VI. परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 232
मैं धार्मिक हूँ, मैं विश्वासयोग्य हूँ, और मैं वो परमेश्वर हूँ जो मनुष्यों के अंतरतम हृदय की जाँच करता है! मैं एक क्षण में इसे प्रकट कर दूँगा कि कौन सच्चा और कौन झूठा है। घबराओ मत; सभी चीजें मेरे समय के अनुसार काम करती हैं। कौन मुझे ईमानदारी से चाहता है और कौन नहीं—मैं एक-एक करके तुम सब को बता दूँगा। तुम लोग वचनों को खाने-पीने का ध्यान रखो और जब तुम मेरी उपस्थिति में आओ तो मेरे करीब आ जाओ, और मैं अपना काम स्वयं करूँगा। तात्कालिक परिणामों के लिए बहुत चिंतित न हो जाओ; मेरा काम ऐसा नहीं है जो सारा एक साथ पूरा किया जा सके। इसके भीतर मेरे चरण और मेरी बुद्धि निहित है, इसलिए ही मेरी बुद्धि प्रकट की जा सकती है। मैं तुम सभी को देखने दूँगा कि मेरे हाथों द्वारा क्या किया जाता है—बुराई को दण्डित और भलाई को पुरस्कृत किया जाता है। मैं निश्चय ही किसी से पक्षपात नहीं करता। तुम जो मुझे पूरी निष्ठा से प्रेम करते हो, मैं भी तुम्हें निष्ठा से प्रेम करूँगा, और जहाँ तक उनकी बात है जो मुझे निष्ठा से प्रेम नहीं करते, उन पर मेरा क्रोध हमेशा रहेगा, ताकि वे अनंतकाल तक याद रख सकें कि मैं सच्चा परमेश्वर हूँ, ऐसा परमेश्वर जो मनुष्यों के अंतरतम हृदय की जाँच करता है। लोगों के सामने एक तरह से और उनकी पीठ पीछे दूसरी तरह से काम न करो; तुम जो कुछ भी करते हो, उसे मैं स्पष्ट रूप से देखता हूँ, तुम दूसरों को भले ही मूर्ख बना लो, लेकिन तुम मुझे मूर्ख नहीं बना सकते। मैं यह सब स्पष्ट रूप से देखता हूँ। तुम्हारे लिए कुछ भी छिपाना संभव नहीं है; सबकुछ मेरे हाथों में है। अपनी क्षुद्र और छोटी-छोटी गणनाओं को अपने फायदे के लिए कर पाने के कारण खुद को बहुत चालाक मत समझो। मैं तुमसे कहता हूँ : इंसान चाहे जितनी योजनाएँ बना ले, हजारों या लाखों, लेकिन अंत में मेरी पहुँच से बच नहीं सकता। सभी चीज़ें और घटनाएं मेरे हाथों से ही नियंत्रित होती हैं, एक इंसान की तो बिसात ही क्या! मुझसे बचने या छिपने की कोशिश मत करो, फुसलाने या छिपाने की कोशिश मत करो। क्या ऐसा हो सकता है कि तुम अभी भी नहीं देख सकते कि मेरा महिमामय मुख, मेरा क्रोध और मेरा न्याय सार्वजनिक रूप से प्रकट किये गए हैं? मैं तत्काल और निर्ममता से उन सभी का न्याय करूँगा जो मुझे निष्ठापूर्वक नहीं चाहते। मेरी सहानुभूति समाप्त हो गई है; अब और शेष नहीं रही। अब और पाखंडी मत बनो, और अपने असभ्य एवं लापरवाह चाल-चलन को रोक लो।
मेरे पुत्र, ध्यान रखो; मेरी उपस्थिति में अधिक समय बिताओ, मैं तुम्हारा कार्यभार सँभाल लूँगा। डरो मत, मेरी तेज़ दुधारी तलवार को सामने लाओ, और मेरी इच्छा के अनुसार अंत तक शैतान के साथ पूरी ताकत से लड़ो। मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा; कोई चिंता न करो। सभी छिपी हुई चीज़ें खोली जाएँगी और उजागर की जाएँगी। मैं वो सूर्य हूँ जो प्रकाश देता है, निर्दयतापूर्वक समस्त अँधेरे को प्रकाशित कर देता है। मेरा न्याय अपनी पूरी समग्रता में उतर आया है; कलीसिया एक युद्ध का मैदान है। तुम सभी को तैयार हो जाना चाहिए और तुम्हें अंतिम निर्णायक युद्ध के लिए अपने सम्पूर्ण अस्तित्व के साथ अर्पित हो जाना चाहिए; मैं निश्चित रूप से तुम्हारी रक्षा करूँगा ताकि तुम मेरे लिए अच्छी विजयपूर्ण लड़ाई लड़ो।
सावधान रहो, आजकल लोगों के दिल धोखेबाज़ हैं, उनका अनुमान नहीं लगाया जा सकता और वे किसी भी तरह से लोगों का भरोसा नहीं जीत सकते। केवल मैं ही पूरी तरह से तुम लोगों के लिए हूँ। मुझमें कोई छल नहीं है; तुम बस मेरे सहारे रहो! अंतिम निर्णायक युद्ध में मेरे पुत्र निश्चित रूप से विजयी होंगे और शैतान पक्के तौर पर मृत्यु-संघर्ष के लिए बाहर निकलकर आएगा। कोई भय न रखो! मैं तुम्हारी शक्ति हूँ, मैं तुम्हारा सर्वस्व हूँ। चीज़ों के बारे में लगातार सोचते मत रहो, तुम इतने सारे विचारों को संभाल नहीं सकते। मैंने पहले कहा है, अब मैं तुम लोगों को राह पर आगे खींचकर नहीं ले जाऊँगा क्योंकि वक़्त करीब आ चुका है। मेरे पास फिर से तुम लोगों को हर मोड़ पर, तुम्हारे कान पकड़कर, याद दिलाने का समय नहीं है—यह संभव नहीं है! तुम बस युद्ध के लिए अपनी तैयारियों को पूरा कर लो। मैं तुम्हारा सम्पूर्ण दायित्व लेता हूँ; हर चीज़ मेरे हाथों में है। यह जीवन-मृत्यु की लड़ाई है, इसमें दोनों में से एक पक्ष अवश्य नष्ट होगा। लेकिन तुम्हें इस पर स्पष्ट होना चाहिए : मैं हमेशा के लिए विजयी और अजेय हूँ, और शैतान निश्चित रूप से नष्ट हो जाएगा। यही मेरा दृष्टिकोण, मेरा काम, मेरी इच्छा और मेरी योजना है!
काम हो चुका है! सबकुछ हो गया है! बुज़दिल और डरपोक मत बनो। मैं तुम्हारे साथ और तुम मेरे साथ, हम सदा-सर्वदा के लिए राजा होंगे! एक बार मेरे द्वारा बोले गए वचन कभी बदलेंगे नहीं, और तुम सब के साथ शीघ्र घटनाएँ होंगी। ध्यान रखो! तुम्हें हर पंक्ति पर अच्छी तरह से विचार करना चाहिए; अब मेरे वचनों के बारे में अस्पष्ट न रहो! तुम्हें उनके बारे में स्पष्ट होना चाहिए! याद रखो—मेरी उपस्थिति में तुम जितना समय बिता सकते हो, बिताओ!
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 44' से
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 233
मैंने उन लोगों को सज़ा देने का कार्य शुरू कर दिया है, जो बुराई करते हैं और जो शक्ति का प्रयोग करते हैं और जो परमेश्वर के पुत्रों पर अत्याचार करते हैं। अब से, मेरे प्रशासनिक नियमों का हाथ हमेशा उनके ऊपर होगा, जो अपने दिल में मेरा विरोध करते हैं। इसे जान लो! यह मेरे न्याय की शुरुआत है और किसी के प्रति कोई दया नहीं दिखाई जाएगी, न ही किसी को छोड़ा जाएगा क्योंकि मैं निष्पक्ष परमेश्वर हूँ, जो धार्मिकता का पालन करता है और इसे पहचान लेना तुम सभी लोगों के लिए अच्छा होगा।
ऐसा नहीं है कि मैं उन लोगों को दंडित करने का इच्छुक हूँ, जो बुराई करते हैं बल्कि यह उनके खुद के बुरे कामों से उन्हीं पर लाया गया प्रतिशोध है। मैं किसी को दंडित करने में जल्दबाजी नहीं करता, न ही मैं किसी के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार करता हूँ—मैं सभी के प्रति धार्मिक हूँ। मैं निश्चित रूप से अपने पुत्रों से प्रेम करता हूँ और मैं निश्चित रूप से उन दुष्टों से नफ़रत करता हूँ, जो मेरी अवहेलना करते हैं; मेरे कार्यों के पीछे यह सिद्धांत है। तुम लोगों में से प्रत्येक को मेरे प्रशासनिक नियमों के बारे में कुछ अंतर्दृष्टि होनी चाहिए; यदि तुम ऐसा नहीं करते, तो तुम लोगों को ज़रा भी भय न होगा और तुम सब मेरे सामने लापरवाही से काम करोगे। तुम्हें यह भी पता नहीं होगा कि मैं क्या प्राप्त करना चाहता हूँ, मैं किसे सिद्ध करना चाहता हूँ, मैं क्या हासिल करना चाहता हूँ या किस तरह के व्यक्ति की मेरे राज्य को आवश्यकता है।
मेरे प्रशासनिक आदेश इस प्रकार हैं:
1. चाहे तुम कोई भी हो, यदि तुम अपने दिल में मेरा विरोध करते हो, तो तुम्हारा न्याय किया जाएगा।
2. जिन लोगों को मैंने चुना है, उन्हें किसी भी गलत सोच के लिए तुरंत अनुशासित किया जाएगा।
3. मैं उन लोगों को एक तरफ़ कर दूँगा, जो मुझ पर विश्वास नहीं करते। मैं उन्हें अंत तक लापरवाही से बोलने और काम करने दूँगा, जब मैं उन्हें पूरी तरह से दंडित करूँगा और उनसे निपटूंगा।
4. मैं उनकी देखभाल और हर समय उनकी रक्षा करूँगा, जो मुझ पर विश्वास करते हैं। सदा के लिए मैं उद्धार के मार्ग के जरिए उनके लिए जीवन की आपूर्ति करूँगा। इन लोगों के पास मेरा प्यार होगा और वे निश्चित रूप से न तो गिरेंगे, न ही अपनी राह से भटकेंगे। उनकी कोई भी कमज़ोरी केवल अस्थायी होगी और मैं निश्चित रूप से उनकी कमज़ोरियों को याद नहीं रखूँगा।
5. वे लोग जो विश्वास करते हुए प्रतीत होते हैं, लेकिन जो वास्तव में ऐसा नहीं करते—जो लोग विश्वास करते हैं कि एक परमेश्वर है, लेकिन जो मसीह की तलाश नहीं करते हैं, फिर भी जो विरोध भी नहीं करते—ये सबसे दयनीय किस्म के लोग होते हैं और मेरे कर्मों के माध्यम से मैं उन्हें स्पष्ट रूप से दिखाऊंगा। अपने कार्यों के माध्यम से, मैं ऐसे लोगों को बचाऊंगा और उन्हें वापस लाऊंगा।
6. ज्येष्ठ पुत्रों को, पहले मेरे नाम को स्वीकार करने वालों को, आशीष मिलेगी! मैं निश्चित रूप से तुम लोगों को सबसे अच्छी आशीषें प्रदान करूँगा और तुम लोगों को जी भर कर आनंद लेने की अनुमति दूँगा; कोई भी इसमें बाधा डालने की हिम्मत नहीं करेगा। यह सब तुम लोगों के लिए पूरी तरह से तैयार किया गया है, क्योंकि यह मेरा प्रशासनिक आदेश है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 56' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 234
धन्य हैं वे, जिन्होंने मेरे वचन पढ़े हैं और जो यह विश्वास करते हैं कि वे पूरे होंगे। मैं तुम्हारे साथ बिलकुल भी दुर्व्यवहार नहीं करूंगा; जो तुम विश्वास करते हो, उसे तुम्हारे भीतर पूरा करूँगा। ये तुम पर आता हुआ मेरा आशीष है। मेरे वचन हर व्यक्ति के भीतर छिपे रहस्यों पर सटीकता से वार करते हैं; सभी में प्राणघातक घाव हैं, और मैं वह अच्छा चिकित्सक हूँ, जो उन्हें चंगा करता है : बस मेरी उपस्थिति में आ जाओ। मैंने क्यों कहा कि भविष्य में कोई दु:ख नहीं होगा और न ही कोई अश्रु होंगे? उसका कारण यही है। मुझमें सभी चीज़ें संपन्न होती हैं, परंतु मनुष्य में सभी बातें दूषित, खोखली और मनुष्यों को धोखा देने वाली हैं। मेरी उपस्थिति में तुम निश्चित रूप से सभी चीज़ें पाओगे, और निश्चित रूप से उन सभी आशीषों को देखोगे और उनका आनंद भी उठाओगे, जिनकी तुम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते। जो मेरे समक्ष नहीं आते, वे निश्चित रूप से विद्रोही हैं और पूरी तरह से मेरा विरोध करने वाले हैं। मैं निश्चित रूप से उन्हें हलके में नहीं छोडूंगा; मैं ऐसे लोगों को कठोरता से ताड़ित करूंगा। इसे स्मरण रखो! लोग जितना अधिक मेरे सामने आएँगे, उतना ही अधिक वे प्राप्त करेंगे—हालाँकि वह सिर्फ़ अनुग्रह होगा। बाद में वे और बड़े आशीष प्राप्त करेंगे।
संसार के सृजन के समय से मैंने लोगों के इस समूह को—अर्थात् आज के तुम लोगों को—पूर्वनिर्धारित करना तथा चुनना प्रारंभ कर दिया है। तुम लोगों का मिज़ाज, क्षमता, रूप-रंग, कद-काठी, वह परिवार जिसमें तुमने जन्म लिया, तुम्हारी नौकरी और तुम्हारा विवाह—अपनी समग्रता में तुम, यहां तक कि तुम्हारे बालों और त्वचा का रंग, और तुम्हारे जन्म का समय—सभी कुछ मेरे हाथों से तय किया गया था। यहां तक कि हर एक दिन जो चीज़ें तुम करते हो और जिन लोगों से तुम मिलते हो, उसकी व्यवस्था भी मैंने अपने हाथों से की थी, साथ ही आज तुम्हें अपनी उपस्थिति में लाना भी वस्तुत: मेरा ही आयोजन है। अपने आप को अव्यवस्था में न डालो; तुम्हें शांतिपूर्वक आगे बढ़ना चाहिए। आज जिस बात का मैं तुम्हें आनंद लेने देता हूँ, वह एक ऐसा हिस्सा है जिसके तुम योग्य हो, और यह संसार के सृजन के समय मेरे द्वारा पूर्वनिर्धारित किया गया है। सभी मनुष्य बहुत चरमपंथी हैं : या तो वे अत्यधिक दुराग्रही हैं या पूरी तरह से निर्लज्ज। वे मेरी योजना और व्यवस्था के अनुसार कार्य करने में असमर्थ हैं। अब और ऐसा न करो। मुझमें सभी मुक्ति पाते हैं; स्वयं को बांधो मत, क्योंकि इससे तुम्हारे जीवन के संबंध में हानि होगी। इसे स्मरण रखो!
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 74' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 235
मैं स्वयं अद्वितीय परमेश्वर हूँ, इसके अतिरिक्त मैं परमेश्वर का एकमात्र प्रतिनिधि हूँ। इतना ही नहीं, मैं, देह की समग्रता के साथ परमेश्वर की पूर्ण अभिव्यक्ति हूँ। जो कोई मेरा सम्मान न करने का साहस करता है, जो कोई अपनी आँखों में प्रतिरोध प्रदर्शित करने का साहस करता है, और जो कोई मेरे विरुद्ध अवज्ञा के शब्द बोलने की धृष्टता करता है, वह निश्चित रूप से मेरे शापों और कोप से मारा जाएगा (मेरे कोप के कारण शाप दिए जाएँगे)। इतना ही नहीं, जो कोई मेरे प्रति निष्ठावान अथवा संतानोचित नहीं होता, और जो कोई मुझसे चालबाज़ी करने का प्रयास करता है, वह निश्चित रूप से मेरी घृणा से मर जाएगा। मेरी धार्मिकता, प्रताप और न्याय सदा-सदा के लिए कायम रहेंगे। पहले मैं प्रेममय और दयालु था, परंतु यह मेरी पूरी दिव्यता का स्वभाव नहीं है; केवल धार्मिकता, प्रताप और न्याय ही मेरे, स्वयं पूर्ण परमेश्वर के, स्वभाव में शामिल हैं। अनुग्रह के युग में मैं प्रेममय और दयालु था। जो कार्य मुझे पूरा करना था, उसके कारण मुझमें प्रेममय-कृपालुता और दयालुता थी; उसके बाद ऐसी चीज़ों की कोई आवश्यकता न रही (और तबसे कोई भी नहीं रही है)। यह सब धार्मिकता, प्रताप और न्याय है और यह मेरी सामान्य मानवता के साथ जुड़ी मेरी पूर्ण दिव्यता का संपूर्ण स्वभाव है।
जो लोग मुझे नहीं जानते, वे अथाह गड्ढे में नष्ट हो जाएँगे, जबकि जो लोग मेरे बारे में निश्चित हैं, वे हमेशा जिएँगे और उनकी मेरे प्रेम के अंतर्गत देखभाल और सुरक्षा की जाएगी। जिस क्षण मैं एक शब्द भी बोलता हूँ, पूरा ब्रह्मांड और पृथ्वी के छोर काँपने लगते हैं। कौन मेरे वचन सुनकर भय से नहीं काँप उठेगा? कौन खुद को मेरे सम्मान में उमड़ने से रोक सकता है? और कौन मेरे कर्मों से मेरी धार्मिकता और प्रताप को जानने में अक्षम है? और कौन मेरे कर्मों में मेरी सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धिमता नहीं देख सकता? जो कोई भी ध्यान नहीं देता, वह निश्चित रूप से मर जाएगा। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जो ध्यान नहीं देते, वे ऐसे लोग हैं जो मेरा प्रतिरोध करते हैं और मुझे नहीं जानते; वे प्रधान दूत हैं और सर्वाधिक निरंकुश हैं। अपने आप को जाँचो : जो कोई निरंकुश, दंभी, उद्धत और अभिमानी है, वह निश्चित रूप से मेरी घृणा का पात्र है, और वह नष्ट होने के लिए बाध्य है!
अब मैं अपने राज्य की प्रशासनिक आज्ञाओं की घोषणा करता हूँ : सभी चीज़ें मेरे न्याय के अंतर्गत हैं, सभी चीज़ें मेरी धार्मिकता के अंतर्गत हैं, सभी चीज़ें मेरे प्रताप के अंतर्गत हैं, और मैं अपनी धार्मिकता सब पर लागू करता हूँ। जो यह कहते हैं कि वे मुझमें विश्वास रखते हैं परंतु गहराई में मेरा खंडन करते हैं, या जिनके हृदयों ने मेरा त्याग कर दिया है, वे निकाल बाहर किए जाएँगे—परंतु सब मेरे यथोचित समय पर। जो मेरे बारे में व्यंग्यात्मक ढंग से बात करते हैं, परंतु इस तरह से कि दूसरों के ध्यान में न आए, वे तुरंत मृत्यु को प्राप्त होंगे (वे आत्मा, देह और मन से नष्ट हो जाएँगे)। जो लोग मेरे प्रियजनों पर अत्याचार करते हैं अथवा उनसे रूखा व्यवहार करते हैं, मेरे कोप द्वारा उनका तत्काल न्याय किया जाएगा। इसका अर्थ है कि जो मेरे प्रियजनों के प्रति ईर्ष्यालु हैं, और जो मुझे अधार्मिक समझते हैं, उन्हें न्याय किए जाने के लिए मेरे प्रियजनों को सौंप दिया जाएगा। जो सभ्य, सरल और ईमानदार हैं (वे भी, जिनमें बुद्धिमत्ता की कमी है), और जो मेरे साथ एकचित्त होकर ईमानदारी से व्यवहार करते हैं, वे सभी मेरे राज्य में रहेंगे। जो लोग प्रशिक्षण से नहीं गुज़रे—यानी ऐसे ईमानदार लोग, जिनमें बुद्धिमत्ता और अंतर्दृष्टि का अभाव है—उन्हें मेरे राज्य में सामर्थ्य प्राप्त होगा। हालाँकि उन्हें भी निपटाया और तोड़ा गया है। वे प्रशिक्षण से नहीं गुज़रे, यह परम तथ्य नहीं है। बल्कि इन्हीं चीज़ों के माध्यम से मैं सभी को अपनी सर्वशक्तिमत्ता और अपनी बुद्धिमत्ता दिखाऊँगा। मैं उन सभी को निकाल बाहर करूँगा, जो अभी भी मुझ पर संदेह करते हैं; मैं उनमें से किसी एक को भी नहीं चाहता (मैं उन लोगों से घृणा करता हूँ, जो ऐसे समय में भी मुझ पर संदेह करते हैं)। उन कर्मों के माध्यम से, जो मैं पूरे ब्रह्मांड में करता हूँ, मैं ईमानदार लोगों को अपने कार्य की अद्भुतता दिखाऊँगा, जिससे उनकी बुद्धिमत्ता, अंतर्दृष्टि और विवेक में वृद्धि होगी। मैं अपने अद्भुत कर्मों के परिणामस्वरूप धोखेबाज लोगों को एक ही पल में नष्ट कर दूँगा। मेरा नाम सबसे पहले स्वीकार करने वाले सभी ज्येष्ठ पुत्र (यानी वे पवित्र और निष्कलंक, ईमानदार लोग) ही सबसे पहले राज्य में प्रवेश करेंगे और मेरे साथ सभी राष्ट्रों और सभी लोगों पर शासन करेंगे, और राज्य में राजाओं की तरह राज करेंगे तथा सभी राष्ट्रों और सभी लोगों का न्याय करेंगे (यह राज्य में सभी ज्येष्ठ पुत्रों को संदर्भित करता है, किसी और को नहीं)। सभी राष्ट्रों और सभी लोगों में से जिनका न्याय हो चुका है और जो पश्चात्ताप कर चुके हैं, वे मेरे राज्य में प्रवेश करेंगे और मेरे लोग बन जाएँगे, जबकि जो जिद्दी हैं और जिन्हें पछतावा नहीं है, वे अथाह गड्ढे में फेंक दिए जाएँगे (हमेशा के लिए नष्ट होने हेतु)। राज्य में न्याय अंतिम होगा, और यह दुनिया की मेरी ओर से पूरी सफ़ाई होगी। उसके पश्चात् कोई अन्याय, दुःख, आँसू या आहें नहीं होंगी, और यहाँ तक कि कोई दुनिया भी नहीं रहेगी। सब-कुछ मसीह की अभिव्यक्ति होगा, और सब मसीह का राज्य होंगे। ऐसी महिमा होगी! ऐसी महिमा होगी!
