देहधारण का रहस्य (2)

जिस समय यीशु ने यहूदिया में कार्य किया था, तब उसने खुलकर ऐसा किया, परंतु अब, मैं तुम लोगों के बीच गुप्त रूप से काम करता और बोलता हूँ। अविश्वासी लोग इस बात से पूरी तरह से अनजान हैं। तुम लोगों के बीच मेरा कार्य बाहर के लोगों के लिए बंद है। इन वचनों, इन ताड़नाओं और न्यायों को केवल तुम लोग ही जानते हो, और कोई नहीं। यह समस्त कार्य तुम लोगों के बीच ही किया जाता है और केवल तुम लोगों के लिए ही प्रकट किया जाता है; अविश्वासियों में से कोई भी इसे नहीं जानता, क्योंकि अभी समय नहीं आया है। यहाँ ये लोग ताड़ना सहने के बाद पूर्ण बनाए जाने के समीप हैं, परंतु बाहर के लोग इस बारे में कुछ नहीं जानते। यह कार्य बहुत अधिक छिपा हुआ है! उनके लिए परमेश्वर का देह बन जाना छिपा हुआ है, परंतु जो इस धारा में हैं, उनके लिए कहा जा सकता है कि वह खुला है। यद्यपि परमेश्वर में सब-कुछ खुला है, सब-कुछ प्रकट है और सब-कुछ मुक्त है, लेकिन यह केवल उनके लिए सही है, जो उसमें विश्वास करते हैं; जहाँ तक शेष लोगों का, अविश्वासियों का संबंध है, उन्हें कुछ भी ज्ञात नहीं करवाया जाता। वर्तमान में तुम्हारे बीच और चीन में जो कार्य किया जा रहा है, वह एकदम छिपाया हुआ है, ताकि उन्हें इसके बारे में पता न चले। यदि उन्हें इस कार्य का पता चल गया, तो वे सिवाय उसकी निंदा और उत्पीड़न के, कुछ नहीं करेंगे। वे उसमें विश्वास नहीं करेंगे। बड़े लाल अजगर के देश में, इस सबसे अधिक पिछड़े इलाके में, कार्य करना कोई आसान बात नहीं है। यदि इस कार्य को खुले तौर पर किया जाता, तो इसे जारी रखना असंभव होता। कार्य का यह चरण इस स्थान में किया ही नहीं जा सकता। यदि इस कार्य को खुले तौर पर किया जाता, तो वे इसे कैसे आगे बढ़ने दे सकते थे? क्या यह कार्य को और अधिक जोखिम में नहीं डाल देता? यदि इस कार्य को छिपाया नहीं जाता, बल्कि यीशु के समय के समान ही किया जाता, जब उसने असाधारण ढंग से बीमारों को चंगा किया और दुष्टात्माओं को निकाला था, तो क्या इसे बहुत पहले ही दुष्टात्माओं द्वारा “पकड़” नहीं लिया गया होता? क्या वे परमेश्वर के अस्तित्व को बरदाश्त कर पाते? यदि मुझे अब मनुष्य को उपदेश और व्याख्यान देने के लिए उपासना-गृहों में प्रवेश करना होता, तो क्या मुझे बहुत पहले ही टुकड़े-टुकड़े नहीं कर दिया गया होता? और यदि ऐसा होता, तो मेरा कार्य कैसे जारी रह पाता? चिह्न और चमत्कार खुले तौर पर बिल्कुल भी अभिव्यक्त न करने का कारण अपने को छिपाना ही है। इसलिए, मेरा कार्य अविश्वासियों द्वारा देखा, खोजा या जाना नहीं जा सकता। यदि कार्य के इस चरण को अनुग्रह के युग में यीशु के तरीके से ही किया जाता, तो यह उतना सुस्थिर नहीं हो सकता था, जितना अब है। इसलिए, इस तरह गुप्त रूप से कार्य करना तुम लोगों के और समग्र कार्य के लाभ के लिए है। जब पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य समाप्त हो जाएगा, अर्थात् जब यह गुप्त कार्य पूरा हो जाएगा, तब कार्य का यह चरण एक झटके से प्रकट हो जाएगा। सब जान जाएँगे कि चीन में विजेताओं का एक समूह है; सब जान जाएँगे कि परमेश्वर ने चीन में देहधारण किया है और उसका कार्य समाप्ति पर आ गया है। केवल तभी मनुष्य पर यह प्रकट होगा : चीन ने अभी तक ह्रास या पतन का प्रदर्शन क्यों नहीं किया है? इससे पता चलता है कि परमेश्वर चीन में व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य कर रहा है और उसने लोगों के एक समूह को विजेताओं के रूप में पूर्ण बना दिया है।

