465 परमेश्वर मूल्यवान मानता है उनको जो उसकी सुनते और उसका आदेश मानते हैं

1

परमेश्वर को नहीं फर्क पड़ता हो मनुष्य नम्र या महान।

जब तक वह सुनता है परमेश्वर की,

मानता है परमेश्वर के आदेश और जो सौंपता है परमेश्वर,

जुड़ा रहता है उसके कार्य, उसकी योजना और उसकी इच्छा से,

जिससे कि उसकी इच्छा और योजना बढ़ सकें बिना अड़चन के,

ऐसे कार्य हैं योग्य, योग्य परमेश्वर की स्मृति के,

और हैं योग्य प्राप्ति के, प्राप्ति उसके आशीष की।

परमेश्वर ऐसे लोगों को सहेजता, और संजोता है उनके कार्यों को,

और उनके हृदय और स्नेह को जो हैं उसके लिए।

यही है मनोवृत्ति परमेश्वर की।


2

परमेश्वर को नहीं फर्क पड़ता हो मनुष्य नम्र या महान।

जब तक वह सुनता है परमेश्वर की,

मानता है परमेश्वर के आदेश और जो सौंपता है परमेश्वर,

जुड़ा रहता है उसके कार्य, उसकी योजना और उसकी इच्छा से,

जिससे कि उसकी इच्छा और योजना बढ़ सकें बिना अड़चन के,

ऐसे कार्य हैं योग्य, योग्य परमेश्वर की स्मृति के,

और हैं योग्य प्राप्ति के, प्राप्ति उसके आशीष की।

परमेश्वर ऐसे लोगों को सहेजता, और संजोता है उनके कार्यों को,

और उनके हृदय और स्नेह को जो हैं उसके लिए।

यही है मनोवृत्ति परमेश्वर की। यही है मनोवृत्ति परमेश्वर की।


—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I से रूपांतरित

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