910 मरे हुए को जीवित करने का परमेश्वर का अधिकार

1 जब प्रभु यीशु ने लाज़र को पुनर्जीवित किया, तो उसने इन वचनों का उपयोग किया : "हे लाज़र, निकल आ!" उसने इसके अलावा कुछ नहीं कहा। तो ये वचन क्या दर्शाते हैं? ये दर्शाते हैं कि परमेश्वर बोलने के द्वारा कुछ भी कर सकता है, जिसमें एक मरे हुए व्यक्ति को पुनर्जीवित करना भी शामिल है। जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों का सृजन किया, जब उसने संसार बनाया, तो उसने ऐसा अपने वचनों—मौखिक आज्ञाओं, अधिकार-युक्त वचनों का उपयोग करके ही किया था, और सभी चीज़ों का सृजन इसी तरह हुआ था, और यह कार्य इसी तरह संपन्न हुआ था।

2 प्रभु यीशु द्वारा कहे गए ये कुछ वचन परमेश्वर द्वारा उस समय कहे गए वचनों के समान थे, जब उसने आकाश और पृथ्वी और सभी चीज़ों का सृजन किया था; वे उसी तरह से परमेश्वर का अधिकार और सृजनकर्ता का सामर्थ्य रखते थे। परमेश्वर के मुँह से निकले वचनों की वजह से सभी चीज़ें बनीं और कायम रहीं, और बिलकुल वैसे ही प्रभु यीशु के मुँह से निकले वचनों के करण लाज़र अपनी क़ब्र से बाहर आ गया। यह परमेश्वर का अधिकार था, जो उसके द्वारा धारित देह में प्रदर्शित और साकार हुआ था। इस प्रकार का अधिकार और क्षमता सृजनकर्ता की और मनुष्य के उस पुत्र की है, जिसमें सृजनकर्ता साकार हुआ था। लाज़र को पुनर्जीवित करके परमेश्वर द्वारा मानवजाति को यही समझ सिखाई गई है।

3 जब प्रभु यीशु ने मृत लाज़र को पुनर्जीवित करने जैसी चीज़ें कीं, तो उसका उद्देश्य मनुष्यों और शैतान के देखने के लिए प्रमाण देना, और मनुष्य और शैतान को यह ज्ञात करवाना था कि मानवजाति से संबंधित सभी चीज़ें, मानवजाति का जीवन और उसकी मृत्यु परमेश्वर द्वारा निर्धारित की जाती हैं, और कि भले ही वह देहधारी हो गया था, फिर भी इस भौतिक संसार का, जिसे देखा जा सकता है, और साथ ही आध्यात्मिक संसार का भी, जिसे मनुष्य नहीं देख सकते, वही नियंत्रक था। यह इसलिए था, ताकि मनुष्य और शैतान जान लें कि मानवजाति से संबंधित कुछ भी शैतान के नियंत्रण में नहीं है। यह परमेश्वर के अधिकार का प्रकाशन और प्रदर्शन था, और यह सभी चीज़ों को यह संदेश देने का परमेश्वर का एक तरीका भी था कि मानवजाति का जीवन और मृत्यु परमेश्वर के हाथों में है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III से रूपांतरित

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