13.1. मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षाएँ
605. अब तुम लोगों को परमेश्वर के जन बनने की कोशिश करनी है, और तुम सब इस पूरे प्रवेश को सही रास्ते पर शुरू करोगे। परमेश्वर के जन होने का अर्थ है, राज्य के युग में प्रवेश करना। आज तुम आधिकारिक तौर पर राज्य के प्रशिक्षण में प्रवेश शुरू कर रहे हो और तुम लोगों के भावी जीवन अब पहले की तरह सुस्त और लापरवाह नहीं रहेंगे; इस तरह जीते हुए परमेश्वर द्वारा अपेक्षित मानक हासिल करना असंभव है। यदि तुम्हें यह तत्काल करने की कोई ज़रूरत महसूस नहीं होती, तो यह दिखाता है कि तुम खुद को सुधारने की कोई आकांक्षा नहीं रखते, तुम्हारा अनुसरण अव्यवस्थित और भ्रमित है और तुम परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में असमर्थ हो। राज्य के प्रशिक्षण में प्रवेश करने का अर्थ है, परमेश्वर के लोगों के जीवन की शुरुआत—क्या तुम इस तरह का प्रशिक्षण स्वीकार करने के लिए तैयार हो? क्या तुम तात्कालिकता महसूस करने के लिए तैयार हो? क्या तुम परमेश्वर के अनुशासन में जीने के लिए तैयार हो? क्या तुम परमेश्वर की ताड़ना के तहत जीने के लिए तैयार हो? जब परमेश्वर के वचन तुम पर आएँगेऔर तुम्हारी परीक्षा लेंगे, तब तुम क्या करोगे? और जब सभी तरह के तथ्यों से तुम्हारा सामना होगा, तो तुम क्या करोगे? अतीत में तुम्हारा ध्यान जीवन पर केंद्रित नहीं था; आज तुम्हें जीवन-वास्तविकता में प्रवेश करने पर ध्यान देना चाहिए और अपने जीवन स्वभाव में बदलाव लाने की कोशिश करनी चाहिए। यही है जो राज्य के लोगों द्वारा हासिल किया जाना चाहिए। वो सभी जो परमेश्वर के लोग हैं, उनके पास जीवन होना चाहिए, उन्हें राज्य के प्रशिक्षण को स्वीकार करना चाहिए और अपने जीवन स्वभाव में परिवर्तन लाने की कोशिश करनीचाहिए। परमेश्वर राज्य के लोगों से यही अपेक्षा रखता है।
राज्य के लोगों से परमेश्वर की अपेक्षाएँ अपेक्षाएं इस प्रकार हैं :
1) उन्हें परमेश्वर के आदेशों को अवश्य स्वीकार करना होगा। इसका अर्थ है, उन्हें आखिरी दिनों के परमेश्वर के कार्य के दौरान कहे गए सभी वचन स्वीकार करने होंगे।
2) उन्हें राज्य के प्रशिक्षण में अवश्य प्रवेश करना होगा।
3) उन्हें प्रयास करना होगा कि परमेश्वर उनके दिलों को स्पर्श करे। जब तुम्हारा दिल पूरी तरह से परमेश्वर उन्मुख होजाता है और तुम्हारा जीवन सामान्य रूप से आध्यात्मिक होता है, तो तुम स्वतंत्रता के क्षेत्र में रहोगे, जिसका अर्थ है कि तुम परमेश्वर के प्रेम की देख-रेख और उसकी सुरक्षा में जिओगे। जब तुम परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा में रहते हो, तभी तुम परमेश्वर के होते हो।
4) उन्हें परमेश्वर द्वारा प्राप्त होना होगा।
5) उन्हें पृथ्वी पर परमेश्वर की महिमा की अभिव्यक्ति बनना होगा।
ये पाँचबातें तुम सबके लिए मेरे आदेश हैं। मेरे वचन परमेश्वर के लोगों से कहे जाते हैं और यदि तुम इन आदेशों को स्वीकार करने के इच्छुकनहीं हो, तो मैं तुम्हें मजबूर नहींकरूँगा—लेकिन अगर तुम सचमुच उन्हें स्वीकार करते हो, तो तुम परमेश्वर की इच्छा पर चलने में सक्षम होंगे होगे। आज तुम सभी परमेश्वर के आदेश स्वीकार करना शुरू करो और राज्य के लोग बनने की कोशिश करो और राज्य के लोगों के लिए आवश्यक मानक हासिल करने का प्रयास करो। यह प्रवेश का पहला चरण है। यदि तुम पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा पर चलना चाहते हो, तो तुम्हें इन पाँचआदेशों को स्वीकार करना होगा और यदि तुम ऐसाकर पाने में सक्षम रहे, तो तुम परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक होंगे और परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारा महान उपयोग करेगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो
606. तुम लोगों ने आज के दिन जो विरासत पाई है वह युगों-युगों तक परमेश्वर के प्रेरितों और नबियों की विरासत से भी बढ़कर है और यहाँ तक कि मूसा और पतरस की विरासत से भी अधिक है। आशीष एक या दो दिन में प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं; वे बड़े त्याग के माध्यम से ही कमाए जाने चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है, तुम लोगों को उस प्रेम से युक्त होना ही चाहिए जो शुद्धिकरण से गुज़र चुका है, तुममें अत्यधिक आस्था होनी ही चाहिए, और तुम्हारे पास कई सत्य होने ही चाहिए जो परमेश्वर अपेक्षा करता है कि तुम प्राप्त करो; इससे भी बढ़कर, भयभीत हुए या टाल-मटोल किए बिना, तुम्हें न्याय की ओर जाना चाहिए, और परमेश्वर के प्रति मृत्युपर्यंत रहने वाला प्रेम रखना चाहिए। तुममें संकल्प होना ही चाहिए, तुम लोगों के जीवन स्वभाव में बदलाव आने ही चाहिए; तुम लोगों की भ्रष्टता का निदान होना ही चाहिए, तुम्हें परमेश्वर के सारे आयोजन बिना शिकायत स्वीकार करने ही चाहिए, और तुम्हें मृत्युपर्यंत आज्ञाकारी होना ही चाहिए। यह वह है जो तुम्हें प्राप्त करना ही है, यह परमेश्वर के कार्य का अंतिम लक्ष्य है, और यह वह है जो परमेश्वर लोगों के इस समूह से चाहता है। चूँकि वह तुम लोगों को देता है, इसलिए वह बदले में तुम लोगों से निश्चिय ही माँगेगा भी, और तुम लोगों से निश्चय ही उपयुक्त माँगें ही करेगा। इसलिए, परमेश्वर जो भी कार्य करता है उस सबका कारण होता है, जो दिखलाता है कि परमेश्वर बार-बार ऐसा कार्य क्यों करता है जो इतने उच्च मानक स्थापित करता और कड़ी अपेक्षाएँ करता है। यही कारण है कि परमेश्वर के प्रति विश्वास तुममें समाया होना चाहिए। संक्षेप में, परमेश्वर का समूचा कार्य तुम लोगों के लिए किया जाता है, ताकि तुम लोग उसकी विरासत पाने के योग्य बन सको। यह सब परमेश्वर की अपनी महिमा के वास्ते उतना नहीं है बल्कि तुम लोगों के उद्धार के लिए और इस देश में अत्यधिक सताए गए लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए है। तुम लोगों को परमेश्वर की इच्छा समझनी चाहिए। और इसलिए, मैं बहुत-से अज्ञानी लोगों को, जो किसी भी अंतर्दृष्टि या समझ से रहित हैं, उपदेश देता हूँ : परमेश्वर की परीक्षा मत लो, तथा अब और प्रतिरोध मत करो। परमेश्वर पहले ही उस पीड़ा से गुज़र चुका है जो कभी किसी मनुष्य ने नहीं सही, और यहाँ तक कि बहुत पहले मनुष्य के स्थान पर इससे भी अधिक अपमान सह चुका है। ऐसा और क्या है जो तुम लोग नहीं छोड़ सकते? परमेश्वर की इच्छा से अधिक महत्वपूर्ण और क्या हो सकता है? परमेश्वर के प्रेम से बढ़कर और क्या हो सकता है? परमेश्वर के लिए इस अशुद्ध देश में कार्य करना वैसे ही काफी कठिन है; उस पर यदि मनुष्य जानबूझकर और मनमाने ढंग से उल्लंघन करता है, तो परमेश्वर का कार्य और लंबा खींचना पड़ेगा। संक्षेप में, यह किसी के हित में नहीं है, और इसमें किसी का लाभ नहीं है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?