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 79' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 236
अब मैं तुम लोगों के लिए अपने प्रशासनिक आदेशों की घोषणा करता हूँ (जो घोषणा के दिन से प्रभावी होंगे और भिन्न-भिन्न लोगों को भिन्न-भिन्न ताड़नाएँ देंगे) :
मैं अपने वादे पूरे करता हूँ, और सब-कुछ मेरे हाथों में है : जो कोई भी संदेह करेगा, वह निश्चित रूप से मारा जाएगा। किसी भी लिहाज के लिए कोई जगह नहीं है; वे तुरंत नष्ट कर दिए जाएँगे, जिससे मेरे हृदय को नफ़रत से छुटकारा मिलेगा। (अब से यह पुष्टि की जाती है कि जो कोई भी मारा जाता है, वह मेरे राज्य का सदस्य बिलकुल नहीं होगा, और वह अवश्य ही शैतान का वंशज होगा।)
ज्येष्ठ पुत्रों के रूप में तुम लोगों को अपनी खुद की स्थिति को बनाए रखना चाहिए और अपने कर्तव्य अच्छी तरह से पूरे करने चाहिए, और दखलंदाज नहीं बनना चाहिए। तुम लोगों को मेरी प्रबंधन योजना के लिए खुद को अर्पित कर देना चाहिए, हर जगह जहाँ भी तुम जाओ, तुम्हें मेरी अच्छी गवाही देनी चाहिए और मेरे नाम को महिमा-मंडित करना चाहिए। शर्मनाक कृत्य मत करो; मेरे सभी पुत्रों और मेरे लोगों के लिए उदाहरण बनो। एक पल के लिए भी पथभ्रष्ट मत होओ : तुम्हें सभी के सामने हमेशा मेरे ज्येष्ठ पुत्रों की पहचान के साथ दिखाई देना चाहिए, और गुलाम न बनो; बल्कि तुम्हें सिर ऊँचा करके आगे बढ़ना चाहिए। मैं तुम लोगों से अपने नाम को महिमा-मंडित करने के लिए कह रहा हूँ, उसे अपमानित करने के लिए नहीं। जो लोग मेरे ज्येष्ठ पुत्र हैं, उनमें से प्रत्येक का अपना व्यक्तिगत कार्य है, और वे हर चीज़ नहीं कर सकते। यह वह ज़िम्मेदारी है, जो मैंने तुम लोगों को दी है, और इससे जी नहीं चुराना है। तुम लोगों को स्वयं को अपने पूरे हृदय से, अपने पूरे मन से और अपनी पूरी शक्ति से उस काम को पूरा करने के लिए समर्पित करना चाहिए, जो मैंने तुम्हें सौंपा है।
इस दिन से आगे, समस्त ब्रह्मांडीय दुनिया में मेरे सभी पुत्रों और मेरे सभी लोगों की चरवाही करने का कर्तव्य पूरा करने के लिए मेरे ज्येष्ठ पुत्रों को सौंपा जाएगा, और जो कोई भी अपने पूरे हृदय और पूरे मन से उसे पूरा नहीं कर सकेगा, मैं उसे ताड़ना दूँगा। यह मेरी धार्मिकता है। मैं अपने ज्येष्ठ पुत्रों को क्षमा नहीं करूँगा, न ही उनके साथ नरमी बरतूँगा।
यदि मेरे पुत्रों या मेरे लोगों में से कोई मेरे ज्येष्ठ पुत्रों में से किसी का उपहास और अपमान करता है, तो मैं उसे कठोर दंड दूँगा, क्योंकि मेरे ज्येष्ठ पुत्र स्वयं मेरा प्रतिनिधित्व करते हैं; कोई उनके साथ जो करता है, वह मेरे साथ भी करता है। यह मेरे प्रशासनिक आदेशों में से सबसे गंभीर आदेश है। मेरे पुत्रों और मेरे लोगों में से जो कोई भी इस आदेश का उल्लंघन करेगा, उसके विरुद्ध मैं अपने ज्येष्ठ पुत्रों को उनकी इच्छाओं के अनुसार अपनी धार्मिकता लागू करने दूँगा।
मैं धीरे-धीरे उस व्यक्ति का परित्याग कर कर दूँगा, जो मेरे साथ ओछेपन से पेश आता है और केवल मेरे भोजन, कपड़े और नींद पर ध्यान केंद्रित करता है; केवल मेरे बाह्य मामलों पर ध्यान देता है और मेरे बोझ का विचार नहीं करता; और अपने स्वयं के कार्य सही ढंग से पूरे करने पर ध्यान नहीं देता। यह निर्देश उन सभी के लिए है, जिनके कान हैं।
जो कोई भी मेरे लिए सेवा करने का काम समाप्त कर लेता है, उसे बिना किसी उपद्रव के, आज्ञाकारी ढंग से अलग हो जाना चाहिए। सावधान रहो, मैं तुम्हें बाहर कर दूँगा। (यह एक पूरक आदेश है।)
अब से मेरे ज्येष्ठ पुत्र लोहे की छड़ी उठाएँगे और सभी राष्ट्रों और लोगों पर शासन करने के लिए, सभी राष्ट्रों और लोगों के बीच चलने के लिए, और सभी राष्ट्रों और लोगों के बीच मेरे न्याय, धार्मिकता और प्रताप को कार्यान्वित करने के लिए मेरे अधिकार को निष्पादित करना शुरू करेंगे। मेरे पुत्र और मेरे लोग मुझसे डरेंगे, बिना रुके मेरी स्तुति, मेरी जयजयकार और मेरा महिमा-मंडन करेंगे, क्योंकि मेरी प्रबंधन योजना पूरी हो गई है और मेरे ज्येष्ठ पुत्र मेरे साथ शासन कर सकते हैं।
यह मेरे प्रशासनिक आदेशों का एक हिस्सा है; इसके बाद जैसे-जैसे काम आगे बढ़ेगा, मैं तुम लोगों को उनके बारे में बताऊँगा। उपर्युक्त प्रशासनिक आदेशों से तुम लोग उस गति को देखोगे, जिससे मैं अपना कार्य करता हूँ, और उस कदम को देखोगे, जहाँ तक मेरा कार्य पहुँच चुका है। यह एक पुष्टि होगी।
मैं पहले ही शैतान का न्याय कर चुका हूँ। चूँकि मेरी इच्छा अबाधित है, और चूँकि मेरे ज्येष्ठ पुत्रों ने मेरे साथ महिमा पाई है, इसलिए मैंने पहले ही दुनिया पर और शैतान से संबंधित सभी चीज़ों पर अपनी धार्मिकता और प्रताप का प्रयोग कर लिया है। मैं शैतान की तरफ एक उँगली तक नहीं उठाता या उसकी तरफ बिलकुल ध्यान नहीं देता (क्योंकि वह मुझसे बात करने लायक भी नहीं है)। मैं बस वह करता रहता हूँ, जो मैं करना चाहता हूँ। मेरा कार्य सुचारु रूप से कदम-दर-कदम आगे बढ़ता है, और मेरी इच्छा सारी धरती पर अबाधित है। इसने शैतान को एक सीमा तक शर्मिंदा कर दिया है, और उसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है, लेकिन इससे मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई है। मैं अपने ज्येष्ठ पुत्रों को अपने प्रशासनिक आदेश उन पर भी कार्यान्वित करने की अनुमति देता हूँ। एक ओर तो मैं शैतान को अपना कोप देखने देता हूँ, और दूसरी ओर मैं उसे अपनी महिमा देखने देता हूँ (देखो कि मेरे ज्येष्ठ पुत्र शैतान को दिए गए अपमान के ज़बरदस्त गवाह हैं)। मैं उसे व्यक्तिगत रूप से दंड नहीं देता, बल्कि अपने ज्येष्ठ पुत्रों को अपनी धार्मिकता और प्रताप को कार्यान्वित करने देता हूँ। चूँकि शैतान मेरे पुत्रों के साथ दुर्व्यवहार करता था, मेरे पुत्रों को सताता था और मेरे पुत्रों का दमन करता था, अत: आज जब उसका काम पूरा हो गया है, तो मैं अपने परिपक्व ज्येष्ठ पुत्रों को उससे निपटने देता हूँ। इस पतन के सामने शैतान शक्तिहीन रहा है। दुनिया के सभी राष्ट्रों का पक्षाघात इसकी सबसे अच्छी गवाही है; आपस में लड़ते हुए लोग और युद्धरत राष्ट्र शैतान के राज्य के ढहने की प्रकट अभिव्यक्तियाँ हैं। मेरे द्वारा पहले कोई चिह्न और चमत्कार न दिखाया जाना शैतान को अपमानित करने और अपने नाम को उत्तरोत्तर महिमा-मंडित करने के लिए था। जब शैतान पूरी तरह खत्म हो जाता है, तब मैं अपना सामर्थ्य दिखाना शुरू करता हूँ : मैं जो भी कहता हूँ वह साकार हो जाता है, और वे अलौकिक चीज़ें जो मानवीय धारणाओं के अनुरूप नहीं हैं, पूरी हों जाएँगी (यह शीघ्र ही आने वाले आशीषों को संदर्भित करता है)। चूँकि मैं स्वयं व्यावहारिक परमेश्वर हूँ और मेरे पास कोई नियम नहीं हैं, और चूँकि मैं अपनी प्रबंधन योजना में होने वाले बदलावों के अनुसार बोलता हूँ, इसलिए अतीत में मैंने जो कुछ कहा, उसका वर्तमान में लागू होना ज़रूरी नहीं है। अपनी धारणाओं से चिपके मत रहो! मैं नियमों का पालन करने वाला परमेश्वर नहीं हूँ; मेरे साथ हर चीज़ स्वतंत्र, उत्कृष्ट और पूरी तरह मुक्त है। शायद कल जो कहा गया था, वह आज पुराना पड़ गया हो, या आज उसे अलग कर दिया जाए (लेकिन मेरे प्रशासनिक आदेश, जब से घोषित हुए हैं, कभी नहीं बदलेंगे)। ये मेरी प्रबंधन योजना के कदम हैं। विनियमों से चिपके मत रहो। हर दिन नया प्रकाश होता है, नए प्रकटीकरण होते हैं, और यह मेरी योजना है। हर दिन मेरा प्रकाश तुम में प्रकट होगा, और मेरी वाणी ब्रह्मांड की दुनिया में जारी की जाएगी। समझे तुम? यह तेरा कर्तव्य है, यह वह उत्तरदायित्व है जो मैंने तुम्हें सौंपा है। तुम्हें एक पल के लिए भी इसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। जिन लोगों का मैं अनुमोदन करूँगा, उनका मैं अंत तक उपयोग करूँगा, और यह कभी नहीं बदलेगा। चूँकि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ, इसलिए मुझे पता है कि किस तरह के व्यक्ति को क्या कार्य करना चाहिए, और किस प्रकार का व्यक्ति क्या करने में सक्षम है। यह मेरी सर्वशक्तिमत्ता है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 88' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 237
हर एक वाक्य जो मैं कहता हूँ, उसमें अधिकार और न्याय होता है, और कोई मेरे वचनों को बदल नहीं सकता। एक बार जब मेरे वचन निर्गत हो जाते हैं, तो चीज़ें मेरे वचनों के अनुसार संपन्न होनी निश्चित हैं; यह मेरा स्वभाव है। मेरे वचन अधिकार हैं और जो कोई उन्हें संशोधित करता है, वह मेरी ताड़ना को अपमानित करता है, और मुझे उन्हें मार गिराना होगा। गंभीर मामलों में वे अपने जीवन पर बरबादी लाते हैं और वे अधोलोक में या अथाह गड्ढे में जाते हैं। यही एकमात्र तरीका है, जिससे मैं मानवजाति से निपटता हूँ, और मनुष्य के पास इसे बदलने का कोई तरीका नहीं है—यह मेरा प्रशासनिक आदेश है। इसे याद रखना! किसी को भी मेरे आदेश का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं है; चीज़ें मेरी इच्छा के अनुसार की जानी चाहिए! अतीत में, मैं तुम लोगों के प्रति बहुत नरम था और तुमने केवल मेरे वचनों का सामना किया था। लोगों को मार गिराने के बारे में मैंने जो वचन बोले थे, वे अभी तक घटित नहीं हुए हैं। किंतु आज से, उन सभी लोगों पर सभी आपदाएँ (मेरे प्रशासनिक आदेशों से संबंधित) एक-एक करके पड़ेंगी, जो मेरी इच्छा के अनुरूप नहीं हैं। तथ्यों का आगमन अवश्य होना चाहिए—अन्यथा लोग मेरे कोप को देखने में सक्षम नहीं होंगे, बल्कि बार-बार व्यभिचार में लिप्त होंगे। यह मेरी प्रबंधन योजना का एक चरण है, और यह वह तरीका है, जिससे मैं अपने कार्य का अगला चरण करता हूँ। मैं तुम लोगों से यह अग्रिम रूप से कहता हूँ, ताकि तुम लोग सदैव के लिए अपराध करने और नरक-यंत्रणा भुगतने से बच सको। अर्थात्, आज से मैं अपने ज्येष्ठ पुत्रों को छोड़कर सभी लोगों को मेरी इच्छा के अनुसार अपनी उचित जगह लेने के लिए मजबूर कर दूँगा, और मैं उन्हें एक-एक करके ताड़ना दूँगा। मैं उनमें से एक को भी दोषमुक्त नहीं करूँगा। तुम लोग ज़रा फिर से लंपट होने की हिम्मत तो करो! तुम लोग ज़रा फिर से विद्रोही होने की हिम्मत तो करो! मैं पहले कह चुका हूँ कि मैं सभी के लिए धार्मिक हूँ, कि मुझमें भावना का लेशमात्र भी नहीं है, जो यह दिखाता है कि मेरे स्वभाव को ठेस नहीं पहुँचाई जानी चाहिए। यह मेरा व्यक्तित्व है। इसे कोई नहीं बदल सकता। सभी लोग मेरे वचनों को सुनते हैं और सभी लोग मेरे गौरवशाली चेहरे को देखते हैं। सभी लोगों को पूर्णतया और सर्वथा मेरा आज्ञापालन करना चाहिए—यह मेरा प्रशासनिक आदेश है। पूरे ब्रह्मांड में और पृथ्वी के छोरों तक सभी लोगों को मेरी प्रशंसा करनी चाहिए और मुझे गौरवान्वित करना चाहिए, क्योंकि मैं स्वयं अद्वितीय परमेश्वर हूँ, क्योंकि मैं परमेश्वर का व्यक्तित्व हूँ। कोई मेरे वचनों और कथनों को, मेरे भाषण और तौर-तरीकों को नहीं बदल सकता, क्योंकि ये केवल मेरे अपने मामले हैं, और ये वे चीज़ें हैं, जो मुझमें प्राचीनतम काल से हैं और हमेशा रहेंगी।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 100' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 238
मेरा योजनाबद्ध कार्य पल भर भी रुके बिना आगे बढ़ता रहता है। राज्य के युग में रहने लगने के बाद, और तुम लोगों को अपने लोगों के रूप में अपने राज्य में ले जाने के बाद, मेरी तुम लोगों से अन्य माँगें होंगी; अर्थात्, मैं तुम लोगों के सामने उस संविधान को लागू करना आरंभ करूँगा जिसके साथ मैं इस युग पर शासन करूँगा :
चूँकि तुम सभी मेरे लोग कहलाते हो, इसलिए तुम्हें इस योग्य होना चाहिए कि मेरे नाम को महिमामंडित कर सको; अर्थात्, परीक्षण के बीच गवाही दे सको। यदि कोई मुझे मनाने की कोशिश करता है और मुझसे सच छुपाता है, या मेरी पीठ पीछे अपकीर्तिकर व्यवहार करता है, तो ऐसे लोगों को, बिना किसी छूट के मेरे घर से खदेड़ और बाहर निकाल दिया जाएगा ताकि वे इस बात के लिए मेरा इंतज़ार करें कि मैं उनसे कैसे निपटूँगा। अतीत में जो लोग मेरे प्रति विश्वासघाती रहे हैं और संतान की भांति नहीं रहे हैं, और आज फिर से खुलकर मेरी आलोचना करने के लिए उठ खड़े हुए हैं, उन्हें भी मेरे घर से खदेड़ दिया जाएगा। जो मेरे लोग हैं उन्हें लगातार मेरी ज़िम्मेदारियों के प्रति चिंता दर्शानी चाहिए और साथ ही मेरे वचनों को जानने की खोज करते रहना चाहिए। केवल इस तरह के लोगों को ही मैं प्रबुद्ध करूँगा, और वे निश्चित रूप से, कभी भी ताड़ना को प्राप्त न करते हुए, मेरे मार्गदर्शन और प्रबुद्धता के अधीन रहेंगे। जो मेरी ज़िम्मेदारियों के प्रति चिंता दर्शाने में असफल रहते हुए, अपने खुद के भविष्य की योजना बनाने पर ध्यान केन्द्रित करते हैं—अर्थात वे जो अपने कार्यों के द्वारा मेरे हृदय को संतुष्ट करने का लक्ष्य नहीं रखते हैं, बल्कि इसके बजाय भोजन, धन, आदि सामान की तलाश में रहते हैं, मैं इन भिखारी-जैसे प्राणियों का उपयोग करने से पूरी तरह इनकार करता हूँ, क्योंकि वे जब से पैदा हुए हैं, वे बिलकुल नहीं जानते कि मेरी ज़िम्मेदारियों के प्रति चिंता दर्शाने के मायने क्या हैं। वे ऐसे लोग हैं जिनमें सामान्य समझ का अभाव है; ऐसे लोग मस्तिष्क के "कुपोषण" से पीड़ित हैं, और उन्हें कुछ "पोषण" पाने के लिए घर जाने की आवश्यकता है। मेरे लिए ऐसे लोग किसी काम के नहीं हैं। जो मेरे लोग हैं उनमें से प्रत्येक को, मुझे अंत तक वैसे अनिवार्य कर्तव्य के रूप में जानना जरूरी होगा जैसे कि खाना, पहनना, सोना, जिसे कोई एक पल के लिए भी भूलता नहीं, ताकि अंत में, मुझे जानना खाना खाने जितनी जानी-पहचानी चीज़ बन जाए, जिसे तुम सहजतापूर्वक अभ्यस्त हाथों से करते हो। जहाँ तक उन वचनों की बात है जो मैं बोलता हूँ, तो प्रत्येक शब्द को अत्यधिक निष्ठा और पूरी तरह से आत्मसात करते हुए ग्रहण करना चाहिए; इसमें अन्यमनस्क ढंग से किए गए आधे-अधूरे प्रयास नहीं हो सकते हैं। जो कोई भी मेरे वचनों पर ध्यान नहीं देता है, उसे सीधे मेरा विरोध करने वाला माना जाएगा; जो कोई भी मेरे वचनों को नहीं खाता, या उन्हें जानने की इच्छा नहीं करता है, उसे मुझ पर ध्यान नहीं देने वाला माना जाएगा, और उसे मेरे घर के द्वार से सीधे बाहर कर दिया जाएगा। ऐसा इसलिए है, जैसा कि मैंने अतीत में कहा है, कि मैं जो चाहता हूँ, वह यह नहीं है कि बड़ी संख्या में लोग हों, बल्कि उत्कृष्टता हो। सौ लोगों में से, यदि कोई एक भी मेरे वचनों के द्वारा मुझे जानने में सक्षम है, तो मैं इस एक व्यक्ति को प्रबुद्ध और रोशन करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अन्य सभी को स्वेछा से छोड़ दूँगा। इससे तुम देख सकते हो कि यह अनिवार्य रूप से सत्य नहीं है कि बड़ी संख्या ही मुझे अभिव्यक्त कर सकती है, और मुझे जी सकती है। मैं गेहूँ (चाहे दाने पूरे भरे न हों) चाहता हूँ, न कि जंगली दाने (चाहे उसमें दाने इतने भरे हों कि मन प्रसन्न हो जाए)। उन लोगों के लिए जो तलाश करने की परवाह नहीं करते हैं, बल्कि इसके बजाय शिथिलता से व्यवहार करते हैं, उन्हें स्वेच्छा से चले जाना चाहिए; मैं उन्हें अब और देखना नहीं चाहता हूँ, अन्यथा वे मेरे नाम को अपमानित करते रहेंगे।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन' के 'अध्याय 5' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 239
चूँकि तुम मेरे घराने के लोगों में हो और मेरे राज्य में निष्ठावान हो, इसलिए तुम जो भी करते हो उसमें उन मानकों को पूरा करो जिनकी मैं अपेक्षा करता हूँ। मैं यह नहीं कहता कि तुम केवल एक घुमक्कड़ बादल बनकर रह जाओ, बल्कि चमकती हुई बर्फ़ के समान बनो, उसका सार और उससे भी बढ़कर, उसका मूल्य धारण करो। क्योंकि मैं पवित्र भूमि से हूँ, मैं कमल के समान नहीं, जिसके पास केवल एक नाम है, कोई सार नहीं क्योंकि वह दलदल में होता है, न कि पवित्र भूमि में। जिस समय एक नया स्वर्ग पृथ्वी पर उतरता है और एक नई पृथ्वी आसमान पर फैल जाती है, उसी समय मैं भी औपचारिक रूप से मनुष्यों के बीच कार्य करता हूँ। इंसानों के बीच मुझे कौन जानता है? किसने मेरे आगमन के समय को देखा था? किसने देखा है कि मेरे पास न केवल एक नाम है, बल्कि, मुझमें सार भी है? मैं अपने हाथ से सफ़ेद बादलों को हटाता हूँ और नज़दीक से आसमान का अवलोकन करता हूँ; अंतरिक्ष में ऐसा कुछ भी नहीं जिसे मेरे हाथ ने व्यवस्थित न किया हो, और उसके नीचे ऐसा कोई भी नहीं, जो मेरे पराक्रमी उद्यम को पूरा करने में अपना थोड़ा-बहुत योगदान नहीं देता हो। मैं पृथ्वी पर लोगों से कष्टसाध्य माँगें नहीं करता, क्योंकि मैं हमेशा से व्यावहारिक परमेश्वर रहा हूँ, और सर्वशक्तिमान हूँ जिसने मनुष्य की रचना की है और जो उन्हें अच्छी तरह जानता है। सभी लोग सर्वशक्तिमान की आँखों के सामने हैं। जो लोग पृथ्वी के दूरस्थ कोनों में रहते हैं, वो मेरी आत्मा द्वारा की गई जाँच से कैसे बच सकते हैं? यद्यपि लोग मेरी आत्मा को "जानते" हैं, फिर भी वो मेरी आत्मा को नाराज़ करते हैं। मेरे वचन लोगों के कुरुप चेहरों के साथ-साथ उनके अंतरतम में छिपे विचारों को भी प्रकट कर पृथ्वी पर सभी को मेरे प्रकाश द्वारा सादा-सरल बना देते हैं और मेरी जाँच के दौरान वो ग़लत साबित हो जाते हैं। हालांकि ग़लत साबित होने के बावजूद, उनके हृदय मुझसे दूर नहीं जा पाते। सृष्टि के प्राणियों में कौन है, जो मेरे कार्यों के फलस्वरूप मुझसे प्रेम करने मेरे पास नहीं आता? कौन है जो मेरे वचनों के फलस्वरूप मेरे लिए नहीं तरसता? मेरे प्रेम के कारण किसके हृदय में अनुराग की भावनाएँ पैदा नहीं होतीं? शैतान की भ्रष्टता के कारण ही मनुष्य उस स्थिति तक नहीं पहुँच पाता जिसकी मैं अपेक्षा रखता हूँ। यहां तक कि मेरे द्वारा अपेक्षित निम्नतम मानकों की वजह से भी लोगों में आशंकाएं पैदा हो जाती हैं, आज का तो क्या कहें—जब इस युग में शैतान हंगामा खड़ा कर देता है और बुरी तरह से निरंकुश हो जाता है—या जब शैतान लोगों को इस क़द्र कुचल देता है कि उनके शरीर पूरी तरह गंदगी में सन जाते हैं। ऐसा कब हुआ है जब इंसान अपनी अनैतिकता की वजह से मेरे हृदय का ध्यान रखने में नाकाम हुआ हो और मुझे दु:ख नहीं पहुँचा हो? क्या ऐसा हो सकता है कि मैं शैतान पर तरस दिखाऊँ? क्या ऐसा हो सकता है कि मेरे प्रेम में मुझे ग़लत समझा गया हो? जब लोग मेरी अवज्ञा करते हैं, तो मेरा हृदय चुपचाप रोता है; जब वे मेरा विरोध करते हैं, तो मैं उन्हें ताड़ना देता हूँ; जब मैं उन्हें बचाता हूँ और मृत्यु के बाद फिर से जीवित करता हूँ, तब मैं उन्हें बेहद सावधानी से पोषित करता हूँ; जब वे मुझे समर्पित होते हैं, तो मेरा दिल हल्का हो जाता है और मैं तुरंत स्वर्ग में और पृथ्वी पर और सभी चीज़ों में बड़े परिवर्तन होते महसूस करता हूँ। जब लोग मेरी स्तुति करते हैं, तो मैं कैसे उसका आनंद न उठाऊं? जब वे मेरी गवाही देते हैं और मेरे द्वारा प्राप्त कर लिए जाते हैं, तो मैं कैसे महिमा प्राप्त नहीं कर सकता? क्या ऐसा हो सकता है कि इंसान जैसे चाहे कार्य और व्यवहार करे और मैं उसे नियंत्रित और पोषित न करूँ? जब मैं दिशा-निर्देश प्रदान नहीं करता, तो लोग निष्क्रिय और निश्चल हो जाते हैं; इसके अलावा, मेरी पीठ पीछे, वे "प्रशंसनीय" गंदे आचरणों में लिप्त हो जाते हैं। क्या तुम्हें लगता है कि जिस देह को मैंने ओढ़ रखा है, वह तुम्हारे चाल-चलन, तुम्हारे आचरण और तुम्हारे वचनों के बारे में कुछ नहीं जानती। कई वर्षों तक मैंने हवा और बारिश को सहा है, और मैंने मनुष्य के संसार की कड़वाहट का भी अनुभव किया है; हालांकि गहन चिंतन करने पर, कितना भी कष्ट क्यों न आए, लेकिन वो मेरे प्रति इंसान के अंदर निराशा पैदा नहीं कर सकते, कोई भी मधुरता मनुष्यों को मेरे प्रति उदासीन, हताश या उपेक्षापूर्ण होने का कारण तो बिलकुल नहीं बन सकती। क्या मेरे लिए उनका प्रेम वास्तव में पीड़ा की कमी या फिर मिठास की कमी तक ही सीमित है?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन' के 'अध्याय 9' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 240
