10.4. न्याय और ताड़ना, परीक्षण और शुद्धिकरण से कैसे गुज़रें पर
366. युग का समापन करने के अपने अंतिम कार्य में, परमेश्वर का स्वभाव ताड़ना और न्याय का है, जिसमें वह वो सब प्रकट करता है जो अधार्मिक है, ताकि वह सार्वजनिक रूप से सभी लोगों का न्याय कर सके और उन लोगों को पूर्ण बना सके, जो सच्चे दिल से उसे प्यार करते हैं। केवल इस तरह का स्वभाव ही युग का समापन कर सकता है। अंत के दिन पहले ही आ चुके हैं। सृष्टि की सभी चीज़ें उनके प्रकार के अनुसार अलग की जाएँगी और उनकी प्रकृति के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित की जाएँगी। यही वह क्षण है, जब परमेश्वर लोगों के परिणाम और उनकी मंज़िल प्रकट करता है। यदि लोग ताड़ना और न्याय से नहीं गुज़रते, तो उनकी अवज्ञा और अधार्मिकता को उजागर करने का कोई तरीका नहीं होगा। केवल ताड़ना और न्याय के माध्यम से ही सभी सृजित प्राणियों का परिणाम प्रकट किया जा सकता है। मनुष्य केवल तभी अपने वास्तविक रंग दिखाता है, जब उसे ताड़ना दी जाती है और उसका न्याय किया जाता है। बुरे को बुरे के साथ रखा जाएगा, भले को भले के साथ, और समस्त मनुष्यों को उनके प्रकार के अनुसार अलग किया जाएगा। ताड़ना और न्याय के माध्यम से सभी सृजित प्राणियों का परिणाम प्रकट किया जाएगा, ताकि बुरे को दंडित किया जा सके और अच्छे को पुरस्कृत किया जा सके, और सभी लोग परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन हो जाएँ। यह समस्त कार्य धार्मिक ताड़ना और न्याय के माध्यम से पूरा करना होगा। चूँकि मनुष्य की भ्रष्टता अपने चरम पर पहुँच गई है और उसकी अवज्ञा अत्यंत गंभीर हो गई है, इसलिए केवल परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव ही, जो मुख्यत: ताड़ना और न्याय से संयुक्त है और अंत के दिनों में प्रकट होता है, मनुष्य को रूपांतरित कर सकता है और उसे पूर्ण बना सकता है। केवल यह स्वभाव ही बुराई को उजागर कर सकता है और इस तरह सभी अधार्मिकों को गंभीर रूप से दंडित कर सकता है। इसलिए, इसी तरह का स्वभाव युग के महत्व के साथ व्याप्त होता है, और प्रत्येक नए युग के कार्य की खातिर उसके स्वभाव का प्रकटन और प्रदर्शन अभिव्यक्त किया जाता है। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर अपने स्वभाव को मनमाने और निरर्थक ढंग से प्रकट करता है। मान लो अगर, अंत के दिनों के दौरान मनुष्य का परिणाम प्रकट करने में परमेश्वर अभी भी मनुष्य पर असीम करुणा बरसाता रहता और उससे प्रेम करता रहता, उसे धार्मिक न्याय के अधीन करने के बजाय उसके प्रति सहिष्णुता, धैर्य और क्षमा दर्शाता रहता, और उसे माफ़ करता रहता, चाहे उसके पाप कितने भी गंभीर क्यों न हों, उसे रत्ती भर भी धार्मिक न्याय के अधीन न करता : तो फिर परमेश्वर के समस्त प्रबंधन का समापन कब होता? कब इस तरह का कोई स्वभाव सही मंज़िल की ओर मानवजाति की अगुआई करने में सक्षम होगा? उदाहरण के लिए, एक ऐसे न्यायाधीश को लो, जो हमेशा प्रेममय है, एक उदार चेहरे और सौम्य हृदय वाला न्यायाधीश। वह लोगों को उनके द्वारा किए गए अपराधों के बावजूद प्यार करता है, और वह उनके प्रति प्रेममय और सहिष्णु रहता है, चाहे वे कोई भी हों। ऐसी स्थिति में, वह कब न्यायोचित निर्णय पर पहुँचने में सक्षम होगा? अंत के दिनों के दौरान, केवल धार्मिक न्याय ही मनुष्यों को उनके प्रकार के अनुसार पृथक् कर सकता है और उन्हें एक नए राज्य में ला सकता है। इस तरह, परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के धार्मिक स्वभाव के माध्यम से समस्त युग का अंत किया जाता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)
367. मनुष्य को छुटकारा दिए जाने से पहले शैतान के बहुत-से ज़हर उसमें पहले ही डाल दिए गए थे, और हज़ारों वर्षों तक शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद मनुष्य के भीतर ऐसा स्थापित स्वभाव है, जो परमेश्वर का विरोध करता है। इसलिए, जब मनुष्य को छुटकारा दिलाया गया है, तो यह छुटकारे के उस मामले से बढ़कर कुछ नहीं है, जिसमें मनुष्य को एक ऊँची कीमत पर खरीदा गया है, किंतु उसके भीतर की विषैली प्रकृति समाप्त नहीं की गई है। मनुष्य को, जो कि इतना अशुद्ध है, परमेश्वर की सेवा करने के योग्य होने से पहले एक परिवर्तन से होकर गुज़रना चाहिए। न्याय और ताड़ना के इस कार्य के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर के गंदे और भ्रष्ट सार को पूरी तरह से जान जाएगा, और वह पूरी तरह से बदलने और स्वच्छ होने में समर्थ हो जाएगा। केवल इसी तरीके से मनुष्य परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने के योग्य हो सकता है। आज किया जाने वाला समस्त कार्य इसलिए है, ताकि मनुष्य को स्वच्छ और परिवर्तित किया जा सके; वचन के द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से, और साथ ही शुद्धिकरण के माध्यम से भी, मनुष्य अपनी भ्रष्टता दूर कर सकता है और शुद्ध बनाया जा सकता है। इस चरण के कार्य को उद्धार का कार्य मानने के बजाय यह कहना कहीं अधिक उचित होगा कि यह शुद्धिकरण का कार्य है। वास्तव में यह चरण विजय का और साथ ही उद्धार के कार्य का दूसरा चरण है। वचन द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से मनुष्य परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाने की स्थिति में पहुँचता है, और शुद्ध करने, न्याय करने और प्रकट करने के लिए वचन के उपयोग के माध्यम से मनुष्य के हृदय के भीतर की सभी अशुद्धताओं, धारणाओं, प्रयोजनों और व्यक्तिगत आकांक्षाओं को पूरी तरह से प्रकट किया जाता है। क्योंकि मनुष्य को छुटकारा दिए जाने और उसके पाप क्षमा किए जाने को केवल इतना ही माना जा सकता है कि परमेश्वर मनुष्य के अपराधों का स्मरण नहीं करता और उसके साथ अपराधों के अनुसार व्यवहार नहीं करता। किंतु जब मनुष्य को, जो कि देह में रहता है, पाप से मुक्त नहीं किया गया है, तो वह निरंतर अपना भ्रष्ट शैतानी स्वभाव प्रकट करते हुए केवल पाप करता रह सकता है। यही वह जीवन है, जो मनुष्य जीता है—पाप करने और क्षमा किए जाने का एक अंतहीन चक्र। अधिकतर मनुष्य दिन में सिर्फ इसलिए पाप करते हैं, ताकि शाम को उन्हें स्वीकार कर सकें। इस प्रकार, भले ही पापबलि मनुष्य के लिए हमेशा के लिए प्रभावी हो, फिर भी वह मनुष्य को पाप से बचाने में सक्षम नहीं होगी। उद्धार का केवल आधा कार्य ही पूरा किया गया है, क्योंकि मनुष्य में अभी भी भ्रष्ट स्वभाव है। उदाहरण के लिए, जब लोगों को पता चला कि वे मोआब के वंशज हैं, तो उन्होंने शिकायत के बोल बोलने शुरू कर दिए, जीवन का अनुसरण करना छोड़ दिया, और पूरी तरह से नकारात्मक हो गए। क्या यह इस बात को नहीं दर्शाता कि मानवजाति अभी भी परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन पूरी तरह से समर्पित होने में असमर्थ है? क्या यह ठीक उनका भ्रष्ट शैतानी स्वभाव नहीं है? जब तुम्हें ताड़ना का भागी नहीं बनाया गया था, तो तुम्हारे हाथ अन्य सबके हाथों से ऊँचे उठे हुए थे, यहाँ तक कि यीशु के हाथों से भी ऊँचे। और तुम ऊँची आवाज़ में पुकार रहे थे : "परमेश्वर के प्रिय पुत्र बनो! परमेश्वर के अंतरंग बनो! हम मर जाएँगे, पर शैतान के आगे नहीं झुकेंगे! बूढ़े शैतान के विरुद्ध विद्रोह करो! बड़े लाल अजगर के विरुद्ध विद्रोह करो! बड़ा लाल अजगर दीन-हीन होकर सत्ता से गिर जाए! परमेश्वर हमें पूरा करे!" तुम्हारी पुकार अन्य सबसे ऊँची थीं। किंतु फिर ताड़ना का समय आया और एक बार फिर मनुष्यों का भ्रष्ट स्वभाव प्रकट हुआ। फिर उनकी पुकार बंद हो गई और उनका संकल्प टूट गया। यही मनुष्य की भ्रष्टता है; यह पाप से ज्यादा गहरी दौड़ रही है, इसे शैतान द्वारा स्थापित किया गया है और यह मनुष्य के भीतर गहराई से जड़ जमाए हुए है। मनुष्य के लिए अपने पापों से अवगत होना आसान नहीं है; उसके पास अपनी गहरी जमी हुई प्रकृति को पहचानने का कोई उपाय नहीं है, और उसे यह परिणाम प्राप्त करने के लिए वचन के न्याय पर भरोसा करना चाहिए। केवल इसी प्रकार से मनुष्य इस बिंदु से आगे धीरे-धीरे बदल सकता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4)
