकारात्मक है और ऊपर उठने की आकांक्षा रखता है, और ऐसे किसी व्यक्ति की ऊर्जा कम करने की इच्छा तो मैं बिलकुल भी नहीं रखता, जो निष्ठा से अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहा है। फिर भी, मुझे तुम लोगों में से प्रत्येक को तुम्हारी कमियों और तुम्हारे दिलों के गहनतम कोनों में मौजूद गंदी आत्मा की याद ज़रूर दिलानी होगी। मैं ऐसा इस उम्मीद में करता हूँ कि तुम लोग मेरे वचनों के रूबरू आने के लिए अपना सच्चा हृदय अर्पित करने में सक्षम होगे, क्योंकि मुझे सबसे ज्यादा घृणा लोगों द्वारा मेरे साथ किए जाने वाले धोखे से है। मैं केवल यह उम्मीद करता हूँ कि मेरे कार्य के अंतिम चरण में तुम लोग अपनेसर्वोत्कृष्ट निष्पादन में सक्षमहोंगे, और कि तुम स्वयंको पूरे मन से समर्पित करोगे, अधूरे मन से नहीं। बेशक, मैं यह उम्मीद भी करता हूँ कि तुम लोगों को सर्वोत्तम गंतव्य प्राप्त हो सके। फिर भी, मेरे पास अभी भी मेरी अपनी आवश्यकता है, और वह यह कि तुम लोग मुझे अपनी आत्मा और अंतिम भक्ति समर्पित करने में सर्वोत्तम निर्णय करो। अगर किसी की भक्ति एकनिष्ठ नहीं है, तो वह व्यक्ति निश्चित रूप से शैतान की सँजोई हुई संपत्ति है, और मैं आगे उसे इस्तेमाल करने के लिए नहीं रखूँगा, बल्कि उसे उसके माता-पिता द्वारा देखे-भाले जाने के लिए घर भेज दूँगा। मेरा कार्य तुम लोगों के लिए एक बड़ी मदद है; मैं तुम लोगों से केवल एक ईमानदार और ऊपर उठने का आकांक्षी हृदय पाने की उम्मीद करता हूँ, लेकिन मेरे हाथ अभी तक खाली हैं। इस बारे में सोचो : अगर मैं किसी दिन इतना दुखी हुआकि उसे शब्दों में बयान न कर सकूँ, तो फिर तुम लोगों के प्रति मेरा रवैया क्या होगा? क्या मैं तब भी तुम्हारे प्रति वैसा ही सौम्य रहूँगा, जैसा अब हूँ? क्या मेरा हृदय तब भी उतना ही शांत होगा, जितना अब है? क्या तुम लोग उस व्यक्ति की भावनाएँ समझते हो, जिसने कड़ी मेहनत से खेत जोता हो और उसे फसल की कटाई में अन्न का एक दाना भी नसीब न हुआ हो? क्या तुम लोग यह समझते हो कि आदमी को बड़ा आघात लगने पर उसके दिल को कितनी भारी चोट पहुँचती है? क्या तुम लोग उस व्यक्ति की कड़वाहटका अंदाज़ालगा सकते हो, जो कभी आशा से भरा हो, पर जिसे ख़राब शर्तों पर विदा होना पड़ा हो? क्या तुम लोगों ने उस व्यक्ति का क्रोध निकलते देखा है, जिसे उत्तेजित किया गया हो? क्या तुम लोग उस व्यक्ति की बदला लेने की आतुरता जान सकते हो, जिसके साथ शत्रुता और धोखे का व्यवहार किया गया हो? अगर तुम इन लोगों की मानसिकता समझ सकते हो, तो मैं सोचता हूँ, तुम्हारे लिए यह कल्पना करना कठिन नहीं होना चाहिए कि अपने प्रतिशोध के समय परमेश्वर का रवैया क्या होगा! अंत में, मुझे उम्मीद है कि तुम सब अपने गंतव्य के लिए गंभीर प्रयास करोगे; हालाँकि, अच्छा होगा कि तुम अपने प्रयासों में कपटपूर्ण साधन न अपनाओ, अन्यथा मैं अपने दिल में तुमसे निराश बना रहूँगा। और यह निराशा कहाँ ले जाती है? क्या तुम लोग स्वयं को ही बेवकूफ नहीं बना रहे हो? जो लोग अपने गंतव्य के विषय में सोचते हैं, पर फिर भी उसे बरबाद कर देते हैं, वे बचाए जाने के बहुत कम योग्य होते हैं। यहाँ तक कि अगर वहउत्तेजित और क्रोधित भी हो जाए, तो ऐसे व्यक्ति पर कौन दया करेगा? संक्षेप में, मैं अभी भी तुम लोगों के लिए ऐसे गंतव्य की कामना करता हूँ, जो उपयुक्त और अच्छा दोनों हो, और उससे भी बढ़कर, मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम लोगों में से कोई भी विपत्ति में नहीं फँसेगा।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'गंतव्य के बारे में' से उद्धृत