आज, चूंकि मैं तुम लोगों को इस स्थिति तक ले आया हूँ, इसलिए मैंने कई उपयुक्त व्यवस्थाएँ की हैं, और मेरे स्वयं के लक्ष्य हैं। यदि मैं तुम लोगों को आज उनके बारे में बताता, तो क्या तुम लोग उन्हें सच में जानने में समर्थ हो पाते? मैं मनुष्य के मन के विचारों और मनुष्य के हृदय की इच्छाओं से भली-भांति परिचित हूँ: कौन है जिसने ख़ुद के लिए कभी बचने का तरीका नहीं खोजा? कौन है जिसने कभी अपने लिए संभावनाओं के बारे में नहीं सोचा? फिर भी भले ही मनुष्य एक समृद्ध और चकित करने वाली मेधा से संपन्न हो, पर कौन इस भविष्यवाणी में समर्थ था कि युगों के बाद, वर्तमान जैसा हो गया है वैसा होगा? क्या यह वास्तव में तुम्हारे व्यक्तिनिष्ठ प्रयासों का परिणाम है? क्या यही तुम्हारे अथक परिश्रम का प्रतिदान है? क्या यह तुम्हारे मन में परिकल्पित सुंदर झाँकी है? यदि मैंने संपूर्ण मनुष्यजाति का मार्गदर्शन नहीं किया होता, तो कौन स्वयं को मेरी व्यवस्थाओं से अलग करने और कोई अन्य तरीका ढूँढने में समर्थ हो पाता? क्या मनुष्यों की यही कल्पनाएँ और इच्छाएँ उसे आज यहाँ तक लेकर आई हैं? बहुत से लोगों का संपूर्ण जीवन उनकी इच्छाएं पूरी हुए बिना ही बीत जाता है। क्या यह वास्तव में उनकी सोच में किसी दोष की वजह से होता है? बहुत से लोगों का जीवन अप्रत्याशित खुशी और संतुष्टि से भरा होता है। क्या यह वास्तव में इसलिए है क्योंकि वे बहुत कम अपेक्षा रखते हैं? संपूर्ण मानवजाति में कौन है जिसकी सर्वशक्तिमान की नज़रों में देखभाल नहीं की जाती? कौन सर्वशक्तिमान द्वारा तय प्रारब्ध के बीच नहीं रहता? क्या मनुष्य का जीवन और मृत्यु उसका अपना चुनाव है? क्या मनुष्य अपने भाग्य को खुद नियंत्रित करता है? बहुत से लोग मृत्यु की कामना करते हैं, फिर भी वह उनसे काफी दूर रहती है; बहुत से लोग जीवन में मज़बूत होना चाहते हैं और मृत्यु से डरते हैं, फिर भी उनकी जानकारी के बिना, उनकी मृत्यु का दिन निकट आ जाता है, उन्हें मृत्यु की खाई में डुबा देता है; बहुत से लोग आसमान की ओर देखते हैं और गहरी आह भरते हैं; कई लोग अत्यधिक रोते हैं, दर्दनाक आवाज़ में सिसकते हैं; बहुत से लोग परीक्षाओं के बीच पतित हो जाते हैं; बहुत से प्रलोभन के बंदी बन जाते हैं। यद्यपि मैं मनुष्य को मुझे स्पष्ट रूप से निहारने की अनुमति देने के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रकट नहीं होता, तब भी बहुत से लोग मेरे चेहरे को देखकर भयभीत हो जाते हैं, बेहद डरते हैं कि मैं उन्हें मार गिराऊँगा, या मैं उन्हें नष्ट कर दूँगा। क्या मनुष्य वास्तव में मुझे जानता भी है या नहीं? कोई भी निश्चित रूप से नहीं कह सकता। क्या ऐसा नहीं है? तुम लोग मुझसे और मेरी ताड़ना से डरते हो, फिर भी तुम लोग खड़े होकर मेरा खुलकर विरोध करते हो और मेरी आलोचना करते हो। क्या यही बात नहीं है? उस मनुष्य ने मुझे कभी नहीं जाना है क्योंकि उसने कभी भी मेरा चेहरा नहीं देखा या मेरी आवाज़ नहीं सुनी है। इसलिए, भले ही मैं मनुष्य के हृदय के भीतर हूँ, क्या ऐसा कोई है जिसके हृदय में मैं धुँधला और अस्पष्ट नहीं हूँ? क्या ऐसा कोई है जिसके हृदय में मैं पूरी तरह से स्पष्ट हूँ? वो लोग जो मेरे हैं, मैं उनके लिए इच्छा नहीं रखता कि वे भी मुझे अनिश्चितता और अस्पष्टता से देखें, और इसीलिए मैंने इस महान कार्य को शुरू किया है।
मैं चुपचाप मनुष्यों के बीच आता हूँ, और फिर धीरे से चला जाता हूँ। क्या किसी ने कभी मुझे देखा है? क्या सूर्य अपनी दहकती हुई लपटों के कारण मुझे देख सकता है? क्या चन्द्रमा अपनी चमकदार स्पष्टता के कारण मुझे देख सकता है? क्या आकाश में अपनी स्थिति के कारण तारामंडल मुझे देख सकते हैं? जब मैं आता हूँ, तो मनुष्य को पता नहीं चलता, और सभी चीजें अनभिज्ञ रहती हैं और जब मैं जाता हूँ, तब भी मनुष्य बेख़बर रहता है। मेरी गवाही कौन दे सकता है? क्या यह पृथ्वी पर लोगों द्वारा स्तुति हो सकती है? क्या यह जंगल में खिलने वाली कुमुदिनियाँ हो सकती हैं? क्या यह आकाश में उड़ने वाले पक्षी हैं? क्या यह पहाड़ों में गर्जना करने वाले शेर हैं? कोई भी मुझे पूरी तरह से नहीं देख सकता! कोई भी उस कार्य को नहीं कर सकता है जो मैं करूँगा! यदि उन्होंने इस कार्य को किया भी, तो उसका क्या प्रभाव होगा? हर दिन मैं बहुत से लोगों के प्रत्येक कार्य की समीक्षा करता हूँ, और हर दिन मैं बहुत से लोगों के हृदय और मन को देखता हूँ; कोई भी कभी भी मेरे न्याय से नहीं बचा है, और न ही कभी किसी ने भी स्वयं को मेरे न्याय की वास्तविकता से वंचित किया है। मैं आसमानों से ऊपर हूँ और दूर से देखता हूँ: असंख्य लोग मेरे द्वारा मार गिराए जा चुके हैं, फिर भी, असंख्य लोग मेरी दया और करुणा के बीच रहते भी हैं। क्या तुम लोग भी इसी प्रकार की परिस्थितियों के बीच नहीं रहते?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन' के 'अध्याय 11' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 241
पृथ्वी पर मैं स्वयं व्यावहारिक परमेश्वर हूँ, जो मनुष्यों के हृदय में रहता है; स्वर्ग में मैं समस्त सृष्टि का स्वामी हूँ। मैंने पर्वत चढ़े हैं और नदियाँ लाँघी हैं, और मैं मानवजाति के बीच से अंदर-बाहर प्रवाहित होता रहा हूँ। कौन स्वयं व्यावहारिक परमेश्वर का खुलेआम विरोध करने की हिम्मत करता है? कौन सर्वशक्तिमान की संप्रभुता से अलग होने का साहस करता है? कौन यह दृढ़ता से कहने का साहस करता है कि मैं असंदिग्ध रूप से स्वर्ग में हूँ? साथ ही, कौन यह दृढ़ता से कहने का साहस करता है कि मैं निर्विवाद रूप से पृथ्वी पर हूँ? समस्त मनुष्यों में से कोई भी उन स्थानों के बारे में स्पष्ट रूप से हर विवरण के साथ बताने में सक्षम नहीं है, जहाँ मैं रहता हूँ। क्या ऐसा हो सकता है कि जब मैं स्वर्ग में होता हूँ, तो मैं स्वयं अलौकिक परमेश्वर होता हूँ, और जब मैं पृथ्वी पर होता हूँ, तो मैं स्वयं व्यावहारिक परमेश्वर होता हूँ? मैं वाकई स्वयं व्यावहारिक परमेश्वर हूँ या नहीं, यह मेरे समस्त सृष्टि का शासक होने से या इस तथ्य से कि मैं मानव-संसार की पीड़ा का अनुभव करता हूँ, निर्धारित नहीं किया जा सकता, है ना? अगर ऐसा होता, तो क्या मनुष्य समस्त आशाओं से परे अज्ञानी न होते? मैं स्वर्ग में हूँ, लेकिन मैं पृथ्वी पर भी हूँ; मैं सृष्टि की असंख्य वस्तुओं के बीच हूँ, और असंख्य लोगों के बीच भी हूँ। मनुष्य मुझे हर दिन छू सकते हैं; इतना ही नहीं, वे मुझे हर दिन देख सकते हैं। जहाँ तक मानवजाति का संबंध है, मैं उसे कभी-कभी छिपा हुआ और कभी-कभी दृश्यमान प्रतीत होता हूँ; कभी लगता है कि वास्तव में मेरा अस्तित्व है, फिर ऐसा भी लगता है कि मेरा अस्तित्व नहीं है। मुझमें मनुष्यजाति के लिए अज्ञेय रहस्य मौजूद हैं। यह ऐसा है, मानो सभी मनुष्य मुझमें और अधिक रहस्य खोजने के लिए मुझे सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देख रहे हों, यह आशा करते हुए कि ऐसा करके वे अपने हृदय से उस असुखद अनुभूति को दूर कर सकेंगे। परंतु यदि वे एक्स-रे का भी उपयोग करें, तब भी मनुष्य कैसे मुझमें छिपे रहस्यों में से किसी का भी खुलासा कर सकेंगे?
जिस क्षण मेरे लोग मेरे कार्यों के परिणामस्वरूप मेरे साथ-साथ महिमा प्राप्त करेंगे, उस क्षण विशाल लाल अजगर की माँद खोद दी जाएगी, सारा कीचड़ और मिट्टी साफ कर दी जाएगी, और असंख्य वर्षों से जमा प्रदूषित जल मेरी दहकती आग में सूख जाएगा और उसका अस्तित्व नहीं रहेगा। इसके बाद विशाल लाल अजगर आग और गंधक की झील में नष्ट हो जाएगा। क्या तुम लोग सच में मेरी प्रेमपूर्ण देखभाल के अधीन रहना चाहते हो, ताकि अजगर द्वारा छीन न लिए जाओ? क्या तुम लोग सचमुच इसके कपटपूर्ण दाँव-पेचों से घृणा करते हो? कौन मेरे लिए मजबूत गवाही देने में सक्षम है? मेरे नाम के वास्ते, मेरे आत्मा के वास्ते, मेरी समस्त प्रबंधन योजना के वास्ते, कौन अपने समस्त सामर्थ्य की बलि दे सकता है? आज, जबकि राज्य मनुष्यों के संसार में है, वह समय है, जब मैं व्यक्तिगत रूप से मनुष्यों के संसार में आया हूँ। यदि ऐसा न होता, तो क्या कोई है जो बिना किसी आशंका के मेरी ओर से युद्ध क्षेत्र में उतर सकता? ताकि राज्य आकार ले सके, ताकि मेरा हृदय संतुष्ट हो सके, और इससे भी बढ़कर, ताकि मेरा दिन आ सके, ताकि वह समय आ सके जब सृष्टि की असंख्य वस्तुएँ पुर्नजन्म लेंगी और प्रचुर मात्रा में विकसित होंगी, ताकि मनुष्यों को पीड़ा के सागर से बचाया जा सके, ताकि आने वाला कल आ सके, और ताकि वह अद्भुत हो सके और फल-फूल सके तथा विकसित हो सके, और इतना ही नहीं, ताकि भविष्य का आंनद साकार हो सके, सभी मनुष्य मेरे लिए अपने आपको बलिदान करने में कोई कसर बाकी न रखते हुए अपनी संपूर्ण शक्ति से प्रयास कर रहे हैं। क्या यह इस बात का संकेत नहीं है कि मुझे पहले ही विजय मिल चुकी है? क्या यह मेरी योजना पूर्ण होने का चिह्न नहीं है?
लोग जितना अधिक अंत के दिनों में रहेंगे, उतना ही अधिक वे संसार का खालीपन महसूस करेंगे और उतना ही उनमें जीवन जीने का साहस कम हो जाएगा। इसी कारण से, असंख्य लोग निराशा से मर गए हैं, असंख्य अन्य लोग अपनी खोज में निराश हो गए हैं, और असंख्य अन्य लोग शैतान के हाथों अपने साथ छेड़छाड़ किए जाने की पीड़ा भोग रहे हैं। मैंने बहुत-से लोगों को बचाया है, बहुतों को राहत दी है, और कितनी ही बार, मनुष्यों के ज्योति खो देने पर मैं उन्हें वापस ज्योति के स्थान पर ले गया हूँ, ताकि ज्योति के भीतर वे मुझे जान सकें और खुशी के बीच मेरा आनंद ले सकें। मेरी ज्योति के आने की वजह से, मेरे राज्य में रहने वाले लोगों के हृदय में श्रद्धा बढ़ती है, क्योंकि मनुष्यों के लिए मैं प्रेम किया जाने वाला परमेश्वर हूँ—ऐसा परमेश्वर, जिससे मनुष्य अनुरक्त आसक्ति के साथ चिपकते हैं—और वे मेरे रूप की स्थायी छाप से भर जाते हैं। फिर भी, अंतत:, कोई भी ऐसा नहीं है, जो समझता हो कि यह पवित्रात्मा का कार्य है, या देह की क्रिया है। इस अकेली चीज़ का विस्तार से अनुभव करने में लोगों को पूरा जीवन लग जाएगा। मनुष्यों ने अपने हृदय की अंतरतम गहराइयों में मुझे कभी भी तिरस्कृत नहीं किया है; बल्कि वे अपनी आत्मा की गहराई से मुझसे चिपकते हैं। मेरी बुद्धि उनकी सराहना को बढ़ाती है, जो अद्भुत कार्य मैं करता हूँ, वे उनकी आँखों के लिए एक दावत हैं, मेरे वचन उनके मन को हैरान करते हैं, फिर भी वे उन्हें बहुत प्यारे लगते हैं। मेरी वास्तविकता मनुष्य को चकित, भौचक्का और व्यग्र कर देती है, फिर भी वे उसे स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। क्या मनुष्य वास्तव में ऐसा ही नहीं है?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन' के 'अध्याय 15' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 242
1. मनुष्य को स्वयं को बड़ा नहीं दिखाना चाहिए, न अपनी बड़ाई करनी चाहिए। उसे परमेश्वर की आराधना और बड़ाई करनी चाहिए।
2. वह सब कुछ करो जो परमेश्वर के कार्य के लिए लाभदायक है और ऐसा कुछ भी न करो जो परमेश्वर के कार्य के हितों के लिए हानिकर हो। परमेश्वर के नाम, परमेश्वर की गवाही और परमेश्वर के कार्य की रक्षा करो।
3. परमेश्वर के घर में धन, भौतिक पदार्थ और समस्त संपत्ति ऐसी भेंट हैं, जो मनुष्य द्वारा दी जानी चाहिए। इन भेंटों का आनंद याजक और परमेश्वर के अलावा अन्य कोई नहीं ले सकता, क्योंकि मनुष्य की भेंटें परमेश्वर के आनंद के लिए हैं। परमेश्वर इन भेंटों को केवल याजकों के साथ साझा करता है; और उनके किसी भी अंश का आनंद उठाने के लिए अन्य कोई योग्य और पात्र नहीं है। मनुष्य की समस्त भेंटें (धन और आनंद लिए जा सकने योग्य भौतिक चीज़ों सहित) परमेश्वर को दी जाती हैं, मनुष्य को नहीं और इसलिए, इन चीज़ों का मनुष्य द्वारा आनंद नहीं लिया जाना चाहिए; यदि मनुष्य उनका आनंद उठाता है, तो वह इन भेंटों को चुरा रहा होगा। जो कोई भी ऐसा करता है वह यहूदा है, क्योंकि, एक ग़द्दार होने के अलावा, यहूदा ने बिना इजाज़त थैली में रखा धन भी लिया था।
4. मनुष्य का स्वभाव भ्रष्ट है और इसके अतिरिक्त, उसमें भावनाएँ हैं। इसलिए, परमेश्वर की सेवा के समय विपरीत लिंग के दो सदस्यों को अकेले एक साथ मिलकर काम करना पूरी तरह निषिद्ध है। जो भी ऐसा करते पाए जाते हैं, उन्हें बिना किसी अपवाद के निष्कासित कर दिया जाएगा।
5. परमेश्वर की आलोचना न करो और न परमेश्वर से संबंधित बातों पर यूँ ही चर्चा करो। वैसा करो, जैसा मनुष्य को करना चाहिए और वैसे बोलो जैसे मनुष्य को बोलना चाहिए, तुम्हें अपनी सीमाओं को पार नहीं करनी चाहिए और न अपनी सीमाओं का उल्लंघन करना चाहिए। अपनी ज़ुबान पर लगाम लगाओ और ध्यान दो कि कहाँ कदम रख रहे हो, ताकि परमेश्वर के स्वभाव का अपमान न कर बैठो।
6. वह करो जो मनुष्य द्वारा किया जाना चाहिए और अपने दायित्वों का पालन करो, अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करो और अपने कर्तव्य को धारण करो। चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर के कार्य में अपना योगदान देना चाहिए; यदि तुम नहीं देते हो, तो तुम परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने के योग्य नहीं हो और परमेश्वर के घर में रहने के योग्य नहीं हो।
7. कलीसिया के कार्यों और मामलों में, परमेश्वर की आज्ञाकारिता के अलावा, उस व्यक्ति के निर्देशों का पालन करो, जिसे पवित्र आत्मा हर चीज़ में उपयोग करता है। ज़रा-सा भी उल्लंघन अस्वीकार्य है। अपने अनुपालन में एकदम सही रहो और सही या ग़लत का विश्लेषण न करो; क्या सही या ग़लत है, इससे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं। तुम्हें ख़ुद केवल संपूर्ण आज्ञाकारिता की चिंता करनी चाहिए।
8. जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर की आज्ञा माननी चाहिए और उसकी आराधना करनी चाहिए। किसी व्यक्ति को ऊँचा न ठहराओ, न किसी पर श्रद्धा रखो; परमेश्वर को पहले, जिनका आदर करते हो उन्हें दूसरे और ख़ुद को तीसरे स्थान पर मत रखो। किसी भी व्यक्ति का तुम्हारे हृदय में कोई स्थान नहीं होना चाहिए और तुम्हें लोगों को—विशेषकर उन्हें जिनका तुम सम्मान करते हो—परमेश्वर के समतुल्य या उसके बराबर नहीं मानना चाहिए। यह परमेश्वर के लिए असहनीय है।
9. अपने विचार कलीसिया के कार्य पर लगाए रखो। अपनी देह की इच्छाओं को एक तरफ़ रखो, पारिवारिक मामलों के बारे में निर्णायक रहो, स्वयं को पूरे हृदय से परमेश्वर के कार्य में समर्पित करो और परमेश्वर के कार्य को पहले और अपने जीवन को दूसरे स्थान पर रखो। यह एक संत की शालीनता है।
10. सगे-संबंधी जो विश्वास नहीं रखते (तुम्हारे बच्चे, तुम्हारे पति या पत्नी, तुम्हारी बहनें या तुम्हारे माता-पिता इत्यादि) उन्हें कलीसिया में आने को बाध्य नहीं करना चाहिए। परमेश्वर के घर में सदस्यों की कमी नहीं है और ऐसे लोगों से इसकी संख्या बढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं, जिनका कोई उपयोग नहीं है। वे सभी जो ख़ुशी-ख़ुशी विश्वास नहीं करते, उन्हें कलीसिया में बिल्कुल नहीं ले जाना चाहिए। यह आदेश सब लोगों पर निर्देशित है। इस मामले में तुम लोगों को एक दूसरे की जाँच, निगरानी करनी चाहिए और याद दिलाना चाहिए; कोई भी इसका उल्लंघन नहीं कर सकता। यहाँ तक कि जब ऐसे सगे-संबंधी जो विश्वास नहीं करते, अनिच्छा से कलीसिया में प्रवेश करते हैं, उन्हें किताबें जारी नहीं की जानी चाहिए या नया नाम नहीं देना चाहिए; ऐसे लोग परमेश्वर के घर के नहीं हैं और कलीसिया में उनके प्रवेश पर जैसे भी ज़रूरी हो, रोक लगाई जानी चाहिए। यदि दुष्टात्माओं के आक्रमण के कारण कलीसिया पर समस्या आती है, तो तुम निर्वासित कर दिए जाओगे या तुम पर प्रतिबंध लगा दिये जाएँगे। संक्षेप में, इस मामले में हरेक का उत्तरदायित्व है, हालांकि तुम्हें असावधान नहीं होना चाहिए, न ही इसका इस्तेमाल निजी बदला लेने के लिए करना चाहिए।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'दस प्रशासनिक आदेश जो राज्य के युग में परमेश्वर के चुने लोगों द्वारा पालन किए जाने चाहिए' से
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 243
लोगों को उन अनेक कर्तव्यों का पालन करना होगा, जो उन्हें अवश्य संपन्न करने चाहिए। यही वह चीज है, जिसका लोगों द्वारा दृढ़ता से पालन किया जाना चाहिए, और यही वह चीज है, जिसे उन्हें अवश्य संपन्न करना चाहिए। पवित्र आत्मा को वह करने दो, जो पवित्र आत्मा द्वारा किया जाना चाहिए; मनुष्य इसमें कोई भूमिका नहीं निभा सकता। मनुष्य को वह करना चाहिए, जो उसके द्वारा किया जाना आवश्यक है, जिसका पवित्र आत्मा से कोई संबंध नहीं है। यह उसके अतिरिक्त कुछ नहीं है, जो मनुष्य द्वारा किया जाना चाहिए, और जिसका आज्ञा के रूप में पालन किया जाना चाहिए, ठीक उसी तरह, जैसे पुराने विधान की व्यवस्था का पालन किया जाता है। यद्यपि अब व्यवस्था का युग नहीं है, फिर भी ऐसे कई वचन हैं, जो व्यवस्था के युग में बोले गए वचनों जैसे हैं, और जिनका पालन किया जाना चाहिए। इन वचनों का पालन केवल पवित्र आत्मा के स्पर्श पर भरोसा करके नहीं किया जाता, बल्कि वे ऐसी चीज हैं, जिनका मनुष्य द्वारा निर्वाह किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए : तुम व्यवहारिक परमेश्वर के कार्य पर निर्णय पारित नहीं करोगे। तुम उस मनुष्य का विरोध नहीं करोगे, जिसकी परमेश्वर द्वारा गवाही दी गई है। परमेश्वर के सामने तुम लोग अपने स्थान पर रहोगे और स्वच्छंद नहीं होगे। तुम्हें वाणी में संयत होना चाहिए, और तुम्हारे शब्द और काम उस व्यक्ति की व्यवस्थाओं के अनुसार होने चाहिए, जिसकी परमेश्वर द्वारा गवाही दी गई है। तुम्हें परमेश्वर की गवाही का आदर करना चाहिए। तुम परमेश्वर के कार्य और उसके मुँह से निकले वचनों की उपेक्षा नहीं करोगे। तुम परमेश्वर के कथनों के लहजे और लक्ष्यों की नकल नहीं करोगे। बाहरी तौर से तुम लोग ऐसा कुछ नहीं करोगे, जो परमेश्वर द्वारा गवाही दिए गए व्यक्ति का प्रत्यक्ष रूप से विरोध करता हो। इत्यादि-इत्यादि। ये वे चीजें हैं, जिनका प्रत्येक व्यक्ति को पालन करना चाहिए। प्रत्येक युग में परमेश्वर कई नियम निर्दिष्ट करता है, जो व्यवस्थाओं के समान होते हैं और जिनका मनुष्य द्वारा पालन किया जाना होता है। इसके माध्यम से वह मनुष्य के स्वभाव पर अंकुश लगाता है और उसकी ईमानदारी का पता लगाता है। उदाहरण के लिए, पुराने विधान के युग के इन वचनों पर विचार करो, "तू अपने पिता और अपनी माता का आदर करना"। ये वचन आज लागू नहीं होते; उस समय ये मनुष्य के मात्र कुछ बाहरी स्वभाव पर अंकुश लगाते थे, और इनका उपयोग परमेश्वर में मनुष्य के विश्वास की ईमानदारी को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता था। ये परमेश्वर पर विश्वास करने वालों का पहचान चिन्ह भी थे। यद्यपि अब राज्य का युग है, फिर भी, अब भी बहुत-से ऐसे नियम हैं, जिनका मनुष्य द्वारा पालन किया जाना आवश्यक है। अब अतीत के नियम लागू नहीं होते, और आज मनुष्य के करने के लिए और भी बहुत-से उपयुक्त अभ्यास हैं, जो आवश्यक हैं। इनमें पवित्र आत्मा का कार्य शामिल नहीं है और ये मनुष्य द्वारा ही किए जाने चाहिए।
