128 मैं परमेश्वर के प्रति अनुरक्त हूँ

1

जब परमेश्वर मुझसे दूर चला जाता है,

मेरी आँखें भर आती हैं,

और परमेश्वर मेरी ओर देखकर मुस्कुराता और

हाथ हिलाता है।

मेरे पास कितना कुछ होता है उससे कहने को,

पर उस पल में, मेरे शब्द खो जाते हैं।

परमेश्वर के साथ बिताए दिन याद आते हैं,

प्रसन्नता और हँसी के वे दृश्य।

हम भूल नहीं सकते कि परमेश्वर ने हमें बचाने के लिए कितना दिया है।

उसकी सब नेक शिक्षाओं में आशा निहित है।

मेरे हृदय पर अंकित होकर, वे मेरी अगुआई करती हैं।

जब मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बारे में सोचता हूँ,

तो दिल में कैसी मिठास महसूस होती है।

और मैं कितना लालायित हूँ,

आह, कितना लालायित,

मैं कितना लालायित हूँ उससे फिर से मिलने को।


2

जब परमेश्वर मुझे छोड़ कर जाता है,

मैं उसे जाने देना नहीं चाहता।

वह पीछे मुड़कर मेरी ओर अपना हाथ हिलाता है,

मैं चाहता हूँ कि उससे कहूँ वह ठहर जाए मेरे पास,

पर मैं कुछ कह नहीं सकता,

और मेरे दिल में दर्द होता है।

दिन-ब-दिन उसकी शिक्षाएँ

मुझे आगे बढ़ाती हैं।

मेरा मन पक्का हो जाता है,

वे मुझे उसके पीछे-पीछे ले जाती हैं।

हर दिन मैं परमेश्वर के वचनों का अनुभव करूँगा,

और अपने कर्तव्य पूरे करूँगा

उसका ऋण चुकाने को।

जब मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बारे में सोचता हूँ,

तो दिल में कैसी मिठास महसूस होती है।

और मैं कितना लालायित हूँ,

आह, कितना लालायित,

मैं कितना लालायित हूँ उससे फिर से मिलने को।

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