162 ख़ामोशी से आता है हमारे मध्य परमेश्वर

1

मौन है परमेश्वर, सामने हमारे कभी प्रकट हुआ नहीं,

फिर भी कार्य उसका कभी रुका नहीं।

नज़र रखता है पूरी धरती पर, नियंत्रित करता है हर चीज़ को।

देखता है इंसान के सभी शब्दों को और काम को।

उसकी योजना के मुताबिक पूरा होता है धीरे-धीरे उसका प्रबंधन।

ख़ामोश, मगर बढ़ते हैं इंसान के करीब उसके कदम।

न्याय-पीठ उसकी तैनात होती है कायनात में,

उसके बाद होता है अवरोहण उसके सिंहासन का हमारे मध्य में,

उसके सिंहासन का हमारे मध्य में।


2

कैसा शानदार, भव्य और गंभीर नज़ारा है।

कपोत और सिंह के मानिंद, आत्मा का आगमन होता है।

सचमुच बुद्धिमान है, धार्मिक है, प्रतापी है वो।

अधिकार सहित, प्रेम और करुणा से भरपूर है वो।

उसकी योजना के मुताबिक पूरा होता है धीरे-धीरे उसका प्रबंधन।

ख़ामोश, मगर बढ़ते हैं इंसान के करीब उसके कदम, उसके कदम।

न्याय-पीठ उसकी तैनात होती है कायनात में,

उसके बाद होता है अवरोहण उसके सिंहासन का हमारे मध्य में,

उसके बाद होता है अवरोहण उसके सिंहासन का हमारे मध्य में।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 4: परमेश्वर के प्रकटन को उसके न्याय और ताड़ना में देखना से रूपांतरित

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