अनुग्रह के युग में व्यवस्था के युग के बहुत-से अभ्यास हटा दिए गए थे, क्योंकि ये व्यवस्थाएँ उस समय के कार्य के लिए कोई खास कारगर नहीं थीं। उन्हें हटा दिए जाने के बाद कई ऐसे अभ्यास निर्धारित किए गए, जो उस युग के लिए उपयुक्त थे, और जो आज के बहुत-से नियम बन चुके हैं। जब आज का परमेश्वर आया, तो इन नियमों को हटा दिया गया और इनके अनुपालन की अब और आवश्यकता नहीं रही, और आज के कार्य के उपयुक्त कई अभ्यास निर्धारित किए गए। आज ये अभ्यास नियम नहीं हैं, बल्कि इनका उद्देश्य परिणाम प्राप्त करना है; ये आज के लिए अनुकूल हैं—और कल शायद ये नियम बन जाएँगे। कुल मिलाकर, तुम्हें उसका पालन करना चाहिए, जो आज के कार्य के लिए लाभदायक है। आने वाले कल पर ध्यान न दो : जो आज किया जाता है, वह आज के लिए होता है। हो सकता है, जब कल आए तो बेहतर अभ्यास हों, जिन्हें करने की तुम्हें आवश्यकता होगी—किंतु उस पर अधिक ध्यान मत दो। इसकी बजाय, उसका पालन करो, जिसका आज पालन किया जाना चाहिए, ताकि परमेश्वर का विरोध करने से बचा जाए। आज मनुष्य के लिए निम्नलिखित बातों का पालन करने से अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है : तुम्हें उस परमेश्वर को फुसलाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, जो तुम्हारी आँखों के सामने खड़ा है, न ही तुम्हें उससे कुछ छिपाना चाहिए। तुम अपने सामने खड़े परमेश्वर के सम्मुख कोई गंदी या अहंकार से भरी बात नहीं कहोगे। तुम परमेश्वर के भरोसे को जीतने के लिए अपनी मीठी और साफ़-सुथरी बातों से अपनी आँखों के सामने खड़े परमेश्वर को धोखा नहीं दोगे। तुम परमेश्वर के सामने अनादर से व्यवहार नहीं करोगे। तुम परमेश्वर के मुख से बोले जाने वाले समस्त वचनों का पालन करोगे, और उनका प्रतिरोध, विरोध या प्रतिवाद नहीं करोगे। तुम परमेश्वर के मुख से बोले गए वचनों की अपने हिसाब से व्याख्या नहीं करोगे। तुम्हें अपनी जीभ को काबू में रखना चाहिए, ताकि इसके कारण तुम दुष्टों की कपटपूर्ण योजनाओं के शिकार न हो जाओ। तुम्हें अपने क़दमों के प्रति सचेत रहना चाहिए, ताकि तुम परमेश्वर द्वारा तुम्हारे लिए निर्दिष्ट की गई सीमा का अतिक्रमण करने से बच सको। अगर तुम अतिक्रमण करते हो, तो यह तुम्हारे द्वारा परमेश्वर की स्थिति में खड़े होने और अहंकार भरे और आडंबरपूर्ण शब्द कहने का कारण बनेगा, जिसके लिए परमेश्वर तुमसे घृणा करने लगेगा। तुम परमेश्वर के मुँह से निकले वचनों को लापरवाही से प्रसारित नहीं करोगे, ताकि कहीं ऐसा न हो कि दूसरे तुम्हारी हँसी उड़ाएँ और हैवान तुम्हें मूर्ख बनाएँ। तुम आज के परमेश्वर के समस्त कार्य का पालन करोगे। भले ही तुम उसे समझ न पाओ, तो भी तुम उस पर निर्णय पारित नहीं करोगे; तुम केवल खोज और संगति कर सकते हो। कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के मूल स्थान का अतिक्रमण नहीं करेगा। तुम एक मनुष्य की हैसियत से आज के परमेश्वर की सेवा करने से अधिक कुछ नहीं कर सकते। तुम एक मनुष्य की हैसियत से आज के परमेश्वर को सिखा नहीं सकते—ऐसा करना मार्ग से भटकना है। कोई भी व्यक्ति परमेश्वर द्वारा गवाही दिए गए व्यक्ति के स्थान पर खड़ा नहीं हो सकता; अपने शब्दों, कार्यों, और अंतर्तम विचारों में तुम मनुष्य की हैसियत में खड़े हो। इसका पालन किया जाना आवश्यक है, यह मनुष्य का उत्तरदायित्व है, और इसे कोई बदल नहीं सकता; ऐसा करना प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन होगा। यह सभी को स्मरण रखना चाहिए।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'नये युग की आज्ञाएँ' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 244
मैं तुम लोगों से आशा करता हूँ कि तुम सब बहुत सारी चीज़ें हासिल करोगे, लेकिन फिर भी, तुम्हारे सारे कार्यकलाप और तुम्हारे जीवन की सभी बातें, मेरी माँगों को पूरा करने में असमर्थ हैं, इसलिए सीधे मुद्दे पर आकर अपनी इच्छा तुम्हें समझाने के अलावा मेरे पास और कोई चारा नहीं है। यह मानते हुए कि तुम्हारी परखने और अभिस्वीकारने की योग्यताएँ बेहद कमज़ोर हैं, तुम सब पूरी तरह मेरे स्वभाव और सार से लगभग बिलकुल अनजान हो—तो ये अति आवश्यक है कि मैं इसके बारे में तुम्हें सूचित करूँ। इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम पहले कितना समझते थे या फिर तुम इन विषयों को समझने के इच्छुक हो या नहीं, मुझे उनके बारे में तुम्हें विस्तारपूर्वक बताना होगा। ये कोई ऐसे विषय नहीं हैं जो तुम लोगों के लिए बिलकुल अनजान हों, फिर भी इनमें जो अर्थ निहित है तुममें उसकी समझ, उससे परिचय की काफी कमी है। तुम में से बहुतों के पास थोड़ी-सी समझ है जो कि आंशिक और अधूरी है। सत्य का बेहतर ढंग से अभ्यास करने में तुम सबकी मदद करने के लिये अर्थात मेरे वचनों को बेहतर ढंग से अभ्यास में लाने के लिये सबसे पहले तुम्हें इन विषयों से अवगत होना होगा। अन्यथा तुम लोगों का विश्वास अस्पष्ट, पाखंडी, और धर्म के रंग-ढंग में ढला होगा। यदि तुम परमेश्वर के स्वभाव को नहीं समझते, तब तुम्हारे लिए उस काम को करना असंभव होगा जो उसके लिए तुम्हें करना चाहिए। यदि तुम परमेश्वर के सार को नहीं जानते हो, तो उसके प्रति आदर और भय को धारण करना तुम्हारे लिए असंभव होगा; तुम केवल बेपरवाह यंत्रवत ढंग से काम करोगे और घुमा-फिराकर बात कहोगे, इसके अतिरिक्त असाध्य ईश-निन्दा करोगे। हालाँकि परमेश्वर के स्वभाव को समझना वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण है, और परमेश्वर के अस्तित्व के ज्ञान को कभी भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता, फिर भी किसी ने भी पूरी तरह इस विषय का परीक्षण नहीं किया है या कोई उसकी गहराई में नहीं गया है। यह बिलकुल साफ-साफ देखा जा सकता है कि तुम सबने मेरे द्वारा दिए गए सभी प्रशासनिक आदेशों को अस्वीकार कर दिया है। यदि तुम लोग परमेश्वर के स्वभाव को नहीं समझते, तो बहुत संभव है कि तुम उसके स्वभाव को ठेस पहुँचा दो। उसके स्वभाव का अपमान ऐसा अपराध है जो स्वयं परमेश्वर के क्रोध को भड़काने के समान है, अगर ऐसा होता है तो अंतत: तुम्हारे क्रियाकलापों का परिणाम प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन होगा। अब तुम्हें एहसास हो जाना चाहिए कि जब तुम उसके सार को जान जाते हो तो तुम परमेश्वर के स्वभाव को भी समझ सकते हो, और जब तुम परमेश्वर के स्वभाव को समझ जाते हो तो तुम उसके प्रशासनिक आदेशों को भी समझ जाओगे। कहने की आवश्यकता नहीं है कि प्रशासनिक आदेशों में जो निहित है उसमें से काफी कुछ परमेश्वर के स्वभाव का जिक्र करता है, परन्तु उसका सम्पूर्ण स्वभाव प्रशासनिक आदेशों में प्रकट नहीं किया गया है; अत: परमेश्वर के स्वभाव की समझ को और ज़्यादा विकसित करने के लिए तुम्हें एक कदम और आगे बढ़ना चाहिए।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के स्वभाव को समझना अति महत्वपूर्ण है' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 245
परमेश्वर का स्वभाव एक ऐसा विषय है जो सबको बहुत अमूर्त दिखाई देता है, इसके अलावा यह कुछ ऐसा नहीं है जिसे लोग आसानी से स्वीकार कर सकें, क्योंकि उसका स्वभाव मनुष्यों के व्यक्तित्व के समान नहीं है। परमेश्वर के पास भी आनन्द, क्रोध, दुखः और खुशी की भावनाएँ हैं, परन्तु ये भावनाएँ मनुष्यों की भावनाओं से जुदा हैं। परमेश्वर वो है जो वो है और उसके पास वो है जो उसके पास है। जो कुछ वह प्रकट और उजागर करता है वह उसके सार और उसकी पहचान के निरूपण हैं। उसका स्वरूप, उसका सार और उसकी पहचान ऐसी चीज़ें हैं जिनकी जगह कोई मनुष्य नहीं ले सकता है। उसका स्वभाव मानवजाति के प्रति उसके प्रेम, मानवजाति के लिए उसकी दिलासा, मानवजाति के प्रति नफरत, और उस से भी बढ़कर, मानवजाति की सम्पूर्ण समझ को समेटे हुए है। जबकि, मुनष्य का व्यक्तित्व आशावादी, जीवन्त, या निष्ठुर हो सकता है। परमेश्वर का स्वभाव सभी चीज़ों और जीवित प्राणियों के शासक, सारी सृष्टि के प्रभु का स्वभाव है। उसका स्वभाव सम्मान, सामर्थ, कुलीनता, महानता, और सब से बढ़कर, सर्वोच्चता को दर्शाता है। उसका स्वभाव अधिकार का प्रतीक है, उन सबका प्रतीक है जो धर्मी, सुन्दर, और अच्छा है। इस के अतिरिक्त, यह उस परमेश्वर का भी प्रतीक है जिसे अंधकार और शत्रु बल के द्वारा हराया या आक्रमण नहीं किया जा सकता है,[क] साथ ही उस परमेश्वर का प्रतीक भी है जिसे किसी भी सृजे गए प्राणी के द्वारा ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती है (न ही वह ठेस पहुंचाया जाना बर्दाश्त करेगा)।[ख] उसका स्वभाव सब से ऊँची सामर्थ का प्रतीक है। कोई भी मनुष्य या लोग उसके कार्य और उसके स्वभाव को बाधित नहीं कर सकते हैं। परन्तु मनुष्य का व्यक्तित्व, पशुओं से थोड़ा बेहतर होने के चिह्न से बढ़कर कुछ भी नहीं है। मनुष्य के पास अपने आप में और स्वयं में कोई अधिकार नहीं है, कोई स्वायत्तता नहीं है, स्वयं को श्रेष्ठ बनाने की कोई योग्यता नहीं है, बल्कि उसके सार में यह है कि वो हर प्रकार के व्यक्तियों, घटनाओं, या वस्तुओं के नियंत्रण में रहता है। परमेश्वर का आनन्द, धार्मिकता और ज्योति की उपस्थिति और अभ्युदय के कारण है; अँधकार और बुराई के विनाश के कारण है। वह मानवजाति तक ज्योति और अच्छा जीवन पहुंचाने में आनन्दित होता है; उसका आनन्द धार्मिक आनंद है, हर सकारात्मक चीज़ के अस्तित्व में होने का प्रतीक, और सब से बढ़कर कल्याण का प्रतीक है। परमेश्वर के क्रोध का कारण मानवजाति को अन्याय की मौजूदगी और उसके हस्तक्षेप के कारण पहुँचने वाली हानि है; बुराई और अँधकार है, और ऐसी चीज़ों का अस्तित्व है जो सत्य को निकाल बाहर करती हैं, और उस से भी बढ़कर इसका कारण ऐसी चीज़ों का अस्तित्व है जो उसका विरोध करती हैं जो भला और सुन्दर है। उसका क्रोध एक चिह्न है कि वे सभी चीज़ें जो नकारात्मक हैं आगे से अस्तित्व में न रहें, और इसके अतिरिक्त यह उसकी पवित्रता का प्रतीक है। उसका दुखः मानवजाति के कारण है, जिसके लिए उसने आशा की है परन्तु वह अंधकार में गिर गई है, क्योंकि जो कार्य वह मनुष्यों पर करता है, वह उसकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता और क्योंकि वह जिस मानवजाति से प्रेम करता है वह समस्त मानवजाति ज्योति में जीवन नहीं जी सकती। वह दुखः की अनुभूति करता है अपनी निष्कपट मानवजाति के लिए, ईमानदार किन्तु अज्ञानी मनुष्य के लिए, और उस मनुष्य के लिए जो भला तो है लेकिन जिसमें खुद के विचारों की कमी है। उसका दुखः, उसकी भलाई और उसकी करूणा का चिह्न है, सुन्दरता और उदारता का चिह्न है। उसकी प्रसन्नता वास्तव में, उसके शत्रुओं को हराने और मनुष्यों के भले विश्वास को प्राप्त करने से आती है। इसके अतिरिक्त, सभी शत्रु ताकतों को भगाने और उनके विनाश से उपजती है और मनुष्यों के भले और शांतिपूर्ण जीवन को प्राप्त करने से आती है। परमेश्वर की प्रसन्नता, मनुष्य के आनंद के समान नहीं है; उसके बजाए, यह मनोहर फलों को एकत्र करने का एहसास है, एक एहसास जो आनंद से भी बढ़कर है। उसकी प्रसन्नता इस बात का चिह्न है कि मानवजाति दुखः की जंज़ीरों को तोड़कर अब आज़ाद हो गयी है, यह मानवजाति के ज्योति के संसार में प्रवेश करने का चिह्न है। दूसरी ओर, मनुष्यों की भावनाएँ सिर्फ उनके स्वयं के सारे स्वार्थों के उद्देश्य से जन्मती हैं, धार्मिकता, ज्योति, या जो सुन्दर है उसके लिए नहीं है, और स्वर्ग द्वारा प्रदत्त अनुग्रह के लिए तो बिल्कुल नहीं है। मानवजाति की भावनाएँ स्वार्थी हैं और अँधकार के संसार से वास्ता रखती हैं। वे परमेश्वर की इच्छा के लिए अस्तित्व में नहीं हैं, परमेश्वर की योजना के लिए तो बिल्कुल नहीं हैं। इसलिए मनुष्य और परमेश्वर का उल्लेख एक साँस में नहीं किया जा सकता है। परमेश्वर सर्वदा सर्वोच्च है और हमेशा आदरणीय है, जबकि मनुष्य सर्वदा तुच्छ और हमेशा निकम्मा है। यह इसलिए है क्योंकि परमेश्वर हमेशा मनुष्यों के लिए बलिदान करता रहता है और अपने आप को समर्पित करता है; जबकि, मनुष्य हमेशा लेता है और सिर्फ अपने आप के लिए ही परिश्रम करता है। परमेश्वर सदा मानवजाति के अस्तित्व के लिए परिश्रम करता रहता है, फिर भी मनुष्य ज्योति और धार्मिकता में कभी भी कोई योगदान नहीं देता है। भले ही मनुष्य कुछ समय के लिए परिश्रम करे, लेकिन वह हल्के से झटके का भी सामना नहीं सकता है, क्योंकि मनुष्य का परिश्रम केवल अपने लिए होता है दूसरों के लिए नहीं। मनुष्य हमेशा स्वार्थी होता है, जबकि परमेश्वर सर्वदा स्वार्थविहीन होता है। परमेश्वर उन सब का स्रोत है जो धर्मी, अच्छा, और सुन्दर है, जबकि मनुष्य सब प्रकार की गन्दगी और बुराई का वाहक और प्रकट करने वाला है। परमेश्वर कभी भी अपनी धार्मिकता और सुन्दरता के सार-तत्व को नहीं बदलेगा, जबकि मनुष्य किसी भी समय, किसी भी परिस्थिति में, धार्मिकता से विश्वासघात कर सकता है और परमेश्वर से दूर जा सकता है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के स्वभाव को समझना अति महत्वपूर्ण है' से उद्धृत
फुटनोट :
क. मूल पाठ में "यह असमर्थ होने का प्रतीक है" लिखा है।
ख. मूल पाठ में "साथ ही अपमान के अयोग्य (और अपमान सहन न करने) होने का भी प्रतीक है" लिखा है।
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 246
हर एक वाक्य जो मैंने कहा है वह अपने भीतर परमेश्वर के स्वभाव को लिए हुए है। तुम सब यदि मेरे वचनों पर सावधानी से मनन करोगे तो अच्छा होगा, और तुम निश्चय ही उनसे बड़ा लाभ पाओगे। परमेश्वर के सार-तत्व को समझना बड़ा ही कठिन काम है, परन्तु मैं भरोसा करता हूँ कि तुम सभी के पास कम से कम परमेश्वर के स्वभाव का कुछ तो अनुमान है। तब, मैं आशा करता हूँ कि तुम लोगों के पास मुझे दिखाने के लिए तुम्हारे द्वारा की गईं ऐसी ज्यादा चीजें होंगी जो परमेश्वर के स्वभाव को अपमानित नहीं करतीं। तब ही मुझे पुनः आश्वासन मिलेगा। उदाहरण के लिए, परमेश्वर को हर समय अपने दिल में रखो। उसके वचनों के अनुसार कार्य करो। सब बातों में उसके विचारों की खोज करो, और ऐसा कोई भी काम मत करो जिससे परमेश्वर का अनादर और अपमान हो। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर को अपने हृदय के भविष्य के खालीपन को भरने के लिए अपने मन के पीछे के कोने में मत रखो। यदि तुम ऐसा करोगे, तो तुम परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुंचाओगे। यदि मान लिया जाए कि तुमने अपने पूरे जीवन में परमेश्वर के विरूद्ध कभी भी ईशनिन्दा की टिप्पणी या शिकायत नहीं की है और मान लिया जाए कि तुम्हारे सम्पूर्ण जीवन में जो कुछ उसने तुम्हें सौंपा है उसे तुम यथोचित रूप से करने में समर्थ रहे हो, साथ ही उसके सभी वचनों के लिए पूर्णतया समर्पित रहे हो, तो तुम प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन करने से बच गये हो। उदाहरण के लिए, यदि तुम ने कभी ऐसा कहा है, "मैं ऐसा क्यों नहीं सोचता कि वह परमेश्वर है?", "मैं सोचता हूँ कि ये शब्द पवित्र आत्मा के प्रबोधन से बढ़कर और कुछ नहीं हैं", "मैं नहीं सोचता कि जो कुछ परमेश्वर करता है वह सब सही है", "परमेश्वर की मानवीयता मेरी मानवीयता से बढ़कर नहीं है", "परमेश्वर का वचन विश्वास करने योग्य है ही नहीं," या इस तरह की अन्य प्रकार की आलोचनात्मक टीका टिप्पणियाँ की हैं, तो मैं तुम्हें प्रोत्साहित करता हूँ कि तुम अपने पापों को अंगीकार करो और पश्चाताप करो। अन्यथा, तुम्हें पापों की क्षमा के लिए कभी अवसर नहीं मिलेगा, क्योंकि तुमने किसी मनुष्य को नहीं, बल्कि स्वयं परमेश्वर को ठेस पहुँचाई है। तुम मान सकते हो कि तुम मात्र एक मनुष्य की आलोचना कर रहे हो, किन्तु परमेश्वर का आत्मा इस रीति से इसे नहीं देखता है। उसके देह का अनादर उसके अनादर के बराबर है। यदि ऐसा है, तो क्या तुमने परमेश्वर के स्वभाव को ठेस नहीं पहुँचाई है? तुम्हें याद रखना होगा कि जो कुछ भी परमेश्वर के आत्मा के द्वारा किया गया है वह उसके देह में किए गए कार्य का बचाव करने के लिए है और इसलिए किया गया है ताकि इस कार्य को भली भांति किया जा सके। यदि तुम इसे महत्व न दो, तब मैं कहता हूँ कि तुम वो शख्स हो जो परमेश्वर पर विश्वास करने में कभी सफल नहीं हो पायेगा। क्योंकि तुमने परमेश्वर के क्रोध को भड़का दिया है, इस लिए तुम्हें सबक सिखाने के लिए वो उचित दण्ड का इस्तेमाल करेगा।
परमेश्वर के सार-तत्व से परिचित होना कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। तुम्हें उसके स्वभाव को समझना होगा। इस तरह से तुम धीरे-धीरे, अनजाने में परमेश्वर के सार-तत्व से परिचित हो जाओगे, जब तुम इस ज्ञान में प्रवेश कर लोगे, तुम खुद को एक उच्चतर और अधिक ख़ू़बसूरत राज में प्रवेश करता हुआ पाओगे। अंत में तुम अपनी घृणित आत्मा पर लज्जा महसूस करोगे, और तो और तुम अपनी शक्ल दिखाने से भी लजाओगे। उस समय, तुम्हारे आचरण में ऐसी बातें कम होती चली जाएंगी जो परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचायें, तुम्हारा हृदय परमेश्वर के निकट होता जाएगा, और धीरे-धीरे उसके लिए तुम्हारे हृदय में प्रेम बढ़ता जाएगा। ये मानवजाति के ख़ूबसूरत राज में प्रवेश करने का एक चिह्न है। परन्तु तुम सबने इसे अभी प्राप्त नहीं किया है। अपनी नियति के लिए यहाँ-वहाँ भटकते हुए परमेश्वर के सार को जानने की रुचि किसमें है? अगर ये जारी रहा तो तुम अनजाने में प्रशासनिक आदेशों के विरूद्ध अपराध करोगे क्योंकि तुम परमेश्वर के स्वभाव के बारे में बहुत ही कम जानते हो। तो क्या अब तुम सब जो कर रहे हो वो परमेश्वर के स्वभाव के विरूद्ध तुम्हारे अपराधों की नींव नहीं डाल रहा? मेरा तुमसे यह अपेक्षा करना कि तुम परमेश्वर के स्वभाव को समझो, मेरे कार्य से पृथक नहीं है। क्योंकि यदि तुम लोग बार-बार प्रशासनिक आदेशों के विरूद्ध अपराध करते रहोगे, तो तुम में से कौन है जो दण्ड से बच पाएगा? तो क्या मेरा कार्य पूरी तरह व्यर्थ नहीं हो जाएगा? इसलिए, मैं अभी भी माँग करता हूँ कि अपने कार्यों का सूक्ष्म परीक्षण करने के साथ-साथ, तुम जो कदम उठा रहे हो उसके प्रति सावधान रहो। यह एक बड़ी माँग है जो मैं तुम लोगों से करता हूँ और आशा करता हूँ कि तुम सब इस पर सावधानी से विचार करोगे और इस पर ईमानदारी से ध्यान दोगे। यदि एक दिन ऐसा आया जब तुम लोगों के कार्य मुझे प्रचण्ड रूप से क्रोधित कर दें, तब परिणाम सिर्फ तुम्हें ही भुगतने होंगे, और तुम लोगों के स्थान पर दण्ड को सहने वाला और कोई नहीं होगा।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के स्वभाव को समझना अति महत्वपूर्ण है' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 247
लोग कहते हैं कि परमेश्वर एक धार्मिक परमेश्वर है, और अगर मनुष्य अंत तक उसका अनुसरण करता रहे, तो वह निश्चित रूप से मनुष्य के प्रति निष्पक्ष होगा, क्योंकि वह परम धार्मिक है। यदि मनुष्य अंत तक उसका अनुसरण करता रहे, तो क्या वह मनुष्य को दरकिनार कर सकता है? मैं सभी लोगों के प्रति निष्पक्ष हूँ, और अपने धार्मिक स्वभाव से सभी का न्याय करता हूँ, फिर भी मैं जो अपेक्षाएं इंसान से करता हूँ उसके लिए कुछ यथोचित स्थितियाँ होती हैं, और मैं जो अपेक्षा करता हूँ उसे सभी के लिए पूरा करना जरूरी है, चाहे वे कोई भी हों। मैं इसकी परवाह नहीं करता कि तुम्हारी योग्यता कितनी है और कब से है; मैं सिर्फ इसकी परवाह करता हूँ कि तुम मेरे मार्ग पर चल रहे हो या नहीं, सत्य के लिए तुममें प्रेम और प्यास है या नहीं। यदि तुममें सत्य की कमी है, और इसकी बजाय तुम मेरे नाम को लज्जित कर रहे हो, और मेरे मार्ग के अनुसार क्रिया-कलाप नहीं कर रहे हो, और किसी बात की परवाह या चिंता किए बगैर सिर्फ अनुसरण मात्र कर रहे हो, तो मैं उस समय तुम पर प्रहार करूंगा और तुम्हारी दुष्टता के लिए तुम्हें दंड दूँगा, तब फिर तुम्हारे पास कहने के लिए क्या होगा? तब क्या तुम यह कह पाओगे कि परमेश्वर धार्मिक नहीं है? आज, यदि तुम मेरे द्वारा बोले गए वचनों का पालन करते हो, तो तुम एक ऐसे इंसान हो जिसे मैं स्वीकार करता हूँ। तुम कहते हो कि तुमने परमेश्वर का अनुसरण करते हुए हमेशा दुख उठाया है, तुमने हर परिस्थिति में उसका अनुसरण किया है, और तुमने उसके साथ अच्छा-बुरा समय बिताया है, लेकिन तुमने परमेश्वर द्वारा बोले गए वचनों को नहीं जिया है; तुम हर दिन सिर्फ परमेश्वर के लिए भाग-दौड़ करना और उसके लिए स्वयं को खपाना चाहते हो, तुमने कभी भी एक अर्थपूर्ण जीवन बिताने के बारे में नहीं सोचा है। तुम यह भी कहते हो, "खैर, मैं यह तो मानता ही हूँ कि परमेश्वर धार्मिक है। मैंने उसके लिए दुख उठाया है, मैंने उसके लिए भाग-दौड़ की है, और उसके लिए अपने आपको समर्पित किया है, और इसके लिए कोई मान्यता प्राप्त किए बिना मैंने कड़ी मेहनत की है; वह निश्चित ही मुझे याद रखेगा।" यह सच है कि परमेश्वर धार्मिक है, फिर भी इस धार्मिकता पर किसी अशुद्धता का दाग नहीं है: इसमें कोई मानवीय इच्छा नहीं है, और इस पर शरीर या मानवीय सौदेबाजी का कोई धब्बा नहीं है। जो लोग विद्रोही हैं और विरोध में खड़े हैं, वे सब जो उसके मार्ग के अनुरूप नहीं हैं, उन्हें दंडित किया जाएगा; न तो किसी को क्षमा किया जाएगा, न ही किसी को बख्शा जाएगा! कुछ लोग कहते हैं, "आज मैं तुम्हारे लिए भाग-दौड़ कर रहा हूँ; जब अंत आएगा, तो क्या तुम मुझे थोड़ा-सा आशीष दे सकते हो?" तो मैं तुमसे पूछता हूँ, "क्या तुमने मेरे वचनों का पालन किया है?" तुम जिस धार्मिकता की बात करते हो, वह एक सौदे पर आधारित है। तुम केवल यह सोचते हो कि मैं सभी लोगों के प्रति धार्मिक और निष्पक्ष हूँ, और जो लोग अंत तक मेरा अनुसरण करेंगे उन्हें निश्चित रूप से बचा लिया जाएगा और वे मेरे आशीष प्राप्त करेंगे। "जो लोग अंत तक मेरा अनुसरण करेंगे उन्हें निश्चित रूप से बचा लिया जाएगा" : मेरे इन वचनों का एक भीतरी अर्थ है: जो लोग अंत तक मेरा अनुसरण करते हैं, उन्हें मेरे द्वारा पूरी तरह से ग्रहण कर लिया जाएगा, वे ऐसे लोग हैं जो मेरे द्वारा जीते जाने के बाद, सत्य खोजते हैं और जिन्हें पूर्ण बनाया जाता है। तुमने कैसी स्थितियाँ हासिल की हैं? तुमने केवल अंत तक मेरा अनुसरण करना ही हासिल किया है, लेकिन तुमने और क्या हासिल किया है? क्या तुमने मेरे वचनों का पालन किया है? तुमने मेरी पाँच अपेक्षाओं में से एक को पूरा किया है, लेकिन बाकी चार को पूरा करने का तुम्हारा कोई इरादा नहीं है। तुमने बस सबसे सरल और आसान रास्ता ढूँढ़ लिया है और इसी का अनुसरण किया है। तुम्हारे जैसे इंसान के लिए मेरा धार्मिक स्वभाव ताड़ना और न्याय का है, यह धार्मिक प्रतिफल है, और यह बुरा काम करने वालों के लिए धार्मिक दंड है; जो लोग मेरे मार्ग पर नहीं चलते उन्हें निश्चित ही दंड दिया जाएगा, भले ही वे अंत तक अनुसरण करते रहें। यह परमेश्वर की धार्मिकता है। जब यह धार्मिक स्वभाव मनुष्य के दंड में व्यक्त होता है, तो मनुष्य भौंचक्का रह जाता है, और उसे अफसोस होता है कि परमेश्वर का अनुसरण करते हुए वह उसके मार्ग पर क्यों नहीं चला। "उस समय, परमेश्वर का अनुसरण करते हुए मैंने केवल थोड़ा-सा दुख उठाया, किंतु मैं परमेश्वर के मार्ग पर नहीं चला। इसके लिए क्या बहाने बनाये जा सकते हैं? ताड़ना दिए जाने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं है!" फिर भी वह अपने मन में सोच रहा होता है, "जो भी हो, मैंने अंत तक अनुसरण किया है, अगर तू मुझे ताड़ना भी देगा, तो वह ताड़ना बहुत कठोर नहीं हो सकती, और इस ताड़ना के बाद भी तू मुझे चाहेगा। मैं जानता हूँ कि तू धार्मिक है, और तू हमेशा मेरे साथ इस प्रकार का व्यवहार नहीं करेगा। आखिरकार, मैं उनके समान नहीं हूँ जिन्हें मिटा दिया जाएगा; जो मिटा दिए जाएंगे, उन्हें कठोर ताड़ना मिलेगी, जबकि मेरी ताड़ना हल्की होगी।" परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव वैसा नहीं है जैसा तुम कहते हो। ऐसा नहीं है कि जो अपने पाप स्वीकारते हैं उनके साथ कोमलता के साथ व्यवहार किया जाता है। धार्मिकता पवित्रता है, और एक ऐसा स्वभाव है जो मनुष्य के अपराध को सहन नहीं कर सकता, और वह सब कुछ जो अशुद्ध है और जो परिवर्तित नहीं हुआ है, वह परमेश्वर की घृणा का पात्र है। परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव व्यवस्था नहीं, बल्कि प्रशासनिक आज्ञा है: यह राज्य के भीतर एक प्रशासनिक आज्ञा है, और यह प्रशासनिक आज्ञा हर उस व्यक्ति के लिए धार्मिक दंड है जिसमें सत्य नहीं है और जो परिवर्तित नहीं हुआ है, और जिसके उद्धार की कोई गुंजाइश नहीं है। क्योंकि जब प्रत्येक मनुष्य को उसकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया जायेगा, तो अच्छे को पुरस्कार और बुरे को दंड दिया जाएगा। इसी समय मनुष्य के गंतव्य को भी स्पष्ट किया जाएगा; यह वह समय होगा जब उद्धार का कार्य भी समाप्त हो जाएगा, उसके बाद मनुष्य के उद्धार का कार्य नहीं किया जाएगा, और बुराई करने वाले हर इंसान को कठोर दंड दिया जाएगा।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 248