368. आज परमेश्वर तुम लोगों का न्याय करता है, तुम लोगों को ताड़ना देता है, और तुम्हारी निंदा करता है, लेकिन तुम्हें यह अवश्य जानना चाहिए कि तुम्हारी निंदा इसलिए की जाती है, ताकि तुम स्वयं को जान सको। वह इसलिए निंदा करता है, शाप देता है, न्याय करता और ताड़ना देता है, ताकि तुम स्वयं को जान सको, ताकि तुम्हारे स्वभाव में परिवर्तन हो सके, और, इसके अलावा, तुम अपनी कीमत जान सको, और यह देख सको कि परमेश्वर के सभी कार्य धार्मिक और उसके स्वभाव और उसके कार्य की आवश्यकताओं के अनुसार हैं, और वह मनुष्य के उद्धार के लिए अपनी योजना के अनुसार कार्य करता है, और कि वह धार्मिक परमेश्वर है, जो मनुष्य को प्यार करता है, उसे बचाता है, उसका न्याय करता है और उसे ताड़ना देता है। यदि तुम केवल यह जानते हो कि तुम निम्न हैसियत के हो, कि तुम भ्रष्ट और अवज्ञाकारी हो, परंतु यह नहीं जानते कि परमेश्वर आज तुममें जो न्याय और ताड़ना का कार्य कर रहा है, उसके माध्यम से वह अपने उद्धार के कार्य को स्पष्ट करना चाहता है, तो तुम्हारे पास अनुभव प्राप्त करने का कोई मार्ग नहीं है, और तुम आगे जारी रखने में सक्षम तो बिल्कुल भी नहीं हो। परमेश्वर मारने या नष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि न्याय करने, शाप देने, ताड़ना देने और बचाने के लिए आया है। उसकी 6,000-वर्षीय प्रबंधन योजना के समापन से पहले—इससे पहले कि वह मनुष्य की प्रत्येक श्रेणी का परिणाम स्पष्ट करे—पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य उद्धार के लिए होगा; इसका प्रयोजन विशुद्ध रूप से उन लोगों को पूर्ण बनाना—पूरी तरह से—और उन्हें अपने प्रभुत्व की अधीनता में लाना है, जो उससे प्रेम करते हैं। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि परमेश्वर लोगों को कैसे बचाता है, यह सब उन्हें उनके पुराने शैतानी स्वभाव से अलग करके किया जाता है; अर्थात्, वह उनसे जीवन की तलाश करवाकर उन्हें बचाता है। यदि वे ऐसा नहीं करते, तो उनके पास परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करने का कोई रास्ता नहीं होगा। उद्धार स्वयं परमेश्वर का कार्य है, और जीवन की तलाश करना ऐसी चीज़ है, जिसे उद्धार स्वीकार करने के लिए मनुष्य को करना ही चाहिए। मनुष्य की निगाह में, उद्धार परमेश्वर का प्रेम है, और परमेश्वर का प्रेम ताड़ना, न्याय और शाप नहीं हो सकता; उद्धार में प्रेम, करुणा और, इनके अलावा, सांत्वना के वचनों के साथ-साथ परमेश्वर द्वारा प्रदान किए गए असीम आशीष समाविष्ट होने चाहिए। लोगों का मानना है कि जब परमेश्वर मनुष्य को बचाता है, तो ऐसा वह उन्हें अपने आशीषों और अनुग्रह से प्रेरित करके करता है, ताकि वे अपने हृदय परमेश्वर को दे सकें। दूसरे शब्दों में, उसका मनुष्य को स्पर्श करना उसे बचाना है। इस तरह का उद्धार एक सौदा करके किया जाता है। केवल जब परमेश्वर मनुष्य को सौ गुना प्रदान करता है, तभी मनुष्य परमेश्वर के नाम के प्रति समर्पित होता है और उसके लिए अच्छा करने और उसे महिमामंडित करने का प्रयत्न करता है। यह मानवजाति के लिए परमेश्वर की अभिलाषा नहीं है। परमेश्वर पृथ्वी पर भ्रष्ट मानवता को बचाने के लिए कार्य करने आया है—इसमें कोई झूठ नहीं है। यदि होता, तो वह अपना कार्य करने के लिए व्यक्तिगत रूप से निश्चित ही नहीं आता। अतीत में, उद्धार के उसके साधन में परम प्रेम और करुणा दिखाना शामिल था, यहाँ तक कि उसने संपूर्ण मानवजाति के बदले में अपना सर्वस्व शैतान को दे दिया। वर्तमान अतीत जैसा नहीं है : आज तुम लोगों को दिया गया उद्धार अंतिम दिनों के समय में प्रत्येक व्यक्ति का उसके प्रकार के अनुसार वर्गीकरण किए जाने के दौरान घटित होता है; तुम लोगों के उद्धार का साधन प्रेम या करुणा नहीं है, बल्कि ताड़ना और न्याय है, ताकि मनुष्य को अधिक अच्छी तरह से बचाया जा सके। इस प्रकार, तुम लोगों को जो भी प्राप्त होता है, वह ताड़ना, न्याय और निर्दय मार है, लेकिन यह जान लो : इस निर्मम मार में थोड़ा-सा भी दंड नहीं है। मेरे वचन कितने भी कठोर हों, तुम लोगों पर जो पड़ता है, वे कुछ वचन ही हैं, जो तुम लोगों को अत्यंत निर्दय प्रतीत हो सकते हैं, और मैं कितना भी क्रोधित क्यों न हूँ, तुम लोगों पर जो पड़ता है, वे फिर भी कुछ शिक्षाप्रद वचन ही हैं, और मेरा आशय तुम लोगों को नुकसान पहुँचाना या तुम लोगों को मार डालना नहीं है। क्या यह सब तथ्य नहीं है? जान लो कि आजकल हर चीज़ उद्धार के लिए है, चाहे वह धार्मिक न्याय हो या निर्मम शुद्धिकरण और ताड़ना। भले ही आज प्रत्येक व्यक्ति का उसके प्रकार के अनुसार वर्गीकरण किया जा रहा हो या मनुष्य की श्रेणियाँ प्रकट की जा रही हों, परमेश्वर के समस्त वचनों और कार्य का प्रयोजन उन लोगों को बचाना है, जो परमेश्वर से सचमुच प्यार करते हैं। धार्मिक न्याय मनुष्य को शुद्ध करने के उद्देश्य से लाया जाता है, और निर्मम शुद्धिकरण उन्हें निर्मल बनाने के लिए किया जाता है; कठोर वचन या ताड़ना, दोनों शुद्ध करने के लिए किए जाते हैं और वे उद्धार के लिए हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के उद्धार के लिए तुम्हें सामाजिक प्रतिष्ठा के आशीष से दूर रहकर परमेश्वर की इच्छा को समझना चाहिए
369. मनुष्य की दशा और अपने प्रति मनुष्य का व्यवहार देखकर परमेश्वर ने नया कार्य किया है, जिससे मनुष्य उसके विषय में ज्ञान और उसके प्रति आज्ञाकारिता दोनों से युक्त हो सकता है, और प्रेम और गवाही दोनों रख सकता है। इसलिए मनुष्य को परमेश्वर के शुद्धिकरण, और साथ ही उसके न्याय, व्यवहार और काट-छाँट का अनुभव अवश्य करना चाहिए, जिसके बिना मनुष्य कभी परमेश्वर को नहीं जानेगा, और कभी वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करने और उसकी गवाही देने में समर्थ नहीं होगा। परमेश्वर द्वारा मनुष्य का शुद्धिकरण केवल एकतरफा प्रभाव के लिए नहीं होता, बल्कि बहुआयामी प्रभाव के लिए होता है। केवल इसी तरह से परमेश्वर उन लोगों में शुद्धिकरण का कार्य करता है, जो सत्य को खोजने के लिए तैयार रहते हैं, ताकि उनका संकल्प और प्रेम परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाया जाए। जो लोग सत्य को खोजने के लिए तैयार रहते हैं और जो परमेश्वर को पाने की लालसा करते हैं, उनके लिए ऐसे शुद्धिकरण से अधिक अर्थपूर्ण या अधिक सहायक कुछ नहीं है। परमेश्वर का स्वभाव मनुष्य द्वारा सरलता से जाना या समझा नहीं जाता, क्योंकि परमेश्वर आखिरकार परमेश्वर है। अंततः, परमेश्वर के लिए मनुष्य के समान स्वभाव रखना असंभव है, और इसलिए मनुष्य के लिए परमेश्वर के स्वभाव को जानना सरल नहीं है। सत्य मनुष्य द्वारा अंतर्निहित रूप में धारण नहीं किया जाता, और वह उनके द्वारा सरलता से नहीं समझा जाता, जो शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए हैं; मनुष्य सत्य से और सत्य को अभ्यास में लाने के संकल्प से रहित है, और यदि वह पीड़ित नहीं होता और उसका शुद्धिकरण या न्याय नहीं किया जाता, तो उसका संकल्प कभी पूर्ण नहीं किया जाएगा। सभी लोगों के लिए शुद्धिकरण कष्टदायी होता है, और उसे स्वीकार करना बहुत कठिन होता है—परंतु शुद्धिकरण के दौरान ही परमेश्वर मनुष्य के समक्ष अपना धर्मी स्वभाव स्पष्ट करता है और मनुष्य से अपनी अपेक्षाएँ सार्वजनिक करता है, और अधिक प्रबुद्धता, अधिक वास्तविक