382 तुम्हारा अंत क्या होगा?
Ⅰ
सभी चीज़ों का अंत निकट है,
स्वर्ग-धरा अंत के पास हैं।
अपने अस्तित्व के अंत से
इंसान कैसे बच सके?
ईश्वर का आदर करने वाले,
उसके प्रकटन को तरसते लोग
उसके धार्मिक प्रकटन के दिन को
कैसे न देख सकें?
Ⅱ
उन्हें उनकी अच्छाई का
आख़िरी इनाम कैसे न मिलेगा?
तुम करते हो अच्छाई या करते तुम बुराई?
धार्मिक न्याय स्वीकार कर
क्या बनते हो आज्ञाकारी?
या इसे स्वीकार कर होते हो शापित?
क्या ईश-न्याय के सिंहासन के
प्रकाश में जिए हो तुम?
या अधोलोक के अंधकार में जीते रहे हो?
तुम्हें मिलेगा इनाम या सज़ा,
कौन जाने ये तुमसे अच्छा?
ईश्वर धार्मिक है,
क्या ये तुम नहीं जानते अच्छे से?
तो तुम्हारा आचरण और दिल कैसा है?
कितना त्यागा है तुमने ईश्वर के लिए?
कितनी गहराई से पूजते हो उसे?
क्या नहीं जानते अच्छे से
उससे कैसा व्यवहार करते तुम?
क्या अंत होगा तुम्हारा
ये तुमसे अच्छा कोई न जाने।
Ⅲ
ईश्वर ने बनाया इंसान,
उसी ने बनाया तुम्हें भी,
उसने तुमसे अपना विरोध न कराया,
बागी न बनाया, दंड के लिए मजबूर न किया,
शैतान के हवाले न किया।
क्या ये कष्ट इसलिए नहीं कि
तुम्हारा दिल बड़ा कठोर है
तुम्हारा आचरण घिनौना है?
तो तुम्हारा आचरण और दिल कैसा है?
कितना त्यागा है तुमने ईश्वर के लिए?
कितनी गहराई से पूजते हो उसे?
क्या नहीं जानते अच्छे से
उससे कैसा व्यवहार करते तुम?
क्या अंत होगा तुम्हारा
ये तुमसे अच्छा कोई न जाने।
क्या अपने अंत का फैसला
तुम खुद नहीं करते?
क्या अपना अंत नहीं जानते
दिल-ही-दिल में?
लोगों को जीते ईश्वर ताकि
उन्हें उजागर करे, उनका उद्धार करे।
तुमसे ये बुराई कराने के लिए नहीं,
तबाही के नर्क में ले जाने के लिए नहीं।
आख़िर तुम्हारे सारे कष्ट, सारा रोना
क्या तुम्हारे पापों की वजह से नहीं?
तो तुम्हारा आचरण और दिल कैसा है?
कितना त्यागा है तुमने ईश्वर के लिए?
कितनी गहराई से पूजते हो उसे?
क्या नहीं जानते अच्छे से
उससे कैसा व्यवहार करते तुम?
क्या अंत होगा तुम्हारा
ये तुमसे अच्छा कोई न जाने।
क्या तुम्हारी अपनी अच्छाई, अपनी बुराई
तुम्हारा सर्वोत्तम न्याय नहीं?
तुम्हारा अंत क्या होगा,
इसका सबसे अच्छा सबूत नहीं?
— 'वचन देह में प्रकट होता है' से रूपांतरित