607. मैं जो वचन कहता हूँ वे सत्य हैं और समूची मानवजाति के लिए हैं; केवल किसी विशिष्ट या खास किस्म के व्यक्ति के लिए नहीं हैं। इसलिए, तुम लोगों को मेरे वचनों को सत्य के नजरिए से समझने पर ध्यान देना चाहिए और पूरी एकाग्रता एवं ईमानदारी की प्रवृत्ति रखनी चाहिए; मेरे द्वारा बोले गए एक भी वचन या सत्य की उपेक्षा मत करो, और उन्हें हल्के में मत लो। मैं देखता हूँ कि तुम लोगों ने अपने जीवन में ऐसा बहुत कुछ किया है जो सत्य के अनुरूप नहीं है, इसलिए मैं तुम लोगों से खास तौर से सत्य के सेवक बनने, दुष्टता और कुरूपता का दास न बनने के लिए कह रहा हूँ। सत्य को मत कुचलो और परमेश्वर के घर के किसी भी कोने को दूषित मत करो। तुम लोगों के लिए यह मेरी चेतावनी है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ
608. मैं केवल यह आशा करता हूँ कि तुम लोग मेरे श्रमसाध्य प्रयासों को बर्बाद नहीं करोगे और इसके अलावा, तुम लोग मेरी सहृदय परवाह को समझोगे, और मेरे वचनों को एक इंसान के रूप में अपने व्यवहार का आधार बनाओगे। चाहे ये वचन ऐसे हों जिन्हें तुम लोग सुनना चाहो या न चाहो, चाहे ये वचन ऐसे हों जिन्हें स्वीकार कर तुम लोगों को आनंद हो या तुम इसे बस असहजता के साथ ही स्वीकार कर सको, तुम लोगों को उन्हें गंभीरता से अवश्य लेना चाहिए। अन्यथा, तुम लोगों के लापरवाह और निश्चिंत स्वभाव और व्यवहार मुझे गंभीर रूप से परेशान कर देंगे और, निश्चय ही, मुझे घृणा से भर देंगे। मुझे बहुत आशा है कि तुम सभी लोग मेरे वचनों को बार-बार—हजारों बार—पढ़ सकते हो और यहाँ तक कि उन्हें याद भी कर सकते हो। केवल इसी तरीके से तुम लोग से मेरी अपेक्षाओं पर सफल हो सकोगे। हालाँकि, अभी तुम लोगों में से कोई भी इस तरह से नहीं जी रहा है। इसके विपरीत, तुम सभी एक ऐयाश जीवन में डूबे हुए हो, जी-भर कर खाने-पीने का जीवन, और तुम लोगों में से कोई भी अपने हृदय और आत्मा को समृद्ध करने के लिए मेरे वचनों का उपयोग नहीं करता है। यही कारण है कि मैंने मनुष्य जाति के असली चेहरे के बारे में यह निष्कर्ष निकाला है : मनुष्य कभी भी मेरे साथ विश्वासघात कर सकता है और कोई भी मेरे वचनों के प्रति पूर्णतः निष्ठावान नहीं हो सकता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (1)
609. परमेश्वर मनुष्य से एकनिष्ठ प्रेम की अपेक्षा करता है; परमेश्वर अपेक्षा करता है कि मनुष्य उसके वचनों से भरा रहे और उसके लिए प्यार से भरे हृदय से परिपूर्ण रहे। परमेश्वर के वचनों में रहना, उसके वचनों में ढूँढना जो उन्हें खोजना चाहिए, परमेश्वर को उसके वचनों के लिए प्यार करना, उसके वचनों के लिए भागना, उसके वचनों के लिए जीना—ये ऐसे लक्ष्य हैं जिन्हें पाने के लिए इंसान को प्रयास करने चाहिए। सबकुछ परमेश्वर के वचनों पर निर्मित किया जाना चाहिए; इंसान तभी परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगा। यदि मनुष्य में परमेश्वर के वचन नहीं होंगे, तो इंसान शैतान के चंगुल में फँसे भुनगे से ज़्यादा कुछ नहीं है! इसका आकलन करो : परमेश्वर के कितने वचनों ने तुम्हारे अंदर जड़ें जमाई हैं? किन चीज़ों में तुम परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन जीते रहे हो? किन चीज़ों में तुम परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन नहीं जीते रहे हो? यदि तुम पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों के प्रभाव में नहीं हो, तो तुम्हारे दिल पर किसने कब्ज़ा कर रखा है? अपने रोजमर्रा के जीवन में, क्या तुम शैतान द्वारा नियंत्रित किए जा रहे हो, या परमेश्वर के वचनों ने तुम पर अधिकार कर रखा है? क्या तुम्हारी प्रार्थनाएँ परमेश्वर के वचनों की बुनियाद पर आधारित हैं? क्या तुम परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन से अपनी नकारात्मक अवस्था से बाहर आ गए हो? परमेश्वर के वचनों को अपने अस्तित्व की नींव की तरह लेना—यही वो है जिसमें सबको प्रवेश करना चाहिए। यदि तुम्हारे जीवन में परमेश्वर के वचन विद्यमान नहीं हैं, तो तुम अंधकार के प्रभाव में जी रहे हो, तुम परमेश्वर से विद्रोह कर रहे हो, तुम उसका विरोध कर रहे हो, और तुम परमेश्वर के नाम का अपमान कर रहे हो। इस तरह के मनुष्यों का परमेश्वर में विश्वास पूरी तरह से बदमाशी है, एक विघ्न है। तुम्हारा कितना जीवन परमेश्वर के वचनों के अनुसार रहा है? तुम्हारा कितना जीवन परमेश्वर के वचनों के अनुसार नहीं रहा है? परमेश्वर के वचनों को तुमसे जो अपेक्षाएँ थीं, उनमें से तुमने कितनी पूरी की हैं? कितनी तुममें खो गई हैं? क्या तुमने ऐसी चीज़ों को बारीकी से देखा है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अंधकार के प्रभाव से बच निकलो और तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाओगे
610. क्या तुम लोग पृथ्वी पर मेरे आशीष का आनंद लेना चाहते हो, ऐसे आशीष का जो स्वर्ग के समान है? क्या तुम लोग मेरी समझ को, मेरे वचनों के आनंद को और मेरे बारे में ज्ञान को, अपने जीवन की सर्वाधिक बहुमूल्य और सार्थक वस्तु के रूप संजोने को तैयार हो? क्या तुम लोग, अपने भविष्य की संभावनाओं पर विचार किए बिना, वास्तव में मेरे प्रति पूरी तरह से समर्पण कर सकते हो? क्या तुम लोग सचमुच अपना जीवन-मरण मेरे अधीन करके एक भेड़ के समान मेरी अगुआई में चलने को राज़ी हो? क्या तुम लोगों में ऐसा कोई है जो यह करने में समर्थ है? क्या ऐसा हो सकता है कि ऐसे सभी लोग जो मेरे द्वारा स्वीकार किए जाते हैं और मेरी प्रतिज्ञाओं को प्राप्त करते हैं, वे ही ऐसे लोग हैं जो मेरा आशीष पाते हैं? क्या तुम लोग इन वचनों से कुछ समझे हो? यदि मैं तुम लोगों की परीक्षा लूँ, तो क्या तुम लोग सचमुच स्वयं को मेरे हवाले कर सकते हो, और इन परीक्षणों के बीच, मेरे इरादों की खोज और मेरे हृदय को महसूस