देहधारी बना परमेश्वर स्वयं को सभी सृजित प्राणियों के सामने प्रकट करने के बजाय केवल उन चुनिंदा लोगों के सामने प्रकट करताहै, जो उस अवधि के दौरान उसका अनुसरण करते हैं, जब वह व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य करता है। वह केवल अपने कार्य के एक चरण को पूरा करने के लिए देह बनता है, मनुष्य को अपनी छवि दिखाने के लिए नहीं। चूँकि उसका कार्य स्वयं उसके द्वारा ही किया जाना चाहिए, इसलिए उसका देह में ऐसा करना आवश्यक है। जब यह कार्य पूरा हो जाएगा, तो वह मनुष्य की दुनिया से चला जाएगा; वह इस डर से लंबी अवधि तक मानव-जाति के बीच बना नहीं रह सकता, कि कहीं वह आगामी कार्य के मार्ग में बाधा न बन जाए। जो कुछ वह जनसाधारण पर प्रकट करता है, वह केवल उसका धार्मिक स्वभाव और उसके समस्त कर्म हैं, अपने दो बार के देहधारणों की छवि नहीं, क्योंकि परमेश्वर की छवि केवल उसके स्वभाव के माध्यम से ही प्रदर्शित की जा सकती है, और उसे उसके देह की छवि से बदला नहीं जा सकता। उसके देह की छवि केवल लोगों की एक सीमित संख्या को, केवल उन लोगों को ही दिखाई जाती है, जो तब उसका अनुसरण करते हैं जब वह देह में कार्य करता है। इसीलिए जो कार्य अब किया जा रहा है, वह इस तरह गुप्त रूप से किया जा रहा है। इसी तरह से, यीशु ने जब अपना कार्य किया, तो उसने स्वयं को केवल यहूदियों को ही दिखाया, और अपने आप को कभी भी किसी दूसरे देश को सार्वजनिक रूप से नहीं दिखाया। इस प्रकार, जब एक बार उसने अपना काम समाप्त कर लिया, तो वह तुरंत ही मनुष्यों के बीच से चला गया और रुका नहीं; उसके बाद वह मनुष्य की उस छवि में नहीं रहा, जिसने स्वयं को मनुष्य को दर्शाया था, बल्कि वह पवित्र आत्मा था, जिसने सीधे तौर पर कार्य किया। एक बार जब देहधारी बने परमेश्वर का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो जाता है, तो वह नश्वर संसार से चला जाता है, और फिर कभी उस तरह का कार्य नहीं करता, जो उसने तब किया था, जब वह देह में था। इसके बाद का समस्त कार्य पवित्र आत्मा द्वारा सीधे तौर पर किया जाता है। इस अवधि के दौरान मनुष्य मुश्किल से ही उसके हाड़-मांस के शरीर की छवि को देखने में समर्थ होता है; वह स्वयं को मनुष्य पर बिल्कुल भी प्रकट नहीं करता, बल्कि हमेशा छिपा रहता है। देहधारी बने परमेश्वर के कार्य के लिए समय सीमित होता है। वह एक विशेष युग, अवधि, देश और विशेष लोगों के बीच किया जाता है। वह कार्य केवल परमेश्वर के देहधारण की अवधि के दौरान के कार्य का प्रतिनिधित्व करता है; वह एक युग का प्रतिनिधि है, और वह एक युग-विशेष में परमेश्वर के आत्मा के कार्य का प्रतिनिधित्व करता है, उसके कार्य की संपूर्णता का नहीं। इसलिए, देहधारी बने परमेश्वर की छवि सभी लोगों को नहीं दिखाई जाती। जनसाधारण को जो दिखाया जाता है, वह परमेश्वर की धार्मिकता और अपनी संपूर्णता में उसका स्वभाव होता है, न कि उसकी उस समय की छवि, जब वह दो बार देह बना। यह न तो एकल छवि है जो मनुष्य को दिखाई जाती है, और न ही दो छवियाँ संयुक्त हैं। इसलिए, यह अनिवार्य है कि देहधारी परमेश्वर का देह उस कार्य की समाप्ति पर पृथ्वी से चला जाए, जिसे करना उसके लिए आवश्यक है, क्योंकि वह केवल उस कार्य को करने आता है जो उसे करना चाहिए, लोगों को अपनी छवि दिखाने नहीं आता। यद्यपि देहधारण का अर्थ परमेश्वर द्वारा पहले ही दो बार देहधारण करके पूरा किया जा चुका है, फिर भी वह किसी ऐसे देश पर अपने आपको खुलकर प्रकट नहीं करेगा, जिसने उसे पहले कभी नहीं देखा है। यीशु फिर कभी स्वयं को धार्मिकता के सूर्य के रूप में यहूदियों को नहीं दिखाएगा, न ही वह जैतून के पहाड़ के शिखर पर