562 अपने विचारों और दृष्टिकोण को जानना महत्वपूर्ण है
अपने आपको जानना यह जानना है कि तुम्हारे विचारों और दृष्टिकोण में ऐसी कौन सी बातें हैं जो परमेश्वर का विरोध करती हैं और सत्य के बिलकुल भी अनुरूप नहीं हैं और जिनमें सत्य मौजूद नहीं है। उदाहरण के लिए, मनुष्य के अहंकार, दंभ, झूठ और धोखे को जानना—ये ऐसे भ्रष्ट स्वभाव हैं जिन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है। इसके अलावा, हर व्यक्ति में अलग-अलग स्तर का अहंकार और कपट छिपा होता है। हालांकि, लोगों के विचारों और दृष्टिकोण को जानना आसान नहीं है; इनके बारे में जानना उतना आसान नहीं है जितना कि लोगों के स्वभावों को जानना। ये गहराई तक समायी हुई चीज़ें हैं। इसलिये, जब तुम्हारे व्यवहार और बाहरी आचरण में कुछ परिवर्तन आता है, तब भी तुम्हारी सोच, धारणाओं और दृष्टिकोणों के कई पहलुओं का खुलासा नहीं होता है, तुम्हें जो पारंपरिक संस्कृति की शिक्षा मिली है जो परमेश्वर के ख़िलाफ़ है और तुम्हारे अंदर मौजूद है, उसे उजागर नहीं किया गया है। ऐसी चीज़ें परमेश्वर के प्रति तुम्हारे विरोध की जड़ें हैं।
— "मसीह की बातचीतों के अभिलेख" में "अपने पथभ्रष्ट दृष्टिकोणों को जानकर ही आप स्वयं को जान सकते हैं" से रूपांतरित