378 मनुष्य की प्रकृति के विश्वासघाती होने का कारण
1 मानव जाति का अस्तित्व बारी-बारी से आत्मा के देहधारण पर प्रतिपादित किया जाता है। दूसरे शब्दों में, प्रत्येक व्यक्ति अपने आत्मा के देहधारण करने पर देह का मानव जीवन प्राप्त करता है। एक व्यक्ति की देह का जन्म होने के बाद, जब तक देह की उच्चतम सीमा नहीं आ जाती है तब तक वह जीवन जारी रहता है, अर्थात्, अंतिम क्षण तक जब आत्मा अपना आवरण छोड़ देता है। व्यक्ति की आत्मा के आने और जाने, आने और जाने के साथ यह प्रक्रिया बार-बार दोहरायी जाती है, इस प्रकार समस्त मानवजाति का अस्तित्व बना रहता है। शरीर का जीवन मनुष्य के आत्मा का भी जीवन है, और मनुष्य का आत्मा मनुष्य के शरीर के अस्तित्व को सहारा देता है। अर्थात्, प्रत्येक व्यक्ति का जीवन उसकी आत्मा से आता है; यह उनका शरीर नहीं है जिसमें मूल रूप से जीवन था। इसलिए, मनुष्य की प्रकृति उसकी आत्मा से आती है, न कि उसके शरीर से।
2 केवल प्रत्येक व्यक्ति का आत्मा ही जानता है कि कैसे उसने शैतान के प्रलोभनों, यातना और भ्रष्टता को सहा है। मनुष्य का शरीर यह नहीं जान सकता है। तदनुसार, मानवजाति अनिच्छापूर्वक उत्तरोत्तर गंदी, बुरी और अंधकारमय बनती जा रही है, जबकि मेरे और मनुष्य के बीच की दूरी अधिक से अधिक बढ़ती जा रही है, और मानवजाति के दिन और अधिक अंधकारमय होते जाते हैं। मानवजाति के आत्माएँ शैतान की मुट्ठी में हैं। वैसे तो, कहने की आवश्यकता नहीं कि मनुष्य के शरीर पर भी शैतान द्वारा कब्जा कर लिया गया है। कैसे इस तरह का शरीर और इस तरह के मानव परमेश्वर का विरोध नहीं कर सकते हैं और उसके साथ सहज अनुकूल नहीं हो सकते हैं? मेरे द्वारा शैतान को हवा में बहिष्कृत इस कारण से किया गया था क्योंकि इसने मेरे साथ विश्वासघात किया था, तो मनुष्य स्वयं को इसके प्रतिप्रभावों से कैसे मुक्त कर सकते हैं? यही कारण है कि मानव की प्रकृति विश्वासघात की है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "एक बहुत गंभीर समस्या: विश्वासघात (2)" से रूपांतरित