काट-छाँट और व्यवहार प्रदान करता है; तथ्यों और सत्य के बीच की तुलना के माध्यम से वह मनुष्य को अपने और सत्य के बारे में बृहत्तर ज्ञान देता है, और उसे परमेश्वर की इच्छा की और अधिक समझ प्रदान करता है, और इस प्रकार उसे परमेश्वर के प्रति सच्चा और शुद्ध प्रेम प्राप्त करने देता है। शुद्धिकरण का कार्य करने में परमेश्वर के ये लक्ष्य हैं। उस समस्त कार्य के, जो परमेश्वर मनुष्य में करता है, अपने लक्ष्य और अपना अर्थ होता है; परमेश्वर निरर्थक कार्य नहीं करता, और न ही वह ऐसा कार्य करता है, जो मनुष्य के लिए लाभदायक न हो। शुद्धिकरण का अर्थ लोगों को परमेश्वर के सामने से हटा देना नहीं है, और न ही इसका अर्थ उन्हें नरक में नष्ट कर देना है। बल्कि इसका अर्थ है शुद्धिकरण के दौरान मनुष्य के स्वभाव को बदलना, उसके इरादों को बदलना, उसके पुराने विचारों को बदलना, परमेश्वर के प्रति उसके प्रेम को बदलना, और उसके पूरे जीवन को बदलना। शुद्धिकरण मनुष्य की वास्तविक परीक्षा और वास्तविक प्रशिक्षण का एक रूप है, और केवल शुद्धिकरण के दौरान ही उसका प्रेम अपने अंतर्निहित कार्य को पूरा कर सकता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल शुद्धिकरण का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है
370. लोग अपना स्वभाव स्वयं परिवर्तित नहीं कर सकते; उन्हें परमेश्वर के वचनों के न्याय, ताड़ना, पीड़ा और शोधन से गुजरना होगा, या उसके वचनों द्वारा निपटाया, अनुशासित किया जाना और काँटा-छाँटा जाना होगा। इन सब के बाद ही वे परमेश्वर के प्रति विश्वसनीयता और आज्ञाकारिता प्राप्त कर सकते हैं और उसके प्रति बेपरवाह होना बंद कर सकते हैं। परमेश्वर के वचनों के शोधन के द्वारा ही मनुष्य के स्वभाव में परिवर्तन आ सकता है। केवल उसके वचनों के संपर्क में आने से, उनके न्याय, अनुशासन और निपटारे से, वे कभी लापरवाह नहीं होंगे, बल्कि शांत और संयमित बनेंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे परमेश्वर के मौजूदा वचनों और उसके कार्यों का पालन करने में सक्षम होते हैं, भले ही यह मनुष्य की धारणाओं से परे हो, वे इन धारणाओं को नज़रअंदाज करके अपनी इच्छा से पालन कर सकते हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिनके स्वभाव परिवर्तित हो चुके हैं, वे वही लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कर चुके हैं
371. परमेश्वर द्वारा शुद्धिकरण जितना बड़ा होता है, लोगों के हृदय उतने ही अधिक परमेश्वर से प्रेम करने में सक्षम हो जाते हैं। उनके हृदय की यातना उनके जीवन के लिए लाभदायक होती है, वे परमेश्वर के समक्ष अधिक शांत रह सकते हैं, परमेश्वर के साथ उनका संबंध और अधिक निकटता का हो जाता है, और वे परमेश्वर के सर्वोच्च प्रेम और उसके सर्वोच्च उद्धार को और अच्छी तरह से देख पाते हैं। पतरस ने सैकड़ों बार शुद्धिकरण का अनुभव किया, और अय्यूब कई परीक्षणों से गुजरा। यदि तुम लोग परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाना चाहते हो, तो तुम लोगों को भी सैकड़ों बार शुद्धिकरण से होकर गुजरना होगा; केवल इस प्रक्रिया से गुजरने और इस कदम पर निर्भर रहने के माध्यम से ही तुम लोग परमेश्वर की इच्छा पूरी कर पाओगे और परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाओगे। शुद्धिकरण वह सर्वोत्तम साधन है, जिसके द्वारा परमेश्वर लोगों को पूर्ण बनाता है, केवल शुद्धिकरण और कड़वे परीक्षण ही लोगों के हृदय में परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम उत्पन्न कर सकते हैं। कठिनाई के बिना लोगों में परमेश्वर के लिए सच्चे प्रेम की कमी रहती है; यदि भीतर से उनको परखा नहीं जाता, और यदि वे सच में शुद्धिकरण के भागी नहीं बनाए जाते, तो उनके हृदय बाहर ही भटकते रहेंगे। एक निश्चित बिंदु तक शुद्धिकरण किए जाने के बाद तुम अपनी स्वयं की निर्बलताएँ और कठिनाइयाँ देखोगे, तुम देखोगे कि तुममें कितनी कमी है और कि तुम उन अनेक समस्याओं पर काबू पाने में असमर्थ हो, जिनका तुम सामना करते हो, और तुम देखोगे कि तुम्हारी अवज्ञा कितनी बड़ी है। केवल परीक्षणों के दौरान ही लोग अपनी सच्ची अवस्थाओं को सचमुच जान पाते हैं; और परीक्षण लोगों को पूर्ण किए जाने के लिए अधिक योग्य बनाते हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल शुद्धिकरण का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है
372. जब तुम थोड़ी सी बाधा या कठिनाई से पीड़ित होते हो, तो ये तुम लोगों के लिए अच्छा है; यदि तुम लोगों को एक मौज करने का समय दिया गया होता, तो तुम लोग बर्बाद हो जाते, और तब तुम्हारी रक्षा कैसे की जाती? आज तुम लोगों को इसलिए सुरक्षा दी जाती है क्योंकि तुम लोगों को दंडित किया जाता है, शाप दिया जाता है, तुम लोगों का न्याय किया जाता है। क्योंकि तुम लोगों ने काफी कष्ट उठाया है इसलिए तुम्हें संरक्षण दिया जाता है। नहीं तो, तुम लोग बहुत समय पहले ही दुराचार में गिर गए होते। यह जानबूझ कर तुम लोगों के लिए चीज़ों को मुश्किल बनाना नहीं है—मनुष्य की प्रकृति को बदलना मुश्किल है, और उनके स्वभाव को बदलना भी ऐसा ही है। आज, तुम लोगों के पास वो समझ भी नहीं है जो पौलुस के पास थी, और न ही तुम लोगों के पास उसका आत्म-बोध है। तुम लोगों की आत्माओं को जगाने के लिए तुम लोगों पर हमेशा दबाव डालना पड़ता है, और तुम लोगों को हमेशा ताड़ना देनी पड़ती है और तुम्हारा न्याय करना पड़ता है। ताड़ना और न्याय ही वह चीज़ हैं जो तुम लोगों के जीवन के लिए सर्वोत्तम हैं। और जब आवश्यक हो, तो तुम पर आ पड़ने वाले तथ्यों की ताड़ना भी होनी ही चाहिए; केवल तभी तुम लोग पूरी तरह से समर्पण करोगे। तुम लोगों की प्रकृतियाँ ऐसी हैं कि ताड़ना और शाप के बिना, तुम लोग अपने सिरों को झुकाने और समर्पण करने के अनिच्छुक होगे। तुम लोगों की आँखों के सामने तथ्यों के बिना, तुम पर कोई प्रभाव नहीं होगा। तुम लोग चरित्र से बहुत नीच और बेकार हो। ताड़ना और न्याय के बिना, तुम लोगों पर विजय प्राप्त करना कठिन होगा, और तुम लोगों की अधार्मिकता और अवज्ञा को जीतना मुश्किल होगा। तुम लोगों का पुराना स्वभाव बहुत गहरी जड़ें जमाए हुए है। यदि तुम लोगों को सिंहासन पर बिठा दिया जाए, तो तुम लोगों को स्वर्ग की ऊँचाई और पृथ्वी की गहराई के बारे में कोई अंदाज़ न हो, तुम लोग किस ओर जा रहे हो इसके बारे में तो बिल्कुल भी अंदाज़ा न हो। यहाँ तक कि तुम लोगों को यह भी नहीं पता कि तुम सब कहाँ से आए हो, तो तुम लोग सृष्टि के प्रभु को कैसे जान सकते हो? आज की समयोचित ताड़ना और शाप के बिना तुम लोगों के अंतिम दिन बहुत पहले आ चुके होते। तुम लोगों के भाग्य के बारे में तो कुछ कहना ही नहीं—क्या यह और भी निकटस्थ खतरे की बात नहीं है? इस समयोचित ताड़ना और न्याय के बिना, कौन जाने कि तुम लोग कितने घमंडी हो गए होते, और कौन जाने तुम लोग कितने पथभ्रष्ट हो जाते। इस ताड़ना और न्याय ने तुम लोगों को आज के दिन तक पहुँचाया है, और इन्होंने तुम लोगों के अस्तित्व को संरक्षित रखा है। जिन तरीकों से तुम लोगों के "पिता" को "शिक्षित" किया गया था, यदि उन्हीं तरीकों से तुम लोगों को भी "शिक्षित" किया जाता, तो कौन जाने तुम लोग किस क्षेत्र में प्रवेश करते! तुम लोगों के पास स्वयं को नियंत्रित करने और आत्म-चिंतन करने की बिलकुल कोई योग्यता नहीं है। तुम जैसे लोग, अगर कोई हस्तक्षेप या गड़बड़ी किए बगैर मात्र अनुसरण करें, आज्ञापालन करें, तो मेरे उद्देश्य पूरे हो जाएंगे। क्या तुम लोगों के लिए बेहतर नहीं होगा कि तुम आज की ताड़ना और न्याय को स्वीकार करो? तुम लोगों के पास और क्या विकल्प हैं?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (6)
