963 परमेश्वर कोई अपमान बर्दाश्त नहीं करता है
ईश्वर का धार्मिक स्वभाव समझने के लिए,
समझनी होंगी उसकी भावनाएं:
किस चीज़ से घृणा करे, किससे प्रेम
किस पर बरसाए दया।
1
ईश्वर लोगों से प्यार तो करे, प्रेम, दया
और सहनशीलता भी दिखाए,
पर लाड़ से उन्हें बिगाड़े नहीं;
उसके सिद्धांत और सीमाएं हैं।
उसके प्रेम को तुमने
कितनी ही गहराई से महसूस किया हो,
पर ईश्वर से इंसान की तरह पेश न आना,
नहीं तो तुमसे छुप जाएगा, तुम्हें त्याग देगा वो।
ये सच है कि ईश्वर इंसान को अपना करीबी माने,
पर अगर तुम उसे कोई सृजित वस्तु मानो,
उसे दोस्त या आराधना की वस्तु जानो,
तो तुमसे छिप जाएगा, तुम्हें त्याग देगा वो।
ये है उसका स्वभाव, और इस बात को
लापरवाही से मत लो।
ये समझना चाहिए कि ईश्वर कितना भी स्नेही हो,
लोगों के लिए उसमें कितनी भी दया और प्रेम हो,
ईश्वर बर्दाश्त न करे अपनी हैसियत और
गरिमा का अपमान करने वालों को।
2
ईश-वचनों में उसके स्वभाव के बारे में कहा है:
चाहे कितना भी काम किया हो तुमने,
उसके लिए कितना भी कष्ट सहा हो,
पर उसका अपमान किया तो प्रतिफल मिलेगा।
जब कोई ईश्वर का अपमान करे, तो शायद ये
न हो एक घटना से, उसकी कही एक बात से,
बल्कि हो उसके रवैये
और उसकी दशा के कारण।
ये बात बड़ी डरावनी है।
मत भूलो, ईश्वर लोगों से कैसे भी पेश आए,
उसका स्थान, अधिकार और हैसियत नहीं बदलते।
इंसान के लिए ईश्वर हमेशा है सृष्टिकर्ता, सबका प्रभु।
ये समझना चाहिए कि ईश्वर कितना भी स्नेही हो,
लोगों के लिए उसमें कितनी भी दया और प्रेम हो,
ईश्वर बर्दाश्त न करे अपनी हैसियत और
गरिमा का अपमान करने वालों को।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VII से रूपांतरित