मैं एक सर्वभक्षी अग्नि हूँ और मैं अपमान बरदाश्त नहीं करता। क्योंकि सभी मानव मेरे द्वारा बनाए गए थे, इसलिए मैं जो कुछ कहता और करता हूँ, उन्हें उसका पालन करना चाहिए और वे विद्रोह नहीं कर सकते। लोगों को मेरे कार्य में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, और वे इस बात का विश्लेषण करने के योग्य तो बिलकुल नहीं हैं कि मेरे कार्य और मेरे वचनों में क्या सही या ग़लत है। मैं सृष्टि का प्रभु हूँ, और सृजित प्राणियों को मेरे प्रति श्रद्धापूर्ण हृदय के साथ वह सब-कुछ प्राप्त करना चाहिए, जिसकी मुझे आवश्यकता है; उन्हें मेरे साथ बहस नहीं करनी चाहिए, और विशेष रूप से उन्हें मेरा विरोध नहीं करना चाहिए। मैं अपने अधिकार के साथ अपने लोगों पर शासन करता हूँ, और वे सभी लोग जो मेरी सृष्टि का हिस्सा हैं, उन्हें मेरे अधिकार के प्रति समर्पण करना चाहिए। यद्यपि आज तुम लोग मेरे सामने दबंग और धृष्ट हो, यद्यपि तुम उन वचनों की अवज्ञा करते हो जिनसे मैं तुम लोगों को शिक्षा देता हूँ, और कोई डर नहीं मानते, फिर भी मैं तुम लोगों की विद्रोहशीलता का केवल सहिष्णुता से सामना करता हूँ; मैं अपना आपा नहीं खोऊँगा और अपने कार्य को इसलिए प्रभावित नहीं करूँगा, क्योंकि छोटे, तुच्छ भुनगों ने गोबर के ढेर में गंदगी मचा दी है। मैं अपने पिता की इच्छा के वास्ते हर उस चीज़ के अविरत अस्तित्व को सहता हूँ जिससे मैं घृणा करता हूँ, और उन सभी चीज़ों को बरदाश्त करता हूँ, जिनसे मैं नफ़रत करता हूँ, और मैं अपने कथन पूरे होने तक, अपने अंतिम क्षण तक ऐसा करूँगा। चिंता मत करो! मैं किसी अनाम भुनगे के स्तर तक नहीं गिर सकता, और मैं अपने कौशल की मात्रा की तुम्हारे साथ तुलना नहीं करूँगा। मैं तुमसे घृणा करता हूँ, किंतु मैं सहने में सक्षम हूँ। तुम मेरी अवज्ञा करते हो, किंतु तुम उस दिन से नहीं बच सकते, जब मैं तुम्हारी ताड़ना करूँगा, जिसका मेरे पिता ने मुझसे वादा किया है। क्या एक सृजित भुनगा सृष्टि के प्रभु से तुलना कर सकता है? शरद ऋतु में झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौट जाते हैं; तुम अपने "पिता" के घर लौट जाओगे, और मैं अपने पिता के पास लौट जाऊँगा। मेरे साथ मेरे पिता का कोमल स्नेह होगा, और तुम अपने पिता के द्वारा कुचले जाओगे। मेरे पास मेरे पिता की महिमा होगी, और तुम्हारे पास तुम्हारे पिता की शर्मिंदगी होगी। मैं उस ताड़ना का उपयोग करूँगा, जिसे मैंने तुम्हारा साथ देने के लिए लंबे समय से रोककर रखा है, और तुम अपनी दुर्गंधयुक्त देह से, जो हज़ारों साल से भ्रष्ट हो चुकी है, मेरी ताड़ना को भुगतोगे। मैंने सहिष्णुता के साथ तुममें वचनों के अपने कार्य का समापन कर लिया होगा, और तुम मेरे वचनों से विपदा भोगने की भूमिका निभाना शुरू करोगे। मैं इस्राएल में बहुत आनंदित होऊँगा और कार्य करूँगा; तुम रोओगे और अपने दाँत पीसोगे और कीचड़ में जीते और मरते रहोगे। मैं अपना मूल स्वरूप पुनः प्राप्त कर लूँगा और तुम्हारे साथ अब और गंदगी में नहीं रहूँगा, जबकि तुम अपनी मूल कुरूपता को पुनः प्राप्त कर लोगे और गोबर के ढेर के इर्द-गिर्द बिल बनाते रहोगे। जब मेरा कार्य और वचन पूरे हो जाएँगे, तो वह मेरे लिए खुशी का दिन होगा। जब तुम्हारा प्रतिरोध और विद्रोहशीलता पूरे हो जाएँगे, तो वह तुम्हारे लिए रोने का दिन होगा। मैं तुमसे सहानुभूति नहीं रखूँगा, और तुम मुझे पुनः कभी नहीं देखोगे। मैं तुम्हारे साथ और अधिक संवाद में संलग्न नहीं होऊँगा, और तुम्हारा मुझसे कभी सामना नहीं होगा। मैं तुम्हारी विद्रोहशीलता से नफ़रत करूँगा, और तुम्हें मेरी मनोरमता याद आएगी। मैं तुम पर प्रहार करूँगा, और तुम मेरे लिए विलाप करोगे। मैं ख़ुशी से तुमसे विदाई लूँगा, और तुम्हे मेरे प्रति अपने कर्ज़ के बारे में पता चलेगा। मैं तुम्हें फिर कभी नहीं देखूँगा, लेकिन तुम हमेशा मुझे देखने की आशा करोगे। मैं तुमसे नफ़रत करूँगा क्योंकि तुम वर्तमान में मेरा विरोध करते हो, और तुम्हें मेरी याद आएगी क्योंकि मैं वर्तमान में तुम्हें ताड़ना देता हूँ। मैं तुम्हारे साथ रहने का इच्छुक नहीं होऊँगा, लेकिन तुम इसके लिए बुरी तरह लालायित रहोगे और अनंत काल तक रोओगे, क्योंकि तुम्हें उस सबके लिए पछतावा होगा, जो तुमने मेरे साथ किया है। तुम्हें अपनी विद्रोहशीलता और अपने प्रतिरोध के लिए ग्लानि होगी, यहाँ तक कि तुम पछतावे में औंधे मुँह ज़मीन पर लेट जाओगे, और मेरे सामने गिर जाओगे और पुनः मेरी अवज्ञा नहीं करने की कसम खाओगे। हालाँकि, अपने हृदय में तुम केवल मुझे प्यार करोगे, मगर तुम कभी भी मेरी आवाज नहीं सुन पाओगे। मैं तुम्हें तुमसे ही शर्मिंदा करवाऊँगा।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'जब झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, तो तुम्हें अपनी की हुई सभी बुराइयों पर पछतावा होगा' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 249
मेरी दया उन पर होती है जो मुझसे प्रेम करते हैं और स्वयं को नकारते हैं। दुष्टों को मिला दण्ड निश्चित रूप से मेरे धार्मिक स्वभाव का प्रमाण है, और उससे भी बढ़कर, मेरे क्रोध का प्रमाण है। जब आपदा आएगी, तो उन सभी पर अकाल और महामारी आ पड़ेगी जो मेरा विरोध करते हैं और वे विलाप करेंगे। जो लोग सभी तरह के दुष्टतापूर्ण कर्म कर चुके हैं, किन्तु कई वर्षों तक मेरा अनुसरण किया है, वे अपने पापों का फल भुगतने से नहीं बचेंगे; वे भी लाखों वर्षों में शायद ही देखी गयी आपदा में डुबा दिये जाएँगे, और वे लगातार आंतक और भय की स्थिति में जीते रहेंगे। और केवल मेरे ऐसे अनुयायी जिन्होंने मेरे प्रति निष्ठा दर्शायी है, मेरी शक्ति का आनंद लेंगे और गुणगान करेंगे। वे अवर्णनीय तृप्ति का अनुभव करेंगे और ऐसे आनंद में रहेंगे जो मैंने मानवजाति को पहले कभी प्रदान नहीं किया है। क्योंकि मैं मनुष्यों के अच्छे कर्मों को सँजोकर रखता हूँ और उनके बुरे कर्मों से घृणा करता हूँ। जबसे मैंने सबसे पहले मानवजाति की अगुवाई करनी आरंभ की, तबसे मैं उत्सुकतापूर्वक मनुष्यों के ऐसे समूह को पाने की आशा करता रहा हूँ जो मेरे साथ एक मन वाले हों। इस बीच मैं उन लोगों को कभी नहीं भूलता हूँ जो मेरे साथ एक मन वाले नहीं हैं; अपने हृदय में मैं हमेशा उनसे घृणा करता हूँ, उन्हें प्रतिफल देने के अवसर की प्रतीक्षा करता हूँ, जिसे देखना मुझे आनंद देगा। अंततः आज मेरा दिन आ गया है, और मुझे अब और प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है!
मेरा अंतिम कार्य न केवल मनुष्यों को दण्ड देने के लिए है बल्कि मनुष्य की मंज़िल की व्यवस्था करने के लिए भी है। इससे भी अधिक, यह इसलिए है कि सभी लोग मेरे कर्मों और कार्यों को अभिस्वीकार करें। मैं चाहता हूँ कि हर एक मनुष्य देखे कि जो कुछ मैंने किया है, वह सही है, और जो कुछ मैंने किया है वह मेरे स्वभाव की अभिव्यक्ति है। यह मनुष्य का कार्य नहीं है, और उसकी प्रकृति तो बिल्कुल भी नहीं है, जिसने मानवजाति की रचना की है, यह तो मैं हूँ जो सृष्टि में हर जीव का पोषण करता है। मेरे अस्तित्व के बिना, मानवजाति केवल नष्ट होगी और विपत्तियों के दंड को भोगेगी। कोई भी मानव सुन्दर सूर्य और चंद्रमा या हरे-भरे संसार को फिर कभी नहीं देखेगा; मानवजाति केवल शीत रात्रि और मृत्यु की छाया की निर्मम घाटी को देखेगी। मैं ही मनुष्यजाति का एकमात्र उद्धार हूँ। मैं ही मनुष्यजाति की एकमात्र आशा हूँ और, इससे भी बढ़कर, मैं ही वह हूँ जिस पर संपूर्ण मानवजाति का अस्तित्व निर्भर करता है। मेरे बिना, मानवजाति तुरंत रुक जाएगी। मेरे बिना मानवजाति तबाही झेलेगी और सभी प्रकार के भूतों द्वारा कुचली जाएगी, इसके बावजूद कोई भी मुझ पर ध्यान नहीं देता है। मैंने वह काम किया है जो किसी दूसरे के द्वारा नहीं किया जा सकता है, मेरी एकमात्र आशा है कि मनुष्य कुछ अच्छे कर्मों के साथ मेरा कर्ज़ा चुका सके। यद्यपि कुछ ही लोग मेरा कर्ज़ा चुका पाये हैं, तब भी मैं मनुष्यों के संसार में अपनी यात्रा पूर्ण करूँगा और विकास के अपने कार्य के अगले चरण को आरंभ करूंगा, क्योंकि इन अनेक वर्षों में मनुष्यों के बीच मेरे आने और जाने की सारी भागदौड़ फलदायक रही है, और मैं अति प्रसन्न हूँ। मैं जिस चीज़ की परवाह करता हूँ वह मनुष्यों की संख्या नहीं, बल्कि उनके अच्छे कर्म हैं। किसी भी स्थिति में, मुझे आशा है कि तुम लोग अपनी मंज़िल के लिए पर्याप्त संख्या में अच्छे कर्म तैयार करोगे। तब मुझे संतुष्टि होगी; अन्यथा तुम लोगों में से कोई भी उस आपदा से नहीं बचेगा जो तुम लोगों पर पड़ेगी। आपदा मेरे द्वारा उत्पन्न की जाती है और निश्चित रूप से मेरे द्वारा ही आयोजित की जाती है। यदि तुम लोग मेरी नज़रों में अच्छे इंसान के रूप में नहीं दिखाई दे सकते हो, तो तुम लोग आपदा भुगतने से नहीं बच सकते। गहरी पीड़ा के बीच में, तुम लोगों के कार्य और कर्म पूरी तरह से उचित नहीं माने गए थे, क्योंकि तुम लोगों का विश्वास और प्रेम खोखला था, और तुम लोगों ने स्वयं को केवल डरपोक या कठोर दिखाया। इस सन्दर्भ में, मैं केवल भले या बुरे का ही न्याय करूँगा। मेरी चिंता तुम लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति के कार्य करने और अपने आप को व्यक्त करने के तरीके को लेकर बनी रहती है, जिसके आधार पर मैं तुम लोगों का अंत निर्धारित करूँगा। हालाँकि, मुझे यह स्पष्ट अवश्य कर देना चाहिए कि मैं उन लोगों पर अब और दया नहीं करूँगा जिन्होंने गहरी पीड़ा के दिनों में मेरे प्रति रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई है, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी ही दूर तक है। इसके अतिरिक्त, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं है जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, ऐसे लोगों के साथ जुड़ना तो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। चाहे व्यक्ति जो भी हो, मेरा स्वभाव यही है। मुझे तुम लोगों को अवश्य बता देना चाहिए कि जो कोई भी मेरा दिल तोड़ता है, उसे दूसरी बार मुझसे क्षमा प्राप्त नहीं होगी, और जो कोई भी मेरे प्रति निष्ठावान रहा है वह सदैव मेरे हृदय में बना रहेगा।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'अपनी मंज़िल के लिए पर्याप्त संख्या में अच्छे कर्मों की तैयारी करो' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 250
जब परमेश्वर पृथ्वी पर आया, तो वह संसार का नहीं था, और संसार का सुख भोगने के लिए वह देह नहीं बना था। जिस स्थान पर कार्य करना सबसे अच्छी तरह से उसके स्वभाव को प्रकट करता और जो सबसे अर्थपूर्ण होता, वह वही स्थान है, जहाँ वह पैदा हुआ। चाहे वह स्थल पवित्र हो या गंदा, और चाहे वह कहीं भी काम करे, वह पवित्र है। दुनिया में हर चीज़ उसके द्वारा बनाई गई थी, हालाँकि शैतान ने सब-कुछ भ्रष्ट कर दिया है। फिर भी, सभी चीजें अभी भी उसकी हैं; वे सभी चीजें उसके हाथों में हैं। वह अपनी पवित्रता प्रकट करने के लिए एक गंदे देश में आता है और वहाँ कार्य करता है; वह केवल अपने कार्य के लिए ऐसा करता है, अर्थात् वह इस दूषित भूमि के लोगों को बचाने के लिए ऐसा कार्य करने में बहुत अपमान सहता है। यह पूरी मानवजाति की खातिर, गवाही के लिए किया जाता है। ऐसा कार्य लोगों को परमेश्वर की धार्मिकता दिखाता है, और वह परमेश्वर की सर्वोच्चता प्रदर्शित करने में अधिक सक्षम है। उसकी महानता और शुचिता उन नीच लोगों के एक समूह के उद्धार के माध्यम से व्यक्त होती है, जिनका अन्य लोग तिरस्कार करते हैं। एक मलिन भूमि में पैदा होना यह बिलकुल साबित नहीं करता कि वह दीन-हीन है; यह तो केवल सारी सृष्टि को उसकी महानता और मानवजाति के लिए उसका सच्चा प्यार दिखाता है। जितना अधिक वह ऐसा करता है, उतना ही अधिक यह मनुष्य के लिए उसके शुद्ध प्रेम, उसके दोषरहित प्रेम को प्रकट करता है। परमेश्वर पवित्र और धर्मी है। यद्यपि वह एक गंदी भूमि में पैदा हुआ था, और यद्यपि वह उन लोगों के साथ रहता है जो गंदगी से भरे हुए हैं, ठीक वैसे ही जैसे यीशु अनुग्रह के युग में पापियों के साथ रहता था, फिर भी क्या उसका हर कार्य संपूर्ण मानवजाति के अस्तित्व की खातिर नहीं किया जाता? क्या यह सब इसलिए नहीं है कि मानवजाति महान उद्धार प्राप्त कर सके? दो हजार साल पहले वह कई वर्षों तक पापियों के साथ रहा। वह छुटकारे के लिए था। आज वह गंदे, नीच लोगों के एक समूह के साथ रह रहा है। यह उद्धार के लिए है। क्या उसका सारा कार्य तुम मनुष्यों के लिए नहीं है? यदि यह मानवजाति को बचाने के लिए न होता, तो क्यों वह एक नाँद में पैदा होने के बाद कई सालों तक पापियों के साथ रहता और कष्ट उठाता? और यदि यह मानवजाति को बचाने के लिए न होता, तो क्यों वह दूसरी बार देह में लौटकर आता, इस देश में पैदा होता जहाँ दुष्ट आत्माएँ इकट्ठी होती हैं, और इन लोगों के साथ रहता जिन्हें शैतान ने गहराई से भ्रष्ट कर रखा है? क्या परमेश्वर वफ़ादार नहीं है? उसके कार्य का कौन-सा भाग मानवजाति के लिए नहीं रहा है? कौन-सा भाग तुम लोगों की नियति के लिए नहीं रहा है? परमेश्वर पवित्र है—यह अपरिवर्तनीय है। वह गंदगी से प्रदूषित नहीं है, हालाँकि वह एक गंदे देश में आया है; इस सबका मतलब केवल यह हो सकता है कि मानवजाति के लिए परमेश्वर का प्रेम अत्यंत निस्वार्थ है और जो पीड़ा और अपमान वह सहता है, वह अत्यधिक है! क्या तुम लोग यह नहीं जानते कि वह तुम सभी के लिए, और तुम लोगों की नियति के लिए जो अपमान सहता है, वह कितना बड़ा है? वह बड़े लोगों या अमीर और शक्तिशाली परिवारों के पुत्रों को बचाने के बजाय विशेष रूप से उनको बचाता है, जो दीन-हीन हैं और नीची निगाह से देखे जाते हैं। क्या यह सब उसकी पवित्रता नहीं है? क्या यह सब उसकी धार्मिकता नहीं है? समस्त मानवजाति के अस्तित्व के लिए वह एक दूषित भूमि में पैदा होगा और हर अपमान सहेगा। परमेश्वर बहुत वास्तविक है—वह कोई मिथ्या कार्य नहीं करता। क्या उसके कार्य का हर चरण इतने व्यावहारिक रूप से नहीं किया गया है? यद्यपि सब लोग उसकी निंदा करते हैं और कहते हैं कि वह पापियों के साथ मेज पर बैठता है, यद्यपि सब लोग उसका मज़ाक उड़ाते हैं और कहते हैं कि वह गंदगी के पुत्रों के साथ रहता है, कि वह सबसे अधम लोगों के साथ रहता है, फिर भी वह निस्वार्थ रूप से अपने आपको समर्पित करता है, और वह अभी भी मानवजाति के बीच इस तरह नकारा जाता है। क्या जो कष्ट वह सहता है, वह तुम लोगों के कष्टों से बड़ा नहीं है? क्या जो कार्य वह करता है, वह तुम लोगों द्वारा चुकाई गई कीमत से ज्यादा नहीं है?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'मोआब के वंशजों को बचाने का अर्थ' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 251
परमेश्वर ने स्वयं को इस स्तर तक विनम्र किया है कि वह अपना कार्य इन अशुद्ध और भ्रष्ट लोगों में करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाता है। परमेश्वर न केवल लोगों के बीच जीने और खाने-पीने, लोगों की चरवाही करने, और लोग जो चाहते हैं, उन्हें वह प्रदान करने के लिए देह में आया है, बल्कि इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि वह उद्धार और विजय का अपना प्रबल कार्य इन असहनीय रूप से भ्रष्ट लोगों पर करता है। वह इन सबसे अधिक भ्रष्ट लोगों को बचाने के लिए बड़े लाल अजगर के केंद्र में आया, जिससे सभी लोग परिवर्तित हो सकें और नए बनाए जा सकें। वह अत्यधिक कष्ट, जो परमेश्वर सहन करता है, मात्र वह कष्ट नहीं है जो देहधारी परमेश्वर सहन करता है, अपितु सबसे बढ़कर वह परम निरादर है, जो परमेश्वर का आत्मा सहन करता है—वह स्वयं को इतना अधिक विनम्र बनाता है और इतना अधिक छिपाए रखता है कि वह एक साधारण व्यक्ति बन जाता है। परमेश्वर ने इसलिए देहधारण किया और देह का रूप लिया, ताकि लोग देखें कि उसका जीवन एक सामान्य मानव का जीवन है, और उसकी आवश्यकताएँ एक सामान्य मानव की आवश्यकताएँ हैं। यह इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि परमेश्वर ने स्वयं को बेहद विनम्र बनाया है। परमेश्वर का आत्मा देह में साकार होता है। उसका आत्मा बहुत उच्च और महान है, फिर भी वह अपने आत्मा का कार्य करने के लिए एक सामान्य मानव, एक तुच्छ मनुष्य का रूप ले लेता है। तुम लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता, अंतर्दृष्टि, समझ, मानवता और जीवन दर्शाते हैं कि तुम सब वास्तव में परमेश्वर के इस प्रकार के कार्य को स्वीकार करने के अयोग्य हो। तुम लोग वास्तव में इस योग्य नहीं हो कि परमेश्वर तुम्हारे लिए यह कष्ट सहन करे। परमेश्वर अत्यधिक महान है। वह इतना सर्वोच्च है और लोग इतने निम्न हैं, फिर भी वह उन पर कार्य करता है। उसने लोगों का भरण-पोषण करने, उनसे बात करने के लिए न केवल देहधारण किया, अपितु वह उनके साथ रहता भी है। परमेश्वर इतना विनम्र, इतना प्यारा है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'केवल उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 252