373. परमेश्वर के कार्य के हर चरण के लिए एक तरीका है, जिसमें लोगों को सहयोग करना चाहिए। परमेश्वर लोगों को शुद्ध करता है, ताकि शुद्धिकरणों से गुज़रने पर उनमें आत्मविश्वास रहे। परमेश्वर लोगों को पूर्ण बनाता है, ताकि उनमें परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने का आत्मविश्वास हो और वे उसके शुद्धिकरणों को स्वीकार करने और उसके द्वारा निपटान और काँट-छाँट किए जाने के लिए तैयार हो जाएँ। परमेश्वर का आत्मा लोगों में प्रबुद्धता और रोशनी लाने और उनसे परमेश्वर के साथ सहयोग करवाने और अभ्यास करवाने के लिए उनके भीतर कार्य करता है। शुद्धिकरण के दौरान परमेश्वर बात नहीं करता। वह अपनी वाणी नहीं बोलता, फिर भी, ऐसा कार्य है जिसे लोगों को करना चाहिए। तुम्हें वह बनाए रखना चाहिए जो तुम्हारे पास पहले से है, तुम्हें फिर भी परमेश्वर से प्रार्थना करने, परमेश्वर के निकट होने, और परमेश्वर के सामने गवाही देने में सक्षम होना चाहिए; इस तरह तुम अपना कर्तव्य पूरा करोगे। तुम सबको परमेश्वर के कार्य से स्पष्ट रूप से देखना चाहिए कि लोगों के आत्मविश्वास और प्यार के उसके परीक्षण यह अपेक्षा करते हैं कि वे परमेश्वर से अधिक प्रार्थना करें, और कि वे परमेश्वर के सामने उसके वचनों का अधिक बार स्वाद लें। यदि परमेश्वर तुम्हें प्रबुद्ध करता है और तुम्हें अपनी इच्छा समझाता है, लेकिन फिर भी तुम उसे अभ्यास में बिलकुल नहीं लाते, तो तुम कुछ भी प्राप्त नहीं करोगे। जब तुम परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाते हो, तब भी तुम्हें उससे प्रार्थना करने में सक्षम होना चाहिए, और जब तुम उसके वचनों का स्वाद लेते हो, तो तुम्हें उसके सामने आना चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए तथा हताशा या उदासीनता अनुभव करने के किसी भी चिह्न के बिना उसके प्रति विश्वास से भरे होना चाहिए। जो लोग परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में नहीं लाते, वे सभाओं के दौरान तो ऊर्जा से भरे होते हैं, लेकिन घर लौटकर अंधकार में गिर जाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो एक साथ इकट्ठे भी नहीं होना चाहते। इसलिए तुम्हें स्पष्ट रूप से देखना चाहिए कि वह कौन-सा कर्तव्य है, जिसे लोगों को पूरा करना चाहिए। हो सकता है कि तुम न जानते हो कि परमेश्वर की इच्छा वास्तव में क्या है, लेकिन तुम अपना कर्तव्य कर सकते हो, जब तुम्हें प्रार्थना करनी चाहिए तब तुम प्रार्थना कर सकते हो, जब तुम्हें सत्य को अभ्यास में लाना चाहिए तब तुम उसे अभ्यास में ला सकते हो, और तुम वह कर सकते हो जो लोगों को करना चाहिए। तुम अपनी मूल दृष्टि बनाए रख सकते हो। इस तरह, तुम परमेश्वर के कार्य के अगले चरण को स्वीकार करने में अधिक सक्षम होगे। जब परमेश्वर छिपे तरीके से कार्य करता है, तब यदि तुम तलाश नहीं करते, तो यह एक समस्या है। जब वह सभाओं के दौरान बोलता और उपदेश देता है, तो तुम उत्साह से सुनते हो, लेकिन जब वह नहीं बोलता, तो तुममें ऊर्जा की कमी हो जाती है और तुम पीछे हट जाते हो। ऐसा किस तरह का व्यक्ति करता है? वह ऐसा व्यक्ति होता है, जो सिर्फ झुंड के पीछे चलता है। उसके पास कोई उद्देश्य नहीं होता, कोई गवाही नहीं होती, और कोई दर्शन नहीं होता! ज्यादातर लोग ऐसे ही होते हैं। यदि तुम इस तरह से जारी रखते हो, तो एक दिन जब तुम पर कोई महान परीक्षण आएगा, तो तुम्हें सजा भोगनी पड़ जाएगी। परमेश्वर द्वारा लोगों को पूर्ण बनाने की प्रक्रिया में एक दृष्टिकोण का होना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि तुम परमेश्वर के कार्य के एक कदम पर भी शक नहीं करते, यदि तुम मनुष्य का कर्तव्य पूरा करते हो, तुम ईमानदारी के साथ उसे बनाए रखते हो जिसका परमेश्वर ने तुमसे अभ्यास करवाया है, अर्थात् तुम्हें परमेश्वर के उपदेश याद हैं, और इस बात की परवाह किए बिना कि वह वर्तमान में क्या करता है, तुम उसके उपदेशों को भूलते नहीं हो, यदि उसके कार्य के बारे में तुम्हें कोई संदेह नहीं है, तुम अपना दृष्टिकोण कायम रखते हो, अपनी गवाही बनाए रखते हो, और मार्ग के हर चरण में विजय प्राप्त करते हो, तो अंत में तुम परमेश्वर द्वारा पूर्ण कर दिए जाओगे और एक विजेता बना दिए जाओगे। यदि तुम परमेश्वर के परीक्षणों के हर चरण में दृढ़तापूर्वक खड़े रहने में सक्षम हो, और तुम अभी भी बिलकुल अंत तक दृढ़तापूर्वक खड़े रह सकते हो, तो तुम एक विजेता हो, तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जिसे परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाया गया है। यदि तुम अपने वर्तमान परीक्षणों में दृढ़तापूर्वक खड़े नहीं रह सकते, तो भविष्य में यह और भी अधिक मुश्किल हो जाएगा। यदि तुम केवल मामूली पीड़ा से ही गुजरते हो और सत्य का अनुसरण नहीं करते, तो अंतत: तुम्हें कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। तुम खाली हाथ रह जाओगे। कुछ लोग जब यह देखते हैं कि परमेश्वर बोल नहीं रहा, तो अपना प्रयास छोड़ देते हैं, और उनका दिल टूट जाता है। क्या ऐसा व्यक्ति मूर्ख नहीं है? इस तरह के लोगों में कोई वास्तविकता नहीं होती। जब परमेश्वर बोल रहा होता है, तो वे हमेशा बाहर से व्यस्त और उत्साही दिखते हुए, भाग-दौड़ करते रहते हैं, लेकिन अब जबकि वह बोल नहीं रहा, तो वे तलाश करना बंद कर देते हैं। इस तरह के व्यक्ति का कोई भविष्य नहीं है। शुद्धिकरण के दौरान, तुम्हें सकारात्मक दृष्टिकोण से प्रवेश करना चाहिए और जो सबक सीखने चाहिए, उन्हें सीखना चाहिए; जब तुम परमेश्वर से प्रार्थना करते हो और उसके वचन पढ़ते हो, तो तुम्हें अपनी स्वयं की स्थिति की इससे तुलना करनी चाहिए, अपनी कमियों का पता लगाना चाहिए और जानना चाहिए कि तुम्हारे पास सीखने के लिए अभी भी बहुत-से सबक हैं। शुद्धिकरण से गुज़रने पर जितना अधिक ईमानदारी से तुम तलाश करोगे, उतना ही अधिक तुम स्वयं को अपर्याप्त पाओगे। जब तुम शुद्धिकरण का सामना कर रहे होते हो, तो कई मुद्दे तुम्हारे सामने आते हैं; तुम उन्हें स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते, तुम शिकायत करते हो, तुम अपने देह-सुख को प्रकट करते हो—केवल इसी तरह से तुम पता लगा सकते हो कि तुम्हारे भीतर बहुत अधिक भ्रष्ट स्वभाव हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए
374. परीक्षणों से गुज़रते हुए, लोगों का कमज़ोर होना, या उनके भीतर नकारात्मकता आना, या परमेश्वर की इच्छा पर या अभ्यास के लिए उनके मार्ग पर स्पष्टता का अभाव होना स्वाभाविक है। परन्तु हर हालत में, अय्यूब की ही तरह, तुम्हें परमेश्वर के कार्य पर भरोसा अवश्य होना चाहिए, और परमेश्वर को नकारना नहीं चाहिए। यद्यपि अय्यूब कमज़ोर था और अपने जन्म के दिन को धिक्कारता था, उसने इस बात से इनकार नहीं किया कि मनुष्य के जीवन में सभी चीजें यहोवा द्वारा प्रदान की गई थी, और यहोवा ही उन्हें वापस ले सकता है। चाहे उसकी कैसे भी परीक्षा ली गई, उसने अपना विश्वास बनाए रखा। अपने अनुभव में, तुम परमेश्वर के वचनों के द्वारा चाहे जिस भी प्रकार के शोधन से गुज़रो, संक्षेप में, परमेश्वर को मानवजाति से जिसकी अपेक्षा है वह है, परमेश्वर में उनका विश्वास और प्रेम। इस तरह से, जिसे वो पूर्ण बनाता है वह है लोगों का विश्वास, प्रेम और अभिलाषाएँ। परमेश्वर लोगों पर पूर्णता का कार्य करता है, जिसे वे देख नहीं सकते, महसूस नहीं कर सकते; इन परिस्थितयों में तुम्हारे विश्वास की आवश्यकता होती है। लोगों के विश्वास की आवश्यकता तब होती है जब किसी चीज को नग्न आँखों से नहीं देखा जा सकता है, और तुम्हारे विश्वास की तब आवश्यकता होती है जब तुम अपनी स्वयं की धारणाओं को नहीं छोड़ पाते हो। जब तुम परमेश्वर के कार्यों के बारे में स्पष्ट नहीं