675 परमेश्वर के शुद्धिकरण के कार्य का उद्देश्य
1
शुद्धिकरण आसान नहीं किसी के लिए,
बहुत मुश्किल है इस प्रक्रिया को स्वीकारना।
शुद्धिकरण में इंसान को ईश्वर मगर अपना धार्मिक स्वभाव दिखाए;
प्रबोधन प्रदान करे, अपनी अपेक्षा बताए,
और अधिक काट-छाँट, व्यवहार मुहैया कराए।
शुद्धिकरण का अर्थ नहीं लोगों को ईश्वर के आगे से हटाना,
न उन्हें नरक में मिटाना।
इसके मायने हैं बदलना इंसान के स्वभाव को, इरादों, पुराने विचारों को,
उसके ईश्वर-प्रेम को बदलना है,
और उसके पूरे जीवन को बदलना है, जीवन को बदलना है।
2
तथ्यों और सत्यों की तुलना करके, ईश्वर इंसान को देता है ज़्यादा ज्ञान,
सत्य, ईश-इच्छा और इंसान के बारे में,
ताकि इंसान ईश्वर का सच्चा, शुद्ध प्रेम पाए।
ये लक्ष्य हैं ईश्वर के शुद्धिकरण करने के।
शुद्धिकरण का अर्थ नहीं लोगों को ईश्वर के आगे से हटाना,
न उन्हें नरक में मिटाना।
इसके मायने हैं बदलना इंसान के स्वभाव को, इरादों, पुराने विचारों को,
उसके ईश्वर-प्रेम को बदलना है,
और उसके पूरे जीवन को बदलना है, जीवन को बदलना है।
3
इंसान पर सभी कार्यों का उद्देश्य और महत्व है।
ईश्वर का कार्य कभी निरर्थक नहीं। ये सदा इंसान का हित करे।
शुद्धिकरण इम्तहान है इंसान का, एक रूप है असली तालीम का।
शुद्धिकरण से ही उसका प्रेम कर सके अपना काम।
शुद्धिकरण का अर्थ नहीं लोगों को ईश्वर के आगे से हटाना,
न उन्हें नरक में मिटाना।
इसके मायने हैं बदलना इंसान के स्वभाव को, इरादों, पुराने विचारों को,
उसके ईश्वर-प्रेम को बदलना है,
और उसके पूरे जीवन को बदलना है, जीवन को बदलना है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल शुद्धिकरण का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है से रूपांतरित