कर सकते हो? मैं नहीं चाहता कि तुम अधिक मर्मस्पर्शी बातें कहने, या बहुत-सी रोमांचक कहानियाँ सुनाने लायक बनो; बल्कि, मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी उत्तम गवाही देने लायक बनो, पूरी तरह और गहराई से वास्तविकता में प्रवेश कर सको। यदि मैं सीधे तौर पर तुम से न बोलता, तो क्या तुम अपने आसपास की सब चीजों को त्याग कर मुझे अपना उपयोग करने दे सकते थे? क्या मुझे इसी वास्तविकता की अपेक्षा नहीं है? मेरे वचनों के अर्थ को कौन ग्रहण कर सकता है? फिर भी मैं कहता हूँ कि तुम लोग अब गलतफहमी में न पड़ना, तुम लोग अपने प्रवेश में सक्रिय बनो और मेरे वचनों के सार को ग्रहण करो। ऐसा करना तुम लोगों को मेरे वचनों के मिथ्याबोध और मेरे अर्थ के विषय में अस्पष्ट होने से और इस प्रकार मेरे प्रशासनिक आदेशों के उल्लंघन से बचाएगा। मैं चाहता हूँ कि तुम लोग मेरे वचनों में तुम्हारे लिए मेरे जो इरादे हैं, उन्हें ग्रहण करो। अब केवल अपनी भविष्य की संभावनाओं पर ही विचार न करो, और तुम लोगों ने मेरे सम्मुख सभी चीज़ों में परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पित होने का जो संकल्प लिया है, ठीक उसी के अनुरूप कार्य करो। वे सभी जो मेरे कुल के भीतर हैं उन्हें जितना अधिक संभव हो उतना करना चाहिए; पृथ्वी पर मेरे कार्य के अंतिम भाग में तुम्हें अपना सर्वोत्तम अर्पण करना चाहिए। क्या तुम वास्तव में ऐसी बातों को अभ्यास में लाने के लिए तैयार हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 4
611. मेरे लोगों को, मेरे लिए मेरे घर के द्वार की रखवाली करते हुए, शैतान के कुटिल कुचर्क्रों से हर समय सावधान रहना चाहिए; उन्हें एक दूसरे को सहारा दे पाना और एक दूसरे का भरण-पोषण कर पाना चाहिए, ताकि शैतान के जाल में फँसने से बच सकें, और तब पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी। मैं ऐसी तात्कालिकता के साथ तुम लोगों को क्यों सिखला रहा हूँ? मैं तुम लोगों को आध्यात्मिक जगत के तथ्य क्यों बता रहा हूँ? मैं क्यों तुम लोगों को बार-बार याद दिलाता और नसीहत देता हूँ? क्या तुम लोगों ने कभी इस विषय में सोचा है? क्या तुम लोगों के चिंतन-मनन से कोई स्पष्टता आई है? इसलिए, तुम लोगों को न केवल अतीत की नींव के ऊपर निर्माण करके स्वयं को परिपक्व करने में समर्थ होना चाहिए, बल्कि, इससे भी अधिक, आज के वचनों के मार्गदर्शन में, अपने भीतर की अशुद्धताओं को बाहर निकाल देना चाहिए, मेरे प्रत्येक वचन को अपनी आत्माओं के भीतर जड़ पकड़ने और फलने-फूलने देने, और सर्वाधिक महत्वपूर्ण रूप से और अधिक फल देने में समर्थ होना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं जो माँगता हूँ वे केवल उजले, रंग-बिरंगे फूल ही नहीं, बल्कि भरपूर फल हैं, फल जो हमेशा पके रहते हैं। क्या तुम मेरे वचनों का सही अर्थ समझते हो? पौधा-घर में फूल यद्यपि तारों जितने अनगिनत होते हैं, और प्रशंसकों की सारी भीड़ आकर्षित करते हैं, किंतु एक बार जब वे मुरझा जाते हैं, तब वे शैतान के कपटपूर्ण कुचक्रों की तरह जीर्ण-शीर्ण हो जाते हैं, और कोई भी उनमें रुचि नहीं दिखाता। तो भी हवा के थपेड़ों से घिरे और सूरज से झुलसे वे सब लोग जो मेरे लिए गवाही देते हैं, हालाँकि वैसे सुंदर नहीं होते जैसे खिलते समय होते हैं, किंतु जब ये फूल मुरझा गए होंगे तब फल आएँगे, क्योंकि मैं अपेक्षा करता हूँ कि वे ऐसे हों। जब मैं ये वचन बोलता हूँ, तब तुम लोग कितना समझते हो? एक बार जब फूल मुरझा गए होंगे और फल आ जाएगा, और एक बार जब यह समूचा फल मेरे आस्वादन के लिए प्रदान किया जा सकेगा, तब मैं पृथ्वी पर अपना समस्त कार्य समाप्त कर दूँगा, और अपनी बुद्धिमता के निश्चित रूप धारण करने का आनंद लेना आरंभ करूँगा!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 3
612. एक अरसे से, परमेश्वर में आस्था रखने वाले सभी लोग एक खूबसूरत मंज़िल की आशा कर रहे हैं, और परमेश्वर के सभी विश्वासियों को उम्मीद है कि सौभाग्य अचानक उनके पास आ जाएगा। उन्हें आशा है कि उन्हें पता भी नहीं चलेगा और वे शांति से स्वर्ग में किसी स्थान पर विराजमान होंगे। लेकिन मैं कहता हूँ कि प्यारे विचारों वाले इन लोगों ने कभी नहीं जाना कि वे स्वर्ग से आने वाले ऐसे सौभाग्य को पाने के या वहाँ किसी आसन पर बैठने तक के पात्र भी हैं या नहीं। आज तुम लोग अपनी स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ़ हो, फिर भी यह उम्मीद लगाए बैठे हो कि तुम लोग अंतिम दिनों की विपत्तियों और दुष्टों को दंडित करने वाले परमेश्वर के हाथों से बच जाओगे। ऐसा लगता है कि सुनहरे सपने देखना और चीज़ों के अपने मन-मुताबिक होने की अभिलाषा करना उन सभी लोगों की एक आम विशेषता है, जिन्हें शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है, और जिनमें से एक भी ज़रा भी प्रतिभाशाली नहीं है। फिर भी, मैं तुम लोगों की अनावश्यक इच्छाओं और साथ ही आशीष पाने की तुम्हारी उत्सुकता का अंत करना चाहता हूँ। यह देखते हुए कि तुम्हारे अपराध असंख्य हैं, और तुम्हारी विद्रोहशीलता का तथ्य हमेशा बढ़ता जा रहा है, ये चीज़ें तुम्हारी भविष्य की प्यारी योजनाओं में कैसे फबेंगी? यदि तुम मनमाने ढंग से गलतियाँ करना चाहते हो, तुम्हें रोकने-टोकने वाला भी कोई नहीं है, और तुम फिर भी चाहते हो कि तुम्हारे सपने पूरे हों, तो मैं तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि अपनी जड़ता में बने रहो और कभी जागना मत, क्योंकि तुम्हारे सपने थोथे हैं, और धार्मिक परमेश्वर के होते हुए, वह तुम्हें कोई अपवाद नहीं बनाएगा। यदि तुम अपने सपने पूरे करना चाहते हो, तो कभी सपने मत देखो, बल्कि हमेशा सत्य और तथ्यों का सामना करो। ख़ुद को बचाने का यही एकमात्र तरीका है। ठोस रूप में, इस पद्धति के क्या चरण हैं?