मानवजाति के कार्य के लिए परमेश्वर ने कई रातें बिना सोए गुज़ारी हैं। गहन ऊँचाई से लेकर अनंत गहराई तक, जीते-जागते नरक में जहाँ मनुष्य रहता है, वह मनुष्य के साथ अपने दिन गुज़ारने के लिए उतर आया है, फिर भी उसने कभी मनुष्य के बीच अपनी फटेहाली की शिकायत नहीं की है, अपनी अवज्ञा के लिए कभी भी मनुष्य को तिरस्कृत नहीं किया है, बल्कि वह व्यक्तिगत रूप से अपने कार्य को करते हुए सबसे बड़ा अपमान सहन करता है। परमेश्वर नरक का अंग कैसे हो सकता है? वह नरक में अपना जीवन कैसे बिता सकता है? लेकिन समस्त मानवजाति के लिए, ताकि पूरी मानवजाति को जल्द ही आराम मिल सके, उसने अपमान सहा है और पृथ्वी पर आने का अन्याय झेला है, मनुष्य को बचाने की खातिर व्यक्तिगत रूप से "नरक" और "अधोलोक" में, शेर की माँद में, प्रवेश किया है। मनुष्य परमेश्वर का विरोध करने योग्य कैसे हो सकता है? परमेश्वर से शिकायत करने का उसके पास क्या कारण है? वह परमेश्वर की ओर नज़र उठाकर देखने की हिम्मत कैसे कर सकता है? स्वर्ग का परमेश्वर बुराई की इस सबसे गंदी भूमि में आया है, और कभी भी उसने अपने कष्टों की शिकायत नहीं की है, बल्कि वह चुपचाप मनुष्य द्वारा किए गए विनाश[1] और अत्याचार को स्वीकार करता है। उसने कभी मनुष्य की अनुचित माँगों का प्रतिकार नहीं किया है, कभी भी उसने मनुष्य से अत्यधिक माँगें नहीं की हैं, और कभी भी उसने मनुष्य से गैरवाजिब तकाजे नहीं किए हैं; वह केवल बिना किसी शिकायत के मनुष्य द्वारा अपेक्षित सभी कार्य करता है : शिक्षा देना, प्रबुद्ध करना, डाँटना-फटकारना, शब्दों का परिष्कार करना, याद दिलाना, प्रोत्साहन देना, सांत्वना देना, न्याय करना और उजागर करना। उसका कौन-सा कदम मनुष्य के जीवन की खातिर नहीं है? यद्यपि उसने मनुष्यों की संभावनाओं और नियति को हटा दिया है, फिर भी परमेश्वर द्वारा उठाया गया कौन-सा कदम मनुष्य के भाग्य के लिए नहीं रहा है? उनमें से कौन-सा कदम मनुष्य के अस्तित्व के लिए नहीं रहा है? उनमें से कौन-सा कदम मनुष्य को इस दुःख और अँधेरी ताकतों के अत्याचार से मुक्त कराने के लिए नहीं रहा है, जो इतनी काली हैं जितनी कि रात? उनमें से कौन-सा कदम मनुष्य की खातिर नहीं है? परमेश्वर के हृदय को, जो ममतामयी माँ के हृदय जैसा है, कौन समझ सकता है? परमेश्वर के उत्सुक हृदय को कौन समझ सकता है? परमेश्वर के भावुक हृदय और उसकी उत्कट आशाओं का प्रतिफल ठंडे दिलों से, कठोर और उदासीन आँखों से, मनुष्य द्वारा बार-बार की फटकार और अपमान से दिया गया है; उनका प्रतिफल तीखी टिप्पणियों, कटाक्ष और हिकारत से दिया गया है; उनका प्रतिफल मनुष्य द्वारा उपहास करके, कुचलकर और नकारकर, अपनी गलतफ़हमियों, विलाप, मनो-मालिन्य और टालमटोल से दिया गया है, धोखे, हमले और कड़वाहट से दिया गया है। गर्मजोशी से भरे शब्दों को तनी हुई भौंहों और इनकार में हिलती हजारों उँगलियों की ठंडी अवज्ञा मिली है। किंतु परमेश्वर सिर झुकाए, एक नत-मस्तक बैल[2] की तरह लोगों की सेवा करना सहन कर सकता है। कितनी बार सूर्य और चंद्रमा आए और गए, कितनी ही बार उसने सितारों का सामना किया है, कितनी ही बार वह भोर में निकला और गोधूलि में लौटा है, कितनी ही बार उसने अपने पिता के वियोग की तुलना में हजार गुना ज्यादा पीड़ा सहते हुए, मनुष्य के हमले और तोड़-फोड़ बर्दाश्त करते हुए, और मनुष्य के साथ व्यवहार और उसकी काट-छाँट करते हुए बेचैनी से करवटें बदलीं हैं। मनुष्य ने परमेश्वर की विनम्रता और अदृश्यता का प्रतिफल अपने पूर्वाग्रह[3] से, अनुचित विचारों और अनुचित व्यवहार से चुकाया है, और परमेश्वर के गुमनामी में कार्य करने के निश्शब्द तरीके, उसके संयम और सहनशीलता की चुकौती मनुष्य की लालचभरी निगाह से की गई है; मनुष्य परमेश्वर को बिना किसी मलाल के घसीटकर मार डालने की कोशिश करता है और परमेश्वर को जमीन पर कुचल देने का प्रयास करता है। परमेश्वर के प्रति अपने व्यवहार में मनुष्य का रवैया "अजीब चतुराई" का है, और परमेश्वर को, जिसे मनुष्य द्वारा तंग और तिरस्कृत किया गया है, हजारों लोगों के पैरों तले कुचल दिया जाता है, जबकि मनुष्य स्वयं ऊँचा खड़ा होता है, जैसे कि वह पहाडी का राजा बनना चाहता हो, जैसे कि वह पूरी सत्ता हथियाना,[4] परदे के पीछे से अपना दरबार चलाना, परदे के पीछे परमेश्वर को एक कर्तव्यनिष्ठ और नियम-निष्ठ निर्देशक बनाना चाहता हो, जिसे पलटकर लड़ने या मुश्किलें पैदा करने की अनुमति नहीं है। परमेश्वर को अंतिम सम्राट की भूमिका अदा करनी चाहिए, उसे हर तरह की स्वतंत्रता से रहित एक कठपुतली[5] होना चाहिए। मनुष्य के कर्म अकथनीय हैं, तो वह परमेश्वर से कुछ भी माँगने योग्य कैसे हुआ? वह परमेश्वर को सुझाव देने योग्य कैसे हुआ? वह यह माँग करने योग्य कैसे हुआ कि परमेश्वर उसकी कमजोरियों के प्रति सहानुभूति रखे? वह परमेश्वर की दया पाने योग्य कैसे हुआ? वह बार-बार परमेश्वर की उदारता प्राप्त करने योग्य कैसे हुआ? वह बार-बार परमेश्वर की क्षमा पाने योग्य कैसे हुआ? उसकी अंतरात्मा कहाँ गयी? उसने बहुत पहले ही परमेश्वर का दिल तोड़ दिया था, उसने बहुत पहले ही परमेश्वर का दिल टुकड़े-टुकड़े करके छोड़ दिया था। परमेश्वर ऊर्जा और उत्साह से भरा हुआ मनुष्यों के बीच इस आशा से आया था कि मनुष्य उसके प्रति दयालु होगा, भले ही उसमें गर्मजोशी की कमी हो। फिर भी, परमेश्वर के दिल को मनुष्य ने कम सुकून पहुँचाया है, जो कुछ उसने प्राप्त किया है, वह केवल तेजी से बढ़ते[6] हमले और यातनाएँ हैं। मनुष्य का दिल बहुत लालची है, उसकी इच्छा बहुत बड़ी है, वह कभी भी संतुष्ट नहीं होता, वह हमेशा शातिर और उजड्ड रहता है, वह परमेश्वर को कभी बोलने की आज़ादी या अधिकार नहीं देता, और अपमान के सामने सिर झुकाने, और मनुष्य द्वारा अपने साथ मनचाहे तरीके से की जाने वाली जोड़तोड़ स्वीकार करने के अलावा परमेश्वर के लिए कोई विकल्प नहीं छोड़ता।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'कार्य और प्रवेश (9)' से उद्धृत
फुटनोट :
1. "विनाश" का इस्तेमाल मानवजाति की अवज्ञा उजागर करने के लिए किया गया है।
2. "उग्र भौंहों और इनकार में हिलतीं उँगलियों की ठंडी अवज्ञा मिली है, सिर झुकाए, एक राज़ी बैल की तरह लोगों की सेवा करते हुए" मूलतः एक वाक्य है, लेकिन यहाँ चीजों को साफ करने के लिए इसे दो भागों में विभाजित किया गया है। पहला वाक्य मनुष्य के कार्यों को दर्शाता है, जबकि दूसरा वाक्य परमेश्वर द्वारा सहन की गई पीड़ा और इस बात को इंगित करता है कि परमेश्वर दीन और छिपा हुआ है।
3. "पूर्वाग्रह" लोगों के अवज्ञाकारी व्यवहार को दर्शाता है।
4. "पूरी सत्ता हथियाना" लोगों के अवज्ञाकारी व्यवहार को संदर्भित करता है। वे खुद को ऊँचा उठाकर रखते हैं, दूसरों को बेड़ियों से बाँधते हैं, उनसे अपना अनुकरण करवाते हैं और अपने लिए कष्ट उठाने को कहते हैं। ये वे ताकतें हैं, जो कि परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण हैं।
5. "कठपुतली" का इस्तेमाल उन लोगों का उपहास करने के लिए किया गया है, जो परमेश्वर को नहीं जानते।
6. "तेजी से बढ़ते" का इस्तेमाल लोगों के नीच व्यवहार को रेखांकित करने के लिए किया गया है।
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 253
हर चीज़ जो परमेश्वर करता है वह व्यावहारिक है, वह ऐसा कुछ नहीं करता है जो खोखला हो, और वह सब कुछ स्वयं अनुभव करता है। परमेश्वर मानवजाति के लिए गंतव्य के बदले में दु:ख सहन करने के अपने अनुभव को कीमत के रूप में चुकाता है। क्या यह व्यावहारिक कार्य नहीं है? माता-पिता अपने बच्चों के लिए एक सच्ची कीमत चुका सकते हैं और यह उनकी नेकनीयती को दर्शाता है। ऐसा करने में, देहधारी परमेश्वर ज़ाहिर तौर पर मानवता के प्रति अत्यधिक ईमानदार और वफादार है। परमेश्वर का सार विश्वसनीय है; जो वह कहता है उसे करता है और जो कुछ भी वह करता है वह पूरा होता है। हर चीज़ जो वह मनुष्य के लिए करता है वो निष्कपट है। वह मात्र कथनों की उक्ति नहीं करता; जब वह कहता है कि वह मूल्य चुकाएगा, तो वह यथार्थ में मूल्य चुकाता है; जब वह कहता है कि वह मनुष्य के दुःख को उठाएगा, तो वह यथार्थ में उनके बीच रहने के लिए आयेगा, व्यक्तिगत रूप से इस दु:ख को महसूस और अनुभव करेगा। उसके बाद, ब्रह्मांड की सभी चीज़ें मानेंगी कि हर चीज़ जो परमेश्वर करता है वह सही और धर्मी है, कि सब कुछ जो परमेश्वर करता है वह वास्तविक है : यह प्रमाण की सामर्थ्यवान मिसाल है। इसके अलावा, भविष्य में मानवजाति के पास एक ख़ूबसूरत मंज़िल होगी और वे सभी जो बचेंगे वे परमेश्वर की प्रशंसा करेंगे; वे बड़ाई करेंगे कि परमेश्वर के कार्य वास्तव में मानवता के लिए उसके प्रेम के कारण किए गए हैं। परमेश्वर मानव के बीच एक साधारण व्यक्ति के रूप में विनम्रतापूर्वक आता है। वह केवल कुछ कार्य करके, कुछ वचनों को बोलकर, चला नहीं जाता है; बल्कि, वह वास्तव में मनुष्यों के बीच आता है और संसार की पीड़ा का अनुभव करता है। जब वह इस पीड़ा का अनुभव कर लेगा, तभी वह जाएगा। परमेश्वर का कार्य इतना वास्तविक और इतना व्यावहारिक होता है; वे सब जो बाकी रहेंगे वे इसके कारण उसकी प्रशंसा करेंगे, और वे मनुष्य के प्रति परमेश्वर की निष्ठा और उसकी दयालुता को देखेंगे। परमेश्वर की सुन्दरता और अच्छाई के सार को देह में उसके देहधारण के महत्व में देखा जा सकता है। जो कुछ भी वह करता है वह सच्चा है; जो कुछ भी वह कहता है वह गंभीर और विश्वसनीय है। वह जो भी चीज़ें करने का इरादा करता है, उन्हें वास्तव में करता है और मूल्य चुकाते हुए वास्तव में मूल्य चुकाता है; वह महज़ कथनों की उक्ति नहीं करता। परमेश्वर एक धर्मी परमेश्वर है; परमेश्वर एक विश्वसनीय परमेश्वर है।
— "अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'देहधारण के अर्थ का दूसरा पहलू' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 254
जीवन का मार्ग कोई ऐसी चीज नहीं है जो हर किसी के पास होता है, न ही यह कोई ऐसी चीज है जिसे हर कोई आसानी से प्राप्त कर सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जीवन केवल परमेश्वर से ही आ सकता है, कहने का तात्पर्य है कि केवल स्वयं परमेश्वर के पास ही जीवन का सार है, और केवल स्वयं परमेश्वर के पास ही जीवन का मार्ग है। और इसलिए केवल परमेश्वर ही जीवन का स्रोत है, और जीवन के जल का सदा बहने वाला सोता है। जब से परमेश्वर ने संसार को रचा है, उसने जीवन की प्राणशक्ति से जुड़ा बहुत-सा कार्य किया है, बहुत-सा कार्य मनुष्य को जीवन प्रदान करने के लिए किया है, और मनुष्य जीवन प्राप्त कर सके इसके लिए उसने भारी मूल्य चुकाया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर स्वयं अनंत जीवन है, और परमेश्वर स्वयं वह मार्ग है जिससे मनुष्य पुनर्जीवित होता है। परमेश्वर मनुष्य के हृदय से कभी अनुपस्थित नहीं होता, और हर समय मनुष्य के बीच रहता है। वह मनुष्य के जीवनयापन की प्रेरक शक्ति, मनुष्य के अस्तित्व का आधार, और जन्म के बाद मनुष्य के अस्तित्व के लिए समृद्ध भंडार रहा है। वह मनुष्य के पुनः जन्म लेने का निमित्त है, और उसे प्रत्येक भूमिका में दृढ़तापूर्वक जीने के लिए समर्थ बनाता है। उसकी सामर्थ्य और उसकी कभी न बुझने वाली जीवन शक्ति की बदौलत, मनुष्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित रहा है, इस दौरान परमेश्वर के जीवन की सामर्थ्य मनुष्य के अस्तित्व का मुख्य आधार रही है, और परमेश्वर ने वह कीमत चुकाई है जो कभी किसी साधारण मनुष्य ने नहीं चुकाई। परमेश्वर की जीवन शक्ति किसी भी अन्य शक्ति से जीत सकती है; इससे भी अधिक, यह किसी भी शक्ति से बढ़कर है। उसका जीवन अनंत है, उसकी सामर्थ्य असाधारण है, और उसकी जीवन शक्ति को किसी भी सृजित प्राणी या शत्रु शक्ति द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता है। समय और स्थान चाहे जो हो, परमेश्वर की जीवन शक्ति विद्यमान रहती है और अपने देदीप्यमान तेजस्व से चमकती है। स्वर्ग और पृथ्वी बड़े बदलावों से गजर सकते हैं, परंतु परमेश्वर का जीवन हमेशा एक समान ही रहता है। हर चीज का अस्तित्व समाप्त हो सकता है, परंतु परमेश्वर का जीवन फिर भी अस्तित्व में रहेगा, क्योंकि परमेश्वर ही सभी चीजों के अस्तित्व का स्रोत और उनके अस्तित्व का मूल है। मनुष्य का जीवन परमेश्वर से उत्पन्न होता है, स्वर्ग का अस्तित्व परमेश्वर के कारण है, और पृथ्वी का अस्तित्व परमेश्वर के जीवन की सामर्थ्य से उत्पन्न होता है। प्राणशक्ति से युक्त कोई भी वस्तु परमेश्वर की प्रभुसत्ता से बाहर नहीं हो सकती, और ऊर्जा से युक्त कोई भी वस्तु परमेश्वर के अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं जा सकती। इस प्रकार, वे चाहे कोई भी हों, सभी को परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पित होना ही होगा, प्रत्येक को परमेश्वर की आज्ञा के अधीन रहना ही होगा, और कोई भी उसके हाथों से बच नहीं सकता है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 255
यदि तुम सचमुच अनंत जीवन का मार्ग प्राप्त करना चाहते हो, और यदि तुममें इसको खोजने की ललक है, तो पहले इस प्रश्न का उत्तर दो : आज परमेश्वर कहाँ है? हो सकता है कि तुम कहो, "निस्संदेह, परमेश्वर स्वर्ग में रहता है—वह तुम्हारे घर में तो रहेगा नहीं, रहेगा क्या?" हो सकता है कि तुम कहो कि परमेश्वर जाहिर तौर पर सारी चीजों में बसता है। या तुम कह सकते हो कि परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में रहता है, या परमेश्वर आध्यात्मिक संसार में है। मैं इनमें से किसी से भी इनकार नहीं करता हूँ, परंतु मुझे यह विषय स्पष्ट कर देना चाहिए। यह कहना पूरी तरह सही नहीं है कि परमेश्वर मनुष्य के हृदय में रहता है, किंतु यह पूरी तरह गलत भी नहीं है। इसका कारण यह है कि परमेश्वर के विश्वासियों में ऐसे लोग भी हैं जिनका विश्वास सच्चा है, और ऐसे भी हैं जिनका विश्वास झूठा है, ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर स्वीकृति देता है और ऐसे भी हैं जिन्हें परमेश्वर स्वीकृति नहीं देता है, ऐसे लोग हैं जिनसे वह प्रसन्न होता है और ऐसे भी हैं जिनसे वह घृणा करता है, और ऐसे लोग हैं जिन्हें वह पूर्ण बनाता है और ऐसे भी हैं जिन्हें वह मिटा देता है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि परमेश्वर बस कुछ ही लोगों के हृदय में रहता है, और ये लोग निस्संदेह वे हैं जो परमेश्वर में सचमुच विश्वास करते हैं, वे जिन्हें परमेश्वर स्वीकृति देता है, वे जिनसे वह प्रसन्न होता है, और वे जिन्हें वह पूर्ण बनाता है। ये वे लोग हैं जिनकी परमेश्वर द्वारा अगुआई की जाती है। चूँकि उनकी परमेश्वर द्वारा अगुआई की जाती है, इसलिए ये वे लोग हैं जो परमेश्वर का अनंत जीवन का मार्ग पहले ही सुन और देख चुके हैं। जिनका परमेश्वर में विश्वास झूठा है, जो परमेश्वर द्वारा स्वीकृत नहीं हैं, जिनसे परमेश्वर घृणा करता है, जो परमेश्वर द्वारा मिटा दिए जाते हैं—उनका परमेश्वर द्वारा अस्वीकार किया जाना तय है, उनका जीवन के मार्ग से विहीन रहना तय है, और इस बात से अनभिज्ञ बने रहना तय है कि परमेश्वर कहाँ है। इसके विपरीत, जिनके हृदय में परमेश्वर रहता है वे जानते हैं कि वह कहाँ है। ये ही वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर अनंत जीवन का मार्ग प्रदान करता है, और ये ही परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। अब क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर कहाँ है? परमेश्वर मनुष्य के हृदय में भी है और मनुष्य की बगल में भी है। वह न केवल आध्यात्मिक संसार में है, और सभी चीज़ों के ऊपर है, बल्कि उस पृथ्वी पर तो वह और भी अधिक है जिस पर मनुष्य रहता है। और इसलिए अंत के दिनों का आगमन परमेश्वर के कार्य के चरणों को नए क्षेत्र में ले आया है। परमेश्वर सभी चीजों में सर्वस्व पर प्रभुसत्ता रखता है, और वह मनुष्य के हृदय में उसका मुख्य आधार है, और इससे भी अधिक, वह मनुष्य के बीच विद्यमान है। केवल इसी तरह से वह मनुष्यजाति तक जीवन का मार्ग ला सकता है, और मनुष्य को जीवन के मार्ग में ला सकता है। परमेश्वर पृथ्वी पर आया है और मनुष्य के बीच रहता है, ताकि मनुष्य जीवन का मार्ग प्राप्त कर सके, और मनुष्य विद्यमान रह सके। साथ ही, मनुष्य के बीच अपने प्रबंधन में सहयोग करवाने के लिए परमेश्वर सभी चीजों में सर्वस्व को आदेश देता है। और इसलिए, यदि तुम केवल इस सिद्धांत को स्वीकार करते हो कि परमेश्वर स्वर्ग में और मनुष्य के हृदय में है, किंतु मनुष्य के बीच परमेश्वर के अस्तित्व के सत्य को स्वीकार नहीं करते हो, तो तुम कभी जीवन प्राप्त नहीं करोगे, और न ही कभी सत्य का मार्ग प्राप्त करोगे।
परमेश्वर स्वयं ही जीवन है, और सत्य है, और उसका जीवन और सत्य साथ-साथ विद्यमान हैं। वे लोग जो सत्य प्राप्त करने में असमर्थ हैं कभी भी जीवन प्राप्त नहीं करेंगे। मार्गदर्शन, समर्थन, और पोषण के बिना, तुम केवल अक्षर, सिद्धांत, और सबसे बढ़कर, मृत्यु ही प्राप्त करोगे। परमेश्वर का जीवन सतत विद्यमान है, और उसका सत्य और जीवन साथ-साथ विद्यमान हैं। यदि तुम सत्य का स्रोत नहीं खोज पाते हो, तो तुम जीवन की पौष्टिकता प्राप्त नहीं करोगे; यदि तुम जीवन का पोषण प्राप्त नहीं कर सकते हो, तो तुममें निश्चित ही सत्य नहीं होगा, और इसलिए कल्पनाओं और धारणाओं के अलावा, संपूर्णता में तुम्हारा शरीर तुम्हारी देह—दुर्गंध से भरी तुम्हारी देह—के सिवा कुछ न होगा। यह जान लो कि किताबों की बातें जीवन नहीं मानी जाती हैं, इतिहास के अभिलेख सत्य की तरह पूजे नहीं जा सकते हैं, और अतीत के नियम वर्तमान में परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों के वृतांत का काम नहीं कर सकते हैं। परमेश्वर पृथ्वी पर आकर और मनुष्य के बीच रहकर जो अभिव्यक्त करता है, केवल वही सत्य, जीवन, परमेश्वर की इच्छा, और उसका कार्य करने का वर्तमान तरीक़ा है। यदि तुम अतीत के युगों के दौरान परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों के अभिलेखों को आज पर लागू करते हो, तो यह तुम्हें पुरातत्ववेत्ता बना देता है, और तुम्हें ज्यादा-से-ज्यादा ऐतिहासिक धरोहर का विशेषज्ञ ही कहा जा सकता है। इसका कारण यह है कि तुम हमेशा परमेश्वर द्वारा बीते समयों में किए गए कार्य के अवशेषों पर विश्वास करते हो, केवल पूर्व में मनुष्य के बीच कार्य करते समय छोड़ी गई परमेश्वर की परछाई में विश्वास करते हो, और केवल पहले के समयों में परमेश्वर द्वारा अपने अनुयायियों को दिए गए मार्ग में विश्वास करते हो। तुम परमेश्वर के आज के कार्य के मार्गदर्शन में विश्वास नहीं करते हो, परमेश्वर के आज के महिमामयी मुखमंडल में विश्वास नहीं करते हो, और परमेश्वर द्वारा आज के समय में व्यक्त किए गए सत्य के मार्ग में विश्वास नहीं करते हो। और इसलिए तुम निर्विवाद रूप से एक दिवास्वप्नदर्शी हो जो वास्तविकता से कोसों दूर है। यदि तुम अब भी उन वचनों से चिपके हुए हो जो मनुष्य को जीवन प्रदान करने में असमर्थ हैं, तो तुम एक निर्जीव काष्ठ[क] के बेकार टुकड़े हो, क्योंकि तुम अत्यंत रूढ़िवादी, अत्यंत असभ्य, तर्क के प्रति अत्यंत विवेकशून्य हो।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है' से उद्धृत
फुटनोट :
क. निर्जीव काष्ठ का टुकड़ा : एक चीनी मुहावरा, जिसका अर्थ है—"सहायता से परे"।
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 256