चढ़कर सभी लोगों को दिखाई देगा; वह जो यहूदियों ने देखा है, वह यहूदिया में अपने समय के दौरान की यीशु की तसवीर है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अपने देहधारण में यीशु का कार्य दो हजार वर्ष पहले समाप्त हो गया; वह यहूदी की छवि में वापस यहूदिया नहीं आएगा, एक यहूदी की छवि में अपने आप को किसी भी अन्यजाति राष्ट्र को तो बिल्कुल भी नहीं दिखाएगा, क्योंकि यीशु के देहधारी होने की छवि केवल एक यहूदी की छवि है, मनुष्य के उस पुत्र की छवि नहीं है, जिसे यूहन्ना ने देखा था। यद्यपि यीशु ने अपने अनुयायियों से वादा किया था कि वह फिर आएगा, फिर भी वह अन्यजाति राष्ट्रों में स्वयं को मात्र यहूदी की छवि में नहीं दिखाएगा। तुम लोगों को यह जानना चाहिए कि परमेश्वर के देह बनने का कार्य एक युग का सूत्रपात करना है। यह कार्य कुछ वर्षों तक सीमित है, और वह परमेश्वर के आत्मा का समस्त कार्य पूरा नहीं कर सकता, वैसे ही जैसे, एक यहूदी के रूप में यीशु की छवि केवल परमेश्वर की उस छवि का प्रतिनिधित्व कर सकती है, जब उसने यहूदिया में कार्य किया था, और वह केवल सलीब पर चढ़ने का कार्य ही कर सकता था। उस अवधि के दौरान, जब यीशु देह में था, वह युग का अंत करने या मानवजाति को नष्ट करने का कार्य नहीं कर सकता था। इसलिए, जब उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया, और उसने अपना कार्य समाप्त कर लिया, तब वह उच्चतम ऊँचाई पर चढ़ गया और उसने हमेशा के लिए स्वयं को मनुष्य से छिपा लिया। तब से, अन्यजाति देशों के वे वफादार विश्वासी प्रभु यीशु की अभिव्यक्ति को देखने में असमर्थ हो गए, वे केवल उसके चित्र को देखने में ही समर्थ रहे, जिसे उन्होंने दीवार पर चिपकाया था। यह तसवीर सिर्फ मनुष्य द्वारा बनाई गई तसवीर है, न कि परमेश्वर की वह छवि है जो वह स्वयं मनुष्य को दिखाता है। परमेश्वर अपने आपको खुलकर अपने दो बार देह बनने की छवि में जनसाधारण को नहीं दिखाएगा। जो कार्य वह मनुष्यों के बीच करता है, वह इसलिए करता है ताकि वे उसके स्वभाव को समझ सकें। यह सब मनुष्य को भिन्न-भिन्न युगों के कार्य के माध्यम से दिखाया जाता है; यह उस स्वभाव के माध्यम से, जो उसने ज्ञात करवाया है और उस कार्य के माध्यम से, जो उसने किया है, संपन्न किया जाता है, यीशु की अभिव्यक्ति के माध्यम से नहीं। अर्थात्, मनुष्य को परमेश्वर की छवि देहधारी छवि के माध्यम से नहीं, बल्कि देहधारी परमेश्वर के द्वारा, जिसके पास छवि और आकार दोनों हैं, किए गए कार्य के माध्यम से ज्ञात करवाई जाती है; और उसके कार्य के माध्यम से उसकी छवि दिखाई जाती है और उसका स्वभाव ज्ञात करवाया जाता है। यही उस कार्य का अर्थ है, जिसे वह देह में करना चाहता है।

एक बार जब परमेश्वर के दो देहधारणों का कार्य समाप्त हो जाएगा, तो वह जनसाधारण को अपना स्वरूप देखने की अनुमति देते हुए अविश्वासियों के समस्त देशों में अपना धार्मिक स्वभाव दिखाना शुरू करेगा। वह अपने स्वभाव को अभिव्यक्त करेगा, और इसके माध्यम से विभिन्न श्रेणियों के मनुष्यों का अंत स्पष्ट करेगा, और इस प्रकार पुराने युग को पूरी तरह से समाप्त कर देगा। देह में उसका कार्य बड़ी सीमा तक विस्तारित नहीं होता (जैसे कि यीशु ने केवल यहूदिया में काम किया, और आज मैं केवल तुम लोगों बीच कार्य करता हूँ), जिसका कारण यह है कि देह में उसके कार्य की हदें और सीमाएँ हैं। वह एक साधारण और सामान्य देह में केवल एक अल्पावधि का कार्य करता है; वह इस धारित देह का उपयोग शाश्वतता का कार्य करने या अविश्वासियों के देशों के लोगों को दिखाई देने का कार्य करने