पहला, अपने सभी अपराधों पर एक नज़र डालो, और जाँच करो कि तुम्हारे व्यवहार तथा विचारों में से कोई ऐसा तो नहीं है, जो सत्य के अनुरूप नहीं है।
यह एक ऐसी चीज़ है, जिसे तुम आसानी से कर सकते हो, और मुझे विश्वास है कि सभी बुद्धिमान लोग यह कर सकते हैं। लेकिन जिन लोगों को यह नहीं पता कि अपराध और सत्य होते क्या हैं, वे अपवाद हैं, क्योंकि मूलत: ऐसे लोग बुद्धिमान नहीं होते। मैं उन लोगों से बात कर रहा हूँ, जो परमेश्वर द्वारा अनुमोदित हैं, ईमानदार हैं, जिन्होंने परमेश्वर के किसी प्रशासनिक आदेश का गंभीर उल्लंघन नहीं किया है, और जो सहजता से अपने अपराधों का पता लगा सकते हैं। हालाँकि यह चीज़ जिसकी मुझे तुमसे अपेक्षा है इसे तुम लोग आसानी से कर सकते हो, लेकिन यही एकमात्र चीज़ नहीं है, जो मैं तुम लोगों से चाहता हूँ। कुछ भी हो, मुझे आशा है कि तुम लोग अकेले में इस अपेक्षा पर हँसोगे नहीं, और खास तौर पर तुम इसे हिकारत से नहीं देखोगे या फिर हलके में नहीं लोगे। तुम्हें इसे गंभीरता से लेना चाहिए और ख़ारिज नहीं करना चाहिए।
दूसरे, अपने प्रत्येक अपराध और अवज्ञा के लिए तुम्हें एक तदनुरूप सत्य खोजना चाहिए, और फिर उन सत्यों का उपयोग उन मुद्दों को हल करने के लिए करना चाहिए। उसके बाद, अपने आपराधिक कृत्यों और अवज्ञाकारी विचारों व कृत्यों को सत्य के अभ्यास से बदल लो।
तीसरे, तुम्हें एक ईमानदार व्यक्ति बनना चाहिए, न कि एक ऐसा व्यक्ति, जो हमेशा चालबाज़ी या कपट करे। (यहाँ मैं तुम लोगों से पुन: ईमानदार व्यक्ति बनने के लिए कह रहा हूँ।)
यदि तुम ये तीनों चीज़ें कर पाते हो, तो तुम ख़ुशकिस्मत हो—ऐसे व्यक्ति, जिसके सपने पूरे होते हैं और जो सौभाग्य प्राप्त करता है। शायद तुम इन तीन नीरस अपेक्षाओं को गंभीरता से लोगे या शायद तुम इन्हें गैर-ज़िम्मेदारी से लोगे। जो भी हो, मेरा उद्देश्य तुम्हारे सपने पूरा करना और तुम्हारे आदर्श अमल में लाना है, न कि तुम लोगों का उपहास करना या तुम लोगों को बेवकूफ़ बनाना।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपराध मनुष्य को नरक में ले जाएँगे
613. मुझे बहुत उम्मीदें हैं। मैं आशा करता हूँ कि तुम लोग उपयुक्त और अच्छी तरह से व्यवहार करो, अपना कर्तव्य निष्ठा से पूरा करो, सत्य और मानवता को अपनाओ, ऐसे व्यक्ति बनो जो अपना सर्वस्व, यहाँ तक कि अपना जीवन भी परमेश्वर के लिए न्योछावर कर सके, वगैरह-वगैरह। ये सारी आशाएँ तुम लोगों की कमियों, भ्रष्टता और अवज्ञाओं से उत्पन्न होती हैं। अगर तुम लोगों से मेरी कोई भी बातचीत तुम्हारा ध्यान आकर्षित के लिए पर्याप्त नहीं रही है, तो शायद मैं यही कर सकता हूँ कि अब कुछ न कहूँ। हालाँकि, तुम लोग इसके परिणाम को समझते हो। मैं अक्सर आराम नहीं करता, इसलिए अगर मैं बोलूँगा नहीं, तो कुछ ऐसा करूँगा कि लोग देखते रह जाएँगे। मैं किसी की जीभ गला सकता हूँ, या किसी के अंग भंग करके उसे मार सकता हूँ, या लोगों को स्नायु की विषमताएँ दे सकता हूँ और उन्हें अनेक प्रकार से कुरूप बना सकता हूँ। इसके अतिरिक्त, मैं लोगों को ऐसी यातनाएँ दे सकता हूँ, जो मैंने खास तौर से उनके लिए निर्मित की हैं। इस तरह मुझे ख़ुशी होगी, और मैं बहुत ज्यादा सुखी और प्रसन्न हो जाऊँगा। हमेशा से यही कहा गया है कि "भलाई का बदला भलाई से और बुराई का बदला बुराई से दिया जाता है", तो फिर अभी क्यों नहीं? यदि तुम मेरा विरोध करना चाहते हो और मेरी आलोचना करना चाहते हो, तो मैं तुम्हारे मुँह को गला दूँगा, और उससे मुझे अपार प्रसन्नता होगी। ऐसा इसलिए है, क्योंकि आख़िरकार जो कुछ तुमने किया है, वह सत्य नहीं है, ज़िंदगी से उसका कुछ लेना-देना तो बिलकुल भी नहीं है, जबकि मैं जो कुछ करता हूँ, वह सत्य होता है; मेरी समस्त क्रियाएँ मेरे कार्य के सिद्धांतों और मेरे द्वारा निर्धारित प्रशासनिक आदेशों के लिए प्रासंगिक होती हैं। अत: मेरी तुम सभी से गुज़ारिश है कि कुछ गुण संचित करो, इतनी बुराई करना बंद करो, और अपने फुरसत के समय में मेरी माँगों पर ध्यान दो। तब मुझे ख़ुशी होगी। तुम लोग जितना प्रयास देह-सुख के लिए करते हो, उसका हज़ारवाँ हिस्सा भी सत्य के लिए योगदान (या दान) करो, तो मैं कहता हूँ कि तुम बहुधा अपराध नहीं करोगे और अपना मुँह भी नहीं गलवाओगे। क्या यह स्पष्ट नहीं है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपराध मनुष्य को नरक में ले जाएँगे
614. जीवधारियों में से एक होने के नाते, मनुष्य को अपनी स्थिति को बना कर रखना होगा और शुद्ध अंतःकरण से व्यवहार करना होगा। सृष्टिकर्ता के द्वारा तुम्हें जो कुछ सौंपा गया है, कर्तव्यनिष्ठा के साथ उसकी सुरक्षा करो। अनुचित ढंग से आचरण मत करो, या ऐसे काम न करो जो तुम्हारी क्षमता के दायरे से बाहर हों या जो परमेश्वर के लिए घृणित हों। महान या अद्भुत व्यक्ति बनने की चेष्टा मत करो, दूसरों से श्रेष्ठ होने की कोशिश मत करो, न ही परमेश्वर बनने की कोशिश करो। लोगों को ऐसा बनने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। महान या अद्भुत व्यक्ति बनने की कोशिश करना बेतुका है। परमेश्वर बनने की कोशिश करना और भी अधिक लज्जाजनक है; यह घृणित है और नीचता भरा है। जो काम तारीफ़ के काबिल है और जिसे प्राणियों को सब चीज़ों से ऊपर मानना चाहिए, वह है एक सच्चा जीवधारी बनना; यही वह एकमात्र लक्ष्य है जिसे पूरा करने का निरंतर प्रयास सब लोगों को करना चाहिए।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I