परमेश्वर स्वयं सत्य धारण किए हुए है, और वह सत्य का स्रोत है। प्रत्येक सकारात्मक वस्तु और प्रत्येक सत्य परमेश्वर से आता है। वह समस्त चीज़ों और घटनाओं के औचित्य एवं अनौचित्य के विषय में न्याय कर सकता है; वह उन चीज़ों का न्याय कर सकता है जो घट चुकी हैं, वे चीज़ें जो अब घटित हो रही हैं और भावी चीज़ें जो कि मनुष्य के लिए अभी अज्ञात हैं। वह सभी चीज़ों के औचित्य एवं अनौचित्य के विषय में न्याय करने वाला एकमात्र न्यायाधीश है, और इसका तात्पर्य यह है कि सभी चीज़ों के औचित्य एवं अनौचित्य के विषय में केवल उसी के द्वारा निर्णय किया जा सकता है। वह सभी चीज़ों के नियम जानता है। यह सत्य का मूर्तरूप है, जिसका आशय यह है कि वह स्वयं सत्य के सारतत्व से युक्त है। यदि मनुष्य सत्य को समझता और पूर्णता हासिल कर लेता, तो क्या उसका सत्य के मूर्त रूप से कोई लेना-देना होता। जब मनुष्य को पूर्ण बनाया जाता है, तो उसके पास परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले प्रत्येक कार्य और उसके द्वारा अपेक्षित सभी चीज़ों की सटीक समझ होती है और उसके पास अभ्यास करने का सटीक मार्ग भी होता है; मनुष्य परमेश्वर की इच्छा को भी समझता है और ग़लत सही जानता है। फिर भी कुछ ऐसी चीज़ें होती हैं जिन तक मनुष्य नहीं पहुँच सकता, ऐसी चीज़ें जिनके विषय में वह परमेश्वर के वचनों के द्वारा ही जान सकता है—मनुष्य उन चीज़ों को नहीं जान सकता है जो अभी तक अज्ञात हैं, जिनके बारे में परमेश्वर ने अभी नहीं बताया है, और मनुष्य भविष्यवाणी नहीं कर सकता है। इसके अतिरिक्त, यदि मनुष्य परमेश्वर से सत्य को प्राप्त कर भी ले, और उसे सत्य की वास्तविकता का बोध हो जाये और उसे बहुत से सत्यों के सारतातव का ज्ञान हो जाये, और उसके पास ग़लत सही को बताने की योग्यता हो, तब भी वह सभी चीज़ों पर नियंत्रण व शासन करने योग्य नहीं होगा। यही अंतर है। सृजित जीव केवल सत्य के स्रोत से ही सत्य को प्राप्त सकते हैं। क्या वे मनुष्य से सत्य प्राप्त कर सकते है? क्या मनुष्य सत्य है? क्या मनुष्य सत्य प्रदान कर सकता है? वह ऐसा नहीं कर सकता है और यही अंतर है। तुम केवल सत्य ग्रहण कर सकते हो, इसे प्रदान नहीं कर सकते—क्या तुम्हें सत्य का मूर्तरूप कहा जा सकता है? सत्य का मूर्तरूप होने का वास्तव में क्या सारतत्व है? यह सत्य प्रदान करने वाला स्रोत है, सभी चीज़ों पर शासन और प्रभुता का स्रोत, और इसके अलावा यह वो मानक और नियम है जिसके द्वारा सभी चीज़ों और घटनाओं का आकलन किया जाता है। यही सत्य का मूर्तरूप है।
— "मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे दूसरों से केवल अपना आज्ञापालन करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर का नहीं (भाग तीन)' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 257
परमेश्वर, सत्य की अपनी अभिव्यक्ति में, अपने स्वभाव और सार को व्यक्त करता है; सत्य की उसकी अभिव्यक्ति मानवों के विभिन्न सकारात्मक चीजों के सार और उन वक्तव्यों पर आधारित नहीं है, जिसे मनुष्य जानते हैं। परमेश्वर के वचन परमेश्वर के वचन हैं; परमेश्वर के वचन सत्य हैं। वे नींव और नियम हैं, जिनके अनुसार मानव जाति का अस्तित्व होना चाहिए और मानवता के साथ उत्पन्न होने वाली उन तथाकथित मान्यताओं की परमेश्वर द्वारा निंदा की जाती है। उन्हें परमेश्वर की स्वीकृति नहीं मिलती और वे उसके कथनों के मूल या आधार तो बिलकुल नहीं हैं। परमेश्वर अपने वचनों के माध्यम से अपने स्वभाव और अपने सार को व्यक्त करता है। परमेश्वर की अभिव्यक्ति द्वारा लाए गए सभी वचन सत्य हैं, क्योंकि उसमें (परमेश्वर में) परमेश्वर का सार है, और वह सभी सकारात्मक चीजों की वास्तविकता है। भ्रष्ट मानव चाहे परमेश्वर के वचनों को कैसे भी प्रस्तुत या परिभाषित करे, यह तथ्य कभी नहीं बदलता कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, न ही इससे बदलता है कि वह उन्हें कैसे देखता या समझता है। परमेश्वर ने चाहे कितने भी शब्द क्यों न बोले हों, और यह भ्रष्ट, पापी मानव जाति चाहे उनकी कितनी भी निंदा क्यों न करे, उन्हें कितना भी अस्वीकार क्यों न करे, एक तथ्य है जिसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता : इन परिस्थितियों में भी तथाकथित संस्कृति और परंपराएं, जिन्हें मानव जाति महत्व देती है, वे सकारात्मक बातें नहीं बन सकती हैं, सत्य नहीं बन सकती हैं। यह अटल है। मानव जाति की पारंपरिक संस्कृति और अस्तित्व का तरीका परिवर्तनों या समय के अंतराल के कारण सत्य नहीं बन जाएगा, और न ही परमेश्वर के वचन मानव जाति की निंदा या विस्मृति के कारण मनुष्य के शब्द बन जाएंगे। यह सार कभी नहीं बदलेगा; सत्य हमेशा सत्य होता है। यहाँ कौन-सा तथ्य मौजूद है? मानव जाति द्वारा संक्षेप में बताई गई वे सभी बातें जो शैतान से उत्पन्न होती हैं—वे सभी मानवीय कल्पनाएँ और धारणाएँ हैं, यहाँ तक कि मनुष्य के जोश से भी हैं, और सकारात्मक चीजों से उनका कोई लेना-देना नहीं है। दूसरी ओर, परमेश्वर के वचन, परमेश्वर के सार और हैसियत की अभिव्यक्ति हैं। वह इन वचनों को किस कारण से व्यक्त करता है? मैं क्यों कहता हूँ कि वे सत्य हैं? इसका कारण यह है कि परमेश्वर सभी चीजों के सभी नियमों, सिद्धांतों, जड़ों, सारों, वास्तविकताओं और रहस्यों पर शासन करता है, वे उसकी मुट्ठी में हैं, और एकमात्र परमेश्वर ही उनकी उत्पत्ति जानता है और जानता है कि वास्तव में उनकी जड़ें क्या हैं। इसलिए, परमेश्वर के वचनों में सभी चीजों की जो उल्लिखित परिभाषाएं हैं, बस वही सबसे सही हैं, और परमेश्वर के वचनों में मानव जाति से अपेक्षाएँ मानव जाति के लिए एकमात्र मानक हैं—एकमात्र मापदंड जिसके अनुसार मानव जाति को अस्तित्व में रहना चाहिए।
— "मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग एक)' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 258
जिस क्षण तुम रोते हुए इस दुनिया में आते हो, उसी पल से तुम अपना कर्तव्य पूरा करना शुरू कर देते हो। परमेश्वर की योजना और उसके विधान के लिए तुम अपनी भूमिका निभाते हो और तुम अपनी जीवन-यात्रा शुरू करते हो। तुम्हारी पृष्ठभूमि जो भी हो और तुम्हारी आगे की यात्रा जैसी भी हो, कोई भी स्वर्ग के आयोजनों और व्यवस्थाओं से बच नहीं सकता, और किसी का भी अपनी नियति पर नियंत्रण नहीं है, क्योंकि केवल वही, जो सभी चीज़ों पर शासन करता है, ऐसा करने में सक्षम है। जिस दिन से मनुष्य अस्तित्व में आया है, परमेश्वर ने ब्रह्मांड का प्रबंधन करते हुए, सभी चीज़ों के लिए परिवर्तन के नियमों और उनकी गतिविधियों के पथ को निर्देशित करते हुए हमेशा ऐसे ही काम किया है। सभी चीज़ों की तरह मनुष्य भी चुपचाप और अनजाने में परमेश्वर से मिठास और बारिश तथा ओस द्वारा पोषित होता है; सभी चीज़ों की तरह मनुष्य भी अनजाने में परमेश्वर के हाथ के आयोजन के अधीन रहता है। मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर के हाथ में हैं, उसके जीवन की हर चीज़ परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह मानो या न मानो, कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है।
जब रात चुपचाप आती है, मनुष्य अनजान रहता है, क्योंकि मनुष्य का हृदय यह नहीं समझ सकता कि रात कैसे आती है या कहाँ से आती है। जब रात चुपचाप चली जाती है, मनुष्य दिन के उजाले का स्वागत करता है, लेकिन उजाला कहाँ से आया है और कैसे इसने रात के अँधेरे को दूर भगाया है, मनुष्य यह तो बिलकुल भी नहीं जानता और इससे तो बिलकुल भी अवगत नहीं है। दिन और रात की यह बारंबार होने वाली अदला-बदली मनुष्य को एक अवधि से दूसरी अवधि में, एक ऐतिहासिक संदर्भ से अगले संदर्भ में ले जाती है, और यह भी सुनिश्चित करती है कि हर अवधि में परमेश्वर का कार्य और हर युग के लिए उसकी योजना कार्यान्वित की जाए। मनुष्य इन विभिन्न अवधियों में परमेश्वर के साथ चला है, फिर भी वह नहीं जानता कि परमेश्वर सभी चीज़ों और जीवित प्राणियों की नियति पर शासन करता है, न ही यह जानता है कि कैसे परमेश्वर सभी चीज़ों को आयोजित और निर्देशित करता है। इसने मनुष्य को अनादि काल से आज तक भ्रम में रखा है। जहाँ तक कारण का सवाल है, ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि परमेश्वर के तरीके बहुत छिपे हुए हैं, न इसलिए कि परमेश्वर की योजना अभी तक साकार नहीं हुई है, बल्कि इसलिए है कि मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर से बहुत दूर हैं, उतनी दूर, जहाँ मनुष्य परमेश्वर का अनुसरण करते हुए भी शैतान की सेवा में बना रहता है—और उसे इसका भान भी नहीं होता। कोई भी सक्रिय रूप से परमेश्वर के पदचिह्नों और उसके प्रकटन को नहीं खोजता और कोई भी परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा में रहने के लिए तैयार नहीं है। इसके बजाय, वे इस दुनिया के और दुष्ट मानवजाति द्वारा अनुसरण किए जाने वाले अस्तित्व के नियमों के अनुकूल होने के लिए, उस दुष्ट शैतान द्वारा किए जाने वाले क्षरण पर भरोसा करना चाहते हैं। इस बिंदु पर, मनुष्य का हृदय और आत्मा शैतान के लिए आभार व्यक्त करते उपहार और उसका भोजन बन गए हैं। इससे भी अधिक, मानव हृदय और आत्मा एक ऐसा स्थान बन गए हैं, जिसमें शैतान निवास कर सकता है, और वे शैतान के खेल का उपयुक्त मैदान बन गए हैं। इस तरह, मनुष्य अनजाने में मानव होने के सिद्धांतों और मानव-अस्तित्व के मूल्य और अर्थ के बारे में अपनी समझ को खो देता है। परमेश्वर की व्यवस्थाएँ और परमेश्वर और मनुष्य के बीच का प्रतिज्ञा-पत्र धीरे-धीरे मनुष्य के हृदय में धुँधला होता जाता है, और वह परमेश्वर की तलाश करना या उस पर ध्यान देना बंद कर देता है। समय बीतने के साथ मनुष्य अब यह नहीं समझता कि परमेश्वर ने उसे क्यों बनाया है, न ही वह उन वचनों को जो परमेश्वर के मुख से आते हैं और न उस सबको समझता है, जो परमेश्वर से आता है। मनुष्य फिर परमेश्वर की व्यवस्थाओं और आदेशों का विरोध करने लगता है, और उसका हृदय और आत्मा शिथिल हो जाते हैं...। परमेश्वर उस मनुष्य को खो देता है, जिसे उसने मूल रूप से बनाया था, और मनुष्य उस मूल खो देता है जो मूल रूप से उसके पास था : यही इस मानव-जाति की त्रासदी है। वास्तव में, बिल्कुल शुरुआत से अब तक, परमेश्वर ने मनुष्य-जाति के लिए एक त्रासदी का मंचन किया है, ऐसी त्रासदी, जिसमें मनुष्य नायक और पीड़ित दोनों है। और कोई इसका उत्तर नहीं दे सकता कि इस त्रासदी का निर्देशक कौन हैं।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 259
परमेश्वर ने इस संसार की रचना की और इसमें एक जीवित प्राणी, मनुष्य को लेकर आया, जिसे उसने जीवन प्रदान किया। इसके बाद, मनुष्य के माता-पिता और परिजन हुए, और वह अकेला नहीं रहा। जब से मनुष्य ने पहली बार इस भौतिक दुनिया पर नजरें डालीं, तब से वह परमेश्वर के विधान के भीतर विद्यमान रहने के लिए नियत था। परमेश्वर की दी हुई जीवन की साँस हर एक प्राणी को उसके वयस्कता में विकसित होने में सहयोग देती है। इस प्रक्रिया के दौरान किसी को भी महसूस नहीं होता कि मनुष्य परमेश्वर की देखरेख में बड़ा हो रहा है, बल्कि वे यह मानते हैं कि मनुष्य अपने माता-पिता की प्रेमपूर्ण देखभाल में बड़ा हो रहा है, और यह उसकी अपनी जीवन-प्रवृत्ति है, जो उसके बढ़ने की प्रक्रिया को निर्देशित करती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मनुष्य नहीं जानता कि उसे जीवन किसने प्रदान किया है या यह कहाँ से आया है, और यह तो वह बिलकुल भी नहीं जानता कि जीवन की प्रवृत्ति किस तरह से चमत्कार करती है। वह केवल इतना ही जानता है कि भोजन ही वह आधार है जिस पर उसका जीवन चलता रहता है, अध्यवसाय ही उसके अस्तित्व का स्रोत है, और उसके मन के विश्वास वह पूँजी है जिस पर उसका अस्तित्व निर्भर करता है। परमेश्वर के अनुग्रह और भरण-पोषण से मनुष्य पूरी तरह से बेखबर है, और इस तरह वह परमेश्वर द्वारा प्रदान किया गया जीवन गँवा देता है...। जिस मानवजाति की परमेश्वर दिन-रात परवाह करता है, उसका एक भी व्यक्ति परमेश्वर की आराधना करने की पहल नहीं करता। परमेश्वर ही अपनी बनाई योजना के अनुसार, मनुष्य पर कार्य करता रहता है, जिससे वह कोई अपेक्षाएँ नहीं करता। वह इस आशा में ऐसा करता है कि एक दिन मनुष्य अपने सपने से जागेगा और अचानक जीवन के मूल्य और अर्थ को समझेगा, परमेश्वर ने उसे जो कुछ दिया है, उसके लिए परमेश्वर द्वारा चुकाई गई कीमत और परमेश्वर की उस उत्सुक व्यग्रता को समझेगा, जिसके साथ परमेश्वर मनुष्य के वापस अपनी ओर मुड़ने की प्रतीक्षा करता है। किसी ने कभी भी मनुष्य के जीवन की उत्पत्ति और निरंतरता को नियंत्रित करने वाले रहस्यों पर गौर नहीं किया है। केवल परमेश्वर, जो इस सब को समझता है, चुपचाप उस ठेस और आघात को सहन करता है, जो वह मनुष्य उसे देता है जिसने परमेश्वर से सब-कुछ प्राप्त किया है किंतु जो उसका आभारी नहीं है। जीवन से जो कुछ मिलता है, मनुष्य उसे स्वाभाविक समझकर उसका आनंद लेता है, और इसी तरह, यह एक "स्वाभाविक बात" है कि मनुष्य द्वारा परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया जाता है, उसे भुला दिया जाता है, और उससे जबरन वसूली की जाती है। क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर की योजना सच में इतने ही महत्व की है? क्या ऐसा हो सकता है कि यह जीवित प्राणी, यह मनुष्य, जो कि परमेश्वर के हाथ से आया है, वास्तव में इतने महत्व का है? परमेश्वर की योजना निश्चित रूप से महत्व की है; किंतु परमेश्वर के हाथ से बनाया गया यह जीवित प्राणी उसकी योजना के वास्ते विद्यमान है। इसलिए परमेश्वर इस मानव-जाति के प्रति घृणा के कारण अपनी योजना को बेकार नहीं कर सकता। यह परमेश्वर की योजना के वास्ते और उसके द्वारा फूँकी गई साँस के लिए है कि परमेश्वर, मनुष्य की देह के लिए नहीं बल्कि मनुष्य के जीवन के लिए, समस्त यातनाएँ सहता है। वह ऐसा मनुष्य की देह को वापस लेने के लिए नहीं, बल्कि उस जीवन को वापस लेने के लिए करता है, जिसमें उसने साँस फूँकी है। यही उसकी योजना है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 260
इस दुनिया में आने वाले सभी लोगों को जीवन और मृत्यु से गुजरना होता है, और उनमें से अधिकांश मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से गुजर चुके हैं। जो जीवित हैं, वे शीघ्र ही मर जाएँगे और मृत शीघ्र ही लौट आएँगे। यह सब परमेश्वर द्वारा प्रत्येक जीवित प्राणी के लिए व्यवस्थित जीवन का क्रम है। फिर भी यह क्रम और यह चक्र ठीक वह सत्य है, जो परमेश्वर चाहता है कि मनुष्य देखे : कि परमेश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदान किया गया जीवन असीम और भौतिकता, समय या स्थान से मुक्त है। यह परमेश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदान किए गए जीवन का रहस्य है, और इस बात का प्रमाण है कि जीवन उसी से आया है। यद्यपि हो सकता है कि बहुत-से लोग यह न मानें कि जीवन परमेश्वर से आया है, फिर भी मनुष्य अनिवार्य रूप से उस सब का आनंद लेता है जो परमेश्वर से आता है, चाहे वह परमेश्वर के अस्तित्व को मानता हो या उसे नकारता हो। यदि किसी दिन परमेश्वर का अचानक हृदय-परिवर्तन हो जाए और वह दुनिया में विद्यमान हर चीज़ वापस प्राप्त करने और अपना दिया जीवन वापस लेने की इच्छा करे, तो कुछ भी नहीं रहेगा। परमेश्वर सभी चीज़ों, जीवित और निर्जीव दोनों, को आपूर्ति करने के लिए अपने जीवन का उपयोग करता है, और अपनी शक्ति और अधिकार के बल पर सभी को सुव्यवस्थित करता है। यह एक ऐसा सत्य है, जिसकी किसी के द्वारा कल्पना नहीं की जा सकती या जिसे किसी के द्वारा समझा नहीं जा सकता, और ये अबूझ सत्य परमेश्वर की जीवन-शक्ति की मूल अभिव्यक्ति और प्रमाण हैं। अब मैं तुम्हें एक रहस्य बताता हूँ : परमेश्वर के जीवन की महानता और उसके जीवन के सामर्थ्य की थाह कोई भी प्राणी नहीं पा सकता। यह अभी भी वैसा ही है, जैसा अतीत में था, और आने वाले समय में भी यह ऐसा ही रहेगा। दूसरा रहस्य जो मैं बताऊँगा, वह यह है : सभी सृजित प्राणियों के लिए जीवन का स्रोत परमेश्वर से आता है, चाहे वे जीवन-रूप या संरचना में कितने ही भिन्न हों; तुम चाहे किसी भी प्रकार के जीव हो, तुम उस जीवन-पथ के विपरीत नहीं चल सकते, जिसे परमेश्वर ने निर्धारित किया है। हर हाल में, मेरी इच्छा है कि मनुष्य इसे समझे : परमेश्वर की देखभाल, रखरखाव और भरण-पोषण के बिना मनुष्य वह सब प्राप्त नहीं कर सकता, जो उसे प्राप्त करना था, चाहे वह कितनी भी तत्परता से कोशिश क्यों न करे या कितना भी कठिन संघर्ष क्यों न करे। परमेश्वर से जीवन की आपूर्ति के बिना मनुष्य जीवन के मूल्य और उसकी सार्थकता के बोध को गँवा देता है। परमेश्वर उस मनुष्य को इतना बेफिक्र कैसे होने दे सकता है, जो मूर्खतापूर्ण ढंग से अपने जीवन की सार्थकता को गँवा देता है? जैसा कि मैंने पहले कहा है : मत भूलो कि परमेश्वर तुम्हारे जीवन का स्रोत है। यदि मनुष्य वह सब सँजोने में विफल रहता है, जो परमेश्वर ने प्रदान किया है, तो परमेश्वर न केवल उसे वापस ले लेगा जो उसने शुरुआत में दिया था, बल्कि वह मनुष्य से उस सबका दोगुना मूल्य वसूल करेगा जो उसने दिया है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 261
इस दुनिया की हर चीज़ तेज़ी से सर्वशक्तिमान के विचारों और उसकी नज़रों तले बदलती है। मानवजाति ने जिन चीज़ों के बारे में कभी नहीं सुना है वो अचानक आ जाती हैं, जबकि माउसके पास जो कुछ लंबे समय से रहा है वो अनजाने में उसके हाथ से फिसल जाता है। सर्वशक्तिमान के ठौर-ठिकाने की थाह कोई नहीं पा सकता, सर्वशक्तिमान की जीवन शक्ति की उत्कृष्टता और महानता का एहसास करने की तो बात ही दूर है। वह इसलिए उत्कृष्ट है कि वह वो समझ सकता है जो मनुष्य नहीं समझ सकता। वह महान इसलिए है कि वह मानवजाति द्वारा त्यागे जाने के बाद भी उसे बचाता है। वह जीवन और मृत्यु का अर्थ जानता है, इसके अतिरिक्त, वह जानता है कि सृजित मानवजाति को अस्तित्व में रहने के किन नियमों का पालन करना चाहिए। वह मानव अस्तित्व की नींव है, वह मानवजाति को फिर से जीवित करने वाला मुक्तिदाता है। वह प्रसन्नचित्त दिलों को दु:ख देकर नीचे लाता है और दुखी दिलों को खुशी देकर ऊपर उठाता है, ये सब उसके कार्य के लिए है, उसकी योजना के लिए है।
सर्वशक्तिमान के जीवन के प्रावधान से भटके हुए मनुष्य, अस्तित्व के उद्देश्य से अनभिज्ञ हैं, लेकिन फिर भी मृत्यु से डरते हैं। उनके पास मदद या सहारा नहीं है, लेकिन फिर भी वे अपनी आंखों को बंद करने के अनिच्छुक हैं, इस दुनिया में एक अधम अस्तित्व को घसीटने के लिए खुद को मजबूत बनाते हैं, जो अपनी आत्मा के बोध के बगैर बस माँस के बोरे हैं। तुम अन्य लोगों की तरह ही, आशारहित और उद्देश्यहीन होकर जीते हो। केवल पौराणिक कथा का पवित्र जन ही उन लोगों को बचाएगा, जो अपने दु:ख में कराहते हुए उसके आगमन के लिए बहुत ही बेताब हैं। अभी तक, चेतनाविहीन लोगों को इस तरह के विश्वास का एहसास नहीं हुआ है। फिर भी, लोग अभी भी इसके लिए तरस रहे हैं। सर्वशक्तिमान ने हुरी तरह से पीड़ित इन लोगों पर दया की है; साथ ही, वह उन लोगों से तंग आ गया है, जिनमें चेतना की कमी है, क्योंकि उसे मनुष्य से जवाब पाने के लिए बहुत लंबा इंतजार करना पड़ा है। वह तुम्हारे हृदय की, तुम्हारी आत्मा की तलाश करना चाहता है, तुम्हें पानी और भोजन देना और तुम्हें जगाना चाहता है, ताकि अब तुम भूखे और प्यासे न रहो। जब तुम थक जाओ और तुम्हें इस दुनिया की बेरंग उजड़ेपन का कुछ-कुछ अहसास होने लगे, तो तुम हारना मत, रोना मत। द्रष्टा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, किसी भी समय तुम्हारे आगमन को गले लगा लेगा। वह तुम्हारी बगल में पहरा दे रहा है, तुम्हारे लौट आने का इंतजार कर रहा है। वह उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा है जिस दिन तुम अचानक अपनी याददाश्त फिर से पा लोगे: जब तुम्हें यह एहसास होगा कि तुम परमेश्वर से आए हो लेकिन किसी अज्ञात समय में तुमने अपनी दिशा खो दी थी, किसी अज्ञात समय में तुम सड़क पर होश खो बैठे थे, और किसी अज्ञात समय में तुमने एक "पिता" को पा लिया था; इसके अलावा, जब तुम्हें एहसास होगा कि सर्वशक्तिमान तो हमेशा से ही तुम पर नज़र रखे हुए है, तुम्हारी वापसी के लिए बहुत लंबे समय से इंतजार कर रहा है। वह हताश लालसा लिए देखता रहा है, जवाब के बिना, एक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करता रहा है। उसका नज़र रखना और प्रतीक्षा करना बहुत ही अनमोल है, और यह मानवीय हृदय और मानवीय आत्मा के लिए है। शायद ऐसे नज़र रखना और प्रतीक्षा करना अनिश्चितकालीन है, या शायद इनका अंत होने वाला है। लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा इस वक्त कहाँ हैं।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'सर्वशक्तिमान की आह' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 262
मानवजाति के एक सदस्य और एक सच्चे ईसाई होने के नाते अपने मन और शरीर परमेश्वर के आदेश की पूर्ति करने के लिए समर्पित करना हम सभी का उत्तरदायित्व और कर्तव्य है, क्योंकि हमारा संपूर्ण अस्तित्व परमेश्वर से आया है, और वह परमेश्वर की संप्रभुता के कारण अस्तित्व में है। यदि हमारे मन और शरीर परमेश्वर के आदेश और मानवजाति के धार्मिक कार्य के लिए नहीं हैं, तो हमारी आत्माएँ उन लोगों के योग्य महसूस नहीं करेंगी, जो परमेश्वर के आदेश के लिए शहीद हुए थे, और परमेश्वर के लिए तो और भी अधिक अयोग्य होंगी, जिसने हमें सब-कुछ प्रदान किया है।