होते हो, तो आवश्यकता होती है कि तुम विश्वास बनाए रखो और तुम दृढ़ रवैया रखो और गवाह बनो। जब अय्यूब इस स्थिति तक पहुँचा, तो परमेश्वर उसे दिखाई दिया और उससे बोला। अर्थात्, यह केवल तुम्हारे विश्वास के भीतर से ही है कि तुम परमेश्वर को देखने में समर्थ होगे, और जब तुम्हारे पास विश्वास है तो परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनायेगा। विश्वास के बिना, वह ऐसा नहीं कर सकता है। परमेश्वर तुम्हें वह सब प्रदान करेगा जिसको प्राप्त करने की तुम आशा करते हो। यदि तुम्हारे पास विश्वास नहीं है, तो तुम्हें पूर्ण नहीं बनाया जा सकता है और तुम परमेश्वर के कार्यों को देखने में असमर्थ होगे, उसकी सर्वसामर्थ्य को तो बिल्कुल भी नहीं देख पाओगे। जब तुम्हारे पास यह विश्वास होता है कि तुम अपने व्यवहारिक अनुभव में उसके कार्यों को देख सकते हो, तो परमेश्वर तुम्हारे सामने प्रकट होगा और भीतर से वह तुम्हें प्रबुद्ध करेगा और तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा। उस विश्वास के बिना, परमेश्वर ऐसा करने में असमर्थ होगा। यदि तुम परमेश्वर पर विश्वास खो चुके हो, तो तुम कैसे उसके कार्य का अनुभव कर पाओगे? इसलिए, केवल जब तुम्हारे पास विश्वास है और तुम परमेश्वर पर संदेह नहीं करते हो, चाहे वो जो भी करे, अगर तुम उस पर सच्चा विश्वास करो, केवल तभी वह तुम्हारे अनुभवों में तुम्हें प्रबुद्ध और रोशन कर देता है, और केवल तभी तुम उसके कार्यों को देख पाओगे। ये सभी चीजें विश्वास के माध्यम से ही प्राप्त की जाती हैं। विश्वास केवल शुद्धिकरण के माध्यम से ही आता है, और शुद्धिकरण की अनुपस्थिति में विश्वास विकसित नहीं हो सकता है। "विश्वास" यह शब्द किस चीज को संदर्भित करता है? विश्वास सच्चा भरोसा है और ईमानदार हृदय है जो मनुष्यों के पास होना चाहिए जब वे किसी चीज़ को देख या छू नहीं सकते हों, जब परमेश्वर का कार्य मनुष्यों के विचारों के अनुरूप नहीं होता हो, जब यह मनुष्यों की पहुँच से बाहर हो। इसी विश्वास के बारे में मैं बातें करता हूँ। मनुष्यों को कठिनाई और शुद्धिकरण के समय में विश्वास की आवश्यकता होती है, और विश्वास के साथ-साथ शुद्धिकरण आता है; विश्वास और शुद्धिकरण को अलग नहीं किया जा सकता। चाहे परमेश्वर कैसे भी कार्य करे या तुम्हारा परिवेश जैसा भी हो, तुम जीवन का अनुसरण करने में समर्थ होगे और सत्य की खोज करने और परमेश्वर के कार्यों के ज्ञान को तलाशने में समर्थ होगे, और तुममें उसके क्रियाकलापों की समझ होगी और तुम सत्य के अनुसार कार्य करने में समर्थ होगे। ऐसा करना ही सच्चा विश्वास रखना है, ऐसा करना यह दिखाता है कि तुमने परमेश्वर में अपना विश्वास नहीं खोया है। जब तुम शुद्धिकरण द्वारा सत्य का अनुसरण करने में समर्थ हो, तुम सच में परमेश्वर से प्रेम करने में समर्थ हो और उसके बारे में संदेहों को पैदा नहीं करते हो, चाहे वो जो भी करे, तुम फिर भी उसे संतुष्ट करने के लिए सत्य का अभ्यास करते हो, और तुम गहराई में उसकी इच्छा की खोज करने में समर्थ होते हो और उसकी इच्छा के बारे में विचारशील होते हो, केवल तभी इसका अर्थ है कि तुम्हें परमेश्वर में सच्चा विश्वास है। इससे पहले, जब परमेश्वर ने कहा कि तुम एक सम्राट के रूप में शासन करोगे, तो तुमने उससे प्रेम किया, और जब उसने स्वयं को खुलेआम तुम्हें दिखाया, तो तुमने उसका अनुसरण किया। परन्तु अब परमेश्वर छिपा हुआ है, तुम उसे देख नहीं सकते हो, और परेशानियाँ तुम पर आ गई हैं। तो इस समय, क्या तुम परमेश्वर पर आशा छोड़ देते हो? इसलिए हर समय तुम्हें जीवन की खोज अवश्य करनी चाहिए और परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए। यही सच्चा विश्वास कहलाता है, और यही सबसे सच्चा और सबसे सुंदर प्रकार का प्रेम है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा
375. शुद्धिकरण का काम का उद्देश्य मुख्य रूप से लोगों के विश्वास को पूर्ण बनाना है। अंत में यह हासिल होता है कि तुम छोड़ना तो चाहते हो लेकिन, साथ ही तुम ऐसा कर नहीं पाते हो; कुछ लोग लेश-मात्र आशा से भी वंचित होकर भी अपना विश्वास रखने में समर्थ होते हैं; और लोगों को अपने भविष्य के संबंध में अब और कोई भी आशा नहीं होती। केवल इस समय ही परमेश्वर द्वारा शुद्धिकरण का समापन होगा। इंसान अभी भी जीवन और मृत्यु के बीच मँडराने के चरण तक नहीं पहुँचे हैं, उन्होंने मृत्यु को नहीं चखा है, इसलिए शुद्धिकरण की प्रक्रिया ख़त्म नहीं हुई है। यहाँ तक कि जो सेवा करनेवालों के चरण पर थे, उनका भी अतिशय शुद्धिकरण नहीं हुआ। अय्यूब चरम शुद्धिकरण से गुज़रा था और उसके पास भरोसा रहने के लिए कुछ नहीं था। लोगों को भी उस स्थिति तक शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए जहाँ उनके पास कोई उम्मीद नहीं रह जाती है और भरोसा करने के लिए कुछ नहीं होता—केवल यही सच्चा शुद्धिकरण है। सेवा करने वालों के समय के दौरान, अगर तुम्हारा दिल हमेशा परमेश्वर के सामने शांत रहा, इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर ने क्या किया और बात की परवाह किए बिना कि तुम्हारे लिए उसकी इच्छा क्या थी, तुमने हमेशा उसकी व्यवस्थाओं का पालन किया, तब मार्ग के अंत में, तुम परमेश्वर ने जो कुछ किया है वो सब कुछ समझ जाओगे। तुम अय्यूब के परीक्षणों से गुजरते हो और इसी समय तुम पतरस के परीक्षणों से भी गुज़रते हो। जब अय्यूब की परीक्षा ली गई, तो उसने गवाही दी, और अंत में उसके सामने यहोवा प्रकट हुआ था। उसके गवाही देने के बाद ही वह परमेश्वर का चेहरा देखने के योग्य हुआ था। यह क्यों कहा जाता है : "मैं गंद की भूमि से छिपता हूँ, लेकिन खुद को पवित्र राज्य को दिखाता हूँ?" इसका मतलब यह है कि जब तुम पवित्र होते हो और गवाही देते हो केवल तभी तुम परमेश्वर का चेहरा देखने का गौरव प्राप्त कर सकते हो। यदि तुम उसके लिए गवाह नहीं बन सकते हो, तो तुम्हारे पास उसके चेहरे को देखने का गौरव नहीं है। यदि तुम शुद्धिकरण का सामना करने में पीछे हट जाते हो या परमेश्वर के विरुद्ध शिकायत करते हो, इस प्रकार परमेश्वर के लिए गवाह बनने में विफल हो जाते हो और शैतान की हँसी का पात्र बन जाते हो, तो तुम्हें परमेश्वर का प्रकटन प्राप्त नहीं होगा। यदि तुम अय्यूब की तरह हो, जिसने परीक्षणों के बीच अपनी स्वयं की देह को धिक्कारा था और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायत नहीं की थी, और अपने शब्दों के माध्यम से, शिकायत या पाप किए बिना अपनी स्वयं की देह का तिरस्कार करने में समर्थ था, तो यह गवाह बनना है। जब तुम किसी निश्चित अंश तक शुद्धिकरणों से गुज़रते हो और फिर भी अय्यूब की तरह हो सकते हो, परमेश्वर के सामने सर्वथा आज्ञाकारी और उससे किसी अन्य अपेक्षा या तुम्हारी धारणाओं के बिना, तब परमेश्वर तुम्हें दिखाई देगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा
376. असफलता के, कमजोरी के और नकारात्मकता के समयों के तुम्हारे अनुभव परमेश्वर द्वारा तुम्हारे परीक्षण कहे जा सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि सब कुछ परमेश्वर से आता है, सभी चीजें और घटनाएँ उसके हाथों में हैं। तुम असफल होते हो या तुम कमजोर हो और ठोकर खा जाते हो, ये सब परमेश्वर पर निर्भर करता है और उसकी मुट्ठी में है। परमेश्वर के परिप्रेक्ष्य से, यह तुम्हारा परीक्षण है, और यदि तुम इसे नहीं पहचान सकते हो, तो यह प्रलोभन बन जाएगा। दो प्रकार की अवस्थाएँ हैं, जिन्हें लोगों को पहचानना चाहिए : एक पवित्र आत्मा से आती है, और दूसरी संभवतः शैतान से आती है। एक अवस्था में, पवित्र आत्मा तुम्हें रोशन करता है और तुम्हें स्वयं को जानने, स्वयं का तिरस्कार करने और ख़ुद पर पछतावा करने और परमेश्वर के लिए सच्चा प्यार रखने में समर्थ होने, उसे संतुष्ट करने पर अपना दिल लगाने देता है। दूसरी अवस्था ऐसी है जिसमें तुम स्वयं को जानते हो, लेकिन तुम नकारात्मक और कमजोर हो। यह कहा जा सकता है कि यह परमेश्वर द्वारा शुद्धिकरण है, और यह भी कहा जा सकता है कि यह शैतान का प्रलोभन है। यदि तुम यह जानते हो कि यह परमेश्वर द्वारा तुम्हारा उद्धार है और अनुभव करते हो कि अब तुम गहराई से उसके ऋणी हो, और यदि अब से तुम उसका कर्ज़ चुकाने का प्रयास करते हो और इस तरह के पतन में अब और नहीं पड़ते हो, यदि तुम उसके वचनों को खाने और पीने में अपना प्रयास लगाते हो, और यदि तुम स्वयं को हमेशा अभावग्रस्त महसूस करते हो, और लालसा का हृदय रखते हो, तो यह परमेश्वर द्वारा परीक्षण है। दुःख समाप्त हो जाने के बाद और तुम एक बार फिर से आगे बढ़ने लगते हो, परमेश्वर तब भी तुम्हारी अगुआई करेगा, तुम्हें रोशन करेगा और तुम्हारा पोषण करेगा। लेकिन यदि तुम इसे नहीं पहचानते हो और तुम नकारात्मक हो, स्वयं को निराशा में छोड़ देते हो, यदि तुम इस तरह से सोचते हो, तो तुम्हारे ऊपर शैतान का प्रलोभन आ चुका होगा। जब अय्यूब परीक्षणों से गुजरा, तो परमेश्वर और शैतान एक-दूसरे के साथ शर्त लगा रहे थे, और परमेश्वर ने शैतान को अय्यूब को पीड़ित करने दिया। यद्यपि यह परमेश्वर था जो अय्यूब का परीक्षण ले रहा था, लेकिन वह वास्तव में शैतान था जो उससे टकराया था। शैतान के लिए, यह अय्यूब को प्रलोभित करना था, लेकिन अय्यूब परमेश्वर की तरफ़ था। यदि ऐसा नहीं होता, तो वह प्रलोभन में पड़ गया होता। जैसे ही लोग प्रलोभन में पड़ते हैं, वे खतरे में पड़ जाते हैं। शुद्धिकरण से गुज़रना परमेश्वर की ओर से एक परीक्षण कहा जा सकता है, लेकिन अगर तुम एक अच्छी अवस्था में नहीं हो, तो इसे शैतान से प्रलोभन कहा जा सकता है। अगर तुम दर्शन के बारे में स्पष्ट नहीं हो, तो दर्शन के पहलू में शैतान तुम पर दोष लगाएगा और तुम्हारी दृष्टि को बाधित करेगा। इससे पहले कि तुम जान पाओ, तुम प्रलोभन में पड़ जाओगे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा
377. परीक्षणों से गुजरते हुए, यहाँ तक कि जब तुम नहीं जानते कि परमेश्वर क्या करना चाहता है और वह क्या कार्य निष्पादित करना चाहता है, तब भी तुम्हें पता होना चाहिए कि मानवजाति के लिए परमेश्वर के इरादे हमेशा अच्छे होते हैं। यदि तुम सच्चे दिल से उसका अनुसरण करते हो, तो वह तुम्हें कभी नहीं छोड़ेगा, और अंत में वह निश्चित रूप से तुम्हें पूर्ण बनाएगा, और लोगों को एक उचित मंजिल तक ले जाएगा। भले ही परमेश्वर वर्तमान में लोगों का किसी भी प्रकार से परीक्षण कर रहा हो, एक दिन ऐसा आएगा जब वह लोगों को उचित परिणाम प्रदान करेगा और उनके द्वारा किए गए कार्य के आधार पर उन्हें उचित प्रतिफल देगा। परमेश्वर लोगों को एक निश्चित बिंदु तक ले जाकर एक तरफ फेंक नहीं देगा और उन्हें अनदेखा नहीं करेगा। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वह एक विश्वसनीय परमेश्वर है। इस चरण में पवित्र आत्मा शुद्धिकरण का कार्य कर रहा है। वह हर एक व्यक्ति को शुद्ध कर रहा है। मृत्यु और ताड़ना के परीक्षणों से युक्त कार्य के चरणों में शुद्धिकरण वचनों के माध्यम से किया गया था। लोगों को परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने के लिए सबसे पहले उसके वर्तमान कार्य को समझना चाहिए और यह भी कि मानवजाति को कैसे सहयोग करना चाहिए। वास्तव में, यह कुछ ऐसा है, जिसे हर किसी को समझना चाहिए। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि परमेश्वर क्या करता है, चाहे वह शुद्धिकरण हो या भले ही वह बोल नहीं रहा हो, परमेश्वर के कार्य का एक भी चरण मानवजाति की अवधारणाओं के अनुरूप नहीं होता। उसके कार्य का प्रत्येक चरण लोगों की अवधारणाओं को खंड-खंड कर देता है। यह उसका कार्य है। लेकिन तुम्हें विश्वास करना चाहिए कि चूँकि परमेश्वर का कार्य एक निश्चित चरण में पहुँच गया है, इसलिए चाहे जो हो जाए, वह मानवजाति को मौत के घाट नहीं उतारेगा। वह मानवजाति को वादे और आशीष दोनों देता है, और वे सभी जो उसका अनुसरण करते हैं, उसके आशीष प्राप्त करने में सक्षम होंगे, लेकिन जो अनुसरण नहीं करते, वे परमेश्वर द्वारा बहिष्कृत कर दिए जाएँगे। यह तुम्हारे अनुसरण पर निर्भर करता है। चाहे कुछ भी हो, तुम्हें विश्वास करना चाहिए कि जब परमेश्वर का कार्य समाप्त हो जाएगा, तो हर एक व्यक्ति की उचित मंजिल होगी। परमेश्वर ने मनुष्यों को सुंदर आकांक्षाएँ प्रदान की हैं, लेकिन यदि वे अनुसरण नहीं करते, तो वे अप्राप्य हैं। तुम्हें अब इसे देखने में सक्षम होना चाहिए—परमेश्वर द्वारा लोगों का शुद्धिकरण और ताड़ना उसका कार्य है, लेकिन लोगों को अपनी तरफ से हर समय अपने स्वभाव में परिवर्तन लाने की कोशिश करनी चाहिए।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए
378. राज्य के युग में मनुष्य को पूरी तरह से पूर्ण किया जाएगा। विजय के कार्य के पश्चात् मनुष्य को शुद्धिकरण और क्लेश का भागी बनाया जाएगा। जो लोग विजय प्राप्त कर सकते हैं और इस क्लेश के दौरान गवाही दे सकते हैं, वे वो लोग हैं जिन्हें अंततः पूर्ण बनाया जाएगा; वे विजेता हैं। इस क्लेश के दौरान मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह इस शुद्धिकरण को स्वीकार करे, और यह शुद्धिकरण परमेश्वर के कार्य की अंतिम घटना है। यह अंतिम बार है कि परमेश्वर के प्रबंधन के समस्त कार्य के समापन से पहले मनुष्य को शुद्ध किया जाएगा, और जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, उन सभी को यह अंतिम परीक्षा स्वीकार करनी चाहिए, और उन्हें यह अंतिम शुद्धिकरण स्वीकार करना चाहिए। जो लोग क्लेश से व्याकुल हैं, वे पवित्र आत्मा के कार्य और परमेश्वर के मार्गदर्शन से रहित हैं, किंतु जिन्हें सच में जीत लिया गया है और जो सच में परमेश्वर की खोज करते हैं, वे अंततः डटे रहेंगे; ये वे लोग हैं, जिनमें मानवता है, और जो सच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं। परमेश्वर चाहे कुछ भी क्यों न करे, इन विजयी लोगों को दर्शनों से वंचित नहीं किया जाएगा, और ये फिर भी अपनी गवाही में असफल हुए बिना सत्य को अभ्यास में लाएँगे। ये वे लोग हैं, जो अंततः बड़े क्लेश से उभरेंगे। भले ही आपदा को अवसर में बदलने वाले आज भी मुफ़्तख़ोरी कर सकते हों, किंतु अंतिम क्लेश से बच निकलने में कोई सक्षम नहीं है, और अंतिम परीक्षा से कोई नहीं बच सकता। जो लोग विजय प्राप्त करते हैं, उनके लिए ऐसा क्लेश जबरदस्त शुद्धिकरण हैं; किंतु आपदा को अवसर में बदलने वालों के लिए यह पूरी तरह से उनके उन्मूलन का कार्य है। जिनके हृदय में परमेश्वर है, उनकी चाहे किसी भी प्रकार से परीक्षा क्यों न ली जाए, उनकी निष्ठा अपरिवर्तित रहती है; किंतु जिनके हृदय में परमेश्वर नहीं है, वे अपने देह के लिए परमेश्वर का कार्य लाभदायक न रहने पर परमेश्वर के बारे में अपना दृष्टिकोण बदल लेते हैं, यहाँ तक कि परमेश्वर को छोड़कर चले जाते हैं। इस प्रकार के लोग ऐसे होते हैं जो अंत में डटे नहीं रहेंगे, जो केवल परमेश्वर के आशीष खोजते हैं और उनमें परमेश्वर के लिए अपने आपको व्यय करने और उसके प्रति समर्पित होने की कोई इच्छा नहीं होती। ऐसे सभी अधम लोगों को परमेश्वर का कार्य समाप्ति पर आने पर बहिष्कृत कर दिया जाएगा, और वे किसी भी प्रकार की सहानुभूति के योग्य नहीं हैं। जो लोग मानवता से रहित हैं, वे सच में परमेश्वर से प्रेम करने में अक्षम हैं। जब परिवेश सही-सलामत और सुरक्षित होता है, या जब लाभ कमाया जा सकता है, तब वे परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आज्ञाकारी रहते हैं, किंतु जब जो वे चाहते हैं, उसमें कमी-बेशी की