615. तुम लोगों में से प्रत्येक को अपना कर्तव्य अपनी पूरी क्षमता से, खुले और ईमानदार दिलों के साथ पूरा करना चाहिए, और जो भी कीमत ज़रूरी हो, उसे चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए। जैसा कि तुम लोगों ने कहा है, जब दिन आएगा, तो परमेश्वर ऐसे किसी भी व्यक्ति के प्रति लापरवाह नहीं रहेगा, जिसने उसके लिए कष्ट उठाए होंगे या कीमत चुकाई होगी। इस प्रकार का दृढ़ विश्वास बनाए रखने लायक है, और यह सही है कि तुम लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। केवल इसी तरह से मैं तुम लोगों के बारे में निश्चिंत हो सकता हूँ। वरना तुम लोगों के बारे में मैं कभी निश्चिंत नहीं हो पाऊँगा, और तुम हमेशा मेरी घृणा के पात्र रहोगे। अगर तुम सभी अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन सको और अपना सर्वस्व मुझे अर्पित कर सको, मेरे कार्य के लिए कोई कोर-कसर न छोड़ो, और मेरे सुसमाचार के कार्य के लिए अपनी जीवन भर की ऊर्जा अर्पित कर सको, तो क्या फिर मेरा हृदय तुम्हारे लिए अक्सरहर्ष से नहीं उछलेगा? इस तरह से मैं तुम लोगों के बारे में पूरी तरह से निश्चिंत हो सकूँगा, या नहीं?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, गंतव्य के बारे में
616. क्या तू "हर युग में परमेश्वर द्वारा व्यक्त स्वभाव" को ठोस ढंग से ऐसी भाषा में बता सकता है जो उपयुक्त तरीके से युग की सार्थकता को व्यक्त करे? क्या तू, जो अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को अनुभव करता है, परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का वर्णन विस्तार से कर सकता है? क्या तू स्पष्ट एवं सटीक ढंग से परमेश्वर के स्वभाव की गवाही दे सकता है? तू उन दयनीय, बेचारे और धार्मिकता के भूखे-प्यासे धर्मनिष्ठ विश्वासियों के साथ, जो तेरी देखरेख की आस लगाए बैठे हैं, अपने दर्शनों और अनुभवों को कैसे बांटेगा? किस प्रकार के लोग तेरी देखरेख की प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या तू सोच सकता है? क्या तू अपने कधों के बोझ, अपने आदेश और अपने उत्तरदायित्व से अवगत है? ऐतिहासिक मिशन का तेरा बोध कहाँ है? तू अगले युग में प्रधान के रूप में सही ढंग से काम कैसे करेगा? क्या तुझमें प्रधानता का प्रबल बोध है? तू समस्त पृथ्वी के प्रधान का वर्णन कैसे करेगा? क्या वास्तव में संसार के समस्त सजीव प्राणियों और सभी भौतिक वस्तुओं का कोई प्रधान है? कार्य के अगले चरण के विकास हेतु तेरे पास क्या योजनाएं हैं? तुझे चरवाहे के रूप में पाने हेतु कितने लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या तेरा कार्य काफी कठिन है? वे लोग दीन-दुखी, दयनीय, अंधे, भ्रमित, अंधकार में विलाप कर रहे हैं—मार्ग कहाँ है? उनमें टूटते तारे जैसी रोशनी के लिए कितनी ललक है जो अचानक नीचे आकर उन अंधकार की शक्तियों को तितर-बितर कर दे, जिन्होंने वर्षों से मनुष्यों का दमन किया है। कौन जान सकता है कि वे किस हद तक उत्सुकतापूर्वक आस लगाए बैठे हैं और कैसे दिन-रात इसके लिए लालायित रहते हैं? उस दिन भी जब रोशनी चमकती है, भयंकर कष्ट सहते, रिहाई से नाउम्मीद ये लोग, अंधकार में कैद रहते हैं; वे कब रोना बंद करेंगे? ये दुर्बल आत्माएँ बेहद बदकिस्मत हैं, जिन्हें कभी विश्राम नहीं मिला है। सदियों से ये इसी स्थिति में क्रूर बधंनों और अवरुद्ध इतिहास में जकड़े हुए हैं। उनकी कराहने की आवाज किसने सुनी है? किसने उनकी दयनीय दशा को देखा है? क्या तूने कभी सोचा है कि परमेश्वर का हृदय कितना व्याकुल और चिंतित है? जिस मानवजाति को उसने अपने हाथों से रचा, उस निर्दोष मानवजाति को ऐसी पीड़ा में दु:ख उठाते देखना वह कैसे सह सकता है? आखिरकार मानवजाति को विष देकर पीड़ित किया गया है। यद्यपि मनुष्य आज तक जीवित है, लेकिन कौन यह जान सकता था कि उसे लंबे समय से दुष्टात्मा द्वारा विष दिया गया है? क्या तू भूल चुका है कि शिकार हुए लोगों में से तू भी एक है? परमेश्वर के लिए अपने प्रेम की खातिर, क्या तू उन जीवित बचे लोगों को बचाने का इच्छुक नहीं है? क्या तू उस परमेश्वर को प्रतिफल देने के लिए अपना सारा ज़ोर लगाने को तैयार नहीं है जो मनुष्य को अपने शरीर और लहू के समान प्रेम करता है? सभी बातों को नज़र में रखते हुए, तू एक असाधारण जीवन व्यतीत करने के लिए परमेश्वर द्वारा प्रयोग में लाए जाने की व्याख्या कैसे करेगा? क्या सच में तुझमें एक धर्म-परायण, परमेश्वर-सेवी जैसा अर्थपूर्ण जीवन जीने का संकल्प और विश्वास है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुझे अपने भविष्य के मिशन पर कैसे ध्यान देना चाहिए?