परमेश्वर ने इस संसार की सृष्टि की, उसने इस मानवजाति को बनाया, और इतना ही नहीं, वह प्राचीन यूनानी संस्कृति और मानव-सभ्यता का वास्तुकार भी था। केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति को सांत्वना देता है, और केवल परमेश्वर ही रात-दिन इस मानवजाति का ध्यान रखता है। मानव का विकास और प्रगति परमेश्वर की संप्रभुता से जुड़ी है, मानव का इतिहास और भविष्य परमेश्वर की योजनाओं में निहित है। यदि तुम एक सच्चे ईसाई हो, तो तुम निश्चित ही इस बात पर विश्वास करोगे कि किसी भी देश या राष्ट्र का उत्थान या पतन परमेश्वर की योजनाओं के अनुसार होता है। केवल परमेश्वर ही किसी देश या राष्ट्र के भाग्य को जानता है और केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति की दिशा नियंत्रित करता है। यदि मानवजाति अच्छा भाग्य पाना चाहती है, यदि कोई देश अच्छा भाग्य पाना चाहता है, तो मनुष्य को परमेश्वर की आराधना में झुकना होगा, पश्चात्ताप करना होगा और परमेश्वर के सामने अपने पाप स्वीकार करने होंगे, अन्यथा मनुष्य का भाग्य और गंतव्य एक अपरिहार्य विभीषिका बन जाएँगे।
पीछे मुड़कर उस समय को देखो, जब नूह ने नाव बनाई थी : मानवजाति पूरी तरह से भ्रष्ट थी, लोग परमेश्वर के आशीषों से भटक गए थे, परमेश्वर द्वारा अब और उनकी देखभाल नहीं की जा रही थी, और वे परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ खो चुके थे। वे परमेश्वर की रोशनी के बिना अंधकार में रहते थे। फिर वे स्वभाव से व्यभिचारी बन गए, और उन्होंने स्वयं को घृणित चरित्रहीनता में झोंक दिया। ऐसे लोग अब और परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ प्राप्त नहीं कर सकते थे; वे परमेश्वर के चेहरे की गवाही देने या परमेश्वर की वाणी सुनने के अयोग्य थे, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर को त्याग दिया था, उन सब चीजों को बेक़ार समझकर छोड़ दिया था, जो परमेश्वर ने उन्हें प्रदान की थीं, और वे परमेश्वर की शिक्षाओं को भूल गए थे। उनका हृदय परमेश्वर से अधिकाधिक दूर भटक गया था, जिसका परिणाम यह हुआ कि वे विवेक और मानवता से वंचित होकर पथभ्रष्ट हो गए और अधिक से अधिक दुष्ट होते गए। फिर वे मृत्यु के और भी निकट पहुँच गए, और परमेश्वर के कोप और दंड के भागी हो गए। केवल नूह ने परमेश्वर की आराधना की और बुराई से दूर रहा, और इसलिए वह परमेश्वर की वाणी और निर्देशों को सुनने में सक्षम था। उसने परमेश्वर के वचन के अनुसार नाव बनाई, और सभी प्रकार के जीवित प्राणियों को उसमें एकत्र किया। और इस तरह, जब एक बार सब-कुछ तैयार हो गया, तो परमेश्वर ने संसार पर अपनी विनाशलीला शुरू कर दी। केवल नूह और उसके परिवार के सात अन्य लोग इस विनाशलीला में जीवित बचे, क्योंकि नूह ने यहोवा की आराधना की थी और बुराई से दूर रहा था।
अब वर्तमान युग को देखो : नूह जैसे धर्मी मनुष्य, जो परमेश्वर की आराधना कर सके और बुराई से दूर रह सके, होने बंद हो गए हैं। फिर भी परमेश्वर इस मानवजाति के प्रति दयालु है, और इस अंतिम युग में अभी भी उन्हें दोषमुक्त करता है। परमेश्वर उनकी खोज कर रहा है, जो उसके प्रकट होने की लालसा करते हैं। वह उनकी खोज करता है, जो उसके वचनों को सुनने में सक्षम हैं, जो उसके आदेश को नहीं भूले और अपना तन-मन उसे समर्पित करते हैं। वह उनकी खोज करता है, जो उसके सामने बच्चों के समान आज्ञाकारी हैं, और उसका विरोध नहीं करते। यदि तुम किसी भी ताकत या बल से अबाधित होकर ईश्वर के प्रति समर्पित होते हो, तो परमेश्वर तुम्हारे ऊपर अनुग्रह की दृष्टि डालेगा और तुम्हें अपने आशीष प्रदान करेगा। यदि तुम उच्च पद वाले, सम्मानजनक प्रतिष्ठा वाले, प्रचुर ज्ञान से संपन्न, विपुल संपत्तियों के मालिक हो, और तुम्हें बहुत लोगों का समर्थन प्राप्त है, तो भी ये चीज़ें तुम्हें परमेश्वर के आह्वान और आदेश को स्वीकार करने, और जो कुछ परमेश्वर तुमसे कहता है, उसे करने के लिए उसके सम्मुख आने से नहीं रोकतीं, तो फिर तुम जो कुछ भी करोगे, वह पृथ्वी पर सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगा और मनुष्य का सर्वाधिक धर्मी उपक्रम होगा। यदि तुम अपनी हैसियत और लक्ष्यों की खातिर परमेश्वर के आह्वान को अस्वीकार करोगे, तो जो कुछ भी तुम करोगे, वह परमेश्वर द्वारा श्रापित और यहाँ तक कि तिरस्कृत भी किया जाएगा। शायद तुम कोई अध्यक्ष, कोई वैज्ञानिक, कोई पादरी या कोई एल्डर हो, किंतु इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा पद कितना उच्च है, यदि तुम अपने ज्ञान और अपने उपक्रमों की योग्यता पर भरोसा रखते हो, तो तुम हमेशा असफल रहोगे, और हमेशा परमेश्वर के आशीषों से वंचित रहोगे, क्योंकि परमेश्वर ऐसा कुछ भी स्वीकार नहीं करता जो तुम करते हो, और वह नहीं मानता कि तुम्हारे उपक्रम धर्मी हैं, या यह स्वीकार नहीं करता कि तुम मानवजाति के भले के लिए कार्य कर रहे हो। वह कहेगा कि जो कुछ भी तुम करते हो, वह मानवजाति के ज्ञान और ताकत का इस्तेमाल कर इंसान से परमेश्वर की सुरक्षा छीनने और उसे आशीषों से वंचित करने के लिए किया जाता है। वह कहेगा कि तुम मानवजाति को अंधकार की ओर, मृत्यु की ओर, और एक ऐसे अंतहीन अस्तित्व के आरंभ की ओर ले जा रहे हो, जिसमें मनुष्य ने परमेश्वर और उसके आशीष खो दिए हैं।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 263
मानवजाति द्वारा सामाजिक विज्ञानों के आविष्कार के बाद से मनुष्य का मन विज्ञान और ज्ञान से भर गया है। तब से विज्ञान और ज्ञान मानवजाति के शासन के लिए उपकरण बन गए हैं, और अब मनुष्य के पास परमेश्वर की आराधना करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश और अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं रही हैं। मनुष्य के हृदय में परमेश्वर की स्थिति सबसे नीचे हो गई है। हृदय में परमेश्वर के बिना मनुष्य की आंतरिक दुनिया अंधकारमय, आशारहित और खोखली है। बाद में मनुष्य के हृदय और मन को भरने के लिए कई समाज-वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और राजनीतिज्ञों ने सामने आकर सामाजिक विज्ञान के सिद्धांत, मानव-विकास के सिद्धांत और अन्य कई सिद्धांत व्यक्त किए, जो इस सच्चाई का खंडन करते हैं कि परमेश्वर ने मनुष्य की रचना की है, और इस तरह, यह विश्वास करने वाले बहुत कम रह गए हैं कि परमेश्वर ने सब-कुछ बनाया है, और विकास के सिद्धांत पर विश्वास करने वालों की संख्या और अधिक बढ़ गई है। अधिकाधिक लोग पुराने विधान के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के अभिलेखों और उसके वचनों को मिथक और किंवदंतियाँ समझते हैं। अपने हृदयों में लोग परमेश्वर की गरिमा और महानता के प्रति, और इस सिद्धांत के प्रति भी कि परमेश्वर का अस्तित्व है और वह सभी चीज़ों पर प्रभुत्व रखता है, उदासीन हो जाते हैं। मानवजाति का अस्तित्व और देशों एवं राष्ट्रों का भाग्य उनके लिए अब और महत्वपूर्ण नहीं रहे, और मनुष्य केवल खाने-पीने और भोग-विलासिता की खोज में चिंतित, एक खोखले संसार में रहता है। ... कुछ लोग स्वयं इस बात की खोज करने का उत्तरदायित्व लेते हैं कि आज परमेश्वर अपना कार्य कहाँ करता है, या यह तलाशने का उत्तरदायित्व कि वह किस प्रकार मनुष्य के गंतव्य पर नियंत्रण और उसकी व्यवस्था करता है। और इस तरह, मनुष्य के बिना जाने ही मानव-सभ्यता मनुष्य की इच्छाओं के अनुसार चलने में और भी अधिक अक्षम हो गई है, और कई ऐसे लोग भी हैं, जो यह महसूस करते हैं कि इस प्रकार के संसार में रहकर वे, उन लोगों के बजाय जो चले गए हैं, कम खुश हैं। यहाँ तक कि उन देशों के लोग भी, जो अत्यधिक सभ्य हुआ करते थे, इस तरह की शिकायतें व्यक्त करते हैं। क्योंकि परमेश्वर के मार्गदर्शन के बिना शासक और समाजशास्त्री मानवजाति की सभ्यता को सुरक्षित रखने के लिए अपना कितना भी दिमाग क्यों न ख़पा लें, कोई फायदा नहीं होगा। मनुष्य के हृदय का खालीपन कोई नहीं भर सकता, क्योंकि कोई मनुष्य का जीवन नहीं बन सकता, और कोई सामाजिक सिद्धांत मनुष्य को उस खालीपन से मुक्ति नहीं दिला सकता, जिससे वह व्यथित है। विज्ञान, ज्ञान, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, फुरसत, आराम : ये मनुष्य को केवल अस्थायी सांत्वना देते हैं। यहाँ तक कि इन बातों के साथ भी मनुष्य पाप करता और समाज के अन्याय का रोना रोता है। ये चीज़ें मनुष्य की अन्वेषण की लालसा और इच्छा को दबा नहीं सकतीं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मनुष्य को परमेश्वर द्वारा बनाया गया था और मनुष्यों के बेतुके त्याग और अन्वेषण केवल और अधिक कष्ट की ओर ही ले जा सकते हैं और मनुष्य को एक निरंतर भय की स्थिति में रख सकते हैं, और वह यह नहीं जान सकता कि मानवजाति के भविष्य या आगे आने वाले मार्ग का सामना किस प्रकार किया जाए। यहाँ तक कि मनुष्य विज्ञान और ज्ञान से भी डरने लगता है, और खालीपन के एहसास से और भी भय खाने लगता है। इस संसार में, चाहे तुम किसी स्वंतत्र देश में रहते हो या बिना मानवाधिकारों वाले देश में, तुम मानवजाति के भाग्य से बचकर भागने में सर्वथा असमर्थ हो। तुम चाहे शासक हो या शासित, तुम भाग्य, रहस्यों और मानवजाति के गंतव्य की खोज करने की इच्छा से बचकर भागने में सर्वथा अक्षम हो, और खालीपन के व्याकुल करने वाले बोध से बचकर भागने में तो और भी ज्यादा अक्षम हो। इस प्रकार की घटनाएँ, जो समस्त मानवजाति के लिए सामान्य हैं, समाजशास्त्रियों द्वारा सामाजिक घटनाएँ कही जाती हैं, फिर भी कोई महान व्यक्ति इस समस्या का समाधान करने के लिए सामने नहीं आ सकता। मनुष्य आखिरकार मनुष्य है, और परमेश्वर का स्थान और जीवन किसी मनुष्य द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। मानवजाति को केवल एक निष्पक्ष समाज की ही आवश्यकता नहीं है, जिसमें हर व्यक्ति को नियमित रूप से अच्छा भोजन मिलता हो और जिसमें सभी समान और स्वतंत्र हों, बल्कि मानवजाति को आवश्यकता है परमेश्वर के उद्धार और अपने लिए जीवन की आपूर्ति की। केवल जब मनुष्य परमेश्वर का उद्धार और जीवन की आपूर्ति प्राप्त करता है, तभी उसकी आवश्यकताओं, अन्वेषण की लालसा और आध्यात्मिक रिक्तता का समाधान हो सकता है। यदि किसी देश या राष्ट्र के लोग परमेश्वर के उद्धार और उसकी देखभाल प्राप्त करने में अक्षम हैं, तो वह देश या राष्ट्र पतन के मार्ग पर, अंधकार की ओर चला जाएगा, और परमेश्वर द्वारा जड़ से मिटा दिया जाएगा।
शायद तुम्हारा देश वर्तमान में समृद्ध हो रहा हो, किंतु यदि तुम लोगों को परमेश्वर से भटकने देते हो, तो वह स्वयं को उत्तरोत्तर परमेश्वर के आशीषों से वंचित होता हुआ पाएगा। तुम्हारे देश की सभ्यता उत्तरोत्तर पैरों तले रौंदी जाएगी, और जल्दी ही लोग परमेश्वर के विरुद्ध उठ खड़े होंगे और स्वर्ग को कोसने लगेंगे। और इसलिए, मनुष्य के बिना जाने ही देश का भाग्य नष्ट हो जाएगा। परमेश्वर शक्तिशाली देशों को उन देशों से निपटने के लिए ऊपर उठाएगा, जिन्हें परमेश्वर द्वारा श्राप दिया गया है, यहाँ तक कि वह पृथ्वी से उनका अस्तित्व भी मिटा सकता है। किसी देश का उत्थान और पतन इस बात पर आधारित होता है कि क्या उसके शासक परमेश्वर की आराधना करते हैं, और क्या वे अपने लोगों को परमेश्वर के निकट लाने और उसकी आराधना करने में उनकी अगुआई करते हैं। इतना ही नहीं, इस अंतिम युग में, चूँकि वास्तव में परमेश्वर को खोजने और उसकी आराधना करने वाले लोग तेजी से दुर्लभ होते जा रहे हैं, इसलिए परमेश्वर उन देशों पर अपना विशेष अनुग्रह बरसाता है, जिनमें ईसाइयत एक राज्य धर्म है। वह संसार में एक अपेक्षाकृत धार्मिक शिविर बनाने के लिए उन देशों को इकठ्ठा करता है, जबकि नास्तिक देश और वे देश, जो सच्चे परमेश्वर की आराधना नहीं करते, धार्मिक शिविर के विरोधी बन जाते हैं। इस तरह, परमेश्वर का मानवजाति के बीच न केवल एक स्थान होता है, जिसमें वह अपना कार्य करता है, बल्कि वह उन देशों को भी प्राप्त करता है, जो धर्मी अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं, और उन देशों पर अंकुश और प्रतिबंध लगाने देता है, जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। इसके बावजूद, अभी भी ज्यादा लोग परमेश्वर की आराधना करने के लिए आगे नहीं आते, क्योंकि मनुष्य उससे बहुत दूर भटक गया है और बहुत समय से उसे भूल चुका है। पृथ्वी पर केवल वे ही देश बचते हैं, जो धार्मिकता का अभ्यास करते हैं और अधार्मिकता का विरोध करते हैं। किंतु यह परमेश्वर की इच्छाओं से दूर है, क्योंकि किसी भी देश का शासक अपने लोगों के ऊपर परमेश्वर को नियंत्रण नहीं करने देगा, और कोई राजनीतिक दल अपने लोगों को परमेश्वर की आराधना करने के लिए इकट्ठा नहीं करेगा; परमेश्वर प्रत्येक देश, राष्ट्र, सत्तारूढ़ दल, और यहाँ तक कि प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में अपना यथोचित स्थान खो चुका है। यद्यपि धार्मिक ताक़तें इस दुनिया में मौजूद हैं, शासन करती हैं जिसमें मनुष्य के हृदय में परमेश्वर का स्थान भंगुर है। परमेश्वर के आशीष के बिना राजनीतिक क्षेत्र अव्यवस्था में पड़ जाएगा और एक हमले के सामने भी टिक नहीं पाएगा। मानवजाति के लिए परमेश्वर के आशीष से रहित होना सूर्य से रहित होने के समान है। शासक अपने लोगों के लिए चाहे कितने भी परिश्रम से योगदान क्यों न करें, मानवजाति चाहे कितने भी धर्मी सम्मेलन आयोजित क्यों न करे, इनमें से कोई भी होनी को या मानवजाति के भाग्य को नहीं बदलेगा। मनुष्य का मानना है कि वह देश, जिसमें लोगों को भोजन और वस्त्र मिलते हैं, जिसमें वे शांति से एक-साथ रहते हैं, एक अच्छा देश है, और उसका नेतृत्व अच्छा है। किंतु परमेश्वर ऐसा नहीं सोचता। उसका मानना है कि वह देश, जिसमें कोई उसकी आराधना नहीं करता, एक ऐसा देश है, जिसे वह जड़ से मिटा देगा। मनुष्य के सोचने का तरीका परमेश्वर के सोचने के तरीके से पूरी तरह भिन्न है। तो यदि किसी देश का मुखिया परमेश्वर की आराधना नहीं करता, तो उस देश का भाग्य दुःखद होगा, और उस देश का कोई गंतव्य नहीं होगा।
परमेश्वर मनुष्य की राजनीति में भाग नहीं लेता, फिर भी देश या राष्ट्र का भाग्य परमेश्वर द्वारा नियंत्रित होता है। परमेश्वर इस संसार को और संपूर्ण ब्रह्मांड को नियंत्रित करता है। मनुष्य का भाग्य और परमेश्वर की योजना घनिष्ठता से जुड़े हैं, और कोई भी मनुष्य, देश या राष्ट्र परमेश्वर की संप्रभुता से मुक्त नहीं है। यदि मनुष्य अपने भाग्य को जानना चाहता है, तो उसे परमेश्वर के सामने आना होगा। परमेश्वर उन लोगों को समृद्ध करेगा, जो उसका अनुसरण और उसकी आराधना करते हैं, और वह उनका पतन और विनाश करेगा, जो उसका विरोध करते हैं और उसे अस्वीकार करते हैं।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है' से उद्धृत
परमेश्वर के दैनिक वचन अंश 264
ब्रह्मांड और आकाश की विशालता में अनगिनत जीव रहते और प्रजनन करते हैं, जीवन के चक्रीय नियम का पालन करते हैं, और एक अटल नियम का अनुसरण करते हैं। जो मर जाते हैं, वे अपने साथ जीवित लोगों की कहानियाँ लेकर चले जाते हैं, और जो लोग जी रहे हैं, वे खत्म हो चुके लोगों के त्रासद इतिहास को ही दोहराते हैं। और इसलिए, मानवजाति खुद से पूछे बिना नहीं रह पाती : हम क्यों जीते हैं? और हमें मरना क्यों पड़ता है? इस संसार को कौन नियंत्रित करता है? और इस मानवजाति को किसने बनाया? क्या मानवजाति को वास्तव में प्रकृति माता ने बनाया? क्या मानवजाति वास्तव में अपने भाग्य की नियंत्रक है? ... ये वे सवाल हैं, जो मानवजाति ने हजारों वर्षों से निरंतर पूछे हैं। दुर्भाग्य से, जितना अधिक मनुष्य इन सवालों से ग्रस्त हुआ है, उसमें उतनी ही अधिक प्यास विज्ञान के लिए विकसित हुई है। विज्ञान देह की संक्षिप्त तृप्ति और अस्थायी आनंद प्रदान करता है, लेकिन वह मनुष्य को उसकी आत्मा के भीतर की तन्हाई, अकेलेपन, बमुश्किल छिपाए जा सकने वाले आतंक और लाचारी से मुक्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है। मानवजाति केवल उसी वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग करती है, जिसे वह अपनी खुली आँखों से देख सकती है और अपने मस्तिष्क से समझ सकती है, ताकि अपने हृदय को चेतनाशून्य कर सके। फिर भी यह वैज्ञानिक ज्ञान मानवजाति को रहस्यों की खोज करने से रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है। मानवजाति यह नहीं जानती कि ब्रह्मांड और सभी चीज़ों का संप्रभु कौन है, और मानवजाति के प्रारंभ और भविष्य के बारे में तो वह बिलकुल भी नहीं जानती। मानवजाति केवल इस व्यवस्था के बीच विवशतापूर्वक जीती है। इससे कोई बच नहीं सकता और इसे कोई बदल नहीं सकता, क्योंकि सभी चीज़ों के बीच और स्वर्ग में अनंतकाल से लेकर अनंतकाल तक वह एक ही है, जो सभी चीज़ों पर अपनी संप्रभुता रखता है। वह एक ही है, जिसे मनुष्य द्वारा कभी देखा नहीं गया है, वह जिसे मनुष्य ने कभी नहीं जाना है, जिसके अस्तित्व पर मनुष्य ने कभी विश्वास नहीं किया है—फिर भी वह एक ही है, जिसने मनुष्य के पूर्वजों में साँस फूँकी और मानवजाति को जीवन प्रदान किया। वह एक ही है, जो मानवजाति का भरण-पोषण करता है और उसका अस्तित्व बनाए रखता है; और वह एक ही है, जिसने आज तक मानवजाति का मार्गदर्शन किया है। इतना ही नहीं, वह और केवल वह एक ही है, जिस पर मानवजाति अपने अस्तित्व के लिए निर्भर करती है। वह सभी चीज़ों पर संप्रभुता रखता है और ब्रह्मांड के सभी जीवित प्राणियों पर राज करता है। वह चारों मौसमों पर नियंत्रण रखता है, और वही है जो हवा, ठंड, हिमपात और बारिश लाता है। वह मानवजाति के लिए सूर्य का प्रकाश लाता है और रात्रि का सूत्रपात करता है। यह वही था, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी की व्यवस्था की, और मनुष्य को पहाड़, झीलें और नदियाँ और उनके भीतर के सभी जीव प्रदान किए। उसके कर्म सर्वव्यापी हैं, उसकी सामर्थ्य सर्वव्यापी है, उसकी बुद्धि सर्वव्यापी है, और उसका अधिकार सर्वव्यापी है। इन व्यवस्थाओं और नियमों में से प्रत्येक उसके कर्मों का मूर्त रूप है और प्रत्येक उसकी बुद्धिमत्ता और अधिकार को प्रकट करता है। कौन खुद को उसके प्रभुत्व से मुक्त कर सकता है? और कौन उसकी अभिकल्पनाओं से खुद को छुड़ा सकता है? सभी चीज़ें उसकी निगाह के नीचे मौजूद हैं, और इतना ही नहीं, सभी चीज़ें उसकी संप्रभुता के अधीन रहती हैं। उसके कर्म और उसकी सामर्थ्य मानवजाति के लिए इस तथ्य को स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं छोड़ती कि वह वास्तव में मौजूद है और सभी चीज़ों पर संप्रभुता रखता है। उसके अतिरिक्त कोई ब्रह्मांड पर नियंत्रण नहीं रख सकता, और मानवजाति का निरंतर भरण-पोषण तो बिलकुल नहीं कर सकता। चाहे तुम परमेश्वर के कर्मों को पहचानने में सक्षम हो या न हो, और चाहे तुम परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हो या न करते हो, इसमें कोई शक नहीं कि तुम्हारा भाग्य परमेश्वर द्वारा निर्धारित किया जाता है, और इसमें भी कोई शक नहीं कि परमेश्वर हमेशा सभी चीज़ों पर अपनी संप्रभुता रखेगा। उसका अस्तित्व और अधिकार इस बात से निर्धारित नहीं होता कि वे मनुष्य द्वारा पहचाने और समझे जाते हैं या नहीं। केवल वही मनुष्य के अतीत, वर्तमान और भविष्य को जानता है, और केवल वही मानवजाति के भाग्य का निर्धारण कर सकता है। चाहे तुम इस तथ्य को स्वीकार करने में सक्षम हो या न हो, इसमें ज्यादा समय नहीं लगेगा, जब मानवजाति अपनी आँखों से यह सब देखेगी, और परमेश्वर जल्दी ही इस तथ्य को साकार करेगा। मनुष्य परमेश्वर की आँखों के सामने जीता है और मर जाता है। मनुष्य परमेश्वर के प्रबंधन के लिए जीता है, और जब उसकी आँखें आखिरी बार बंद होती हैं, तो इस प्रबंधन के लिए ही बंद होती हैं। मनुष्य बार-बार, आगे-पीछे, आता और जाता रहता है। बिना किसी अपवाद के, यह परमेश्वर की संप्रभुता और उसकी अभिकल्पना का हिस्सा है। परमेश्वर का प्रबंधन कभी रुका नहीं है; वह निरंतर अग्रसर है। वह मानवजाति को अपने अस्तित्व से अवगत कराएगा, अपनी संप्रभुता में विश्वास करवाएगा, अपने कर्मों का अवलोकन करवाएगा, और अपने राज्य में वापस लौट जाएगा। यही उसकी योजना और कार्य है, जिनका वह हजारों वर्षों से प्रबंधन कर रहा है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'मनुष्य को केवल परमेश्वर के प्रबंधन के बीच ही बचाया जा सकता है' से उद्धृत