260 मैं अपने हृदय में केवल परमेश्वर से प्रेम करना चाहती हूँ
हे परमेश्वर! मैं यह नहीं माँगता कि दूसरे मुझे सहन करें या मुझसे अच्छा व्यवहार करें, न ही यह कि वे मुझे समझें और स्वीकार करें। मैं केवल यह माँगता हूँ कि मैं अपने हृदय से तुझसे प्रेम कर सकूँ, कि मैं अपने हृदय में शांत हो सकूँ, और कि मेरा अंत:करण शुद्ध हो। मैं यह नहीं माँगता कि दूसरे मेरी प्रशंसा करें, या मेरा बहुत आदर करें; मैं केवल तुझे अपने हृदय से संतुष्ट करना चाहता हूँ और तुझे संतुष्ट करने के लिए सत्य का अभ्यास करना चाहता हूँ। मैं पूरे समर्पण भाव से अपने कर्तव्य का निर्वहन करता हूँ, यद्यपि मैं मूर्ख हूँ और मुझमें क्षमता की कमी है, फिर भी मैं जानता हूँ कि तू मनोहर है और वह सब-कुछ जो मेरे पास है मैं तुझे अर्पित करने के लिए तैयार हूँ। मेरी एकमात्र इच्छा है कि मैं प्रेमपूर्ण हृदय लेकर तेरे लिये काम करूँ; मैं केवल सच्चे हृदय और सत्य की राह पर चलकर तेरी सेवा करना चाहती हूँ। मैं आजीवन केवल तेरी इच्छा को पूरा करने के लिये काम करना चाहती हूँ, और सब-कुछ तेरी इच्छा के अनुरूप करना चाहती हूँ।