617. तुम सृजित प्राणी हो—तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना और सार्थक जीवन का अनुसरण करना चाहिए। यदि तुम परमेश्वर की आराधना नहीं करते हो बल्कि अपनी अशुद्ध देह के भीतर रहते हो, तो क्या तुम बस मानव भेष में जानवर नहीं हो? चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। इस संसार में, मनुष्य शैतान का भेष धारण करता है, शैतान का दिया भोजन खाता है, और शैतान के अँगूठे के नीचे कार्य और सेवा करता है, उसकी गंदगी में पूरी तरह रौंदा जाता है। यदि तुम जीवन का अर्थ नहीं समझते हो या सच्चा मार्ग प्राप्त नहीं करते हो, तो इस तरह जीने का क्या महत्व है? तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2)
618. तुम लोगों को इस शांतिपूर्ण वातावरण में परमेश्वर से प्रेम करने का प्रयास करना चाहिए। भविष्य में तुम लोगों के पास परमेश्वर से प्रेम करने के और अधिक अवसर नहीं होंगे, क्योंकि लोगों के पास केवल देह में रहते हुए परमेश्वर से प्रेम करने का अवसर होता है; जब वे किसी दूसरे संसार में रहेंगे, तो कोई परमेश्वर से प्रेम करने की बात नहीं करेगा। क्या यह एक सृजित प्राणी की ज़िम्मेदारी नहीं है? और इसलिए तुम लोगों को अपने जीवन-काल के दौरान परमेश्वर से कैसे प्रेम करना चाहिए? क्या तुमने कभी इस बारे में सोचा है? क्या तुम परमेश्वर से प्रेम करने के लिए मर जाने के बाद का इंतज़ार कर रहे हो? क्या यह खोखली बात नहीं है? तुम आज ही परमेश्वर से प्रेम करने का प्रयास क्यों नहीं करते? क्या व्यस्त रहते हुए परमेश्वर से प्रेम करना परमेश्वर के प्रति सच्चा प्रेम हो सकता है? ऐसा कहने का कारण यह है कि परमेश्वर के कार्य का यह चरण जल्दी ही समाप्त हो जाएगा, क्योंकि परमेश्वर के पास पहले ही शैतान के सामने गवाही है। इसलिए, मनुष्य को कुछ भी करने की कोई आवश्यकता नहीं है; मनुष्य को केवल उन वर्षों में परमेश्वर से प्रेम करने के लिए कहा जा रहा है, जिनमें वह जीवित है—यह कुंजी है। चूँकि परमेश्वर की अपेक्षाएँ बहुत ऊँची नहीं हैं, और इसके अलावा, चूँकि उसके दिल में एक झुलसाने वाली बेचैनी है, इसलिए उसने कार्य के इस चरण के समाप्त होने से पहले ही कार्य के अगले चरण का सारांश प्रकट कर दिया है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि कितना समय बचा है; यदि परमेश्वर अपने दिल में इतना व्यग्र नहीं होता, तो क्या वह ये वचन इतनी जल्दी कहता? समय कम होने के कारण ही परमेश्वर इस तरह से कार्य करता है। आशा है कि तुम लोग अपने पूरे दिल से, अपने पूरे मस्तिष्क से, और अपनी पूरी शक्ति से परमेश्वर से प्रेम कर पाओगे, ठीक वैसे ही, जैसे तुम लोग अपने जीवन को सँजोते हो। क्या यह परम सार्थक जीवन नहीं है? जीवन का अर्थ तुम्हें और कहाँ मिल सकता है? क्या तुम बहुत अंधे नहीं हो रहे हो? क्या तुम परमेश्वर से प्रेम करने के लिए तैयार हो? क्या परमेश्वर मनुष्य के प्रेम के योग्य है? क्या लोग मनुष्य की आराधना के योग्य हैं? तो तुम्हें क्या करना चाहिए? परमेश्वर से बिना किसी संदेह के निडर होकर प्रेम करो, और देखो कि परमेश्वर तुम्हारे साथ क्या करेगा। देखो कि क्या वह तुम्हें मार डालता है? संक्षेप में, परमेश्वर से प्रेम करने का कार्य परमेश्वर के लिए नकल करने और लिखने के कार्य से अधिक महत्वपूर्ण है। तुम्हें उस चीज़ को पहला स्थान देना चाहिए, जो सबसे महत्वपूर्ण है, ताकि तुम्हारे जीवन का अधिक मूल्य हो और वह ख़ुशियों से भरा हो, और फिर तुम्हें अपने लिए परमेश्वर के "दंडादेश" की प्रतीक्षा करनी चाहिए। मैं सोचता हूँ कि क्या तुम्हारी योजना में परमेश्वर से प्रेम करना शामिल होगा? मैं चाहता हूँ कि हर व्यक्ति की योजनाएँ परमेश्वर द्वारा पूरी की जाएँ और वे सब साकार हो जाएँ।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 42
619. मनुष्य को अर्थपूर्ण जीवन जीने का प्रयास अवश्य करना चाहिए और उसे अपनी वर्तमान परिस्थितियों से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। पतरस की छवि के अनुरूप अपना जीवन जीने के लिए, उसमें पतरस के ज्ञान और अनुभवों का होना जरूरी है। मनुष्य को ज़्यादा ऊँची और गहन चीजों के लिए अवश्य प्रयास करना चाहिए। उसे परमेश्वर को अधिक गहराई एवं शुद्धता से प्रेम करने का, और एक ऐसा जीवन जीने का प्रयास अवश्य करना चाहिए जिसका कोई मोल हो और जो सार्थक हो। सिर्फ यही जीवन है; तभी मनुष्य पतरस जैसा बन पाएगा। तुम्हें सकारात्मक तरीके से प्रवेश के लिए सक्रिय होने पर ध्यान देना चाहिए, और अधिक गहन, विशिष्ट और व्यावहारिक सत्यों को नजरअंदाज करते हुए क्षणिक आराम के लिए पीछे नहीं हट जाना चाहिए। तुम्हारा प्रेम व्यावहारिक होना चाहिए, और तुम्हें जानवरों जैसे इस निकृष्ट और बेपरवाह जीवन को जीने के बजाय स्वतंत्र होने के रास्ते ढूँढ़ने चाहिए। तुम्हें एक ऐसा जीवन जीना चाहिए जो अर्थपूर्ण हो और जिसका कोई मोल हो; तुम्हें अपने-आपको मूर्ख नहीं बनाना चाहिए या अपने जीवन को एक खिलौना नहीं समझना चाहिए। परमेश्वर से प्रेम करने की चाह रखने वाले व्यक्ति के लिए कोई भी सत्य अप्राप्य नहीं है, और ऐसा कोई न्याय नहीं जिस पर वह अटल न रह सके। तुम्हें अपना जीवन कैसे जीना चाहिए? तुम्हें परमेश्वर से कैसे प्रेम करना चाहिए और इस प्रेम का उपयोग करके उसकी इच्छा को कैसे संतुष्ट करना चाहिए? तुम्हारे जीवन में इससे बड़ा कोई मुद्दा नहीं है। सबसे बढ़कर, तुम्हारे अंदर ऐसी आकांक्षा और कर्मठता होनी चाहिए, न कि तुम्हें एक रीढ़विहीन और निर्बल प्राणी की तरह होना चाहिए। तुम्हें सीखना चाहिए कि एक अर्थपूर्ण जीवन का अनुभव कैसे किया जाता है, तुम्हें अर्थपूर्ण