803 परमेश्वर को जानकर ही आप उसकी सच्ची आराधना कर सकते हैं

1 बिना किसी अपवाद के, जो भी सचमुच में परमेश्वर को जानते हैं वे जब उसे देखते हैं तो उसकी आराधना और आदर करते हैं। जैसे ही वे परमेश्वर को देखते हैं वे भयभीत हो जाते हैं। वर्तमान में, जब देहधारी परमेश्वर कार्य कर रहा है, तब लोगों के पास उसके स्वभाव की और उसके स्वरूप की जितनी अधिक समझ होती है, उतना ही अधिक लोग इन बातों को संजोकर रखेंगे, उतना ही अधिक वे परमेश्वर का आदर करेंगे। आम तौर पर, जितनी कम समझ लोगों के पास होती है, वे उतना ही अधिक लापरवाह होते हैं, और इसलिए वे परमेश्वर से मनुष्य के समान बर्ताव करते हैं। यदि लोग वास्तव में परमेश्वर को जानते और देखते, तो वे भय के मारे काँपने लगते। "जो मेरे बाद आने वाला है, वह मुझ से शक्तिशाली है; मैं उसकी जूती उठाने के योग्य नहीं"—यूहन्ना ने ऐसा क्यों कहा? यद्यपि अंतरतम में उसके पास गहन समझ नहीं थी, फिर भी वह जानता था कि परमेश्वर विस्मय की भावना जगाता है।

2 यदि लोग न तो मसीह का सार जानते हों, न ही परमेश्वर के स्वभाव को समझते हों, तो वे सही मायनों में व्यावहारिक परमेश्वर की आराधना नहीं कर पाते। यदि वे सिर्फ मसीह के साधारण और सामान्य बाहरी रूप को देखते हैं फिर भी उसके सार को नहीं जानते हैं, तो मसीह के साथ मात्र एक सामान्य मनुष्य की तरह बर्ताव करना लोगों के लिए आसान है। वे उसके प्रति एक अपमानजनक प्रवृत्ति अपना सकते हैं, उसे धोखा दे सकते हैं, उसका प्रतिरोध कर सकते हैं, उसकी अवज्ञा कर सकते हैं, उस पर दोष लगा सकते हैं, और दुराग्रही हो सकते हैं। वे दंभी हो सकते हैं और हो सकता है वे उसके वचन या कार्य को गंभीरता से न लें, वे परमेश्वर के बारे में धारणाएं भी बना सकते हैं, उसकी निंदा और तिरस्कार कर सकते हैं। इन मुद्दों को सुलझाने के लिए व्यक्ति को मसीह के सार, एवं मसीह की दिव्यता को अवश्य जानना चाहिए। परमेश्वर को जानने का यही मुख्य पहलू है; यही वो है जिसे परमेश्वर में विश्वास करने वाले हर इंसान को हासिल करना चाहिए।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन से रूपांतरित

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