58 घर जाना
Ⅰ
मैं भोलेपन में सोचता था
संसार में होंगे मेरे सपने पूरे,
एक अद्भुत जीवन हासिल करूंगा मैं
कड़ी मेहनत और संघर्ष से।
पर झेलकर कई नाकामियों को
अब वे बातें बेतुकी लगती हैं,
बुराई और चालाकियों से भरी इस दुनिया में,
मैंने अपनी निर्मलता और अच्छाई खोई हैं।
Ⅱ
ज़िन्दगी जीता था मैं एक जानवर की
मैं शोहरत और दौलत के पीछे भागा।
दुनिया की निर्दयता और बेदर्दी ने
है मेरे दिल को कितना चूर-चूर किया।
लोगबाग़ आपस में लड़ते-मरते हैं,
भरे हैं बहुत झूठ, बहुत हिंसा से।
बिना जान-पहचान और चालबाज़ी के
बचने का नहीं है कोई सीधा तरीक़ा।
सही राह पर चलने से
और विश्वास परमेश्वर में रखने से भी,
होगा अन्याय तुम्हारे साथ
और जाओगे तुम जेल में।
साफ़ देखता हूँ मैं यह दुनिया
बुराई और अन्धकार से भरी है।
मैं हूँ असहाय, मैं आहत हूँ।
मेरे दिल में पीड़ा भरी है।
मैं अकेला हूँ और बहुत संघर्ष कर रहा हूँ,
लेकिन मुझे दिशा नहीं मिल रही है।
कहाँ है वह प्यारा-सा घर
जिसके लिए मैं दिल में तरसता हूँ।
Ⅲ
एक परिचित-सी आवाज़ पुकारती है।
परमेश्वर के ये प्यारे वचन,
मेरे दिल को स्नेह से भरते हैं।
मैं देखता हूँ यह मानव-पुत्र है
जो पुकारता और मेरा द्वार खटखटाता है।
परमेश्वर के सामने आकर देखता हूँ
कलीसिया एक नया स्वर्ग, नई पृथ्वी है।
हैं लोग यहाँ के सच्चे-अच्छे,
एक-दूसरे से नेकी से पेश आते हैं।
Ⅳ
यहाँ निष्पक्षता है, धर्मिता है।
परमेश्वर के वचनों का, सत्य का बोलबाला है।
वे उघाड़ते जीवन के रहस्यों को,
हैं मेरे दिल को जगाते, जीवन स्पष्ट हो जाता है।
सच्चाई को जानकर
अच्छे-बुरे का भेद कर सकता हूँ मैं।
अब और शोहरत व दौलत के पीछे नहीं भागता,
शैतान के जाल से बच निकलता हूँ मैं।
अब नेक हूँ, परमेश्वर मुझे आशीषें देते हैं।
मेरे दिल में चैन है, मैं आराम से हूँ।
मैं परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता हूँ।
सही मार्ग पर मैं चलता हूँ।
परमेश्वर कितने प्यारे हैं,
मेरा दिल उनके लिए बहुत लालायित है।
अब मैं प्रकाश में जी सकता हूँ,
परमेश्वर से सदा प्रेम,
सदा आज्ञापालन कर सकता हूँ।
परमेश्वर के सामने आकर देखता हूँ
कलीसिया एक नया स्वर्ग, नई पृथ्वी है।
हैं लोग यहाँ के सच्चे-अच्छे
नेकी से पेश आते हैं।
यहाँ निष्पक्षता और धर्मिता हैं,
मैं आज्ञा-पालन करूँगा,
परमेश्वर से प्रेम करूँगा सदा-सर्वदा।