सत्यों का अनुभव करना चाहिए, और अपने-आपसे लापरवाही से पेश नहीं आना चाहिए। यह अहसास किए बिना, तुम्हारा जीवन तुम्हारे हाथ से निकल जाएगा; क्या उसके बाद तुम्हें परमेश्वर से प्रेम करने का दूसरा अवसर मिलेगा? क्या मनुष्य मरने के बाद परमेश्वर से प्रेम कर सकता है? तुम्हारे अंदर पतरस के समान ही आकांक्षाएँ और चेतना होनी चाहिए; तुम्हारा जीवन अर्थपूर्ण होना चाहिए, और तुम्हें अपने साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए! एक मनुष्य के रूप में, और परमेश्वर का अनुसरण करने वाले एक व्यक्ति के रूप में, तुम्हें इस योग्य होना होगा कि तुम बहुत ध्यान से यह विचार कर सको कि तुम्हें अपने जीवन के साथ कैसे पेश आना चाहिए, तुम्हें अपने-आपको परमेश्वर के सम्मुख कैसे अर्पित करना चाहिए, तुममें परमेश्वर के प्रति और अधिक अर्थपूर्ण विश्वास कैसे होना चाहिए और चूँकि तुम परमेश्वर से प्रेम करते हो, तुम्हें उससे कैसे प्रेम करना चाहिए कि वह ज्यादा पवित्र, ज्यादा सुंदर और बेहतर हो।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान
620. परमेश्वर की मनुष्य से, और जो उसका अनुसरण करते हैं उनसे, सही अपेक्षाएँ निम्नानुसार हैं। परमेश्वर की उनसे पाँच अपेक्षाएँ हैं जो उसका अनुसरण करते हैं: सच्चा विश्वास, निष्ठापूर्ण अनुकरण, पूर्ण समर्पण, सच्चा ज्ञान और हार्दिक आदर।
इन पाँच बातों में, परमेश्वर चाहता है कि लोग उससे अब और प्रश्न न करें, और न ही अपनी कल्पना या अस्पष्ट और अमूर्त दृष्टिकोण का उपयोग करके उसका अनुसरण करें; उन्हें किन्हीं भी कल्पनाओं या धारणाओं के साथ परमेश्वर का अनुसरण कतई नहीं करना चाहिए। परमेश्वर चाहता है कि जो उसका अनुसरण करते हैं, वे सभी ऐसा पूरी वफादारी से करें, आधे-अधूरे मन से या बिना किसी प्रतिबद्धता के नहीं करें। जब परमेश्वर तुमसे कोई अपेक्षा करता है, या तुम्हारा परीक्षण करता है, तुमसे निपटता या तुम्हें तराशता है, या तुम्हें अनुशासित करता और दंड देता है, तो तुम्हें पूर्ण रूप से उसके प्रति समर्पण कर देना चाहिए। तुम्हें कारण नहीं पूछना चाहिए, या शर्तें नहीं रखनी चाहिए, और तुम्हें तर्क तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए। तुम्हारी आज्ञाकारिता चरम होनी चाहिए। परमेश्वर का ज्ञान एक ऐसा क्षेत्र है जिसका लोगों में सबसे ज़्यादा अभाव है। वे अक्सर परमेश्वर पर ऐसी कहावतों, कथनों, और वचनों को थोपते हैं जो उससे संबंधित नहीं होते, ऐसा विश्वास करते हैं कि ये वचन परमेश्वर के ज्ञान की सबसे सही परिभाषा हैं। उन्हें बहुत थोड़ा सा पता है कि ये कहावतें, जो लोगों की कल्पनाओं से आती हैं, उनके अपने तर्क, और अपने ज्ञान से आती हैं, उनका परमेश्वर के सार से ज़रा सा भी सम्बन्ध नहीं है। इस प्रकार, मैं तुम लोगों को बताना चाहता हूँ कि जब उस ज्ञान की बात आती है जो परमेश्वर चाहता है कि लोगों में हो, वह मात्र यह नहीं कहता कि तुम उसे और उसके वचनों को पहचानो, बल्कि यह कि परमेश्वर का तुम्हारा ज्ञान सही हो। भले ही तुम केवल एक वाक्य बोल सको, या केवल थोड़ा सा ही जानते हो, तो यह थोड़ा सा जानना सही और सच्चा हो, और स्वयं परमेश्वर के सार के अनुकूल हो। ऐसा इसलिए क्योंकि परमेश्वर लोगों की अवास्तविक और अविवेकी स्तुति और सराहना से घृणा करता है। उससे भी अधिक, जब लोग उससे हवा की तरह बर्ताव करते हैं तो वह इससे घृणा करता है। जब परमेश्वर के बारे में विषयों की चर्चा के दौरान, लोग तथ्यों की परवाह न करते हुए बात करते हैं, जैसा चाहे वैसा और बेझिझक बोलते हैं, जैसा उन्हें ठीक लगे वैसा बोलते हैं तो वह इससे घृणा करता है; इसके अलावा, वह उनसे नफ़रत करता है जो यह मानते हैं कि वे परमेश्वर को जानते हैं, और उससे संबन्धित अपने ज्ञान के बारे में डींगे मारते हैं, उससे संबन्धित विषयों पर बिना किसी रुकावट या विचार किए चर्चा करते हैं। ऊपर उल्लिखित पाँच अपेक्षाओं में से अंतिम अपेक्षा हार्दिक आदर करना थी: यह परमेश्वर की उनसे परम अपेक्षा है जो उसका अनुसरण करते हैं। जब किसी को परमेश्वर का सही और सच्चा ज्ञान होता है, तो वह परमेश्वर का सच में आदर करने और बुराई से दूर रहने में सक्षम होता है। यह आदर उसके हृदय की गहराई से आता है; यह आदर स्वैच्छिक दिया जाता है, और परमेश्वर द्वारा डाले गए दबाव के परिणामस्वरूप नहीं। परमेश्वर यह नहीं कहता कि तुम उसे किसी अच्छी प्रवृत्ति, या आचरण, या बाहरी व्यवहार का कोई उपहार दो; उसके बजाय, वह कहता है कि तुम अपने हृदय की गहराई से उसका आदर करो और उससे डरो। यह आदर तुम्हारे जीवन स्वभाव में बदलाव, परमेश्वर का ज्ञान और परमेश्वर के कर्मों की समझ प्राप्त करने, परमेश्वर का सार समझने और तुम्हारे द्वारा इस तथ्य को स्वीकार करने के परिणामस्वरूप आता है कि तुम परमेश्वर के प्राणियों में से एक हो। इसलिए, आदर को समझाने के लिए "हार्दिक" शब्द का उपयोग करने का मेरा लक्ष्य यह है कि मनुष्य समझे कि परमेश्वर के लिए उनका आदर उनके हृदय की गहराई से आना चाहिए।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X