जाती है या अंतत: उसके लिए मना कर दिया जाता है, तो वे तुरंत बगावत कर देते हैं। यहाँ तक कि एक ही रात के अंतराल में वे अपने कल के उपकारियों के साथ अचानक बिना किसी तुक या तर्क के अपने घातक शत्रु के समान व्यवहार करते हुए, एक मुसकराते, "उदार-हृदय" व्यक्ति से एक कुरूप और जघन्य हत्यारे में बदल जाते हैं। यदि इन पिशाचों को निकाला नहीं जाता, तो ये पिशाच बिना पलक झपकाए हत्या कर देंगे, तो क्या वे एक छिपा हुआ ख़तरा नहीं बन जाएँगे? विजय के कार्य के समापन के बाद मनुष्य को बचाने का कार्य हासिल नहीं किया जाता। यद्यपि विजय का कार्य समाप्ति पर आ गया है, किंतु मनुष्य को शुद्ध करने का कार्य नहीं; वह कार्य केवल तभी समाप्त होगा, जब मनुष्य को पूरी तरह से शुद्ध कर दिया जाएगा, जब परमेश्वर के प्रति वास्तव में समर्पण करने वाले लोगों को पूर्ण कर दिया जाएगा, और जब अपने हृदय में परमेश्वर से रहित छद्मवेशियों को शुद्ध कर दिया जाएगा। जो लोग परमेश्वर के कार्य के अंतिम चरण में उसे संतुष्ट नहीं करते, उन्हें पूरी तरह से निष्कासित कर दिया जाएगा, और जिन्हें निष्कासित कर दिया जाता है, वे शैतान के हो जाते हैं। चूँकि वे परमेश्वर को संतुष्ट करने में अक्षम हैं, इसलिए वे परमेश्वर के प्रति विद्रोही हैं, और भले ही वे लोग आज परमेश्वर का अनुसरण करते हों, फिर भी इससे यह साबित नहीं होता कि ये वो लोग हैं, जो अंततः बने रहेंगे। "जो लोग अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करेंगे, वे उद्धार प्राप्त करेंगे," इन वचनों में "अनुसरण" का अर्थ क्लेश के बीच डटे रहना है। आज बहुत-से लोग मानते हैं कि परमेश्वर का अनुसरण करना आसान है, किंतु जब परमेश्वर का कार्य समाप्त होने वाला होगा, तब तुम "अनुसरण करने" का असली अर्थ जानोगे। सिर्फ इस बात से कि जीत लिए जाने के पश्चात् तुम आज भी परमेश्वर का अनुसरण करने में समर्थ हो, यह प्रमाणित नहीं होता कि तुम उन लोगों में से एक हो, जिन्हें पूर्ण बनाया जाएगा। जो लोग परीक्षणों को सहने में असमर्थ हैं, जो क्लेशों के बीच विजयी होने में अक्षम हैं, वे अंततः डटे रहने में अक्षम होंगे, और इसलिए वे बिलकुल अंत तक अनुसरण करने में असमर्थ होंगे। जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, वे अपने कार्य की परीक्षा का सामना करने में समर्थ हैं, जबकि जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते, वे परमेश्वर के किसी भी परीक्षण का सामना करने में अक्षम हैं। देर-सवेर उन्हें निर्वासित कर दिया जाएगा, जबकि विजेता राज्य में बने रहेंगे। मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को खोजता है या नहीं, इसका निर्धारण उसके कार्य की परीक्षा द्वारा किया जाता है, अर्थात्, परमेश्वर के परीक्षणों द्वारा, और इसका स्वयं मनुष्य द्वारा लिए गए निर्णय से कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर सनक के आधार पर किसी मनुष्य को अस्वीकार नहीं करता; वह जो कुछ भी करता है, वह मनुष्य को पूर्ण रूप से आश्वस्त कर सकता है। वह ऐसा कुछ नहीं करता, जो मनुष्य के लिए अदृश्य हो, या कोई ऐसा कार्य जो मनुष्य को आश्वस्त न कर सके। मनुष्य का विश्वास सही है या नहीं, यह तथ्यों द्वारा साबित होता है, और इसे मनुष्य द्वारा तय नहीं किया जा सकता। इसमें कोई संदेह नहीं कि "गेहूँ को जंगली दाने नहीं बनाया जा सकता, और जंगली दानों को गेहूँ नहीं बनाया जा सकता"। जो सच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे सभी अंततः राज्य में बने रहेंगे, और परमेश्वर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार नहीं करेगा, जो वास्तव में उससे प्रेम करता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास
379. जब पतरस को परमेश्वर द्वारा ताड़ना दी जा रही थी, तो उसने प्रार्थना की, "हे परमेश्वर! मेरी देह अवज्ञाकारी है, और तू मुझे ताड़ना देकर मेरा न्याय कर रहा है। मैं तेरी ताड़ना और न्याय से खुश हूँ, अगर तू मुझे न भी चाहे, तो भी मैं तेरे न्याय में तेरा पवित्र और धार्मिक स्वभाव देखता हूँ। जब तू मेरा न्याय करता है, ताकि अन्य लोग तेरे न्याय में तेरा धार्मिक स्वभाव देख सकें, तो मैं संतुष्टि का एहसास करता हूँ। अगर यह तेरा धार्मिक स्वभाव प्रकट कर सके, सभी प्राणी तेरा धार्मिक स्वभाव देख सकें, और अगर यह तेरे लिए मेरे प्रेम को और शुद्ध बना सके ताकि मैं एक धार्मिक व्यक्ति की तरह बन सकूँ, तो तेरा न्याय अच्छा है, क्योंकि तेरी अनुग्रहकारी इच्छा ऐसी ही है। मैं जानता हूँ कि अभी भी मेरे भीतर बहुत कुछ ऐसा है जो विद्रोही है, और मैं अभी भी तेरे सामने आने के योग्य नहीं हूँ। मैं चाहता हूँ कि तू मेरा और भी अधिक न्याय करे, चाहे क्रूर वातावरण के जरिए करे या घोर क्लेश के जरिए; तू मेरा न्याय कैसे भी करे, यह मेरे लिए बहुमूल्य है। तेरा प्यार बहुत गहरा है, और मैं बिना कोई शिकायत किए स्वयं को तेरे आयोजन पर छोड़ने को तैयार हूँ।" यह परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर लेने के बाद का पतरस का ज्ञान है, यह परमेश्वर के प्रति उसके प्रेम की गवाही भी है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान
380. मनुष्य शरीर के बीच रहता है, जिसका मतलब है कि वह मानवीय नरक में रहता है, और परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के बगैर, मनुष्य शैतान के समान ही अशुद्ध है। मनुष्य पवित्र कैसे हो सकता है? पतरस मानता था कि परमेश्वर की ताड़ना और उसका न्याय मनुष्य की सबसे बड़ी सुरक्षा और महान अनुग्रह है। परमेश्वर की ताड़ना और न्याय से ही मनुष्य जाग सकता है, और शरीर और शैतान से घृणा कर सकता है। परमेश्वर का कठोर अनुशासन मनुष्य को शैतान के प्रभाव से मुक्त करता है, उसे उसके खुद के छोटे-से संसार से मुक्त करता है, और उसे परमेश्वर की उपस्थिति के प्रकाश में जीवन बिताने का अवसर देता है। ताड़ना और न्याय से बेहतर कोई उद्धार नहीं है! पतरस ने प्रार्थना की, "हे परमेश्वर! जब तक तू मुझे ताड़ना देता और मेरा न्याय करता रहेगा, मुझे पता होगा कि तूने मुझे नहीं छोड़ा है। भले ही तू मुझे आनंद या शांति न दे, और मुझे कष्ट में रहने दे, और मुझे अनगिनत ताड़नाओं से प्रताड़ित करे, किंतु जब तक तू मुझे छोड़ेगा नहीं, तब तक मेरा हृदय सुकून में रहेगा। आज, तेरी ताड़ना और न्याय मेरी बेहतरीन सुरक्षा और महानतम आशीष बन गए हैं। जो अनुग्रह तू मुझे देता है वह मेरी सुरक्षा करता है। जो अनुग्रह आज तू मुझे देता है वह तेरे धार्मिक स्वभाव की अभिव्यक्ति है, और ताड़ना और न्याय है; इसके अतिरिक्त, यह एक परीक्षा है, और इससे भी बढ़कर, यह एक कष्टों भरा जीवनयापन है।" पतरस ने दैहिक सुख को एक तरफ रखकर, एक ज्यादा गहरे प्रेम और ज्यादा बड़ी सुरक्षा की खोज की, क्योंकि उसने परमेश्वर की ताड़ना और न्याय से बहुत सारा अनुग्रह हासिल कर लिया था। अपने जीवन में, यदि मनुष्य शुद्ध होकर अपने स्वभाव में परिवर्तन लाना चाहता है, यदि वह एक सार्थक जीवन बिताना चाहता है, और एक प्राणी के रूप में अपने कर्तव्य को निभाना चाहता है, तो उसे परमेश्वर की ताड़ना और न्याय को स्वीकार करना चाहिए, और उसे परमेश्वर के अनुशासन और प्रहार को अपने-आपसे दूर नहीं होने देना चाहिए, ताकि वह खुद को शैतान की चालाकी और प्रभाव से मुक्त कर सके, और परमेश्वर के प्रकाश में जीवन बिता सके। यह जान लो कि परमेश्वर की ताड़ना और न्याय प्रकाश है, मनुष्य के उद्धार का प्रकाश है, और मनुष्य के लिए इससे बेहतर कोई आशीष, अनुग्रह या सुरक्षा नहीं है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान
381. मनुष्य शैतान के प्रभाव में रहता है, और देह में जीता है; यदि उसे शुद्ध न किया जाए और उसे परमेश्वर की सुरक्षा प्राप्त न हो, तो वह और भी ज्यादा भ्रष्ट हो जाएगा। यदि वह परमेश्वर से प्रेम करना चाहता है, तो उसे शुद्ध होना और उद्धार पाना होगा। पतरस ने प्रार्थना की, "परमेश्वर, जब तू मुझ पर दया दिखाता है तो मैं प्रसन्न हो जाता हूँ, और मुझे सुकून मिलता है; जब तू मुझे ताड़ना देता है, तब मुझे और भी ज्यादा सुकून और आनंद मिलता है। यद्यपि मैं कमजोर हूँ, और अकथनीय कष्ट सहता हूँ, यद्यपि मेरे जीवन में आँसू और उदासी है, लेकिन तू जानता है कि यह उदासी मेरी अवज्ञा और कमजोरी के कारण है। मैं रोता हूँ क्योंकि मैं तेरी इच्छाओं को संतुष्ट नहीं कर पाता, मुझे दुख और पछतावा है, क्योंकि मैं तेरी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर रहा हूँ, लेकिन मैं इस आयाम को हासिल करने के लिए तैयार हूँ, मैं तुझे संतुष्ट करने के लिए सब कुछ करने को तैयार हूँ। तेरी ताड़ना ने मुझे सुरक्षा दी है, और मेरा श्रेष्ठतम उद्धार किया है; तेरा न्याय तेरी सहनशीलता और धीरज को ढँक देता है। तेरी ताड़ना और न्याय के बगैर, मैं तेरी दया और करूणा का आनंद नहीं ले पाऊँगा। आज, मैं और भी अधिक देख रहा हूँ कि तेरा प्रेम स्वर्ग से भी ऊँचा उठकर अन्य सभी चीजों पर छा गया है। तेरा प्रेम मात्र दया और करूणा नहीं है; बल्कि उससे भी बढ़कर, यह ताड़ना और न्याय है। तेरी ताड़ना और न्याय ने मुझे बहुत कुछ दिया है। तेरी ताड़ना और न्याय के बगैर, एक भी व्यक्ति शुद्ध नहीं हो सकता, और एक भी व्यक्ति सृष्टिकर्ता के प्रेम को अनुभव नहीं कर सकता। यद्यपि मैंने सैकड़ों परीक्षण और क्लेश सहे हैं, यहाँ तक कि मौत को भी करीब से देखा है, फिर भी मुझे इन्हीं के कारण तुझे जानने और सर्वोच्च उद्धार प्राप्त करने का अवसर मिला है। यदि तेरी ताड़ना, न्याय और अनुशासन मुझसे दूर हो गए होते, तो मैं अंधकार में शैतान के अधीन जीवन बिता रहा होता। मनुष्य की देह का क्या लाभ है? यदि तेरी ताड़ना और न्याय मुझे छोड़कर चले गए होते, तो ऐसा लगता मानो तेरे आत्मा ने मुझे छोड़ दिया है, मानो अब से तू मेरे साथ नहीं है। यदि ऐसा हो जाता, तो मैं कैसे जी पाता? यदि तू मुझे बीमारी देकर मेरी स्वतंत्रता छीन लेता है, तो भी मैं जीवित रह सकता हूँ, परंतु अगर तेरी ताड़ना और न्याय मुझे छोड़ दें, तो मेरे पास जीने का कोई रास्ता न होगा। यदि मेरे पास तेरी ताड़ना और न्याय न होता, तो मैंने तेरे प्रेम को खो दिया होता, एक ऐसा प्रेम जो इतना गहरा है कि मैं इसे शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता। तेरे प्रेम के बिना, मैं शैतान के कब्जे में जी रहा होता, और तेरे महिमामय मुखड़े को न देख पाता। मैं कैसे जीवित रह पाता? मैं ऐसा अंधकार, ऐसा जीवन सहन नहीं कर पाता। मेरे साथ तेरे होने का अर्थ है कि मैं तुझे देख रहा हूँ, तो मैं तुझे कैसे छोड़ सकता हूँ? मैं तुझसे विनती करता हूँ, याचना करता हूँ, तू मेरे सबसे बड़े सुख को मत छीन, भले ही ये आश्वासन के मात्र थोड़े से शब्द ही क्यों न हों। मैंने तेरे प्रेम का आनंद लिया है, और आज मैं तुझसे दूर नहीं रह सकता; मैं तुझसे कैसे प्रेम न करूँ? मैंने तेरे प्रेम के कारण दुख में बहुत आँसू बहाए हैं, फिर भी हमेशा यही लगा है कि इस तरह का जीवन अधिक अर्थपूर्ण है, मुझे समृद्ध बनाने में अधिक सक्षम है, मुझे बदलने में अधिक सक्षम है, और वह सत्य हासिल करने में अधिक सक्षम है जो सभी प्राणियों के पास होना चाहिए।"
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान
382. यदि तुम पूर्ण बनाए जाने का प्रयास करते हो, तो तुम गवाही दे चुके होगे, और तुम कहोगे: "परमेश्वर के इस कदम दर कदम कार्य में, मैंने परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के कार्य को स्वीकार कर लिया है, और हालाँकि मैंने बड़ा कष्ट सहा है, फिर भी मैं जान गया हूँ कि परमेश्वर मनुष्य को पूर्ण कैसे बनाता है, मैंने परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य को प्राप्त कर लिया है, मैंने परमेश्वर की धार्मिकता का ज्ञान प्राप्त कर लिया है, और उसकी ताड़ना ने मुझे बचा लिया है। उसका धार्मिक स्वभाव मुझ पर अपना प्रभाव दिखा रहा है, और मेरे लिए आशीष और अनुग्रह लेकर आया है; उसके न्याय और ताड़ना ने ही मुझे बचाया है और मुझे शुद्ध किया है। यदि परमेश्वर ने मुझे ताड़ना न दी होती और मेरा न्याय न किया होता, और यदि परमेश्वर ने मुझे कठोर वचन न कहे होते, तो मैं परमेश्वर को नहीं जान पाता, और न ही मुझे बचाया जा सका होता। आज मैं देखता हूँ : एक प्राणी के रूप में, न केवल व्यक्ति परमेश्वर द्वारा बनाई गई सभी चीजों का आनंद उठाता है, बल्कि, महत्वपूर्ण यह है कि सभी प्राणी परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का आनंद उठाएँ, और उसके धार्मिक न्याय का आनन्द उठाएँ, क्योंकि परमेश्वर का स्वभाव मनुष्य के आनंद के योग्य है। एक ऐसे प्राणी के रूप में जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है, इंसान को परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का आनंद उठाना चाहिए। उसके धार्मिक स्वभाव में उसकी ताड़ना और न्याय है, इससे भी बढ़कर, उसमें महान प्रेम है। हालाँकि आज मैं परमेश्वर के प्रेम को पूरी तरह प्राप्त करने में असमर्थ हूँ, फिर भी मुझे उसे देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है और इससे मैं धन्य हो गया हूँ।" यह वह पथ है जिस पर वे लोग चले हैं जो पूर्ण बनाए जाने का अनुभव करते हैं और इस ज्ञान के बारे में बोलते हैं। ऐसे लोग पतरस के समान हैं; उनके अनुभव भी पतरस के समान ही होते हैं। ऐसे लोग वे लोग भी हैं जो जीवन-विकास प्राप्त कर चुके होते हैं, जिनके अंदर सत्य है। जब उनका अनुभव अंत तक बना रहता है, तो परमेश्वर के न्याय के दौरान वे अपने-आपको पूरी तरह से शैतान के प्रभाव से छुड़ा लेते हैं और परमेश्वर को प्राप्त हो जाते हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान
383. बरसों बीत जाने के बाद, शुद्धिकरण और ताड़ना की कठिनाइयाँ सहकर मनुष्य वैसा मजबूत हो गया है, जैसा मौसम की मार से हो जाता है। हालाँकि मनुष्य ने अतीत की "महिमा" और "रोमांस" खो दिया है, पर उसने अनजाने ही मानवीय आचरण के सिद्धांतों को समझ लिया है, और वह मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर के वर्षों के समर्पण को समझ गया है। मनुष्य धीरे-धीरे अपनी बर्बरता से घृणा करने लगता है। वह अपनी असभ्यता से, परमेश्वर के प्रति सभी प्रकार की गलतफहमियों से और परमेश्वर से की गई अपनी सभी अनुचित माँगों से घृणा करने लगता है। समय को वापस नहीं लाया जा सकता। अतीत की घटनाएँ मनुष्य की खेदजनक स्मृतियाँ बन जाती हैं, और परमेश्वर के वचन और उसके प्रति प्रेम मनुष्य के नए जीवन में प्रेरक शक्ति बन जाते हैं। मनुष्य के घाव दिन-प्रतिदिन भरने लगते हैं, उसकी सामर्थ्य लौट आती है, और वह उठ खड़ा होता है और सर्वशक्तिमान के चेहरे की ओर देखने लगता है ... और यही पाता है कि परमेश्वर हमेशा मेरे साथ रहा है, और उसकी मुस्कान और उसका सुंदर चेहरा अभी भी भावोद्दीपक हैं। उसके हृदय में अभी भी अपने द्वारा सृजित मानवजाति के लिए चिंता रहती है, और उसके हाथ अभी भी उतने ही गर्मजोशी से भरे और सशक्त हैं, जैसे वे आरंभ में थे। यह ऐसा है, मानो मनुष्य अदन के बाग में लौट आया हो, लेकिन इस बार मनुष्य साँप के प्रलोभन नहीं सुनता और अब वह यहोवा के चेहरे से विमुख नहीं होता। मनुष्य परमेश्वर के सामने घुटने टेकता है, परमेश्वर के मुस्कुराते हुए चेहरे को देखता है, और उसे अपनी सबसे कीमती भेंट चढ़ाता है—ओह! मेरे प्रभु, मेरे परमेश्वर!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 3: मनुष्य को केवल परमेश्वर के प्रबंधन के बीच ही बचाया जा सकता है