के लिए नहीं करता। देह में किए जाने वाले कार्य को केवल दायरे में सीमित किया जा सकता है (जैसे कि सिर्फ यहूदिया में या सिर्फ तुम लोगों के बीच कार्य करना), और फिर, इन सीमाओं के भीतर किए गए कार्य के माध्यम से, इसके दायरे को तब विस्तारित किया जा सकता है। बेशक, विस्तार का कार्य सीधे तौर पर पवित्र आत्मा द्वारा किया जाता है और तब वह उसके द्वारा धारित देह का कार्य नहीं होगा। चूँकि देह में कार्य की सीमाएँ हैं और वह विश्व के समस्त कोनों तक नहीं फैलता—इसलिए वह इसे पूरा नहीं कर सकता। देह में कार्य के माध्यम से उसका आत्मा उस कार्य को करता है, जो उसके बाद आता है। इसलिए, देह में किया गया कार्य शुरुआती प्रकृति का होता है, जिसे कुछ निश्चित सीमाओं के भीतर किया जाता है; इसके बाद, उसका आत्मा उस कार्य को आगे बढ़ाता है, और इतना ही नहीं, ऐसा वह एक बढ़े हुए दायरे में करता है।

परमेश्वर पृथ्वी पर एक कार्य करने केवल इसलिए आता है, ताकि वह युग की अगुआई करे, उसका उद्देश्य केवल नए युग का आरंभ करना और पुराने युग को समाप्त करना है। वह पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन जीने, स्वयं मानव-जगत के जीवन के सुख-दुःख का अनुभव करने, या किसी व्यक्ति-विशेष को अपने हाथ से पूर्ण बनाने या किसी व्यक्ति-विशेष को व्यक्तिगत रूप से बढ़ते हुए देखने के लिए नहीं आया है। यह उसका कार्य नहीं है; उसका कार्य केवल एक नए युग का आरंभ करना और पुराने युग को समाप्त करना है। अर्थात्, वह व्यक्तिगत रूप से एक युग का आरंभ करेगा, व्यक्तिगत रूप से दूसरे युग का अंत करेगा, और व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य करके शैतान को पराजित करेगा। हर बार जब वह व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य करता है, तो यह ऐसा होता है मानो वह युद्ध के मैदान में कदम रख रहा हो। सबसे पहले, वह विश्व को जीतता है और देह में रहते हुए शैतान पर विजय प्राप्त करता है; वह सारी महिमा का मालिक हो जाता है और दो हज़ार वर्षों के कार्य की समग्रता पर से पर्दा उठाता है, और उसे ऐसा बना देता है कि पृथ्वी के सभी मनुष्यों के पास चलने के लिए एक सही मार्ग और जीने के लिए एक शांतिपूर्ण और आनंदमय जीवन हो। किंतु, परमेश्वर लंबे समय तक मनुष्य के साथ पृथ्वी पर नहीं रह सकता, क्योंकि परमेश्वर तो परमेश्वर है, और अंततः मनुष्य के समान नहीं है। वह एक सामान्य मनुष्य का जीवनकाल नहीं जी सकता, अर्थात्, वह पृथ्वी पर एक ऐसे मनुष्य के रूप में नहीं रह सकता, जो साधारण के अलावा कुछ नहीं है, क्योंकि उसके पास अपने मानव-जीवन को बनाए रखने के लिए एक सामान्य मनुष्य की सामान्य मनुष्यता का केवल एक अल्पतम अंश ही है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर पृथ्वी पर कैसे एक परिवार शुरू कर सकता है, कैसे आजीविका अपना सकता है, और कैसे बच्चों की परवरिश कर सकता है? क्या यह उसके लिए अपमानजनक नहीं होगा? वह सिर्फ सामान्य तरीके से कार्य करने के उद्देश्य से सामान्य मानवता से संपन्न है, न कि एक सामान्य मनुष्य के समान अपना परिवार और आजीविका रखने में समर्थ होने के लिए। उसकी सामान्य समझ, सामान्य मन और उसके देह के सामान्य भोजन और वस्त्र यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त हैं कि उसमें एक सामान्य मानवता है; यह साबित करने के लिए कि वह सामान्य मानवता से सुसज्जित है, उसे परिवार या आजीविका रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह पूरी तरह से अनावश्यक होगा! परमेश्वर का पृथ्वी पर आना वचन का देह बनना है; वह मनुष्य को