621. अब तुम सभी लोगों को अपने अंदर यथाशीघ्र झांककर देखना चाहिए कि तुम लोगों के अंदर मेरे प्रति कितना विश्वासघात बाक़ी है। मैं उत्सुकता से तुम्हारी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। मेरे साथ अपने व्यवहार में लापरवाह मत होना। मैं कभी भी लोगों के साथ खेल नहीं खेलता हूँ। यदि मैं कहता हूँ कि मैं कुछ करूँगा तो मैं निश्चित रूप से ऐसा करूँगा। मुझे आशा है कि तुम सभी ऐसे लोग हो सकते हो जो मेरे वचनों को गंभीरता से लेते हो और यह नहीं सोचते हो कि वे मात्र वैज्ञानिक कपोल कथाएँ हैं। मैं तुम लोगों से एक ठोस कार्रवाई चाहता हूँ, न कि तुम लोगों की कल्पनाएँ। इसके बाद, तुम लोगों को मेरे प्रश्नों के उत्तर देने होंगे, जो इस प्रकार हैं : 1. यदि तुम सचमुच में सेवा करने वाले हो, तो क्या तुम बिना किसी लापरवाही या नकारात्मक तत्वों के निष्ठापूर्वक मुझे सेवा प्रदान कर सकते हो? 2. यदि तुम्हें पता चले कि मैंने कभी भी तुम्हारी सराहना नहीं की है, तो क्या तब भी तुम जीवन भर टिके रह कर मुझे सेवा प्रदान कर पाओगे? 3. यदि तुमने मेरी ख़ातिर बहुत सारे प्रयास किए हैं लेकिन मैं तब भी तुम्हारे प्रति बहुत रूखा रहूँ, तो क्या तुम गुमनामी में भी मेरे लिए कार्य करना जारी रख पाओगे? 4. यदि, तुम्हारे द्वारा मेरे लिए खर्च करने के बाद भी मैंने तुम्हारी तुच्छ माँगों को पूरा नहीं किया, तो क्या तुम मेरे प्रति निरुत्साहित और निराश हो जाओगे या यहाँ तक कि क्रोधित होकर गालियाँ भी बकने लगोगे? 5. यदि तुम हमेशा मेरे प्रति बहुत निष्ठावान रहे हो, मेरे लिए तुममें बहुत प्रेम है, मगर फिर भी तुम बीमारी, दरिद्रता, और अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के द्वारा त्यागे जाने की पीड़ा को भुगतते हो या जीवन में किसी भी अन्य दुर्भाग्य को सहन करते हो, तो क्या तब भी मेरे लिए तुम्हारी निष्ठा और प्यार बना रहेगा? 6. यदि मैने जो किया है उसमें से कुछ भी उससे मेल नहीं खाता है जिसकी तुमने अपने हृदय में कल्पना की है, तो तुम अपने भविष्य के मार्ग पर कैसे चलोगे? 7. यदि तुम्हें वह कुछ भी प्राप्त नहीं होता है जो तुमने प्राप्त करने की आशा की थी, तो क्या तुम मेरे अनुयायी बने रह सकते हो? 8. यदि तुम्हें मेरे कार्य का उद्देश्य और महत्व कभी भी समझ में नहीं आए हों, तो क्या तुम ऐसे आज्ञाकारी व्यक्ति हो सकते हो जो मनमाने निर्णय और निष्कर्ष नहीं निकालता हो? 9. मानवजाति के साथ रहते समय, मैंने जो वचन कहे हैं और मैंने जो कार्य किए हैं उन सभी को क्या तुम संजोए रख सकते हो? 10. यदि तुम कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाते हो, तो भी क्या तुम मेरे निष्ठावान अनुयायी बने रहने में सक्षम हो, और आजीवन मेरे लिए कष्ट भुगतने को तैयार हो? 11. क्या तुम मेरे वास्ते भविष्य में अपने जीने के मार्ग पर विचार न करने, योजना न बनाने या तैयारी न करने में सक्षम हो? ये प्रश्न तुम लोगों से मेरी अंतिम अपेक्षाओं को दर्शाते हैं, और मुझे आशा है कि तुम सभी लोग मुझे उत्तर दे सकते हो।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (2)
622. अब मैं तुम्हारी निष्ठा और आज्ञाकारिता, तुम्हारा प्रेम और गवाही चाहता हूँ। यहाँ तक कि अगर तुम इस समय नहीं जानते कि गवाही क्या होती है या प्रेम क्या होता है, तो तुम्हें अपना सब-कुछ मेरे पास ले आना चाहिए और जो एकमात्र खजाना तुम्हारे पास है : तुम्हारी निष्ठा और आज्ञाकारिता, उसे मुझे सौंप देना चाहिए। तुम्हें जानना चाहिए कि मेरे द्वारा शैतान को हराए जाने की गवाही मनुष्य की निष्ठा और आज्ञाकारिता में निहित है, साथ ही मनुष्य के ऊपर मेरी संपूर्ण विजय की गवाही भी। मुझ पर तुम्हारे विश्वास का कर्तव्य है मेरी गवाही देना, मेरे प्रति वफादार होना, और किसी और के प्रति नहीं, और अंत तक आज्ञाकारी बने रहना। इससे पहले कि मैं अपने कार्य का अगला चरण आरंभ करूँ, तुम मेरी गवाही कैसे दोगे? तुम मेरे प्रति वफादार और आज्ञाकारी कैसे बने रहोगे? तुम अपने कार्य के प्रति अपनी सारी निष्ठा समर्पित करते हो या उसे ऐसे ही छोड़ देते हो? इसके बजाय तुम मेरे प्रत्येक आयोजन (चाहे वह मृत्यु हो या विनाश) के प्रति समर्पित हो जाओगे या मेरी ताड़ना से बचने के लिए बीच रास्ते से ही भाग जाओगे? मैं तुम्हारी ताड़ना करता हूँ ताकि तुम मेरी गवाही दो, और मेरे प्रति निष्ठावान और आज्ञाकारी बनो। इतना ही नहीं, ताड़ना वर्तमान में मेरे कार्य के अगले चरण को प्रकट करने के लिए और उस कार्य को निर्बाध आगे बढ़ने देने के लिए है। अतः मैं तुम्हें समझाता हूँ कि तुम बुद्धिमान हो जाओ और अपने जीवन या अस्तित्व के महत्व को बेकार रेतकी तरह मत समझो। क्या तुम सही-सही जान सकते हो कि मेरा आने वाला काम क्या होगा? क्या तुम जानते हो कि आने वाले दिनों में मैं किस तरह काम करूँगा और मेरा कार्य किस तरह प्रकट होगा? तुम्हें मेरे कार्य के अपने अनुभव का महत्व और साथ ही मुझ पर अपने विश्वास का महत्व जानना चाहिए। मैंने इतना कुछ किया है; मैं उसे बीच में कैसे छोड़ सकता हूँ, जैसा कि तुम सोचते हो? मैंने ऐसा व्यापक काम किया है; मैं उसे नष्ट कैसे कर सकता हूँ? निस्संदेह, मैं इस युग को समाप्त करने आया हूँ। यह सही है, लेकिन इससे भी बढ़कर तुम्हें जानना चाहिए कि मैं एक नए युग का आरंभ करने वाला हूँ, एक नया कार्य आरंभ करने के लिए, और, सबसे बढ़कर, राज्य के सुसमाचार को फैलाने के लिए। अतः तुम्हें जानना चाहिए कि वर्तमान कार्य केवल एक युग का आरंभ करने और आने वाले समय में सुसमाचार को फैलाने की नींव डालने तथा भविष्य में इस युग को समाप्त करने के लिए है। मेरा कार्य उतना सरल नहीं है जितना तुम समझते हो, और न ही वैसा बेकार और निरर्थक है, जैसा तुम्हें लग सकता है। इसलिए, मैं अब भी तुमसे कहूँगा : तुम्हें मेरे कार्य के लिए अपना जीवन देना ही होगा, और इतना ही नहीं, तुम्हें मेरी महिमा के लिए अपने आपको समर्पित करना हगा। लंबे समय से मैं उत्सुक हूँ कि तुम मेरी गवाही दो, और इससे भी बढ़कर, लंबे समय से मैं उत्सुक हूँ कि तुम सुसमाचार फैलाओ। तुम्हें समझना ही होगा कि मेरे हृदय में क्या है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विश्वास के बारे में क्या जानते हो?