865 परमेश्वर मनुष्य की दुष्टता और भ्रष्टता से दुखी है
1 जब परमेश्वर देहधारी बनता है, तो एक औसत, सामान्य व्यक्ति बन कर, मनुष्यजाति के बीच, लोगों के आसपास रह कर, क्या वह लोगों के जीने के तरीकों, व्यवस्थाओं, और फ़लसफ़ों को देख नहीं सकता है और महसूस नहीं कर सकता है? जीने के लिए मनुष्यजाति की पद्धतियों, नियमों इत्यादि के लिए—यह सब कुछ शैतान की तर्क, ज्ञान, और फ़लसफ़े पर सृजित है। इस प्रकार की व्यवस्थाओं के अधीन जीने वाले मनुष्यों में कोई मानवता, कोई सच्चाई नहीं होती है—वे सभी सत्य की उपेक्षा करते हैं, और परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण हैं। यदि हम परमेश्वर के सार पर एक नज़र डालें, तो हम देखते हैं कि उसका सार शैतान के तर्क, ज्ञान, और फ़लसफ़े के ठीक विपरीत है। उसका सार धार्मिकता, सत्य, और पवित्रता, और सभी सकारात्मक चीज़ों की अन्य वास्तविकताओं से भरा हुआ है। परमेश्वर, जो इस सार को धारण किए हुए है और ऐसी मनुष्यजाति के बीच रहता है—वह अपने हृदय में क्या सोचता है? क्या वह दर्द से भरा हुआ नहीं है? उसके हृदय में दर्द है, और यह दर्द कुछ ऐसा है जिसे कोई इंसान समझ नहीं सकता है या अनुभव नहीं कर सकता है।
2 क्योंकि सब कुछ जिसका वह सामना करता है, मुक़ाबला करता है, जिसे सुनता, देखता, और अनुभव करता है वह सब मनुष्यजाति की भ्रष्टता, दुष्टता, और सत्य के विरुद्ध उनका विद्रोह और सत्य के प्रति प्रतिरोध है। जो कुछ मनुष्यों से आता है वह उसकी पीड़ा का स्रोत है। अर्थात्, क्योंकि उसका सार भ्रष्ट मनुष्यों के समान नहीं है, इसलिए मनुष्यों की भ्रष्टता उसकी सबसे बड़ी पीड़ा का स्रोत बन जाती है। जब परमेश्वर देह बनता है, तो क्या वह ऐसे किसी को ढूँढ़ पाता है जो उसके साथ एक सामान्य भाषा साझा करता है? ऐसा मनुष्यजाति में नहीं पाया जा सकता है। ऐसे किसी को भी नहीं पाया जा सकता है जो परमेश्वर के साथ संवाद कर सकता हो, इस प्रकार आदान प्रदान कर सकता हो—तो तुम क्या कहोगे कि परमेश्वर को कैसा महसूस होता है? जिन चीज़ों के बारे में लोग चर्चा करते हैं, जिनसे वे प्रेम करते हैं, जिनके पीछे वे भागते हैं और जिनकी वे लालसा करते हैं वे सभी पाप से, और दुष्ट प्रवृतियों से जुड़ी हुई हैं। परमेश्वर इन सबका सामना करता है, तो क्या यह उसके हृदय में एक कटार के समान नहीं है? इन चीज़ों का सामना करके, क्या उसे अपने हृदय में आनन्द मिल सकता है? क्या वह सान्त्वना पा सकता है? जो उसके साथ रह रहें हैं वे विद्रोहशीलता और दुष्टता से भरे हुए मनुष्य हैं—तो उसका हृदय पीड़ित कैसे नहीं हो सकता है?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III" से रूपांतरित