मात्र अपने वचन को समझने और अपने वचन को देखने दे रहा है, अर्थात्, मनुष्य को देह द्वारा किए गए कार्य को देखने दे रहा है। उसका यह इरादा नहीं है कि लोग उसके देह के साथ एक निश्चित तरीके से व्यवहार करें, बल्कि केवल यह है कि मनुष्य अंत तक समर्पित बने रहें, अर्थात्, उसके मुँह से निकलने वाले सभी वचनों के प्रति समर्पित रहेंऔर उसके द्वारा किए जाने वाले समस्त कार्य के प्रति समर्पित रहें। वह मात्र देह में कार्य कर रहा है; वह जानबूझकर मनुष्य से यह नहीं कह रहा कि वह उसकी देह की महानता या पवित्रता की सराहना करे, बल्कि वह मनुष्य को अपने कार्य की बुद्धिमानी और वह समस्त अधिकार दिखा रहा है, जिसका वह प्रयोग करता है। इसलिए, भले ही उसके पास उत्कृष्ट मानवता है, फिर भी वह कोई घोषणा नहीं करता, और केवल उस कार्य पर ध्यान केंद्रित करता है, जो उसे करना चाहिए। तुम लोगों को जानना चाहिए कि ऐसा क्यों है कि परमेश्वर देह बना और फिर भी वह अपनी सामान्य मानवता का प्रचार नहीं करता या उसकी गवाही नहीं देता, बल्कि इसके बजाय केवल उस कार्य को करता है, जिसे वह करना चाहता है। इसलिए, जो कुछ तुम लोग देहधारी परमेश्वर में देख सकते हो, वह उसका दिव्य स्वरूप है; इसका कारण यह है कि वह अपने मानवीय स्वरूप का ढिंढोरा नहीं पीटता, जिससे कि मनुष्य उसका अनुकरण करे। केवल जब मनुष्य लोगों की अगुआई करता है, तभी वह अपने मानवीय स्वरूप के बारे में बोलता है, ताकि वह उनकी प्रशंसा और विश्वास बेहतर ढंग से पा सके और इसके फलस्वरूप दूसरों की अगुआई प्राप्त कर सके। इसके विपरीत, परमेश्वर केवल अपने कार्य (अर्थात् मनुष्य के लिए अप्राप्य कार्य) के माध्यम से ही मनुष्य पर विजय प्राप्त करता है; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या मनुष्य द्वारा उसकी प्रशंसा की जाती है या वह मनुष्य से अपनी आराधना करवाता है या नहीं। वह बस अपने प्रति मनुष्य में भय की भावना या अपनी अगाधता का भाव भरता है। मनुष्य को प्रभावित करने की परमेश्वर को कोई आवश्यकता नहीं है; वह तुम लोगों से बस इतना ही चाहता है कि जब एक बार तुम लोग उसके स्वभाव को देख लो, तो उसका भय मानो। परमेश्वर जो कार्य करता है, वह उसका अपना कार्य है; उसे उसके बजाय मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता, न ही उसे मनुष्य द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। केवल स्वयं परमेश्वर ही अपना कार्य कर सकता है और मनुष्य की नए जीवन में अगुआई करने के लिए उसे नए युग में ले जा सकता है। जो कार्य वह करता है, वह मनुष्य को एक नया जीवन धारण करने और नए युग में प्रवेश करने में सक्षम बनाने के लिए है। शेष कार्य उन लोगों को सौंप दिया जाता है, जो सामान्य मानवता वाले हैं और जिनकी दूसरों के द्वारा प्रशंसा की जाती है। इसलिए, अनुग्रह के युग में उसने दो हज़ार वर्षों के कार्य को देह में अपने तैंतीस वर्षों में से मात्र साढ़े तीन वर्षों में पूरा कर दिया। जब परमेश्वर अपना कार्य करने के लिए पृथ्वी पर आता है, तो वह हमेशा दो हजार वर्षों के या एक समस्त युग के कार्य को कुछ ही वर्षों के लघुतम समय के भीतर पूरा कर देता है। वह ठहरता नहीं, और वह देरी नहीं करता है; वह बस कई वर्षों के काम को घनीभूत कर देता है, ताकि वह मात्र कुछ थोड़े-से वर्षों में ही पूरा हो जाए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जिस कार्य को वह व्यक्तिगत रूप से करता है, वह पूर्णतः एक नया मार्ग प्रशस्त करने और एक नए युग की अगुआई करने के लिए होता है।

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